निराश होकर खुद ही ई रिक्शा के खिलाफ बजाया बिगुल
कभी बहुत पहले करीब तीन चार दशक पूर्व मलका पुखराज की आवाज़ में एक ग़ज़ल सुनी थी-जसमें पंक्तियाँ आती हैं--
इन कश्तियों का क्या है, अक्सर यही हुआ है;
तूफ़ान से निकल कर, साहिल पे डूब जाएं।
अब इतने लम्बे अंतराल के बाद वे पंक्तियाँ फिर सच होती नज़र आ रही हैं। अनहोनी तेज़ी से होती महसूस हो रही है। महिलायों के सशक्तिकरण का सपना साकार होकर भी माटी में मिलता महसूस हो रहा है। स्वार्थ और अहंकार ने इस प्रोजेक्ट में लगे दो गुटों को एक दुसरे के आमने सामने ला कर खड़ा कर दिया है। एक गुरवंत सिंह का है और दूसरा अनीता शर्मा का। जुलाई के आखिर तक सब ठीक चल रहा था। करीब एक वर्ष से अनीता शर्मा की अगुवाई में इस परियोजना को सफल बनाने में लगा बेलन ब्रिगेड खुश था कि चलो महिलायों के स्वालम्बन का सपना साकार होने को आया। बखेड़ा ई-रिक्शा की लांचिंग के दिन तब खड़ा हुआ जब गुरवंत सिंह ने दावा किया कि यह सब उनके एन जी ओ संगठन साहस के कारण सम्भव हो सका। साहस का नाम इस सारे संघर्ष के दौरान शायद किसी ने नहीं सुना था। जिन महिलायों ने ई-रिक्शा प्राप्त किया उनमें से भी अधिकतर ने कहा कि वे किसी साहस नाम के संगठन को नहीं जानती। गुपचुप ढंग तरीके से साहस नामक संगठन कैसे इसका दावेदार बना यह अभी तक रहस्य ही है। इसी बीच बेलन ब्रिगेड ने इस परियोजना से किनारा कर लिया है। क्योंकि आत्म सम्मान सर्वोत्तम होता है। बेलन ब्रिगेड से जुडी महिलाएं इन ई रिक्शा को चलाने या सरकार को वापिस करने का एलान भी कर सकती हैं।
बेलन ब्रिगेड से जुडी महिलायों ने आरोप लगाया कि सरकार एक तरफ महिला सशक्तिकरण की बात करती है और दूसरी तरफ महिलाओं के सिर पर एक पुरुष को बैठाकर उनको जलील करती है। लुधियाना में ई रिक्शा शुरू हुए अभी दो दिन ही हुए हैं लेकिन इसमें एक पुरुष की दखलअंदाजी से महिलाओं का मनोबल टूट गया यह सोचकर कि क्या यही महिला सशक्तिकरण है कि पुरुष उन्हें पल पल हर काम समझाये। इस संदर्भ में बेलन ब्रिगेड ने एक मांग पत्र जिलाधीश को दिया।
इस अवसर पर बेलन ब्रिगेड की अध्यक्ष अनीता शर्मा ने बताया कि दो वर्ष से वह महिलाओं को पुरुष प्रधान ड्राइविंग के क्षेत्र में काम कराने की सोच रही थी और लुधियाना की एक निजी ऑटो कम्पनी ने पिछले वर्ष बेलन ब्रिगेड की महिलाओं को ड्राइविंग भी सिखाई थी। लेकिन गरीब वर्ग की महिलाएं जिन्होंने ड्राइविंग सीखी थी किश्तों में भी ऑटो खरीद न सकी और इसी दरम्यान लुधियाना के जिलाधीश के ई रिक्शा प्रोजेक्ट में बेलन ब्रिगेड ने अपना योगदान दिया और बेलन ब्रिगेड की सदस्यों ने ई रिक्शा ड्राइविंग कोर्स पूरा लिया। सभी महिलाओ को ई रिक्शा भी मिल गये।
अनीता शर्मा ने बताया कि उन्हें उस समय भारी झटका लगा जब महिला सशक्तिकरण में एक पुरुष ने दखलअंदाजी शुरू कर दी और एक उच्च अधिकारी के सरकारी दफ्तर में बैठकर इस महोदय ने ई रिक्शा प्रोजेक्ट को अपनी मुटठी में कर लिया। बेलन ब्रिगेड को पीछे धकेल कर इस महोदय ने साहस नामक संस्था में इस ई रिक्शा प्रोजेक्ट में जोड़ दिया।
अनीता शर्मा ने कहा कि वह रात दिन महिलाओं को जागरूक करके इस ड्राइवर क्षेत्र में लेकर आई थी। लेकिन सरकारी प्रशासन ने एक ही झटके में बेलन ब्रिगेड को ई रिक्शा प्रोजेक्ट से बाहर कर दिया। जबकि ई रिक्शा चलाने वाली 80 फीसदी महिलाऐं बेलन ब्रिगेड से जुडी हैं। अनीता शर्मा ने जिलाधीश से मांग की है कि वह कौन सा पुरुष है जिसने महिलाओं के कार्य में बिना वजह दखलअंदाजी की और प्रशासन के किस अधिकारी का इसमें हाथ है जिसने सारी ई रिक्शा प्रोजेक्ट की कमान इस पुरुष के हाथ में दे दी थी। जबतक इसकी जाँच नही होती बेलन ब्रिगेड की महिलाओ को न्याय नहीं मिलता तब तक महिलाऐं अपने स्वाभिमान के लिए इस ई-रिक्शा का कार्य नहीं करेंगी।
सब ज़ख़्म भर चुके हैं सब ख़ाब मर चुके हैं
अब किस उम्मीद पर हम शम्मे नई जलायें
अगर महिला सशक्तीकरण से जुड़े इस अहम मामले की हकीकत आम लोगों तक जल्द नहीं पहुंची तो महिला सशक्तिकरण के नारों और दावों को लोग शक की नज़र से देखना शुरू कर देंगें।
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