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Friday, August 05, 2016

बेलन ब्रिगेड ने लगाया धोखेबाज़ी और पुरुष दखलंदाज़ी का आरोप

 निराश होकर खुद ही ई रिक्शा के खिलाफ बजाया बिगुल 
लुधियाना : 4 अगस्त 2016: (पंजाब स्क्रीन ब्यूरो):
कभी बहुत पहले करीब तीन चार दशक पूर्व मलका पुखराज की आवाज़ में एक ग़ज़ल सुनी थी-जसमें पंक्तियाँ आती हैं-- 
न कश्तियों का क्या है, अक्सर यही हुआ है; 
तूफ़ान से निकल कर, साहिल पे डूब जाएं। 
अब इतने लम्बे अंतराल के बाद वे पंक्तियाँ फिर सच होती नज़र आ रही हैं। अनहोनी तेज़ी से होती महसूस हो रही है। महिलायों के सशक्तिकरण का सपना साकार होकर भी माटी में मिलता महसूस हो रहा है। स्वार्थ और अहंकार ने इस प्रोजेक्ट में लगे दो गुटों को एक दुसरे के आमने सामने ला कर खड़ा कर दिया है। एक गुरवंत सिंह का है और दूसरा अनीता शर्मा का। जुलाई के आखिर तक सब ठीक चल रहा था। करीब एक वर्ष से अनीता शर्मा की अगुवाई में इस परियोजना को सफल बनाने में लगा बेलन ब्रिगेड खुश था कि चलो महिलायों के स्वालम्बन का सपना साकार होने को आया। बखेड़ा ई-रिक्शा की लांचिंग के दिन तब खड़ा हुआ जब गुरवंत सिंह ने दावा किया कि यह सब उनके एन जी ओ संगठन साहस के कारण सम्भव हो सका। साहस का नाम इस सारे संघर्ष के दौरान शायद किसी ने नहीं सुना था। जिन महिलायों ने ई-रिक्शा प्राप्त किया उनमें से भी अधिकतर ने कहा कि वे किसी साहस नाम के संगठन को नहीं जानती। गुपचुप ढंग तरीके से साहस नामक संगठन कैसे इसका दावेदार बना यह अभी तक रहस्य ही है। इसी बीच बेलन ब्रिगेड ने इस परियोजना से किनारा कर लिया है। क्योंकि आत्म सम्मान सर्वोत्तम होता है। बेलन ब्रिगेड से जुडी महिलाएं इन ई रिक्शा को चलाने या सरकार को वापिस करने का एलान भी कर सकती हैं। 
बेलन ब्रिगेड से जुडी महिलायों ने आरोप लगाया कि सरकार एक तरफ महिला सशक्तिकरण की बात करती है और दूसरी तरफ महिलाओं के सिर पर एक पुरुष को बैठाकर उनको जलील करती है। लुधियाना में ई रिक्शा शुरू हुए अभी दो दिन ही हुए हैं लेकिन इसमें एक पुरुष की दखलअंदाजी से महिलाओं का मनोबल टूट गया यह सोचकर कि क्या यही महिला सशक्तिकरण है  कि  पुरुष उन्हें पल पल  हर काम समझाये। इस संदर्भ में बेलन ब्रिगेड ने एक मांग पत्र जिलाधीश को दिया।   
इस अवसर पर बेलन ब्रिगेड की अध्यक्ष अनीता शर्मा ने बताया कि दो वर्ष से वह महिलाओं को पुरुष प्रधान ड्राइविंग के क्षेत्र में काम कराने की सोच रही थी और लुधियाना की एक निजी ऑटो कम्पनी ने पिछले वर्ष बेलन ब्रिगेड की महिलाओं को ड्राइविंग भी सिखाई थी। लेकिन गरीब वर्ग की महिलाएं जिन्होंने ड्राइविंग सीखी थी किश्तों में भी ऑटो खरीद न सकी और  इसी दरम्यान लुधियाना के जिलाधीश के ई रिक्शा प्रोजेक्ट में बेलन ब्रिगेड ने अपना योगदान दिया और बेलन ब्रिगेड की सदस्यों ने ई रिक्शा ड्राइविंग कोर्स पूरा लिया। सभी महिलाओ को ई रिक्शा भी मिल गये।  
अनीता शर्मा ने बताया कि उन्हें उस समय भारी झटका लगा जब महिला सशक्तिकरण में एक पुरुष ने दखलअंदाजी शुरू कर दी और एक उच्च अधिकारी के सरकारी दफ्तर में बैठकर इस महोदय ने ई रिक्शा प्रोजेक्ट को अपनी मुटठी में कर लिया। बेलन ब्रिगेड को पीछे धकेल कर इस महोदय ने साहस नामक संस्था में इस ई रिक्शा प्रोजेक्ट में जोड़ दिया। 
अनीता शर्मा ने कहा कि वह रात दिन महिलाओं को जागरूक करके इस ड्राइवर क्षेत्र में लेकर आई थी। लेकिन सरकारी प्रशासन ने एक ही झटके में बेलन ब्रिगेड को ई रिक्शा प्रोजेक्ट से बाहर कर दिया। जबकि ई रिक्शा चलाने वाली 80 फीसदी महिलाऐं बेलन ब्रिगेड से जुडी हैं। अनीता शर्मा ने जिलाधीश से मांग की है कि वह कौन सा पुरुष है जिसने  महिलाओं के कार्य में बिना वजह दखलअंदाजी की और प्रशासन के किस अधिकारी का इसमें हाथ है जिसने सारी ई रिक्शा प्रोजेक्ट की कमान इस पुरुष के हाथ में दे दी थी। जबतक इसकी जाँच नही होती  बेलन ब्रिगेड की महिलाओ को न्याय  नहीं  मिलता तब  तक महिलाऐं अपने स्वाभिमान के लिए इस ई-रिक्शा का कार्य नहीं करेंगी। 
सब ज़ख़्म भर चुके हैं सब ख़ाब मर चुके हैं
अब किस उम्मीद पर हम शम्मे नई जलायें
अगर महिला सशक्तीकरण से जुड़े इस अहम मामले की हकीकत आम लोगों तक जल्द नहीं पहुंची तो महिला सशक्तिकरण के नारों और दावों को लोग शक की नज़र से देखना शुरू कर देंगें। 

Saturday, August 08, 2015

बंद करो ज़हरीला भोजन परोसने का सिलसिला

खेती विरासत मिशन ने बुलंद की सुरक्षित भोजन के अधिकार की मांग 
लुधियाना: 8 अगस्त 2015: (रेक्टर कथूरिया//पंजाब स्क्रीन):
देश को आज़ादी बड़ी मुश्किलों से मिली। एक नए युग की शुरुआत होनी थी।  लोगों ने अपनी किस्मत खुद लिखनी थी लेकिन सारा मामला ही उल्टा हो गया। इस तकदीर को लिखने का काम समाज विरोधी तत्व भी अपने हाथ में लेने लगे। इन छह दशकों में  आज हालत यह है कि न हवा स्वच्छ रही, न पीने वाला पानी और न ही खाने का अनाज। गंगा ही मैली नहीं हुई हमने सब कुछ मैला होते देखा और चुपचाप देखा। किसी के पास फुर्सत नहीं बची देश के लिए देश की जनता के लिए। आज हालत यह है बाज़ारों में खानेपीने के नाप ज़हर बिक रहा है। भूख लगे तो हम कुछ भी खानेपीने को तैयार हो जाते हैं। कितनी तरह के पेस्टीसाईड अब ज़हर बन कर हमारे भोजन में घुले मिले हैं इसका अनुमान लगाना भी मुश्किल है। किस कोल्ड ड्रिंक के कितने खतरे हैं इसका पता अब सब को लग भी चुका है लेकिन फिर भी धड़ल्ले से बिक रही है।   न लोग छोड़ने को तैयार हैं और न ही सरकार इन पर पाबंदी लगाने की हिम्मत करती है।इस ज़हर का उत्पादन और इसकी बिक्री क्यों नहीं रोकी जाती इस सवाल का जवाब ढूंढने से भी नहीं मिल रहा। आखिर इस मुद्दे को जिन लोगों ने अपने हाथ में लिया उनमें एक सक्रिय संगठन है खेती विरासत मिशन।  
खेती विरासत मिशन की तरफ से एक चर्चा आयोजित की गयी लुधियाना के कामरेड रमेश रत्न के कार्यालय में। इस बैठक में कामरेड गुरवंत सिंह भी थे, कामरेड डीपी मौड़ भी, बेलन ब्रिगेड की प्रमुख अनीता शर्मा भी और कुंवर रंजन सिंह जैसे सक्रिय समाज सेवी भी।  तकरीबन बीस संगठनों को आमंत्रित किया गया था। सुरक्षित भोजन के अधिकार को जताते हुए उन लोगों का विरोध किया गया जो आज ज़हरीला भोजन बना और बेच रहे हैं। भारत छोडो दिवस की पूर्व संध्या पर इस तरह के अमानवीय लोगों से कहा गया की अब वे अब हमारा पीछा छोड़ें। 
प्रोफेसर आरपीएस औलख ने इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त करते हुए बहुत सी खरी खरी बातें कीं। 

Saturday, April 25, 2015

ज़हरीले अन्न के घातक दौर में राह दिखा रहा है KVM

खेती विरासत मिश्न साकार कर रहा है अपने आँगन में अपनी खेती का सपना
लुधियाना: 25 अप्रैल 2015:(रेक्टर कथूरिया//पंजाब स्क्रीन):
एक पुरानी कहावत है-जैसा अन्न  वैसा मन लेकिन जो अन्न हमें मिल  रहा है वह तन और मन दोनों  के लिए विषाक्त है। जीने के लिए मिल रहा आवश्यक अन्न भी प्रदूषित, जल भी प्रदूषित हवा भी ज़हरीली। जीने के मौलिक अधिकारों से हम लगातार वंचित हो रहे हैं।  बिमारियों  लगाकर जीना हमारी नियति बना दी गयी है। विकास के दावों की हकीकत का खोखलापन आम जन साधारण के जीवन   को एक एक नज़र देखते स्पष्ट जाता है। इस संकट में क्या किया जाये, कैसे ज़िंदा रहा जाये और कैसे बचाया जाये खुद को और अपने परिवार को। 
इस गंभीर विषय पर चर्चा के लिए आज एक विशेष आयोजन हुआ खेती विरासत मिशन की ओर से। इंजीनियर गुरवंत सिंह और केवीएम  संयोजक राजीव गुप्ता की देख रेख में आयोजित इस कार्यक्रम में   खेती विरासत मिशन  सुरक्षित अन्न को एक अभियान बनाने वाले उमेन्द्र दत्त मुख्य मेहमान थे।
आज महंगाई के इस युग और कम स्थान के अल्प व आधुनिक ज़माने में अपने आंगन को एक लघु खेत बनाने का सपना  कैसे साकार किया जाये इस पर विशेष चर्चा हुई। इस चर्चा में  कामरेड रमेश रत्न, मेवा सिंह कुलार, जालंधर  प्रसिद्ध विद्धान पत्रकार सतनाम  चाना और  कई अन्य प्रमुख लोग भी मौजूद थे।
मुख्य मेहमान उमेन्द्र  दत्त ने सीडी के ज़रिये इस नई  सुरक्षित खेती की तकनीक के संबंध में विस्तार से चर्चा की। कार्यक्रम  में मौजूद लोगों ने अपने सवाल पूछे और उमेन्द्र दत्त और अन्य विद्धानों ने उनके बारीकी से जवाब दिए।