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Friday, August 15, 2025

ओशो के यह प्रवचन भी कमाल के हैं

योगिराज अरविन्द घोष क्यू चले गए थे मेडिटेशन में?

ओशो की दुनिया से संजीव मिश्रा: 15 अगस्त 2025: (मीडिया लिंक रविंदर//आराधना टाईम्ज़ डेस्क)::

ओशो के यह प्रवचन भी कमाल के हैं। नीचे दिए गए इस आलेख को सोशल मीडिया पर संजीव मिश्रा साहिब ने आज 15 अगस्त 2025 को बाद दोपहर 02:10 पर पोस्ट किया। इसे पढ़ने के बाद मुझे अपने बचपन की बहुत सी बातें याद आने लगीं। इन्हीं में से कुछ बातें योगिराज अरविन्द जी से सबंधित हैं। मैंने इन के विचार विभिन्न स्रोत से पढ़े थे। न किताबें ज़्यादा थीं न ही इंटरनेट था।  उन्होंने बहुत तीव्रता से प्रभावित भी किया। समादि में बैठने की इच्छा बलवती होने लगी। मुझे ध्यान विधियों का कुछ भी पता नहीं था। बस अनुमान से आँखें बंद करके लेटना और ध्यान जुड़ने लगा। उम्र शायद 15-16 वर्ष की हो चुकी थी। घर परिवार से डांट भी पड़ी। सख्ती से कहा गया तुझे हम लोग सन्यास नहीं लेने देंगें। उसके बाद क्या क्या हुआ इसकी चर्चा फिर किसी पोस्ट में की जाएगी। स्नेह और सम्मान से -रेक्टर कथूरिया 

जनाब संजीव मिश्रा साहिब बताते हैं कि श्री अरविंद को किसी ने एक बार पूछा कि आप भारत की स्वतंत्रता के संघर्ष की आजादी के युद्ध में अग्रणी सेनानी थे; लड़ रहे थे। फिर अचानक आप पलायनवादी कैसे हो गये कि सब छोड़कर आप पांडिचेरी में बैठ गए आँख बंद करके। वर्ष में एक बार आप निकलते है दर्शन देने को। आप जैसा संघर्षशील, तेजस्वी, व्यक्ति जो जीवन के घनेपन में खड़ा था और जीवन को रूपांतरित कर रहा था, वह अचानक इस भांति पलायनवादी होकर अंधेरे में क्यों छिप गया? आप कुछ करते क्यों नहीं? क्या आप सोचते है कि करने को कुछ नहीं बचा, या करने योग्य कुछ नहीं है? या समाज की और मनुष्य की समस्याएं हल हो गई है और आप विश्राम कर सकते है? समस्याएं तो बढ़ती चली जाती है। आदमी कष्ट में है, दुःख में है, गुलाम है, भूखा है, बीमार है, कुछ करिए।

यही लाओत्से कह रहा है। श्री अरविंद ने कहा, कि मैं कुछ कर रहा हूं, और जो पहले मैं कर रहा था वह अपर्याप्त था; अब जो कर रहा हूं वह पर्याप्त है। वह आदमी चौका होगा जिसने पूछा। यह किस प्रकार का करना है कि आप अपने कमरे में आँख बंद किए बैठे है, इससे क्या होगा?

तो अरविंद कहते है कि जब मैं करने में लगा था तब मुझे पता नहीं था कि कर्म तो बहुत ऊपर-ऊपर है, उससे दूसरों को नहीं बदला जा सकता। दूसरों को बदलना हो तो इतने स्वयं के भीतर प्रवेश कर जाना जरूरी है जहां से कि सूक्ष्म तरंगें उठती है, जहां से कि जीवन का आविर्भाव होता है। और अगर वहां से मैं तरंगों को बदल दूँ तो वे तरंगें जहां तक जायेगी—और तरंगें अनंत तक फैलती चली जाती है।

रेडियो की ही आवाज नहीं घूम रही है पृथ्वी के चारों ओर, टेलीविजन के चित्र ही हजारों मील तक नहीं जा रहे है; सभी तरंगें अनंत की यात्रा पर निकल जाती है। जब आप गहरे में शांत होत है तो आपकी झील से शांत तरंगें उठने लगती है; वे शांत तरंगें फैलती चली जाती है। वे पृथ्वी को छुएगा, चाँद को छुएँगी, तारों और ब्रह्मांड में व्याप्त हो जाएंगी। और जितनी सूक्ष्म तरंग का कोई मालिक हो जाए उतना ही दूसरों में प्रवेश क्षमता आ जाती है।

तो अरविंद ने कहा कि अब मैं महाकार्य में लगा हूं। तब मैं क्षुद्र कार्य में लगा था। अब मैं उस महा कार्य में लगा हूं जिसमें मनुष्य से बदलने को कहना न पड़े और बदलाहट हो जाए। क्यूंकि मैं उसके ह्रदय में सीधा प्रवेश कर सकूंगा। अगर मैं सफल होता हूं—सफलता बहुत कठिन बात है—अगर मैं सफल होता हूं तो एक नए मनुष्य का, एक महामानव का जन्म निश्चित है।

लेकिन जो व्यक्ति पूछने गया था वह असंतुष्ट ही लौटा होगा। यह सब बातचीत मालूम पड़ती है। ये सब पलायन वादियों के ढंग और रूख मालूम पड़ते है। खाली बैठे रहना पर्याप्त नहीं है, अपर्याप्त है। इसलिए लाओत्से कहता है, ‘’महाचरित्र अपर्याप्त मालूम पड़ता है।‘’

इसलिए हम पूजा जारी रखेंगे गांधी की, अरविंद को हम धीरे-धीरे छोड़ते जाएंगे। लेकिन भारत की आजादी में अरविंद का जितना हाथ है उतना किसी का भी नहीं है। पर वह चरित्र दिखाई नहीं पड़ सकता। आकस्मिक नहीं है कि पंद्रह अगस्त को भारत को आजादी मिली; वह अरविंद का जन्म दिन है। पर उसे देखना कठिन है। और उसे सिद्ध करना तो बिलकुल असंभव है। क्यूंकि उसको सिद्ध करने का कोई उपाय नहीं है। जो प्रकट स्थूल में नहीं दिखाई पड़ता उसे सूक्ष्म में सिद्ध करने का भी कोई उपाय नहीं है।

भारत की आजादी में अरविंद का कोई योगदान है। इसे भी लिखने की कोई जरूरत नहीं मालूम होती। कोई लिखता भी नहीं। और जिन्होंने काफी शोरगुल और उपद्रव मचाया है, जो जेल गए है, लाठी खाई है, गोली खाई है। जिनके पास ताम्रपत्र है। वे इतिहास के निर्माता है।
इतिहास अगर बह्म घटना ही होती तो ठीक है; लेकिन इतिहास की एक आंतरिक कथा भी है। तो समय की परिधि पर जिनका शोरगुल दिखाई पड़ता है एक तो इतिहास है उनका भी। और एक समय की परिधि के पार, कालातीत, सूक्ष्म में जो काम करते है, उनकी भी कथा है। लेकिन उनकी कथा सभी को ज्ञात नहीं हो सकती। और उनकी कथा से संबंधित होना भी सभी के लिए संभव नहीं है क्यूंकि वे दिखाई ही नहीं पड़ते। वे वहां तक आते ही नहीं जहां चीजें दिखाई पड़नी शुरू होती है। वे उन स्थूल तक पार्थिव तक उतरते ही नहीं जहां हमारी आँख पकड़ पाए। तो जब तक हमारे पास ह्रदय की आंख न हो, उनसे कोई संबंध नहीं जुड़ पाता।

इतिहास हमारा झूठा है। अधूरा है, और क्षुद्र है। हम सोच भी नहीं सकते कि बुद्ध ने इतिहास में क्या किया। हम सोच भी नहीं सकते कि क्राइस्ट ने इतिहास में क्या किया। लेकिन हिटलर न क्या किया वह हमें साफ है; माओ ने क्या किया वह साफ है। गांधी ने क्या किया वह साफ है। जो परिधि पर घटता है वह हमें दिख जाता है।

‘’महाचरित्र अपर्याप्त मालूम पड़ता है, ठोस चरित्र दुर्बल दिखता है।‘’ गहरी दृष्टि चाहिए। ठोस चरित्र दुर्बल दिखाई देता है। इस मनोवैज्ञानिक का थोड़ा ख्याल में ले लें। असल में दुर्बल चरित्र का व्यक्ति हमेशा ठोस दीवारें अपने आस-पास खड़ी करता है; ठोस चरित्र का व्यक्ति दीवार खड़ी नहीं करता। उसकी कोई जरूरत नहीं है; पर्याप्त है वह स्वयं।
~ओशो
ताओ उपनिषद
भाग—4,प्रवचन—77

आपको यह पोस्ट कैसी लगी अवश्य बताएं यदि भी कुछ कहना चाहें तो आपके विचारों का स्वागत रहेगा।

Saturday, August 13, 2022

मशहूर लेखक सलमान रुश्दी पर हमले की तीखी निंदा

तसलीमा नसरीन नि भी चिंता जताई-संदिग्ध हिरासत में

सोशल मीडिया: 13 अगस्त 2022: (पंजाब स्क्रीन डेस्क इंटरनेट)::

न्यूयॉर्क से चिंतनीय खबरें आई हैं। स्टेनिक वर्सिस नाम की विवाद पुस्तक लिखने वाले सलमान रश्दी पर न्यूयार्क में उस समय हमला किया गया जब एक स्टेज पर भाषण देने वाले थे। माईक से उनकी जान पहचान कराई जा रही थी। इतने में ही हमलावर अचानक स्टेज चढ़ा और सलमान रश्दी पर पर अपने चाकू से ताबड़तोड़ हमले शुरू कर दिए। हमलावर ने दस पंद्रह वार किए। रुश्दी जब व्याख्यान देने वाले थे, तभी उन पर हमला किया गया। ॐ थानवी जैसे वरिष्ठ पत्रकारों ने इस हमले की सख्त निंदा की है। गौरतलब है कि रुश्दी भारतीय मूल के अंग्रेजी लेखक हैं। बरस 1980 के दशक में अपनी एक किताब सैटेनिक वर्सेस को लेकर विवादों में आ गए थे। उनके खिलाफ दिए गए फतवे के बाद से ही वह लगातार छुप कर रह रहे हैं। 

लेखक सलमान रुश्दी पर हमले से तस्लीमा नसरीन भी आहत है। उन्होंने भी इस हमले पर गहरी चिंता व्यक्त की है। अन्य लेखकों और साहित्य संगठनों ने भी हमले को बहुत बुरा कहा है। यहाँ दोहरा दें कि अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में शुक्रवार को एक कार्यक्रम के दौरान अंग्रेजी भाषा के मशहूर लेखक सलमान रुश्दी पर हमला किया गया था। एक कार्यक्रम के दौरान उन पर चाकू से वार किया गया। इस दौरान रुश्दी की गर्दन से काफी खून निकला। रुश्दी पर उस समय हमला किया गया, जब वह पश्चिमी न्यूयॉर्क में आयोजित एक कार्यक्रम में व्याख्यान देने वाले थे। उनकी जानपहचान चल रही थी। दर्शक उनकी इंतज़ार में थे। अचानक हमले से हड़कंप सा मच गया। एक सनसनी और आतंक जो उस समय मंच और हाल पर पैदा हुआ उसे पूरी दुनिआ में महसूस किया जा सकता है। 

सुरक्षा प्रबंधक और अन्य लोग तुरंत हरकत में आए। रश्दी को वहां से लेजा कर इलाज तक पहुँचाया गया। अस्पताल में रुश्दी की सर्जरी की जा चुकी है और उनको वेंटिलेटर पर रखा गया है। नई खबरों के मुताबिक वह ज़िंदा हैं और सुरक्षित हैं लेकिन फिर भी स्थिति तो चिंतनीय ही है। इसी बीच हमलावर की पहचान न्यू जर्सी के 24 वर्षीय हादी मतार के तौर पर की है। न्यूयॉर्क राज्य पुलिस ने कहा कि मौके पर से एक बैग और कुछ इलेक्ट्रॉनिक उपकरण मिले हैं। हम जांच के बहुत शुरुआती चरण में हैं। एफबीआई के सदस्य जांच में हमारी मदद कर रहे हैं। इस जांच से कई बातें सामने आएंगी।  

दृश्य बेहद खौफनाक था। सब कुछ अचानक हुआ। सभी हतप्रभ थे।उल्लेखनीय है कि 75 साल के रुश्दी पश्चिमी न्यूयॉर्क के चौटाउक्वा संस्थान में एक कार्यक्रम के दौरान अपना व्याख्यान शुरू करने वाले ही थे कि तभी एक व्यक्ति मंच पर चढ़ा और रुश्दी को घूंसों से वार करने लगा। इसके बाद उसने चाकू से उन पर हमला कर दिया। रुश्दी की गर्दन पर चोट आई है। उस समय कार्यक्रम में उनका परिचय दिया जा रहा था। रश्दी ने अपने भाषण में क्या कहना था यह तो वही जानते थे लेकिन दर्शक और श्रोता उनकी इंतज़ार कर रहे थे। 

अचानक मंच पर चढ़े  हमलावर ने रुश्दी पर 20 सेकंड में कई वार किए। हमले की गंभीरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि घटना के बाद स्टेज पर काफी खून बिखरा पड़ा दिखाई दिया। वहां मौजूद लोगों ने हमलावर को पकड़ लिया और बाद में उसे पुलिस ने हिरासत में ले लिया। रुश्दी को मंच पर ही प्राथमिक उपचार दिया गया। इसी से उनकी जान बचने की संभावना बनी तेज़ी से बह रहे खून को इसी से रोका गया। 

यह सारी खौफनाक घटना स्थानीय समयानुसार सुबह 11 बजे की है। सलमान रुश्दी और एक साक्षात्कारकर्ता पर चौटौक्वा में चौटौक्वा संस्थान में हमला किया गया। रुश्दी की गर्दन पर चाकू से वार किया गया था। उन्हें हेलीकॉप्टर से अस्पताल ले जाया गया। उनकी हालत के बारे में अभी से ज्यादा कुछ कहना समय से पहले की बात होगी। इस हमले के दौरान साक्षात्कारकर्ता को भी सिर में मामूली चोट आई हैं। संदिग्ध हमलावर को हिरासत में ले लिया गया है। उसकी पहचान का पता लगा लिया गया है। 

न्यूयॉर्क राज्य की गर्वनर कैछी होचुल ने कहा कि रुश्दी अभी जीवित हैं। उन्हें सुरक्षित स्थान पर ले जाया जा रहा है। रुश्दी को एयरलिफ्ट किया गया है। इवेंट मॉडरेटर पर भी हमला किया गया था। उसे स्थानीय अस्पताल में भर्ती कराया गया है जल्द ही उनके सेहत बुलेटिन से वास्तविक स्थिति का पता लग सकेगा। 

इसी बीच एक अन्य विवादित लेखिका तसलीमा नसरीन की चिंता भी सामने आई है। उसने लज्जा नाम का नावल लिखा था। जो बेहद पढ़ा गया। ता भी से वह भी निशाने पर है। रश्दी पर हमले के मामले में तसलीमा नसरीन ने भी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि मुझे अभी पता चला कि न्यूयॉर्क में सलमान रुश्दी पर हमला हुआ। मैं सचमुच स्तब्ध हूं। मैंने कभी नहीं सोचा था कि ऐसा होगा। वह पश्चिम में रह रहे हैं और 1989 से उन्हें सुरक्षा दी जा रही है। यदि उन पर हमला हो जाता है, तो इस्लाम की आलोचना करने वाले किसी भी व्यक्ति पर हमला किया जा सकता है। मैं चिंतित हूं। तस्लीमा नसरीन की चिंता जायज़ भी है। खौफ के साए में बरसों तक जीना आसान तो नहीं होता। सलमान रश्दी और तस्लीमा नसरीन लगातार खौफ के साए में ही तो जी रहे थे। कुछ बरस पहले भारत में पत्रकार और लेखिका गौरी लंकेश की हत्या कर दी गयी थी। 

भारतीय मूल के अंग्रेजी लेखक रुश्दी भारतीय मूल के अंग्रेजी लेखक हैं।  बरस 1980 के दशक में अपनी एक किताब सैटेनिक वर्सेस को लेकर विवादों में आ गए थे। इस किताब को लेकर मुस्लिम समाज में काफी आक्रोश था, एक धार्मिक नेता ने उनकी हत्या करने को लेकर फतवा भी जारी किया था। उसी वक्त से वह अज्ञातवास की तरह रह रहे हैं। चूँकि उनका जन्म मुंबई में हुआ इसलिए उनकी रक्षा हम सभी का नैतिक कर्तव्य भी था। रुश्दी का जन्म 19 जून 1947 को मुंबई में एक कश्मीरी मुस्लिम परिवार में हुआ था। सैटेनिक वर्सेस और मिडनाइट चिल्ड्रेन जैसी किताबें लिखकर चर्चा में आए रुश्दी को बुकर पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है। उनकी किताबें और तस्लीमा नसरीन की किताबें एक अलग सोच पैदा करती हैं जिनसे कटटरपंथी काफी समय से खफा हैं। 


Monday, April 27, 2020

लॉकडाउन में शुभ संकेत: डा. मनमोहन सिंह ने मानी विनती

पंजाब की आर्थिक दशा सुधारने के लिए देंगें अपना मार्गदर्शन 
चंडीगढ़: 27 अप्रैल 2020: (पुष्पिंदर कौर//कार्तिका सिंह और पंजाब स्क्रीन टीम)::
कोई खुल कर बोले या न बोले--कुछ माने या न माने लेकिन हर व्यक्ति चिंतित है कि लॉकडाउन खुलने के बाद चौपट हो चूका कारोबार कैसे सम्भलेगा।  आम नागरिक का भी यही हाल है और सत्ता चला रही सरकारों का भी। आर्थिक भविष्य को देख कर निराशा का अंधेरा ही दिखता है। इस गहन अंधेरे में अब आशा की किरण दिखाई है मुख्य मंत्री कैप्टेन अमरिंदर सिंह ने। 
उन्होंने इस समस्या को आर्थिक विशेषज्ञों के सामने रखा है। इस मकसद के लिए लिए सरदार मोंटेक सिंह आहलूवालिया साहिब की देखरेख में पांच विशेष ग्रुप भी बनाये गए हैं। इस ख़ास टीम को मार्गदर्शन देने के लिए मुख्य मंत्री कैप्टेन अमरिंदर सिंह ने एक विशेष प्रयास करके पूर्व प्रधानमंत्री और आर्थिक मामलों के विश्व स्वीकृत विशेषज्ञ डाक्टर मनमोहन सिंह  को भी राज़ी कर लिया है। अब लगने लगा है कि स्थिति कितनी भी भयानक क्यूं न हो जाये यह टीम पंजाब को ही नहीं पूरे देश को बचा लेगी। इसके साथ ही इस मार्गदर्शन का फायदा पूरी दुनिया उठा सकेगी। 
पंजाब सरकार द्वारा राज्य को कोविड के उपरांत पुन: सुरजीत करने की कोशिशों के चलते नीति घडऩे की दिशा में सोमवार को उस समय पर पहला कदम उठाया गया जब मोंटेक सिंह आहलूवालीया के नेतृत्व अधीन माहिरों के ग्रुप ने पाँच सब ग्रुप तैयार कर लिए। इसके इलावा पूर्व प्रधान मंत्री डा.मनमोहन सिंह ने भी राज्य की अर्थव्यवस्था और प्रगति को फिर बहाल करने के लिए अपना मार्गदर्शन देने के लिए कैप्टन अमरिन्दर सिंह की अपील को स्वीकार कर लिया है।
मोंटेक सिंह आहलूवालीया के नेतृत्व अधीन माहिरों के ग्रुप ने वीडियो कॉनफ्रेंसिंग के द्वारा मुख्यमंत्री के साथ जान-पहचान मीटिंग की जिसमें खुलासा किया गया कि मुख्यमंत्री ने माहिरों के ग्रुप के साथ डा. मनमोहन सिंह को राज्य सरकार का नेतृत्व करने के लिए लिखा था और उन्होंने यह अपील मान ली है। उन्होंने टवीट करके लिखा, ‘हम पंजाब को कोविड -19 के उपरांत आर्थिक विकास के रास्ते पर आगे ले जाने के लिए सख्त मेहनत करेंगे। हम इस पर दोबारा ध्यान केंद्रित करेंगे।’
मुख्यमंत्री ने ग्रुप सदस्यों को इस सहायता करने के लिए आगे आने के लिए धन्यवाद किया। गंभीर विश्व व्यापक स्थिति के मद्देनजऱ उन्होंने कहा, ‘‘मैं राज्य के लिए सबसे बढिय़ा चाहता था और इस ग्रुप से बढिय़ा और कुछ सोचा नहीं जा सकता।’’
मोंटेक सिंह आहलूवालीया ने वीडियो कॉनफ्ऱेंस के दौरान बताया कि माहिरों के ग्रुप जिसमें पहले 20 मैंबर थे और इसमें दो और मैंबर शामिल किये गए हैं, ने अपनी पहली मीटिंग की है। उन्होंने बताया कि ग्रुप के कामकाज को और सुचारू बनाने के लिए पाँच सब-ग्रुप वित्त, कृषि, स्वास्थ्य, उद्योग और सामाजिक सहायता बनाऐ गए हैं। उन्होंने बताया कि इन ग्रुपों का हरेक चेयरपरसन एजेंडा आगे ले जाने के लिए वर्करों को लामबंद करेगा।
मुख्यमंत्री ने तो भारत सरकार की तरफ से हल पेश करने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया क्योंकि पंजाब की हालत गंभीर है परन्तु मोंटेक सिंह आहलूवालीया ने कहा कि ग्रुप के समक्ष बहुत महत्वपूर्ण कार्य है परन्तु हम राज्य को फिर उभारने के लिए निश्चित रूप से तौर पर कुछ हल लेकर आऐंगे।
कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने ग्रुप को बताया कि राज्य की वित्तीय स्थिति कमज़ोर है जिसको मासिक 3360 करोड़ रुपए का राजस्व घाटा हुआ है। इनमें जी.एस.टी. के 1322 करोड़ रुपए, शराब पर राज्य की आबकारी 521 करोड़, मोटर व्हीकल टैक्स के 198 करोड़ रुपए, पेट्रोल और डीज़ल पर वैट के 465 करोड़ रुपए, इलैक्ट्रीसिटी ड्यूटी के 243 करोड़, स्टैंप ड्यूटी के 219 करोड़ और नॉन-टैक्स राजस्व के 392 करोड़ रुपए के रूप में घाटा शामिल हैं।
मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य के नगदी के आदान -प्रदान में मुकम्मल तौर पर ठहराव आ चुका है। उन्होंने बताया कि बिजली के उपभोग में 30 प्रतिशत कमी आई है और पंजाब राज्य बिजली बोर्ड को बिजली दरें एकत्रित करने में रोज़ाना 30 करोड़ रुपए का घाटा है। पंजाब के उद्योग ठप है जहाँ एक प्रतिशत से भी कम काम चल रहा है। उन्होंने दुख ज़ाहिर करते हुये कहा कि भारत सरकार की तरफ से राज्य के जी.एस.टी. का 4365.37 करोड़ रुपए का भुगतान करना अभी बाकी है।
ग्रुप मैंबर और उद्योगपति एसपी ओसवाल ने कहा कि राज्य और उद्योग को मुश्किल समय का सामना करना पड़ रहा है जिसके लिए सख्त फ़ैसलें लेने की ज़रूरत है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि गेहूँ की फ़सल की बंपर पैदावार से कृषि इस समय स्थिति का एकमात्र उज्जवल पक्ष पेश कर रही है जिसके बाद कपास और धान की फ़सल आयेगी। उन्होंने कहा कि उनकी सरकार ने कम हो रहे जल स्रोत को बचाने के लिए धान की काश्त को और घटाने का प्रस्ताव किया है परन्तु न्युनतम समर्थन मूल्य (एम.एस.पी.) संबंधी केंद्र का स्टैंड अभी तक स्पष्ट न होने के कारण स्थिति अस्पष्ट बनी हुई है।
कैप्टन अमरिन्दर ने कहा कि केंद्र सरकार ने मंडियों में अपनी उपज देरी से लाने वाले किसानों को बोनस देने की उनकी सरकार की विनती को स्वीकार नहीं किया था जो कोविड के फैलाव को रोकने के लिए ज़रूरी था जिससे इस समय पर 8 जिले प्रभावित हैं और राष्ट्रीय औसत की तुलना में मृत्यु दर अधिक दिखाई गई है। हालाँकि, देश के मुकाबले राज्य की प्रतिशतता 1 अप्रैल को 2.2 प्रतिशत से कम होकर 25 अप्रैल को 1.2 प्रतिशत रह गई। उन्होंने कहा कि मामलों के दोगुने होने की दर (पिछले 1 सप्ताह के औसत के तौर पर) राष्ट्रीय औसत के 9 दिनों की तुलना में 18 दिन है।
मुख्यमंत्री ने उम्मीद जताई कि मौजूदा संकट से निपटने के लिए केंद्र जल्द ही राज्य को बहुत अपेक्षित राहत पैकेज मुहैया करवाएगी।  मोंटेक सिंह आहलूवालिया की निगरानी में बनाये 

Sunday, April 05, 2020

डा. धीमान ने भी दिल से चिराग जलाये

क्यूंकि डा. जगतार धीमान के अंतर्मन में भी रौशनी है 
लुधियाना: 5 अप्रैल 2020: (कार्तिका सिंह//पंजाब स्क्रीन)::  
अँधेरे पर भी किसी का नाम नहीं लिखा होता लेकिन अँधेरा खुद-ब-खुद बता देता है कि उसे यहां तक कौन ढो कर लाया! 
इसी तरह रौशनी पर भी किसी ने आरक्षण नहीं करवा रखा होता लेकिन रौशनी खुद-ब-खुद बता देती है कि उसे यहां तक कौन ले कर आया!
इसके बावजूद विरोध और गाली गलौच को देख सुन कर लगता है कि कुछ लोगों ने अँधेरे का आरक्षण करवा रखा है और कुछ लोगों ने रौशनी का। यूं भी रौशनी सभी के नसीब में कहाँ होती है।
कभी जनाब दुष्यंत कुमार साहिब ने कहा था:
आज सड़कों पर लिखे हैं सैंकड़ों नारे न देख!
घर अँधेरा देख तू आकाश के तारे न देख!
वे सहारे भी नहीं अब जंग लड़नी है तुझे!
कट चुके जो हाथ, उन हाथों में तलवारें न देख!
रौशनी के ठेकेदार बने फिरते लोग दूसरों को अंधेरों का दूत ही समझते हैं।
कौन क्या है हमें किसी का नाम नहीं लेना क्यूंकि आप जानते हैं कि वास्तव में कौन क्या है। जागरूक और स्वतंत्र लोगों को न तो किसी की मीटिंग में जा कर अपना विचार बनाना है और न ही किसी रेज़ूलेशन को पढ़ कर अपना फैसला करना है। वे स्वतंत्र होते हैं और जो देखते और महसूस करते हैं उसे कहने की हिम्मत भी रखते हैं। उन्हें मालुम है कि ज़िंदगी भर हमने क्या किया है। क्या खोया है--क्या पाया है।
वास्तविकता को देखने, समझने और स्वीकार करने वाले लोगों के चेहरों पर एक चमक होती है जो किसी मेकअप की मोहताज नहीं होती।  वह अंतर्मन से आती है।  ऐसे चेहरों पर मक्कारी नहीं होती। उनका चेहरा बात बात पर झूठ बोलता महसूस नहीं होता। उनमें एक विशेष सी कशिश होती है और एक ख़ास किस्म की रौशनी भी। कुछ इसी तरह के व्यक्ति हैं डा. जगतार सिंह धीमान।
सिर और दाड़ी के सफेद बाल और उन बालों में से झांकता एक निर्दोष और मासूम सा चेहरा। यूं लगता है किसी ऋषि से भेंट हो गई हो। अगर शेव न करवाते तो सचमुच ऋषि ही लगते।
पांच अप्रैल को मेरा जन्मदिन था। इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आह्वान कि रात्रि को 9 बजे 9 मिंट तक रौशनी की जाये। रौशनी का ज़रिया दीपक भी हो सकते हैं, मोमबत्तियां भी और  मोबाईल की टोर्च या कोई अन्य रास्ता भी।  बस रौशनी हो किसी भी तरह। इस विशेष अंक 9 का ज्योतिष और अंक विज्ञान में विशेष महत्व है इसका पता मुझे एक बार फिर इसी अवसर पर लगा। हालाँकि अंक विज्ञान में मेरी रुचि बरसों पहले भी थी लेकिन वक़्त ने सब भुला दिया था। रौशनी के इस पर्व एक बार फिर अंक विज्ञान भी याद आया। जंग लड़नी हो तो मंगल की कृपा आवश्यक है और मंगल की कृपा के लिए अंक 9 का विशेष ध्यान रखना भी आवश्यक है। आज के हालात में हम कोरोना के साथ एक जंग ही तो लड़ रहे हैं। अब ह बात अलग है कि खुद को नास्तिक समझने वालों को यह बातें अंध विश्वास लगती हैं लेकिन जिन को ज्योतिष का ज्ञान है उन्हें बेचारे ये लोग अंधविश्वासी लगते हैं। इंक क्या पता 9 और रौशनी के अहसास का ज्ञान। हाँ जिन लोगों ने डीप जलाते समय हुड़दंग किया उनका विरोध बिलकुल ज़रूरी है। उन्होंने आतिशबाज़ी चला कर प्रधानमंत्री मोदी का यह सारा आइडिया ही फिर से चौपट कर दिया। भगवान उन्हें सद्बुद्धि दे। 
खैर बात हम कर रहे थे रौशनी की। दीपक जलाने की। कोरोना के खिलाफ जंग में मनोबल मज़बूत बनाये रखना भी ज़रूरी है। जब इस जंग में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रौशनी के ज़रिये एकजुट होने की बात कही तो सारा देश एक जुट हो गया। इस एकजुटता में हमारे लोकप्रिय लेखक और सीटी यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार डा. जगतार धीमान भी थे। उन्होंने अपने परिवार सहित दीपक जला कर रौशनी के इस अभियान में भाग लिया। यहां प्रस्तुत हैं उनकी कुछ तस्वीरें। 

Thursday, June 07, 2018

Facebook: सरकार ने 20 जून तक मांगा स्पष्टीकरण

इलेक्ट्रानिक्स एवं आईटी मंत्रालय: प्रविष्टि तिथि: 07 JUN 2018 6:27PM by PIB Delhi

मामला स्पष्ट सहमति के बिना डाटा साझा करने की रिपोर्टों का  
नई दिल्ली: 7 जून 2018: (पीआईबी)::  
हाल की मीडिया रिपोर्टों में यह दावा किया गया था कि फेसबुक ने ऐसे समझौते किए हैं जो फोन तथा अन्य उपकरण निर्माताओं को फेसबुक यूजरों की निजी सूचना तक पहुंच बनाने की अनुमति देते हैं। इन निजी सूचनाओं में स्पष्ट सहमति लिए बिना यूजर के मित्रों से जुड़ी सूचनाएं शामिल हैं। भारत सरकार ने गलतियों/ उल्लंघनों की रिपोर्ट पर गंभीर चिंता व्यक्त की है।


इससे पहले कैम्ब्रिज एनालिटिका प्रकरण से संबंधित निजी डाटा उल्लंघन के बारे में जारी नोटिस पर फेसबुक ने क्षमायाचना की थी और भारत सरकार को दृढ़ आश्वासन दिया था कि फेसबुक अपने प्लेटफार्म पर यूजर के डाटा की निजता की रक्षा के लिए गंभीरता से प्रयास करेगा। लेकिन ऐसी रिपोर्टें फेसबुक द्वारा दिए गए आश्वासनों के बारे में असहज सवाल उठाती हैं। इसलिए इलेक्ट्रानिक्स तथा सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने इस विषय में विस्तृत वास्तविक रिपोर्ट मांगते हुए फेसबुक से स्पष्टीकरण मांगा है। फेसबुक से 20 जून तक जवाब देने के लिए कहा गया है।  
***
वीके/एएम/एजी/सीएस- 8858

Thursday, January 25, 2018

वृद्ध आश्रम हमारे सभ्य समाज के लिए अभिशाप हैं

बजुर्ग हमारे समाज की मजबूत नींव हैं उनका सम्मान करना हमारा कर्तव्य  है:वरुण मेहता 
लुधियाना: 25 जनवरी 2018:(पंजाब स्क्रीन ब्यूरो)::
धर्मकर्म और धर्मस्थलों से भरे इस देश में जन्म देने वाले मातापिता को वृद्ध होने के बाद घर से निकाल कर किसी वृद्धाश्रम में छोड़ने की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। न जाने यह सब किस धर्म के अंतर्गत किया जा रहा है। यह बात संतोषजनक भी है और चमत्कार भी कि इन वृद्धों को वे लोग संभालते हैं जिनका इसने खून का कोई रिश्ता नहीं होता। जहां सगे छोड़ जाते हैं वहां बेगाने आ कर संभाल लेते हैं।  
भारत के 69 वे गणतन्त्र दिवस  को My Way फार ह्यूमन वेलफेयर सोसाईटी द्धारा भी कुछ अलग ढंग से मनाया गया। इस सोसायटी के सदस्यों और पदाधिकारियों को महसूस हुआ कि जब तक ये वृद्ध लोग उदास रहेंगे तब तक तिरंगा भी हमारी सलामी स्वीकार नहीं करेगा। जब तक इनका आशीर्वाद नहीं मिलेगा तब तक भगवान भी प्रसन्न नहीं होंगें। "मेरा भारत महान" कहना तो आसान है लेकिन वास्तविक ज़िंदगी में ऐसी महानता पैदा करना कुछ कठिन है जिस पर सचमुच गर्व किया जा सके। वृद्धों की उदासी को दूर करके इस सोसायटी ने कुछ इसी तरह की कोशिश की है।  स्थानीय मॉडल टाऊन में स्वामी विवेकानंद वृद्ध आश्रम में रहने वाले बजुर्गो के साथ इस सोसायटी ने केक काटकर खुशी मनाई। इस ख़ुशी को संस्था की अध्य्क्ष अजिन्दर कौर व महासचिव वरुण मेहता के नेतृत्व में मनाया गया।
इस अवसर पर मौजूद लोगों को संबोधित करते हुए वरुण मेहता ने कहा कि हमारे बजुर्ग किसी मज़बूत इमारत की नींव के समान है जैसे नींव मज़बूत होने से इमारत का भविष्य उज्ववल होता है उसी प्रकार बजुर्गो के होने से उनके मार्गदर्शन में परिवार व समाज को योग्य मार्गदर्शन मिलता है लेकिन अफसोस आज साईंस के बढ़ते युग मे हमारा समाज जितना सभ्य होने का ढोंग करता है उतनी तेज़ी से वृद्ध आश्रमों के निर्माण की बढ़ोतरी हो रही है जोकि हमारे समाज के लिए कलंक है।  ईश्वर के रूप में माता पिता की सेवा व उनके दर्शन ही सबसे उत्तम है लेकिन दुर्भाग्यवनश कुछ लोगो की तरफ से माता पिता की सेवा करने की बजाय उन्हें वृद्ध आश्रम में रहने के लिए मजबूर किया जाता है। उन्होंने कहा कि हमारे सविधान में अगर माता पिता का अपमान करने व उन पर अत्याचार करने वाली औलाद को कठोर सजा देने का प्रावधान होता तो शायद आज उम्र के इस पड़ाव में इन बजुर्गो को इस तरह बेबसी की हालत में  रहने के लिए विवश न होना पड़ता।
संस्था की अध्य्क्ष अजिन्दर कौर ने कहा कि हमारी संस्था ने हमेशा ही समाज के जरूरतमंद वर्ग की सेवा करने व उनके सहभागी बनने को अपना कत्तर्व्य समझा है इसलिए आज गणतन्त्र दिवस को वृद्ध आश्रम में मनाने से हमे जहाँ गर्व महसूस हो रहा है वही समाज की सेवा करने के लिए इन बजुर्गो का अनमोल आशीर्वाद भी हमे मिल रहा है । उन्होंने कहा कि सोना पुराना होने से पीतल नही हो जाता बल्कि उसकी गुणवत्ता और बढ़ जाती है उसकी कीमत पुराना होने के कारण कई गुना बढ़ जाती है लेकिन हमारे समाज के कई लोग परिवार की नींव रखने वाले बजुर्ग माता पिता की सेवा करने व उन्हें दो वक्त की रोटी देने की बजाय उन्हें वृद्ध आश्रम में छोड़ कर कभी न भरने वाले जख्म देते है जबकि माता पिता कोहिनूर के हीरे जैसे है जिनकी चमक पुराने होने के साथ ही बढ़ती जारही है इस अवसर पर संस्था द्वारा आश्रम में रहने वाले बजुर्गो को जरूरी राशन सामग्री व दवाईया भेट की गई व सभी सदस्यों ने मिलकर बजुर्गो का आशीर्वाद लेते हुए उनके साथ परिवारिक माहौल बनाते हुए खुशी के पल बाटे ।
इस अवसर पर आश्रम के प्रशाशक विकास भारती सहित संस्था की तरफ से गुरचरण कौर,नीतू सलूजा , रीटा मक्कड़, रितु बिंद्रा, रिंकी मनोचा, दमनप्रीत बहल, ममता मल्होत्रा, अनिता घई व अन्य भी उपस्थित थे। 
इस अभियान से जुड़ने के इच्छुक संस्था की अध्यक्षा अजिन्दर कौर से 9779668799 पर और महांसचिव वरुण मेहता से 9888409090 पर सम्पर्क कर सकते हैं। 
आप इस विषय पर क्या सोचते हैं? कौन है कसूरवार? क्यों आया हमारे धार्मिक और सांस्कृतिक  समाज में यह खतरनाक अमानवीय बदलाव? आपने विचार अवश्य भेजिए। यह सिलसिला वास्तव में भारतीय संस्कृति और परम्परा पर एक आघात है। सूक्ष्म हमला है हमारे समाजिक और धार्मिक सिस्टम को थस नहस करने का। जो लोग आज अपने मातापिता को घरों से निकाल कल वृद्धाश्रम में भेज सकते हैं वे लोग कल को देश से भी ऑंखें फेर लेंगें।  



Sunday, November 06, 2016

सवालों से किसे नफ़रत हो सकती है? !!

Sunday:6 November 2016 at 10:04 PM
क्या जवाब देने वालों के पास कोई जवाब नहीं है?
सवाल करने की संस्कृति से किसे नफरत हो सकती है? क्या जवाब देने वालों के पास कोई जवाब नहीं है? जिसके पास जवाब नहीं होता, वही सवाल से चिढ़ता है। वहीं हिंसा और मारपीट पर उतर आता है। अब तो यह भी कहा जाने लगा है कि अथारिटी से सवाल नहीं होना चाहिए। यह सिर्फ एक बात नहीं है बल्कि ये आम जनता को चेतावनी है। उसकी हैसियत बताने का प्रयास है कि हम अथारिटी हैं और आप कुछ नहीं हैं। हम जो कहेंगे आप वही मानेंगे। सरकार के जो मंत्री ये बात कहते हैं, वो भूल जाते हैं कि सवाल पूछ पूछ कर ही उन्होंने सत्ता हासिल की है। अगर तब की सरकारें भी यही कहती तो इस देश में कभी सत्ता परिवर्तन ही नहीं होता। जिससे बेख़ौफ़ होकर कुर्सी पर गुंडे अपराधी बैठ जाते।अक्सर सत्ता से जुड़े लोग ही क्यों कहते हैं कि कुछ भी पूछने की आज़ादी हो गई है। तो क्या सरकार से पूछकर पूछना होगा? आप कभी भी देख लीजिए, बहुत आज़ादी हो गई टाइप की धमकी वही देते हैं जिनकी निष्ठा उस वक्त के सरकार के प्रति होती है। ऐसे लोग सत्ता के प्रतिनिधि गुंडे होते हैं।
सवाल पूछने से ही लोकतंत्र गतिशील रहता है। अब तो यह कहा जाने लगा है कि लगातार असंतोष और सवाल व्यक्त करने से विकास बाधित होता है। इसका मतलब है, हुक्मरानों ने इशारा कर दिया है कि वे अब किसी के प्रति जवाबदेह नहीं है। हम जवाब नहीं देंगे। ऐसी बातें सुनकर किसी को भी डरना चाहिए। अगर विकास पर सवाल नहीं होगा तो क्या होगा? क्या इस बात की गारंटी आप किसी नेता या सरकार की ले सकते हैं कि वो जो करेगी, कभी ग़लत नहीं करेगी। अगर दस हज़ार करोड़ के ठेके में दलाली हो गई तब तो सवाल पूछने पर सरकार जेल में डाल देगी कि आप विकास के विरोधी हैं। विकास सवालों से पर नहीं है। इसलिए भी नहीं है कि दुनिया में विकास का कोई भी मॉडल ऐसा नहीं है जिसमें हज़ार कमियाँ नहीं है।
क्या आपने सरकार और विकास का कोई ऐसा मॉडल देखा है, सुना है, पढ़ा है जिसमें सवाल पूछना मना होता है क्योंकि वह सरकार कोई ग़लती करती ही नहीं है। उसके विकास के मॉडल में कोई ग़रीब नहीं होता है। उसके विकास के मॉडल में कोई किसान आत्महत्या नहीं करता है। उसके मॉडल में सबका सस्ता इलाज होता है। मेरी जानकारी में दुनिया में ऐसा कोई मॉडल नहीं है। ऐसी कोई सरकार नहीं है।
सवालों को लेकर असहनशीलता बढ़ती जा रही है। इसके कारण बहुत साफ है। दुनिया के तमाम मॉडल फ़ेल हो चुके हैं। एक या दो फीसदी लोगों के पास पूरी दुनिया की आधी से ज़्यादा संपत्ति आ गई है। भारत में भी चंद लोगों के पास आधी से अधिक आबादी के बराबर संपत्ति आ गई है। सरकारों के नुमाइंदे इन्हीं चंद लोगों के संपर्क में रहते हैं। बल्कि इनकी मदद के बग़ैर अब राजनीति मुमकिन नहीं है। आप देखते ही होंगे कि चुनाव आते ही प्रचार में कितना बेशुमार पैसा खर्च होता है। राजनीति को ईंवेंट मैनेजमेंट बना दिया जाता है। प्रेस भी इस प्रक्रिया का साथी हो गया है।
इसके बावजूद पत्रकारों का बड़ा हिस्सा इनसे अलग बचा हुआ है। वो नए नए संसाधनों से सवाल पूछने का विकल्प बनाने का प्रयास कर रहा है। प्रेस की स्वतंत्रता को लेकर पूरी दुनिया में बहस हो रही है। कारपोरेट और सरकार देनों मिलकर प्रेस का गला दबा रहे हैं। यह इसलिए हो रहा है कि जनता अब पूछने वाली है कि सिर्फ दो प्रतिशत आबादी के पास सत्तर फीसदी आबादी का पैसा कहाँ से आ गया है। क्यों वे भूखे मरने लगे हैं। ज़ाहिर है सवाल पूछने की गुज़ाइश ही एकमात्र ख़तरा है। इसलिए उसे दबाने का प्रयास चल रहा है। ताकि आम लोग भूख, रोटी और रोज़गार से जुड़े सवाल न कर सके। हाल ही में पंजाब के एक किसान ने पांच साल के अपने बेटे को सीने से लगाकर नहर में छलाँग लगा दी। उस पर दस लाख का क़र्ज़ा था। वो क्यों नहर में कूद गया क्योंकि कोई उसके लिए सवाल उठाने वाला नहीं था ? कोई उसकी बात सुनने वाला नहीं था।
इसलिए प्रेस की आज़ादी की रक्षा करना पत्रकार से ज़्यादा नागरिक का सवाल है। आप हमारे रक्षक हैं। सरकारों को लगता है कि ख़ूब प्रचार कर जनता को अपना गुलाम बना लिया है। यह जनता वही सुनेगी जो वे कहेगी। पूरी दुनिया में नेता इसी तरह की भाषा बोल रहे हैं। उन्हें लगता है कि जनता प्रेस के ख़िलाफ़ है। प्रेस में कई कमियाँ हो सकती हैं लेकिन जनता की तरफ से सवाल पूछने का अधिकार कोई नहीं छिन सकता है। जनता ही पूछ बैठेगी कि हुजूर क्या बात है कि आपको सवाल पसंद नहीं है।
पत्रकार डरेगा, नहीं लिखेगा तो नुक़सान नागरिक का ही होगा। सरकारों को दमन बढ़ जायेगा। गुलाम प्रेस नागरिकों का दम घोंट देगा। इसलिए सवाल पूछने के माहौल का समर्थन कीजिये। जो भी इसके ख़िलाफ़ है उसे लोकतंत्र के दुश्मन के रूप में समझिये। एक देशभक्ति यह भी है कि हम जनता की रक्षा के लिए सवाल करें। सवाल करने से ही राष्ट्रीय सुरक्षा मज़बूत होती है। जवाब मिलने से ही लोग सुरक्षित महसूस करते हैं। अगर जवाब नहीं मिलेगा तो जनता असुरक्षित महसूस करेगी। जनता असुरक्षित रहेगी तो राष्ट्र सुरक्षित नहीं हो सकता है। सीमा पर जवान हमारी रक्षा करते हैं ताकि सीमा के भीतर पत्रकार सरकारों से सवाल कर नागरिकों की रक्षा करते हैं। इसलिए पत्रकार को क़लम का सिपाही कहा गया है। प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को जनता का सेवक कहा जाता है। हम सवाल पूछने वाले सिपाही हैं ताकि सेवक जनता से बेवफ़ाई न करे।

लगातार बढ़ रहा है एनडीटीव इंडिया पर बैन का विरोध

शब्दों पर पाबन्दी के इस मुद्दे पर एकजुट हुए अधिकतर संगठन
एनडीटीवी इंडिया पर एक दिवसीय बैन के खिलाफ विरोध जारी है। आपातकाल और सेंसरशिप को कोसने वालों ने खुद इंदिरागांधी के कदम को जायज़ थर दिया है। अनुमान लगाइये अगर आपातकाल लगा तो पाबन्दियाँ कैसी होंगीं। 

युवा पत्रकार महासंघ की तरफ से उबैद कुरैशी ने अपना विरोध दर्ज कराया है। उन्होंने तीखे शब्दों में कहा हम इसके खिलाफ हैं। *प्रेस क्लब ऑफ इंडिया,महिला प्रेस क्लब ,एडिटर्स ब्रॉडकास्टर्स एसोसियेशन,एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया* अरुणाचल से लेकर मुम्बई तक

विरोध। *दिल्ली प्रेस क्लब से लेकर नेशनल मीडिया कान्फेडरशन* के हर सदस्य का विरोध *आल इन्डिया स्माल नयूज़ पेपर रिपोर्टर* से लेकर *अखिल भारतीय पत्रकार सुरक्षा मुहिम पीएमजे* का एनडीटिवी के समर्थन मे विरोध फ्रीडम फार फ्री प्रेस कि आजादी के लिये *अखिल भारतीय विरोध वुमन जर्नलिस्ट एसोसियेशन* का विरोध
*कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक विरोध*
अगर ये आपातकाल नही है और राष्ट्रवाद है फिर *इंदिरा गांधी* द्वारा लगाया आपातकाल का विरोध क्यों?
उनकी और उनके समर्थकों के नज़र में भी राष्ट्रवाद ही था।
अपनी बोलने लिखने सवाल करने कि अभिव्यक्ती कि आजादी के लिये अपने संगठनो का नाम लिख कर विरोध जताना सीखिये !!

एनडीटीवी पर पाबंदी के खिलाफ भोपाल के पत्रकार आगे आये हैं। पत्रकारों ने एक सुर में इस बैन को ग़लत बताया और इसे लिखने बोलने लिखने सवाल करने कि अभिव्यक्ति की आज़ादी के खिलाफ माना। क़रीब डेढ सौ से ज्यादा पत्रकारों ने बैठक की और तय किया कि सरकार के इस क़दम के खिलाफ नौ नवंबर तक काली पट्टी बाँधकर काम करेंगे।

*अखिल भारतीय पत्रकार सुरक्षा समिति* ने भी कहा कि वह इस आदेश का पुरजोर विरोध करती है।
प्रेस क्लब ऑफ इंडिया,महिला प्रेस क्लब ,एडिटर्स ब्रॉडकास्टर्स एसोसियेशन,एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया अरुणाचल से लेकर मुम्बई तक विरोध।
कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक विरोध की बात इसलिए नहीं कि क्योंकि राष्ट्रवादियों को आपत्ति हो जाती।
अगर ये आपातकाल नही है और राष्ट्रवाद है फिर इंदिरा गांधी द्वारा लगाया आपातकाल का विरोध क्यों?

उनकी और उनके समर्थकों के नज़र में भी राष्ट्रवाद ही था।

*अखिल भारतीय पत्रकार सुरक्षा समिति* इस आदेश का पुरजोर विरोध करती है।
*श्री सैयद महमूद अली चिश्ती* 
राष्ट्रीय संरक्षक ABPSS
*श्री जिग्नेश कालावाड़िया*
राष्ट्रीय अध्यक्ष ABPSS
*श्री नितिन सिन्हा*
राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ABPSS
*श्री महफूज़ खान*
राष्ट्रीय महासचिव ABPSS
*श्री राकेश प्रताप सिंह परिहार* 
राष्ट्रीय सचिव ABPSS
*श्री अमित गौतम* 
प्रदेश संयोजक छत्तीसगढ़ ABPSS
*श्री गोविन्द शर्मा (गौर)*
प्रदेश अध्यक्ष छत्तीसगढ़ ABPSS

Monday, October 31, 2016

प्रधानमंत्री श्री मोदी ने दी श्रीमती इंदिरा गांधी को श्रद्धांजलि

बहुत सी जगह पर हुआ श्रद्धांजलि कार्यक्रमों का आयोजन  
मतभेद किसी के किसी से भी हो सकते हैं लेकिन इसके बावजूद मान्यता मिलना यह सभी के नसीब  में नहीं होता। इंदिरा गाँधी जी के साथ भी बहुत से लोगों को बहुत से मतभेद थे लेकिन उनका व्यक्तित्व हमेशां असरदायिक रहा। एक चुम्बक की तरह सभी को अपनी तरफ आकर्षित करता हुआ। मुस्कराता हुआ चेहरा और उस मुस्कान के पीछे एक दृढ़ संकल्प शक्ति। कहना कम और करके ज़्यादा। देश और कांग्रेस के पास अब नहीं है कोई वैसा व्यक्तित्व। आज 31 अक्टूबर है। 
प्रधानमंत्री ने पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी को उनकी पुण्‍यतिथि पर श्रद्धांजलि अर्पित की 
प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी ने पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी को उनकी पुण्‍यतिथि पर श्रद्धांजलि अर्पित की है। प्रधानमंत्री ने कहा, "श्रीमती इंदिरा गांधी को उनकी पुण्‍यतिथि पर श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं।"
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने भी उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित किये। उन्होंने ट्विटर पर बहुत संक्षिप्त शब्दों में लिखा Today we remember the Supreme Sacrifice of Smt Indira Gandhi and her Strong Leadership to India.
देश भर से छोटे बड़े शहरों से उनकी याद में आयोजित स्मृति कार्यक्रमों की जानकारी आ रही है।

Friday, July 08, 2016

यह उनके साथ आखरी मुलाकात थी

Iqbal Singh Channa posted on July 7 at 7:51pm
नहीं रहे मेरे परम मित्र ओमी जी
Sansaar Hai Ik Nadiya, Dukh Sukh Do Kinare Hain...
Salute to a Gentleman Music Director, and above that my dear friend OMI Ji (SONIK OMI) who is no more with us !
ओमी जी और हसन कमाल जी   पत्रकार इक़बाल---आखरी मुलाक़ात
संसार है इक नादिया, दुख सुख दो किनारे है ...
एक मिलनसार संगीतकार, और उस से भी बढ़कर मेरे परम मित्र ओमी जी (सोनिक ओमी) नहीं रहे !
आज दोपहर ओमी जी के देहांत का दुखद समाचार सुनने को मिला। झटका सा लगा।
कुछ समय पहले ही मैं और मेरा दोस्त शिव दत्त अक्स IPRS के ऑफिस गये तो ओमी जी और हसन कमाल जी मिल गए। एक घंटा हम पुराणी यादें ताज़ा करते रहे। कहने लगे-मैं 75 का हो गया हूँ। मैंने कहा-ओमी जी देखने से तो ऐसा लगता है कि आप 50 की तरफ जा रहे हो! यह उनके साथ आखरी मुलाकात थी!
ओमी जी के साथ करीबी दोस्ती बन गयी थी। एक वक़्त ऐसा था क़ि उनके घर, मेरे घर या पंजाबी निर्देशक सुखी धंजल के घर हमने बहुत महफिलें सजाईं। कोलकाता और थाईलैंड में भी कई कई दिन इकट्ठे रहे। लेकिन आज वह हमें और इस संसार को अलविदा कह गए हैं।
सोनिक-ओमी (चाचा भतीजा) की संगीतकार जोड़ी ने बड़ा हिट म्यूजिक दिया है-
- इशारों को अगर समझी राज़ को राज़ रहने दो ..(धर्मा)
- संसार है इक नादिया, दुःख सुख दो किनारे हैं...(रफ़्तार)
- मैंने तेरे लिए जग छोड़ा तू मुझको छोड़ चली...(महुआ)
- कान में झुमका, चाल में ठुमका, कमर पे चोटी लमके...(सावन भादों)

संगीतकार के तौर पर उनकी पहली फिल्म " दिल ने फिर याद किया" एक म्यूजिकल ब्लॉक बस्टर थी । सारे गाने हिट-
- दिल ने फिर याद किया...
- हमने जलवा दिखाया तो जल जाओगे...
- आजा रे प्यार पुकारे...
- लो चेहरा सुर्ख शराब हुआ...
- कलियों ने घूघट खोले...

वाह !
शत शत नमन! हम आपको मिस करते रहेंगे ओमी जी !

Monday, February 15, 2016

क्या कन्हैया का गुनाह बस इतना कि वह AISF से जुड़ा है?

क्या Znews किसी साजिश के तहत गया था?
                                                                                                      --Sindhu Khantwal
आखिर कन्हैया कुमार को क्यों गिरफ्तार किया गया।।???????
जब की वह उस प्रोग्राम का हिस्सा नहीं था जहाँ पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगे।
जब की वह नारे लगाने वालो में शामिल नहीं था। 
JNU वह जगह है जहाँ पर हर छात्र संगठन को आजादी है की वह अपना किसी भी तरह का प्रोग्राम करवा सकता है अफजल गुरु की बरसी पर हुआ यह प्रोग्राम भी इसी आजादी का एक हिस्सा था छात्रो ने इस प्रोग्राम को ऑर्गनाइस करवाया था इस प्रोग्राम का ऑर्गनाइसर कन्हैया नहीं था इस प्रोग्राम का वक्ता कन्हैया नहीं था। प्रोग्राम जब शुरू होने वाला था तो ठीक 5 मिनट पहले प्रोग्राम की परमिशन को रद्द कर दिया गया क्यों की ABVP के छात्र प्रोग्राम का बिरोध कर रहे थे। जब प्रोग्राम की जगह पर दोनों पक्षों में झड़प होने लगी तो कन्हैया वहां बीच बचाव करने के लिए पहुंचा इसी बीच बचाव के दौरान भारत पाकिस्तान के नारे लगे। 
क्यों की कन्हैया JNUSU का प्रेजिडेंट है इस लिए दोनों पक्षों में होनेवाली झड़प को रोकना उस का अधिकार है।  
अब आते है मुख्य बात पर और कुछ सवालों पर
क्या कन्हैया को जानबूझ कर फंसाया गया है????
1. आखिर Znews वहां कैसे पंहुचा? जब की आज से पहले तो कभी कोई न्यूज़ चैनल वहां किसी तरह का कवरेज लेने नहीं गया था क्या Znews किसी साजिश के तहत गया था?
2.आखिर वह वीडियो कौन सा है जो कोर्ट में दिखाया गया जो की न मिडिया के पास आया न कही और दिखाया गया ?क्या वह एडिट किया हुआ और किसी साजिश के तहत तैयार किया हुआ वीडियो है?
3. जो नया वीडियो सामने आया है जिस में ABVP के कार्यकर्ता नारे लगते हुए साफ़ दिख रहे है मीडिया उसे क्यों नहीं दिखा रहा है ?
4. क्या ABVP संघ और बीजेपी कन्हैया से किसी तरह की रंजिश रखते है?
5. अब जो नए वीडियो में नारे लगते लोग दिख रहे है क्या उन को भी गिरफ्तार किया जायेगा?
6. क्या कन्हैया का गुनाह बस इतना है की वह JNUSU का प्रेजिडेंट है और AISF से जुड़ा है?

JNU: कौन है गद्दार? कौन है अफजल गुरू? 

Saturday, July 18, 2015

यह बरसात का कमाल है या कोई और ख़ास कारण?

लुधियाना के पॉश इलाके की सड़क का है यह हाल 
लुधियाना: 18 जुलाई 2015: (पंजाब स्क्रीन ब्यूरो): 
चुनावी परिणाम घोषित होते ही शुरू हो जाता है विजयी दलों के ख़ास लोगों को सौगात बांटने का सिलसिला। अलग अलग छोटे छोटे ठेकों से लेकर बड़े बड़े अनुबंधों तक। अच्छी भली गलियों और सड़कों को खोद डाला जाता है लेकिन ऊपर ऊपर से। फिर उसी पर बिछा दी जाती है नयी सामग्री। गली सड़क तैयार और बिल पास होने की कवायद शुरू। साधारण किराये के मकानों में रहने वाले लोग पहुँच जाते हैं कोठियों में। साइकलों पर सफर करने वाले पहुँच जाते हैं बड़ी बड़ी गाड़ियों में। अच्छे दिन आते ही उनकी दुनिया बदल जाती है। यहीं बन जाता है उनका अमेरिका। हर बार गलियाँ सड़कों को "नया बनाने" के इस चक्र में लोगों के मकान हो जाते हैं निचले स्तर पर। बरसात आते ही घरों में पानी घुसता है और मकान की नींव होने लगती है खोखली। इस सबके बावजूद विकास का यह सिलसिला जारी रहता है। पार्टी बदल सकती है पार्षद, विधायक या सांसद बदल सकता है लेकिन इस सिस्टम में कभी बदलाव नहीं आता। घरों के दरवाज़े पिछले दो-तीन दशकों में सड़क और गली के स्तर से कितना नीचे चले गए इसकी जांच कभी नहीं करवाई जाती। विकास के नाम पर जनता के सामने जो परोसा जाता है वो कितना खोखला होता है इसका नया नमूना दिखाया है जाने माने RTI एक्टिविस्ट अरविन्द शर्मा ने। 
अरविन्द शर्मा अक्सर सोशल मीडिया पर ऐसे खुलासे करते रहते हैं। आज उन्होंने लुधियाना की सड़कों और बुढा दरिया की मौजूदा हकीकत बताई है। ये ऐसे मामले हैं जिनके बारे में कुछ भी लुक छिपा नहीं है लेकिन फिर भी हालत बड़ से बदतर हो रही है।  इंसानी ज़िंदगी के लिए खतरा बने ऐसे मंज़र आम हैं, हादसे होते हैं, परिवार उजड़ते हैं लेकिन प्रशासन को कभी कोई दर्द महसूस नहीं होता। कोई दरिया के प्रदूषित पनि से मरे या इसखड्डे  हादसे का शिकार होकर।  सरकार को शायद कोई लेना देना नहीं है। अगर रोष प्रदर्शन हुआ तो मुयावजा मिल जायेगा वरना इंसान का मरणा भी कीड़ों मकोड़ों जैसा हो जायेगा। 
विकास का यह नमूना देखा जा सकता है लुधियाना के पॉश इलाकों में आती एक सड़क कालेज रोड का। यह सड़क कई कारणों से महत्वपूर्ण है। इस सड़क पर एक महत्वपूर्ण व्यक्ति का घर भी है जिसमें अति महत्वपूर्ण नेता परिवार का आनाजाना भी है इसके बावजूद इस सड़क पर इतना बड़ा खड्डा। पता नहीं बरसात से पड़ा है या पेड़ लगाने के लिए खोदा गया है लेकिन है यह खतरनाक। बिजली अक्सर गुल होती है और सड़कें बरसाती पानी से भर जाती हैं।  ऐसे खड्डे हादसों को निमंत्रण देने के लिए क्यों कायम हैं यह तो अब सरकारी लोग ही जानें।  हमने आपको दिखाना था पॉश इलाके की सड़क का हाल सो दिखा दिया। 
इसी तरह बूढ़ा दरिया अब उफान पर है।  मौसम विभाग ने  बहुत पहले ही चेता चेता दिया था लेकिन बारिश सर पर होने के बावजूद नहीं चेता प्रशासन।  अब बूढ़ा दरिया का प्रदूषित पानी किनारों से बाहर आक सड़को से होता हुआ लोगों के घरों में घुस रहा है।  अब प्रशासन को नज़र आया कि कुछ करना चाहिए।  इसलिए कुछ न कुछ करना ज़रूरी था सो किया जा रहा है। 

Saturday, May 30, 2015

लिपस्टिक स्त्री को बदसूरत कर देती है

जो भी नकली है वह लोगों को बदसूरत बना देता है-ओशो 
"लिपस्टिक स्त्री को बदसूरत कर देती है- जो भी नकली है वह लोगों को बदसूरत बना देता है। मैं सोच भी नहीं सकता कि किसी भी पुरुष में जरा भी समझ हो तो उस स्त्री का चुंबन लेगा जिसने लिपस्टिक लगाई हुई है!...वह लिपस्टिक चीन की दीवाल की तरह है- तुम किसी भी तरह से उस स्त्री तक नहीं पहुँच सकते। जिस पल मैं लिपस्टिक देखता हूँ, मैं जानता हूँ कि यह स्त्री नकली है, यह मात्र मुखोटा है।
कुछ दिनों पहले, बहुत अमीर युवा स्त्री मुझ से मिलने आई। वह अखबार और पत्रिका की मालकिन है। वह मेरे बारे में कहानी लिखना चाहती थी, और वह मेरे साथ फोटो भी चाहती थी।
आनंदो ने मुझे बताया कि वह बहुत सुंदर स्त्री है। जब मैंने उसे देखा, मैंने सिर्फ लाल लिपस्टिक देखी और कुछ नहीं दिखा। मैंने उसके चेहरे से बचने की कोशिश की, और मैंने आनंदो से कहा, 'तुम मुझ से कह रही थी कि ये स्त्री सुंदर है? तुमने इसकी लिपस्टिक नहीं देखी?" //OSHO//
ओशो के इस कालजयी विचार को चुन कर सोशल मीडिया पर पोस्ट किया है आनंद अर्चना ने। भिलाई में रहने वाली आनंद अर्चना इस तरह के चुने हुए विचार अक्सर सोशल मीडिया पर प्रस्तुत करती रहती हैं। आपको आज यहाँ प्रकाशित विचार कैसा लगा अवश्य बताएं। 

Monday, May 25, 2015

Media: विदेश की मुफ्त यात्रा बंद हुई तो विरोध में खड़े हैं


मीडिया में दलालों की दुकानें बंद पड़ी हैं.----- 
Nisheeth Joshi वरिष्ठ पत्रकार हैं। अमर उजाला के साथ रहते हुए उनका पंजाब से बहुत ही गहरा रिश्ता जुड़ा। साधना मार्ग पर चलने के कारण अपने शब्दों पर और असूलों पर अडिग रहते हैं। आज शाम पौने आठ बजे उन्होंने एक छोटी सी रचना एफबी पर पोस्ट की। इसमें उन्होंने मोदी सरकार के कामकाज की भी चर्चा की है मीडिया को भी अड़े हाथों लिया है।  
नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा सरकार के एक साल में काम तो हुआ है मीडिया में मौजूद कुछ लोगों सहित जो भी दलाल थे उनकी दुकानें बंद हुई हैं वह ही सबसे ज्यादा चीख चिल्ला रहे हैं.. विदेश की मुफ्त यात्रा बंद हुई तो विरोध में खड़े हैं क्योंकि भष्ट्राचार में लिप्त सरकार के लोग एक टुकड़ा डाल देते थे फिर दुम हिलाते थे वह सब चाहे लाल झंड़े वाले हों या केसरिया..इन सब के बीच में शामिल हैं देश की सर्वोच्च सत्ता पर कोई भ्रष्ट्राचार के आरोप न लगा सके ..क्या उपलब्धि नहीं.. गरीबों के लिए काम तो हो रहा है.. आजादी के बाद पहली बार केन्द्र सरकार का लोक कल्याण कारी चेहरा योजनाओं के जरिए नजर आ रहा है जिसमें खाने पीने की गुंजाइश दलालों के लिए नहीं छोड़ी गई है... अभी तो सड़क तैयार की गई है ...क्या साफ सुथरा देश होना उचित नहीं.. कई जगह छोटी छोटी टोलियां सफाई आंदोलन से जुड़ चुकी हैं.. बच्चों से लेकर बड़ों तक में सफाई के प्रति जागरूकता आई है... दुनिया में हमारी इज्जत बढ़ी है...हमारा मानवतावाद भी सामने आया है...पेड़ जैसे एक ही दिन में फल नहीं देता वैसे ही सरकार के काम का हाल होता है... जो सूट बूट की सरकार कहते हैं भूल जाते हैं कि उनकी दादी के पापा के सूट कहां से धुल कर आते थे वह किस पार्टी का प्रधानमंत्री था जो अक्तूबर 1948 से नवंबर _48 <के पहले हफ्ते तक भारत छोड़ विदेश में था...उस समय जब देश में दंगे चल रहे थे..विस्थापितों को सैटल करना चुनौती बना हुआ था बंटवारे से उतपन्न हालात में साथ ही संविधान सभा की बैठकें चल रही थीं.. फिर वह कौन सा प्रधानमंत्री था जो जार्डन के शाह से गिफ्ट में मिली गाड़ी को अमेठी के तातारपुर गेस्ट हाउस से पूरे संसदीय इलाके में फिर जंगलो मे अवकाश में ले जाता था... इन आंखो ने देखा है माया पत्रिका के लिए कवरेज के दौरान... फिर जो मारूति कंपनी है वह जमीन किसकी थी किसानों की या उस परिवार की जो शेयर होल्डर बना आज तक कमाई खा रहा है... गांघी परिवार.. और अमेठी संसदीय इलाकेमें में इंडों गल्फ की इतनी जमीन बिड़ला को किसने दी कि वह भी इतनी की आज भी खाली पड़ी है.. उसी में से फूड पार्क को दे रहे थे क्या वह जमीन किसानों की नहीं थी..बहुत कुछ है इस पिटारे मे क्योंकि कांग्रेस को भी दो बैलों की जोड़ी से देखा समझा है और जब भाजपा जनसंघ होती थी और चुनाव चिन्ह था जलता हुआ दीपक.... यह सब अगली पोस्ट में..

Thursday, January 01, 2015

फिल्म PK को लेकर आमिर खान से 11 सवाल

 Updated on 13 Jan 2015 at 12:10 Noon 
सोशल मीडिया पर सवाल उठाए सुभाष चन्द्र गोदारा ने 
फिल्म PK को लेकर उठा विवाद लोगों के मानों में अभी जारी है। फेसबुक पर Subhash Chander GODARA ने कुछ सवाल उठाये हैं फिल्म पी के को लेकर। आप इन पर क्या सोचते हैं। यह पोस्ट हूबहू नीचे दी जा रही है। 
24 December 2014 at 20:53

PK के आमिर खान से कुछ सवाल और अगर आपके पास सवालो के जवाब हे तो दीजियेगा अन्यथा आमिर खान तक पहुँचाने में मदद कीजियेगा:

1. अगर गाय को घास खिलाने से धर्म होता हो या नहीं लेकिन उसका पेट जरूर भरता है लेकिन अपने धर्म गुरु के कहने से आप तो बकरे को काटते हैं आपने इसका विरोध क्यों नहीं किया...???
2. अगर माता रानी के दरबार और अमरनाथ जाने से धर्म नहीं होता है..... तो मक्का मदीना जाने से कैसे हो सकता है ?? आपने मक्का मदीना का विरोध् क्यों नहीं किया..??

3. अगर मंदिर बनाना धर्म नहीं तो आपने मस्जिद बनाने का विरोध क्यों नहीं किया...?? जबकि सर्वे बताते हैं की देश में मंदिर के अनुपात में मस्जिद बनाने में भंयकर तेजी आई है वो भी सरकारी पैसे से ....
4. अगर शीवजी को दूध चढ़ाने से अच्छा किसी भूके को दान देना अच्छा है..... तो देश में लोग ठण्ड से ज्यादा मर रहे है..... आपने मज़ार की चादर का विरोध क्यों नहीं किया....????
5. अगर पैदल तीर्थो पर जाना धर्म नहीं ..... तो या हुसैन करके अपना खून बहाने से कैसे धर्म हुआ ??? जब कि उस खून को धोंने के लिए आप लोग अरबो लीटर साफ़ पानी ढोलते है.... जो किसी प्यासे की प्यास बुझा सकता था ...आपने उसका विरोध क्यों नहीं किया ????
6.अगर क्रिस्चियन लालच देकर धर्म परिवर्तन कर रहे है..... तो आपने इस्लामिक स्टेट का विरोध क्यों नहीं किया...??? जबकि इसमें तो मौत का तांडव हो रहा है.....

7. अमृतसर से कश्मीरीयो को आपदा के समय लाखो लोगो को खाना दिया और आपने उन्ही को खाने के लिए भीख मांगते दिखाया ..... जबकि सबसे ज्यादा गरीब मुस्लिम है....
8. क्या सारे हिन्दू धर्म गुरु पाखंडी होते है ??? जबकि सबसे ज्यादा पाखंडी और धर्म के नाम पर अन्धविश्वास फेलाने में मुस्लिम धर्म गुरु आगे हैं..... आपने उनका विरोध क्यों नहीं किया..???

9. आपने बताया मुस्लिम लड़के इतने अच्छे और वफादार होते हैं तो 90% आतंकी मुस्लिम लड़के होते हैं .... आपने ये क्यों नहीं दिखाया ?????
10. अगर आप कहते हैं की धर्म गुरु मंदिर का विरोध करने पर भगवान् की निंदा का डर बताते हैं..... तो आपने इस्लाम में ईश निंदा के जुल्म में मौत की सजा दी जाती है.... इसका विरोध किस डर के कारण नहीं किया...????
11. खान बंधू स्टारर मूवी में नायिका का पात्र हमेशा हिन्दू और नायक हमेशा मुस्लिम क्यों होता है...???
आमिर खान जी हिन्दू धर्म या अन्य धर्म करने से पुण्य मिलता हो या ना मिलता हो , धर्म होता हो या ना होता हो लेकिन किसी का बुरा तो हरगिज़ नहीं करते लेकिन इस्लाम के नाम पर पूरी दुनिया की क्या हालात है ..... आज सभी जानते है...... अगर आपको वाकई में सिस्टम सुधारना ही था तो आपने शुरुआत वही से क्यों नहीं की..???? क्यों आपने मुस्लिम लड़के को इतना वफादार बताया आपने ये क्यों नहीं बताया की लाखो हिन्दू लडकिया मुस्लिम लड़को से शादी करने के बाद वैश्या वृति में धकेल दी जाती है......????
मै मूवी का विरोध नहीं कर रहा लेकिन आप सभी से मे सिर्फ इतना अनुरोध है..... की इस माध्यम से ये हम सब के दिल और दिमाग में क्या बिठाना चाहते हैं...???? अपने विवेक से सोचे...
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मेरी छत पर तिरंगा रहने दो.... 


FB पर  11 January 2015 को at 22:33 पोस्ट हुआ एक अर्थपूर्ण कमेंट:Juned Ahamad नफरतों का असर देखो, जानवरों का बटंवारा हो गया, गाय हिन्दू हो गयी ; और बकरा मुसलमान हो गया. ये पेड़ ये पत्ते ये शाखें भी परेशान हो जाएं.. अगर परिंदे भी हिन्दू और मुस्लमान हो जाएं --- सूखे मेवे भी ये देख कर हैरान हो गए.. न जाने कब नारियल हिन्दू और खजूर मुस्लमान हो गए.. --- न मस्जिद को जानते हैं , न शिवालों को जानते हैं जो भूखे पेट होते हैं, वो सिर्फ निवालों को जानते हैं. में अमन पसंद हूँ ,मेरे शहर में दंगा रहने दो... लाल और हरे में मत बांटो ,मेरी छत पर तिरंगा रहने दो.... जुनैद अहमद