Saturday, August 24, 2024

संविधान को खत्म करना चाहती है भाजपा–हरचंद सिंह बरसट

Saturday 24th August 2024 at 1:53 PM    simranjeet simranjeetgcs044@gmail.com

भाजपा की नीतियों का जवाब भारत के लोग भाजपा को जरूर देंगे

*चार राज्यों के विधानसभा चुनाव में सता रहा है हार का डर 

*इसी डर से यू.पी.एस.सी. लैटरल एंट्री का फैसला वापस लिया गया

*अपने चहेतों को उच्च पदों पर बिठाने की योजना पर काम कर रही है केंद्र सरकार

मोहाली: 24 अगस्त 2024: (कार्तिका कल्याणी सिंह//पंजाब स्क्रीन डेस्क)::

आम आदमी पार्टी, पंजाब के महासचिव एवं पंजाब मंडी बोर्ड के चेयरमैन स. हरचंद सिंह बरसट ने यू.पी.एस.सी. लैटरल एंट्री स्कीम को लेकर केंद्र की भाजपा सरकार पर तीखा हमला करते हुए कहा कि भाजपा देश के संविधान को खत्म करना चाहती है। उनका हर फैसला कहीं न कहीं संविधान के विरुद्ध होता है। भाजपा द्वारा संविधान में दिए आरक्षण के अधिकार को ताक पर रखकर यह भर्ती निकाली गई, ताकि वे अपने चहेतों को सरकार के ऊंचे पदों पर बैठा सकें। उन्होंने कहा कि संविधान के निर्माता डॉ. भीम राव अम्बेडकर जी ने भारत की परिस्थितियों को ध्यान में रखकर हर वर्ग का ख्याल रखा है, लेकिन भाजपा सत्ता के नशे में चूर होकर संविधान को भी तुच्छ समझ रही है, जिसका जवाब भारत के लोग भाजपा को ज़रूर देंगे।

उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार पहले ही संविधान और आरक्षण को अनदेखी कर लैटरल एंट्री के माध्यम से आईएएस स्तर के 60 से ज्यादा पदों को भर चुकी है और अब 45 ओर पदों पर नियुक्तियां करना चाहती थी, लेकिन देश में विरोध और चार राज्यों में चुनाव के कारण इसे रद्द करना पड़ा। चाहे भाजपा ने चार राज्यों हरियाणा, जम्मू-कश्मीर, झारखंड और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनावों में हार के डर से यह फैसला वापस ले लिया है, पर जनता उनके इरादों को अच्छी तरह से समझ चुकी है और चुनाव में लोग भाजपा को इसका करारा जवाब देंगे।

प्रदेश महासचिव ने कहा कि इन उच्च पदों पर यू.पी.एस.सी. सिविल सेवा की तीन स्तरों की परीक्षा के बाद चयनित अधिकारियों को कई वर्षों का अनुभव प्राप्त करने के पश्चात तैनात किया जाता है, लेकिन लैटरल एंट्री में यू.पी.एस.सी. की तरफ से केवल एक एंट्रव्यू लेकर इन पदों पर नियुक्ति कर दी जाती है, जो गरीबों लोगों के अधिकारों का हनन है। इससे पहले भी केंद्र सरकार आरक्षण के नियमों को अनदेखा कर लैटरल एंट्री के जरिए भर्तियां कर चुकी है, अब फिर से 45 ओर सीटें लैटरल एंट्री के जरिए भरने की कोशिश की गई थी, लेकिन केंद्र सरकार को यह फैसला वापस लेना पड़ा। 

उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार को ऐसे काम छोड़कर समाज में सभी की भलाई के लिए काम करना चाहिए।

Friday, August 23, 2024

दिशा ट्रस्ट की तरफ से तीज का जोशो खरोश वाला आयोजन

Thursday 22nd August 2024 at 4:29 PM

आदर्श कौर बनी तीज की रानी व सतिंदर कौर बनी सुंदर पंजाबण


मोहाली: 22 अगस्त 2024: (कार्तिका कल्याणी सिंह//पंजाब स्क्रीन डेस्क):: 

तीज के इतिहास को लेकर कई बार विवाद की बातें भी सामने आती हैं लेकिन इस  त्यौहार के बहुत गहरे रहस्य और भी हैं जिनमें स्वास्थ्य के बहुत से राज़ छुपे हुए हैं। इसके साथ ही तीज के त्यौहार महिलाओं को अपने गाँव और अपने मायके से मिलने जुलने का स्कून भी देता है। तीज का त्यौहार बहुत जोशो खरोश और स्नेह से मनाया जाता है इस बार चंडीगढ़//मोहाली में इसका आयोजन बहुत ही यादगारी रहा। यह आयोजन दिशा वूमैन वेलफेयर ट्रस्ट की तरफ से हुआ। 

महिलाओं की समस्याओं के समाधान हेतु हर फ्रंट पर संघर्ष करने वाले संगठन दिशा वूमैन वेलफेयर ट्रस्ट ने महिलाओं के भीतर छिपी प्रतिभा को निखारने तथा महिलाओं को तनाव मुक्त जीवन व्यतीत करने के लिए प्रेरित करते हुए तीयां तीज दियां कार्यक्रम का आयोजन किया। इस यादगारी आयोजन में ट्राईसिटी की 100 से अधिक महिला उद्यमी, घरेलू महिलाओं तथा कामकाजी महिलाओं ने भाग लिया। एक महिला कभी मां, कभी पत्नी, कभी बहन या बेटी की भूमिका में होती है लेकिन तीज के उपलक्ष्य आयोजित इस कार्यक्रम के दौरान महिलाओं ने अपनी दैनिक दिनचर्या से हटकर कुछ पल खुद के लिए निकाले।

ट्रस्ट की राष्ट्रीय अध्यक्ष हरदीप कौर ने कार्यक्रम के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि प्रत्येक महिला के भीतर कोई न कोई प्रतिभा छिपी होती है। कोई महिला खाना अच्छा बनाती है तो कोई अच्छी उद्यमी होती है। कोई महिला अच्छी लेखक होती है तो कोई महिला बेहतर टीम लीडर साबित होती है। दिशा वूमैन वेलफेयर ट्रस्ट ने ऐसी ही प्रतिभाओं को एक मंच प्रदान करते हुए तीयां जीत दियां कार्यक्रम का आयोजन किया।

 एडवोकेट रूपिंदरपाल कौर के मंच संचालन में आयोजित इस कार्यक्रम में लोक गायिका आर.दीप रमन तथा गुरमीत कुलार ने पंजाबी सांस्कृति से ओतप्रोत गीत पेश किए। कार्यक्रम के दौरान महिलाओं के लिए विशेष प्रतियोगिताओं का आयोजन किया गया।
इस मौके पर तीयां की रानी का ख़िताब दर्श कौर को, गिद्धे की रानी का खेताब सिमरन गिल को, सुनखी पंजाबण का खेताब सतिंदर कौर को, सुच्चजी पंजाबन का खेताब नरेंद्र कौर को दिया गया। इस कार्यक्रम में समाज सेविका जगजीत कौर काहलों, नर्सिंग सुपरडेंट कुलदीप कौर, गायिका गुरमीत कुलार ने निर्णायक की भूमिका निभाई। कार्यक्रम में भाग लेने वाली सभी महिलाओं को दिशा वूमैन वेलफेयर ट्रस्ट की तरफ से सम्मानित किया गया।

Tuesday, August 20, 2024

मोहाली तहसील में रजिस्ट्रेशन कार्यों से राजस्व

Wednesday 20th Aug 2024 at 3:16 PM

सरकार को हुई  01 अरब 90 करोड़ से अधिक की आय 

चालू वित्तीय वर्ष के चार महीनों में 6121 वसीकाएं पंजीकृत हुईं

एस.ए.एस. नगर: 21 अगस्त 2024: (कार्तिका कल्याणी सिंह//मोहाली स्क्रीन डेस्क)::

इस वित्तीय वर्ष के पिछले चार महीनों में सरकार को 1,000 करोड़ रुपये की आय हुई है.

यह जानकारी देते हुए मोहाली के तहसीलदार (सब रजिस्ट्रार) एस. अर्जुन सिंह ग्रेवाल ने कहा कि अप्रैल में 42 करोड़ 29 लाख 64 हजार 852 रुपये, मई में 45 करोड़ 54 लाख 03 हजार 196 रुपये, जून में 48 करोड़ 95 लाख 71 हजार 322 रुपये, जुलाई 54 में 19 लाख 18 हजार 945 रुपये का राजस्व मिला. सरकार के पास आ गया है.

तहसीलदार ग्रेवाल ने बताया कि चालू वित्त वर्ष के चार माह में 6121 वसीका पंजीकृत किया गया है। उन्होंने कहा कि सरकार की आय में आठवां शुल्क, सामाजिक अवसंरचना उपकर, विकास शुल्क, पंजीकरण शुल्क, विशेष अवसंरचना विकास शुल्क आदि शामिल हैं।

सरदार अर्जुन ग्रेवाल ने कहा कि तहसील मोहाली में विभिन्न कार्यों के पंजीकरण के लिए प्रतिदिन औसतन 225 अपॉइंटमेंट ली जा रही हैं। यदि ये अपॉइंटमेंट पूर्ण हो जाएं तो पंजीकरण के लिए तत्काल अपॉइंटमेंट भी लिए जा सकते हैं, जिनकी संख्या प्रतिदिन 10 है।

Monday, August 12, 2024

नई दिल्ली के हैंडलूम हाट में आयोजित विरासत प्रदर्शनी

प्रविष्टि तिथि: 12 Aug 2024 5:30 PM by PIB Delhi

श्री गिरिराज सिंह और श्री पबित्र मार्घेरिटा ने  किया अवलोकन 


नई दिल्ली: 12th अगस्त 2024: (पीआईबी//पंजाब स्क्रीन डेस्क)::

केंद्रीय वस्त्र मंत्री श्री गिरिराज सिंह और वस्त्र राज्य मंत्री श्री पबित्र मार्घेरिटा ने आज नई दिल्ली के जनपथ स्थित हैंडलूम हाट में आयोजित “विरासत” प्रदर्शनी का अवलोकन किया। इस प्रदर्शनी का आयोजन 10वें राष्ट्रीय हैंडलूम दिवस के उपलक्ष्य में किया गया है। प्रदर्शनी 3 अगस्त से 16 अगस्त, 2024 एक पखवाड़े तक चलेगी।

श्री गिरिराज सिंह ने हथकरघा बुनकरों और कारीगरों से बातचीत की और इस बात पर बल दिया कि सरकार बुनकरों और उनके परिवारों के लिए बेहतर आय के अवसरों के लिए वस्त्र मूल्य श्रृंखला में सुधार करने का प्रयत्न कर रही है। उन्होंने यह भी कहा कि भारत में दुनिया का सबसे बड़ा हथकरघा समुदाय है जो स्थिरता और ऊर्जा दक्षता पर ध्यान केंद्रित करता है। दुनिया टिकाऊ उत्पादों के उपयोग की ओर बढ़ रही है और हथकरघा शून्य-कार्बन रहित उद्योग है और किसी भी ऊर्जा की खपत नहीं करता है तथा हथकरघा उद्योग शून्य-जल रहित फुटप्रिंट वाला क्षेत्र है।

श्री पबित्र मार्घेरिटा ने हथकरघा क्षेत्र में प्राकृतिक रंगों के अनुप्रयोग के लाइव प्रदर्शन को देखा। उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में फैशन उद्योग में प्राकृतिक रंगों वाले हथकरघा कपड़ों की भारी मांग बाजार में देखी जाने लगी है। हथकरघा बुनकरों द्वारा प्राकृतिक रंगों के उपयोग से न केवल मूल्यवर्धन होता है बल्कि उनकी आय में भी वृद्धि होती है।

मंत्रियों ने हथकरघा हाट में पौधारोपण कर “एक पेड़ मां के नाम”अभियान को प्रोत्साहित किया। उन्होंने “हर घर तिरंगा” अभियान के तहत हथकरघा बुनकरों और कारीगरों को तिरंगा झंडे भी वितरित किए।

यह प्रदर्शनी सुबह 11 बजे से रात 8 बजे तक जनता के लिए खुली रहेगी। प्रदर्शनी में भारत के विभिन्न क्षेत्रों से लिए गए हथकरघा उत्पाद प्रदर्शित और बिक्री के लिए रखे गए हैं। इनमें कोसा, चंदेरी, मधुबनी, मंगलगिरी, मेखला चादर, मोइरांग फी, इकत आदि शामिल हैं।

हैंडलूम हाट में कई गतिविधियाँ भी आयोजित की जा रही हैं, जैसे कि हथकरघा बुनकरों और कारीगरों के लिए 75 स्टॉल, जहाँ वे सीधे उत्पादों की खुदरा बिक्री कर सकेंगे और शीर्ष समितियों, बोर्डों आदि द्वारा 07 स्टॉल, भारत के उत्कृष्ट हथकरघा उत्पादों का क्यूरेटेड थीम प्रदर्शन और हथकरघा हाट में प्राकृतिक रंगों, कस्तूरी कपास, डिजाइन और निर्यात पर कार्यशालाएँ, 12 अगस्त 2024 को बुनकरों और कारीगरों के लिए विशेष स्वास्थ्य शिविर, लोई लूम और फ्रेम लूम का लाइव प्रदर्शन, भारत के लोक नृत्य और स्वादिष्ट क्षेत्रीय व्यंजन आदि।

भारत का हथकरघा क्षेत्र प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से 35 लाख लोगों को रोजगार देता है, जो देश में कृषि क्षेत्र के बाद दूसरे स्थान पर है। भारत सरकार ने हथकरघा के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं, जिनमें पर्यावरण पर शून्य प्रभाव वाले उच्च गुणवत्ता वाले उत्पादों की ब्रांडिंग की जाती है, ताकि उत्पादों की विशिष्टता को उजागर करने के अलावा उत्पादों को प्रोत्साहित किया जा सके और उन्हें एक अलग पहचान दी जा सके। यह खरीदार के लिए एक गारंटी भी है कि खरीदा जा रहा उत्पाद वास्तव में हस्तनिर्मित है। प्रदर्शनी में सभी प्रदर्शकों को अपने उत्कृष्ट उत्पादों को प्रदर्शित करने के लिए प्रोत्साहित किया गया है और इस प्रकार हथकरघा उत्पादों के लिए बाजार और हथकरघा समुदाय की आय में सुधार करने का लक्ष्य रखा गया है। “विरासत” श्रृंखला-“विशेष हथकरघा एक्सपो” हथकरघा दिवस के अवसर पर आयोजित की जाने वाली प्रमुख प्रदर्शनी है। 

इस वर्ष 10वां राष्ट्रीय हथकरघा दिवस 7 अगस्त को मनाया गया। यह आयोजन हथकरघा और हस्तशिल्प की गौरवशाली परंपरा पर केंद्रित है और हथकरघा बुनकरों और कारीगरों को बाजार से भी जोड़ता है।

********//एमजी/एआर/वीएल/एचबी//(रिलीज़ आईडी: 2044667)

Sunday, August 04, 2024

पहले कार तोड़ी ,डंडो से पीटा फिर उल्टा पुलिस से भी प्रताड़ित करवाया

 Saturday 3rd August 2024 at 19:28 

कादियां सरपंच ने मीडिया के सामने रखा अपना सारा पक्ष 

लुधियाना3 अगस्त 2024: (गुरदेव सिंह//पंजाब स्क्रीन डेस्क)::

दलित वर्ग के विकास और इंसाफ के लिए बहुत बार बहुत से दावे किए जाते हैं लेकिन वास्तविक्ता आज भी कितनी भयानक है इसका पता इस रिपोर्ट से लगता है। हकाकेट में एक सरपंच भी सुरक्षित महसूस नहीं कर रहा। 

पूरी कहानी सुन कर आपके रौंगटे खड़े हो जाएंगे। कादियाँ का कर्मचंद सरपंच होने के वावजूद आज इन्साफ के लिए गुहार लगा रहा है ओर पीड़ित पक्ष का आरोप है कि थाना लाडोवाल की पुलिस इंसाफ की बजाए उल्टा उन्ही पर समझौते के लिए दवाब बना रही है।

पीड़ित पक्ष ने सारा मामला मीडिया के सामने भी रखा। प्रेस वार्ता में पीड़ित पक्ष सरपंच कर्मचंद ने बताया कि वह गांव कादिया का सरपंच है। इस जघन्य घटना के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि 8 जुलाई को  गुरतेज सिंह  द्वारा उनकी कार के शीशे  तोड़े गये ओर जब इसके बारे पता लगाया तो उनके परिवार के लोग जिनमे उन्होंने अपनी गलती मानते हुए कार को ठीक कराने का वादा कर समझौता कर लिया था। 

जब कुछ दिन बाद पीड़ित पक्ष ने उनसे कार ठीक कराने के मुआवजे की बात की और गुरतेज सिंह के खिलाफ एक शिकायत 13 जुलाई को थाना लाडोवाल में जा कर दी। लेकिन इस शिकायत के बावजूद दोषियों को कोई भय नहीं लगा। बहुत ही दुख की बात है कि पुलिस ने एक भी बार दोषियों को थाने नही बुलाया और उल्टा उनके बार बार थाने के चक्कर लगवाये।

सरपंच कर्मचंद ने बताया कि 27 जुलाई को दोषी यूनियन प्रधान इन्द्रवीर सिंह,साथी गुरतेज सिंह व यूनियन किसान प्रधान कि माता गुरदेव कौर ने उनके गांव में सुबह लाठियों के साथ उन पर बुरी तरह से हमला किया ओर उनकी बुरी तरह से पीटा,जातिसूचक शब्दावली का प्रयोग कर उन्हे गालिया दी ओर उल्टा दोषी इंद्रवीर सिंह ने पुलिस बुला कर उन्ही पर थाना लाडोवाल में शिकायत दर्द करा दी। 

यहां फिर पुलिस ने दोषियों का साथ दिया ओर हमें ही थाने में आठ घंटे बिठा कर मानसिक ओर शरीरिक तौर पर प्रताड़ित किया। दोषी इंद्रवीर ने सरपंच की पत्नी जसविंदर कौर से भी गाली गलौच कर उन्हें जातिसूचक गालियां निकाली व परिवार को जान से मारने की धमकियां दी। 

पीड़ित पक्ष ने आरोप लगाया कि उन्हे जान से मारने कि धमकियां लगातार दी जा रही है ओर थाने में अपनी शिकायत वापिस लेने को लेकर दबाव बनाया। पुलिस भी उनपर समझौते करने को लेकर दवाब बना रही है जिससे हम बुरी तरह से सदमें में है ओर मेरा परिवार डर के कारण चिंतिंत है। 

इस स्थिति में पीड़ित परिवार ने से इसकी निष्पक्ष जांच कि गुहार लगाते हुए कहा कि दोषियों पर बनती कानूनी कार्रवाई कर के उन्हे इन्साफ दिया जाये। पीड़ित पक्ष में कई सरपंच और अन्य जत्थेबंदियां आगे आई है जिनमे बलविंदर बीतता महासचिव पंजाब बीएसपी,बुट्टा  संगोवाल प्रधान,सोमनाथ बाली प्रधान सतगुरु रविदास सधर्श समाज भारत, डा बी आर अम्बेडकर भवन वेलफेयर सोसाइटी के उप प्रधान वरिंदर कुमार सोढी,नरेश बसरा,कमल जनागल,रूल्दूराम कादियां , आनंद किशोर प्रधान सतगुरु रविदास धर्म समाज पंजाब,सरपंच चरणजीत कौर कासाबाद,महिंद्र कुमार बांसल समाजसेवी,पूर्व प्रधान कासाबाद जरनैल सिंह,सरपंच सोनी धीर भटियाँ ,बलविंदर सिंह ब्लाक समिति मैमब्र,सरपंच विजय कुमार भट्टिया कॉलोनी,चमन लाल पूर्व सरपंच,ब्लाक समिति मैंबर प्रकाश पीटर., आदि शामिल हैं। 

इन सभी ने एकजुट हो कर स्पष्ट ने कहा कि अगर पुलिस ने कार्रवाई ना की तो मजबूरन हमें इन्साफ के लिए धरना प्रदर्शन करना पड़ेगा

Thursday, July 25, 2024

प्रसन्ना की तीन-दिवसीय नाट्य कार्यशालाएँ संपन्न//विनीत तिवारी

 Thursday 25th July 2024 at 10:35 AM

श्रम के साथ अभिनय सीखा प्रतिभागियों ने


इंदौर
: 25 जुलाई 2024: (विनीत तिवारी//पंजाब स्क्रीन डेस्क)::

नाटक बिना लाइट, माइक और बाक़ी तामझाम के भी हो सकता है लेकिन वो नाटक में काम करने वालों के आपसी सहयोग के बिना हो ही नहीं सकता। अगर एक क़िरदार क़ातिल है और दूसरे की भूमिका मरने की है तो मंच पर दोनों में इतना सहयोग होना चाहिए कि दर्शकों को वो सच लगे जबकि वो सच नहीं है। नाटक सहयोग और मैत्री सिखाता है। नाटक इस अर्थ में बेहतर जीवन और बेहतर मनुष्य बनना सिखाता है। 

भारतीय रंगमंच के किंवदंती कहे जाने वाले नाट्य निर्देशक और भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रसन्ना हेग्गोडु की तीन-दिवसीय दो नाट्य कार्यशालाएँ इंदौर में 7 जून से 10 जून 2024 तक संपन्न हुईं। चूँकि प्रसन्ना केवल एक नाटककार ही नहीं हैं, एक ज़मीनी काम करने वाले प्रयोगधर्मी ऐक्टिविस्ट भी हैं इसलिए उनसे दुनिया के बड़े नाटककारों के काम के बारे में जानने के साथ ही उनके गाँवों में किये गए सहकारिता के प्रयोगों को भी सुनना था। 

यही सोचकर जया मेहता ने एक कार्यशाला तीन दिन रोज़ शाम 5 बजे से 8 बजे तक करने की योजना बनायी जिसमें नाटक के सिद्धांत, जीवन से नाटक के जुड़ाव, श्रम के साथ नाटक के सम्बन्ध, दैत्य अर्थव्यवस्था और उसके बरअक्स मनुष्य की गरिमा को बहाल करने वाली जीवन व्यवस्था, उपभोक्तावाद के बरअक्स जरूरतें कम करने का जीवन दर्शन, सहकारिता आदि विषयों पर घंटों विचार-विमर्श सवाल-जवाब होते थे।  

सुबह 8 बजे से 11 बजे तक चलने वाली कार्यशाला में प्रसन्ना ने अभिनय की तकनीकें, आवाज़ के उतार-चढ़ाव से भाव के निर्माण आदि बातें प्रतिभागियों को सिखायीं, लेकिन मेरे विचार से इन कार्यशालाओं में प्रतिभागियों ने तकनीक से ज़्यादा कुछ ज़रूरी जीवन मूल्य और कुछ ज़रूरी सवाल सीखे। कितने ही प्रतिभागियों के मन में यह सवाल शायद पहली बार ही उठा होगा कि जिस तरह की जीवन पद्धति हमने अपनायी हुई है, उसका नतीजा अगली पीढ़ी के लिए क्या होगा? 

कितने लोगों ने पहली बार ये सोचा होगा कि हम मशीनों के साथ ख़ुद कितने मशीनी होते जा रहे हैं? कितने ही लोगों को पहली बार ये फ़िक्र महसूस हुई होगी कि पर्यावरणीय बदलावों का असर कितना भयंकर हो सकता है या कितने ही लोगों ने प्रेम में अधिकार और अहंकार से ज़्यादा विनम्रता का महत्त्व सीखा होगा।  इस मायने में यह नाट्य कार्यशाला सिर्फ़ नाट्य कार्यशाला नहीं थी, उससे बहुत ज़्यादा थी।  

अभिनय की बारीकियाँ सिखाते हुए उन्होंने "मैं तुमसे प्यार करता हूँ" वाक्य को लगभग 50 प्रतिभागियों से बुलवाकर सुना। आख़िर में उन्होंने कहा कि यह वाक्य अहंकार के साथ "मैं"  पर ज़ोर देकर कहा जाए तो वह प्यार को  प्रदर्शित ही नहीं करेगा। प्यार में 'मैं' होगा तो सही लेकिन विनम्रता और प्रसन्नता से भरा हुआ।  प्यार में प्यार और जिससे प्यार करते हैं, उसका महत्त्व ज़्यादा है, तभी वह वाक्य प्यार भरा वाक्य होगा अन्यथा खोखला होगा। एक यही बात अगर प्रतिभागियों ने ठीक से समझ ली हो तो वो कभी ‘मेल सुप्रीमेसी’ को अपने व्यक्तित्व पर हावी नहीं होने देंगे। 

एक सत्र में उन्होंने निराला की कविता "वह तोड़ती पत्थर" की पंक्तियों का विभिन्न प्रतिभागियों से पाठ करवाकर अर्थ की परतें पाठ के ज़रिये कैसे खुलतीं हैं, समझाया।  एक सत्र में उन्होंने प्रतिभागियों से समूह बनाकर ऐसी निरर्थक भाषा में बात करने का अभ्यास करवाया जिसमें एक भी शब्द का कोई अर्थ न हो, हिंदी, अंग्रेज़ी या किसी भी भाषा का न हो (जिबरिश) और फिर भी जो सुनें, उन्हें लगे कि लोग आपस में कोई काम की बात कर रहे हैं। 

इस अभ्यास का मक़सद यह महसूस करवाना था कि भावनाओं को व्यक्त करने के लिए सदा भाषा और शब्द ही आवश्यक नहीं होते, बल्कि अनेक हाव-भाव द्वारा भी अपने आपको अभिव्यक्त किया जा सकता है। अनेक अभ्यासों के द्वारा उन्होंने प्रतिभागियों से जो करवाया, उससे आठ साल से सत्तर साल तक के सौ से ज़्यादा प्रतिभागियों ने अपने भीतर एक नये मनुष्य को पहचाना, उसका अहसास उन्हें हुआ।  

विभिन्न सत्रों में उन्होंने दुनिया के पिछली सदी के महान नाटककार बेर्टोल्ट ब्रेष्ट (जर्मनी) से लेकर इब्राहिम अल्काजी और हबीब तनवीर तथा सफ़दर हाश्मी सहित अनेक नाटककारों की विशेषताओं की चर्चा की और उनसे जुड़े प्रसंग भी सुनाये जिससे माहौल दिलचस्प बना रहता था।  एक और बहुत महत्त्वपूर्ण बात सहयोग और मैत्री के संबन्ध में उन्होंने यह कही कि फ़िल्म अभिनेता प्राण ने खलनायक की अनेक यादगार भूमिकाएँ कीं, अनेक बार अभिनेत्रियों की अस्मत लूटने वाले दृश्य भी किए लेकिन प्राण के साथ हर अभिनेत्री अपने आपको इतना सहज, सुरक्षित और शंकारहित महसूस करती थी क्योंकि प्राण अपने अभिनय के अलावा निजी ज़िंदगी में सभी महिला साथियों के साथ बहुत सम्मानजनक व्यवहार करते थे। तभी उन्हें अपने क़िरदार को निभाने के लिए उनकी महिला साथी सहयोग करती थीं। कलाकार को सभ्य, और उसके द्वारा निभाए गए पात्र की भूमिका सहज होना चाहिए।

एक सत्र में उन्होंने बहुत दिलचस्प तरह से संवादों में, या नाटक में ‘बिंदी’ के प्रयोग को लेकर बात की। उन्होंने कहा कि बिंदी वो चीज है जो दिखती नहीं है लेकिन उसे निर्देशक और अभिनेताओं को देखना आना चाहिए तभी वो कुछ अलग कर सकते हैं। लगभग सभी प्रतिभागी बड़ी उलझन में कि ऐसी कैसी बिंदी है जो होती है पर दिखती नहीं है। खुद मेरे लिए ये बिंदी अत्यंत रहस्यमय होती जा रही थी लेकिन शायद प्रसन्ना का कहने का आशय ये था कि नाटक में और संवादों में ऐसी जगहें आती हैं जहाँ कलाकार या निर्देशक के पास कुछ अलग करने का मौका होता है बशर्ते वो उसे पहचान सके तो। बस वही बिंदी है। ऐसे मौकों को पहचानने का कोई प्रशिक्षण नहीं हो सकता लेकिन करने से वो आता जाता है। 

उन्होंने कहा कि कलाकार को अभिनय के लिए दिए गए पात्र के अभिनय की प्रेरणा अपने अंदर से नहीं, बाहरी प्रतिक्रिया से मिलती है। नाटक क्रिया और प्रतिक्रिया, यानि एक्शन और रिएक्शन से चलता है। जब तक दूसरा क़िरदार आपके एक्शन पर रिएक्शन नहीं देगा, तब तक आपका एक्शन किसी काम का नहीं होगा। और आपने बहुत अच्छा एक्शन किया लेकिन रिएक्शन उतना अच्छा नहीं हुआ तो भी आपके एक्शन का वो असर नहीं पैदा होगा। उन्होंने अलग-अलग ढंग से अभिनय में शरीर के विभिन्न अंगों के इस्तेमाल का भी अभ्यास करवाया। उन्होंने कहा कि अभिनय केवल दिए गए संवादों से ही नहीं होता, कलाकार का शरीर और उसके अंग, विशेषकर आँखें भी बोलना चाहिए, लेकिन अच्छा अभिनय यही है कि जो जितना होना है, उतना ही हो, ज़्यादा हाथ-पैर और भाव-भंगिमाएँ बनाने से भी अभिनय को नुक़सान पहुँचता है। 

उन्होंने एनएसडी में अपने वरिष्ठ नसीरुद्दीन शाह, ओम पुरी, सुरेखा सीकरी, उत्तरा बावकर, अपने समकालीन राज बब्बर और अपने बाद के बैच के रघुबीर यादव के भी अनेक प्रसंग सुनाकर बताया कि वे लोग अपने क़िरदार में जान डालने के लिए कितनी मेहनत करते थे। एक सवाल उनसे यह किया गया कि नसीरुद्दीन शाह आपसे नाराज़ क्यों रहते हैं? प्रसन्ना ने कहा कि वे मेरे सीनियर भी हैं और बहुत अच्छे अभिनेता भी। उनके लिए मेरे मन में आदर है लेकिन एक बार ऐसा हुआ कि एनएसडी ने अपने दीक्षांत समारोह में, जो कि आठ-दस वर्षों में एक बार होता है, उसमें एनएसडी प्रशासन ने नसीरुद्दीन शाह को मुख्य अतिथि के तौर पर आमंत्रित किया। मैंने एनएसडी को पत्र लिखा कि एनएसडी को किसी ऐसे कलाकार को दीक्षांत समारोह का मुख्य अतिथि बनाना चाहिए था जो मुख्य रूप से नाटक और थिएटर से जुड़ा रहा हो न कि सिनेमा से। इस बात को इस तरह दुष्प्रचारित किया गया कि प्रसन्ना को नसीर के नाम पर ऐतराज है जबकि ऐसा हरगिज़ नहीं था। 

9 जून को प्रतिभागियों से श्रमदान भी करवाया गया और प्रसन्ना के साथ-साथ इप्टा के राष्ट्रीय महासचिव और प्रसिद्ध नाट्य निर्देशक तनवीर अख़्तर (पटना) और हबीब तनवीर के नाटकों की प्रसिद्ध अभिनेत्री और गायिका पूनम तिवारी (छत्तीसगढ़) ने तीन फलदार और छायादार वृक्षों के पौधे गाँधी हॉल प्रांगण में रोपे। श्रमदान के बाद के सत्र में  साफ़-सफ़ाई के महत्त्व को नाटक और अभिनय के साथ जोड़कर यह भी समझाया कि अगर स्टेज पर कूड़े की ज़रूरत है तो उसे वहाँ होना चाहिए वर्ना जिसकी ज़रूरत नहीं, ऐसी ख़ूबसूरत चीज़ भी कूड़े के समान है। प्रसन्ना ने कहा कि स्टेज पर किसी को थप्पड़ मारने का दृश्य करते हुए सही में थप्पड़ मारना या किसी भी तरह का ऐसा काम नहीं होना चाहिए जो दर्शकों को ख़राब लगे। 

उन्होंने कहा कि हमारी नाट्य परंपरा कालिदास, भवभूति और भास की रही है। शहरी नाटक इंग्लिश नाटकों से प्रेरित हैं। गाँव के नाटकों से उनका कोई रिश्ता नहीं रहा है। हबीब तनवीर ने छत्तीसगढ़ के ग्रामीण जीवन और लोक कहानियों एवं नाटकों के माध्यम से भारतीय नाट्य परंपरा में ख़ूबसूरत विकास के अध्याय जोड़े हैं। हबीब साहब ने जन सामान्य से नायक तलाशे थे। हबीब तनवीर का थिएटर लोक कला या मनोरंजन मात्र नहीं था बल्कि उन्होंने आधुनिक समय को लोक के माध्यम से व्यक्त किया।  उनके नाटक सामान्य लोगों में से बड़ी मानवीय चीज़ें निकाल कर लाते हैं। बड़ी चीजों की ओर भागना हमारी प्रवृत्ति है। थिएटर और समाज का भी यही सच है। छोटे-छोटे प्रयासों की सफलता स्थाई होती है। थिएटर भव्य स्टेज, रंग बिरंगी रोशनी पर नहीं, दर्शकों पर निर्भर होता है। 

प्रसन्ना ने कहा कि एक्टर अपनी प्रस्तुति से निर्मित नहीं होता। वह निरंतर अभ्यास से ही विकसित हो सकता है। नाटक, कलाकार को बोलना सिखाता है। मोबाइल से कला नहीं सीखी जा सकती। जिस तरह देश किसी चुनाव से या सिर्फ़ सरकार से नहीं, बल्कि जन सामान्य के छोटे-छोटे प्रयासों से विकसित होता है, इसकी एक प्रक्रिया है। इसी तरह समाज हो अथवा नाटक उसे ऐसी ही प्रक्रिया के दौर से गुजरना होता है। अगर आप प्रोसेस पूरी नहीं होने देंगे तो अच्छा थिएटर कैसे तैयार होगा। उन्होंने कहा कि फ़िल्म हो अथवा नाटक, बिना रिहर्सल (अभ्यास) के  अच्छे नहीं बन सकते। जापान के फ़िल्म निर्देशक अकीरा कुरोसावा और भारत के सत्यजीत राय कलाकारों से महीनों रिहर्सल करवाते थे, उसके बाद ही वे फ़िल्म शूट करते थे। 

उन्होंने कहा कि आज हर कोई मुंबई में जाकर सीधे फ़िल्म स्टार बनना चाहता है, जबकि वहाँ कलाकारों का शोषण भी होता है। वर्तमान में शहर और गाँव में द्वंद्व चल रहा है। नगरीय व्यवस्था नौजवानों को महानगरों की ओर खींच रही है। फ़िल्मों में पैसा है तो थोड़ा पैसा कमाने जाइए लेकिन थोड़े दिन बाद वापस आकर अपने शहर में, गाँव में थिएटर कीजिये। फ़िल्मों का अर्थशास्त्र अनैतिक है। थिएटर अपने उत्पादन में भी सहकारिता से होता है और प्रदर्शन में भी, जबकि फ़िल्म में मेहनत तो सबकी होती है लेकिन मुनाफ़े का वितरण बहुत ग़ैर बराबरीपूर्ण होता है। और ज़्यादा  थिएटर किये जाने की, और थिएटर के बारे में समाज का सोच और बेहतर किये जाने की ज़रूरत है। वर्तमान में केवल हिंदी ही नहीं, सभी भाषाओं का थिएटर संकट में है। वैचारिकी के संकट को देखते हुए कलाकारों को प्रतिबद्ध और जागरूक रहना ज़रूरी है। वर्तमान समय में संस्कृति और कला के सामने बड़ा संकट है। भाषा, संस्कृति, नागरिकता बोध सभी ख़तरे में हैं। बाज़ार और राजनीति के हावी हो जाने से आपसी संबंध और मित्रता खो-सी गई है। 

उन्होंने कहा कि लोग संस्कृति को कला से कन्फ्यूज़ करते हैं। संस्कृति पूरा जीवन होती है, खाना, पीना, कपड़े, रस्मो-रिवाज़ आदि सब संस्कृति हैं। उसमें सब अच्छा हो, ये ज़रूरी नहीं लेकिन संस्कृति एक पौधा है और कला उसका फूल। कला में सब व्यवस्थित होना चाहिए।  विभिन्न सत्रों में प्रसन्ना ने बताया कि ब्रेष्ट और गोर्की अपनी रचनाओं के ज़रिए राजनीतिक संदेश देते थे। उदाहरणों और कटाक्षों से उन्होंने राजनेताओं द्वारा किये जा रहे ख़राब नाटकीय भाषणों के भी उदहारण दिए। 

उन्होंने कहा कि असहजता को सहजता से व्यक्त करना ही एक्टिंग है। भारतीय दर्शक मनोरंजन भी चाहता है। नाटकों में चतुराई से गंभीर संदेश देने में हबीब तनवीर का नाटक चरण दास चोर उल्लेखनीय है। प्रसन्ना ने कहा कि केवल किताबें पढ़कर अभिनय नहीं सीखा जा सकता, उसे करके देखना पड़ता है। 

काल और स्थान का महत्त्व समझाते हुए उन्होंने कहा कि अपने स्थान की बजह से कोई चीज अपना अर्थ ग्रहण करती है। रास्ते में गोबर पड़ा है तो गंदगी है, उसे पौधे की जड़ में डाल दो तो वो खाद है। विभिन्न सत्रों का संचालन विनीत तिवारी यानि मैंने और जया मेहता ने किया। 

कार्यशाला के आख़िरी दिन दोपहर के खाने के पहले इप्टा की को लेकर हम कुछ लोग केबिन में भावी योजना पर बातचीत कर रहे थे। राकेश वेदा, तनवीर अख़्तर, जया मेहता, प्रसन्ना और मैं। बस इतने ही लोग थे। कुर्सियाँ थोड़ी दूर-दूर थीं और भारी भी थीं, तो हमने खींच कर पास-पास कर लीं। जब मीटिंग ख़त्म हुई तो हमने कुर्सियों को वापस उनकी पुरानी जगह रखने के लिए खिसकाया। मैंने मुड़कर देखा तो प्रसन्ना एक भारी कुर्सी हाथ में उठाकर एक-एक क़दम सावधानी से रखते कुर्सी को उसकी पुरानी जगह लादकर ले जा रहे थे। मैंने कहा कि मुझे दे दो, मैं रख देता हूँ। तो मना कर दिया। मैंने सोचा कि संकोच में मना कर रहे होंगे तो मैंने कहा-अच्छा नीचे रख दो, उसे उठाने की ज़रूरत नहीं है। तो प्रसन्ना झुँझलाकर बोले – ‘तुम घसीटते हो, इसीलिए नहीं दे रहा हूँ।’ अनावश्यक आवाज़ भी नागवार गुज़रती है-मेरे लिए कार्यशाला से कहिए या प्रसन्ना के साथ से, ये एक और बात मैंने सीखी। अब मैं थोड़े परिश्रम से बचने के लिए कभी शायद ही कुर्सी या कुछ और घसीटूँ। ऐसा करूँगा तो प्रसन्ना का झुंझलाया चेहरा याद या जाएगा, जो बीच-बीच में मुस्कराता भी है। 

कार्यशाला में इंदौर के साथ बिहार, राजस्थान, दिल्ली, मुंबई, पुणे, उत्तर प्रदेश  और मध्य प्रदेश के विभिन्न शहरों से अलावा देश के विभिन्न भागों से आए क़रीब 130 प्रतिभागियों ने भाग लिया। बेगुसराय और पटना से चार नौजवान प्रतिभागी बिना रिज़र्वेशन के 24 घंटे से अधिक का सफ़र तेज़ गर्मी में करके आये। एक ऐक्टिविस्ट लड़की दिल्ली से आयी। एक ट्रांसजेन्डर साथी भी इसमें शामिल हुए। किसी ने सुबह की कार्यशाला में रजिस्टर करवाया था, किसी ने शाम की। बाहर से आये लोगों ने सुबह-शाम दोनों कार्यशालाओं में भाग लिया। लेकिन प्रतिभागियों की रुचि को देखते हुए दोनों कार्यशालाएँ सभी भागीदारों के लिए खोल दी गईं। 

बेंगलुरु से फ्लोरा बोस आईं तो थीं 10 जून 2024 को हबीब साहब के नाटक “जिन लाहौर नी वेख्या, ओ जन्म्या ही नहीं” की प्रस्तुति के लिए आयीं थीं लेकिन उन्होंने भी सुबह और शाम दोनों कार्यशालाओं के सभी सत्र पूरे ध्यान से सुने। उल्लेखनीय है कि वे बादल सरकार से लेकर हबीब तनवीर तक के निर्देशन में 200 से अधिक नाटकों में काम कर चुकी हैं और अकेले ‘लाहौर’ के ही उन्होंने सैकड़ों प्रदर्शन दुनिया के अनेक देशों और देश के अनेक शहरों और गाँवों में किये हैं। 

इसी तरह कुछ और भी साथी थे जो सीधे-सीधे नाटक की दुनिया से नहीं थे, कोई कवि, कोई पत्रकार, कोई उद्योगपति, कोई सॉफ्टवेयर इंजीनियर, कोई संघर्षरत नौजवान तो कोई गृहिणी जिसका नाता दशकों से नाटक से छूट गया था, तो कुछ नौजवान ऐसे भी थे जो नाटक के लिए इंजीनियरिंग की पढ़ाई छोड़कर अपने शौक को जुनून में बदलने के लिए अपने पर तौल रहे थे। कुछ एक्टिविस्ट भी थे जो कोई बस्तियों में काम कर रहे थे, कोई अल्पसंख्यक समुदायों के साथ तो कोई ग़रीब महिलाओं के बीच तो कोई आदिवासियों के बीच सहकारिता के आधार पर रोज़गार सृजन और जीवन के नये तरीके की तलाश में लगे हुए थे। 

दस बरस से कम उम्र के एक साहेबान ऐसे भी थे जो अगले ही बरस किसी ऐक्टिंग स्कूल को जॉइन करने के लिए मुंबई जाने वाले थे और यह बात उनके माँ-पिता ने हमें बतायी। कुल-मिलाकर चार दिन तक चलीं 6-7 घंटे रोज़ की यह कार्यशालाएँ नाटक की तकनीक तो जितना सिखा सकीं, सो तो ठीक है ही लेकिन प्रसन्ना जैसे कार्यशील और दार्शनिक व्यक्ति के साथ समय बिताने से यह कार्यशालाएँ जीवन की अनेक ज़रूरी बातें सिखाने वाली रहीं और कुछ नये लोगों से इप्टा का रिश्ता बनाने में भी यह उपयोगी रहीं। अब वो रिश्ते जितने दूर चल सकें उतना अच्छा। 

आंदोलन और संगठन ऐसे ही चलते हैं। कुछ लोग वहाँ हमेशा बने रहते हैं और कुछ अलग-अलग वजहों से दूर हो जाते हैं लेकिन एक कामयाब साथ वो होता है जिसमें दूर होने के बाद भी आप उन मूल्यों को नहीं भूलते जो आपने एक समूह में रहकर हासिल किए। 

कार्यशाला संयोजन इंदौर इकाई के सचिव प्रमोद बागड़ी, अशोक दुबे, सारिका श्रीवास्तव, रवि शंकर तिवारी, विजय दलाल, गुलरेज़ ख़ान आदि ने किया। हेमंत कमल चौरसिया, विवेक सिकरवार, नितिन, विकास और आदित्य ने भी कार्यशाला की तैयारियों में और हर छोटे-बड़े काम को दौड़-दौड़कर पूरा किया। 

प्रगतिशील लेखक संघ और स्टेट प्रेस क्लब (मध्य प्रदेश) के साथ ही इंदौर के विभिन्न नाट्य समूहों और संस्कृतिकर्मियों ने कार्यशाला के लिए भरपूर सहयोग किया। 

***

102, चिनार अपार्टमेंट,

172, श्रीनगर एक्सटेंशन,

इंदौर -452018 

मोबाईल – 9893192740 

Tuesday, July 09, 2024

मोहाली के जिला अस्पताल में हुई रीढ़ की पहली सर्जरी

मंगलवार 9 जुलाई 2024 शाम ​​4:16 बजे

NRI ने स्वयं दी सरकारी अस्पताल को प्राथमिकता

साहिबजादा अजीत सिंह नगर: 09 जुलाई 2024: (कार्तिका कल्याणी सिंह//पंजाब स्क्रीन डेस्क)::

सफल ऑपरेशन के बाद मरीज के साथ प्राचार्य डॉ. भवनीत भारती, डाॅ. अनुपम महाजन व अन्य अधिकारी

सरकारी अस्पतालों की प्रतिष्ठा और गुणवत्ता को और विकसित करने के लिए सरकार के साथ-साथ स्वास्थ्य संस्थानों के कर्मचारी भी कड़ी मेहनत कर रहे हैं। इसमें स्टाफ को सफलता भी मिल रही है क्योंकि अब एनआरआई मरीज भी सरकारी अस्पतालों में इलाज के लिए पैसे देने लगे हैं। इस अस्पताल में मरीज़ों की लंबी कतारों के काम निपटने के लिए भी कर्मचारी देर तक मेहनत से काम करते हैं। अब स्पाइन की सफल सर्जरी का एक नया मामला सामने आया है जो की एक बड़ी उपलब्धि है।

स्थानीय मेडिकल कॉलेज और जिला अस्पताल के डॉक्टरों ने मरीज की स्पाइन सर्जरी में बड़ी सफलता हासिल की है। यह जानकारी साझा करते हुए मेडिकल कॉलेज की प्रिंसिपल भवनीत भारती और वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारी डॉ. एच.एस. चीमा ने कहा कि इस अस्पताल में रीढ़ की हड्डी का पहला ऑपरेशन हुआ है, जिसका श्रेय ऑर्थो विभाग के प्रमुख डाॅ. अनुपम महाजन और उनकी टीम के पास जाता है।

उन्होंने कहा कि मरीज 45 वर्षीय पंजाबी महिला है, जिसने निजी अस्पताल के बजाय सरकारी अस्पताल में ऑपरेशन कराना पसंद किया। उन्होंने बताया कि मरीज को चलने-फिरने में काफी दिक्कत हो रही थी. डॉक्टरों ने प्रारंभिक जांच के बाद ऑपरेशन करने की सलाह दी और मरीज की सहमति से ऑपरेशन किया गया, जो पूरी तरह से सफल रहा।

उन्होंने कहा कि यह जिला स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा विभाग के लिए गौरव की बात है कि यहां पहला स्पाइन सर्जरी ऑपरेशन हुआ है। बड़ी बात यह है कि मरीज ने ऑपरेशन पर करीब 20 हजार रुपये खर्च किए हैं और अगर यह ऑपरेशन किसी निजी अस्पताल में होता तो कम से कम 2-3 लाख रुपये खर्च होते. डॉ। भवनीत भारती ने कहा कि इस मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में लगभग सभी उन्नत सर्जरी की जा रही हैं, जिससे मरीजों को काफी लाभ मिल रहा है. उन्होंने लोगों से अपील की कि वे सरकारी स्वास्थ्य संस्थानों में सरकार द्वारा उपलब्ध करायी जा रही निःशुल्क एवं सस्ती स्वास्थ्य सुविधाओं का अधिक से अधिक लाभ उठायें।