Showing posts with label Hindi. Show all posts
Showing posts with label Hindi. Show all posts

Saturday, June 28, 2025

एक अधूरी आवाज़, एक ठहरी हुई चुप्पी

From Human Emotional State On Friday at 11:19 PM, 27th June, 2025, updated on 28th June, 2025 at 08:59 PM.

‘इंतज़ार में आ की मात्रा’ के आसपास की दुनिया


चंडीगढ़
: 27 जून, 2025 : (कार्तिका सिंह//पंजाब स्क्रीन डेस्क):: 

प्रेम को धैर्य की दरकार होती है... !!! काफ़ी देर बाद जब एक सुन्दर किताब पढ़ी जाती है तो, .... तो उस धैर्य में लिपटे प्रेम की बात ही अलग होती है। तो, ऐसा कुछ नहीं है मेरे पास कहने के लिए, लेकिन इस विषय पर संवाद करने की ख़्वाहिश हरदम शिद्दत से कायम रहती है।  

इसी सिलसिले में, लगभग दो महीने पहले एक किताब मिली, और उसी दिन से उसे लेकर लिखने के बारे में सोच रही हूँ। लेकिन आज जा कर लिख पा रही हूँ। कई बार सोचा कि जब पूरी पढ़ लूँगी, तभी कुछ कहूँगी, तभी इसके बारे में लिखूंगी। मात्रा में 

लेकिन कुछ किताबें ऐसी होती हैं जिन्हें चाहकर भी पूरी तरह पढ़ा नहीं जा सकता। आख़िरी पन्ने तक पहुंचने के बाद भी आप फिर से किसी एक कविता, एक पंक्ति, या एक शब्द के पास वापिस लौट हैं, उसके साथ इस तरह जुड़ जायेंगे, जैसे कि वो आपके लिए ही लिखा गया हो।

किताबों से इतर ये किताब आपके मन से होते हुए, कब आपकी सोच और रूह तक पहुँच जाएगी, इसे वक़्त की भाषा में समझा पाना मुश्किल है। शायद पलक झपकने से भी कम समय में यह आपके दिल पर एक छाप छोड़ जाएगी। 


'इंतज़ार में आ की मात्रा’ — नवीन रांगियाल जी का कविता संग्रह, जिसमें लगभग 170 कविताएँ हैं —
इन्हें पढ़ने के बाद आप वैसे नहीं रहते जैसे पहले थे।
एक नई-सी महसूस करने की ऊर्जा जैसे भीतर बहने लगती है।
बिना किसी हड़बड़ी के। बिना किसी जल्दबाज़ी के।

हर शब्द में एक सहजता है। एक सरलता है।
जैसे-जैसे आप पन्नों पर बढ़ते हैं, वैसे-वैसे कभी लौट कर पिछले पन्ने भी टटोलने लगते हैं।
क्योंकि वहाँ कुछ छूटा हुआ सा लगता है — और वही “छूटा हुआ” सबसे ज़्यादा अपना लगता है।

कभी लगता था, कि मन भावनाओं का ज़ाल है। जिसके तले सारा ब्रह्माण्ड समा सकता है, और शायद शब्द इस भावनाओं को बताने और जताने के रास्ते कम, पर बोझ ज़्यादा लगते हैं। 
वैसे ही जैसे, जब आपके पास बहुत कुछ होता है कहने के लिए, पर बताना नहीं आता। जाहिर करना नहीं आता। 

पर अगर शब्द इन कविताओं जितने ही सरल और सहज होते हुए, एक असीम और गहरा अर्थ छुपाये हुए हों, तो उन्हें बयां किया जा सकता है। 

खैर, 'इंतज़ार में आ की मात्रा' - कविताओं का ये संग्रह आपको भावनाओं के हर क्षितिज पर लेकर जायेगा। नवीन जी पत्रकार हैं। दैनिक भास्कर, नई दुनिया, लोकमत, वेबदुनिया जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों के साथ जुड़ चुके हैं।
इन प्रोफ़ेशनल परिचयों से इतर — वे कमाल के कवि और लेखक हैं।

मुझे नहीं पता कविताओं ने उन्हें ढूँढा या उन्होंने कविताओं को, पर उनके द्वारा लिखी हर कविता, हर प्रोज, हर शब्द आत्मीयता की गंध समाये हुए हैं। जैसे कि वो लिखते हैं —

"ये दुनिया तब तक चलती रहेगी, जब तक हम एक-दूसरे से मिलने जाते रहेंगे।"

और उस कविता में:

दुनिया में सबकुछ सही चल रहा है
जहां कहना था, वहां चुप्पियां रख दी गईं
जहां रोकना था, वहां जाने दिया
हर जगह सही बात कही और सुनी गई
सभी ने अपने लिए सबसे सही को चुना
सबकुछ सही तरीके से रखा गया
कहीं भी कोई गलती नहीं की गई
नतीजतन, सारे हाथ गलत हाथों में थे
सारे पांव गलत दिशाओं में चले गए
दुनिया में सारे फैसले सही थे 
इसलिए सारे सफ़र ग़लत हो गए।

जिंदगी और नौकरी की दुश्वारियों में -- कला का सृजन बेहद अद्भुत है। इस अनुभूति की अभिव्यक्ति करना ही जैसे नविन का मुख्य पेशा हो। वो दिल के ज़ज़्बातों को इतनी सरलता से आपके सामने रख देते हैं, जैसे कि वो शब्द आपके लिए ही लिखे गए हों। और लगता है, यही नवीन जी का असली पेशा है —

जो तुम्हारे लिए नहीं लिखा गया,
उसमें भी उपस्थित हो
और अदृश्य की तरह
मौजूद हो तुम
हर तरफ़
दूरी में बहुत दूर जैसे
ज़िंदगी में "न" की बिंदी
इश्क़ का आधा "श"
और इंतज़ार में "आ" की मात्रा की तरह। 

प्रेम और संवेदनाओं से आगे बढ़कर, वे आज के हालात के बारे में भी बखूबी लिखते हैं। 

सबसे पहने जबान काटी जाती है 
सबसे पहले रीढ़ तोड़ी जाती है 
फिर चाहे वो किसी आदमी की हो 
या हाथरस की किसी लड़की की हो 

और जब वह लिखते हैं —
"एक पंक्ति की प्रतीक्षा के लिए लंबे समय तक जिया जा सकता है,
एक पूरी रात काटी जा सकती है।
दो वाक्यों के बीच के कुछ भी न होकर एक आसान ज़िंदगी चुनी जा सकती है।"
तो दो अक्षरों और दो वाक्यों के बीच में रहना,
मैं शब्दों में बयां नहीं कर सकती। वे दो वाक्यों के बीच की 'ख़ामोशी' को भी कविता बना देते हैं।
उस खालीपन को जी लेना — शायद वही सबसे बड़ी कविता है।

आप इस किताब को Amazon, गूगल बुक्स या सेतु प्रकाशन के वेबपोर्टल से ऑनलाइन आर्डर कर सकते हैं। 
अगर आप साहित्य, शब्दों और ख़ास तौर पर कविताओं से प्रेम करते हैं तो इसे पढ़िए ज़रूर। 
उनकी दूसरी किताब भी जल्द ही आ रही है। 
आशा है, कि पत्रकार होते हुए, कवितायेँ ऐसे ही उनकी ज़िन्दगी में ख़बरों को ओवरटेक करती रहें।

Friday, June 12, 2020

ऑनलाइन और ऑफलाइन वर्गों में बढती दूरी बेहद चिंतनीय

  12th June 2020 at 6:14 AM
 कोरोना संकट के बाद दुनिया में डिजिटल सहयोग का नया रोडमैप 
11 जून 2020//एसडीजी  
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने कहा है कि कोविड-19 महामारी के दौरान डिजिटल टैक्नॉलॉजी के लाभ से वन्चित लोगों को स्वास्थ्य देखभाल से जुड़ी अहम जानकारी का ना मिल पाना उनके लिए जीवन-मरण का सवाल बन गया है। टैक्नॉलॉजी क्षेत्र में आ रहे तेज़ बदलावों से टिकाऊ विकास एजेंडा पर पड़ने वाले असर पर गुरुवार को चर्चा हुई, साथ ही डिजिटल सहयोग पर एक नया रोडमैप पेश किया गया है। 
यूएन महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने कहा कि डिजिटल सहयोग की ज़रूरत और तात्कालिकता से ध्यान हटाने के बजाय मौजूदा कोविड-19 संकट इसकी अहमियत को ही दिखा रहा है। 
संयुक्त राष्ट्र महासभा में गुरूवार को एक वर्चुअल उच्चस्तरीय चर्चा का आयोजन हुआ जिसमें टैक्नॉलॉजी क्षेत्र में तेज़ गति से आ रहे बदलावों से टिकाऊ विकास लक्ष्यों पर पड़ने वाले प्रभावों पर विचार-विमर्श हुआ।   

यूएन महासचिव ने कहा कि महामारी से निपटने की जवाबी कार्रवाई के केन्द्र में डिजिटल टैक्नॉलॉजी उभरी है – वैक्सीन पर शोध, ऑनलाइन माध्यमों पर पढ़ाई-लिखाई, ई-कॉमर्स, घर बैठकर दफ़्तर का काम करना, यानि जीवन के लगभग हर पहलू में इसका योगदान दिखाई देता है. 

लेकिन उन्होंने चिन्ता जताई कि ऑनलाइन सम्पन्न लोगों और ऑफ़लाइन यानि डिजिटल सुविधाओं से वंचित लोगों के बीच बढ़ती दूरी विषमता का एक नया चेहरा बन कर उभर रही है. 

कोविड-19 के बाद का रोडमैप
महासचिव गुटेरेश ने बैठक को सम्बोधित करते हुए कहा कि कोरोनावायरस संकट के बाद की दुनिया में समाज पर पड़ने वाले प्रभावों और उनक निहितार्थों को अभी समझने का प्रयास ही किया जा रहा है.

लेकिन यह तय है कि हम जैसे-जैसे उबरेंगे और पुनर्निर्माण करेंगे, डिजिटल टैक्नॉलॉजी पहले से कहीं अधिक अहम होगी. 

उन्होंने आशंका जताई कि डिजिटल माध्यमों से वंचित समुदाय इस प्रक्रिया में बहुत पीछे छूट जाएँगे.

ग़ौरतलब है कि डिजिटल सहयोग पर उच्चस्तरीय पैनल ने वर्ष 2019 में एक रिपोर्ट पेश की थी जिसमें मौजूदा डिजिटल खाई को पाटने की सिफ़ारिशें पेश की गई थीं.

साथ ही डिजिटल सन्दर्भ में मानवाधिकारों की रक्षा करने, साइबर सुरक्षा व भरोसा क़ायम करने और डिजिटल सहयोग के लिए एक नया वैश्विक ढाँचा खड़ा करने की बात शामिल थी.

इस रिपोर्ट का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि टैक्नॉलॉजी के हानिकारक पक्षों का समाधान सुनिश्चित करते हुए उसकी ख़ूबियों को सँवारा जाना होगा. 

महासचिव गुटेरेश ने कहा कि इन सभी पहलुओं को गुरुवार को डिजिटल सहयोग पर संयुक्त राष्ट्र द्वारा पेश नए रोडमैप में शामिल किया गया है. 

“हम डिजिटल युग के लाभों का पूर्ण इस्तेमाल तब तक नहीं कर सकते जब तक डिजिटल खाइयों को पाटने और नुक़सानदेह पहलुओं को दूर करने के लिए वैश्विक सहयोग को संगठित ना किया जाए.”

वैश्विक दूरदृष्टि और नेतृत्व की तत्काल ज़रूरत को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि इस रोडमैप में सभी से ठोस कार्रवाई का आहवान किया गया है ताकि डिजिटल युग में लोगों के साथ जुड़ा जा सके, उनका सम्मान और रक्षा सुनिश्चित की जा सके. 

यूएन प्रमुख ने स्पष्ट किया कि इस अभूतपूर्व लम्हे में हमने अवसरों का सही इस्तेमाल किया या नहीं, यह निर्णय भावी पीढ़ियाँ करेंगी. 

टैक्नॉलॉजी क्षेत्र में त्वरित बदलाव
महासभा अध्यक्ष तिजानी मोहम्मद-बाँडे ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में चर्चा का उदघाटन करते हुए कहा कि कोविड-19 महामारी के कारण सभी को अपने काम करने, पढ़ने, सीखने, दुख जताने और उबरने के तरीक़ों में बदलाव लाने के लिए मजबूर होना पड़ा है. 

यूएन महासभा प्रमुख के मुताबिक डिजिटल खाई से तात्पर्य महज़ डिजिटल साधनों की उपलब्धता में विषमताओं का मौजूद होना ही नहीं है, बल्कि इससे भी है कि टैक्नॉलॉजी में तेज़ी से हो रहे बदलाव से ये असमानताएँ और ज़्यादा व्यापक हो रही हैं. 

“जागरूकता की कमी और इण्टरनेट कनेक्टिविटी की ऊँची क़ीमतों के कारण शिक्षा के अवसर खो सकते हैं.”

उन्होंने कहा कि डिजिटल साक्षरता इस सदी का एक निर्धारक पहलु है और यही तय करेगा कि समाज मानवाधिकारों के हनन और जलवायु संकट जैसी भावी चुनौतियों का सामना किस तरह करते हैं. 

महासभा अध्यक्ष ने ध्यान दिलाया कि ग़रीबी का उन्मूलन करने (एसडीजी-1), भुखमरी का अन्त करने (एसडीजी-2) और सभी के लिए गुणवत्तापरक शिक्षा सुनिश्चित करना (एसडीजी-4) सहित अन्य टिकाऊ विकास लक्ष्यों को हासिल किया जाना बेहद आवश्यक है. 

इस परिप्रेक्ष्य में उन्होंने कहा कि अन्तरराष्ट्रीय समुदाय की ज़िम्मेदारी बनती है कि टैक्नॉलॉजी क्षेत्र में तेज़ गति से हो रहे बदलावों और उनके आर्थिक, सामाजिक व नैतिक पहलुओं का ख़याल रखा जाए और ज़रूरत पड़ने पर कार्रवाई हो. 

यूएन महासभा प्रमुख तिजानी मोहम्मद-बाँडे ने आगाह किया कि डिजिटल जगत में महिलाओं व लड़कियों की पूर्ण भागीदारी सुनिश्चित करने के रास्ते में आने वाली बाधाओं को दूर करने की रफ़्तार बढ़ानी होगी. 

उनके मुताबिक गुणवत्तापरक व किफ़ायती शिक्षा और अन्य सांस्कृतिक मानकों के कारण बहुत सी महिलाएँ ऐसे क्षेत्रों में आगे नहीं आ रही हैं.

वर्ष 2020 में टिकाऊ विकास के 2030 एजेंडा के मुताबिक कार्रवाई के दशक की शुरुआत की गई है.

उन्होंने बताया कि टिकाऊ विकास लक्ष्यों को हासिल करने के लिए जो संकल्प लिए गए थे उन्हें आँखों से ओझल नहीं होने देना है.

साथ ही टिकाऊ विकास लक्ष्यों को हासिल करने की रफ़्तार को तेज़ करने के लिए उभरती टैक्नॉलॉजी का इस्तेमाल करना होगा. 

Saturday, April 18, 2020

'यमन दो मोर्चों पर युद्ध नहीं लड़ सकता'

संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत मार्टिन ग्रिफ़िथ्स की अपील 
17 अप्रैल 2020//शांति और सुरक्षा
© UNICEF/Romenzi यमन में युद्ध के दौरान एक हवाई हमले में ध्वस्त हुए एक मकान के सामने बैठे कुछ बच्चे. (जुलाई 2019)
यमन में वैश्विक महामारी कोविड-19 के और ज़्यादा गंभीर होते जाने के कारण अब बिल्कुल सही वक़्त है कि युद्धरत पक्ष अपनी अदावत ख़त्म करके लड़ाई बन्द कर दें। यमन के लिए संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत मार्टिन ग्रिफ़िथ्स ने गुरूवार को वीडियो कान्फ्रेंसिंग के ज़रिए सुरक्षा परिषद की एक अनौपचारिक बैठक में कही। 

उन्होंने कहा, “यमन एक साथ दो मोर्चों का सामना नहीं कर सकता: युद्ध और एक वैश्विक महामारी. और वायरस का मुक़ाबला करने में यमन के सामने अब जो नया युद्ध दरपेश है, उसी में उसकी सारी ताक़त लग जाएगी।"

इस युद्ध को तत्काल रोके जाने और सारे संसाधन इस नई मुसीबत का मुक़ाबला करने में लगा देने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं है।”

ध्यान रहे कि यमन में अनेक वर्षों से सरकार समर्थित सेनाओं और हूती विद्रोहियों के बीच युद्ध जारी है।

सरकारी पक्ष को गठबंधन का समर्थन हासिल है जबकि हूती विद्रोहियों को अंसार अल्लाह आंदोलन भी कहा जाता है।

ये दोनों पक्ष ख़स्ता हालत में पहुँच चुके देश पर क़ब्ज़ा करने के लिए पाँच साल से भीषण युद्ध लड़ रहे हैं जहाँ विश्व का भीषणतम मानवीय संकट पैदा हो गया है।

यमन की लगभग 80 फ़ीसदी आबादी बाहरी व मानवीय सहायता पर निर्भर हो चुकी है। 

मार्टिन ग्रिफ़िथ्स ने कहा कि कि यमन में कोविड-19 महामारी के आने से वहाँ के लोगों की तकलीफ़ें और भी ज़्यादा दर्दनाक बनने का ख़तरा पैदा हो गया है। 
UN Photo/Eskinder Debebe 
सुरक्षा परिषद की एक वर्चुअल मीटिंग को यूएन मुख्यालय स्थित स्टूडियों स्टाफ़ ने मुमकिन बनाया. (16 अप्रैल 2020)
“इससे बेहतर और कोई समय नहीं हो सकता जब युद्धरत पक्षों को अपनी बन्दूकें ख़ामोश कर देनी होंगी व संघर्ष समाप्त करके एक शान्तिपूर्ण और राजनैतिक समाधान की तलाश करनी होगी।”

राष्ट्रव्यापी युद्धविराम के लिए वार्ता
यमन सरकार की सेनाओं को सऊदी अरब के नेतृत्व वाले गठबंधन का समर्थन हासिल है. इस गठबंधन ने यूएन महासचिव की अपील पर ध्यान देते हुए 8 अप्रैल को आरंभिक रूप में एक पखवाड़े के लिए इकतरफ़ा युद्धविराम की घोषणा की थी। 

महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने कुछ ही दिन पहले दिए अपने सन्देश में कोविड-19 वैश्विक महामारी को देखते हुए वैश्विक युद्धविराम की अपील की थी। 

मार्टिन ग्रिफ़िथ्स यमन में एक राष्ट्रव्यापी युद्धविराम के प्रस्तावों पर दोनों युद्धरत पक्षों के बीच बातचीत कराने के लिए सक्रिय रहे हैं। 

इनमें क़ैदियों की रिहाई, सिविल सेवा के कर्मचारियों की वेतन अदायगी और मानवीय सहायता कार्यों के लिए रास्तों का खोला जाना जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा शामिल है। 

उनका कहना था, “मैं पुरउम्मीद हूँ, और मेरा विश्वास है कि–जो प्रस्ताव मैंने रखे हैं, हम उन पर आम सहमति की तरफ़ बढ़ रहे हैं, ख़ासतौर से, एक राष्ट्रव्यापी युद्धविराम के सिद्धांत पर, जिसे दोनों ही पक्षों का समर्थन हासिल है।”

हताहतों की संख्या
विशेष दूत ने सुरक्षा परिषद के सदस्यों को ये भी बताया कि इन घटनाक्रमों के बावजूद,अदावत अब भी जारी है। 
संयुक्त राष्ट्र के मानवीय सहायता कार्यों के लिए शीर्ष अधिकारी मार्क लोकॉक ने भी इस मौक़े पर बताया कि यमन में जनवरी के बाद से आम लोगों के हताहत होने की संख्या हर महीने बढ़ती ही रही है. इस अवधि के दौरान 500 लोग हताहत हुए हैं, उनमें से लगभग एक तिहाई बच्चे थे। 

कोविड-19 यमन में ऐसे समय पहुँचा है जब देश में पाँच साल की लड़ाई के कारण स्वास्थ्य ढाँचा बुरी तरह चरमरा गया है, लोगों की रोग प्रतिरोधी क्षमता बहुत कमज़ोर हो चुकी है और उनके अन्दर बीमारियों के लिए बहुत अनुकूल परिस्थितियाँ पैदा हो गई हैं।

मानवीय सहायता कार्यों के संयोजक मार्क लोकॉक ने कहा, “परिणामस्वरूप स्वास्थ्य वैज्ञानिकों ने आगाह किया है कि कोविड-19 यमन में बहुत तेज़ी से फैल सकता है, ज़्यादा व्यापक दायरे में और अनेक अन्य देशों की तुलना में जानलेवा नतीजों के साथ।”

वैसे तो कोविड-19 महामारी को कम करने के लिए किए जा रहे ऐहतियाती उपायों के कारण सहायता अभियानों की रफ़्तार पर कोई असर नहीं पड़ा है, लेकिन रास्तों को रोके जाने, असुरक्षा और स्टाफ़ और सामान ले जाने पर लगी प्रशासनिक पाबंदियों के कारण बाधित ज़रूर हो रहे हैं। 

धन की कमी एक अन्य समस्या है, क्योंकि यमन में सहायता के लिए चलाए जा रहे 41 प्रमुख कार्यक्रमों और अभियानों में से 31 आने वाले कुछ सप्ताहों में बन्द हो जाएंगे, बशर्ते कि उन्हें सहारा नहीं दिया गया तो। 

मार्क लोकॉक ने अतीत में बीमारियों को क़ाबू करने में सक्रिय रहे स्वास्थ्य दलों को खो देने का डर जताते हुए कहा, “हमें इन चिकित्सा दलों की पहले से कहीं ज़्यादा ज़रूरत है – ना केवल कोविड-19 का मुक़ाबला करने के लिए, बल्कि बारिश का मौसम नज़दीक होने के कारण हैज़ा फिर से अपना सिर उठा सकता है।”

Friday, February 07, 2020

श्रीलंका के प्रधानमंत्री, महिंदा राजपक्षे नई दिल्ली पहुंचे

प्रविष्टि तिथि: 07 FEB 2020 8:07PM by PIB Delhi
वाराणसी, सारनाथ, बोधगया और तिरुपति भी जायेंगे
लुधियाना: 7 फरवरी 2020: (पंजाब स्क्रीन//पीआईबी):: 
पड़ोसी देशों के साथ सम्बन्धों को विकसित करने का सिलसिला लगातार जारी है। इसी भावना के अंतर्गत  श्रीलंका के प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे को भी विशेष निमंत्रण दिया गया है। 
इसी निमंत्रण पर श्रीलंका के प्रधानमंत्री, महिंदा राजपक्षे आज शाम नई दिल्ली पहुंचे हैं। वे देश के प्रधानमंत्री के निमंत्रण पर 8-11 फरवरी, 2020 तक भारत की राजकीय यात्रा पर हैं। श्रीलंका के प्रधानमंत्री के साथ एक उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल आया है। 8 फरवरी मुख्य कार्य दिवस है जहां पर वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ प्रतिनिधिमंडल स्तर की वार्ता करेंगे। वे देश के राष्ट्रपति से भी मुलाकात करेंगे और सुबह भारत के विदेश मंत्री श्रीलंका के प्रधानमंत्री से मुलाकात करेंगे।
दिल्ली में अपनी आधिकारिक कार्यों को करने के बाद श्रीलंका के प्रधानमंत्री वाराणसी, सारनाथ, बोधगया और तिरुपति की यात्रा करेंगे फिर कोलंबो लौट जाएंगे। दोनों देशों के बीच उच्च स्तरीय यात्राओं की एक लंबी श्रृंखला रही है। राष्ट्रपति गोतबाया राजपक्षे ने भारत की यात्रा को अपने पहले गंतव्य के रूप में चुना, जब उनके द्वारा चुनावी जीत के तुरंत बाद राष्ट्रपति का पद ग्रहण किया गया। कुल मिलाकर दोनों देशों के संबंध और भी प्रगाढ़ होंगें। इस का फायदा दोनों देशों के लोगों को भी होगा। 
**

Sunday, December 29, 2019

मन की बात//प्रधानमंत्री कार्यालय

29 DEC 2019 11:33AM by PIB Delhi
मन की बात 2.0’ की सातवीं कड़ी में प्रधानमंत्री के सम्बोधन का मूल पाठ (29.12.2019)
मेरे प्यारे देशवासियो, नमस्कार।
2019 की विदाई का पल हमारे सामने है। 3 दिन के भीतर-भीतर 2019 विदाई ले लेगा और हम, ना सिर्फ 2020 में प्रवेश करेंगे, नए साल में प्रवेश करेंगे, नये दशक में प्रवेश करेंगे,21वीं सदी के तीसरे दशक में प्रवेश करेंगे।मैं, सभी देशवासियों को 2020 के लिए हार्दिक शुभकामनायें देता हूँ। इस दशक के बारे में एक बात तो निश्चित है, इसमें, देश के विकास को गति देने में वो लोग सक्रिय भूमिका निभायेंगे जिनका जन्म 21वीं सदी में हुआ है -जो इस सदी के महत्वपूर्ण मुद्दों को समझते हुये बड़े हो रहे हैं।ऐसे युवाओं के लिए, आज, बहुत सारे शब्दों से पहचाना जाता है।कोई उन्हें Millennials के रूप में जानता है,तो कुछ उन्हें, Generation Z या तो Gen Z ये भी कहते हैं। और व्यापक रूप से एक बात तो लोगों के दिमाग में फिट हो गई है कि ये Social Media Generation है। हम सब अनुभव करते हैं कि हमारी ये पीढ़ी बहुत ही प्रतिभाशाली है। कुछ नया करने का, अलग करने का, उसका ख्वाब रहता है। उसके अपने opinion भी होते हैं और सबसे बड़ी खुशी की बात ये है, और विशेषकरके, मैं, भारत के बारे में कहना चाहूँगा, कि, इन दिनों युवाओं को हम देखते हैं, तो वो, व्यवस्था को पसंद करते हैं, system को पसंद करते हैं। इतना ही नहीं, वे system को, follow भी करना पसंद करते हैं। और कभी, कहीं system,properly respond ना करें तो वे बैचेन भी हो जाते हैं और हिम्मत के साथ,system को, सवाल भी करते हैं।मैं इसे अच्छा मानता हूँ। एक बात तो पक्की है कि हमारे देश के युवाओं को, हम ये भी कह सकते हैं, अराजकता के प्रति नफ़रत है।अव्यवस्था, अस्थिरता, इसके प्रति, उनको, बड़ी चिढ़ है।वे परिवारवाद, जातिवाद, अपना-पराया, स्त्री-पुरुष, इन भेद-भावों को पसंद नहीं करते हैं। कभी-कभी हम देखते हैं कि हवाई अड्डे पर, या तो सिनेमा के theatre में भी, अगर, कोई कतार में खड़ा है और बीच में कोई घुस जाता है तो सबसे पहले आवाज उठाने वाले, युवा ही होते हैं।और हमने तो देखा है,कि, ऐसी कोई घटना होती है, तो, दूसरे नौजवान तुरंत अपना mobile phone निकाल करके उसकी video बना देते हैं और देखते-ही-देखते वो video,viral भी हो जाता है।और जो गलती करता है वो महसूस करता है कि क्या हो गया! तो, एक नए प्रकार की व्यवस्था, नए प्रकार का युग, नए प्रकार की सोच, इसको, हमारी युवा-पीढ़ी परिलक्षित करती है।आज, भारत को इस पीढ़ी से बहुत उम्मीदे हैं।इन्हीं युवाओं को, देश को, नई ऊँचाई पर ले जाना है। स्वामी विवेकानंद जी ने कहा था –“My Faith is in the Younger Generation, the Modern Generation, out of them, will come my workers”। उन्होंने कहा था –‘मेरा विश्वास युवा पीढ़ी में है, इस आधुनिक generation में है, modern generation में है, और, उन्होंने विश्वास व्यक्त किया था, इन्हीं में से, मेरे कार्यकर्ता निकलेंगे। युवाओं के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा – “युवावस्था की कीमत को ना तो आँका जा सकता है और ना ही इसका वर्णन किया जा सकता है”।यह जीवन का सबसे मूल्यवान कालखंड होता है। आपका भविष्य और आपका जीवन, इस पर निर्भर करता है कि आप अपनी युवावस्था का उपयोग किस प्रकार करते हैं।विवेकानंद जी के अनुसार, युवा वह है जो energy और dynamism से भरा है और बदलाव की ताकत रखता है। मुझे पूरा विश्वास है कि भारत में, यह दशक, ये decade,न केवल युवाओं के विकास का होगा, बल्कि, युवाओं के सामर्थ्य से, देश का विकास करने वाला भी साबित होगा और भारत आधुनिक बनाने में इस पीढ़ी की बहुत बड़ी भूमिका होने वाली है,ये मैं साफ अनुभव करता हूँ। आने वाली 12 जनवरी को विवेकानंद जयंती पर, जब देश, युवा-दिवस मना रहा होगा, तब प्रत्येक युवा, इस दशक में, अपने इस दायित्व पर जरुर चिंतन भी करे और इस दशक के लिए अवश्य कोई संकल्प भी ले।

मेरे प्यारे देशवासियो, आप में से कई लोगों को कन्याकुमारी में जिस rock पर स्वामी विवेकानंद जी ने अंतर्ध्यान किया था, वहां परजो विवेकानंद rock memorial  बना है, उसके पचास वर्ष पूरे हो रहे हैं। पिछले पांच दशकों में, यह स्थान भारत का गौरव रहा है। कन्याकुमारी, देश और दुनिया के लिए एक आकर्षण का केंद्र बना है। राष्ट्रभक्ति से भरे हुए आध्यात्मिक चेतना को अनुभव करना चाहने वाले, हर किसी के लिए, ये एक तीर्थ-क्षेत्र बना हुआ है, श्रद्धा-केंद्र बना हुआ है। स्वामीजी के स्मारक ने, हर पन्थ, हर आयु के, वर्ग के लोगों को, राष्ट्रभक्ति के लिए प्रेरित किया है।‘दरिद्र नारायण की सेवा’, इस मन्त्र को जीने का रास्ता दिखाया है। जो भी वहां गया, उसके अन्दर शक्ति का संचार हो, सकरात्मकता का भाव जगे, देश के लिए कुछ करने का जज्बा पैदा हो - ये बहुत स्वाभाविक है।

हमारे माननीय राष्ट्रपति महोदय जी भी पिछले दिनों इस पचास वर्ष निर्मित rock memorial का दौरा करके आए हैं और मुझे खुशी है कि हमारे उप-राष्ट्रपति जी भी गुजरात के, कच्छ के रण में, जहाँ एक बहुत ही उत्तमरणोत्सवहोता है, उसके उद्घाटन के लिए गए थे। जब हमारे राष्ट्रपति जी, उप-राष्ट्रपति जी भी, भारत में ही ऐसे महत्वपूर्ण tourist destination पर जा रहे हैं, देशवासियों को, उससे जरुर प्रेरणा मिलती है - आप भी जरुर जाइये।

मेरे प्यारे देशवासियो, हम अलग-अलग colleges में, universities में, schools में पढ़ते तो हैं, लेकिन, पढाई पूरी होने के बाद alumni meet एक बहुत ही सुहाना अवसर होता है और alumni meet,ये सब नौजवान मिलकर के पुरानी यादों में खो जाते हैं,जिनकी, 10 साल, 20 साल, 25 साल पीछे चली जाती हैं।लेकिन, कभी-कभी ऐसी alumni meet, विशेष आकर्षण का कारण बन जाती है, उस पर ध्यान जाता है और देशवासियों का भी ध्यान उस तरफ जाना बहुत जरुरी होता है। Alumni meet, दरअसल, पुराने दोस्तों के साथ मिलना, यादों को ताज़ा करना, इसका अपना एक अलग ही आनंद है और जब इसके साथ shared purpose हो, कोई संकल्प हो, कोई भावात्मक लगाव जुड़ जाए, फिर तो, उसमें कई रंग भर जाते हैं।आपने देखा होगा कि alumni group कभी-कभी अपने स्कूलों के लिए कुछ-न-कुछ योगदान देते हैं।कोई computerized करने के लिए व्यवस्थायें खड़ी कर देते हैं,कोई अच्छी library बना देते हैं, कोई अच्छी पानी की सुविधायें खड़ी कर देते हैं,कुछ लोग नए कमरे बनाने के लिए करते हैं,कुछ लोग sports complex के लिए करते हैं।कुछ-न-कुछ कर लेते हैं।उनको आनंद आता है कि जिस जगह पर अपनी ज़िन्दगी बनी उसके लिए जीवन में कुछ करना, ये, हर किसी के मन में रहता है और रहना भी चाहिएऔर इसके लिए लोग आगे भी आते हैं।लेकिन, मैं आज किसी एक विशेष अवसर को आपके सामने प्रस्तुत करना चाहता हूँ I अभी पिछले दिनों, मीडिया में, बिहार के पश्चिम चम्पारण जिले के भैरवगंज हेल्थ सेंटर की कहानी जब मैंने सुनी, मुझे इतना अच्छा लगा कि मैं आप लोगों को बताये बिना रह नहीं सकता हूँ I इस भैरवगंज Healthcentre के, यानि, स्वास्थ्य केंद्र में, मुफ्त में, health check up करवाने के लिए आसपास के गांवों के हजारों लोगों की भीड़ जुट गई I अब, ये कोई बात सुन करके, आपको, आश्चर्य नहीं होगा। आपको लगता है, इसमें क्या नई बात है?आये होंगे लोग ! जी नहीं! बहुत कुछ नया है।ये कार्यक्रम सरकार का नहीं था, न ही सरकार का initiative था।ये वहां के K.R High School, उसके जो पूर्व-छात्र थे,  उनकी जो Alumni Meet थी, उसके तहत उठाया गया कदम था, और, इसका नाम दिया था ‘संकल्प Ninety Five’।  ‘संकल्प Ninety Five’ का अर्थ है- उस High School के 1995 (Nineteen Ninety Five) Batch के विद्यार्थियों का संकल्प I दरअसल, इस Batch के विद्यार्थियों ने एक Alumni Meet रखी और कुछ अलग करने के लिए सोचा Iइसमें पूर्व-छात्रों ने, समाज के लिए, कुछ करने की ठानी और उन्होंने जिम्मा उठाया Public Health Awareness  का I‘संकल्प Ninety Five’ की इस मुहिम में बेतिया के सरकारी Medical College और कई अस्पताल भी जुड़ गये।उसके बाद तो, जैसे, जन-स्वास्थ्य को लेकर एक पूरा अभियान ही चल पड़ा।निशुल्क जाँच हो, मुफ्त में दवायें देना हो, या फिर, जागरूकता फ़ैलाने का, ‘संकल्प Ninety Five’ हर किसी के लिए एक मिसाल बनकर सामने आया है I हम अक्सर ये बात कहते हैं कि जब देश का हर नागरिक एक कदम आगे बढ़ता है, तो ये देश, 130 करोड़ कदम आगे बढ़ जाता है I ऐसी बातें जब समाज में प्रत्यक्ष रूप में देखने को मिलती हैं तो हर किसी को आनंद आता है, संतोष मिलता है और जीवन में कुछ करने की प्ररेणा भी मिलती है I एक तरफ, जहाँ बिहार के बेतिया में,पूर्व-छात्रों के समूह नेस्वास्थ्य-सेवा का बीड़ा उठाया, वहीं उत्तर प्रदेश के फूलपुर की कुछ महिलाओं ने अपनी जीवटता से, पूरे इलाके को प्रेरणा दी है। इन महिलाओं ने साबित किया है कि अगर एकजुटता के साथ कोई संकल्प ले तो फिर परिस्थितियों को बदलने से कोई रोक नहीं सकता। कुछ समय पहले तक, फूलपुर की ये महिलाएँ आर्थिक तंगी और  गरीबी से परेशान थीं, लेकिन, इनमें अपने परिवार और समाज के लिए कुछ कर गुजरने का जज़्बा था I इन महिलाओं ने, कादीपुर के स्वंय सहायता समूह,Women Self Help Group उसके साथ जुड़कर चप्पल बनाने का हुनर सीखा, इससे इन्होंने, न सिर्फ अपने पैरों में चुभे मजबूरी के कांटे को निकाल फेंका, बल्कि, आत्मनिर्भर बनकर अपने परिवार का सम्बल भी बन गईं I ग्रामीण आजीविका मिशन की मदद से अब तो यहाँ चप्पल बनाने काplant भीस्थापित हो गया है, जहाँ, आधुनिक मशीनों से चप्पलें बनाई जा रही हैं। मैं विशेष रूप से स्थानीय पुलिस और उनके परिवारों को भी बधाई देता हूँ, उन्होंने, अपने लिए और अपने परिजनों के लिए, इन महिलाओं द्वारा बनाई गई चप्पलों को खरीदकर, इनको प्रोत्साहित किया है।आज, इन महिलाओं के संकल्प से न केवल उनके परिवार के आर्थिक हालत मजबूत हुए हैं, बल्कि, जीवन स्तर भी ऊँचा उठा है I जब फूलपुर के पुलिस के जवानों की या उनके परिवारजनों की बातें सुनता हूँ तो आपको याद होगा कि मैंने लाल किले से 15 अगस्त को देशवासियों को एक बात के लिए आग्रह किया था और मैंने कहा था कि हम देशवासी local खरीदने का आग्रह रखें।आज फिर से एक बार मेरा सुझाव है, क्या हम स्थानीय स्तर पर बने उत्पादों को प्रोत्साहन दे सकते हैं? क्या अपनी खरीदारी में उन्हें प्राथमिकता दे सकतें हैं? क्या हम Local Products को अपनी प्रतिष्ठा और शान से जोड़ सकते हैं? क्या हम इस भावना के साथ अपने साथी देशवासियों के लिए समृद्धि लाने का माध्यम बन सकते हैं? साथियो, महात्मा गाँधी ने, स्वदेशी की इस भावना को, एक ऐसे दीपक के रूप में देखा, जो, लाखों लोगों के जीवन को रोशन करता हो।  ग़रीब-से-ग़रीब के जीवन में समृद्धि लाता हो। सौ-साल पहले गाँधी जी ने एक बड़ा जन-आन्दोलन शुरू किया था। इसका एक लक्ष्य था, भारतीय उत्पादों को प्रोत्साहित करना। आत्मनिर्भर बनने का यही रास्ता गाँधी जी ने दिखाया था। दो हज़ार बाईस (2022) में, हम हमारी आज़ादी के 75 साल पूरे करेंगे।जिस आज़ाद भारत में हम सांस ले रहे हैं, उस भारत को आज़ाद कराने के लिए लक्ष्यावधि सपूतोंने, बेटे-बेटियों ने, अनेक यातनाएं सही हैं, अनेकों ने प्राण की आहुति दी है।लक्ष्यावधि लोगों के त्याग, तपस्या, बलिदान के कारण, जहाँ आज़ादी मिली, जिस आज़ादी का हम भरपूर लाभ उठा रहे हैं, आज़ाद ज़िन्दगी हम जी रहे हैं और देश के लिए मर-मिटने वाले, देश के लिए जीवन खपाने वाले, नामी-अनामी, अनगिनत लोग, शायद, मुश्किल से हम, बहुत कम ही लोगों के नाम जानते होंगे, लेकिन, उन्होंने बलिदान दिया - उस सपनों को ले करके, आज़ाद भारत के सपनों को ले करके - समृद्ध, सुखी, सम्पन्न, आज़ाद भारत के लिए !

मेरे प्यारे देशवासियो, क्या हम संकल्प कर सकते हैं, कि 2022, आज़ादी के 75  वर्ष हो रहे हैं, कम-से-कम, ये दो-तीन साल, हम स्थानीय उत्पाद खरीदने के आग्रही बनें? भारत में बना, हमारे देशवासियों के हाथों से बना, हमारे देशवासियों के पसीने की जिसमें महक हो, ऐसी चीजों को, हम, खरीद करने का आग्रह कर सकते हैं क्या ? मैं लम्बे समय के लिए नहीं कहता हूँ, सिर्फ 2022 तक, आज़ादी के 75 साल हो तब तक। और ये काम, सरकारी नहीं होना चाहिए, स्थान-स्थान पर नौजवान आगे आएं, छोटे-छोटे संगठन बनायें, लोगों को प्रेरित करें, समझाएं और तय करें - आओ, हम लोकल खरीदेंगे, स्थानीय उत्पादों पर बल देंगे, देशवासियों के पसीने की जिसमें महक हो - वही, मेरे आज़ाद भारत का सुहाना पल हो, इन सपनों को लेकर के हम चलें।

मेरे प्यारे देशवासियों, यह, हम सब के लिए, बहुत ही महत्वपूर्ण है, कि देश के नागरिक, आत्मनिर्भर बनें और सम्मान के साथ अपना जीवन यापन करें। मैं एक ऐसे पहल की चर्चा करना चाहूँगा जिसने मेरा ध्यान खींचा और वो पहल है, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख का हिमायत प्रोग्राम।हिमायत दरअसल Skill Development और रोज़गार से जुड़ा है।इसमें, 15 से 35 वर्ष तक के किशोर और युवा शामिल होते हैं। ये, जम्मू-कश्मीर के वे लोग हैं, जिनकी पढाई, किसी कारण, पूरी नहीं हो पाई, जिन्हें, बीच में ही स्कूल-कॉलेज छोड़ना पड़ा।

मेरे प्यारे देशवासियो, आपको जानकर के बहुत अच्छा लगेगा, कि इस कार्यक्रम के अंतर्गत, पिछले दो सालों में, अठारह हज़ार युवाओं को,77 (seventy seven), अलग-अलग ट्रेड में प्रशिक्षण दिया गया है। इनमें से, क़रीब पाँच हज़ार लोग तो, कहीं-न-कहीं job कर रहे हैं, और बहुत सारे, स्व-रोजगार की ओर आगे बढे हैं।हिमायत प्रोग्राम से अपना जीवन बदलने वाले इन लोगों की जो कहानियां सुनने को मिली हैं, वे सचमुच ह्रदय को छू लेती हैं !

परवीन फ़ातिमा, तमिलनाडु के त्रिपुर की एक Garment Unit में promotion के बाद Supervisor-cum-Coordinator बनी हैं।एक साल पहले तक, वो, करगिल के एक छोटे से गाँव में रह रही थी।आज उसके जीवन में एक बड़ा बदलाव आया, आत्मविश्वास आया - वह आत्मनिर्भर हुई है और अपने पूरे परिवार के लिए भी आर्थिक तरक्की का अवसर लेकर आई है।परवीन फ़ातिमा की तरह ही, हिमायत प्रोग्राम ने, लेह-लद्दाख क्षेत्र के निवासी, अन्य बेटियों का भी भाग्य बदला है और ये सभी आज तमिलनाडु की उसी फार्म में काम कर रहे हैं। इसी तरह हिमायत डोडा के फियाज़ अहमद के लिए वरदान बन के आया।फियाज़ ने 2012 में, 12वीं की परीक्षा पास की, लेकिन बीमारी के कारण,वो अपनी पढाई जारी नहीं रख सके।फियाज़,दो साल तक हृदय की बीमारी से जूझते रहे।इस बीच, उनके एक भाई और एक बहन की मृत्यु भी हो गई।एक तरह से उनके परिवार पर परेशानियों का पहाड़ टूट गया। आखिरकार, उन्हें हिमायत से मदद मिली।हिमायत के ज़रिये ITES यानी Information Technologyenabled services’में training  मिली और वे आज पंजाब में नौकरी कर रहे हैं।

फियाज़ अहमद की graduation की पढाई, जो उन्होंने साथ-साथ जारी रखी वह भी अब पूरी होने वाली है। हाल ही में, हिमायत के एक कार्यक्रम में उन्हें अपना अनुभव साझा करने के लिए बुलाया गया। अपनी कहानी सुनाते समय उनकी आँखों में से आंसू छलक आये।इसी तरह, अनंतनाग के रकीब-उल-रहमान, आर्थिक तंगी के चलते अपनी पढाई पूरी नहीं कर पाये।एक दिन,रकीब को अपने ब्लॉक में जो एक कैंप लगा था mobilisation camp, उसके जरिये हिमायत कार्यक्रम का पता चला।रकीब ने तुरंत retail team leader course में दाखिला ले लिया। यहाँ ट्रेनिग पूरी करने बाद आज, वो एक कॉर्पोरेट हाउस में नौकरी कर रहे हैं।‘हिमायत मिशन’ से लाभान्वित, प्रतिभाशाली युवाओं के ऐसे कई उदाहरण हैं जो जम्मू-कश्मीर में परिवर्तन के प्रतीक बने हैं। हिमायत कार्यक्रम, सरकार, ट्रैनिंग पार्टनर , नौकरी देने वाली कम्पनियाँ और जम्मू-कश्मीर के लोगों के बीच एक बेहतरीन तालमेल का आदर्श उदाहरण है|

 इस कार्यक्रम ने जम्मू-कश्मीर में युवाओं के अन्दर एक नया आत्मविश्वास जगाया है और आगे बढ़ने का मार्ग भी प्रशस्त किया।

मेरे प्यारे देशवासियों, 26 तारीख को हमने इस दशक का आख़िरी सूर्य-ग्रहण देखा।शायद सूर्य-ग्रहण की इस घटना के कारण ही MY GOV पर रिपुन ने बहुत ही Interesting comment लिखा है।वे  लिखते हैं ...’नमस्कार सर, मेरा नाम रिपुन है ..मैं north-east का रहने वाला हूँ लेकिन इन दिनों south में काम करता हूँ। एक बात मैं आप से share करना चाहता हूँ।मुझे याद है हमारे क्षेत्र में आसमान साफ़ होने की वजह से हम घंटों, आसमान में तारों पर टकटकी लगाये रखते थे। star gazing, मुझे बहुत अच्छा लगता था। अब मैं एक professional हूँ और अपनी दिनचर्या के कारण, मैं इन चीज़ों के लिए समय नहीं दे पा रहा हूँ... क्या आप इस विषय पर कुछ बात कर सकते हैं क्या ? विशेष रूप से Astronomy को युवाओं के बीच में कैसे popular किया जा सकता है ?’

मेरे प्यारे देशवासियों , मुझे सुझाव बहुत आते हैं लेकिन मैं कह सकता हूँ कि इस प्रकार का सुझाव शायद पहली बार मेरे पास आया है।वैसे विज्ञान पर, कई पहलुओं पर बातचीत करने का मौका मिला है।खासकर के युवा पीढ़ी के आग्रह पर मुझे बातचीत करने का अवसर मिला है। लेकिन ये विषय तो अछूता ही रहा था और अभी 26 तारीख को ही सूर्य-ग्रहण हुआ है तो लगता है कि शायद इस विषय में आपको भी कुछ न कुछ रूचि रहेगी।तमाम देशवासियों , विशेष तौर पर मेरे युवा-साथियों की तरह मैं भी,जिस दिन, 26 तारीख को, सूर्य-ग्रहण था, तो देशवासियों की तरह मुझे भी और जैसे मेरी युवा-पीढ़ी के मन में जो उत्साह था वैसे मेरे मन में भी था, और मैं भी, सूर्य-ग्रहण देखना चाहता था, लेकिन, अफसोस की बात ये रही कि उस दिन, दिल्ली में आसमान में बादल छाए हुए थे और मैं वो आनन्द तो नहीं ले पाया, हालाँकि, टी.वी पर कोझीकोड और भारत के दूसरे हिस्सों में दिख रहे सूर्य-ग्रहण की सुन्दर तस्वीरें देखने को मिली। सूर्य चमकती हुई ring के आकार का नज़र आ रहा था।और उस दिन मुझे कुछ इस विषय के जो experts हैं उनसे संवाद करने का अवसर भी मिला और वो बता रहे थे कि ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि चंद्रमा, पृथ्वी से काफी दूर होता है और इसलिए, इसका आकार, पूरी तरह से सूर्य को ढक नहीं पाता है।इस तरह से, एक ring का आकार बन जाता है।यह सूर्य ग्रहण, एक annular solar eclipse जिसे वलय-ग्रहण या कुंडल-ग्रहण भी कहते हैं।ग्रहण हमें इस बात की याद दिलाते हैं कि हम पृथ्वी पर रहकर अंतरिक्ष में घूम रहे हैं । अंतरिक्ष में सूर्य, चंद्रमा एवं अन्य ग्रहों जैसे और खगोलीय पिंड घूमते रहते हैं । चंद्रमा की छाया से ही हमें, ग्रहण के अलग-अलग रूप देखने को मिलते हैं । साथियो, भारत में Astronomy  यानि खगोल-विज्ञान का बहुत ही प्राचीन और गौरवशाली इतिहास रहा है । आकाश में टिमटिमाते तारों के साथ हमारा संबंध, उतना ही पुराना है जितनी पुरानी हमारी सभ्यता है । आप में से बहुत लोगों को पता होगा कि भारत के अलग-अलग स्थानों में बहुत ही भव्य जंतर-मंतर हैं , देखने योग्य हैं । और, इस जंतर-मंतर का Astronomy से गहरा संबंध है । महान आर्यभट की विलक्षण प्रतिभा के बारे में कौननहीं जानता ! अपनी काल -क्रिया में उन्होंने सूर्य-ग्रहण के साथ-साथ, चन्द्र-ग्रहण की भी विस्तार से व्याख्या की है । वो भी philosophical और mathematical, दोनों ही angle से की है । उन्होंने mathematically बताया कि पृथ्वी की छाया या shadow की size  का calculation कैसे कर सकते हैं।उन्होंने ग्रहण के duration और extent को calculate करने की भी सटीक जानकारियाँ दी। भास्कर जैसे उनके शिष्यों ने इस spirit को और इस knowledge को आगे बढ़ाने के लिएभरसक प्रयास किये।बाद में, चौदहवीं–पंद्रहवीं सदी में, केरल में, संगम ग्राम के माधव, इन्होंने ब्रहमाण्ड में मौजूद ग्रहों की स्थिति की गणना करने के लिए calculus का उपयोग किया।रात में दिखने वाला आसमान, सिर्फ, जिज्ञासा का ही विषय नहीं था बल्कि गणित की दृष्टि से सोचने वालों और वैज्ञानिकों के लिए एक महवपूर्ण sourceथा।कुछ वर्ष पहले मैंने ‘Pre-Modern Kutchi (कच्छी) Navigation Techniques and Voyages’, इस पुस्तक का अनावरण किया था । ये पुस्तक एक प्रकार से तो ‘मालम (maalam) की डायरी’ है । मालम, एक नाविक के रूप में जो अनुभव करते थे, उन्होंने, अपने तरीक़े से उसको डायरी में लिखा था । आधुनिक युग में उसी मालम  की पोथी को और वो भी गुजराती पांडुलिपियों का संग्रह, जिसमें, प्राचीन navigation technology का वर्णन करती है और उसमें बार-बार ‘मालम नी पोथी’ में आसमान का, तारों का, तारों की गति का, वर्णन किया है, और ये, साफ बताया है कि समन्दर में यात्रा करते समय, तारों के सहारे, दिशा तय की जाती है। Destination पर पहुँचने का रास्ता, तारे दिखाते हैं ।

मेरे प्यारे देशवासियो, Astronomy  के क्षेत्र में भारत काफी आगे है और हमारे initiatives , path breaking भी हैं। हमारे पास, पुणे के निकट विशालकाय Meter Wave Telescope है। इतना ही नहीं, Kodaikanal , Udaghmandalam ,Guru shikhar और Hanle Ladakh में भी powerful telescope हैं । 2016 में, बेल्जियम के तत्कालीन प्रधानमंत्री, और मैंने, नैनीताल में3.6 मीटर देवस्थल optical telescope का उद्घाटन किया था।इसे एशिया का सबसे बड़ा telescope कहा जाता है।ISRO के पास ASTROSAT नाम का एक Astronomical satellite है। सूर्य के बारे में research करने के लिये ISRO, ‘आदित्य’ के नाम से एक दूसरा satellite भी launch करने वाला है। खगोल-विज्ञान को लेकर, चाहे, हमारा प्राचीन ज्ञान हो, या आधुनिक उपलब्धियां, हमें इन्हें अवश्य समझना चाहिए, और उनपर गर्व करना चाहिए। आज हमारे युवा वैज्ञानिकों में’ न केवल अपने वैज्ञानिक इतिहास को जानने की ललक दिखाई पड़ती है बल्कि वे,Astronomy के भविष्य को लेकर भी एक दृढ़ इच्छाशक्ति रखते हैं।

    हमारे देश के Planetarium, Night Sky को समझने के साथ Star Gazing को शौक के रूप में विकसित करने के लिए भी motivate करते हैं।कई लोग Amateur telescopes को छतों या Balconies में लगाते हैं। Star Gazing से Rural Camps और Rural Picnic को भी बढ़ावा मिल सकता है। और कई ऐसे school-colleges हैंजो Astronomy के club भी गठन करते हैं और इस प्रयोग को आगे भी बढ़ाना चाहिए।

मेरे प्यारे देशवासियो, हमारी संसद को, लोकतंत्र के मंदिर के रूप में हम जानते हैं।एक बात का मैं आज बड़े गर्व से उल्लेख करना चाहता हूँ कि आपने जिन प्रतिनिधियों को चुन करके संसद में भेजा है उन्होंने पिछले 60 साल के सारे विक्रम तोड़ दिये हैं। पिछले छः मास में, 17वीं लोकसभा के दोनों सदनों, बहुत ही productive रहे हैं। लोकसभा ने तो 114% काम किया, तो, राज्य सभा ने  Ninty four प्रतिशत काम किया। और इससे पहले, बजट-सत्र में, करीब 135 फ़ीसदी काम किया था।देर-देर रात तक संसद चली। ये बात मैं इसलिये कह रहा हूँ कि सभी सांसद इसके लिये बधाई के पात्र हैं, अभिनन्दन के अधिकारी हैं। आपने जिन जन-प्रतिनिधियों को भेजा है, उन्होंने, साठ साल के सारे record तोड़ दिये हैं। इतना काम होना, अपने आप में, भारत के लोकतंत्र की ताकत का भी, और लोकतंत्र के प्रति आस्था का भी, परिचायक है। मैं दोनों सदनों के पीठासीन अधिकारियों, सभी राजनैतिक दलों को, सभी सांसदों को, उनके इस सक्रिय भूमिका के लिये बहुत-बहुत बधाई देना चाहता हूँ।

    मेरे प्यारे देशवासियो, सूर्य, पृथ्वी, चंद्रमा की गति केवल ग्रहण तय नहीं करती है, बल्कि, कई सारी चीजें भी इससे जुड़ी हुई हैं। हम सब जानते हैं कि सूर्य की गति के आधार पर, जनवरी के मध्य में, पूरे भारत में विभिन्न प्रकार के त्यौहार मनाये जाएंगे। पंजाब से लेकर तमिलनाडु तक और गुजरात से लेकर असम तक, लोग, अनेक त्योहारों का जश्न मनायेंगे। जनवरी में बड़े ही धूम-धाम से मकर- संक्रांति और उत्तरायण मनाया जाता है। इनको ऊर्जा का प्रतीक भी माना जाता है। इसी दौरान पंजाब में लोहड़ी, तमिलनाडु में पोंगल, असम में माघ-बिहु भी मनाये जाएंगे। ये त्यौहार, किसानों की समृद्धि और फसलों से बहुत निकटता से जुड़े हुए हैं।ये त्यौहार, हमें, भारत की एकता और भारत की विविधता के बारे में याद दिलाते हैं। पोंगल के आख़िरी दिन, महान तिरुवल्लुवर की जयन्ती मनाने का सौभाग्य, हम देशवासियों को मिलता है। यह दिन, महान लेखक-विचारक संत तिरुवल्लुवर जी को, उनके जीवन को, समर्पित होता है।

    मेरे प्यारे देशवासियो, 2019 की ये आख़िरी ‘मन की बात’ है। 2020 में हम फिर मिलेंगे। नया वर्ष, नया दशक, नये संकल्प, नयी ऊर्जा, नया उमंग, नया उत्साह – आइये चल पड़ें। संकल्प की पूर्ति के लिए सामर्थ्य जुटाते चलें।दूर तक चलना है, बहुत कुछ करना है,देश को नई ऊंचाइयों पर पहुँचना है। 130 करोड़ देशवासियों के पुरुषार्थ पर, उनके सामर्थ्य पर, उनके संकल्प पर, अपार श्रद्धा रखते हुए, आओ, हम चल पड़ें। बहुत-बहुत धन्यवाद, बहुत-बहुत शुभकामनाएं।
*****
VRRK/KP/VK

Wednesday, June 28, 2017

देश को मादक पदार्थों से मुक्त करवाने का आह्वान

28-जून-2017 18:52 IST
सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय का जनजागरण कार्यक्रम
The Union Minister for Social Justice and Empowerment, Shri Thaawar Chand Gehlot lighting the lamp at a programme on the occasion of the “International Day against Drug Abuse & Illicit Trafficking”, organised by the Ministry of Social Justice & Empowerment, in New Delhi on June 28, 2017. The Ministers of State for Social Justice & Empowerment, Shri Krishan Pal and Shri Vijay Sampla and the Secretary, Ministry of Social Justice and Empowerment, Smt. G. Latha Krishna are also seen.
नई दिल्ली: 28 जून 2017: (पीआईबी//पंजाब स्क्रीन):: 
मादक पदार्थों के दुरूपयोग और अवैध तस्करी के विरूद्ध अंतराष्ट्रीय दिवस पर सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय का जनजागरण कार्यक्रम
सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने मादक पदार्थों के दुरूपयोग और अवैध तस्करी के विरूद्ध अंतराष्ट्रीय दिवस के अवसर पर आज यहां एक समारोह आयोजित किया। सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री श्री थावर चंद गहलोत ने समारोह का उद्घाटन किया। इस अवसर पर सामाजिक न्याय और अधिकारिता राज्य मंत्री श्री कृष्ण पाल गुर्जर और श्री विजय सांपला के अलावा भारत में यूएनओडीसी के प्रतिनिधि श्री सरगी कैपीनोस, मंत्रालय में सचिव श्रीमती जी.लता कृष्ण राव और अनेक गणमान्य व्यक्ति मौजूद थे।
इस अवसर पर थावर चन्द गहलोत ने युवाओं और जनता का आह्वान किया कि वे देश को मादक पदार्थों और अवैध तस्करी से मुक्त करायें। उन्होंने कहा कि केवल सरकार के प्रयासों से इस उद्देश्य को पूरा नहीं किया जा सकता। इस बुराई को समाप्त करने के लिए लोगों की भागीदारी बहुत जरूरी है। उन्होंने मादक पदार्थों की रोकथाम के लिए अनेक व्यक्तियों और इस क्षेत्र में काम कर रहे एनजीओ के प्रयासों की सराहना की और जानकारी दी की उनका मंत्रालय नशा करने वालों की पहचान करने, उनके इलाज और पुनर्वास के लिए स्वयं सेवी संगठनों के जरिए समुदाय आधारित सेवायें प्रदान करता है।
अपने संबोधन में श्री कृष्ण पाल गुर्जर ने कहा कि मादक पदार्थों की रोकथाम के लिए सरकार ने अनेक पहल की हैं और परिवार के सदस्य तथा समाज बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। श्री विजय सांपला ने कहा कि लोगों को मादक पदार्थों की बुराइयों के प्रति जागरूक करना चाहिए और अनेक संगठन इस दिशा में कार्य कर रहे हैं।
प्रतिनिधियों ने इस अवसर पर आयोजित प्रदर्शनी देखी। भारत में यूएनओडीसी के प्रतिनिधि ने संयुक्त राष्ट्र महासचिव का संदेश पढ़ा। इस अवसर पर एक नृत्य नाटिका दिखाई गयी।
मंत्रालय मादक पदार्थों के दुरूपयोग की निगरानी करता है जिसमें नशा करने वालों की समस्या का आकलन, एहतियाती उपाय, इलाज और पुनर्वास, सूचना का प्रसार और जनजागरण शामिल है। मंत्रालय नशा मुक्ति केन्द्र चलाने के लिए देश भर के करीब 400 एनजीओ को वित्तीय सहायता प्रदान करता है। मंत्रालय ने नशा मुक्ति के लिए 24 घंटे की एक टोल फ्री सेवा भी स्थापित की है।
इससे पहले आज सुबह नई दिल्ली स्थित इंडिया गेट पर ‘मादक पदार्थ के दुरूपयोग के विरूद्ध दौड़’ आयोजित की गयी जिसमें 4000 लोगों ने भाग लिया। श्री थावर चंद गहलोत ने इस दौड़ को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया। इस अवसर पर श्री गुर्जर, श्री सांपला, दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया और मंत्रालय की सचिव जी. लता के अलावा अनेक अन्य लोग उपस्थित थे।
***

Saturday, June 10, 2017

प्रेस क्लब के चुनाव 25 जून को करवाने की ज़िद जारी?

 15 जून को जारी होगी वोटरों की सूची?
लुधियाना: 10 जून 2017: (पंजाब स्क्रीन ब्यूरो)::
लुधियाना में प्रेस क्लब बनाने की सरगर्मियां ज़ोरों से जारी हैं। हाल ही में घोषित चुनावी कार्यक्रम से डी.सी. और डी पी आर ओ ने खुद को चुनावी प्रक्रिया और पत्रकारों की आपसी गुटबंदी से अलग कर लिया था। प्रशासन के उस कदम से लगा था कि शायद इन चुनावों के लिए कोई नई तारीख घोषित होगी पर लगता है कि एक विशेष गुट 25 जून को ही चुनाव करवाने पर बज़िद है। इस मकसद के लिए लुधियाना प्रेस क्लब को रजिस्टर्ड नाम को रजिस्टर्ड भी करवा लिया गया है। इस मकसद का एक विशेष पत्र "इस प्रेस क्लब" के "सदस्यों" को ईमेल से भी भेजा गया है। इस पत्र के मुताबिक चुनाव 25 जून को होंगें और वोटिंग के लिए 350 पत्रकारों की प्राथमिक सूची बनाई गयी है। यह भी स्पष्ट किया गया है कि वोटर सूची 15 जून तक जारी कर दी जाएगी।                  
पत्र इस प्रकार है:             
प्रिय बंधुवर

हम बेहद खुशी के साथ यह ऐलान करते है कि आप सभी की सलाह एवं मांग के अनुसार लुधियाना शहर के लिए पत्रकारो का एक सरवसांझा प्रैस क्लब बनाने के प्रयासों के तौर पर लुधियाना प्रैस क्लब रजिस्ट्रड करवाकर इसके पदाधिकारियों के रूप में किसी एक ग्रुप या समाचार पत्र के प्रतिनिधि को आगे करने की बजाये कल्ब के सभी पदाधिकारियों का चुनाव वोट के जरिये करवाने का फैसला लिया गया है। आप भी इस क्लब के  मेंबर के तौर पर शामिल हैं । 

कार्यकारिणी कमेटी ने लोकतान्त्रिक तरीके से 25 जून को वोटिंग करवाने के लिए सभी प्रमुख समाचार पत्र, टीवी चैनल, लोकल अखबारों में से करीब 350 पत्रकारों की प्राथमिक सूची बनाई है।

जो पत्रकार इस सूची में शामिल होने से रहते है, उनसे  दस्तावेज मांगे गए है जोकि एपीआरओ दफ्तर या फिर परमेश्वर सिंह 98141 74325 को जमा करवा सकते हैं।
वोटर सूची 15 जून तक जारी कर दी जाएगी।

यदि आप अपना पहचान पत्र बनाना चाहते है तो कृपया अपनी वर्तमान फोटो इस ई-मेल पर भेजने का कष्ट करें जी। किसी भी और जानकारी के लिए आप इस ईमेल आईडी पर सम्पर्क कर सकते हैं।
Ludhiana press club <ludhianapressclub2017@gmail.com>

गौरतलब है कि शहर में प्रेस क्लब बनाने को लेकर एक विशेष मीटिंग का आयोजन पत्रकारों की ओर से लुधियाना क्लब में ९ जून को किया गया था। इस मीटिंग के बाद दावा किया गया था कि इस बैठक में प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के सभी जर्नलिस्ट और फोटो जर्नलिस्ट विशेष तौर पर पहुंचे। इस दौरान प्रेस क्लब को लेकर 26 सदस्यों पर आधारित कमेटी का गठन भी किया गया। इसमें सभी संस्थानों के प्रतिनिधियों को भी शामिल करने का दावा किया गया। 
इस दावे के मुताबिक मीटिंग के दौरान करीब 250 पत्रकार शामिल हुए। शामिल रहे पत्रकारों में से प्रमोद बातिश, रणदीप वशिष्ट, हितेश गुप्ता, भूपिंदर सिंह भाटिया, नीरज मैनरा, मुनीष अत्री, परमिंदर सिंह आहूजा, महेश औल, कुलवंत सिंह, गुरमीत सिंह, राजदीप सिंह, तरसेम भारद्वाज, अर्शदीप समर, राजीव शर्मा, संजय वशिष्ट, आशुतोष गौतम, रविंदर अरोड़ा, कुलदीप सिंह, योगेश कपूर, हरजोत अरोड़ा, अमनदीप सिंह मक्कड़, तुषार भारती को कमेटी में शामिल किया गया। कमेटी के मेंबर क्लब को लेकर रूप-रेखा तैयार करेंगे। इसके अलावा राजदीप सैनी, वरिंदर राणा, विनय दुआ, विक्की शर्मा, सुरिंदर अरोड़ा, राजेश शर्मा, निखिल भारद्वाज, दीपक सैलोपाल, मुनीष कुमार और नीरज जैन भी मौजूद रहे। 
इस मीटिंग के दौरान वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद बातिश और रणदीप वशिष्ट ने कहा कि आने वाले समय में पत्रकारों की समस्याओं का हल करने के लिए सभी एकजुट होकर चलेंगे। उन्होंनें कहा कि क्लब बनाने के लिए पत्रकार भाईचारे को आगे बढ़ कर पहल करनी चाहिए। विशवास भी दिलाया गया कि प्रेस क्लब के गठन के लिए अन्य एसोसिएशनों को भी साथ लेकर चला जाएगा। मीटिंग में समझाया गया कि क्लब के गठन से सभी पत्रकारों को एक मंच मिलेगा। यह भी कहा गया कि कमेटी की अगली मीटिंग जल्द ही की जाएगी। इसके बाद अलग-अलग कमेटियों का भी गठन भी किया जाएगा, ताकि क्लब के गठन को लेकर जल्द कार्रवाई शुरू की जा सके। उल्लेखनीय है कि पत्रकारों की ओर से लुधियाना में प्रेस क्लब बनाने के लिए लम्बे समय से मांग की जाती रही है। 
इस मांग के चलते कई उतराव चढ़ाव भी आये हैं लेकिन सच्ची एकता सामने नहीं आ सकी। इसका अहसास बहुत बार होता रहा। वर्ष 2014 में जब वरिष्ठ पत्रकार गौतम जालंधरी को अध्यक्ष बनाया गया था उस समय भी बहुत से सपने थे। जब लुधियाना में इस मकसद की सरगर्मियां तेज़ हुईं तो बहुत कुछ और भी सामने आया। प्रेस क्लब बनाने के मामले को लेकर स्वयंभू टीम की तानाशाही भी चर्चा में आई। इस सब कुछ के बावजूद सरगर्मियां जारी रहीं। उन दिनों भी डीपीआरओ कार्यालय को एक गुट अपने व्यक्तिगत कार्यालय की तरह प्रयोगकर रहा था। उस समय भी डीपीआरओ कार्यालय ने अपनी स्थिति स्पष्ट की थी। मई 2015 में भी लुधियाना में मीडिया के अधिकारों की जंग तेज़ हुई। उस समय भी लगने लगा था कि बस आजकल में ही प्रेस क्लब बना जायेगा। हालांकि एक वरिष्ठ पत्रकार चरणजीत सिंह तेजा ने पंजाबी भवन के खुले प्रांगण में एक पेड़ के नीचे खड़े हो कर स्पष्ट किया था कि यह सब इतना आसान नहीं है। इस सपने को साकार करने के लिए संघर्ष करना होगा। उस के बाद इस मीटिंग से अलग हो कर एक विशेष बैठक 23 मई 2015 को आयोजित की गयी थी।  इसकी तैयारियों के चलते भी लगता था कि बस अब बहुत जल्द बनेगा प्रेस क्लब। उन दिनों भी बहुत बार कन्फूज़न की स्थिति पैदा हुई। कभी लगा सब कुछ गया कभी लगा सब कुछ बना। पर वास्तव में सब कुछ अपनी अपनी शक्ति के प्रदर्शन जैसा ही था। इसके बावजूद सरकारी सरगर्मियों का विरोध करने वाले गुट ने तेज़ी दिखाते हुए कुछ पहलकदमियां की और अपनी कार्यकारिणी का ऐलान कर दिया था। उन दिनों ही प्रेस लायन्ज़ क्लब भी सामने आया। पत्रकारों का जोश भी बहुत था। उत्साह भी बहुत था लेकिन इस सब के बावजूद बात नहीं बन सकी। आखिर बात बिगड़ती क्यों थी। क्या अलग अलग गुटों ने कोई ज़मीन बांटनी थी या जागीर अपने नाम लगवानी थी। अफ़सोस कि प्रेस क्लब की बात बिगड़ती क्यों थी यह सवाल आज भी कायम है। 
प्रेस क्लब के लिए दो या तीन या अधिक गुट भी सामने आएं तो कोई बुर बात नहीं। लोकतंत्र में सभी को अपनी आवाज़ बुलंद करने का अधिकार है। जालंधर प्रेस क्लब में शायद मुख्यता तीन गुट थे। लेकिन सभी का संविधान, ऐजेंडा और सदस्य सूची सामने आने में क्या हर्ज है। इस सरे काम को आराम से सहज हो कर करने में क्या बुराई है? सब कुछ किसी हड़बड़ी में क्यों?
अगर इस तरह की बातों से प्रेस क्लब बन भी जाता है तो उसमें एकता और प्रेम का अभाव हमेशां रहेगा। अगर पहले कदम पर ही पूर्ण एकता नहीं है तो आधा राह चल कर एकता होगी यह स्वीकार करना बहुत मुश्किल है। इस हड़बड़ी में कहीं ऐसा न हो--

Saturday, October 22, 2016

तीन कोनी रोड़ पर ट्रक ने कुचला--एक नौजवान की मौत

Sat, Oct 22, 2016 at 7:08 PM
ट्रक चालक फरार, कंडकटर को लोगों ने पकडक़र किया पुलिस के हवाले
भदौड़: 22 अक्टूबर 2016:  (विजय जिंदल//पंजाब स्क्रीन):
स्थानीय बस स्टैंंड व तीनकोनी रोड़ पर एक मोटरसाईकल स्वार को ट्रक ने कुचल कर मार दिए जाने का दुखद समाचार है।   
प्राप्त जानकारी अनुसार 35 वर्षीय बलदेव सिंह पुत्र मेजर सिंह नैणेवाल रोड़ निवासी भदौड़ अपनी मोटरसाईकल पीबी10 सीएल 3262 पर बस स्टैंड की ओर से तीनकोनी की ओर जा रहा था कि जैसे ही वे मालवा ग्रामीण बैंक के पास पहुंचा तो अचानिक ही पीछे से आ रहे एक तेज़ रफ्तार ट्रक की चपेट में आ गया और उकत नौजवान के सिर व जांगों पर से ट्रक चढ़ गया और बलदेव सिंह को बुरी तरह से कुचल दिया जिस कारण उक्त नौजवान की घटना स्थल पर ही मृत्यु हो गई उपरोकत घटना के बाद ट्रक ड्राईवर ने ट्रक भगाने की कोशिश की परतु तीनकोनी के पास खड़े लोगों नें ट्रक को घेर लिया और हड़बड़ाहट में एक व्यक्ति ट्रक से उतर कर भागने के इरादे से बाजाखाना रोड़ पर दौडऩे लगा जिसे सामने से आ रहे नौजवानों नें पकड़ लिया। पकड़े जाने पर उसने लोगों को बताया कि  वह तो क्लीनर है।  घटना की जानकारी मिलते ही पुलिस थाना भदौड़ से मुख्य. मुंशी रणजीत सिंह, निर्मल सिंह व सुखविंद्र सिंह आदि ने वहां पहुंचकर उपरोकत लाडी सिंह पुत्र जै सिंह निवासी भदौड़ को अपने कबजे में ले लिया उपरोकत लाडी सिंह ने बताया कि ट्रक को जसमेल सिंह बरनाला नामक ड्राईवर चला रहा था जो घटना के बाद ट्रक छोडक़र फरार हो गया। भदौड़ पुलिस के रणजीत सिंह ने लाडी सिंह व तीनकोनी पर खड़े ट्रक को हिरासत में ले लिया और मृत्क शव को पोस्ट मारटम के लिए भेज दिया। और ट्रैफिक जाम को खुलवाया। इस मौत फिर सवाल खड़ा किया कि कब तक जाती रहेगी सड़क हादसों में जान? क्या यातायात प्रबन्धन इन मौतों को मूक दर्शक बनादेखता रहेगा?

Thursday, September 15, 2016

हिन्दी के विकास में गैर हिन्दी क्षेत्र के विद्वानों का बहुत बड़ा योगदान


हिन्दी को हमें आत्म सम्मान के साथ जोड़ना होगा-राधे श्याम शर्मा
कमला  लोहटिया कालेज लुधियाना में भी हिंदी दिवस 
पंचकूला/चंडीगढ़/पिंजौर/लुधियाना14 सितंबर 2016: (पुष्पिंदर कौर//पंजाब स्क्रीन):
विवाद करने वाले विवाद करते रहे लेकिन हिंदी के चाहने वाले लगातार बढ़ रहे हैं। हिंदी में बात करना और हिंदी में लिखना अब धीरे धीर गर्व की बात महसूस करने जैसा हो रहा है। हिंदी दिवस के अवसर पर चंडीगढ़ और आसपास ले इलाकों में विशेष कार्यक्रम हुए। 

हिन्दी केवल अभिव्यक्ति की भाषा नहीं है। हिन्दी एक राष्ट्र, एक सभ्यता, एक संस्कृति है। यह विचार दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रो.कुमुद शर्मा ने हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा आयोजित हिन्दी दिवस समारोह की अध्यक्षता करते हुए प्रकट किए। उनके विचारों को सभी ने बहुत प्रेम से सुना। 
उन्होंने बताया कि हरियाणा राज्य की स्वर्ण जयंती के उपलक्ष्य में इस वर्ष अकादमी द्वारा प्रदेश के सभी सरकारी तथा गैर सरकारी सहायता प्राप्त महाविद्यालयों में हिन्दी दिवस पर विशेष आयोजनों की व्यवस्था की गई है। अकादमी के उपाध्यक्ष राधे श्याम शर्मा ने कहा कि हिन्दी भाषा के विकास में गैर हिन्दी क्षेत्र के विद्वानों का बहुत बड़ा योगदान है। हिन्दी के विकास को हमें आत्म सम्मान और अस्मिता के साथ जोड़ना होगा तब शायद हिन्दी दिवस मनाने की आवश्यकता ही न रहे। गोष्ठी में सतनाम सिंह, अरुण जौहर, गणेश दत्त, निखा खोलिया, सुनीता नैन, एसएल धवन, चन्द्र भार्गव, संगीता बैनीवाल, उर्मिल सखी, सुशील हसरत, नरेन्द्र आहुजा विवेक, राजेश पंकज, शशि प्रभा, मीरा गौतम, अमर जीत ‘अमर’ तथा सुभाष रस्तोगी ने कविता पाठ किया। मंच संचालन डॉ. विजेन्द्र कुमार ने किया जिसे बहुत पसन्द किया गया।
पिंजौर/कालका: इसी तरह बुधवार को हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में पिंजौर, कालका के विभिन्न स्कूलों में अनेक कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। सीआरपी केन्द्र पिंजौर के केन्द्रीय विद्यालय में काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। सेंट विवेकानंद स्कूल पिंजौर में वॉइस प्रिंसिपल पल्लवी भारद्वाज, बाल भारती स्कूल कालका की प्रिंसिपल पूनम गौतम ने बच्चों को हिंदी का महत्व बताया। इन  ही हिंदी का प्रभाव क्षेत्र बढ़ेगा। 
लुधियाना: अन्य स्थानों की तरह लुधियाना में भी बहुत से संस्थानों की ओर  से विशेष आयोजन हुए। गवर्नमेंट कॉलेज फॉर ब्वॉयज में पंजाब हिंदी परिषद नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति द्वारा संयुक्त रुप से राष्ट्रीय हिंदी दिवस के मौके पर समारोह का आयोजन किया गया। इस शानदार कार्यक्रम में हायर एजुकेशन मिनिस्टर सुरजीत सिंह रखड़ा मुख्यातिथि के तौर पर शामिल हुए। वहीं, मेयर हरचरण सिंह गोहलवड़िया, राजेंद्र भंडारी, अजय सिंह, मदन बस्सी, अंगरुप सोनम, आर के मल्होत्रा ने विशेषातिथि के तौर पर शिरकत की। कॉलेज प्रिंसिपल डॉ. धर्म सिंह संधू ने सभी मेहमानों का स्वागत किया। हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार भाषा आयोग के सदस्य हरमिंदर सिंह बेदी ने मुख्य प्रवक्ता के तौर पर हिस्सा लिया। यशपाल बांगिया ने पंजाब हिंदी परिषद के प्रयासों पर प्रकाश डाला। डॉ. बबीता जैन और डॉ. निरत्तोमा मोदगिल शर्मा ने पंजाब में हिंदी के उपयोग उत्थान पर जोर दिया। एससीडी गवर्नमेंट कॉलेज, मालवा सेंट्रल कॉलेज के स्टूडेंट्स ने कल्चरल कार्यक्रम पेश कर सभी का मनोरंजन किया। इस मौके पर किरन साहनी, रणधीर शर्मा ने भी खासतौर पर शिरकत की। पंजाब हिंदी परिषद के प्रधान नरेंद्र बांगिया ने समारोह के सफल आयोजन के लिए ओम प्रकाश शर्मा, यश पाल छाबड़ा, महेश शर्मा अन्य कार्यकारी सदस्यों का धन्यवाद किया। लुधियाना का यह आयोजन भी बेहद सफल रहा। 

Thursday, July 28, 2016

उपन्यास ‘’चित्रांश" की समीक्षा हेतु विशेष आयोजन

Wed, Jul 27, 2016 at 2:08 PM
मध्यप्रदेश राज भाषा समिति की सदस्य सुश्री प्रेमलता नीलम ने भी की समीक्षा 
दमोह: (मध्यप्रदेश): 26 जुलाई 2016: (नूतन पटेरिया//पंजाब स्क्रीन)::
किताबों के बहाने होती चर्चा से समाज की गिरावट तक रुकी हुई है। गैर किताबी संचार साधनों के ज़रिये जिस आधुनिकता की अंधी ज़ोरों से चल रही है वह तबाहकुन है। किताबोंकी चर्चा के कारण बहुत सी परम्पराएं अभी जीवित हैं जिनके ज़रिये समाज में नैतिक मूल्य अभी भी बाकी बचे हुए हैं। मंगलवार 26 जुलाई को एक ऐसा ही मंगल अवसर था दमोह में जिसमें कुछ जानेमाने हस्ताक्षर एक साथ मौजूद थे। मध्यप्रदेश राष्ट्र भाषा प्रचार समिति भोपाल जिला दमोह के तत्वाधान में सरस्वती शिशु मंदिर के सभागार में विनोद कुमार श्रीवास्तव लिखित उपन्यास ‘’चित्रांश" (वेदिक्कालिन प्रयोगधर्मी उपन्यास) की समीक्षा हेतु आयोजन किया गया। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि वरिष्ट साहित्यकार श्री विमल लहरी और अध्यक्ष श्री ओजेंद्र तिवारी रहे। उपन्यास की समीक्षा मध्यप्रदेश राज भाषा समिति की सदस्य सुश्री प्रेमलता नीलम, श्री रामकुमार तिवारी सहायक प्राध्यापक, श्री श्याम सुंदर शुक्ल वरिष्ट साहित्यकार एवम नूतन पटेरिया द्वारा प्रस्तुत की गयी। कार्यक्रम का सफल संचालन डॉ प्रेमलता नीलम एवम आभार डॉ रघुनंदन चिले ने किया। कार्यकर्म में श्रीमती पुष्पा चिले, हेमलता दुबे, कुसुम खरे श्री अमर सिंह, आनन्द जेन, श्री मनीष रैकवार उपसिथत रहे।

Friday, June 03, 2016

ई टूरिस्ट वीजा से हुई विदेशी पर्यटकों की संख्या में बढ़ोतरी

03-जून-2016 11:21 IST

विदेशी पर्यटकों को भारत बुलाने पर खासा ध्यान दे रही है सरकार 
                                                                                         -मंजरी चतुर्वेदी* का विशेष लेख 
पर्यटन के क्षेत्र में विकास और देश की जीडीपी में पर्यटन की हिस्सेदारी को बढ़ाना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रमुख एजेंडों में से एक है। इसके लिए केंद्र सरकार जहां एक ओर घरेलू पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए प्रयासरत है तो दूसरी ओर विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए भी सरकार तमाम कोशिशें कर रही है। इसके तहत सरकार बुनियादी ढांचे को सुधारने से लेकर पर्यटन से जुड़ी सुविधाओं की बेहतरी पर जोर दे रही है। केंद्र सरकार पर्यटन के नक्शे पर भारत का नाम प्रमुखता से उभारना चाहती है, इसी के मद्देनजर वह विदेशी पर्यटकों को भारत बुलाने पर खासा ध्यान दे रही है। 
इसके तहत जहां एक ओर भारत सरकार ने ई टूरिस्ट वीजा का शुरुआत की, वहीं दूसरी ओर विदेशी पर्यटकों के लिए स्पेशल हेल्पलाइन से लेकर टूरिस्ट किट व मोबाइल सिम तक तमाम सुविधाएं मुहैया कराई जा रही हैं। उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार ने नंवबर 2014 को भारत में ई टूरिस्ट वीजा की शुरुआत की थी। इसके लिए पर्यटन मंत्रालय ने गृह मंत्रालय, विदेश मंत्रालय और नागर विमानन मंत्रालय के साथ मिलकर काम किया था। 

ई टूरिस्ट वीजा योजना के शुरू में 43 देशों को ये सुविधा दी गई थी, लेकिन 2016 आते- आते यह सुविधा 150 देशों तक पहुंच चुकी हैं। जिसमें दुनिया के तमाम छोटे-बड़े देश तक सब शामिल हैं। गौरतलब है कि इस समय देश के 16 महत्वपूर्ण एयरपोर्ट पर यह सुविधा काम करने लगी है। इन महत्वपूर्ण हवाई अड्डों में दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, कोलकाता, हैदराबाद, बेंगलुरू, तिरुअनंतपुरम, गोवा, कोच्चि, वाराणसी, गया, अहमदाबाद, अमृतसर, तिरुचिरापल्ली, जयपुर और लखनऊ शामिल हैं। 

विदेशी पर्यटकों की आवक को लेकर की जा रही कोशिशों का असर अब दिखने लगा है। अगर आंकड़ों की बात की जाए तो देश में ई टूरिस्ट सुविधा लागू होने के बाद विदेशी पर्यटकों की आवक बढ़ी है। वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के मुताबिक ट्रैवल एंड टूरिस्ट इंडेक्स में भारत की स्थिति पहले से मजबूत हुई है। जहां यह पहले 65वें पायदान पर था, वहीं ताजा आंकड़ों के मुताबिक 12 पायदान आगे बढ़कर अब 53 पायदान पर आ गया है। गौरतलब है कि जनवरी से दिसंबर तक साल 2015 में जहां विदेशी पर्यटकों की तादाद 80.2 लाख रही, जबकि जनवरी से दिसंबर तक साल 2014 में यह तादाद 76.8 लाख थी। एक साल में इस आंकड़े में 4.4 फीसदी की बढोतरी देखी गई। इस साल भी इसमें भरपूर बढ़ोतरी देखने को मिल रही है। साल 2016 की जनवरी में भी ट्रेंड लगातार जारी है। इस साल जनवरी में जहां 8.4 लाख लोग आए, वहीं जनवरी 2015 में विदेशी पर्यटकों की आवक 7.9 लाख थी। इस तादाद में तकरीबन 6.8 फीसदी का इजाफा देखा गया। 

विदेशी पर्यटकों की आवक का एक बडा़ असर देश की विदेशी मुद्रा की आय में बढ़ोतरी के तौर पर भी दिखा। सरकारी आंकड़ें के मुताबिक, विदेशी पर्यटकों के जरिए साल 2013 में जहां 1,07,671 करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा आय हुई, वहीं साल 2014 में यह बढ़कर 1,23,320 करोड़ रुपये हुई, जबकि साल 2015 में यह राशि 1,35,193 करोड़ रुपये हो गई। 

विदेशी पर्यटकों की आवक में सबसे ज्यादा बढ़ोतरी ई टूरिस्ट वीजा के तहत हुई है। जनवरी से दिसंबर तक साल 2015 में ई टूरिस्ट वीजा पर 4,45,300 पर्यटक दिल्ली पहुंचे, वहीं दूसरी ओर इसी अवधि में साल 2014 में यह संख्या 39,046 थी। इस दृष्टि से यही बढ़ोतरी लगभग 1040 फीसदी रही। साल 2016 के जनवरी-फरवरी में ई टूरिस्ट वीजा के जरिए 2,05,372 पर्यटक पहुंचे, जबकि इसी अवधि में साल 2015 में यह तादाद 50,008 थी। इस लिहाज में यह वृद्धि तकरीबन 310 फीसदी रही। साल 2015 में ई टूरिस्ट के जरिए भारत आने वाले विदेशी पर्यटकों में सबसे ज्यादा तादाद यूके, अमेरिका, रूस, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, फ्रांस, कनाडा, चीन, दक्षिण  कोरिया और चीन  की रही।

ई टूरिस्ट वीजा के जरिए भारत आने वाले विदेशी पर्यटकों के लिए भारत सरकार ने एक स्वागत पुस्तिका या वेलकम बुकलेट की सुविधा देना भी शुरू किया है, जिसमें विदेशी पर्यटकों को एयरपोर्ट पर उतरते ही एक बुकलेट दी जाती है, जिसमें पर्यटन अधिकारियों के संपर्क नबर, ईमेल आई डी जैसी तमाम जानकारी के साथ-साथ यहां ‘क्या करें’ और ‘क्या न करें’ की एक लिस्ट भी रहती है। इसके अलावा हेल्पलाइन नंबर की जानकारी भी होती है। पर्यटन मंत्रालय ने विदेशी पर्यटकों की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए एक टूरिस्ट हेल्प लाइन सेवा भी शुरू की है, जिसमें फिलाहल बारह विदेशी भाषाओं के माध्यम से जानकारी उपलब्ध है। 


यहां जानना रोचक होगा कि पर्यटन मंत्रालय विदेशी पर्यटकों के लिए अलग-अलग जरूरतों और रुचियों को ध्यान में रखते हुए पर्यटन की सुविधाओं और योजनाओं पर काम करना शुरू किया है; मसलन धार्मिक पर्यटन, मेडिकल पर्यटन, एडवेंचर व रोमांचक पर्यटन के अलावा, सामान्य पर्यटन तो है ही। भारत कई धर्मों का एक संगम है; इसी को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार ने धार्मिक पर्यटन का बढ़ावा दिया है। एनडीए सरकार द्वारा शुरू किए गए बुद्ध सर्किट, रामायण सर्किट और कृष्ण सर्किट इसी मकसद से आगे बढ़ाए जा रहे हैं। उल्लेखनीय है कि चीन, जापान, कोरिया, हांगकांग सहित तमाम पूर्वोतर एशियाई देशों में बड़ी तादाद में बौद्ध रह रहे हैं। इन सब देशों के लिए भारत एक बेहद सम्मानित और पावन स्थान के तौर पर देखा जाता है; इसी के मद्देनजर भारत सरकार देश में बुद्ध सर्किट को लेकर काफी गंभीरता से काम कर रही है। भारत बु़द्ध सर्किट को लेकर सिर्फ देश के भीतर ही नहीं, बल्कि अपने पड़ोसी देशों मसलन, नेपाल और श्रीलंका जैसे देशों के साथ मिलकर भी एक ग्रेटर बुद्ध सर्किट की दिशा में आगे बढ़ने की योजना बना रही है। 

वहीं दूसरी ओर भारत ने मेडिकल और वेलनेस पर्यटन की दिशा में भी काफी कदम आगे बढ़ाया है। इसी के मद्देनजर पर्यटन मंत्रालय ने देश में मेडिकल एंड वेलनेस टूरिजम प्रमोशन बोर्ड बनाया है। इसका मकसद देश व दुनिया के तमाम रोगियों को भारत में बेहतरीन चिकित्सा सुविधाएं प्रदान करना है। उल्लेखनीय है कि भारत के मेडिकल सुविधाओं, क्वालिटी और डॉक्टरों व हॉस्पिटल्स के स्तर को देखते हुए अब पूरी दुनिया से लोग भारत इलाज के लिए आ रहे हैं। इनमें पूर्वोतर व पश्चिमी एशियाई देशों के अलावा, यूरोप व लैटिन अमेरिकी देशों के लोग शामिल हैं। दरअसल, पर्यटन से जुड़े नियोजकों का मानना है कि इलाज के लिए भारत आने वाले विदेशी अपने शिड्यूल में थोड़ा समय घूमने फिरने के लिए भी रखते हैं। दूसरी ओर अब वेलनेस भी लोगों के बीच एक बड़ा ट्रेंड हो गया है। दुनिया में अब तमाम लोग योग व नेचुरल थेरेपी, स्पा आदि के जरिए अपनी सेहत को ठीक रखने पर जोर देने लगे हैं। इसे देखते हुए केरल, सहित देश के तमाम हिस्सों में नेचुरोपैथी व योग जैसी चीजों के लिए बड़ी तादाद में विदेशी भारत आ रहे हैं। इसी को देखते हुए केंद्र सरकार इस क्षेत्रों को संगठित करने की कोशिश में लगी है।               (PIB)

*मंजरी चतुर्वेदी नवभारत टाइम्स में विशेष संवाददाता हैं। लेख में विचार उनके अपने हैं।

Thursday, June 02, 2016

नए दौर में संस्कृति और परंपराओं को बचाने की सार्थक पहल

02-जून-2016 10:46 IST                                  
‘डिजिटल इंडिया’ महज नारा नहीं              --अतुल सिन्हा*
बदलते दौर में संस्कृति और परंपराओं के साथ साथ अपने देश के गौरवशाली इतिहास को बचाने की चुनौती हर सरकार के सामने रही है। केंद्र सरकार का संस्कृति मंत्रालय इस दिशा में लगातार कोशिशें करता रहा है। तमाम कार्यक्रमों और योजनाओं के ज़रिए संस्कृति के विकास और संरक्षण के काम होते रहे हैं। लेकिन पिछले दो साल इस मामले में सबसे अहम रहे हैं। दरअसल इंटरनेट और सोशल मीडिया के इस दौर में नई पीढ़ी को अपनी संस्कृति के प्रति जागरूक बनाने, इतिहास और परंपराओं में रूचि पैदा करने की दिशा में तेजी से काम हो रहे हैं। ‘डिजिटल इंडिया’ महज नारा नहीं रह गया है बल्कि इसे ज़मीनी हकीकत बनाने में मंत्रालय के तमाम विभागों ने काफी सक्रियता दिखाई है। अगर आप संस्कृति मंत्रालय की वेबसाइट पर जाएं तो यह एहसास आपको खुद हो जाएगा कि इसमें कितना बदलाव आया है और कितनी तेजी से आपको संस्कृति से जुड़े कार्यक्रमों के बारे में नए अपडेट्स मिल रहे हैं। मंत्रालय का मोबाइल ऐप ‘संस्कृति’ इस दिशा में एक अहम कदम है।


सरकार के लिए अपनी संस्कृति और परंपराओं को बचाना, इससे नई पीढ़ी को जोड़ना और इस क्षेत्र में काम कर रहे लोगों को भरपूर मदद देना सरकार की प्राथमिकताओं में है। निजी तौर पर संस्कृति मंत्री डॉ. महेश शर्मा की दिलचस्पी अपने देश की कला, संस्कृति, संगीत, नृत्य, रंगमंच के अलावा अपनी परंपराओं और धरोहरों के संरक्षण में है और उनकी सक्रियता इस दिशा में लगातार दिखाई देती रही है। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र महज सफेद हाथी बन कर न रह जाए, इसके लिए इसके स्वरूप में आमूल चूल बदलाव लाने की पहल हो चुकी है। संगीत नाटक अकादमी, साहित्य अकादमी, ललित कला अकादमी, राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय जैसे प्रतिष्ठित संस्थान अब पहले से कहीं ज्यादा सक्रिय हैं।



आम तौर पर सांस्कृतिक महोत्सवों और कला मेलों में आने वाले कलाकार अपनी उपेक्षा और आयोजकों के रवैये से नाराज़ रहते हैं, ऐसे आयोजनों को दिखावा और महज कुछ लोगों के फायदे के लिए बताते हैं लेकिन जिस तरह दिल्ली में आठ दिनों तक चला राष्ट्रीय संस्कृति महोत्सव इस बार संपन्न हुआ और तकरीबन दो हज़ार से ज्यादा कलाकारों ने अपनी कला का प्रदर्शन किया वह अपने आप में अनूठा था। यहां संगीत का हर रंग दिखा, लोक कला के तमाम आयाम नज़र आए, सभी क्षेत्रीय सांस्कृतिक केन्द्रों ने हर विधा से जुड़े कलाकारों को मंच और सुविधाएं प्रदान कीं, सरकार के तमाम मंत्रीगण समेत कला-संस्कृति से जुड़ी जानी मानी हस्तियों ने इसमें गहरी रूचि दिखाई, यह एक बड़ी उपलब्धि है।



दूसरी तरफ आर्ट ऑफ लिविंग के विश्व संस्कृति उत्सव में जिस तरह हज़ारों कलाकारों ने दिल्ली के यमुना तट पर बने विशालकाय और बेहद आकर्षक मंच पर तीन दिनों तक समां बांधा और प्रधानमंत्री, सहित अनेक मंत्रियों ने अपनी दिलचस्पी दिखाई, वह अपने आप में एक यादगार और अनूठी पहल है। यहीं से गंगा के साथ साथ यमुना की सफाई को लेकर भी एक नई जागरूकता दिखाई पड़ी।



नेताजी सुभाषचंद्र बोस पिछले कई दशकों से सियासत के केन्द्र में रहे हैं। उनके बारे में हर उपलब्ध दस्तावेज़ सार्वजनिक करने का काम करके सरकार ने आम लोगों के भीतर बनी नेताजी की अबूझ पहेलियों को सुलझाया, उनकी विरासत को पूरे सम्मान के साथ आगे बढ़ाने की पहल की और उनके 119वें जन्मदिवस पर लोगों को ये तोहफा दिया कि वे अब ये सारे दस्तावेज़ कभी भी इंटरनेट पर देख सकते हैं। साथ ही नेताजी के परिवारवालों को नई पहचान दिलाई गई। नेशनल आर्काइव्स ऑफ इंडिया (राष्ट्रीय अभिलेखागार) की 125वीं सालगिरह पर हुए कार्यक्रम में नेताजी के भाई अमियनाथ बोस से जुड़े दस्तावेज भी अभिलेखागार को सौंपे गए।



अपने देश के पुरातत्व और इतिहास से जुड़े दस्तावेजों को लेकर, अपने धरोहरों को बचाने और इनके पुनरुद्धार को लेकर कई कोशिशें हो रही हैं। खासकर इन संस्थाओं और विभागों के डिजिटाइजेशन के साथ साथ इनसे जुड़ी सूचनाओं को आम लोगों के लिए उपलब्ध कराने और इन्हें सहेजने के काम ने तेजी पकड़ी है। कई ऐसे वेब पोर्टल और ऐप विकसित किए गए हैं जिनके ज़रिए अब हर जानकारी आम आदमी की पहुंच में आ गई है। सबसे अहम काम हो रहा है उन उपेक्षित स्मारकों की सफाई का जहां बिखरी गंदगी और अव्यवस्था से कोई वहां जाना पसंद नहीं करता। स्वच्छ भारत अभियान के तहत ‘स्वच्छ भारत, स्वच्छ स्मारक’ का  नारा अब ज़मीन पर उतारने की कोशिश जारी है।   



गंगोत्री से गंगासागर तक करीब 262 क्षेत्रों से होकर गुज़री गंगा संस्कृति यात्रा ने करीब ढाई करोड़ लोगों के बीच गंगा के प्रति आस्था और इसकी सफाई को लेकर जागरूकता पैदा करने का काम किया। गंगा को सांस्कृतिक एकता और आस्था का प्रतीक और तमाम नदियों के विकास और संरक्षण की दिशा में उठाए जा रहे कदम भी सरकार की उपलब्धियों में गिने जा सकते हैं। खासकर वाराणसी के विकास और गंगा के साथ साथ वरुणा और अस्सी जैसी नदियों के अस्तित्व को बचाने को लेकर जिस तरह प्रधानमंत्री और संस्कृति मंत्री ने निरंतर कोशिशें की हैं, उसकी वाराणसी में ही नहीं, पूरी दुनिया में चर्चा है। संस्कृति के विस्तार, इसके संरक्षण और नई पीढ़ी को इससे जोड़ने की कोशिशों के साथ साथ एक सबसे बड़ा काम उन कलाकारों और संस्कृतिकर्मियों के डाटाबैंक बनाने का भी है, जिससे देशभर के उन तमाम लोगों की पहचान की जा सके जो वास्तव में कला और संस्कृति के लिए समर्पित हैं या जिनका कोई न कोई योगदान इस क्षेत्र में है। इससे उन कलाकारों को पहचानने और उनकी जीवन शैली के साथ साथ कला और परंपरा को बेहतर बनाने की दिशा में काफी फायदा होने वाला है। अब तक तकरीबन 55 लाख संस्कृतिकर्मियों और इस क्षेत्र से जुड़े लोगों व संस्थाओं का डाटा बैंक तैयार हो चुका है।



आमतौर पर सरकारी योजनाओं और इन्हें ज़मीनी स्तर पर उतारने को लेकर गंभीर सवाल उठते रहे हैं, लेकिन इसे पारदर्शी बनाने और वास्तव में लोक और आदिवासी कला और संस्कृति के संरक्षण के साथ साथ कलाकारों के हित में काम करने की ये पहल उम्मीद जगाने वाली है। इसका अंदाज़ा मौजूदा बजट में संस्कृति मंत्रालय के लिए 17.5 फीसदी की गई बढ़ोत्तरी से लगाया जा सकता है। इस बार संस्कृति मंत्रालय को अपने कामकाज को बेहतर बनाने के लिए 2500 करोड़ रूपए का बजट दिया गया है। जाहिर है अगर इस बजट का सही और व्यावहारिक इस्तेमाल होता है तो कोई संदेह नहीं कि अपने देश की कला, संस्कृति, इतिहास, परंपराएं और धरोहर सुरक्षित ही नहीं रहेगी, लगातार फले फूलेगी और नई पीढ़ी इसके रंग को बेहतर तरीके से समझ पाएगी। इसके लिए ज़रूरी है कि सही व्यक्तियों और संस्थाओं की तलाश की जाए, उनके कामकाज, अनुभव और ईमानदारी की जांच हो और फिर समर्पित तरीके से काम करने वालों की ऐसी टीम पूरे देश में सक्रिय रहे जो न सिर्फ संस्कृति को समझती हो, बल्कि इसे आज के संदर्भों में जोड़कर, इसे सामयिक बनाकर और हाशिए पर पड़े कलाकारों को मुख्य धारा में लाकर काम करे। आज सचमुच ज़रूरत है उन कलाओं को बचाने की जो विलुप्त हो रही हैं। उन कला रूपों को, भाषा और बोलियों को, संगीत और नृत्य शैलियों को बचाने और उनके लिए ऐसे नए संस्थान, प्रतिष्ठान और अकादमियां बनाने की आज ज़रूरत है जो ज़मीनी स्तर पर काम कर सकें।                              (PIB)



*लेखक 7 रंग के संपादक हैं। लेख में विचार उनके अपने हैं।

आप भी अपने विचार भेजिए  
medialink32@gmail.com
punjabscreen@gmail.com