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Monday, April 13, 2020

न्यू प्रताप नगर में पानी की गंभीर किल्लत

पानी का टैंकर आया तो लोग समाजिक दूरी का नियम भी भूले 
लुधियाना: 13 अप्रैल 2020: (प्रदीप शर्मा इप्टा//पंजाब स्क्रीन)::  
लुधियाना बाईपास के नजदीक साथी बहादर के रोड पर एक इलाका है न्यू प्रताप नगर। इस इलाके में गत तीन दिनों से पानी की सप्लाई बंद है। लॉक डाउन के दिनों में इस सप्लाई के बंद होने से लोगों के लिए बहुत बड़ी मुसीबत खड़ी हो गई है। जब लोगों ने अपना हो हल्ला मीडिया वालों तक पहुंचाया तो इलाके में पानी का एक टैंकर भेजा गया। इस टैंकर पानी भरने को आतुर लोग समाजिक दूरी बनाये रखने का नियम भी भूल गए। इस तस्वीर को खींचा गया इसी इलाके के वार्ड नंबर दो में जहाँ लोग एक दुसरे के बिलकुल पास पास खड़े हैं। यदि इसी तरह के सिलसिले जारी रहे तो लॉक डाउन का मकसद ही नाकाम कर देंगें ये लोग। कोरोना के बढ़ते प्रभाव के चलते इस तरह की हर बात को ध्यान से लिए जाने की आवश्यकता है।  जल के बिना तो लोगों का घरों में रहना असम्भव ही हो जायेगा। 

Wednesday, January 23, 2019

ज़िंदगी का इंद्रधनुष नज़र आया रवि की फोटो प्रदर्शनी में

पंजाब कला परिषद ने आयोजित की आर्य कालेज में यह प्रदर्शनी 
लुधियाना: 23  जनवरी 2019 (रेक्टर कथूरिया//पंजाब स्क्रीन)::
बरसों पहले सन 1955 में एक फिल्म आई थी--बारांदरी। इस फिल्म का एक गीत था:  
तस्वीर बनाता हूं; तस्वीर नहीं बनती!
इक ख्वाब सा देखा है; ताबीर नहीं बनती!
दशकों तक यह गीत लोगों के दिलों हुए दिमागों पर छाया रहा। बरसों तक उन लोगों की मनोस्थिति को व्यक्त करता रहा जिनसे न तो अपने ख्यालों की तस्वीर बन  पा रही थी और न ही देखे हुए ख्वाबों को ताबीर समझ आ रही थी। इसी बीच बहुत सी अच्छी तस्वीरें भी सामने आईं और पेंटिंग्स भी जिन्हें देख कर लगा था कि शायद तस्वीर बन सकती है। शायद अपने किसी ख़्वाब की ताबीर भी समझ में आ सकती है। कैमरे और चित्रकारी के बहुत से फनकार भी सामने आते रहे। फिर शुरू हुआ शोर-शराबे और भागदौड़ का व्यवसायिक युग। पैसे का वह युग जिसमें एक पुरानी कहावत ज़ोरशोर से सत्य होने लगी कि बाप बड़ा न भईया-सबसे बड़ा रुपईया!
इस युग में जज़्बात भी लुप्त होने लगे और संवेदना भी। न किसी ख़्वाब का कोई मूल्य रहा न ही किसी ताबीर की ज़रूरत। तस्वीर तो बस ड्राईंग रूम में लटकाने की ही ज़रूरत रह गयी। महज़ एक डेकोरेशन पीस। इसके बावजूद कुछ संवेदनशील लोग हमारे दरम्यान मौजूद रहे। बहुत से कलाकार भी मुनाफे की अंधी चाहत से बचे रहे। यही वे कलाकार थे जो लोगों के ख्यालों की तस्वीर बनाते रहे वह भी बिना किसी मुनाफे की अपेक्षा के। यही वे लोग थे जो लोगों को उनके देखे ख्वाबों की ताबीर भी समझाते रहे।
इसका अहसास हुआ आर्य कालेज में लगी तस्वीरों की एक यादगारी प्रदर्शनी को देख कर। इस आयोजन में लोगों को लगा कि यह तो हमारी ही तस्वीर है।  हमारे घर की तस्वीर। हमारे गाँव की तस्वीर। हमारे बचपन की तस्वीर।  हमारे सपनों की तस्वीर।  हमारे ख्वाबों की ताबीर।
आम, साधारण, गरीब और गुमनाम से लोगों को इन यादगारी तस्वीरों में उतारा हमारे आज के युग के सक्रिय फोटोग्राफर रविन्द्र रवि ने। वही रवि जिसे आप पंजाबी भवन में पंक्षियों के पीछे भाग भाग कर तस्वीरें उतारते देख सकते हैं। फूलों की खूबसूरती को कैमरे में कैद करते हुए देख सकते हैं। फूलों के साथ तितलियों और भंवरों की वार्तालाप को कैमरे के ज़रिये सुनने का प्रयास करते हुए देख सकते हैं। 
उस समय रवि के चेहरे पर जो रंग होता है वह रंग किसी साधना में बैठे साधक के रंग की याद दिलाता है। किसी अलौकिक शक्ति से जुड़े समाधि में लीन किसी असली संत के चेहरे पर नज़र आते नूर की याद दिलाता है। काम में डूबना क्या होता   है इसे रवि का काम देख समझा जा सकता है। सभी अपनी बातों में या खाने पीने में मग्न होते हैं उस समय रवि अपने कैमरे से या तो प्राकृति से बात कर रहा होते है या फिर किसी  ख्वाबों की ताबीर को किसी कैमरे में उतार रहा होता है। 
इस प्रदर्शनी में रवि की फोटोग्राफी के सभी रंग थे। इन रंगों में जो रंग सब से अधिक उभर कर सामने आया वह रंग था बन्जारों की ज़िंदगी का रंग। गांव की ज़िंदगी का रंग। ममता का रंग। जागती आंखों से देखे जाने वाले रंग। उन सपनों के टूटने से पैदा होते दर्द का रंग। कुल मिला कर यह ज़िंदगी का इंद्र धनुष था। जिसमें दर्द का रंग भी नज़र ा रहा था और ख़ुशी का रंग भी। किस किस को किस किस तस्वीर का रंग अच्छ लगा इसकी चर्चा हम अलग पोस्ट में  कर रहे हैं।

Wednesday, October 15, 2014

आ बता दें कि तुम्हे कैसे जिया जाता है

किस तरह ज़िंदा हैं लोग----                                    -Raj Kumar Sahu
रूखी सूखी जो मिले पेट भरने के लिए 
काफी दो गज़ है ज़मीं जीने मरने के लिए 
जगह कम और आबादी ज़्यादा-समस्या विकराल है पर ज़िन्दगी भी तो काटनी है। जीने के लिए---रहने के लिए बहुत सी कठिनाइयां लेकिन लोग फिर भी जी रहे हैं। हमने हर हाल में जीने की किस्म कसम खाई है--यह बात कहने सुनने में काफी आसान सी लगती है---पर वास्तव में होती है बहुत कठिन।इस के बावजूद ज़िन्दगी की कठिन राहों पर  मुस्करा कर चलने के मामले में एक बिलकुल ही नई मिसाल बन चुके हैं ये मकान। झाँसी के सीपरी इलाके में यह ज़मीन शायद सरकारी है और लोगों को जीवन जीने का अधिकार उस परमसत्ता भगवान ने दिया है। ज़िंदगी के इस आशियाने की नयी तकनीक ज़िंदगी की ज़रूरतों ने तलाश कर ली। मकान देखें तो खतरा ही खतरा लगता है---अभी गिरा-अभी गिरा---पर लोग यहाँ इस खतरे में जी रहे हैं। सुना है यहाँ पूरी की पूरी गली ही ऐसी है इसी तरह के मकानों से बानी हुई। इन्हें अगर खतरा मकान कह लिया जाये तो शायद कदापि गलत नहीं होगा लेकिन लोग खतरे में रहने को भी तैयार। सरकार से सर छुपाने को छत नहीं मिली तो हिम्मत करके खुद बना ली।
जैसे ज़मीन पर पेड़ थोड़ी सी जगह घेरता है और बाकी का आकार कुछ ऊंचा उठकर आसमान में ही लेता है। बस यहाँ लोग भी पेड़ों की तरह हो गए हैं। जब तक जिएंगे समाज को कुछ फायदा देंगें बिलकुल पेड़ों की तरह-जब पेड़ों की तरह गिरा दिए जाएंगे तो गुमनामी की मौत मर जाएंगे या फिर कहीं ओर जाकर ज़िंदगी के उजड़ चुके घर को फिर से बसाने का प्रयास करेंगे। सरकारी ज़मीनों पर कब्ज़े के आरोप में बदनाम किये जाते ये लोग शायद नहीं जानते कि यहाँ इस देश के नेताओं ने देश विदेश में कितने कितने एकड़ ज़मीन अपने नाम करवा रखी है। किस किस नेता का किस किस जगह होटल है-कहाँ बंगला है--कहाँ कृषि भूमि है---इसका सही आंकड़ा शायद कभी सामने न आये क्यूंकि इस हमाम में सभी नंगे हैं।  गाज गिरती है तो गरीबों पर। इस तथ्य को नज़रअंदाज़ करके कि बहुत से गरीब और दलित लोग मौत के बाद अंतिम संस्कार के लिए भी दो गज़ ज़मीन नहीं जुटा पाते। हर पल खतरों में रह कर जी रहे लोगों के इन अजीबो-गरीब मकानों की यह तस्वीर साहिर लुधियानवी साहिब की पंक्तियाँ फिर याद दिल रही है----
माटी का भी है कुछ मौल मगर--
इंसानों की कीमत कुछ भी नहीं 
आखिर कब सच होगा मेरा भारत महान का नारा? हर रोज़ महंगी होती ज़मीन और लगातार कम हो रही इंसान की कीमत हमें किस तरफ ले जा रहे हैं? क्या यही थी वह आज़ादी जिसके लिए अनगिनत शहीदों ने अपनी क़ुरबानी दी। क्या यही है उनके सपनों का भारत?
खतरों में जी रहे इन मजबूर और बेबस लोगों पर ऊँगली उठाने वाले कभी भू-माफिया का नाम भी लेंगें जो देश के बहुत से भागों में सक्रिय है?
ऐसे बहुत से सवाल हैं जो इस तस्वीर को देख कर उठ रहे हैं---आखिर कब मिलेगा उनका जवाब?
इस तस्वीर को फेसबुक पर पोस्ट किया है एक जागरूक नागरिक Raj Kumar Sahu ने अपने प्रोफाइल पर मंगलवार 14 अक्टूबर 2014 को सांय 4:45 पर।
इस पर कमेन्ट भी काफी दिलचस्प हैं। देखिये कुछेक की एक झलक।
  • Ganesh Prasad खतरा ही खतरा !!
    11 hrs · Unlike · 2
  • Arvind Sharma Guddu jara hat ke jara bach ke ye jhansi hai meri jaan...
    9 hrs · Unlike · 3
  • Rai Niranjan Great nice teqnic
    7 hrs · Unlike · 2
  • Prabhakar Dwivedi jo jamin sarkaari hai wah jamin hamari hai yehi niyam hai uttam pradesh mei jai ho
  • नोट:आपको यह तस्वीर कैसी लगी अवश्य लिखें। आपके पास भी कोई ऐसी तस्वीर हो तो अवश्य भेजें तांकि दुसरे लोग भी उसके बारे में सकें। हम आपका नाम भी उस तस्वीर के साथ प्रकशित करेंगे। 

Friday, January 24, 2014

राजनायिका देवयानी खोबरागढ़े,उनके पिता उत्तम खोबरागढ़े

Fri, Jan 24, 2014 at 3:55 PM
साथ में आर पी आई के राष्ट्रीय अध्यक्ष राम दास अठावले  और अम्बेडकरी नेता सुभाष दिसावर 
दिल्ली के महाराष्ट्रा सदन में पूर्व सांसद और आर पी आई (रिपब्लिकन पार्टी आफ इण्डिया )के राष्ट्रीय अध्यक्ष राम दास अठावले,राजनायिका देवयानी खोबरागढ़े,उनके पिता उत्तम खोबरागढ़े, अम्बेडकरी नेता सुभाष दिसावर एक विशेष मुलाकात के दौरान।   

Saturday, August 24, 2013

मुंबईगैंगरेप:फिर निकाला पहरावे का कसूर

मुंबई गैंगरेप पर स्पा नेता नरेश अग्रवाल का बेहूदा बयान
अकाली सांसद हरसिमरित कौर बादल ने डट कर किया एतराज़ 
नई दिल्ली: सत्ता मिलते ही समाज से कट कर आम लोगों से दूर किसी ऊंची  हवा के महल में रहने वाले नेता देश की किसी गंभीर समस्या पर भी कोई बेतुका ब्यान  न दें यह  तो अब सम्भव ही  नहीं लगता।  इस तथ्य को उजागर करता एक नया ब्यान सामने आया है सपा के नेता नरेश अग्रवाल का। मुंबई में गैंगरेप का शिकार हुई एक महिला फोटो जर्नलिस्ट के साथ हमदर्दी  की बजाये श्री अग्रवाल कह रहे हैं यह  सब  लडकी के पहरावे के कारण हुआ। गौरतलब है कि गुरुवार को मुंबई में एक फोटो जर्नलिस्ट के साथ हुई रेप के खिलाफ पूरे देश में विरोध प्रदर्शन हो रहा है। सड़क से संसद तक इसकी गूंज सुनाई दे रही है लेकिन हमारे नेता लोग मुजरिमों को पहरावे से पैदा हुई उत्तेजना का शिकार हुए बेचारे मासूम लोग साबित करने में लगे हैं। 
सपा नेता नरेश अग्रवाल ने शनिवार को कहा कि सिर्फ कानून बनाने से रेप पर लगाम नहीं लगेगी, बल्कि लड़कियों के रहन सहन और पहनावे पर ज्यादा ध्यान देना होगा। यही रेप की बढ़ती वारदातों का मुख्य कारण है। इस बयान को सुन कर लगता है कि अगर देश में सपा की सत्ता आई तो यहां भी कोई बुर्के जैसा सिस्टम लागू हो जायेगा और ये लोग देश में कुछ इसी तरह का समाजवाद लायेंगे। क्या ये लोग बतायेंगे कि दुष्कर्म का शिकार होने वाली नन्ही नन्ही बच्चियां किस पहरावे के कारण इस दरिंदगी का शिकार होती हैं। देश के समाज की बीमार हो रही मानसिकता के आरोप पहरावे पर लगाने से 
गौरतलब है कि यह पहली बार नहीं हुआ है जब किसी नेता ने इस तरह का बयान देकर लडकी और उसके परिवार के जख्मों पर नमक छिड़का हो। इससे पहले भी जब जब देश में ऐसी घिनौनी घटना घटी है, कुछ करें न करें लेकिन नेता अपनी बयानबाजी से कभी पीछे नहीं हटते हैं। दिल्ली गैंगरेप मामले में में भी प्रणब मुखर्जी के बेटे अभिजीत मुखर्जी ने कुछ ऐसी ही टिप्पणी कर डाली थी जिसकी व्यापक स्तर पर चौतरफा निंदा हुई थी। इसी तरह से पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी पार्क स्ट्रीट रेप मामले पर कुछ अजीब बात ही कह डाली थी। आरएसएस नेता ने भी लड़कियों के साथ बढ़ती रेप की वारदातों के लिए उनके सही समय पर घर न आना, उनकी लाइफ स्टाइल पर सवाल उठाए थे। यही नहीं खाप पंचायत ने इस तरह के मामले को लेकर कहा था कि महिलाओं को मर्यादा में रहना चाहिए। आपको याद होगा कि लडकियों के पहरावे को निशाना बनाने वाले रेश अग्रवाल अपने सियासी कैरियर में खुद कितने सियासी लिबास बदल चुके हैं। डेट लाईन लखनऊ से छपी खबरें लोग इतनी जल्द भूलें भी नहीं होगें। लोग जानते हैं कि दिसम्बर-2011 के आखिरी दिनों में नरेश अग्रवाल अपने बेटे सहित बसपा से निकाल दिए गए थे। बसपा से निष्कासित होने के बाद वह खामोश नहीं बैठे बल्कि अपने पुत्र नितिन अग्रवाल के साथ बसपा से नाता तोड़ कर समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए। इस मकसद के उन्होंने बस सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव से एक ही भेंट और मुलाकात को सफल बना लिया। इस मुलाकात के  तुरंत बाद ही उनकी वापसी को हरी झंडी मिल गयी। लोगों को यह भी याद होगा कि यह वही नरेश अग्रवाल हैं जिन्होंने सन 1997 में कांग्रेस से अलग होकर लोकतांत्रिक कांग्रेस बना ली थी और भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार में मंत्री भी हुए थे। यह उनकी राजनीतिक कलाबाजी का ही  सकता है कि फिर सन 2002 का चुनाव उन्होंने सपा के टिकट पर लड़ा और मुलायम सिंह यादव की नेतृत्व वाली सरकार में भी मंत्री रहे। सत्ता मोह का कमाल  कि वह जहां भी रहे उन्हें मंत्री पद मिला। सन 2007 के चुनाव में भी वह सपा के टिकट से जीते लेकिन बाद में वह विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देकर बसपा में शामिल हो गए। बसपा ने उन्हें पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव बनाने के साथ राज्यसभा का सदस्य भी बना दिया उनकी विधानसभा वाली सीट पर 2008 में हुए उपचुनाव में उनके पुत्र नितिन अग्रवाल बसपा से विधायक हुए थे। बसपा ने उनके पुत्र को 2012 के के लिए भी उम्मीदवार घोषित किया पर शनिवार को टिकट काट दिया गया। इसके बाद नरेश अग्रवाल ने सपा और कांग्रेस में जगह तलाशनी शुरू की और अन्तत: सपा में वापसी के लिए मुलायम सिंह को मनाने में सफल रहे। सत्ता और सियासत के इतने रंग देखने वाले देश में महिलायों के खिलाफ हो रहे जुर्मों की असल जद क्यूं नहीं देख पा रहे।  
इसी बीच पंजाब की एक दलेर अकाली महिला नेता और सांसद हरसिमरित कौर बादल ने नरेश अग्रवाल के इस ब्यान पर सख्त एतराज़ जताया है और जवाबी सवाल हुए पूछा है कि क्या सलवार कमीज़ पहनने वाली औरतों के बलात्कार  फिर बिलकुल ही नन्ही बच्चियों से दुष्कर्म नहीं होता?उन्होंने तथ्य और आंकड़े देते हुए कहा कि देश में महिलायों के साथ ज्यादतियों के एक  पेंडिंग पड़े हैं--क्या इन एक लाख औरतों का पहनावा गलत था? उन्होंने गंभीर स्वर में कहा कि इस तरह की दकियानूसी बातें करने की बजाये इस जुर्म के लिए ज़िम्मेदार तत्वों के खिलाफ एक्शन लेने की मांग होनी चाहिए। 
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