Tuesday, July 09, 2024

मोहाली के जिला अस्पताल में हुई रीढ़ की पहली सर्जरी

मंगलवार 9 जुलाई 2024 शाम ​​4:16 बजे

NRI ने स्वयं दी सरकारी अस्पताल को प्राथमिकता

साहिबजादा अजीत सिंह नगर: 09 जुलाई 2024: (कार्तिका कल्याणी सिंह//पंजाब स्क्रीन डेस्क)::

सफल ऑपरेशन के बाद मरीज के साथ प्राचार्य डॉ. भवनीत भारती, डाॅ. अनुपम महाजन व अन्य अधिकारी

सरकारी अस्पतालों की प्रतिष्ठा और गुणवत्ता को और विकसित करने के लिए सरकार के साथ-साथ स्वास्थ्य संस्थानों के कर्मचारी भी कड़ी मेहनत कर रहे हैं। इसमें स्टाफ को सफलता भी मिल रही है क्योंकि अब एनआरआई मरीज भी सरकारी अस्पतालों में इलाज के लिए पैसे देने लगे हैं। इस अस्पताल में मरीज़ों की लंबी कतारों के काम निपटने के लिए भी कर्मचारी देर तक मेहनत से काम करते हैं। अब स्पाइन की सफल सर्जरी का एक नया मामला सामने आया है जो की एक बड़ी उपलब्धि है।

स्थानीय मेडिकल कॉलेज और जिला अस्पताल के डॉक्टरों ने मरीज की स्पाइन सर्जरी में बड़ी सफलता हासिल की है। यह जानकारी साझा करते हुए मेडिकल कॉलेज की प्रिंसिपल भवनीत भारती और वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारी डॉ. एच.एस. चीमा ने कहा कि इस अस्पताल में रीढ़ की हड्डी का पहला ऑपरेशन हुआ है, जिसका श्रेय ऑर्थो विभाग के प्रमुख डाॅ. अनुपम महाजन और उनकी टीम के पास जाता है।

उन्होंने कहा कि मरीज 45 वर्षीय पंजाबी महिला है, जिसने निजी अस्पताल के बजाय सरकारी अस्पताल में ऑपरेशन कराना पसंद किया। उन्होंने बताया कि मरीज को चलने-फिरने में काफी दिक्कत हो रही थी. डॉक्टरों ने प्रारंभिक जांच के बाद ऑपरेशन करने की सलाह दी और मरीज की सहमति से ऑपरेशन किया गया, जो पूरी तरह से सफल रहा।

उन्होंने कहा कि यह जिला स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा विभाग के लिए गौरव की बात है कि यहां पहला स्पाइन सर्जरी ऑपरेशन हुआ है। बड़ी बात यह है कि मरीज ने ऑपरेशन पर करीब 20 हजार रुपये खर्च किए हैं और अगर यह ऑपरेशन किसी निजी अस्पताल में होता तो कम से कम 2-3 लाख रुपये खर्च होते. डॉ। भवनीत भारती ने कहा कि इस मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में लगभग सभी उन्नत सर्जरी की जा रही हैं, जिससे मरीजों को काफी लाभ मिल रहा है. उन्होंने लोगों से अपील की कि वे सरकारी स्वास्थ्य संस्थानों में सरकार द्वारा उपलब्ध करायी जा रही निःशुल्क एवं सस्ती स्वास्थ्य सुविधाओं का अधिक से अधिक लाभ उठायें।

Wednesday, May 15, 2024

शहीद सुखदेव के सपनों का भारत बनाने को सभी आगे आएं

Wednesday 15th May 2024 at 03:08 PM 

आज फिर दिन भर बना रहा नौघरा में देशभक्ति का माहौल


लुधियाना
: 15 मई 2024: (कार्तिका कल्याणी सिंह//पंजाब स्क्रीन लुधियाना डेस्क)::
आज लुधियाना के चौड़ा बाज़ार से सटे हुए नौघरा में जो रौनक थी वह आम दिनों से बहुत ही अलग थी। आज की रौनक आज  की भीड़ ज़द दिला रही थी कि देश पर कुर्बान होने वालों में यहां का नौजवान सुखदेव थापर भी था। इस युवक को भी 23 मार्च की शाम को भगत सिंह और राजगुरु के साथ फांसी चढ़ा दिया गया था। इसी इलाके में था वह मकान जहां इस नौजवान ने अपने जन्म के बाद होश संभाला। इस मकान में अब तक उन जगहों और निशानियों को संभाल कर रखा गया है जिनसे याद आता है कि वे क्रन्तिकारी किस तरह से यहाँ अपना अज्ञातवास भी काट ले ते थे, गुप्त बैठकें भी कर लेते थे और खतरा होने पर गोरिल्ला युद्धनीति के अंतर्गत इधर उधर निकल कर छुप भी लेते थे। शहीद सुखदेव थापर का परिवार बरसों से इस जगह की सेवा और संभाल कर रहा है। यहाँ बाकायदा पूजा पाठ भी होता है और ज्योति प्रज्वलन भी किया जाता है। निरंतर प्रयासों के बाद यहाँ सत्ता से जुड़े लोग भी आते रहे लेकिन अभी भी इस स्थान को वह सम्मान नहीं मिला जिसका यह हकदार है। 

गौरतलब  है कि शहीद सुखदेव, जिन्हें 23 मार्च 1931 को द्वितीय लाहौर षडयंत्र केस में राजगुरु, भगत सिंह के साथ सेंट्रल जेल लाहौर में फाँसी दी गई थी, के 117वें जन्मदिन के अवसर पर विशेष आयोजन हुआ। आज लुधियाना शहर के मोहल्ला नौघरा में विशेष रौनकें रहीं। वही स्थान जहां इस क्रांति नायक ने जन्म लिया और इसी फ़िज़ा में सासें भी लीं। इस जगह की दीवारों ने क्रांतिकारी वीरों को बेहद नीदीक से देखा था। इसी पावन भूमि पर उन वीरों ने अपने पाँव रखे थे। इस जगह पर नंगे पाँव चल कर अब भी उन पावन पांवों की छोह को मेहसुस किया जा सकता है। 

उनके जन्मस्थान पर आज शहीद सुखदेव थापर के वंशज अशोक थापर के नेतृत्व में अमर शहीद सुखदेव का जन्म दिवस मनाया गया। इस मौके पर स्कूल-कॉलेजों के विद्यार्थियों ने देशभक्ति गीतों, नाटकों और भाषणों के जरिये उन्हें अकीदा के फूल पेश किये।

इस अवसर पर पंजाबी लेखक और पंजाबी लोक विरासत अकादमी के अध्यक्ष प्रो. गुरभजन सिंह गिल भी विशेष तौर पर पहुंचे हुए थे। उन्होंने कहा कि सैकड़ों युवाओं की कुर्बानी देने के बाद हमें उस आजादी पर सवाल उठाना होगा जो सत्ता परिवर्तन नहीं बल्कि संपूर्ण मानव जाति के लिए संतुलित विकास और लूट मुक्त आजादी के लिए मांगी गई थी। 

उन्होंने विस्तार से समझाया कि सत्ता परिवर्तन के साथ सिर्फ शासक बदलते हैं, व्यवस्था नहीं। हमें राज कश्मीरी के ये शब्द कभी नहीं भूलने चाहिए जो उन्होंने पचास साल पहले कहे थे. 
उठ बदली नहीं इंसान दी तकदीर हाले वी।नज़र सखनी ए, गल्मा लीरो लीर हाले वी। 
ते वाजा मारदी ए देश दी भटकी जवानी नूं, मानवता दे पैरीं छनकदी जंजीर हाले वी।  

इस अवसर पर बोलते हुए नौगरा निवासी एवं उनके परिवार से जुड़े अशोक थापर ने कहा कि शहीद सुखदेव थापर का जन्म 15 मई 1907 को पंजाब के लुधियाना शहर में श्री राम लाल थापर एवं श्रीमती रल्ली देवी के घर हुआ था। रात के पौने ग्यारह बजे हुआ। 

उनके जन्म से तीन महीने पहले उनके पिता राम लाल थापर जी की मृत्यु हो जाने के कारण उनके चाचा श्री अचिन्त राम थापर जी ने उन्हें लायलपुर बुला लिया और उनके पालन-पोषण में पूरा सहयोग दिया। सुखदेव के मामा ने भी उनका पालन-पोषण अपने बेटे की तरह किया। भगत सिंह के दादा अर्जन सिंह के साथ थापर परिवार की निकटता के कारण, शहीद सुखदेव और शहीद भगत सिंह ने बचपन से लेकर जवानी और फांसी तक अपना पूरा जीवन एक साथ बिताया। इन सभी ने कामरेड रामचन्द्र और भगवती चरण वोहरा के साथ मिलकर लाहौर में युवा भारत सभा का गठन किया।

जब लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने की योजना बनाई गई तो उन्होंने सॉन्डर्स की हत्या में भगत सिंह और राजगुरु का पूरा साथ दिया। इतना ही नहीं, वर्ष 1929 में जेल में कैदियों के साथ अमानवीय व्यवहार के खिलाफ राजनीतिक कैदियों की भूख हड़ताल में भी उन्होंने सक्रिय रूप से भाग लिया। यह भूख हड़ताल एक ऐतिहासिक कदम थी। 

अंग्रेज़ों की सत्ता इन नौजवानों से बेहद घबराई हुई थी। जेल मैनुअल के नियमों की अवहेलना करते हुए राजगुरु और भगत सिंह को 23 मार्च 1931 को शाम 7 बजे लाहौर सेंट्रल जेल में उनके लिए तय तारीख और समय से पहले ही फाँसी दे दी गई। इस पर भारत के कोने-कोने से विरोध हुआ।

श्री त्रिभुवन थापर ने बताया कि इस जन्मदिन पर नगर निगम कमिश्नर श्री संदीप ऋषि आईएएस, श्री विकास हीरा पीसीएसडीएम और शहर के सैकड़ों सामाजिक संगठनों के नेता पहुंचे। अन्य लोगों के अलावा विधायक अशोक पाराशर (पप्पी) ने भी शहीद की याद में श्रद्धा सुमन अर्पित किये. 

इस अवसर पर रक्तदान का भी आयोजन किया गया, जिसमें जुझार टाइम्स के मुख्य संपादक बलविंदर सिंह बोपाराय सहित कई रक्तदाताओं ने स्वेच्छा से रक्तदान किया। इस जगह के महत्व को पूरी मान्यता दिलाने के लिए सभी को एकजुट हो कर आगे आना चाहिए। यहां क्रांति के इतिहास की लायब्रेरी, म्यूज़ियम. क्रांति  से जुड़ा हुआ गीत-संगीत केंद्र और शहीदों की विचारधारा से जुड़े लोगों का स्वतंत्र संगठन भी होना चाहिए। 

शहीद सुखदेव की भूमिका को सरकारों ने उचित न्याय नहीं दिया

 Tuesday 14th May 2024 at 8:10 PM  

शहीद की जन्मस्थली आज भी उचित पहचान से वंचित है

अमर शहीद सुखदेव थापर को याद करते हुए एक विशेष पाठ


लुधियाना: 14 मई 2024: (विशेष खोज लेख-ब्रिज भूषण गोयल//पंजाब स्क्रीन डेस्क)::

विश्व प्रसिद्ध लाहौर षडयंत्र केस :“क्राउन बनाम सुखदेव एवं अन्य”, इस केस में पुराने लुधियाना शहर के नौघरा मुहल्ला में 15 मई, 1907 को जन्मे सुखदेव थापर को मुख्य षडयंत्रकारी तथा आरोपी बनाया गया था। आप और भगत सिंघ व राजगुरू तथा 22 अन्यों को भीजो लगभग एक समान आयुवर्ग के थे इस केस में आरोपित किए गए थे। इसी के साथ उनके समान आयु के बहुत से अन्य युवा साथियों को भी अभियुक्त बनाया गया था। 1920 के दशक में हुई घटनाओं व इस केस के आरम्भ होते ही राष्ट्र के स्वतंत्रता संघर्ष ने भारत में ब्रिटिश साम्राज्यवाद की चूलें हिला दीं थीं। अंतत: इस “क्रांतिकारी त्रिमूर्ति” को फांसी के माध्यम से मृत्युदण्ड की सज़ा दी गई और 23 मार्च 1931 को फांसी पर चढ़ा दिया गया। यही नहींइस केस में बहुत से अन्य लोगों को आजीवन कारावास की सज़ाएं हुईं जबकि कई लोगों को दूर दूर भेजा गयाजलावतन किया गया।

जब हम शहीद सुखदेव की जीवन यात्रा पर नज़र दौड़ाते हैं तो दिखाई देता है कि जब वह मात्र 03 वर्ष की आयु के ही थे कि उनके पिता श्री राम लाल थापर का देहांत हो गया था। श्री राम लाल थापर एक बहुत ही छोटे कारोबारी थे। इस प्रकार अबोध बालक सुखदेव का लालन पालन उनके ताया श्री अचिंतराम थापर जी जी की देख रेख में हुआ जो उन दिनों लायलपुर (अब पाकिस्तानपंजाब) में रहते थे। लायलपुर में श्री अचिंतराम एक प्रमुख समाजसेवी थे तथा स्वतंत्रता लहर के प्रबल समर्थक थे तथा 1919 में और उसके बाद 1921 में हुई उनकी गिरफ्तारी ने युवा सुखदेव के मन पर भारी रोषपूर्ण प्रभाव डाला और उन्होंने इस के विरुद्ध संघर्ष करने को प्रतिबद्ध होने की ठानी। शहीद भगत सिंघ और सुखदेव के परिवारों की आपस में गहरी जान पहचान थी। इस प्रकारइस युवा जोड़ी ने अपनी स्कूली शिक्षा पूर्ण कर आगे की शिक्षा के लिए नैशनल कालेजलाहौर में दाखिला ले लिया। उन दिनों यही वह कालेज था जिसकी स्थापना सुप्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानीयोद्धा लाला लाजपत राय द्वारा की गई थी और इसी कालेज में युवाओं को समाज सेवा के भाव कूट कूट कर भरे जाते थेमानो समाज सेवा का गहन प्रशिक्षण दिया जाता था। 

इसी कालेज में युवा प्रतिभाओं को खुले में बौद्धिक चर्चाओं में भाग लेने,   विभिन्न विषयों पर अपने अध्यापकों से खुलकर प्रश्न पूछनेविश्व के क्रांतिकारियों और स्वतंत्रता संघर्ष में भारत के क्रांतिकारियों के क्रिया कलापोंविचारों पर चर्चा करने की छूट थी। इस प्रकार इस कालेज के जिन अध्यापकों ने इस युवा जोड़ी को सर्वाधिक प्रभावित कियावे थे राजनीति शास्त्र के प्राध्यापक श्री जयचंद्र विद्यालंकार। यही नहींवे अध्ययन के लिए लाला लाजपत राय जी द्वारा स्थापित द्वारिकानाथ पुस्तकालय में भी नियमित तौर पर जाया करते थे। 

इस पुस्तकालय में उन दिनों में बड़ी संख्या में राजनीति शास्त्र के साहित्य और समसामयिक मामलों पर पुस्तकें और ज्ञानवर्धक पत्रिकाएं भी उपलब्ध होतीं थींजिन्होंने भगत सिंघ और सुखदेव को बहुत आकर्षित किया। भगत सिंघ और सुखदेव इस पुस्तकालय से उधार लेकर उन्हें पढ़ते अपने किराये के कमरे में पुस्तकोंपत्रिकाओं के विषयों पर घण्टों विस्तृत चार्चाएं करते। उन दिनों  लाहौर अविभाजित भारत के पंजाब राज्य में शिक्षा का एक बड़ा केंद्र था तथा यहां के कालेज युवा प्रतिभाओं के स्वाभाविक आकर्षण का केंद्र थे। इस प्रकारउन दिनों स्वतंत्रता संघर्ष की लहर प्रत्येक युवा भारतीय को प्रभावित करती थी। 

इसी क्रम में इन युवा छात्रों ने मार्च 1926 में लाहौर में “नौजवान भारत सभा” के नाम से एक छात्र संगठन का गठन किया। यह संगठन पूर्णत: समाजवादी और प्रकृति से किसी भी धार्मिक भेद-भाव से रहित था। इस संगठन मेंजो अपनी प्रकृति में पूर्णत: समाजवादी और किसी भी दृष्टि से अधार्मिक थामें भगत सिंघ और सुखदेव ने पंजाब के युवाओं को अपने साथ काम करने के लिए तैयार करने के उद्देश्य से भागीरथ प्रयास किए। इन युवाओं के अभिभावक पहले से ही राम प्रसाद बिस्मिल द्वारा 1924 में बंगाल में गठित हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक एसोसिएशन से जुड़ चुके थे।         

लाहौर स्थित युवा क्रांतिकारियों ने उत्तर प्रदेशबिहारराजस्थानऔर पंजाब के सम विचारक युवाओं से विशेष मेल- जोलसम्पर्क आरम्भ किया। 08-09 सितम्बर 1928 को फिरोज़शाह कोटलादिल्ली में उन्होंने हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक ऐसोसिएशन (एच.एस.आर.ए.) के  गठन की घोषणा की। इस प्रकारहिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन के नाम में सोश्लिस्ट शब्द जोड़ा गया। भगत सिंघ और सुखदेवदोनों साम्प्रदायिकता से घृणा करते थे और केवल एक न्यायिक सोसायटी बनाना चाहते थे। इस प्रकार चंद्रशेखर आज़ाद को एच.आर.एस.ए. का कमांडर बनाया गया। इस संगठन की संरचना की मुख्य प्रकृति ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध विद्रोह करना था। सुखदेव की संगठनात्मक प्रतिभा को ध्यान में रखते हुए और संगठन के प्रमुख कार्यकर्ताओं में से एक होने के नातेउन्हें पंजाब मामलों का प्रभारी बनाया गया। .... और यही वह समय था जब इस संगठन ने सायमन कमीशन का विरोध करने का निर्णय लिया तथा सहारनपुरआगरा और लाहौर में बम बनाने भी शुरू किए।  

ब्रिटिश सरकार ने “भारत सरकार कानून 1919” के अंतर्गत चल रही भारत सरकार की कारगुज़ारियों का अध्ययन करने हेतु सायमन कमीशन नाम से एक आयोग भारत भेजालेकिन इसमें किसी भारतीय को शामिल नहीं किया गया था। लाहौर में रहने वाले राजनैतिक समूहों और क्रांतिकारियों ने संयुक्त तौर पर इस कमीशन के लाहौर आगमन पर रेलवे स्टेशन पर इसका विरोध करने का निश्चय किया। 30 अक्तूबर 1928 को सुखदेव के नेतृत्व में नौजवान भारत सभा के कार्यकर्ता तथा दूसरे लोग भी लाला लाजपत राय के साथ आए सैकड़ों लोगों में शामिल हो गए। इन कार्यकर्ताओं ने लाला जी को एक सुरक्षात्मक घेरा उपलब्ध करवाया था। प्रदर्शन शुरु होते ही लाहौर के पुलिस अधीक्षक जेम्ज़ ए. स्काट ने लाठीचार्ज करने का आदेश दिया। स्काट द्वारा लाला जी को देखते ही पुलिस द्वारा उन्हें बड़ी बेरहमी से पीटना आरम्भ किया जिससे उनकी छाती पर गम्भीर चोटें आईं और परिणामत: खून बहना आरम्भ हुआ। इसके बाद लाहौर के मोरी गेट पर एक सभा हुई जिसमें अपनी चोटों की परवाह न करते हुए लाला जी ने भाषण देते हुए कहा कि... “मैं घोषणा करता हूं कि मेरी छाती पर लगी एक एक चोट भारत में अंग्रेज़ी शासन के कफ़न में कील साबित होगी।“ इस पर वहां उपस्थित पुलिस उपाधीक्षक नील ने ठहाका लगायाजिससे सुखदेव को बड़ी पीड़ा हुई क्योंकि वह भी उस स्थान पर उपस्थित था। पुलिस की लाठियों की मार सहन न करते हुए कुछ दिनों के बाद स्वर्ग सिधार गए। इस पर एच.एस. आर.ए. ने इस अपमान और लालाजी की मृत्यु का बदला लेने के लिएइस लाठी चार्ज के लिए उत्तरदायी पुलिस अधिकारी जेम्ज़ ए. स्काट से बदला लेने का निश्चय किया गया। 

इसके बाद सुखदेव और दूसरे क्रांतिकारियों ने कुछ दिनों तक लाहौर में जेम्ज़ ए. स्काट की उसके कार्यालय की गतिविधियों पर नज़र रखनी आरम्भ की। अंत में सुखदेव द्वारा बनाई गई योजना के अनुसार उसके विश्वसनीय कामरेड साथियोंभगत सिंघराजगुरूचंद्रशेखर और जयगोपाल को बदला लेने का यह कार्य सौंपा गया। योजना के अनुसार दिनांक 17 दिसम्बर 1928 को जेम्ज़ ए. स्काट को कत्ल करने की योजना बनाई गई। क्रांतिकारी निश्चित किए गए स्थान पर समय पर पहुंच गए। लेकिन भुलावे में उन्होंने एक अन्य पुलिस अधिकारीए.एस.पी. जे.पी.सांडर्स काजो स्काट से 21 वर्ष छोटा थाजब वो सायंकाल पर अपने कार्यालय से बाहर आ रहा था तो गलतफहमी में उसका वध कर दिया। वास्तव में जे.पी. स्काट उस दिन कसूर प्रांत में था। इस गोलीकांड में क्रांतिकारियों ने सांडर्स के साथ ड्यूटी कर रहे एक हैड कांस्टेबल चन्नण सिंघ को भी गोली मार दी गई। इन युवा क्रांतिकारियों ने रात के समय लाहौर शहर की दीवारों पर हस्तलिखित पोस्टर भी चिपकाए गए जिन पर लिखा था... , “लाला लाजपत राय की मृत्यु का बदला ले लिया गया।“ दूसरे दिन सायंकाल को यह सभी क्रांतिकारी अपनी अपनी पहचान बदल कर रात्रि गाड़ी से कलकत्ता जाने वाली रेलगाड़ी से निकल गए। कलकत्ता में सुखदेव ने बम बनाने की तकनीक सीखी। कुछ समय बाद ये क्रांतिकारी फिर से आगरासहारनपुर और दिल्ली में इकट्ठा होना शुरू हुए।

वर्ष 1929 में भारत में ब्रिटिश सरकार ने दो बिलों –द ट्रेड डिस्पियूटस बिल और पब्लिक सेफटी बिलपारित करवाने के लिए दिल्ली असेम्बली में प्रस्तुत किए। इन बिलों को प्रस्तुत करने का एकमात्र उद्देश्य क्रांतिकारियों की गतिविधियों पर अंकुश लगाना तथा जो लोग सरकार के विरुद्ध आंदोलन की तैयारी में थेउनको रोकना था। सभी राष्ट्रवादियों ने इन बिलों का भरपूर विरोध किया। एच. एस. आर.ए. में युवा सदस्यों ने 08 अप्रैल,1929 को असेंबली के चेम्बर में 2 बम फोड़कर और अपनी आवाज़ में ऊंचे नारे लगाकर इन बिलों का अपना सांकेतिक विरोध प्रकट करने का निर्णय लिया। यह कार्य भगत सिंघ और बटुकेश्वर दत्त को सौंपा गया। यहां यह बताया जाना भी समीचीन है कि एच. एस.आर. ए. के अन्य सदस्यों ने भगत सिंघ को यह कार्य सौंपने का यह कह्ते हुए विरोध किया कि सभी जनते हैं कि भगत सिंघ पहले से ही लाहौर में सांडर्स हत्याकाण्ड में संलिप्त हैं इसलिए उनकी पहचान खुल जाएगी। इस पर सुखदेव ने गुस्सा खाते हुए  इस काम के लिए भगत सिंघ को ही भेजने का अपना निर्णय दे दिया क्योंकि वह जानते थे और उन्हें विश्वास भी था कि भगत सिंघ असेम्बली में बम फेंकने के इस काम को  भली-भांति कर सकेंगे।  बम और पेम्फ्लेट फेंकने के बाद उन्हें “इंक्लाब ज़िंदाबाद” के ऊंचे नारे लगाने थे। इस पर वो दोनों गिरफ्तार कर लिए गए क्योंकि बम फेंकने के बाद उन्होंने भाग कर बचने की कोशिश नहीं की। इस पर सुखदेव कुछ दिन तक भगत सिंघ की रक्षा में सोचते रहने के कारण अपसेट रहे क्योंकि एकमात्र भगत सिंघ ही तो वह व्यक्ति थे जिनसे वह जितना वाद-विवाद करते थे और प्यार भी उतना ही करते थे। बाद में सुखदेव थापर को भी पण्डित किशोरी लाल तथा जय गोपाल के साथ उनके छिपने के स्थान से गिरफ्तार कर लिया गया।  

अब पुलिस को यह विश्वास हो गया था कि लाहौर से चलने वाली इन सभी क्रांतिकारी योजनाओं व गतिविधियों के पीछे दिमाग मूलत: सुखदेव थापर का ही था। अत: इस मामले में अप्रैल 1929 में हैमिलटन हार्डिंग़एस.एस.पी. द्वारा प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफ.आई.आर) स्पैशल जज आर.एस. पण्डित की अदालत में दर्ज करवाई गई जिसमें यह बताया गया कि इस सम्पूर्ण घटनाक्रम की पृष्ठभूमि में मुख्यत: सुखदेव का ही दिमाग काम कर रहा थाइसलिए एफ.आई.आर. में उन्हें ही एक नम्बर पर आरोपित किया गया। इस मामले को लाहौर षडयंत्र केस, 1929  के तौर पर जाना गया तथा आधिकारिक तौर पर इसे “ब्रिटिश ताज बनाम् सुखदेव तथा अन्य” का नाम दिया गया। इस केस में उनका उपनाम स्वामी,पेंडू पुत्र राम लालथापर खत्री जाति बताया गया। सभी गिरफ़्तार  क्रांतिकारियोंभगत सिंघ और बटुकेश्वर दत्त को लाहौर केंद्रीय कारावास में लाया गया क्योंकि पुलिस को पक्का विश्वास था कि उनकी गतिविधियों का यह षडयंत्र मूलत: लाहौर में ही रचा गया। इसी जेल में क्रांतिकारियों ने कुछ दिनों तक भूख हड़ताल भी की थी और उन्हें जबरदस्ती ढंग से खाना खिलाया गया।  जेल में उनकी पिटायी तक भी की गई थी। लेकिन वे लोग ज़ोर देकर कहते रहे कि उनके साथ भी युद्धबंदियों जैसा व्य्वहार किया जाए क्योंकि वे भी अपने देश को ब्रिटिश साम्राज्यवाद से स्वतंत्र करवाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। उन्होंने अपने इस रोष कोगुस्से को अदालतों में जजों के सामने निकालाप्रकट किया और आगे से उन अदालतों के सामने पेश होने से इंकार कर दिया।

भले ही इस मामले में विशेष जज की अदालत में मुकद्दमा 11 जुलाई 1929 को ही शुरू हो चुका थाइस पर भी सुनवाई की बहुत सी तारीखें निकल जाने के बाद भी अदालती कार्यवाहियां पूरी न हो सकीं। तब वायसराय इरविन ने भारत सरकार अधिनियम 1915 की धारा 72 के अंतर्गत प्रदत्त अपनी विशेष शक्तियों का प्रयोग करते हुए 01 मई 1930 को लाहौर षडयंत्र केस अध्यादेश 91 बहुत तत्परता से जारी कर दिया ताकि इसकी सुनवाई 03 जजों के विशेष ट्रिब्यूनल के सामने आरम्भ हो सके। इस प्रकार न्यायाधीशों द्वारा दिए गए निर्णय को किसी अन्य अदालत में चुनौती न दी जा सके और केवल और केवल लण्डन में ही स्थित प्रिवी कौंसिल में ही इसके बारे में किसी अपील को सुना जा सके। उन्होंने इस अध्यादेश को जारी करने में एक तर्क यह दिया गया कि आरोपित लोग इस केस में सहयोग नहीं कर रहे हैंभूख हड़ताल कर रहे हैं तथा अदालतों में व्यवस्था को भी भंग कर रहे हैं जिससे केस बार बार स्थगित होता हैपरिणामत: निर्णय में देरी हो रही है। 

इस अध्यादेश को न तो केंद्रीय विधान सभा द्वारा और न ही उस समय की राज्य सभा (कौंसिल आफ़ स्टेटस) द्वारा अनुमोदित किया गया। ट्रिब्यूनल 06 मास के भीतर अपना निर्णय देने को बाध्य था और इसी के अनुरूप उसने प्रतिवादी क्रांतिकारियों को स्वयं अपना पक्ष रखनेबचाव करने अथवा अपने परिवारों के माध्यम सेवकीलोंअपने समर्थकों के माध्यम से भारत में अथवा लण्डन में बचाव का समुचितकोई अवसर ही प्रदान किया। स्पष्ट है कि अध्यादेश का मूल मंतव इन क्रांतिकारियों को तत्परता से मृत्युदण्ड की सज़ा सुनाना था और अंतत: दुर्भाग्यवश यह कार्य भी 07 अकतूबर 1930 को ही पूरा हो गया। इस प्रकारब्रिटिश सरकार इस प्रकार के न्यायिक कत्ल का अंत तत्परता से करने में सफ़ल हो गई..... ऐसा बहुत से न्यायविदों ने कहा है। इस केस में पहले की कार्यवाहियों के अनुसार इस ट्रिब्यूनल ने भी सुखदेव को ही भगत सिंघ के साथ षडयंत्र रचनेकुशल योजनाकार होकरउसे अपना मुख्य दायां हाथ बनाकरषडयंत्र में राजगुरू को मुख्य निशानेबाज़ बनाकर अपनी योजनाओं का अंजाम देने वाला बताया जिससे सांडर्स का कत्ल हुआ।     

पहले शहीदों को 24 मार्च 1931 को फांसी देने की योजना बनाई गई थी, लेकिन जेल के बाहर किसी प्रकार के उपद्रव की आशंका को ध्यान में रखते हुए अधिकारियों द्वारा इसे नियत तिथि से पूर्व ही 23 मार्च 1931 की सायंकाल को ही फांसी की सज़ा दे दी गई। भगत सिंघराजगुरु और सुखदेव के निकट सम्बंधी अंतिम समय में मिलने के लिए फांसी देने से पहले वहां पहुंच चुके थे। सुखदेव से मिलने के लिए केवल उसकी माता जीश्रीमती रलीदेई थापर और मथुरादास थापर को ही अनुमति दी गईजबकि इस मिलन के लिए मुख्य सचिवपंजाब का पत्र होने के बावजूद ताया श्री अचिंतराम थापर जी को सुखदेव से मिलनेदेखने नहीं दिया गया। सुखदेव को फांसी के फंदे तक ले जाए जाने से पहले जेलर द्वारा उसकी अंतिम इच्छा पूछी गई। इस पर सुखदेव ने मात्र यही कहा, “ उसका कैरम बोर्ड उसके परिवार को लौटा दिया जाए।“

फांसी के तखते पर जाने से पूर्व सुखदेवभगत सिंघ और राजगुरू एक-दूसरे से गले मिले तथा जेल परिसर में अन्य कैदियों के “इंक्लाब –ज़िंदाबाद”  के नारों के बीच फांसी का फंदा चूमते हुए फांसी पर झूल गए। इस पर जेल के बाहर लोग बहुत सतर्क हो चुके थे। लोगों की बड़ी भीड़ उमड़ चुकी थी। रिश्तेदारोंनिकट सम्बंधियों के निवेदनों के बावजूद जेल प्राधिकारियों द्वारा शहीदों के पार्थिव शरीर उन्हें नहीं सौंपे गए.... अपितु रात में ही उन्हें अंतिम संस्कार के लिए गुप्त तौर पर पुलिस वाहनों में लाहौर से फिरोज़पुर में सतलुज नदी के किनारे पर लाया गया और जला दिया गयाI


ब्रिज भूषण गोयल एक सामाजिक कार्यकर्ता ऐवम एक वरिष्ठ नागरिक 

मोबाईल: नंबर: 9417600666

3182, बी-34, न्यू टैगोर नगर लुधियाना (पंजाब)


कृपया ध्यान दें: यह लेख शहीद सुखदेव के योगदान को याद करने के लिए लिखा गया है। यह दृढ़ता से महसूस किया जाता है कि स्वतंत्रता संग्राम और लाहौर षडयंत्र में उनकी भूमिका को स्पष्ट करने के लिए सरकारों द्वारा उचित न्याय नहीं दिया गया है। और उनके जन्मस्थान को अभी भी उचित मान्यता का अभाव है। सरकार और समाज को उस पर अधिक ध्यान देना चाहिए। गौरतलब है कि ऐसा कई अन्य शहीदों के साथ भी हुआ होगा. हम ये विवरण पाठकों तक पहुंचाते रहेंगे. नए विचारों का इंतजार रहेगा--रेक्टर कथूरिया-संपादक


Monday, May 13, 2024

मोहाली में ज़िला प्रशासन द्वारा 24x7 शिकायत कक्ष शुरू

 Monday 13th May 2024 at 6:15 PM

शिकायतों के निपटारे में अब और तेज़ व नई रफ़्तार लाने का दावा 


एसएएस नगर: (मोहाली): 13 मई 2024: (कार्तिका सिंह//पंजाब स्क्रीन डेस्क)::

लोगों को अक्सर यह शिकायत रहती है कि शिकायत जा तो दर्ज ही नहीं होती जा फिर उनका जल्द निपटारा नहीं होता। अब सत्ता और प्रशासन ने इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। मई तकनीक के मुताबिक शिकायत का निपटारा हर हालत में 100 मिनटों के अंदर अंदर कर दिया जाएगा। इसकी जानकारी ए डी सी कम अतिरिक्त जिला चुनाव अधिकारी वी इस तिड़के ने दी। लोगों में इसे ले कर बेहद उत्साह है। 

यहां मोहाली अर्थात एसएएस नगर में भी सिविल विजिलेंस को 66 शिकायतें मिलीं, प्रशासन ने इनका समय पर समाधान किया-एडीसी विराज एस तिड़के इस दिशा में पूरी तरह से सक्रिय बने हुए हैं। इस शिकायत केंद्र में 66 में से 42 शिकायतें वैध पाई गईं 24x7 शिकायत निगरानी कक्ष सक्रिय रूप से कार्य कर रहा है। 

अतिरिक्त उपायुक्त-सह-अतिरिक्त जिला चुनाव अधिकारी विराज एस. तिडके ने कहा कि ज़िला प्रशासन द्वारा 24x7 शिकायत निगरानी कक्ष स्थापित किया गया है, जहां आदर्श चुनाव संहिता के उल्लंघन से संबंधित विभिन्न शिकायतें आती हैं। संचार के विभिन्न माध्यमों से प्राप्त शिकायतों का समय पर निस्तारण भी त्वरित गति से किया जा रहा है। 

एडीईओ ने आगे बताया कि शिकायत प्रकोष्ठ को अब तक भारत निर्वाचन आयोग (ईसीआई) द्वारा विकसित सी विजिल ऐप के माध्यम से आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन से संबंधित 66 शिकायतें प्राप्त हुई हैं। उन्होंने कहा कि 23 शिकायतें विभिन्न कारणों से खारिज कर दी गईं (वैध नहीं पाई गईं) जबकि शेष 42 शिकायतें वैध पाई गईं और भारत निर्वाचन आयोग द्वारा निर्धारित 100 मिनट की समय सीमा के भीतर निपटारा कर दिया गया, जबकि एक शिकायत प्रगति पर है उन्होंने कहा कि जब भी सी विजिल ऐप पर कोई शिकायत प्राप्त होती है, तो शिकायत प्राप्त होने के पांच मिनट के भीतर फ्लाइंग स्क्वाड टीमों को नियुक्त किया जाता है, जिसके बाद टीम को 15 मिनट के भीतर वहां पहुंचना होता है। इसके बाद 30 मिनट के भीतर शिकायत की जांच कर रिपोर्ट आगे की कार्रवाई के लिए निर्वाचन क्षेत्र के सहायक रिटर्निंग अधिकारी को भेज दी जाती है। एआरओ को अगले 50 मिनट के भीतर शिकायत पर कार्रवाई करनी होगी। 

उन्होंने कहा कि इस तरह मात्र 100 मिनट में शिकायत का निपटारा हो जाता है. उन्होंने कहा कि यह ऐप गूगल प्ले स्टोर पर उपलब्ध है और इस ऐप के माध्यम से नागरिक आदर्श आचार संहिता के किसी भी उल्लंघन के स्थान आधारित विवरण के साथ मौके पर ही फोटो और वीडियो अपलोड कर सकते हैं। जब वह कोई तस्वीर या वीडियो अपलोड करते हैं, तो उड़न दस्ते और सहायक रिटर्निंग अधिकारियों द्वारा तत्काल कार्रवाई शुरू की जाती है। इस तरह तेज़ी से इस दिशा में कदम उठाए जाते हैं। 

अतिरिक्त जिला निर्वाचन अधिकारी ने यह भी बताया कि इन शिकायतों के समाधान में औसतन 43.26 मिनट का समय लगा। उन्होंने कहा कि लोकसभा चुनाव को स्वतंत्र, निष्पक्ष, पारदर्शी एवं शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न कराने के लिए जिला प्रशासन आदर्श आचार संहिता को सख्ती से लागू कर रहा है। 

रिश्वत लेता पटवारी का कारिंदा विजीलैंस ब्यूरो द्वारा काबू

Monday13th May 2024 at 6:15 PM

ज़मीन का इंतकाल करने के बदले ले रहा था 3 हज़ार रुपए 


चंडीगढ़: 13 मई 2024: (कार्तिका कल्याणी सिंह//पंजाब स्क्रीन डेस्क)::
रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार जैसे समाज की नस नस में घुस चूका है। हर क्षेत्र और हर विभाग में ऐसे लोग मिल जाते हैं। सर्कार की सख्तियां और कड़े कानूनों के बावजूद यह सिलसला रुकने का नाम ही नहीं ले रहा। इसे देखते हुए राज्य में भ्रष्टाचार के विरुद्ध फिर से  शुरु की मुहिम के दौरान पंजाब विजीलैंस ब्यूरो ने आज हलका पायल के पटवारी जीत सिंह के एजेंट (करिंदा) के तौर पर काम करते एक प्राईवेट व्यक्ति गुरप्रीत सिंह निवासी गाँव निजामपुर, तहसील पायल ज़िला लुधियाना को 3000 रुपए रिश्वत लेते हुये रंगे हाथों काबू किया है। इससे इस तरह के कामों में चलते नेटवर्क का अनुमान आसानी से लगाया जा सकता है।  इस तरह के गड़बड़ घोटाले कितने गांवों में चलते होंगें इसका अनुमान भी कोई मुश्किल नहीं। 

इस सम्बन्धी जानकारी देते हुये विजीलैंस ब्यूरो के प्रवक्ता ने बताया कि उक्त व्यक्ति को अमरिन्दर सिंह निवासी गांव निजामपुर, तहसील पायल, ज़िला लुधियाना की तरफ से दर्ज करवाई गई शिकायत के आधार पर गिरफ़्तार किया गया है।

उन्होंने आगे बताया कि उक्त शिकायतकर्ता ने विजीलैंस ब्यूरो के पास पहुंच करके दोष लगाया कि उनकी पारिवारिक पैतृक ज़मीन का इंतकाल राजस्व रिकार्ड में दर्ज करने के बदले उक्त पटवारी ने 5000 रुपए रिश्वत की मांग की थी परन्तु सौदा 3000 रुपए में तय हुआ है।

प्रवक्ता ने बताया कि इस शिकायत की प्राथमिक पड़ताल के उपरांत विजीलैंस ब्यूरो की टीम ने जाल बिछा कर उक्त प्राईवेट व्यक्ति को दो सरकारी गवाहों की हाज़िरी में पटवारख़ाना पायल के बाहर से उक्त पटवारी की तरफ़ से शिकायतकर्ता के पास से 3000 रुपए रिश्वत लेते हुये रंगे हाथों काबू कर लिया। मुख्य मुलजिम पटवारी की गिरफ़्तारी के लिए कोशिशें जारी हैं।

उन्होंने बताया कि इस सम्बन्धी मुलजिम के खि़लाफ़ थाना विजीलैंस ब्यूरो, लुधियाना रेंज में भ्रष्टाचार रोकथाम कानून के अंतर्गत मुकदमा दर्ज किया गया है। उन्होंने आगे बताया कि मुलजिम को कल अदालत में पेश किया जायेगा और इस मामले की आगे की जांच तेज़ी से जारी है।

Friday, May 10, 2024

श्री आनंदपुर साहिब की सीट पर लगातार छा रही है भाजपा

Thursday 9th May 2024 at 3:45 PM

पंजाब की सभी 13 लोकसभा सीटों पर भाजपा की आंखें 


चंडीगढ़
//श्री आनंदपुर साहिब: 09 मई 2024: (पंजाब स्क्रीन डेस्क)::

पिछली बार किसान आंदोलन के समय जब किसान कार्यकर्ताओं ने कुछ वरिष्ठ भाजपा नेताओं के घरों के सामने गोबर फेंका था व कुछ अन्य उग्र कदम उठाए थे उस समय लगता था कि भाजपा अब किसी भी तरह पंजाब में सर नहीं उठा सकेगी। जब प्रधानमंत्री मोदी ने तीनों कृषि कानून वापिस लेने का एलान किया तो भाजपा के लिए पंजाब में एक बार फिर से सुखद माहौल बनने लगा। 

इसके बाद जब किसान आंदोलन ने शम्भु पर नया मोर्चा शुरू किया और खनौरी पर शुभकरण डीप सिंह की शहीदी हुई तो एक बार फिर से भाजपा के लिए पंजाब के माहौल में मुश्किलें बढ़ने लगीं। इन मुश्किलों को आसान किया पंजाब के सियासी नेताओं में भाजपा के लिए उमड़े सियासी प्रेम ने। पंजाब में आतंकवाद का शहीद कह कर परचारे जाते मुख्यमंत्री बेअंत सिंह के पोते रवनीत बिटु  ने जब भाजपा में शामिल होने का एलान किया तो यह  कांग्रेस और कांग्रेस के समर्थकों पर बहुत बड़ा आघात था। निकट भविष्य में भाजपा को राष्ट्रवाद की निधि में बहुत फायदा मिलने की भी संभावना है। 

पंजाब में ब्लू स्टार ऑपरेशन कर के राष्ट्रवाद की दौड़ में सबसे आगे रहने की इच्छुक रही कांग्रेस ने दल बदली के ऐसे घटनाक्रम की तो कभी कल्पना भी नहीं की थी। कांग्रेस को लगता था उसका राष्ट्रवाद अजेय है लेकिन भाजपा ने अपने अंदाज़ में साबित किया कि उसका राष्ट्रवाद ज्यादा प्रभावी है। 

ऐसे माहौल में भाजपा की टीम पंजाब में कमाल की रणनीति से चुनाव के मैदान में है। उसने किसान आंदोलन और किसान संगठनों का डर पूरी तरह से उतार फेंका है। भाजपा के इस राजनीतिक रणकौशल के चलते हर रोज़ महत्वपूर्ण रणनीति का कदम उठाए जा रहे हैं। सिख चेहरे और किसान लगते चेहरे इन आयोजनों में काफी सक्रिय दीखते हैं। 

इसी सिलसिले में तख्त श्री केसगढ़ साहिब और माता नैना देवी मंदिर में नतमस्तक हो कर डा. सुभाष शर्मा ने अपना चुनावी अभियान शुरू किया। चंडीगढ़, लुधियाना, अमृतसर और अन्य कई स्थानों से भाजपा का चुनावी अभियान तेज़ी से जारी है। 

डा. सुभाष शर्मा ने अपना चुनावी अभियान शुरू  करते हुए श्री आनंदपुर साहिब को विश्व प्रसिद्ध पर्यटन स्थल और मोहाली को आईटी हब बनाने के वायदे का एलान भी किया है। उन्होंने अपने वायदे में इस इस मकसद के लिए  हर सम्भव प्रयास करने की बात कही है। गुरु घर में नतमस्तक होते हुए उन्होंने कहा कि गुरु की कृपा और बख्शीश से ही उन्हें श्री आनंदपुर साहिब का प्रतिनिधित्व करने का अवसर पार्टी ने प्रदान किया है। पार्टी ने जितना विश्वास किया है उस पर पूरी तरह से खरे उतरने की कोशिशें पूरी क्षमता और संकल्प से होंगीं। 

श्री आनंदपुर साहिब में पार्टी के सभी कार्यकर्ता पूरी तरह से सक्रिय हैं। श्री आनंदपुर साहिब लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से भाजपा प्रत्याशी प्रदेश उपाध्यक्ष डॉ. सुभाष शर्मा ने आज तख्त श्री केसगढ़ साहिब और माता नैना देवी के मंदिर में नतमस्तक हो कर अपने चुनाव प्रचार अभियान का शुभारम्भ किया। 

आनंदपुर साहिब के इस ऐतिहासिक गुरुद्वारा साहिब में माथा टेकने के बाद पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने कहा कि यह धरती भक्ति और शक्ति के सिद्धान्त की जननी है और वह इससे प्रेरणा ले कर अपनी पूरी ताकत के साथ इलाके के लोगों की सेवा करेंगे। गुरु की बख्शीश से गुरु नगरी की सेवा करने का अवसर भी अवश्य मिलेगा।उनके इस कथन से संगत में भी भरी उत्साह दिखा। 

डा. सुभाष शर्मा ने बहुत ही स्कपष्हाट शब्दों में खुल कर कहा कि लोकतंत्र में फैसला जनता के हाथ में होता है। हम मोदी सरकार की नीतियों का प्रचार कर रहे हैं और भविष्य में भी करते रहेंगे। हमें पूरा विश्वास है कि पंजाब में रिकॉर्ड तोड़ बहुमत से सभी 13 सीटें भाजपा जीतेगी। उन्होंने कहा कि वह खुद को बहुत भाग्यशाली मानते हैं जिन्हें गुरु की नगरी की सेवा करने के लिए पार्टी ने प्रतिनिधित्व करने का अवसर दिया है। 

इस मौके पर डा. सुभाष ने कहा कि आज मैंने गुरु नगरी के विकास और पंजाब की खुशहाली के लिए अरदास की और गुरु महाराज की कृपा से ही मैं यहां से चुनाव लड़ने जा रहा हूं। श्री आनंदपुर साहिब के विकास पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि यह हलका विश्व प्रसिद्ध पर्यटन स्थल के रूप में विकसित होना चाहिए। बेंगलुरु की तरह मोहाली भी आईटी हब के रूप में आगे बढ़े और इसके लिए मैं अवश्य प्रयास करूंगा। 

एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि पौराणिक और सिखों के गौरवशाली इतिहास की साक्षी श्री आनंदपुर साहिब की धरती का वातावरण कमल खिलने के सर्वथा अनुकूल है। इस अवसर पर भारी मात्रा में पार्टी के कार्यकर्ता स्थानीय लोग उपस्थित थे। 

Thursday, May 09, 2024

पंजाब में बीटा थैलेसीमिया के लगभग 1.5 मिलियन वाहक हैं

बीटा थैलेसीमिया मेजर के अनुमानित 4700 मरीज हैं

मोहाली: 8 मई 2024: (कार्तिका कल्याणी सिंह//पंजाब स्क्रीन डेस्क)::
साहिबज़ादा अजीत सिंह नगर (मोहाली) में स्थित एक गौरवशाली संस्थान है डॉ. बी.आर. अम्बेडकर स्टेट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज़। इस संस्थान में एक ऐसी जंग को लेकर दो दिवसीय आयोजन हुआ जिसमें बहुत सी महत्वपूर्ण बातें हुईं। जंग शब्द से आप हैरान न हों,  यह जंग थैलिसीमिया की जंग है और दुनिया के बहुत से हिस्सों में लड़ी जा रही है। इस जंग में भी बहुत से योद्धा हैं जो लगातार इस जंग को लड़ रहे हैं। इस जंग के योद्धाओं को यहां सम्मानित भी किया जाता है और उनके रणकौशल की जानकारी भी दी जाती है। इस बार के आयोजन में ऐसी ही एक थैलेसीमिया योद्धा और सामाजिक कार्यकर्ता सुश्री अलका चौधरी भी मौजूद रहीं। 

थैलेसीमिया के साथ इस जंग के दायरे और महत्व को और बढ़ाते हुए इस महत्वपूर्ण संस्थान ने 7-8 मई 2024 को दो दिवसीय कार्यक्रम के साथ "विश्व थैलेसीमिया दिवस 2024" मनाया। इस वर्ष का विषय "सशक्त जीवन, प्रगति को अपनाना: सभी के लिए समान और सुलभ थैलेसीमिया उपचार" है। थैलेसीमिया योद्धा और सामाजिक कार्यकर्ता सुश्री अलका चौधरी ने थैलेसीमिया के साथ अपनी यात्रा साझा की जो लचीलापन, साहस और आशा में से एक रही है। प्रतिदिन चुनौतियों का सामना करने के बावजूद, वह जीवन को मुस्कुराहट और दृढ़ संकल्प के साथ लेती है। अपने जीवन के अनुभव के माध्यम से, सुश्री अलका ने थैलेसीमिया से पीड़ित लोगों के लिए अधिक जागरूकता, समर्थन और समझ की वकालत भी बहुत ही जीवंत ढंग से की। 

पीजीआईएमईआर के हेमेटोलॉजी विभाग की प्रोफेसर और प्रमुख डॉ. रीना दास को भी एमबीबीएस छात्रों के लिए अतिथि व्याख्यान के लिए आमंत्रित किया गया था। उन्होंने आनुवंशिक जांच और प्रसव पूर्व परामर्श के माध्यम से बीमारी की रोकथाम पर ज़ोर दिया क्योंकि मेजर थैलेसीमिया का उपचार अत्यधिक महंगा हो सकता है और इसमें स्टेम सेल प्रत्यारोपण भी शामिल हो सकता है। इसलिए, स्थानीय लोगों के बीच जागरूकता फैलाना एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। 

संस्थान की निदेशक प्रिंसिपल और स्वयं एक समर्पित नियमित रक्तदाता डॉ. भवनीत भारती ने इस रोग का शीघ्र पता लगाने, स्वास्थ्य देखभाल में निष्पक्षता और समावेशिता की आवश्यकता, थैलेसीमिया से प्रभावित व्यक्तियों को सशक्त बनाने और उपचार विकल्पों में प्रगति को बढ़ावा देने के प्रयास पर एक आकर्षक संदेश भी  दिया। उनकी मैगनेटिक शख्सियत ने इस सबंध में वहां मौजूद लोगों के दिलो दिमाग में थैलेसीमिया जाग्रति की तरंगों को और भी मज़बूत किया। 

एआईएमएस के पैथोलॉजी विभाग की प्रोफेसर डॉ. राशि गर्ग ने बताया कि पंजाब में बीटा थैलेसीमिया (3.96%) के लगभग 1.5 मिलियन वाहक हैं, और बीटा थैलेसीमिया मेजर के अनुमानित 4700 मरीज हैं। आप अनुमान लगा सकते कि स्थिति कितनी गंभीर है। कितने लोग इस जंग को लड़ रहे हैं। कितने परिवार इसका दंश झेल रहे हैं। 

इसी आयोजन में पैथोलॉजी विभाग की सहायक प्रोफेसर डॉ. तनुप्रिया बिंदल ने थैलेसीमिया के प्रमुख रोगियों के लिए आवश्यक निरंतर रक्त संक्रमण और केलेशन थेरेपी के बारे में जागरूकता बढ़ाने वाली बहुत सी बातें बताईं। उन्होंने सभी थैलेसीमिया रोगियों के लिए रक्त की उपलब्धता, सामर्थ्य और पहुंच सुनिश्चित करने के महत्व को रेखांकित किया।

यदि आप इस महत्वपूर्ण जंग के योद्धाओं  करना चाहते हैं तो देर मत कीजिए। आगे आइए। इस जंग में सहायक बन कर इन योद्धाओं की शक्ति बढ़ाइए। यह सब पुरे समज की ज़िम्मेदारी है सिर्फ सरकार की नहीं।