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Monday, November 14, 2022

बाल दिवस पर सहेजने का प्रयास ज़रूर करें खो रहे बचपन को

14th November 2022 at 8:13 AM 

लेखिका नीलिमा शर्मा ने लगाई गुहार-बचा लो अंतरमन के बच्चे को 

National Children Day Courtesy-Pexels-Photo-By Parij Photography

नई दिल्ली: 14 नवंबर 2022: (कार्तिका सिंह//पंजाब स्क्रीन):: 

जानीमानी लेखिका नीलिमा शर्मा 
बाल दिवस पर बच्चे तो याद आते ही हैं लेकिन साथ ही याद आता हैं बचपन के वो सुनहरे दिन जब हम सच मच भगवान के  रूप गिने जाते थे। केवल गिने ही नहीं जाते थे बल्कि भी थे। हमारे अंदर ऐसी कोई चालाकी नहीं होती थी जो हम बड़े होते होते न जाने कैसे और क्यूं सीख जाते हैं। हमारी मासूमियत हमारे चेहरे से साफ़ नज़र आती थी। हमारी निर्दोषता को दुश्मन भी महसूस कर सकता था। जैसे जैसे हम बड़े होते गए हमारे अंदर होने वाली तब्दीलियां हमारे चेहरे और हमारे एक्शन में भी साफ़ दिखने लगी। हम स्वार्थी हो गए, हम लालची हो गए, हम मक्कारी के शिखर छूने लगे। कदम कदम पर बेईमानी और दोगला चरित्र हमारा स्वभाव बन गया। जुबां पर झूठ एक आम बात हो गई। परिणाम भी भयानक रहे। ब्लड प्रेशर, शूगर, हार्ट अटैक, ब्रेन हैमरेज, स्ट्रोक हमारी जीवन का अभिन्न अंग बने गए। दवाओं का बक्सा हर घर के ज़रूरी सामान में शामिल हो गया। इस सारी स्थिति को गहनता से देखा और महसूस किया जानीमानी लेखिका नीलिमा शर्मा ने। मानव जाती पर आते हर दर्द को महसूस कर सकने की क्षमता रखने वाली इस संवेदनशील लेखिका ने इन सभी समस्याओं का समाधान भी सुझाया। उन्होंने कहा:अंदर के बच्चे को कभी मरने न दें और जब भी जरूरत हो उसकी देखभाल करना सुनिश्चित करें। आपका दयालु हृदय सब कुछ बेहतर कर देगा। बाल दिवस की ढेर सारी शुभकामनाएं। 

सुश्री नीलिमा शर्मा ने एक छोटी सी वीडियो भी प्रेषित की है।  आप भी देखिए इस वीडियो को एक नज़र:

चलते चलते उस लोकप्रिय फ़िल्मी गीत की कुछ पंक्तियां भी समरण करते हैं : सन 1968 में आई फिल्म दो कलियाँ के गीत को। गीत के बोल थे-बच्चे मन के सच्चे और इस गीत को लिखा था जनाब साहिर लुधियानवी साहिब ने। संगीत दिया था रवि ने और आवाज़ दी थी सुर सम्राज्ञी लता मंगेशकर ने। पढ़िए आप आज आप भी उस गीत के बोलों को। 

बच्चे मन के सच्चे

सारे जग की आँख के तारे

ये वो नन्हें फूल हैं जो

भगवान को लगते प्यारे

बच्चे मन के सच्चे...


खुद रूठे, खुद मन जायें

फिर हमजोली बन जायें

झगड़ा जिसके साथ करे

अगले ही पल फिर बात करे

इनको किसी से बैर नहीं

इनके लिए कोई ग़ैर नहीं

इनका भोलापन मिलता है

सबको बाँह पसारे

बच्चे मन के सच्चे...


इन्साँ जब तक बच्चा है

तब तक समझो सच्चा है

ज्यूँ-ज्यूँ उसकी उमर बढ़े

मन पर झूठ का मैल चढ़े

क्रोध बढ़े, नफ़रत घेरे

लालच की आदत घेरे

बचपन इन पापों से हटकर

अपनी उमर गुज़ारे

बच्चे मन के सच्चे...


तन कोमल, मन सुन्दर है

बच्चे बड़ों से बेहतर हैं

इनमें छूत और छात नहीं

झूठी ज़ात और पात नहीं

भाषा की तकरार नहीं

मज़हब की दीवार नहीं

इनकी नज़रों में एक है

मंदिर मस्जिद गुरूद्वारे

बच्चे मन के सच्चे...

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Sunday, April 05, 2020

डा. धीमान ने भी दिल से चिराग जलाये

क्यूंकि डा. जगतार धीमान के अंतर्मन में भी रौशनी है 
लुधियाना: 5 अप्रैल 2020: (कार्तिका सिंह//पंजाब स्क्रीन)::  
अँधेरे पर भी किसी का नाम नहीं लिखा होता लेकिन अँधेरा खुद-ब-खुद बता देता है कि उसे यहां तक कौन ढो कर लाया! 
इसी तरह रौशनी पर भी किसी ने आरक्षण नहीं करवा रखा होता लेकिन रौशनी खुद-ब-खुद बता देती है कि उसे यहां तक कौन ले कर आया!
इसके बावजूद विरोध और गाली गलौच को देख सुन कर लगता है कि कुछ लोगों ने अँधेरे का आरक्षण करवा रखा है और कुछ लोगों ने रौशनी का। यूं भी रौशनी सभी के नसीब में कहाँ होती है।
कभी जनाब दुष्यंत कुमार साहिब ने कहा था:
आज सड़कों पर लिखे हैं सैंकड़ों नारे न देख!
घर अँधेरा देख तू आकाश के तारे न देख!
वे सहारे भी नहीं अब जंग लड़नी है तुझे!
कट चुके जो हाथ, उन हाथों में तलवारें न देख!
रौशनी के ठेकेदार बने फिरते लोग दूसरों को अंधेरों का दूत ही समझते हैं।
कौन क्या है हमें किसी का नाम नहीं लेना क्यूंकि आप जानते हैं कि वास्तव में कौन क्या है। जागरूक और स्वतंत्र लोगों को न तो किसी की मीटिंग में जा कर अपना विचार बनाना है और न ही किसी रेज़ूलेशन को पढ़ कर अपना फैसला करना है। वे स्वतंत्र होते हैं और जो देखते और महसूस करते हैं उसे कहने की हिम्मत भी रखते हैं। उन्हें मालुम है कि ज़िंदगी भर हमने क्या किया है। क्या खोया है--क्या पाया है।
वास्तविकता को देखने, समझने और स्वीकार करने वाले लोगों के चेहरों पर एक चमक होती है जो किसी मेकअप की मोहताज नहीं होती।  वह अंतर्मन से आती है।  ऐसे चेहरों पर मक्कारी नहीं होती। उनका चेहरा बात बात पर झूठ बोलता महसूस नहीं होता। उनमें एक विशेष सी कशिश होती है और एक ख़ास किस्म की रौशनी भी। कुछ इसी तरह के व्यक्ति हैं डा. जगतार सिंह धीमान।
सिर और दाड़ी के सफेद बाल और उन बालों में से झांकता एक निर्दोष और मासूम सा चेहरा। यूं लगता है किसी ऋषि से भेंट हो गई हो। अगर शेव न करवाते तो सचमुच ऋषि ही लगते।
पांच अप्रैल को मेरा जन्मदिन था। इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आह्वान कि रात्रि को 9 बजे 9 मिंट तक रौशनी की जाये। रौशनी का ज़रिया दीपक भी हो सकते हैं, मोमबत्तियां भी और  मोबाईल की टोर्च या कोई अन्य रास्ता भी।  बस रौशनी हो किसी भी तरह। इस विशेष अंक 9 का ज्योतिष और अंक विज्ञान में विशेष महत्व है इसका पता मुझे एक बार फिर इसी अवसर पर लगा। हालाँकि अंक विज्ञान में मेरी रुचि बरसों पहले भी थी लेकिन वक़्त ने सब भुला दिया था। रौशनी के इस पर्व एक बार फिर अंक विज्ञान भी याद आया। जंग लड़नी हो तो मंगल की कृपा आवश्यक है और मंगल की कृपा के लिए अंक 9 का विशेष ध्यान रखना भी आवश्यक है। आज के हालात में हम कोरोना के साथ एक जंग ही तो लड़ रहे हैं। अब ह बात अलग है कि खुद को नास्तिक समझने वालों को यह बातें अंध विश्वास लगती हैं लेकिन जिन को ज्योतिष का ज्ञान है उन्हें बेचारे ये लोग अंधविश्वासी लगते हैं। इंक क्या पता 9 और रौशनी के अहसास का ज्ञान। हाँ जिन लोगों ने डीप जलाते समय हुड़दंग किया उनका विरोध बिलकुल ज़रूरी है। उन्होंने आतिशबाज़ी चला कर प्रधानमंत्री मोदी का यह सारा आइडिया ही फिर से चौपट कर दिया। भगवान उन्हें सद्बुद्धि दे। 
खैर बात हम कर रहे थे रौशनी की। दीपक जलाने की। कोरोना के खिलाफ जंग में मनोबल मज़बूत बनाये रखना भी ज़रूरी है। जब इस जंग में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रौशनी के ज़रिये एकजुट होने की बात कही तो सारा देश एक जुट हो गया। इस एकजुटता में हमारे लोकप्रिय लेखक और सीटी यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार डा. जगतार धीमान भी थे। उन्होंने अपने परिवार सहित दीपक जला कर रौशनी के इस अभियान में भाग लिया। यहां प्रस्तुत हैं उनकी कुछ तस्वीरें। 

Wednesday, February 05, 2020

परम निमाणा जगा रहे हैं पुस्तक संस्कृति का जादु

खालसा कॉलेज फॉर वीमेन ने शुरू किया पुस्तक सांस्कृति अभियान 
लुधियाना: 5 फरवरी 2020: (कार्तिका सिंह की कवरेज पंजाब स्क्रीन टीम के साथ)::
पंजाब में जगह जगह नज़र आते हैं शराब के ठेके। बड़े बड़े सजावटी शोरूमों जैसे। बहुत ही सजावटी अंदाज़ में खुले हुए यह ठेके जैसे दूर से ही मदिरापान का निमंत्रण दे रहे हों। सरकारों की आमदनी बढ़ती है और कारोबारियों का कारोबार। अगर इस माहौल में कोई डूब रहा है तो वह है पंजाब। पंजाब के लोग। नशे के दरिया में डूबता हुआ पंजाब। कहीं शराब में। कहीं चिट्टे में। फिर भी मन नहीं भरता तो मौत को गले लगा कर खुदकुशियाँ करता पंजाब। अब लोग डॉक्टर या इंजीनियर बनने की बात भूल चुके। अब तो बस उनका निशाना है IELTS करके विदेश पहुंचना। पंजाब युवाओं से खाली हो रहा है। दुकानों पे कर्ज़, मकानों पे कर्ज़। बस कर्ज़ ही कर्ज़। पंजाब की मौजूदा तस्वीर बहुत ही भयानक है। इस भयावह स्थिति को महसूस किया है सिविल लाईनज़ लुधियाना में स्थित खालसा कालेज फार विमेन ने। 
इस के बावजूद कालेज ने न तो किसी सरकार की आलोचना की और न ही किसी और को गालियां निकालीं। बस बहुत ही खामोशी से पुस्तक संस्कृति का एक मूक अभियान शुरू कर दिया। अब उम्मीद भी तो केवल पुस्तकों से ही बची है। इस कालेज की पंजाबी साहित्य सभा ने प्रस्ताव रखा और प्रिंसिपल डा. मुक्ति गिल ने स्वीकृति भी दे दी। साथ ही सहयोग का वायदा भी किया। पंजाबी विभाग की प्रमुख प्रोफेसर परमजीत कौर पासी ने भी नाम सुझाया और प्रोफेसर रुपिंदरजीत कौर ने भी सक्रिय हो कर इस सारे अभियान समर्थन किया। परिणाम यादगारी एवं सुखद रहा। युवा पंजाबी शायर परम निमाणा पांच फरवरी 2020 को कालेज में थे। मकसद था पुस्तक संस्कृति को बढ़ावा देना। शायद पुस्तकों के शब्द दिल और दिमाग को सही रास्ते पर ला सकें।  
कुछ मिनटों के लिए परम् निमाणा ने मीडिया से भेंट की। पत्रकारों के सवालों का जवाब दिया और फिर सीधा मंच पर आ गए जहां उनके साथ रूबरू का कार्यक्रम रखा गया था। हाल में थीं प्रिंसीपल मैम डा. मुक्ति गिल और उनका स्टाफ जिन्होंने औपचारिक जान पहचान करवाई। इसके तुरंत कार्यक्रम का बाकायदा शुभारम्भ हुआ।
युवा गीतकार परम निमाणा कभी अपनी ज़िंदगी की बातें कहानी की तरह बताते हैं और कभी गीत की तरह। कभी तरन्नुम में तो कभी यूं ही सादा किस्म की बातों के अंदाज़ में। वह बताते हैं स्ट्रगल के दौरान बहुत से अपमान भी झेले। एक बार कुछ आयोजकों ने पूरा दिन मंच के पीछे खड़ा करवाए रखा इस वायदे से कि अभी बुलवाते हैं आपको लेकिन कार्यक्रम समाप्त हो गया और उनकी बारी नहीं आई। निराशा शिखर पर थी। लेकिन  परम निमाणा ने सब्र का घूँट भर लिया। इसके कुछ ही दिनों बाद आया सुनहरी अवसर जब उन्हें बहुत बड़ा सम्मान मिला। तब उन्हें समझ आया कि प्रकृति ने उन्हें छोटे कार्यक्रम में अपमानित कराया और वहां उनकी बारी नहीं आई क्यूंकि  यहाँ मेरा नाम किसी बड़े आयोजन के लिए आरक्षित सा था। प्रकृति ने मेरे लिए कुछ बेहतर ही सोच। वह बताते हैं जिसको चाहा वह नहीं मिला तो अनुमान लगाओ मन कितने कठिन दौर से गुज़र रहा होगा। इस दौर को याद करते हुए उन्होंने सतिंदर सरताज साहिब की लोकप्रिय रचना इबादत को बार बार गुनगुनाया:
इबादत कर, इबादत करन ते ही गल्ल बणदी ए!
किसे दी अज्ज  बणदी ए किसे दी कल  बणदी ए!
अब इसे अंक ज्योतिष का कोई हिस्सा समझो या कुछ और लेकिन परम निमाणा की ज़िंदगी में अंक पांच का बहुत दखल है। ज़िंदगी की बहुत सी महत्वपूर्ण घटनाएं किसी न किसी पांच तारीख को ही घटित हुईं। इस लिए अब वह हर महीने कम से कम पांच गीत अवश्य तैयार करते हैं। 
परम कहीं से भी बात शुरू करें और कहीं पर भी समाप्त करें लेकिन हर बात में वह पुस्तकों की बात अवश्य  करते हैं। वह बार बार ज़ोर देते हैं-पुस्तकों से प्रेम करो। पुस्तकें ज़रूर पढ़ो। कालेज की छात्राओं को भी उन्होंने बार बार सलाह दी कि शादी पर दहेज को इन्कार न करना बस इतनी सी शर्त रखना हमें पुस्तकों से भरी अलमारियां साथ दे दो। इसकी वजह बताते हुए वह कहते हैं घरों में पुस्तकों की अलमारियां ही अच्छी लगती हैं न की शराब की बोतलों से भरी अलमारियां। 
आज के गायकों और गीतकारों की बात करने पर वह कहते हैं मुझे किसी को कुछ नहीं कहना। सभी मुझसे बड़े हैं।  बहुत ज़ोर देने पर वह नए गायकों और गीतकारों को इतना ही कहते हैं यार मत करो नशे की बातें, मत करो हथियारों की बातें। पंजाब को बचा लो हम सभी का है यह पंजाब। गीत के मैयार पर चर्चा करते हुए परम निमाणा कहते हैं बस अपने लिखे या गाये गीत को सबसे पहले अपने परिवार में सभी के सामने गा के देख लो। सबने पसंद कर लिया तो बाकी समाज भी आपकी दाद देगा। बार बार उनका संदेश यही रहा-चढ़दी कला में रहो। सकारमात्मक सोचो। ऐसा  ही होगा।  कोई दुःख, कोई संकट आए तो समझो भगवान बहुत जल्द कुछ अच्छा देने वाले हैं। ज़िंदगी में कभी घबराना मत।  होता महसूस होता है तो उस समय प्रकृति ने कुछ और ही सोच रखा होता है कुछ बहुत अच्छा जो हमें तुरंत समझ नहीं आ पता। बस समय का कुछ अंतराल दे दो। अच्छे परिणाम बहुत जल्द सामने आएंगे। 
इस कार्यक्रम में छात्राओं ने सांस रोक कर परम निमाणा को सुना। बिलकुल आमने सामने।  बहुत से सवाल भी किये। कुल मिला कर यह एक यादगारी आयोजन रहा। जल्द मिलेंगे किसी ऐसी ही नई रिपोर्ट के साथ। इस आयोजन की तस्वीरें आप यहाँ क्लिक करके भी देख सकते हैं 

Monday, October 21, 2019

सुप्रसिद्ध कवयित्री डॉ. शकुंतला यादव का देहावसान

Monday:Oct 21, 2019, 9:38 PM
बाईपास सर्जरी के बाद अस्वस्थ थीं-साहित्य जगत में शोक की लहर 
लुधियाना: 21 अक्टूबर 2019: (*डा. राजेंद्र साहिल)::
एससीडी गवर्नमेंट कॉलेज , लुधियाना में लंबे समय तक हिंदी साहित्य का अध्यापन करने वाली और हिंदी की समर्थ एवं सुप्रसिद्ध कवयित्री डॉ. शकुंतला यादव आज अपनी जीवन-यात्रा संपूर्ण कर परम पिता परमात्मा के चरणों में जा बिराजीं। वे 73 वर्ष की थीं। उनका अंतिम संस्कार केवीएम के निकट वाले श्मशान घाट में किया गया। इसी महीने अर्थात 1 अक्तूबर 1946 को जन्मीं डॉ. शकुंतला यादव ने लगभग तीस वर्ष तक लुधियाना के सरकारी कॉलेज में अध्यापन किया और हिंदी के अनेक विद्यार्थियों के जीवन का निर्माण किया। डॉ. शकुंतला यादव ने हिंदी साहित्य को 'सूरज की तलाश', 'शब्दों के नील पंछी' और 'गुब्बारा: रौशनी और छिपकली' जैसे काव्य-संग्रहों समेत कुल छह पुस्तकें प्रदान कीं। वर्ष 2004 में सेवा-मुक्त होने के बाद से ही वह पुष्प विहार कॉलोनी, बाड़ेवाल कैनाल रोड, लुधियाना में निवास कर रहीं थीं और पिछले कुछ वर्षों से हृदय की बाईपास सर्जरी के कारण अस्वस्थ रहतीं थीं। डॉ. यादव अपने पीछे एक पुत्र-पुत्रवधू, दो पौत्र और अनेक शिष्य रूपी संतानें छोड़ गईं हैं। 
*-डा. राजेंद्र साहिल स्वर्गीय डा. शकुंतला यादव के बहुत ही नज़दीकी जानकारों/मित्रों में रहे। 

Thursday, May 11, 2017

मन की तरंगों ने मिलाया डा.शकुंतला यादव और नूतन पटेरिया को

कर्मभूमि के साथ प्रेम बना दोनों की मैत्री का आधार 
लुधियाना: 11 मई 2017: (पंजाब स्क्रीन टीम):: More Pics on Facebook Please
मध्य प्रदेश में रतलाम से सबंधित डाक्टर शकुंतला यादव को ज़िंदगी के रंग और रोज़ी रोटी के चक्कर देश के अलग अलग भागों में घुमाते रहे। कभी गुजरात, कभी राजस्थान, कभी चंडीगढ़ तो कभी पंजाब। इस भागदौड़ के बावजूद उन्होंने वक़्त निकाला और बहुत सी रचनाएं लिखीं। प्रेक्टिकल ज़िंदगी के मंच पर भी सी भूमिकाएं अदा की। बहुत से उतराव चढ़ाव आये। ज़िंदगी के बहुत से रंग नज़र आए जो स्मृति पटल पर छाये और फिर धीरे धीरे कलम के ज़रिये जन जन तक पहुंचने लगे। उन रचनाओं से सम्पर्क का दायरा भी बढ़ा और एक नया मित्र मंडल भी बना। प्रशंसक भी मिले। सम्मान भी हासिल हुए। किताबों के पाठक भी मिले लेकिन इसके साथ ही कुछ और भी घटित हो रहा था। इसकी भनक तक किसी को नहीं थी। मन की तरंगें दूर बैठी दो लेखिकाओं को मिलाने का कोई बहाना बना रही थीं। किसी अज्ञात दुनिया में कुछ स्नेह संबंध विकसित हो रहे थे। मैत्री के संबंध बन रहे थे। यूं लगता था जैसे मध्य प्रदेश से शुरू हुआ लेखन और मैत्री का पावन बंधन पूरे देश को अपने प्रेम बंधन में बांधता हुआ फिर मध्य प्रदेश पहुंच रहा है। डाक्टर शकुंतला यादव और नूतन पटेरिया में अचानक हुई फोन वार्ता से कुछ इसी तरह का अहसास हुआ। इस वार्ता का जरिया पंजाब स्क्रीन का फोन बना यह एक अलग बात है। More Pics on Facebook Please
कहां  मध्य प्रदेश और कहां पंजाब।  तेज़ रफ्तारी के इस युग में भी फासला काफी लम्बा है। गर्दिश के दिन बहुत कुछ भुला देते हैं। ज़िंदगी के पथ पर उड़ती हुई वक़्त की धुल बहुत से चेहरों और दृश्यों को धुंधला कर देती है। लेकिन जीवन के संघर्ष में प्रकृति का विज्ञान चुपचाप अपना काम करता रहता है। उस विज्ञान के सामने कई बार कोई तर्क भी काम नहीं करता। जिस जिस भूमि की माटी से हमारा सबंध रहा हो वो कभी कभी उभर कर सामने आता है। जिस जिस जगह का पानी पिया हो वो अपना असर छोड़ता है। जहा जहां सांस ली हो वो हवा अपना असर दिखाती है। मन की तरंगें अपने जैसे लोगों की तलाश कर लेती हैं। कभी कभी यह सब इतना अचानक होता है कि इंसान हैरान रह जाता है। More Pics on Facebook Please
लुधियाना की वरिष्ठ लेखिका और शिक्षिका डाक्टर शकुंतला यादव और दमोह में रहने वाली लेखिका और शिक्षिका नूतन पटेरिया के दरम्यान हुई फोन वार्ता कुछ इसी तरह का मिलन था। एक अलौकिक सा अहसास। दोनों ने एक दुसरे से बात करते हुए अपनी प्रसन्नता का इज़हार किया। एक दुसरे को अपने अपने शहर आने का आमंत्रण भी दिया। इस पर विस्तृत चर्चा भविष्य में फिर कभी फिलहाल आप पढ़िए-हैपी मदर्स डे..... पर नूतन पटेरिया की प्रोफ़ाइल पर प्रेषित एक रचना: (शायर का नाम पता चलते ही यहाँ जोड़ दिया जायेगा।)
हैप्पी मदर्स डे________
माँ

माँ कबीर की साखी जैसी

तुलसी की चौपाई-सी
माँ मीरा की पदावली-सी
माँ है ललित रुबाई-सी

माँ वेदों की मूल चेतना
माँ गीता की वाणी-सी
माँ त्रिपिटिक के सिद्ध सुक्त-सी
लोकोक्तर कल्याणी-सी
माँ द्वारे की तुलसी जैसी
माँ बरगद की छाया-सी
माँ कविता की सहज वेदना
महाकाव्य की काया-सी
माँ अषाढ़ की पहली वर्षा
सावन की पुरवाई-सी
माँ बसन्त की सुरभि सरीखी
बगिया की अमराई-सी
माँ यमुना की स्याम लहर-सी
रेवा की गहराई-सी
माँ गंगा की निर्मल धारा
गोमुख की ऊँचाई-सी
माँ ममता का मानसरोवर
हिमगिरि-सा विश्वास है
माँ श्रृद्धा की आदि शक्ति-सी
कावा है कैलाश है
माँ धरती की हरी दूब-सी
माँ केशर की क्यारी है
पूरी सृष्टि निछावर जिस पर
माँ की छवि ही न्यारी है
माँ धरती के धैर्य सरीखी
माँ ममता की खान है
माँ की उपमा केवल है
माँ सचमुच भगवान है।...😊😊   

















Thursday, October 27, 2016

लेखकों ने सर्वसम्मति से चुनाव करके पेश की मिसाल


ताजपोशी होगी 6 नवम्बर को पंजाबी भवन में 
लुधियाना: 26 अक्टूबर 2016: (पंजाब स्क्रीन ब्यूरो):
अब जबकि कुर्सी का किस्सा आम होता जा रहा है और इस कुर्सी के लिए गुरुद्धारों मन्दिरों में की कमेटियों में तनातनी की हालत बन जाती है उस नाज़ुक दौर में एक शानदार मिसाल कायम की है लेखकों ने। आदर्श लिखने और प्रचारने के सर्च सर्च लेखकों ने खुद भी आदर्श बन कर दिखाया। केंद्रीय पंजाबी लेखक सभा की 6 नवम्बर को होने वाले चुनाव के लिए अधिकतर पदों का फैसला चुनाव से पूर्व ही सर्वसम्मति से हो गया है। 
संगठन की तरफ से जारी एक प्रेस विज्ञप्ति के मुताबिक केंद्रीय पंजाबी लेखक सभा के 6 नवंबर को होने वाले चुनाव के संबंध में नामांकन वापस लेने के बाद कई पदों पर सर्वसम्मति से चुनाव संपन्न हो गए। इसके बाद डॉ. सरबजीत सिंह को प्रधान, सुशील दुसांझ को जनरल सेक्रेटरी और डॉ. जोगा सिंह को सीनियर मीत प्रधान घोषित कर दिया गया। 
प्रधानगी पद से अतरजीत, प्रो. सुरजीत जज, सुशील दुसांझ, डॉ. कर्मजीत सिंह दर्शन बुट्टर ने अपने नामांकन वापस ले लिए। इसके बाद पंजाब यूनिवर्सिटी चंडीगढ़ के डॉ. सरबजीत सिंह को सर्वसम्मति से प्रधान घोषित कर दिया गया। जनरल सेक्रेटरी के पद से डॉ. सरबजीत सिंह, डॉ. कर्मजीत सिंह मक्खन कोहाड़ ने अपने कागज वापस ले लिए। जिसके चलते सुशील दुसांझ को जनरल सेक्रेटरी की जिम्मेदारी सौंप दी गई। सीनियर मीत प्रधान के लिए सुलक्खन सरहद्दी, डॉ. गुरमेल सिंह मक्खन कोहाड़ भी मैदान में थे। लेकिन इन तीनों ने अपने नामांकन वापस ले लिए। जिसके चलते पंजाबी यूनिवर्सिटी पटियाला के डॉ. जोगा सिंह को सीनियर मीत प्रधान के तौर पर घोषित कर दिया गया। इसी तरह सूबा सुरिंदर कौर खरल, सुरिंदरप्रीत घणियां, जसपाल मानखेड़ा, जसबीर झज दीप दपिंदर सिंह को मीत प्रधान बना दिया गयाअब केवल सेक्रेटरी के 3 पदों के लिए 6 नवंबर को शाम 3 से 6 बजे तक चुनाव होगा। कर्म सिंह वकील, डॉ. हरविंदर सिंह सिरसा, वरगिस सलामत दीप जगदीप इस पदों के उम्मीदवार हैं। अकेली महिला लेखक होने के कारण अरतिंदर कौर संधू को सेक्रेटरी के तौर पर चुन लिया गया। मीत प्रधान के तौर पर अमरजीत कौर हिरदे, डॉ. सुरजीत बराड़, सुखविंदर आही, प्रो. हरजिंदर सिंह अटवाल, जसपाल मानखेड़ा, तरसेम, तरलोचन झांडे, मनजीत कौर मीत डॉ. राम मूर्ति ने अपने नामांकन वापस ले लिए। सेक्रेटरी पद से अश्वनी बागडिय़ां, सुरिंदर कौर, सूबा सुरिंदर कौर खरल, सरदारा सिंह चीमा, डॉ. हरविंदर सिंह, तरलोचन झांडे, दीप देविंदर सिंह मनजीत कौर ने अपनी नामजदगी वापस ले ली है। चुनाव अधिकारी डॉ. गुलजार सिंह पंधेर ने बताया कि तीनों बड़े पदों पर सर्वसम्मति से चुनाव होने की तरह तरफ प्रशंसा हो रही है 

Friday, July 22, 2016

तनाव को खत्म करे न क़ि अपने जीवन को

Thu, Jul 21, 2016 at 12:48 PM
तनाव से बचने के प्रेक्टिकल उपाय
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तेजी  से  बदल रही जीवन शैली  में  एक  परफेक्ट  चिंतामुक्त  जीवन  की  कल्पना  करना  मुश्किल  है। हम सभी का जीवन  उतार  चढाव  से  भरा  है। कभी  तो  हम अपनी  सफलता  से  बहुत  खुश  होते  हैं और  कभी  असफल होने  पर  हम  बहुत  दुखी  हो  जाते  हैं। जीवन  में  कभी-कभार  निराश  होना तो एक  आम  बात  है  लेकिन  जब ये  निराशा  लम्बे  समय तक  हमारे  मानसिक  स्वास्थय  को प्रभावित करती  है तो  यही  निराशा  तनाव  या डिप्रेशन  का  रूप  ले लेती  है। ऐसे मे जीवन  बड़ा  नीरस  लगने लगता  है। लाइफ  होपलेस  सी लगने लग जाती  है। पॉजिटिव  बातें  नेगेटिव  लगने  लग जाती  हैं। 
डिप्रेशन हमारी जिंदगी मे जहर घोलने वाला मन का भाव है। बहुत से लोग तनाव को सही डील नहीं कर पाते और भावुक हो जाते हैं। हमारी चिंता या तनाव हमारी आदत में शामिल हो जाती है तो ये हमारे लिए घातक हो सकती है। आज हमारे समाज में डिप्रेशन एक बहुत बड़ी समस्या के रूप में सामने आ रहा है। कई बार यह इतना घातक रूप ले लेता है क़ि डिप्रेशन के कारण निराश हो कर लोग आत्महत्या जैसी बड़ी गलती भी कर बैठते है। अतः हम सब को डिप्रेशन के प्रति जागरूक होना चाहिए। 
डिप्रेशन के कई कारण हो सकते हैं, जो व्यक्ति के ऊपर निर्भर करता है कुछ सामान्य  संकेत होते है जिससे हम अपने अंदर जमा हो रही घुटन को समझ सकते है।                                                        
डिप्रेशन के लक्षण

*        आप हेल्पलेस या होपलेस फील करते हैं
*        आप चाहे जितनी भी कोशिश कर ले नकारात्मक विचारों को रोक नहीं पाते हैं
*        आने वाली समस्या के लिए हमारी जररूरत से ज्यादा चिंता
*        बीमार हो जाने पर किसी भयानक बीमारी की कलपना करना
*        पहले से कही अधिक इर्रिटेट या आक्रामक हो जाना
*        बात बात पर क्रोधित होना या भावुक हो जाना
*        ऐसा फील होना की जिंदगी जीने लायक नहीं है
*        नींद में कमी होना ,अकेले रहना पसंद करना ,सोशल एक्टिविटी से दूर रहना|
*       खुद को अक्षम महसूस करना तथा जीवन को खत्म करने के विचार आना अदि डिप्रेशन के लक्षण          हैं जिनसे हम समझ सकते हैं की हम ड्प्रेशन  के  शिकार होने लगे हैं।



अगर कुछ ऐसे लक्षण आपको दिखे तो तुरंत किसी एक्सपर्ट या मनोवैज्ञानिक की मदद अवश्य ले। 
यूथ डिप्रेशन
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युवाओं में तेजी से बढ़ रहा तनाव चिंता का विषय बन गया है। पढाई का बढ़ता प्रेशर, हाई प्रोफाइल लाइफस्टाइल का बढ़ता क्रेज, कम समय में ही जीवन में सब कुछ पाने की चाहत, प्यार में विफलता , आर्थिक तंगी, बेरोजगारी, पारिवारिक कलह, खुद को बेस्ट साबित करने की होड़ अदि कुछ ऐसी वजहें हैं जो युवाओं में बढ़ रहे डिप्रेशन के कारण  रूप में सामने आ रही हैं|इसके साथ ही माता-पिता द्वारा बच्चों पर पढाई के लिए डाला गया अत्यधिक प्रेशर ,अन्य बच्चों से तुलना एवम सबसे अव्वल  आने का दबाव भी हमारे बच्चों को डिप्रेस्ड कर रहा है।
युवाओं में तेजी से बढ़ रहा तनाव चिंता का विषय बन गया है  पढाई का बढ़ता प्रेशर ,हाई प्रोफाइल लाइफस्टाइल  का बढ़ता क्रेज, कम समय में ही जीवन में सब कुछ पाने की चाहत, प्यार में विफलता , आर्थिक तंगी, बेरोजगारी, पारिवारिक कलह,खुद को बेस्ट साबित करने की होड़ अदि कुछ ऐसी वजहें हैं जो युवाओं में बढ़ रहे डिप्रेशन के कारण रूप में सामने आ रही हैं|इसके साथ ही माता-पिता द्वारा बच्चों पर पढाई के लिए डाला गया अत्यधिक प्रेशर, अन्य बच्चों से तुलना एवम सबसे अव्वल  आने का दबाव भी हमारे बच्चों को डिप्रेस्ड कर रहा है।
डिप्रेशन और आत्महत्या
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दिन प्रतिदिन बढ़ रही आत्महत्या की घटनाए हमारे समाज के लिए चिंता का विषय बनती जा रही है |आखिर क्यों परीक्षा में फेल हुआ छात्र, कर्ज म डूबा हुआ किसान, आर्थिक तंगी से परेशान एक व्यक्ति , प्यार में असफल युवक, पारिवारिक कलह से दुखी इंसान या फिर पति-पत्नी के कलह से परेशान इंसान आत्महत्या के लिए मजबूर हो रहे हैं। आखिर क्यों उन्हें अपनी समस्या का समाधान सिर्फ मौत ही दिखाई दे रहा है। इन सब घटनाओं का एक बहुत बड़ा कारण डिप्रेशन है। व्यक्ति का तनाव जब उसके ऊपर हावी हो जाता है और जब वह उसे हैंडल नहीं कर पाता तो जीवन को खत्म करना ही उसे अपनी समस्या का हल दिखाई पड़ता है |
यदि आपको लगता है कि आपका कोई फ्रेंड या रिश्तेदार आत्महत्या के बारे में  सोच रहा  है तो तुरंत ही उसे  प्रोफेशनल की हेल्प दिलाए। आत्महत्या के विचार और फीलिंग्स के बारे में खुल कर बात करना किसी की जान बचा सकता है। यदि कोई आपसे आत्महत्या करने जैसी बात करता है तो सम्भवतः वो डिप्रेशन से ग्रसित है और वो सिर्फ आप को अपनी बात नही बता रहा है बल्कि वो मदद के लिए चिल्ला रहा है और आपको उसकी मदद जरूर करनी चाहिए। यदि आप खुद को  ऐसा करते देख रहे है तो बिना देरी किए आपको मनोविज्ञानिक या एक्सपर्ट  की मदद अवश्य ले।  इस बात को समझें क़ि ईश्वर ने हमें जीवन दिया है तो मौत का अधिकार भी उसी को है। इसके साथ खिलवाड़ न करे अपने तनाव को खत्म करे न क़ि अपने जीवन को। 
तनाव से बचने के उपाय
डिप्रेशन एक बहुत ही कॉमन  इलनेस है। इसका उपचार पूर्णतः संभव है, इसे छिपाना  इसे बढ़ावा देने जैसा है। अपने घर परिवार में इसे डिसकस करिये। इसके साथ ही साथ  मनोवैज्ञानिक मदद लेना भी आपके मानसिक तनाव को काम करने में काफी हद तक मददगार साबित होगा।
इसके साथ ही साथ आपकी खुद की कोशिश भी आपके तनाव को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। अपने अंदर सकारात्मक सोच लाए, नकारात्मक सोच वालो से दुरी बना कर रखे, अच्छी चीजे पढ़े, अपने आप को बिजी रखे, खुली हवा में घूमे, लगातार काम करने से बचें, अधिक से अधिक वक़्त लोगो के साथ बिताए, खुद को खुश रखे, रोज व्यायाम करे, योग, मैडिटेशन. रिलैक्सेशन तकनीक का प्रयोग करके  हम काफी हद तक अपने तनाव को कम कर सकते हैं। साथ ही साथ इस बात को भी समझे की जब तक जीवन में असफलता नहीं होगी तब तक सफलता का मोल भी नहीं समझ आएगा, इसलिए असफलता को हर एक चीज का अंत मत समझिए। 
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Friday, April 01, 2016

चाचा ज्ञान सिंह-जिन्हें सियासत की बदलती हवा भी नहीं हरा पाती

कामागाटा मारू भी गई प्रो. गुरभजन गिल की टीम 
लुधियाना:: 1 अप्रैल 2016: (पंजाब स्क्रीन ब्यूरो):
गत दिनों जाने माने शायर प्रोफेसर गुरभजन सिंह गिल कुछ ख़ास साथियों के साथ कोलकाता गए। वहां जाने वाले लोग बहुत कुछ देखते हैं लेकिन बहुत कुछ ऐसा छोड़ भी देते हैं जो सभी को याद रखना चाहिए। जाने अन्जाने होती ऐसी भूलों  प्रोफेसर  गिल, के के  अन्य लोगों की टीम ने। प्रोफेसर गुरभजन सिंह गिल और  अपनी टीम के साथ वहां कामागाटा मारू स्मारक पर भी गए। एक वह स्मारक जिसकी जानकारी हर देश   वासी को होनी चाहिए थी। एक वह स्थान जो देश के स्वतंत्रता संग्राम का एक तीर्थ  है। 
लगातार 10 बार विधायक बन चुके सरदार ज्ञान सिंह मैदान में 
आप हैं सरदार ज्ञान सिंह ' सोहनपाल '.  उम्र : 91 वर्ष.  लगातार 10 बार विधायक हैं.  11वीं बार की तैयारी है.  चौंकिएगा मत,  पंजाब से नहीं बंगाल से.  पश्चिम बंगाल की खड़गपुर सदर सीट से जहां पांच हजार सिक्ख भी नहीं हैं.  पूरा क्षेत्र इनको चाचाजी कहता है.  1969 से लगातार विधायक बनते आ रहे हैं   चाचाजी हर चुनाव जीत जाते हैं.   पिछला चुनाव लगभग 32 हजार वोट से जीतें.  इस बार नहीं लड़ना चाहते थें लेकिन जनता और समर्थकों की जिद के आगे झुक गए.  आप बंगाल विधानसभा के स्पीकर, जेल, परिवहन, संसदीय कार्य मंत्री भी रह चुके हैं.  इतना लंबा राजनीतिक जीवन होने के बावजूद एक रूपये की हेराफेरी का दाग नहीं। 
कहते हैं न असफलता वास्तव में सफलता की सीढ़ी होती है। यह भी कहा जाता है कि मन के हारे हार है--मन  के जीते जीत।  सरदार सोहनपाल की निरंतर जीत   ही शुरू हुआ था। कांग्रेस के विधायक ज्ञान सिंह सोहन पाल पहली बार 1962 में चुनाव मैदान में उतरे थे लेकिन उन्हें पराजय का स्वाद चखना पड़ा था।  यह पराजय ही उनकी जीत का प्रेरणा स्रोत गई। उन्होंने  सीखे, इसे हिम्मत बनाया और फिर  डटे। सन 1969 में उन्होंने पहली बार हासिल की। अब 52 सालों के बाद और दस बार जीत हासिल करने के बाद सोहनपाल अभी भी एक और चुनावी जीत हासिल करने के लिए तैयार खड़े हैं। वो नहीं चाहते थे लेकिन लोगों ने उनकी एक न सुनी और उनको फिर मैदान में उतार दिया। अपने प्रशंसकों के बीच ‘चाचा’ के नाम से जाने जाने वाले 91 वर्षीय पाल इस विधानसभा चुनाव में सबसे बुजुर्ग प्रत्याशी हैं। वह आईआईटी शहर खड़गपुर से चुनावी मैदान में उतरा गया है जहां से उन्होंने लगातार कई बार जीत हासिल की है।  हमारे जानेमाने लेखक प्रोफेसर गुरभजन सिंह गिल उन्हें मिल कर आये। यह हम सभी के लिए गौरव की बात है। काश हमारे भी यहाँ ऐसे नेता  जिन को खुद के कामों पर वोट मिले और सियासत की हवा उन्हें हरा न सके।