?इन विचारों से मतभेद आपके भी हो सकते हैं. इन तथ्यों पर शक आपको भी हो सकता है लेकिन इनकी प्रस्तुति में जो पीड़ा झलकती है उसे नजर अंदाज़ करना आपके बस में भी न होगा. देशप्रेम में रंगने के बाद ही ऐसी बेबाकी आती है. अप इन विचारों को पढ़ कर क्या महसूस करते हैं अवश्य लिखिए.रवि वर्मा ने यह लेख पंजाब स्क्रीन के लिए भेजा है जिसे हम ज्यों का त्यों प्रकाशित कर रहे हैं.-रेक्टर कथूरिया
हिंदी का दुर्भाग्य या कहें भारत का दुर्भाग्य // रवि वर्मा भारत की जो तथाकथित आज़ादी है वो एक agreement के तहत/अन्तर्गत है, वोagreement है Transfer of power agreement (सत्ता के हस्तांतरण की संधि)| भारत में जो कुछ भी आप देख रहे हैं वो सब इसी agreement के शर्तों के हिसाब से चल रहाहै | और आज अगर ब्रिटेन इस संधि को नकार दे तो भारत फिर से गुलाम हो जायेगा, ये मजाक की बात मैं नहीं कर रहा हूँ, इस मसले पर बड़े बड़े वकील चुप हो जाते हैं और कहते हैं की हो सकता है | खैर, भारत का दुर्भाग्य ये रहा कि भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु बन गए या कहें अंग्रेजों द्वारा स्थापित किये गए प्रधानमंत्री थे वो | मैं आप लोगों को एक सच्ची घटना बताता हूँ .....ब्रिटेन की संसद जिसे House of Commons कहा जाता है, वहां भारत की आज़ादी-स्वतंत्रता को लेकर जब विचार विमर्श हो रहा था तो एक मेम्बर ने कहा कि नेहरु को क्यों चुना जा रहा है प्रधानमंत्री के तौर पर, तो दुसरे ने कहा कि नेहरु देखने में तो भारतीय है लेकिन रहन सहन और सोच में बिलकुल हम जैसा है | इस वाकये का सारा दस्तावेज इंग्लैंड के संसद House of Commons की library में उपलब्ध है | और येजो अंग्रेजी है वो उसी Transfer of power agreement (सत्ता के हस्तांतरण की संधि) के तहत हमारे ऊपर थोपी गयी | अंग्रेजी हटाना और हिंदी को स्थापित करना भारत में मुश्किल लग रहा है | मैं यहाँ कुछ तथ्य आप सब के सामने रखता हूँ कि क्यों इस देश से अंग्रेजी हटाना मुश्किल है |
भारत में अंग्रेजी का इतिहास
भारत में जहाँगीर के समय पहली बार अँगरेज़ भारत में आये और व्यापार के नाम पर उन्होंने जो कुछ किया वो सब को मालूम है | उस समय भारत में 565 रजवाड़े हुआ करते थे और अंग्रेजों ने उन सभी राज्यों से अंग्रेजी में agreement कर के उस सभी का राज्य एक एक कर के हड़प लिया | क्योंकि अँगरेज़ जो agreement करते थे वो अंग्रेजी में होता था और सभी agreement के अंत में एक ऐसी बात होती थी जिसकी वजह से सब के सब राज्य अंग्रेजो के हो गए (वो agreement के बारे में मैं यहाँ कुछ विशेष नहीं लिखूंगा) | हमारे यहाँ जो राजा थे उन लोगों को अंग्रेजी नहीं आती थी, जो क़ि स्वाभाविक था, इस लिए वो इन संधियों के मकडजाल में फंस गए लेकिन आजादी के बाद वाले नेताओं को तो अच्छी अंग्रेजी आती थी वो कैसे फंस गए ? जब हमें आज़ादी मिली तो हमारे देश में सब कुछ बदल जाना चाहिए था लेकिन सत्ता जिन लोगों के हाथ में आयी वो भारत को इंग्लैंड की तरह बनाना चाहते थे | आज़ादी की लड़ाई के समय सभी दौर के क्रांतिकारियों का एक विचार था कि भारत अंग्रेज़ और अंग्रेजी दोनों से आज़ाद हो और राष्ट्रभाषा के रूप में हिंदी स्थापित हो | जून 1946 में महात्मा गाँधी ने कहा था कि आज़ादी मिलने के 6 महीने के बाद पुरे देश की भाषा हिंदी हो जाएगी और सरकार के सारे काम काज की भाषा हिंदी हो जाएगी | संसद और विधानसभाओं की भाषा हिंदी हो जाएगी | और गाँधी जी ने घोषणा कर दी थी कि जो संसद और विधानसभाओं में हिंदी में बात नहीं करेगा तो सबसे पहला आदमी मैं होऊंगा जो उसके खिलाफ आन्दोलन करेगा और उनको जेल भेजवाऊंगा | भारत का कोई सांसद या विधायक अंग्रेजी में बात करे उस से बड़ी शर्म की बात क्या हो सकती है | लेकिन आज़ादी के बाद सत्ता गाँधी जी के परम शिष्यों के हाथ में आयी तो वो बिलकुल उलटी बात करने लगे | वो कहने लगे कि भारत में अंग्रेजी के बिना कोई काम नहीं हो सकता है| भारत में विज्ञान और तकनिकी को आगे बढ़ाना है तो अंग्रेजी के बिना कुछ नहीं हो सकता, भारत का विकास अंग्रेजी के बिना नहीं हो सकता, भारत को विश्व के मानचित्र पर बिना अंग्रेजी के नहीं लाया जा सकता | भारत को यूरोप और अमेरिका बिना अंग्रेजी के नहीं बनाया जा सकता | अंग्रेजी विश्व की भाषा है आदि आदि | गाँधी जी का सपना गाँधी जी के जाने के बाद वहीं ख़तम हो गया | भारत में आज हर कहीं अंग्रेजी का बोलबाला है | भारत की शासन व्यवस्था अंग्रेजी में चलती है, न्यायालयों की भाषा अंग्रेजी है, दवा अंग्रेजी में होती है, डॉक्टर पुर्जा अंग्रेजी में लिखते हैं, हमारे शीर्ष वैज्ञानिक संस्थानों में अंग्रेजी है, कृषि शोध संस्थानों में अंग्रेजी है | भारत में ऊपर से ले के नीचे के स्तर पर सिर्फ अंग्रेजी, अंग्रेजी और अंग्रेजी है |
भारत का संविधान (अंग्रेजी के सम्बन्ध में )
26 जनवरी 1950 को जो संविधान इस देश में लागू हुआ उसका एक अनुच्छेद है343 | इस अनुच्छेद 343 में लिखा गया है कि अगले 15 वर्षों तक अंग्रेजी इस देश में संघ (Union) सरकार की भाषा रहेगी और राज्य सरकारें चाहे तो ऐसा कर सकती हैं | 15 वर्ष पूरा होने पर यानि 1965 से अंग्रेजी को हटाने की बात की जाएगी | एक संसदीय समिति बनाई जाएगी जो अपना विचार देगी अंग्रेजी के बारे में और फिर राष्ट्रपति के अनुशंसा के बाद एक विधेयक बनेगा और फिर इस देश से अंग्रेजी को हटा दिया जायेगा और उसके स्थान पर हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओँ को स्थापित किया जायेगा | ये जो बात है वो अनुच्छेद 343 के पहले पैरा ग्राफ में हैं लेकिन उसी अनुच्छेद के तीसरे पैरा ग्राफ में लिखा गया है कि भारत के विभिन्न राज्यों में से किसी ने भी हिंदी का विरोध किया तो फिर अंग्रेजी को नहीं हटाया जायेगा | फिर उसके आगे अनुच्छेद 348 में लिखा गया है कि भारत में भले ही आम बोलचाल कि भाषा हिंदी रहे लेकिन Supreme Court में, High Court में अंग्रेजी ही प्रमाणिक भाषा रहेगी |
1955 में एक समिति बनाई गयी सरकार द्वारा, उस समिति ने अपनी रिपोर्ट में कह दिया कि देश में अंग्रेजी हटाने का अभी अनुकूल समय नहीं है | 1963 में संसद में हिंदी को लेकर बहस हुई कि अंग्रेजी हटाया जाये और हिंदी लाया जाये | 1965 में 15 वर्ष पुरे होने पर राष्ट्रभाषा हिंदी बनाने की बात हुई तो दक्षिण में दंगे शुरू हो गए और यहाँ मैं बताता चलूँ कि भारत सरकार के ख़ुफ़िया विभाग कि ये रिपोर्ट है कि वो दंगे प्रायोजित थे सरकार की तरफ से | ये उन नेताओं द्वारा करवाया गया था जो नहीं चाहते थे कि अंग्रेजी को हटाया जाये | (ये ठीक वैसा ही था जैसे वन्दे मातरमके सवाल पर मुसलमानों को गलत सन्देश देकर भड़काया गया था) तो यहाँ केंद्र सरकार को मौका मिल गया और उसने कहना शुरू किया कि हिंदी की वजह से दंगे हो रहे हैं तो अंग्रेजी को नहीं हटाया जायेगा | इस बात को लेकर 1967 में एक विधेयक पास कर दिया गया | इतना ही नहीं 1968 में उस विधेयक में एक संसोधन कर दिया गया जिसमे कहा गया कि भारत के जितने भी राज्य हैं उनमे से एक भी राज्य अगर अंग्रेजी का समर्थन करेगा तो भारत में अंग्रेजी ही लागू रहेगी, और आपकी जानकारी के लिए मैं यहाँ बता दूँ क़ि भारत में एक राज्य है नागालैंड वहां अंग्रेजी को राजकीय भाषा घोषित कर दिया गया है | अब ये बिलकुल असंभव है कि हम अंग्रेजी को इस देश से हटा सकें | मैं जनता हूँ कि ये व्यवस्था परिवर्तन हम लोग नहीं कर सकते हैं | हम अपनी भारतीय भाषाओं का सम्मान करने भी लगे तो क्या फर्क पड़ता है अंग्रेजी तो हर हाल में रहेगी | व्यवस्था बदलनी है तो कम से कम 400 सांसद चाहिए जो कि एक विधेयक लाये और इस कानून को उलट दे और मुझे ये संभव नहीं लग रहा है | ये जो गन्दी राजनीति इस देश में आप देख रहे हैं वो अभीगन्दी नहीं हुई है ये अंग्रेजों से अनुवांशिक तौर पर हमारे नेताओं ने ग्रहण किया थाऔर वो आज भी चल रहा है |
मौलिकता आती है मातृभाषा से आप खुद के ऊपर प्रयोग कर के देखिएगा | अंग्रेजी या विदेशी भाषा में हम केवल Copy Pasting कर सकते है | और मातृभाषा छोड़ के हम अंग्रेजी के पीछे पड़े हैं तो मैं आपको बता दूँ क़ि अंग्रेजी में हमें छः गुना ज्यादा मेहनत लगता है | हम लोगों ने बचपन में पहाडा याद किया था गणित में आपने भी किया होगा और मुझे विश्वास है क़ि वो आपको आज भी याद होगा लेकिन हमारे बच्चे क्या पढ़ रहे हैं आज भारत में वो पहाडा नहीं टेबल याद कर रहे हैं | और मैं आपको ये बता दूँ क़ि इनका जो टेबल है वो कभी भी इनके लिए फायदेमंद नहीं हो सकता | जो पढाई हम B.Tech या MBBS की करते हैं अगर वो हमारी मातृभाषा में हो जाये तो हमारे यहाँ विद्यार्थियों को छः गुना कम समय लगेगा मतलब M .Tech तक की पढाई हम 4 साल तक पूरा कर लेंगे और वैसे ही MBBS में भी हमें आधा वक़्त लगेगा | इस विदेशी भाषा से हम हमेशा पिछलग्गू ही बन के रहेंगे | दुनिया का इतिहास उठा के आप देख लीजिये, वही देश दुनिया में विकसित हैं जिन्होंने अपनी मातृभाषा का उपयोग अपने पढाई लिखाई में किया |
भारत में जहाँगीर के समय पहली बार अँगरेज़ भारत में आये और व्यापार के नाम पर उन्होंने जो कुछ किया वो सब को मालूम है | उस समय भारत में 565 रजवाड़े हुआ करते थे और अंग्रेजों ने उन सभी राज्यों से अंग्रेजी में agreement कर के उस सभी का राज्य एक एक कर के हड़प लिया | क्योंकि अँगरेज़ जो agreement करते थे वो अंग्रेजी में होता था और सभी agreement के अंत में एक ऐसी बात होती थी जिसकी वजह से सब के सब राज्य अंग्रेजो के हो गए (वो agreement के बारे में मैं यहाँ कुछ विशेष नहीं लिखूंगा) | हमारे यहाँ जो राजा थे उन लोगों को अंग्रेजी नहीं आती थी, जो क़ि स्वाभाविक था, इस लिए वो इन संधियों के मकडजाल में फंस गए लेकिन आजादी के बाद वाले नेताओं को तो अच्छी अंग्रेजी आती थी वो कैसे फंस गए ? जब हमें आज़ादी मिली तो हमारे देश में सब कुछ बदल जाना चाहिए था लेकिन सत्ता जिन लोगों के हाथ में आयी वो भारत को इंग्लैंड की तरह बनाना चाहते थे | आज़ादी की लड़ाई के समय सभी दौर के क्रांतिकारियों का एक विचार था कि भारत अंग्रेज़ और अंग्रेजी दोनों से आज़ाद हो और राष्ट्रभाषा के रूप में हिंदी स्थापित हो | जून 1946 में महात्मा गाँधी ने कहा था कि आज़ादी मिलने के 6 महीने के बाद पुरे देश की भाषा हिंदी हो जाएगी और सरकार के सारे काम काज की भाषा हिंदी हो जाएगी | संसद और विधानसभाओं की भाषा हिंदी हो जाएगी | और गाँधी जी ने घोषणा कर दी थी कि जो संसद और विधानसभाओं में हिंदी में बात नहीं करेगा तो सबसे पहला आदमी मैं होऊंगा जो उसके खिलाफ आन्दोलन करेगा और उनको जेल भेजवाऊंगा | भारत का कोई सांसद या विधायक अंग्रेजी में बात करे उस से बड़ी शर्म की बात क्या हो सकती है | लेकिन आज़ादी के बाद सत्ता गाँधी जी के परम शिष्यों के हाथ में आयी तो वो बिलकुल उलटी बात करने लगे | वो कहने लगे कि भारत में अंग्रेजी के बिना कोई काम नहीं हो सकता है| भारत में विज्ञान और तकनिकी को आगे बढ़ाना है तो अंग्रेजी के बिना कुछ नहीं हो सकता, भारत का विकास अंग्रेजी के बिना नहीं हो सकता, भारत को विश्व के मानचित्र पर बिना अंग्रेजी के नहीं लाया जा सकता | भारत को यूरोप और अमेरिका बिना अंग्रेजी के नहीं बनाया जा सकता | अंग्रेजी विश्व की भाषा है आदि आदि | गाँधी जी का सपना गाँधी जी के जाने के बाद वहीं ख़तम हो गया | भारत में आज हर कहीं अंग्रेजी का बोलबाला है | भारत की शासन व्यवस्था अंग्रेजी में चलती है, न्यायालयों की भाषा अंग्रेजी है, दवा अंग्रेजी में होती है, डॉक्टर पुर्जा अंग्रेजी में लिखते हैं, हमारे शीर्ष वैज्ञानिक संस्थानों में अंग्रेजी है, कृषि शोध संस्थानों में अंग्रेजी है | भारत में ऊपर से ले के नीचे के स्तर पर सिर्फ अंग्रेजी, अंग्रेजी और अंग्रेजी है |
भारत का संविधान (अंग्रेजी के सम्बन्ध में )
26 जनवरी 1950 को जो संविधान इस देश में लागू हुआ उसका एक अनुच्छेद है343 | इस अनुच्छेद 343 में लिखा गया है कि अगले 15 वर्षों तक अंग्रेजी इस देश में संघ (Union) सरकार की भाषा रहेगी और राज्य सरकारें चाहे तो ऐसा कर सकती हैं | 15 वर्ष पूरा होने पर यानि 1965 से अंग्रेजी को हटाने की बात की जाएगी | एक संसदीय समिति बनाई जाएगी जो अपना विचार देगी अंग्रेजी के बारे में और फिर राष्ट्रपति के अनुशंसा के बाद एक विधेयक बनेगा और फिर इस देश से अंग्रेजी को हटा दिया जायेगा और उसके स्थान पर हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओँ को स्थापित किया जायेगा | ये जो बात है वो अनुच्छेद 343 के पहले पैरा ग्राफ में हैं लेकिन उसी अनुच्छेद के तीसरे पैरा ग्राफ में लिखा गया है कि भारत के विभिन्न राज्यों में से किसी ने भी हिंदी का विरोध किया तो फिर अंग्रेजी को नहीं हटाया जायेगा | फिर उसके आगे अनुच्छेद 348 में लिखा गया है कि भारत में भले ही आम बोलचाल कि भाषा हिंदी रहे लेकिन Supreme Court में, High Court में अंग्रेजी ही प्रमाणिक भाषा रहेगी |
1955 में एक समिति बनाई गयी सरकार द्वारा, उस समिति ने अपनी रिपोर्ट में कह दिया कि देश में अंग्रेजी हटाने का अभी अनुकूल समय नहीं है | 1963 में संसद में हिंदी को लेकर बहस हुई कि अंग्रेजी हटाया जाये और हिंदी लाया जाये | 1965 में 15 वर्ष पुरे होने पर राष्ट्रभाषा हिंदी बनाने की बात हुई तो दक्षिण में दंगे शुरू हो गए और यहाँ मैं बताता चलूँ कि भारत सरकार के ख़ुफ़िया विभाग कि ये रिपोर्ट है कि वो दंगे प्रायोजित थे सरकार की तरफ से | ये उन नेताओं द्वारा करवाया गया था जो नहीं चाहते थे कि अंग्रेजी को हटाया जाये | (ये ठीक वैसा ही था जैसे वन्दे मातरमके सवाल पर मुसलमानों को गलत सन्देश देकर भड़काया गया था) तो यहाँ केंद्र सरकार को मौका मिल गया और उसने कहना शुरू किया कि हिंदी की वजह से दंगे हो रहे हैं तो अंग्रेजी को नहीं हटाया जायेगा | इस बात को लेकर 1967 में एक विधेयक पास कर दिया गया | इतना ही नहीं 1968 में उस विधेयक में एक संसोधन कर दिया गया जिसमे कहा गया कि भारत के जितने भी राज्य हैं उनमे से एक भी राज्य अगर अंग्रेजी का समर्थन करेगा तो भारत में अंग्रेजी ही लागू रहेगी, और आपकी जानकारी के लिए मैं यहाँ बता दूँ क़ि भारत में एक राज्य है नागालैंड वहां अंग्रेजी को राजकीय भाषा घोषित कर दिया गया है | अब ये बिलकुल असंभव है कि हम अंग्रेजी को इस देश से हटा सकें | मैं जनता हूँ कि ये व्यवस्था परिवर्तन हम लोग नहीं कर सकते हैं | हम अपनी भारतीय भाषाओं का सम्मान करने भी लगे तो क्या फर्क पड़ता है अंग्रेजी तो हर हाल में रहेगी | व्यवस्था बदलनी है तो कम से कम 400 सांसद चाहिए जो कि एक विधेयक लाये और इस कानून को उलट दे और मुझे ये संभव नहीं लग रहा है | ये जो गन्दी राजनीति इस देश में आप देख रहे हैं वो अभीगन्दी नहीं हुई है ये अंग्रेजों से अनुवांशिक तौर पर हमारे नेताओं ने ग्रहण किया थाऔर वो आज भी चल रहा है |
मौलिकता आती है मातृभाषा से आप खुद के ऊपर प्रयोग कर के देखिएगा | अंग्रेजी या विदेशी भाषा में हम केवल Copy Pasting कर सकते है | और मातृभाषा छोड़ के हम अंग्रेजी के पीछे पड़े हैं तो मैं आपको बता दूँ क़ि अंग्रेजी में हमें छः गुना ज्यादा मेहनत लगता है | हम लोगों ने बचपन में पहाडा याद किया था गणित में आपने भी किया होगा और मुझे विश्वास है क़ि वो आपको आज भी याद होगा लेकिन हमारे बच्चे क्या पढ़ रहे हैं आज भारत में वो पहाडा नहीं टेबल याद कर रहे हैं | और मैं आपको ये बता दूँ क़ि इनका जो टेबल है वो कभी भी इनके लिए फायदेमंद नहीं हो सकता | जो पढाई हम B.Tech या MBBS की करते हैं अगर वो हमारी मातृभाषा में हो जाये तो हमारे यहाँ विद्यार्थियों को छः गुना कम समय लगेगा मतलब M .Tech तक की पढाई हम 4 साल तक पूरा कर लेंगे और वैसे ही MBBS में भी हमें आधा वक़्त लगेगा | इस विदेशी भाषा से हम हमेशा पिछलग्गू ही बन के रहेंगे | दुनिया का इतिहास उठा के आप देख लीजिये, वही देश दुनिया में विकसित हैं जिन्होंने अपनी मातृभाषा का उपयोग अपने पढाई लिखाई में किया |
कुछ और तथ्य
- भारत में जो राज्यों का बटवारा भाषा के हिसाब से हुआ वो गलत था |
- भारत क़ी तरह पाकिस्तान में भी कई भाषाएँ हैं और वहां पंजाबी सबसे लोकप्रिय भाषा है | इसके अलावा वहां पश्तो है , सिन्धी है , बलूच है लेकिनउर्दू मुख्य जोड़ने वाली भाषा है | ये जो इच्छा शक्ति पाकिस्तान ने दिखाई थीवो भारत के नेताओं ने नहीं दिखाया क्यों क़ी नेहरु यहाँ प्रधानमंत्री थे और वो सिर्फ देखने में भारतीय थे |
- आज़ादी के पहले भारत में जो collector हुआ करते थे उनकी पोस्टिंग किसी जिले में इसी आधार पर होती थी क़ि वो हिंदी जानते हैं क़ी नहीं | लेकिनअब इस देश में ऐसा कोई नियम नहीं है | आपको कोई भाषा आती हो या नहीं आती है अंग्रेजी आनी चाहिए किसी जिले का collector बनने के लिए |
अंग्रेजी को ले के लोगों में भ्रांतियां
अंग्रेजी को ले के लोगों के मन में तरह तरह कि भ्रांतियां हैं मसलन
अंग्रेजी को ले के लोगों के मन में तरह तरह कि भ्रांतियां हैं मसलन
- अंग्रेजी विश्व भाषा है
- अंग्रेजी सबसे समृद्ध भाषा है
- अंग्रेजी विज्ञान और तकनीकी कि भाषा है
क्या वाकई अंग्रेजी समृद्ध भाषा है ? किसी भी भाषा की समृद्धि उसमे मौजूद शब्दों से मानी जाती है | अंग्रेजी में मूल शब्दों कि संख्या मात्र 65,000 है | वो शब्दकोष (dictionary) में जो आप शब्द देखते हैं वो दूसरी भाषाओँ से उधार लिए गए शब्द हैं | हमारे बिहार में भोजपुरी, मैथिली और मगही के शब्दों को ही मिला दे तो अकेले इनके शब्दों कि संख्या 60 लाख है| शब्दों के मामले में भी अंग्रेजी समृद्ध नहीं दरिद्र भाषा है | इन अंग्रेजों की जो बाइबिल है वो भी अंग्रेजी में नहीं थी और ईशा मसीह अंग्रेजी नहीं बोलते थे | ईशा मसीह की भाषा और बाइबिल की भाषा अरमेक थी | अरमेक भाषा की लिपि जो थी वो हमारे बंगला भाषा से मिलती जुलती थी, समय के कालचक्र में वो भाषा विलुप्त हो गयी |
क्या वाकई अंग्रेजी विज्ञान और तकनिकी कि भाषा है ? आप दुनिया में देखेंगे कि सबसे ज्यादा विज्ञानं और तकनिकी की किताबे (Russian ) रुसी भाषा में प्रकाशित हुई हैं और सबसे ज्यादा विज्ञान और तकनिकी में research paper भी Russian में प्रकाशित हुई हैं | मतलब ये हुआ कि विज्ञान और तकनिकी कि भाषा Russian है न कि अंग्रेजी | दर्शन शास्त्र में सबसे ज्यादा किताबें छपी हैं वो German में हैं | मार्क्स और कांट एक दो उदहारण हैं | चित्रकारी , भवन निर्माण, कला और संगीत कि सबसे ज्यादा किताबें हैं वो French में हैं | अंग्रेजी में विज्ञान और तकनिकी पर सबसे कम शोध हुए हैं | जितने अविष्कार अंग्रेजों के नाम से दुनिया जानती है उसमे आधे से ज्यादा दुसरे देशों के लोगों का अविष्कार है जिसे अंग्रेजों ने अपने नाम से प्रकाशित कर दिया था | अब इन्टरनेट के ज़माने में सब बातों की सच्चाई सामने आ रही है धीरे धीरे | कभी मौका मिला तो इस पर लिखूंगा |
सारांश ये है कि अगर आपमें व्यवस्था परिवर्तन की हिम्मत है तो आप हिंदी ला सकते हैं अन्यथा बस चुपचाप देखते रहिये और अपने काम में लगे रहिये | कुछ नहीं होने वाला | विश्व में दूसरी सबसे ज्यादा बोले जाने वाली भाषा होने के बावजूद हिंदी लौंडी ही बन के रहने के लिए बाध्य है अपने ही देश में | इतने लम्बे पत्र को आपने धैर्यपूर्वक पढ़ा इसके लिए आपका धन्यवाद् | और अच्छा लगा हो तो इसे फॉरवर्ड कीजिये, आप अगर और भारतीय भाषाएँ जानते हों तो इसे उस भाषा में अनुवादित कीजिये (अंग्रेजी छोड़ कर), अपने अपने ब्लॉग पर डालिए, मेरा नाम हटाइए अपना नाम डालिए मुझे कोई आपत्ति नहीं है | मतलब बस इतना ही है की ज्ञान का प्रवाह होते रहने दीजिये |
एक भारत स्वाभिमानी
रवि
9 comments:
bharat ko jagana hi hopga
अब हमे परशुराम जी की तरहा रूप धारण करना पड़ेगा
अब हमे परशुराम जी की तरहा रूप धारण करना पड़ेगा
aashcharyachakit karne vali jankari...abhar
jab tak naheru jaise brasht gaddaraur lutaro ke hatho me desh ki satta rahege tab tak desh ka ye hi hall rahega
india ab jag gya h
ab india jag gya h
ये सच पुरे भारत को पढ़ना चाहिए
एक ऐसा सच जो पूरे भारत को पढ़ना चाहिए
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