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Thursday, November 09, 2017

चंडीगढ़ में अखिल भारतीय कवयित्री सम्मेलन शुरू

गांव गांव में ज़रूरत है ऐसे आयोजनों की तांकि भाषा का सौहार्द बना रहे
चंडीगढ़//लुधियाना: 9 नवंबर 2017: (कार्तिका//पंजाब स्क्रीन)::
मेरा जन्म एक पंजाबी परिवार में हुआ। एक ऐसा परिवार जहां हर भाषा का सम्मान करना सिखाया जाता है। इसके बावजूद मेरे बोलचाल की मुख्य भाषा काफी देर तक पंजाबी ही रही।  धीरे धीरे कब यह हिंदी और पंजाबी का मिक्स अंदाज़ आ गया खुद भी याद नहीं आता। जब सितंबर-2017 में पीएयू ने एक प्रतियोगिता का आयोजन कराया तो उस समय भी मेरी पंजाबी काव्य रचना को ही प्रथम पुरुस्कार मिला। इस सब के बावजूद मेरा हिंदी प्रेम कभी कम नहीं हुआ। हिंदी में लिखना, हिंदी में पढ़ना मेरे स्वभाव में उसी तरह शामिल रहा जिस तरह मैं गांवों की ठेठ पंजाबी के शब्द समझने की कोशिश करती। मैंने मैक्सिम गोर्की की महान रचना-"मां" हिंदी में ही पढ़ी। ओशो की बहुचर्चित रचना "एक ओंकार सतनाम" भी हिंदी में ही पढ़ी। दुष्यंत कुमार के शेयर मुझे बिना प्रयासों के ज़ुबानी याद होने लगे। शायद यह सिलसला यूं ही चलता पर पत्रकारिता की पढ़ाई के कारण अख़बारों और टीवी की खबरों में भी दिलचस्पी बढ़ने लगी। कभी कभी हालात में कुछ गर्माहट आती तो अख़बारों की सुर्खियां भी भयभीत करने लगती। मैंने न तो 1947 का बटवारा देखा, न ही जून-1984 का ब्ल्यू स्टार आपरेशन और न ही नवंबर-1984 का अमानवीय नरसंहार। जब रूस के अक्टूबर इंकलाब की चर्चा सुनती तो बहुत अजीब  सा लगता कि इस अक्टूबर इन्कलाब का दिन नवंबर में क्यों आता है? इस तरह के कई सवालों का जवाब तलाश करने की इच्छा मुझे अक्सर इतिहास की किताबों के नज़दीक ले जाती। इसी बीच ज़ोर पकड़ा पंजाबी भाषा के सम्मान के अभियान ने। सैद्धांतिक तौर पर बात सही थी कि पंजाब में पंजाबी को प्रथम स्थान आखिर क्यों नहीं दिया जाता। दक्षिण भारत में जहाँ के लोग हिंदी के नाम से भी दूर भागते हैं वहां हिंदी को तीसरे स्थान पर लिखा जाता है।  यहां तक कि रेलवे स्टेशनों पर भी।  अन्य स्थानों पर तो हिंदी नज़र भी नहीं आती। इन सभी तथ्यों के बावजूद मुझे यह बहुत ही दुखद लगता कि पंजाब में जहां जहां हिंदी लिखी है वहां वहां कालख पोत दी जाये। पंजाबी का सम्मान बहाल हो यह तो मैं भी चाहती थी लेकिन इसके लिए हिंदी पर कालख पोतनी पड़े यह सही न लगता।  दुःख था। बेबसी थी। कुछ कुछ शर्मिंदगी का अहसास भी।  कुछ गुस्सा भी। सियासत की जंग में मुझे अपनी और आम लोगों की हालत बहुत ही कमज़ोर लगती।
खुद से सवाल करती कि क्या सचमुच सिख धर्म के संस्थापक गुरु साहिबान संस्कृत और फारसी का भी सम्मान करते थे? अगर यह सच है तो उन्हें मानने वाले हिंदी पर कालख क्यों पोतना कहते हैं? बहुत गुस्सा आता उन लोगों पर भी जिनको हिंदी नहीं आती थी लेकिन पंजाबी सूबा के समय  समय जिन्होंने पंजाबी में बोल बोल कर  कि लिखो हमारी मातृ भाषा हिंदी है। हिंदी पंजाबी और अन्य भाषाओं के दरम्यान जिस पुल की बात मैं सोच रही थी वह मुझे अपनी कल्पना ही लगता।  महसूस होता यह कभी साकार नहीं होगी। मुझे लगता कि बस शायद यहां सियासत ही जीत सकती है और न कोई सिद्धांत-न कोई धर्म और और न कोई विचार। 
इसी निराशा में एक दिन पता चला कि चंडीगढ़ में अखिल भारतीय महिला कवि सम्मेलन हो रहा है। जाने की इच्छा भी थी लेकिन कालेज के टेस्ट और कुछ अन्य समस्याएं आड़े आ रही हैं। जब विस्तार से जानकारी ली तो पता चला कि हर पंजाबी शायरा को अपनी पंजाबी रचना के साथ साथ हिंदी अनुवाद भी बोलना है। यह जान कर न जा पाने का दुःख भी हुआ। पता चला कि इस आयोजन में भाग लेने के लिए तकरीबन 300 महिला शायर भाग लेंगीं। यह जानकारी चंडीगढ़ में आल इंडिया पोइटिस कांफ्रेस के संस्थापक डा. लारी आज़ाद ने एक पत्रकार सम्मेलन में दी। डा. लारी आज़ाद ने वास्तव में दुनिया देखी है। सियासत की भी और साहित्य की भी। मोहमद अकरम लारी ने सत्तर के दशक में भरतीय धर्मों और सियासत पर बहुत सी पुस्तकें भी लिखीं हैं। वह बहुत सी वशिष्ठ पत्रिकाओं का सम्पादन भी करते हैं।  इसलिए भारत में धर्म-सियासत और भाषा की वास्तविक स्थिति को भी बहुत अच्छी तरह से समझते हैं। इस संगठन के पास आठ हज़ार प्रमुख महिलाएं पंजीकृत है जिनमें से कोई शायरा है, कोई लेखिका, कोई कलाकार, कोई टीवी पर, कोई रेडियो  पर और कोई किसी अन्य में। इनमें कई प्रमुख लोगों से भेंट होती, उनसे मिलने का अवसर मिलता। अब भी कोशिश रहेगी। 
कुल मिला कर प्रसन्नता की बात है कि यह एक ऐसा मंच है जिसे आधार  बना कर पंजाबी के पुल हिंदी और अन्य भारतीय भाषायों से जोड़े जा सकते हैं। सलाम है ऐसे आयोजन को।  सलाम है इसके आयोजकों को। इस तरह के आयोजन होते रहें और विभिन्न भाषाओं के लेखक और कलाकार अलग अलग प्रदेशों और संस्कृतियों को आपस में जोड़ने के सफल प्रयास करते रहें। समाज जुड़ा रहे इसकी उम्मीद अब कलमकारों से ही बची है। इस तरह के आयोजनों की आज सबसे अधिक ज़रूरत हैं। केवल राज्यों की राजधानियों में ही नहीं बल्कि गांव गांव में इनकी ज़रुरत है। आखिर में एक बार फिर सलाम। कवरेज के लिए एक बार अवश्य जाना होगा इस आयोजन में, बाकी की बातें फिर कभी सही। किसी अगली पोस्ट में।  -कार्तिका (लुधियाना)

Monday, October 23, 2017

हमें पंजाबी होने पर गर्व है : नायब शाही इमाम मौलाना उसमान रहमानी

Mon, Oct 23, 2017 at 5:30 PM

पंजाबी के लिए संघर्ष करने वालों के खिलाफ दर्ज मुकदमा रद्द हो  
लुधियाना: 23 अक्तूबर 2017(पंजाब स्क्रीन ब्यूरो):: 

आज यहां जामा मस्जिद लुधियाना से नायब शाही इमाम मौलाना मुहम्मद उसमान रहमानी लुधियानवी ने अपनी पंजाबी मातृभाषा के हक में जोरदार आवाज उठाई। उन्होनें कहा कि पंजाब भर में दिशासूचक बोर्डो पर अकाली-भाजपा सरकार के समय पर मातृ भाषा पंजाबी के साथ किए गए भेद-भाव की जितनी निंदा की जाए कम है। पंजाब में बीते कुछ दिनों से पंजाबी मातृ भाषा के सम्मान के लिए प्रदेश के विभिन्न स्थानों पर मातृ भाषा के लिए संघर्ष कर रहे नौजवानों पर पुलिस द्वारा दर्ज किया मुकद्दमा निंदनीय है। मौलाना उसमान ने कहा कि पंजाबी हमारी मातृ भाषा है और हमें पंजाबी होने पर गर्व है। उन्होनें कहा कि देश के सभी राज्यों में वहां की भाषाओं को प्राथमिकता दी जाती है। लेकिन अफसोस की बात यह है कि पंजाब जहां देश के सभी राज्यों के लोग तकरीबन व्यापार के लिए आते हैं में पंजाबी के साथ भेद-भाव किया जा रहा है। उन्होनें कहा कि ये भी अफसोस की बात है कि कुछ लोग दिशासूचक बोर्डो पर पंजाबी भाषा को प्रथम स्थान दिलवाने के लिए उठाए गए कदम को हिंदी का अपमान बता कर पंजाबी मातृ भाषा के संघर्ष को रोकना चाहते है। उन्होनें कहा कि हिंदी हमारी राष्ट्र भाषा है लेकिन सबसे पहले मातृ भाषा पंजाबी को ही लिखा जाएगा और हमें यह अधिकार संविधान ने दिया है। मौलाना उसमान लुधियानवी ने कहा कि पंजाबी मातृ भाषा के लिए जो भी लोग संघर्ष करेंगे हम उनके साथ है। उन्होनें कहा कि मातृ भाषा ही कौमों के वजूद को जिंदा रखती है। पंजाबी मातृ भाषा की रक्षा करना प्रत्येक पंजाबी पर फर्ज है। इस संघर्ष को किसी भी धर्म या जाति के साथ जोड़ कर नहीं देखना चाहिए। उन्होनें कहा कि जिन्हें पंजाबी नहीं अच्छी लगती या वो चाहते है कि पंजाब में पंजाबी को पहला स्थान ना दिया जाए तो ऐसे लोगों को चाहिए कि वह पंजाब को छोड़ कर किसी ऐसे स्थान पर जाए जहां की भाषा उनकों अपनी मातृ भाषा लगती है।

Thursday, October 27, 2016

लेखकों ने सर्वसम्मति से चुनाव करके पेश की मिसाल


ताजपोशी होगी 6 नवम्बर को पंजाबी भवन में 
लुधियाना: 26 अक्टूबर 2016: (पंजाब स्क्रीन ब्यूरो):
अब जबकि कुर्सी का किस्सा आम होता जा रहा है और इस कुर्सी के लिए गुरुद्धारों मन्दिरों में की कमेटियों में तनातनी की हालत बन जाती है उस नाज़ुक दौर में एक शानदार मिसाल कायम की है लेखकों ने। आदर्श लिखने और प्रचारने के सर्च सर्च लेखकों ने खुद भी आदर्श बन कर दिखाया। केंद्रीय पंजाबी लेखक सभा की 6 नवम्बर को होने वाले चुनाव के लिए अधिकतर पदों का फैसला चुनाव से पूर्व ही सर्वसम्मति से हो गया है। 
संगठन की तरफ से जारी एक प्रेस विज्ञप्ति के मुताबिक केंद्रीय पंजाबी लेखक सभा के 6 नवंबर को होने वाले चुनाव के संबंध में नामांकन वापस लेने के बाद कई पदों पर सर्वसम्मति से चुनाव संपन्न हो गए। इसके बाद डॉ. सरबजीत सिंह को प्रधान, सुशील दुसांझ को जनरल सेक्रेटरी और डॉ. जोगा सिंह को सीनियर मीत प्रधान घोषित कर दिया गया। 
प्रधानगी पद से अतरजीत, प्रो. सुरजीत जज, सुशील दुसांझ, डॉ. कर्मजीत सिंह दर्शन बुट्टर ने अपने नामांकन वापस ले लिए। इसके बाद पंजाब यूनिवर्सिटी चंडीगढ़ के डॉ. सरबजीत सिंह को सर्वसम्मति से प्रधान घोषित कर दिया गया। जनरल सेक्रेटरी के पद से डॉ. सरबजीत सिंह, डॉ. कर्मजीत सिंह मक्खन कोहाड़ ने अपने कागज वापस ले लिए। जिसके चलते सुशील दुसांझ को जनरल सेक्रेटरी की जिम्मेदारी सौंप दी गई। सीनियर मीत प्रधान के लिए सुलक्खन सरहद्दी, डॉ. गुरमेल सिंह मक्खन कोहाड़ भी मैदान में थे। लेकिन इन तीनों ने अपने नामांकन वापस ले लिए। जिसके चलते पंजाबी यूनिवर्सिटी पटियाला के डॉ. जोगा सिंह को सीनियर मीत प्रधान के तौर पर घोषित कर दिया गया। इसी तरह सूबा सुरिंदर कौर खरल, सुरिंदरप्रीत घणियां, जसपाल मानखेड़ा, जसबीर झज दीप दपिंदर सिंह को मीत प्रधान बना दिया गयाअब केवल सेक्रेटरी के 3 पदों के लिए 6 नवंबर को शाम 3 से 6 बजे तक चुनाव होगा। कर्म सिंह वकील, डॉ. हरविंदर सिंह सिरसा, वरगिस सलामत दीप जगदीप इस पदों के उम्मीदवार हैं। अकेली महिला लेखक होने के कारण अरतिंदर कौर संधू को सेक्रेटरी के तौर पर चुन लिया गया। मीत प्रधान के तौर पर अमरजीत कौर हिरदे, डॉ. सुरजीत बराड़, सुखविंदर आही, प्रो. हरजिंदर सिंह अटवाल, जसपाल मानखेड़ा, तरसेम, तरलोचन झांडे, मनजीत कौर मीत डॉ. राम मूर्ति ने अपने नामांकन वापस ले लिए। सेक्रेटरी पद से अश्वनी बागडिय़ां, सुरिंदर कौर, सूबा सुरिंदर कौर खरल, सरदारा सिंह चीमा, डॉ. हरविंदर सिंह, तरलोचन झांडे, दीप देविंदर सिंह मनजीत कौर ने अपनी नामजदगी वापस ले ली है। चुनाव अधिकारी डॉ. गुलजार सिंह पंधेर ने बताया कि तीनों बड़े पदों पर सर्वसम्मति से चुनाव होने की तरह तरफ प्रशंसा हो रही है 

Friday, April 01, 2016

चाचा ज्ञान सिंह-जिन्हें सियासत की बदलती हवा भी नहीं हरा पाती

कामागाटा मारू भी गई प्रो. गुरभजन गिल की टीम 
लुधियाना:: 1 अप्रैल 2016: (पंजाब स्क्रीन ब्यूरो):
गत दिनों जाने माने शायर प्रोफेसर गुरभजन सिंह गिल कुछ ख़ास साथियों के साथ कोलकाता गए। वहां जाने वाले लोग बहुत कुछ देखते हैं लेकिन बहुत कुछ ऐसा छोड़ भी देते हैं जो सभी को याद रखना चाहिए। जाने अन्जाने होती ऐसी भूलों  प्रोफेसर  गिल, के के  अन्य लोगों की टीम ने। प्रोफेसर गुरभजन सिंह गिल और  अपनी टीम के साथ वहां कामागाटा मारू स्मारक पर भी गए। एक वह स्मारक जिसकी जानकारी हर देश   वासी को होनी चाहिए थी। एक वह स्थान जो देश के स्वतंत्रता संग्राम का एक तीर्थ  है। 
लगातार 10 बार विधायक बन चुके सरदार ज्ञान सिंह मैदान में 
आप हैं सरदार ज्ञान सिंह ' सोहनपाल '.  उम्र : 91 वर्ष.  लगातार 10 बार विधायक हैं.  11वीं बार की तैयारी है.  चौंकिएगा मत,  पंजाब से नहीं बंगाल से.  पश्चिम बंगाल की खड़गपुर सदर सीट से जहां पांच हजार सिक्ख भी नहीं हैं.  पूरा क्षेत्र इनको चाचाजी कहता है.  1969 से लगातार विधायक बनते आ रहे हैं   चाचाजी हर चुनाव जीत जाते हैं.   पिछला चुनाव लगभग 32 हजार वोट से जीतें.  इस बार नहीं लड़ना चाहते थें लेकिन जनता और समर्थकों की जिद के आगे झुक गए.  आप बंगाल विधानसभा के स्पीकर, जेल, परिवहन, संसदीय कार्य मंत्री भी रह चुके हैं.  इतना लंबा राजनीतिक जीवन होने के बावजूद एक रूपये की हेराफेरी का दाग नहीं। 
कहते हैं न असफलता वास्तव में सफलता की सीढ़ी होती है। यह भी कहा जाता है कि मन के हारे हार है--मन  के जीते जीत।  सरदार सोहनपाल की निरंतर जीत   ही शुरू हुआ था। कांग्रेस के विधायक ज्ञान सिंह सोहन पाल पहली बार 1962 में चुनाव मैदान में उतरे थे लेकिन उन्हें पराजय का स्वाद चखना पड़ा था।  यह पराजय ही उनकी जीत का प्रेरणा स्रोत गई। उन्होंने  सीखे, इसे हिम्मत बनाया और फिर  डटे। सन 1969 में उन्होंने पहली बार हासिल की। अब 52 सालों के बाद और दस बार जीत हासिल करने के बाद सोहनपाल अभी भी एक और चुनावी जीत हासिल करने के लिए तैयार खड़े हैं। वो नहीं चाहते थे लेकिन लोगों ने उनकी एक न सुनी और उनको फिर मैदान में उतार दिया। अपने प्रशंसकों के बीच ‘चाचा’ के नाम से जाने जाने वाले 91 वर्षीय पाल इस विधानसभा चुनाव में सबसे बुजुर्ग प्रत्याशी हैं। वह आईआईटी शहर खड़गपुर से चुनावी मैदान में उतरा गया है जहां से उन्होंने लगातार कई बार जीत हासिल की है।  हमारे जानेमाने लेखक प्रोफेसर गुरभजन सिंह गिल उन्हें मिल कर आये। यह हम सभी के लिए गौरव की बात है। काश हमारे भी यहाँ ऐसे नेता  जिन को खुद के कामों पर वोट मिले और सियासत की हवा उन्हें हरा न सके। 

Thursday, September 10, 2015

फिल्म जिन्दा सुक्खा: पहले मंजूरी अब पाबंदी

सेंसर बोर्ड या थाली का बैंगन?
चंडीगढ़: 9 सितम्बर 2015: (पंजाब स्क्रीन ब्यूरो):  
जानीमानी कलाकारा सुनीता धीर 
फिल्म की घोषणा से ले कर उसके टाइटल रजिस्टर्ड होने, फिर शूटिंग होने और फिर अन्य कई पेचीदा किस्म की प्रक्रियायों से गुज़र कर उसके रलीज होने तक बहुत कुछ ऐसा होता है जो जग ज़ाहिर होता है। न  के लिए उसके पता लगाना मुश्किल होता है और न ही फिल्म निर्माण से जुडी संस्थाओं के लिए। इस सबके साथ एक एक ऐसा वर्ग होता है जो फिल्म निर्माण को संतान की तरह देखता है। यह वर्ग होता है कलाकारों का, लेखकों का, गीतकारों का, और दर्शकों का भी। कलाकार के लिए फिल उसके कैरियर और रोज़ी रोटी से जुडी होती है। जब तक फिल्म निर्माण चलता है उसका सारा ध्यान फिल्म पर केंद्रित होता है और जब फिल्म बन जाती है तो सारा ध्यान उसकी रिलीज़ पर केंद्रित हो जाता है। जब आखिरी दम तक मिली किसी मंजूरी को दरकिनार कर अचानक ही पाबंदी की घोषणा होती है तो सबसे अधिक निराशा होती है इस कलाकार वर्ग को। उसे ऐसा लगता है जैसे किसी ने भ्रूण हत्या कर दी हो। ऐसा महसूस होता है जैसे काटने को तैयार फसल को अचानक किसी ने आग के हवाले कर दिया हो। 
कुछ ऐसा ही हुआ है आगामी 11 सितंबर को रिलीज होने वाली पंजाबी फिल्म ‘मास्टर माइंड जिंदा सुक्खा’ कर मामले में। इस फिल्म पर रोक लगा दी गई है। सेंसर बोर्ड ने फिल्म को पहले मंजूरी दे दी थी लेकिन केंद्रीय गृह मंत्रालय के आदेश के बाद इस पर पाबंदी लगा दी गई। मंत्रालय का कहना है कि इस फिल्म के रिलीज होने से पंजाब और आसपास के राज्यों मे हालात बिगड़ सकते हैं। फिल्म की टीम ने रोक लगने की पुष्टि की है। 
पाबंदी का एलान और इसकी वजह इतनी मासूमियत  से बयान की जाती है जैसे बेचारे सेंसर बोर्ड को कुछ पता ही न हो कि फिल्म किस मुद्दे पर थी, उसके हक़ और विरोध में कौन कौन थे, उसका क्या क्या असर हो सकता था। बहुत देर से सेंसर बोर्ड इस तरह की हरकतें कर रहा है कि फिल में एतराज़ की बात उसे बस सरकार के कहने पर ही पता चली हो। क्या फिल्म को पारित करते वक़्त इस बोर्ड ने कुछ नहीं देखा होता? 
फिल्म पर पाबंदी लगाने का कुछ संगठनों ने समर्थन किया है और कुछ ने विरोध। दल खालसा ने इस कदम की कड़ी निंदा करते हुए केंद्र सरकार को सिख विरोधी बताया है। उल्लेखनीय है कि यह फिल्म पूर्व सेना प्रमुख जनरल अरुण वैद्य के हत्यारों हरजिंदर सिंह जिंदा और सुखदेव सिंह सुक्खा के जीवन पर आधारित है। फिल्म बनाने वालों और फिल्म के समर्थकों ने इसे अपने नायकों पर बनी ऐतिहासिक फिल्म भी कहा है। अब देखना है कि फिल्म निर्माण से जुड़े कलाकारों और औनकी कला व कॅरियर के साथ खिलवाड़ कब तक जारी रहता है। 
फिल्म जिन्दा सुक्खा: पहले मंजूरी अब पाबंदी
सेंसर की भेंट:
1973 में फिल्म गर्म हवा का प्रदर्शन रोक गया 
1975 में  आंधी का प्रदर्शन रोक गया 
1977 में किस्सा कुर्सी का फिल्म पर पाबंदी सेंसर बोर्ड के कार्यालय से सारी रील उठवा कर जला दी 
1971 में सिक्किम फिल्म पर पाबंदी जिसे सितम्बर 2010 में हटा दी दिया गया।
1987 में फिल्म पति परमेश्वर की रेटिंग से इंकार किया गया 
1994 में फिल्म बैंडिट क्वीन पर पाबंदी 
1996 में फिल्म फायर पर पाबंदी 
2003 में फिल्म हवाएं पर पाबंदी जो नवंबर-१९८४ की घटनाओं से सबंधित थी। 
2005 में वर्ष 2004 की फिल्म ब्लैक फ्राईडे पर पाबंदी 
2005 में सिख व्विरोधी हिंसा पर पर बनी फिल्म अमु को कुछ आडियो कटस के बाद एडल्ट रेटिंग दी 
2005 में ही फिल्म वाटर हिन्दू संगठनों के ऐतराज़ पर रुकी और फिर मार्च 2007 में रिलीज़ हुई।
2014 में फिल्म कौम दे हीरे पर पाबंदी लगी  

Sunday, March 29, 2015

डाक्टर ज्ञान सिंह मान की स्मृति में आयोजित हुआ मुशायरा

उस महान आत्मा को नमन किया गया शायरी के पावन माहौल में
लुधियाना: 28 मार्च 2015: (रेक्टर कथूरिया//पंजाब स्क्रीन//सक्रिय सहयोग:दानिश भारती साहिब):
डाक्टर ज्ञान सिंह मान एक ऐसे मसीहा थे जिनके पास जा कर हर उस व्यक्ति को स्कून मिलता था जिसने जीने की आशा छोड़ राखी हो। सब कुछ होते हुए सन्यासी की तरह जीवन बिताने वाले डाक्टर मान एक ऐसे शाही फकीर थे जिन पर वक़्त की आंधियां और ज़माने के बदलते रंग कभी अपना प्रभाव न छोड़ सके। ख़ामोशी और अडोलता के साथ अपने मार्ग पर बिना रुके बढ़ने की प्रेरणा उनसे कई लोगों ने ली होगी। बिना चुभे कड़वे से कड़वा सत्य मुँह पर कह देने का सलीका उन्हें बाखूबी आता था। बड़े बड़े लोग उनकी हाज़िरी भरते थे लेकिन उनके रहन सहन में अहंकार की बू कभी न आ पायी। जब वह मुस्कराता चेहरा इस जग से विदा हुआ तो कईयों  को लगा कि  उनका तो जहां ही लूट गया। उस मसीहा को याद करने वाले लोग आज शाम पंजाबी भवन में एकत्र हुए। बहाना मुशायरे का लेकिन बातें ज़िंदगी के उन सत्यों की जिनकी खोज को डाक्टर मान भी आवश्यक बताया करते थे। शमा रौशन की जानेमाने समाज सेवी जनाब दर्शन अरोड़ा ने और हाज़िरी भरी लोक प्रिय शायरों ने जिनमें महिला लेखिकाएं भी थीं। इस स्मृति कार्यक्रम में डाक्टर मन की धर्मपत्नी डाक्टर वीना मान और उनका बेटा अनुभव मान भी मौजूद रहे। प्रोग्राम की अध्यक्षता की जनाब गुलाम हसन कैंसर ने। इस मौके पर पंजाब स्क्रीन ने चंडीगढ़ से आई सुश्री सबा होशियारपुरी से भी संक्षिप्त बातचीत की। 
 इसी यादगारी अवसर पर जालंधर से आई मोहतरमा रेणु नैय्यर ने भी अपना कलाम पंजाब स्क्रीन के पाठकों और दर्शकों के लिए रेकार्ड करवाया। 
 जनाब गुरचरण नारंग ने अपना पंजाबी रंग भी खूबसूरती से बयान किया। 
 जसप्रीत फलक ने अपने दिलकश अंदाज़  में बहुत गहरी बातें की जिनमें नैतिकता की ऊंचाई भी थी। 
 चंडीगढ़ से ही आये जनाब नवीन नीर ने अपने दिलकश एक्शन अंदाज़ से अपने कलाम की पेशकारी को प्रभावशाली बनाया। 
मोहतरमा आशा अनेजा का कलाम भी यादगारी रहा। 
जनाब रजनीश वर्मा भी श्रोताओं और दर्शकों के दिलों में अपनी जगह बनाने में कामयाब रहे।उनके शेयर सीधा दिल में उतरते रहे। कुल मिला कर यह एक यादगारी मुशायरा था।

Friday, October 03, 2014

जगदेव सिंह जस्सोवाल अमेरिका रवाना

पंजाबी सांस्कृति की मशाल लेकर सूरत सिंह खालसा भी साथ गए 
लुधियाना: 2 अक्टूबर 2014: (रेक्टर कथूरिया//पंजाब स्क्रीन):
कहते हैं अब कलियुग है। इसीलिए भाई भाई को नहीं पहचानता। दोस्त ही दोस्त की पीठ में छुरा घोंपता है पर सरदार जगदेव सिंह जस्सोवाल ने अपने मूक अंदाज़ से साबित किया कि दोस्ती आज भी ज़िंदा है। वह अपने ख़ास लेखक मित्र प्रोफेसर मोहन सिंह की याद  रख रहे हैं। जब श्री जस्सोवाल ने प्रोफेसर साहिब की याद में यह मेला शुरू तो उनके साथ बहुत ही कम लोग थे। जो थे उनमें से भी कई अपने सौरठों से जुड़े थे। इन कठिन हालातों के बावजूद जब  की स्मृति में पहला मेला लगा तो यह एक चमत्कार था। बहुत से लोग खुश थे---पंजाब में किसी पंजाबी लेखक की कदर का यह शायद पहला मामला था। खुश होने वालों के साथ कुछ लोग निराश भी थे। उनका कहना था-अब अगली बार मेला लगेगा तो देखेंगे। उन सब साज़िशों को नाकाम करते हुए जस्सोवाल साहिब डटे रहे। परिणाम सब के सामने है।  वह मेला आज तक लगता आ रहा है।  इस मेले ने बहुत से लोगों को रोज़गार दिया तो बहुत से कलाकारों को स्थापित होने में भी मदद की। अब यह मेला अमेरिका  में लगेगा। अमेरिका में सैक्रामेंटो के शहर स्टाकटिन में यह मेला 4 और 5 अक्टूबर को लगेगा। जाति, मज़हब, रंग और नस्ल के सभी भेदों से ऊपर उठ कर इस महान शायर ने बहुत पहले ही कह दिया था--
दो धड़ियां विच खलकत वण्डी
इक महिलां दा-इक ढोकां दा। 
अब अपनी वृद्ध अवस्था के बावजूद श्री जस्सोवाल इस संदेश को लेकर अमेरिका जा रहे हैं तांकि इस हकीकत को पूरी दुनिया तक पहुंचा सकें। कहते हैं अमेरिका में कही गे बात पूरी दुनिया के लोग बहुत ध्यान से सुनते हैं। उम्मीद की जनि चाहिए कि जब प्रोफेसर  की क्रांति भरी  शायरी  जस्सोवाल के प्रयासों से पूरी दुनिया तक पहुंचेगी तो एक नयी क्रांति की शुरुआत भी होगी।
पंजाबी सांस्कृति  की मशाल लेकर जगदेव सिंह जस्सोवाल वीरवार को प्रोफैसर मोहन सिंह मैमोरियल फाऊंडेशन अमेरिका के बुलावे पर अमेरिका के लिए रवाना हुए उनके साथ प्रसिद्ध समाज सेवक सूरत सिंह खालसा भी अमेरिका गए। इस अवसर पर जस्सोवाल ने विदेशी धरती पर पंजाबी विरसे, पंजाब मिट्टी व धार्मिक रवायतों को कायम रखने वाले पंजाबी, प्रवासियों की प्रशंसा करते हुए कहा कि पंजाब की पावन भूमि पर जन्म लेने वाले यह लोग वर्षों तक पंजाब की  भूमि  से दूर रहने के बावजूद पंजाबी सभ्याचार को जिंदा रखते हुए उन्होंने अपनी मिट्टी का मोह, सभ्याचार का मोह व धर्म का सत्कार कायम रखा है। इस अवसर पर प्रो. मोहन सिंह मैमोरियल फाऊंडेशन के अध्यक्ष प्रगट सिंह ग्रेवाल सीनियर चेयरमैन साधु सिंह ग्रेवाल, उपाध्यक्ष, कृष्ण कुमार बावा,  निर्मल जोड़ा, पवन गर्ग हरदयाल सिंह अमन, अर्जुन बावा सहित अन्य शामिल थे।

Thursday, October 10, 2013

पंजाबी फिल्म में पहली बार एक ठगनी का रोल अदा कर रही है नीरू बाजवा

फिल्म की प्रमोशन का शुभारम्भ करने टीम पहुंची गुरु की नगरी में
अमृतसर: 9 अक्टूबर 2013: (गजिंदर सिंह किंग//पंजाब स्क्रीन ब्यूरो) - आज तक कई फिल्मों में हीरो को अपनी उंगली पर नचाने वाली नीरू बाजवा अपनी नई फिल्म में नए दूल्हों को अपने पीछे भागने पर मजबूर कर देगी। जी हां, नीरू बाजवा की 11 अक्तूबर को रीलिज होने जा रही फिल्म आरएसवीपी में वह एक ऐसे ठग का किरदार निभा रही है, जो अपने साथियों के साथ नौजवानों का न सिर्फ कीमती सामान लेकर फरार हो जाती है, बल्कि उनकी भावनाओं को भी ठेस पहुंचाती है। अपनी फिल्म आरएसवीपी की प्रमोशन की शुरूआत करने के लिए नीरू बाजवा आज फिल्म के सह अभिनेता गुग्गू गिल के साथ गुरु नगरी अमृतसर पहुंची। इस मौके पर उन्होंने बताया, कि फिल्म में वह एक ऐसी लड़की का किरदार निभा रही है, जो शादी के नाम पर नौजवानों के साथ ठगी करती है। उन्होंने बताया, कि इस फिल्म की कहानी आजकल हो रही घटनाओं पर आधारित है। इसलिए इस फिल्म में कामेटी, एक्शन और वह सब-कुछ है, जिसे दर्शक देखना पसंद करेंगे। वहीं, फिल्म के सह अभिनेता गुग्गू गिल ने बताया, कि फिल्म में वह नीरू बाजवा के शिकार लड़के के पिता का रोल अदा कर रहे हैं। उन्होंने बताया, कि उनका रोल इस फिल्म में काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि जब नीरू बाजवा उनके बेटे के साथ ठगी मारने के लिए उनके परिवार में आती है, तो उसे पता चलता है कि इस बार उनसे काफी गल्ती हो गई है।

Wednesday, August 21, 2013

पंजाबी साहित्य सभा समराला की मासिक बैठक

'वीहवीं सदी दा पंजवां दहाका' का विमोचन
समराला (लुधियाना):(पंजाब स्क्रीन ब्यूरो): कई दशक पूर्व अक्सर बड़े बजुर्ग कहा करते थे कि दोराहा के साथ पड़ता रामपुर कोई जादू भरी भूमी है शायद तभी वहां पैदा होने वाले शायरों और लेखकों की संख्या बहुत अधिक है। इस भूमी का यह जादू आसपास के क्षेत्रों दोराहा, नीलों, कटानी और समराला जैसे इलाकों में भी कई बार दिखा।  इस इलाके से गुजरती नहर का जादू उअर इस नहर के  पेड़ों को छू कर आती हवा अचानक ही किसी और दुनिया में ले जाते हैं और इंसान के हाथ कागज़ और कलम की तलाश में खुद-बी-खुद उठ जाते हैं।  यह सारा सिलसिला फिर बार फिर ताज़ा  हुआ समराला में जहाँ एक साहित्यक आयोजन था। पंजाबी साहित्य सभा समराला की मासिक बैठक सरकारी सीनियर सेकेंडरी स्कूल में मंगलवार को हुई। जिसकी अध्यक्षता मंडल में सभा के अध्यक्ष बिहारी लाल सद्दी, नेशनल अवार्डी शमशेर सिंह नागरा, प्रो हमदर्दवीर नौशहरवी, गुरदयाल दलाल व प्रेम सागर शर्मा ने की। इस दौरान जगदीश नीलों की लिखी पुस्तक 'वीहवीं सदी दा पंजवां दहाका' का लोकार्पण किया गया। इस पुस्तक के विमोचन पर सभी ने प्रसन्नता व्यक्त की। 
पुस्तक की सामग्री पर विस्तृत चर्चा हुई  हुए मास्टर मेघदास ने कहा कि वास्तव में यह पुस्तक एक दस्तावेज है जो 1950 से 1960 तक के दहाके में ग्रामीण लोगों की दशा व विकास की ओर बढ़ने की प्रक्रिया को बहुत ही सादगी और बारीकी से दर्शाती है। इस मौके पर मैनेजर करम चंद, मास्टर प्रेम सागर शर्मा, मास्टर शमशेर सिंह नागरा, बिहारी लाल सदी, ने भी पुस्तक के संदर्भ में अपने विचार व प्रभाव व्यक्त किए और इस पुस्तक के मकसद को समझने-समझाने में रचनात्मिक योगदान दिया। 
साहित्य रचने से सबंधित कलमकार एकत्र हों और साहित्य के रस की बरसात न हो यह कैसे सम्भव है? इस लिए इस मासिक बैठक का दूसरा दौर रचनाएं पढ़ने व उन पर उनके प्रतिक्रया पेश करने का था। जिसका आरभ कवि गुरनाम सिंह ने कविता सुनाकर किया। इसके बाद सुखदेव कलेर, आखिरी सांस तक क्रांति से रहे इंकलाबी शायर लाल सिंह दिल को भी याद किया गया। जसवीर सिंह समराला ने भी अपनी कविता पेश की। इस दौरान मैनेजर करम चंद ने कविता, हरबंस मालवा ने गीत, लखविंदरपाल सिंह ने कविता, सूरीया कात वर्मा ने मिनी कहानी, संतोख सिंह कोटाला ने कविता, मास्टर मेघदास ने मिनी कहानी, दीप दिलबर ने गीत, प्रेम सागर शर्मा ने उर्दू के शेयर, करमजीत बासी ने कविता, लील दयालपुरी ने गीत, हरबंस माछीवाड़ा ने गजल, जगदीश नीलों ने गजल, गुरदयाल दलाल ने गजल व बिहारी लाल सदी ने साहिर लुधियानवी द्वारा लिखी उर्दू की नजम पेश की। इस समय इंद्रजीत कंग, गुरबिंदर सिंह, दर्शन सिंह कंग, जसप्रीत सिंह, सुखविंदर, संदीप तिवारी, मा. जतिंदर, मा. राम रतन, अवतार सिंह समराला, सोहनजरीत सिंह, टी लोचन निरजन सूखम, जसविंदर सचदेवा व गुरजीत भी मौजूद थे। कुल मिलाकर यह एक यादगारी आयोजन बना। 

Tuesday, February 26, 2013

RMG बनायेगी 5 पंजाबी फिल्में/लुधियाना में हुआ ऑडिशन

Mon, Feb 25, 2013 at 6:44 PM
मुख्य अतिथि थे लुधियाना सिटीजन कौंसिल के दर्शन अरोड़ा
लुधियाना:(s7 News): पंजाबी कल्चर और पंजाबी भाषा को बढावा देने के लिए ' आर एम जी फिल्म ' नामक कंपनी ने अपने पहले प्रोजेक्ट में ही पांच पंजाबी फिल्में बनाने का निर्णय लिया है। इन फिल्मों में नए कलाकारों को पहल दी जायेगी और पंजाब सहित अन्य राज्यों में ऑडिशन करवा कर फिल्म के लिए नए चेहरों को खोजा जायेगा। कंपनी के पदाधिकारियो के मुताबिक उनके द्वारा बनाई जा रही सभी फिल्मे दर्शकों की माँग पर होगी, जिसे वह अपने परिवार के साथ बैठ कर देख सकेंगे। बड़े बजट की इन फिल्मों में पूरी तरह से आधुनिक तकनीक का कमाल दिखाया जायेगा। 
आर एम जी फिल्म प्रोडैक्शन प्री . लि कंपनी द्वारा पहला ऑडिशन का आयोजन लुधियाना की काम्या एक्टिंग आकदमी के सहयोग से सिलवर कुञ्ज इलाके में कवाया गया। इस ऑडिशन में पंजाब, हरियाणा, जम्मू, राजस्थान व उत्तर प्रदेश से एक हजार के करीब पंजाबी भाषीय लडके लडकियों ने हिस्सा लिया। पंजाबी फिल्म के इस ऑडिशन में नए कलाकारों में काफी उत्साह देखा गया। ऑडिशन की जज टीम में आर एम जी के प्रोडूसर राज गिल, बॉलीवुड फिल्मों के ड्रायेक्टर वरुण खन्ना, सीनियर मैनेजर अजय कोहली शामिल हुए। ऑडिशन में अन्य राज्यों से आये पंजाबी कलाकारों ने पंजाबी भाषा में जब अपनी कला का प्रदर्शन किया तो सभी को हैरान कर दिया। इन में राजस्थान से आये रतन लाल और गाजियाबाद से आये विशेष ने एक्टिंग का अच्छा प्रदर्शन किया। इसी के साथ नन्हे बच्चों में रघुबीर व तरंवीर और नन्ही सुश्रीती ने कामेडी प्रोग्राम पेश कर सभी को हँसने के लिए मजबूर कर दिया। 
आर एम जी फिल्म प्रोडैक्शन प्री . लि कंपनी के प्रोडूसर राज गिल ने बताया की वह पांच पंजाबी फिल्मे बना रहे है यही सभी फिल्मे पंजाबी कल्चर और पंजाबी भाषा को बढावा देने वाली होगी। उनकी पहली फिल्म आधी अब्रोअड में और पंजाब में शूट होगी। उनका मुख्य मकसद नए कलाकारों को प्लेटफार्म मुहैया करवाना है। रविवार को होए इस ऑडिशन में काफी नए कलाकारों की छुपी होई प्रतिभा को देखने का मोका मिला, लुधियाना के इस ऑडिशन में हमें कुछ अच्छे कलाकार मिले है। आने वाले दिनों में पंजाब के अन्य शहरों में ऑडिशन करवाए जाने है।
बॉलीवुड फिल्मों के ड्रायेक्टर वरुण खन्ना ने बताया की आज के समय में पंजाबी दर्शक अच्छी फिल्मो की आशा रखते है, जिस में बॉलीवुड की झलक दिखाई दे।  अगर देखा जाइये तो पंजाबी फिल्म इंडस्ट्री में काफी कुछ बदल गया है। लोग अपनी भाषा में नए जमाने की फिल्म पसंद करते है। आज कामेडी, प्यार और थोडा बहुत एक्शन पसंद किया जाता है, उसी को ध्यान में रख कर फिल्म बनाई जा रही है।
ऑडिशन के मुख्य अतिथि लुधियाना सिटीजन कौंसिल के चेयरमैन दर्शन अरोड़ा ने भी सभी कलाकारों को बधाई दी और अपनी कला को ओर ज्यादा निखारने को कहा।
ऑडिशन के अंत में रविकांत गुप्ता, सुरेश गोयल, विजय गोयल, अमित शर्मा, काम्या एक्टिंग आकदमी के दीप कुमार, पी एस रंधावा, जस्सी व सतनाम सिंह ने  ऑडिशन में आये कलाकारों को सम्मानित किया।  
लुधियाना में पंजाबी फिल्म के लिए ऑडिशन आयोजित