Showing posts with label Chhatisgarh. Show all posts
Showing posts with label Chhatisgarh. Show all posts

Wednesday, June 22, 2016

भारत में आपातकाल के दौर की याद में//आमंत्रण-आप सब के लिये

  नागरिक सम्मलेन, प्रेस, जनता और राज्य         
 25 और 26  जून 2016 ,रायपुर, छत्तीसगढ़ 
* पत्रकार  एवं मानव अधिकार रक्षक सुरक्षा कानून का ड्राफ्ट पर विचार करके जारी  करना.
* छत्तीसगढ़ के और छत्तीसगढ़ के लिये लिखने वाले पत्रकार को "निर्भीक पत्रकारिता सम्मान" (पीयूसीएल द्वारा)
* प्रेस ,जनता और राज्य विषय पर नागरिक सम्मेलन.
                           ***
                       संयुक्त संयोजक 
   पत्रकार सुरक्षा कानून संयुक्त संघर्ष समिति, और         लोकस्वातंत्रय संगठन PUCL  छत्तीसगढ़  
                          ****          
प्रिय साथी,
जैसा कि आपको मालुम है कि छत्तीसगढ़ में ही नहीं बल्कि पूरे देश में पत्रकारों और मीडिया के लोगों पर भयानक तरीके से सुनियोजित हमले किया जा रहे हैं, और संविधान में निहित अभिव्यक्ति की आज़ादी के मौलिक अधिकार को नज़रंदाज़ कर सचाई और तथ्यों को आम जनता तक पहुँचाने पर अघोषित पाबन्दी लगाई  जा रही है. 
इस सन्दर्भ में छत्तीसगढ़ पी.यू. सी. एल., और पत्रकार सुरक्षा कानून संयुक्त संघर्ष समिति - छत्तीसगढ़ द्वारा एक दो-दिवसीय नागरिक सम्मलेन का आयोजन 25 और 26 जून, 2016 को रायपुर में "प्रेस, जनता और राज्य" विषय पर किया गया है, जिसमें देश के प्रगतिशील पत्रकार, अधिवक्ता,  बुद्धिजीवी और सामाजिक कार्यकर्ता भी शामिल होंगे. 
इस सन्दर्भ में पी.यू. सी. एल. की पहल पर पत्रकारों और मानव अधिकार रक्षकों की सुरक्षा के लिए एक कानून का ड्राफ्ट भी तैयार किया गया है. प्रयास है कि इस सम्मलेन में इसको अमली जामा पहनकर इसे विधान सभा के आगामी मानसून सत्र में पेश किया जाये. 
इस पत्र के साथ सम्मलेन का आमंत्रण, कार्यक्रम की रूपरेखा , और ड्राफ्ट कानून संलग्न है. 
इस प्रयास को ठोस  स्वरुप प्रदान करने इस सम्मेलन में आपकी भागीदारी ज़रूरी है, मेहरबानी से इसमें शामिल  होकर इसे मजबूती प्रदान कर
इस कार्यक्रम में आपको विशेष  रूप से आमंत्रित किया जा रहा है. 
इसमें अपनी सक्रीय भागीदारी निभाकर इस जन-वादी प्रक्रिया को अपना योगदान और समर्थन दें, ताकि भविष्य  में अभिव्यक्ति  की स्वतंत्रता और प्रेस की आज़ादी के संवैधानिक अधिकार को मज़बूत किया जा सके.
आपके सहयोग और समर्थन की अपेक्षा में, 
संघर्ष में आपके साथी,

कमल शुक्ल    सुधा भारद्वाज, संयोजक, महासचिव , PUCL           
पत्रकार सुरक्षा कानून             छत्तीसगढ़
संयुक्त संघर्ष समिति,               9926603877
छत्तीसगढ़
094 07 940944
                         ******
                     कार्यक्रम की संक्षेपिका
                        *******
                    25 जून 2016  शनिवार
                      प्रातः 10 से सायं 5.30 
         स्थान  : वृन्दावन हाँल सिविल लाइन रायपुर
     नागरिक सम्मेलन और पत्रकार एवं मानव अधिकार           सुरक्षा कानून के ड्राफ्ट की प्रस्तुति एवं चर्चा.
                              **
                             दूसरा सत्र
       प्रस्तावित  पत्रकारिता सुरक्षा कानून पर खुली                   चर्चा  ,सभी राजनैतिक दल 
समय : शाम 6.30 से 9.30 रात्रि  .
स्थान: गास मेमोरियल सेंटर,   जयस्तंभ चौक रायपुर
                         **
                   26 जून 2016  रविवार 
  निर्भीक पत्रकारिता सम्मान समारोह    , पत्रकारिता सुरक्षा कानून के  ड्राफ्ट  को चर्चा के लिये घोषणा और भावी रणनीति .
समय :  10 बजे प्रातः  से 3 बजे दोपहर    
  स्थान;   शहीद स्मारक भवन, रजबंधा मैदान, प्रेस           काम्प्लेक्स, रायपुर 
           ********
                        संम्पर्क:
कमल शुक्ला  (पत्रकार)                  094 07 940944, 
सुधा भारद्वाज ,   PUCL                 099 26 603877,
राजेन्द्र सायल,  PUCL                 098 26 804519
तामेश्वर सिन्हा (पत्रकार)                 097 54 835667 
डा. लाखन सिंहPUCL                  07773060946
                          ***

Monday, February 22, 2016

वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित जिलों में जन उपयोगी बुनियादी ढांचे के निर्माण

21-फरवरी-2016 19:29 IST
आम अनुमोदन को 31 दिसंबर 2018 तक बढ़ाया 
The Prime Minister, Shri Narendra Modi at the launch of Shyama Prasad Mukherji National Rurban Mission, at Kurubhat, Rajnandgaon, in Chhattisgarh on February 21, 2016. The Chief Minister of Chhattisgarh, Dr. Raman Singh and the Minister of State for Chemicals & Fertilizers, Shri Hansraj Gangaram Ahir are also seen.    (फोटो:PIB)
नई दिल्ली" 21 फ़रवरी 2016: (प.सू.का.):
वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित जिलों में जन उपयोगी बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए पर्यावरण और वन मंत्रालय ने आम मंजूरी दी 

वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित क्षेत्रों में विकास जन गतिविधियों के महत्व को समझते हुए पर्यावरण और वन मंत्रालय ने अपने 13 मई 2011 में उल्लेखित आम अनुमोदन को 31 दिसंबर 2018 तक बढ़ा दिया है। 

योजना आयोग द्वारा एकीकृत कार्य योजना कार्यान्‍वयन के लिए पहचान किए गए वामपंथी आतंकवाद से प्रभावित 60 जिलों में जन उपयोगी बुनियादी ढांचे के निर्माण को गति प्रदान करने के लिए पर्यावरण और वन मंत्रालय ने अपने 13 मई 2011 के पत्र द्वारा वन संरक्षण अधिनियम 1980 की धारा 2 के तहत सरकारी विभागों द्वारा महत्‍वपूर्ण जन उपयोगी बुनियादी ढांचे के सृजन के लिए आम मंजूरी दी थी। लेकिन इसमें पांच एकड़ से अधिक वन भूमि को शामिल न करने के लिए कहा गया था। इस प्रावधान को 117 वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित जिलों में आगे बढ़ाया गया था। यह अनुमोदन 31 दिसंबर 2015 तक वैध था। 

स्‍कूलों, डिस्‍पेंसरियों/ अस्‍पतालों, बिजली और दूरसंचार लाइनों, पेय जल परियोजनाओं, जल/ वर्षाजल के संचयन, लघु सिंचाई, नहरों, ऊर्जा के गैर परंपरागत स्रोतों, कौशल उन्‍नयन, व्‍यावसायिक प्रशिक्षण केंद्रों, पावर सब स्‍टेशनों, ग्रामीण सड़कों, और संवेदनशील क्षेत्रों में पुलिस स्‍टेशनों/ पुलिस चौकियों/ सीमा चौकियों जैसे जन उपयोगी बुनियादी ढांचे के निर्माण के महत्‍व को ध्‍यान में रखते हुए यह आम मंजूरी दी गई थी। 

हाल के वर्षों में सड़क को चौड़ा करने, सुधार परियोजनाएं, पुलिस बुनियादी ढांचा परियोजनाओं, पेय जल,बिजली, ट्रांसमिशन परियोजनाओं जैसी अनेक परियोजनाओं के अलावा गिरिडीह, झारखंड में सरकारी पॉलिटेक्नि‍क, देवगढ़ में केंद्रीय विद्यालय का निर्माण, धमतरी छत्‍तीसगढ़ में मगरलोढ़ा बाल स्‍कूल परियोजना, कांकेर में आईटीआई प्रशिक्षण केंद्र, कुरवा, गोंदिया महाराष्‍ट्र में सरकारी मेडिकल कॉलेज का निर्माण, चांदपुर महाराष्‍ट्र में व्‍यावसायिक बांस अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र की स्‍थापना और मेडक तेलंगाना में बागवानी स्‍कूल की स्‍थापना जैसे अनेक कार्यों से इस अनुमोदन के तहत जनता को लाभ पहुंचा है। 

Monday, February 17, 2014

मुक्त कराये गए बंधुया मज़दूरों ने सुनाई अपनी दर्द भरी दास्तान

हम अपनी हालत को खुद ही बदलेंगे--सोनी सोरी          --Himanshu Kumar
पंजाब में से छुड़वाए गए बन्धुया मज़दूर कपूरथला के एक भठ्ठे में थे। हिमांशु कुमार बताते हैं कि छत्तीसगढ़ के इन अस्सी दलित परिवारों को पंजाब के कपूरथला जिले में ईंट भट्टा मालिक ने बंधुआ बना कर रखा हुआ था। परिवार के एक सदस्य को ही एक बार में भट्टे से बाहर जाने की इजाजत थी। 
इन्हें नहीं पता कि इनके प्रदेश छत्तीसगढ़ में रोज़गार गारंटी नाम की कोई योजना भी चलती है।

इन दलित परिवारों को आज़ाद करा कर छत्तीसगढ़ वापिस भेजा जा रहा है।  जहाँ उम्मीद है इनका पुनर्वास नहीं किया जाएगा।

जैसे पहले वाले मजदूरों का नहीं किया गया।

आज सोनी सोरी ने इन मजदूर परिवारों से बात चीत करी।

सोनी ने इन से कहा कि आखिर आजादी के इतने सालों के बाद भी आदिवासी और दलितों की ये हालत क्यों है।

क्या आज़ादी हमारे लिए नहीं आयी थी ?

सोनी ने कहा मैं वापिस छत्तीसगढ़ लौट रही हूँ हम सब अब अपनी लड़ाई छत्तीसगढ़ में ही मिल कर लड़ेंगे और अपनी हालत को खुद ही बदलेंगे। 


Monday, December 09, 2013

छत्तीसगढ़: प्राचार्यो की बैठक आगामी 13 और 16 दिसंबर को

जीत का जोश पर साथ ही काम का पूरा होश 
बैकुण्ठपुर, 09 दिसम्बर 2013: (छत्तीसगढ़ मेल//पंजाब स्क्रीन): जीत के परिणाम आने पर भी छतीसगढ़ में डा रमन सिंह सरकार पूर्व निर्धारित कार्यक्रमों को नहीं भूली। शिक्षा और अन्य महत्वपूर्व क्षेत्रों की सरगर्मियां और तेज़ कर दी गयी हैं। जिले के बैकुण्ठपुर, सोनहत व खड़गवां विकासखण्ड के सभी शासकीय हाई स्कूल व हायर सेकेण्डरी स्कूलों के प्राचार्यो की बैठक आगामी 13 दिसंबर को आयोजित की गयी है। यह बैठक बैकुण्ठपुर के शासकीय रामानुज उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में पूर्वान्ह 11 बजे से आयोजित की जाएगी। इसी तरह आगामी 16 दिसंबर को मनेन्द्रगढ़ व भरतपुर विकासखण्ड के प्राचार्यो की बैठक शासकीय कन्या उच्चतर माध्यमिक विद्दालय विद्दालय मनेन्द्रगढ़ में आयोजित की जाएगी। जिला शिक्षा अधिकारी कोरिया श्री आर.एस.चौहान ने सभी प्राचार्यो से गत वर्ष की उपलब्धियों व आगामी वर्ष की कार्ययोजना के साथ बैठक में अनिवार्य रूप से उपस्थित होने के निर्देष दिए है। इन बैठकों में शिक्षा को और बेहतर बनाने की विचार होगी और साथ ही पिछली कारगुज़ारी की समीक्षा भी।

डा. रमन सिंह ने फिर चुना शपथ के लिए 12 दिसंबर का दिन

रायपुर के पुलिस परेड मैदान में आयोजित होगा शपथ ग्रहण समारोह 
रायपुर, 09 दिसंबर 2013: (पंजाब स्क्रीन ब्यूरो): छतीसगढ़ विधान सभा चुनावों में लगातार तीसरी बार जीत का सेहरा लेने वाले मुख्यमंत्री डाकटर रमन सिंह ने दल बल सहित शपथ ग्रहण समारोह की तैयारियां शुरू कर दी हैं। उनके साथियों में जोश और उत्साह है। तूफानी घटनायों के बीच हुई इस घमासान की जंग के बाद मिली इस शानदार जीत से वे सभी फूले नहीं समा रहे। इसे लोकसभा चुनावों में सम्भावित जीत की दस्तक माना जा रहा है। राजकीय सूत्रों के मुताबिक इस बार भाजपा विधायक दल के नव-निर्वाचित नेता डॉ. रमन सिंह का शपथ ग्रहण समारोह गुरूवार 12 दिसम्बर को सवेरे लगभग ग्यारह बजे राजधानी रायपुर के पुलिस परेड मैदान में आयोजित किया जाएगा। 
गौरतलब है कि डॉ. सिंह को आज प्रदेश भारतीय जनता पार्टी के विधायक दल का सर्वसम्मति से नेता चुन लिया गया। डॉ. रमन सिंह तीसरी बार आम जनता के बीच प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेंगे। उल्लेखनीय है उनका पहला शपथ ग्रहण समारोह 07 दिसम्बर 2003 को और दूसरा शपथ ग्रहण समारोह 12 दिसम्बर 2008 को आयोजित किया गया था। यह भी एक अच्छा संयोग है कि इस बार भी डॉ. रमन सिंह बारह दिसम्बर को ही प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने जा रहे हैं। लगता है उन्हें १२ का अंक काफी रास आया है। अंक ज्योतिष के मुताबिक बारह के इस अंक में कठिनाईयां बहुत सी होती हैं लेकिन साथ ही सूर्य और चाँद का प्रभाव भी होता है। अंक एक सूर्य की और अंक दो चाँद की  प्रतिनिधता करता है।  

Saturday, November 02, 2013

छत्तीसगढ चुनाव: डा. रमन सिंह के साथ एक भेंट वार्ता

Fri, Nov 1, 2013 at 12:04 AM
प्रमुख मुद्दों पर किये गए तीखे सवाल:क्या हैं जवाब पूरा पढ़िये

प्र. छत्तीसगढ विधानसभा चुनाव – 2013 के आपके पास प्रमुख मुद्दे क्या हैं ?
उ. 2008 के विधानसभा चुनाव के भाजपा - चुनाव घोषणा पत्र में हमने जो कुछ वादा किया था, हमने सभी वादों को पूरी ईमानदारी से पूरा भी किया है. पीडीएस का न केवल व्यापक रूप से आप देख सकते है अपितु आज पूरे देश में पीडीएस अपनी पहचान बना चुका है. साथ ही खाद्यान सुरक्षा से पोषण सुरक्षा तक अब तक लगभग 42 लाख ज्यादा परिवार लाभांवित हो रहे हैं. वनवासी क्षेत्र में रहने वाले लोगों के लिए चरण पादुका, साडी, सोलर लैम्प, स्वास्थ्य योजना इत्यादि जैसी कई ‘अंत्योदय’ योजनाएँ है जिनसे लाखो परिवारो को लाभ मिल रहा है. छत्तीसगढ की जनता को यह अहसास है कि भाजपा सरकार ही उनके चहुमुखी विकास के लिए न केवल सोचती है अपितु अंतिम व्यक्ति तक उसकी योजनाओं का सीधा-सीधा लाभ भी मिलता है. इतना ही नही पिछले दिनों छत्तीसगढ की आम जनता की प्रतिक्रिया लेने हेतु हमने 6000 किमी. की ‘विकास यात्रा’ किया. उस विकास यात्रा को इतना व्यापक जन-समर्थन मिला जिसके कारण मुझे व्यक्तिगत तौर पर एक अद्भुत अहसास हुआ. जो एंटी-एनकम्बैंसी की बात करते है वो मुझे दूर-दूर तक कही नही दिखाई पडी. आज समाज के सभी वर्गों के चेहरे पर एक उत्साह देखने को मिलता है. हमने सारी योजनाएँ जाति-आधारित न करके अपितु समाज के सर्वांगीण विकास को ध्यान में रखकर चलाई. स्व-सुरक्षा योजना व्यापक स्तर पर सबके लिए है. आज छत्तीसगढ बिजली – क्षेत्र में सबसे अग्रणी हैं. इतना ही नही राज्य के सभी गरीब बच्चों के लिए टैबलेट, साईकिल, छात्रवृति जैसी योजनाओं चलाकर उन्हे प्रोत्साहित किया. आज़ादी से लेकर अभी तक जो कमियाँ थी उन्हे कम करने का भरपूर प्रयास किया गया है. जिसके कारण छत्तीसगढ की जनता में आप बदलाव का भाव देख सकते है. आगे भी हम अंत्योदय – केन्द्रित योजनाएँ बनायेंगे.
प्र. योजनाएँ अच्छी है जिसे छत्तीसगढ की जनता ने सराहा भी है परंतु स्थानीय स्तर पर लोगों का ऐसा भी मानना है कि भ्रष्टाचार के कारण योजनाओं का लाभ पूर्ण रूप से उन तक नही पँहुच पाया. क्या आपको नही लगता कि स्थानीय स्तर पर तंत्र को और मजबूत को और मजबूत कर भ्रष्टाचार को रोकना चाहिए ?
उ. तंत्र को मजबूत और जवाबदेह बनाना – यह सरकार की प्राथमिकता और कर्तव्य है. परंतु आपको मैं छतीसगढ की एक बात बताता हूँ – पीडीएस से लाभांवित 42 लाख परिवार में से आपको 42 लोग भी ऐसे नही मिलेगे जो इस योजना को लेकर शिकायत कर सके. इतना ही देश के स्थिति से विपरीत आपको छतीसगढ में देखने को मिलेगा कि शिक्षको व पुलिस की भर्तियों मे भी आपको कोई शिकायत नही मिलेगी. हमने तय किया कि बच्चों को स्कूल छोडने से पहले उन्हे जातीय प्रमाण पत्र मिल जाना चाहिए और इसकी जवाबदेही वहाँ के कलेक्टर की है और आज आपको छतीसगढ मे यह जवाबदेही देखने को मिल जायेगी कि जिन मुद्दों को लेकर लोग भटकते थे उन्हे दूर करने का हमने पूरा प्रयास किया है.
प्र. नक्सली समस्याओं के चलते दंतेवाडा समेत नक्सल प्रभावित क्षेत्र की आम जनता तक सरकार की योजनाओं का लाभ नही मिल पा रहा है. इस पर आपकी क्या प्रतिक्रिया है ?
उ. नक्सल की समस्या आज देश के कई राज्य जूझ रहे है. हमे भी बहुत चिंता है और इस चुनौती से लड भी रहे है. जहाँ पर कभी प्रशासन नाम की कोई चीज ही नही थी आज हमने वहाँ भी ‘थाने’ बनाकर नक्सलियों की पकड को कमजोर कर दिया है. आंकडो से भी आप देख सकते है कि नक्सली घटनाओं मे अब कमी आई है.
प्र. 10 वर्ष का भाजपा शासन के चलते एंटी-एंकम्बैंसी फैक्टर के साथ – साथ कांग्रेस की चुनौती भी है. इसे आप किस तरह देखते है ?
उ. चुनौती तो रहेगी ही पर जनता के पास जाने के लिए कांग्रेस के पास मुद्दे ही नही है. जो 100 दिन में मँह्गाई कम करने के लिए मनमोहन-सोनिया सरकार ने जनता से वादा किया था. आज पता नही कितने 100 दिन निकल गए परन्तु महँगाई कम होने की बजाय उसमे 10 गुनी बढोत्तरी हो गई है. आम जनता आज यह पूछती है कि चावल, गेहूँ, दाल, नमक, यूरिया, सब्जी, तेल जैसी उपभोग की दैनिक वस्तुएँ आज इतना मँहगी क्यो हो गई है ?
  
प्र. अगर छतीसगढ में भाजपा की तीसरी बार सरकार बनती है तो आपकी योजनाएँ क्या होगी ?
उ. हम गुजरात की तरह सडक, बिजली, रेल, सिंचाई-संसाधन जैसे इंफ्रास्ट्रक्चर के अनेक क्षेत्रों में आगे बढेंगे जिसके कारण देश में छत्तीसगढ की गिनती पहले तीसरे राज्यों में हो.
प्र. छत्तीसगढ के बारे मे ऐसा कहा जाता है कि रायपुर की गद्दी उसे ही मिलती है जो बस्तर मे अधिक से अधिक सीटे जीतता है. पिछले चुनाव मे बस्तर की 12 सीटो मे से आपने 11 सीटे जीती थी. इस बार बस्तर मे आपको कितनी सीटे जीतने का अनुमान है ?
उ. हमने बस्तर मे बहुत काम किया है. जिस प्रकार से पिछले चुनाव मे जनता ने हमको 11 सीटो पर अपना आशीर्वाद दिया था. इस बार भी हमे लगता है कि बस्तर की जनता हमे सभी सीटो पर अपना आशीर्वाद देगी.
प्र. आपने अम्बिकापुर मे एक नकली लालकिला बनवाया था जिससे नरेन्द्रमोदी ने अपना भाषण दिया था. आप पर उस ‘लालकिले’ को लेकर फिज़ूलखर्ची का आरोप लगा गया था. इस पर आपकी क्या प्रतिक्रिया है साथ ही छतीसगढ में क्या नरेन्द्रमोदी का जादू चलेगा ?
उ. फिजूलखर्ची की बात ही गलत है. एक सामान्य – सा मंच बनाया गया था. कांग्रेस की चिंता मंच नही वहाँ उमडे जन-सैलाब को देखकर है. डेढ लाख से भी अधिक लोग उस सभा मे पँहुचे थे, अब इतने बडे जन- सैलाब को देखकर कांग्रेस को चिंता तो होगी ही.
प्र. 2008 के चुनाव मे आपने चावल – योजना, जिसके तहत आपने चावल 1 रू. किलो देने की बात की थी जिसके चलते छत्तीसगढ की जनता आपको ‘चाउर बाबा’ के नाम से भी जानती है. क्या 2013 मे आप चावल – मुफ्त देने की योजना बना रहे है ?
उ. खाद्यान और पोषण जैसी योजनाओं का क्रियान्वयन हम और अच्छी तरह से करेंगे.
प्र. पिछले ही दिनों छत्तीसगढ को मनरेगा में देश में दूसरा स्थान मिला. परिवर्तन यात्रा और घर-घर  कांग्रेस अभियान में इन दिनों कांग्रेस के पदाधिकारी राज्य सरकार को कोस-कोस कर गाली दे रहे हैं. राज्य सरकार पर कोयला घोटाले सहित अनेक आरोप भी लगा रहे हैं. लेकिन जैसे ही कांग्रेस के नेता राज्य सरकार पर आरोपों का सिलसिला शुरू करते हैं. उन्ही की केन्द्र सरकार, छत्तीसगढ़ में किसी न किसी केन्द्रीय योजना को लेकर रमन सरकार की पीठ थपथपा देती है. अब इसे क्या कहा जाये कि ये महज संयोग है अथवा वास्तविकता है ?
उ. बडे-बडे लोग कोयला घोटाले मे घिरे है परंतु छतीसगढ - भाजपा सरकार पर किसी ने भी कोई आरोप नही लगाये है. मात्र वे सभी कागज पर नारे लगाते है.   

- राजीव गुप्ता, 09811558925, 16.10.2013, मुख्यमंत्री आवास, रायपुर – छत्तीसगढ

    .     

Thursday, May 30, 2013

नक्सली हिंसा का प्रतिकार विकास से हो

आम आदिवासी की आज़ादी पूर्णत: छिन चुकी है--राजीव गुप्ता
अमेरिकी मार्क्सवादी नेता बाब अवेकिन के शब्दों में किसी भी प्रकार की क्रांति न तो बदले की कार्यवाही है और न ही मौज़ूदा तंत्र की कुछ स्थितियों को बदलने प्रक्रिया है अपितु यह मानवता की मुक्ति का एक उपक्रम है. परंतु मानवाधिकार को ढाल बनाकर भारत की धरा को मानवरक्तिमा से रंगने वालें
“बन्दूकधारी-कारोबारियों” को बाब अवेकिन की यह बात समझ नही आयेगी. भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी (माओवादी) की दंड्कारण्य स्पेशल ज़ोनल कमिटी के प्रवक्ता गुड्सा उसेंडी ने इस हमले की जिम्मेदारी लेते हुए बताया कि 25 मई को कांग्रेस की परिवर्तन रैली पर हमला इसलिये किया था क्योंकि इन्हे सलवा ज़ुडूम के प्रणेता महेन्द्र कर्मा को मारकर बदला लेना था. केन्द्र-सरकार जब नेताओं की सुरक्षा नही कर सकती और उसकी नाक के नीचे से इन नक्सलियों के पास अत्याधुनिक हथियार और पैसे पहुँचते है तो आम जनता की सुरक्षा तो भगवान भरोसे ही है. सरकार व नक्सलियो के बीच आम आदिवासी मात्र शरणार्थी बनकर रह गया है. न कोई प्राकृतिक आपदा आई, न कोई महामारी फैली परन्तु फिर भी आम आदिवासी को सरकार के राहत शिविरों मे रहना पड रहा है. देखते ही देखते पूरा क्षेत्र राहत शिविरों से पट  गया. जंगल मे राज़ा की भाँति विचरण करने वाला आदिवासी राहत शिविरों मे रहकर सरकारी दिनचर्या के हिसाब से जीने को मजबूर हो गया. उसके लिये इधर कुआँ उधर खाई वाली कहानी बन गई है. सरकार की बात करेगा तो नक्सली की गोली खानी पडेगी और अगर राहत शिविर छोडकर जायेगा तो नक्सली का जासूस कहकर सरकार की गोली खानी पडेगी. उसकी आज़ादी पूर्णत: छिन चुकी है या यूँ कहे कि उसके लिये अब आज़ादी के मायने ही बदल चुके है.         
देश की विकास-धारा को गति देने वाला छत्तीसगढ देश का 20 प्रतिशत स्टील और 18 प्रतिशत सीमेंट का उत्पादन करता है. परंतु यह देश का दुर्भाग्य ही है कि नक्सलवाद के चलते छत्तीसगढ में उथल-पुथल मची हुई है. शायद नक्सली समर्थक अपने कुतर्कों के आधार पर आम आदिवासी को पूरी तरह बरगालाने मे सफल हो गये है कि सराकर के विकास का अर्थ है उनसे उनकी संपदा से बेदखल कर देना. केन्द्र सरकार को छत्तीसगढ को विशेष तौर पर अलग से आर्थिक मदद उडीसा के कालाहांडी की तर्ज़ पर देना चाहिये क्योंकि अकेले छत्तीसगढ में 32 प्रतिशत आदिवासी है और जबतक उन्हे सडक या रेल तंत्र से जोडा नही जायेगा विकास का असली अर्थ ये भटके हुए आदिवासी नही समझ पायेंगे. जल्दी से जल्दी जयराम रमेश द्वारा 50 करोड रूपये की मूल्य के प्रोजेक्ट गवर्नेंस एंड एसिलरेटेड लाईवली हुड्स सिक्योरिटी प्रोजेक्ट्स स्कीम (गोल्स) को लागू किया जाय. ताकि इस प्रोजेक्ट के द्वारा असमानता की खाई को पाटा जा सके. अन्यथा नक्सली समर्थक नेताओं व गैर सरकारी संगठनो के चंगुल मे फँसकर ये भटके हुए आदिवासी यूँ ही बन्दूक उठाते रहेंगे. अत: जितनी जल्दी हो सके केन्द्र व राज्य सरकार मिलकर इस भयंकर समस्या को समय रहते सुलझा लेना चाहिये.
यह एक शाश्वत है कि किसी भी विचार से शत-प्रतिशत सहमत व असहमत नही हुआ जा सकता. इसके लिये लोकतंत्र मे तर्काधारित संवाद किया जा सकता है और अपने वैचारिक प्रकटीकरण के लिये संविधान ने हमें यह व्यवस्था दी है. नीतियों मे न्यूनता हो सकती है, जिसे समयानुसार संशोधित किया जा सकता है परंतु संविधान द्वारा प्रदत्त लोक-कल्याणकारी राज्य की परिकल्पना को ही धराशायी करने का अधिकार किसी को कैसे दिया जा सकता है. हमें यह ध्यान रखना चाहिये कि लोकतंत्र में संवाद वह हथियार है जिसकी मदद से कोई भी जंग न केवल जीती जा सकती है अपितु संपूर्ण मानवता की भी रक्षा की जाती है. कोई भी देश वहाँ के निर्मित संविधान से चलता है परंतु स्थिति ज्यादा खतरनाक तब हो जाती है जब आम जनता को संविधान के खिलाफ ही भडकाकर उन्हे हथियार उठाने के लिये विवश कर दिया जाता हो. परंतु कुछ चिंतक-वर्ग अपनी कुंठित मानसिकता के चलते देश को अराजकता के गर्त मे ढकेल कर एक गृह-युद्ध आरंभ करना चाहते है. देश के नीति-निर्मातों को देश-विरोधी हर अभियान को हर स्तर पर अलग-थलग कर उसका बहिष्कार करने के लिये जो भी कठोर फैसले लेना हो तत्काल लेना चाहिये ताकि भारत की धरती पुन: ऐसी रक्त-रंजित न हो.    
इस सच्चाई को नकारा नही जा सकता कि आज़ादी के बाद से लेकर आजतक आदिवासियों के विकास के लिये जो भी कदम उठाया गया वह उस आदिवासी के शरीर की सभी 206 हड्डियों को मज़्ज़ा से ढकने के लिये नाकाफी रहा. आज भी उन्हे दो जून की रोटी व पीने के लिये पानी नसीब नही है. ऐसे मे उनके लिये विकास की बात करना मात्र एक छ्लावा है और शहरों की चमचामाती सडके और गगनचुम्बी इमारतें उनके लिये अकल्पनीय है. जिसका लाभ लेकर अरुन्धती राय सरीखे लोगों द्वारा आदिवासियों को सत्ता के खिलाफ बन्दूक उठाने के लिये प्रेरित व विवश किया जाता है. यही वें लोग हैं जो आम आदिवासी को यह समझाते है कि सत्ता द्वारा तुम्हे तुम्हारी संपत्ति से बेदखल कर तुम्हे विस्थापित कर दिया जायेगा. यह ठीक है कि कोई भी स्वस्थ समाज यह सहन नही कर सकता कि उसकी ही धरती पर उसे विस्थापित होकर रहना पडे. आज भी सरकार आम-जन को उसकी संपदा के अधिग्रहण का मुआवज़ा देती ही है. मुआवजे की राशि व प्रकृति को लेकर विवाद हो सकता है परंतु अगर कोई अपनी संपदा ही नही देगा तो सरकार विकास की इबारत कहाँ लिखेगी. सरकार यह सुनिश्चित कर उन आदिवासियों का भरोसा जीतकर वहाँ विकास मार्ग प्रशस्त करें कि इन आदिवासी क्षेत्रों मे यदि कोई आदिवासी विस्थापित होता है तो उसकी संपूर्ण जिम्मेदारी सरकार की होगी. इस प्रकार का कोई भी संवाद आदिवासियों द्वारा सरकार से किया जा सकता है. उन आम आदिवासियों को यह भी समझना होगा कि जो सडक उनके जंगल-खेत-खलिहानों से होकर गुजरेगी वही सडक उनकी इस असमानता को दूर करेगी क्योंकि वर्तमान समय में सडकें ही विकास का प्रयाय है. यदि उनके बच्चे स्कूलों में शिक्षा लेंगे, देश-समाज को समझेंगे, संचार माध्यमों से जुडेंगे तभी तो वे भी भविष्य में देश के विकास मे भागीदार होंगे. सत्ता से सशस्त्र ट्कराव करना कोई बुद्धिमानी नही है क्योंकि जिस भी दिन इनके “प्रेरणा-पुंजों” को नियंत्रण मे लेकर  सत्ता यह दृढ निश्चय कर लेगी कि इन आदिवासियों के पास हथियार नही पहुँचने चाहिये उस दिन इन आदिवासियों के पास मात्र आत्मसमर्पण के अलावा और कोई दूसरा विकल्प नही रह जायेगा. पंजाब के आतंकवाद का दमन इस बात का एक जीता-जागता उदाहरण है. देर-सवेर इन भटके हुए आदिवासियों को विकास की इस धारा मे आना ही होगा. परंतु सरकार यदि उन भटके हुए आदिवासियों को समझाने में सफल हो गयी तो उन मानवधिकारवादी- कारोबारियों की जीविका कैसे चलेगी मूल प्रश्न यह है.        -राजीव गुप्ता (9811558925)


Related Links:

Naxalite Rebels


सरकार के विरूद्ध युद्ध की तैयारी कर रहे नक्‍सलवादी                                 लाल सलाम 




Wednesday, July 04, 2012

मुठभेड़ पर सवाल//दैनिक ट्रिब्यून का सम्पादकीय

सीआरपीएफ की मुठभेड़ में 20 लोगों की मौत पर विवाद
छत्तीसगढ़ के बीजापुर जनपद में सीआरपीएफ की मुठभेड़ में 20 लोगों की मौत पर उठे विवाद ने अर्धसैनिक बलों की भूमिका पर एक बार फिर सवाल खड़े किये हैं। एक ओर जहां केंद्रीय गृहमंत्री ने सुरक्षा बलों की पीठ थपथपायी है वहीं मामले की जांच के लिए बनी समिति में राज्य के कांग्रेस अध्यक्ष व एक केंद्रीय मंत्री भी शामिल हैं। कहा जा रहा है कि फसल की तैयारी के लिए हो रही बैठक में शामिल ग्रामीण, महिला व बच्चों को अर्धसैनिक बलों ने निशाना बनाया। मरने वालों में एक लड़की भी शामिल है। सीआरपीएफ दावा कर रही है कि नक्सली ढाल के रूप में महिला व बच्चों को इस्तेमाल कर रहे हैं। सवाल यह भी उठाया जा रहा है कि इतनी बड़ी मुठभेड़ के बाद जटिल भौगोलिक परिस्थिति वाले इलाके में एक भी सुरक्षा बल जवान का हताहत न होना बताता है कि मुठभेड़ में शिकार लोगों की ओर से कोई प्रतिरोध सामने नहीं आया। हालांकि बीजापुर मुठभेड़ की हकीकत सामने लाने के लिए सामाजिक कार्यकर्ताओं और माकपा ने दिल्ली में आंदोलन किया। दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र सच्चर ने 29 जून की मुठभेड़ को फर्जी बताते हुए सुप्रीम कोर्ट से मामले की जांच कराने की मांग की है। सच्चर आरोप लगाते हैं कि आदिवासी फसल बोने से पहले अपने रीति-रिवाजों के अनुसार भूमि-पूजन की तैयारी कर रहे थे। उधर, कांग्रेस राज्य के गृहमंत्री के उस बयान को मुद्दा बना रही है जिसमें उन्होंने कहा कि नक्सलियों की मदद करने वाले ग्रामीणों को मार गिराया जायेगा। इस मामले की जांच के लिए कांग्रेस की राज्य इकाई ने बारह सदस्यीय कमेटी भी गठित की है।
इसमें दो राय नहीं कि बीजापुर के इस इलाके में नक्सलवादियों की खासी सक्रियता है लेकिन यह कहना कि इलाके का हर ग्रामीण नक्सलवादी है, तर्कसंगत नजर नहीं आता। माना कि कुछ लोग सशस्त्र प्रतिरोध के जरिये कानून-व्यवस्था को चुनौती दे रहे हैं लेकिन इसके चलते सुरक्षा बलों को इसका अधिकार नहीं मिल जाता कि बीस लोगों को गोलियों से भून दें। उन्हें आत्मसमर्पण के लिए भी बाध्य किया जा सकता था और देश की कानून व्यवस्था के तहत दोषी पाये जाने पर दंडित किया जा सकता था। ऐसे मामलों पर यदि मानवाधिकार संगठन संज्ञान लेते हैं तो शासन-प्रशासन को उनकी बात सुननी चाहिए। राज्य के मुख्यमंत्री दलील दे रहे हैं कि नक्सली महिला व बच्चों को ढाल की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं तो दोनों तरफ से पिसने वालों की मदद या रक्षा कौन करेगा? विगत में भी फर्जी मुठभेड़ों पर देश के सर्वोच्च न्यायालय ने गंभीर टिप्पणियां की हैं। बहरहाल, नक्सलवादियों के नाम पर निहत्थे व निर्दोष लोगों को गोलियों का शिकार बनाने की इजाजत तो नहीं दी जा सकती। अकसर देखा गया है कि केंद्रीय सुरक्षा बलों को न तो स्थानीय जटिल भौगोलिक परिस्थितियों की जानकारी होती है और न ही स्थानीय पुलिस से बेहतर तालमेल। इसके चलते निर्दोष लोगों के शिकार बनने की संभावना बनी रहती है। मुठभेड़ में जिन बड़े नक्सली नेताओं को मारने की बात सीआरपीएफ कर रही थी, उनके बारे में स्थानीय पुलिस व सीआरपीएफ स्पष्ट कहने की स्थिति में नहीं हैं। ऐसा लगता है कि वे बचाव की मुद्रा में हैं। जब सीआरपीएफ मामले में आंतरिक विभागीय जांच की बात कर रही है तो इसके मायने यह हैं कि उसे मुठभेड़ की वास्तविकता पर संदेह है। ऐसे मामलों से स्थानीय लोगों में सुरक्षा बलों के प्रति विश्वास खत्म होता है, जिसका फायदा नक्सली उठाते हैं।

Saturday, January 28, 2012

कडवी हकीकतों के रूबरू कराते सादगी भरे शब्द

गाँधी के गुजरात से मेहुल मकवाना की एक कविता 
जैसे मेरे पास भी एक योनि है…सोनी सोरी
जज साहब,
मेरे साल तेंतीस होने को आये लेकिन,
मैंने कभी कारतूस नहीं देखी है !
सिर्फ बचपन में फोड़े दीपावली के पटाखों की कसम,
आज तक कभी छुआ भी नहीं है बन्दुक को !
हा, घर में मटन-चिकन काटने इस्तेमाल होता,
थोडा सा बड़ा चाकू चलाने का महावरा है मुझे !
लेकिन मैंने कभी तलवार नहीं उठाई है हाथ में !
में तो कब्बडी भी मुश्किल से खेल पानेवाला बंदा हूँ,
मल्ल युद्द्द या फिर कलैरीपट्टू की तो बात कहा ?
प्राचीन या आधुनिक कोई मार्शल आर्ट नहीं आती है मुझे !
में तो शष्त्र और शाष्त्र दोनों के ज्ञान से विमुख हूं !
यह तक की लकड़ी काटने की कुल्हाड़ी भी पड़ोसी से मांगता हूँ !

लेकिन मेरे पास दो हाथ है जज साहब,
महनत से खुरदुरे बने ये दोनों हाथ मेरे अपने है !
पता नहीं क्यों लेकिन जब से मैंने यह सुना है,
मेरे दोनों हाथो में आ रही है बहुत खुजली !
खुजला खुजला के लाल कर दिए है मेने हाथ अपने !

और मेरे पास दो पैर है जज साहब !
बिना चप्पल के काँटों पे चल जाये और आंच भी न आये
एसे ये दोनों पैर, मेरे अपने है जज साहब !
और जब से मेंने सुना है
की दंतेवाडा कि आदिवासी शिक्षक सोनी सोरी की योनि में
पुलिसियों ने पत्थर भरे थे,
पता नहीं क्यों में बार बार उछाल रहा हु अपने पैर हवा में !
और खींच रहा हूं सर के बाल अपने !
जैसे मेरे पास भी एक योनि है और कुछ पैदा ही रहा हो उस से !

हा, मेरा एक सर भी है जज साहब,
हर १५ अगस्त और २६ जनवरी के दिन,
बड़े गर्व और प्यार दुलार से तिरंगे को झुकनेवाला
यह सर मेरा अपना है जज साहब !
गाँधी के गुजरात से हूं इसलिए
बचपन से ही शांति प्रिय सर है मेरा !
और सच कहू तो में चाहता भी हूं कि वो शांति प्रिय रहे !
लेकिन सिर्फ चाहने से क्या होता है ?

क्या छत्तीसगढ़ का हर आदिवासी,
पैदा होते हर बच्चे को नक्सली बनाना चाहता है ?
नहीं ना ? पर उसके चाहने से क्या होता है ?
में तो यह कहता हु की उसके ना चाहने से भी क्या होता है ?
जैसे की आज में नहीं चाहता हु फिर भी ...
मेरा सर पृथ्वी की गति से भी ज्यादा जोर से घूम रहा है !
सर हो रहा है सरफिरा जज साहब,
इससे पहले की सर मेरा फट जाये बारूद बनकर,
इससे पहले की मेरा खुद का सर निगल ले हाथ पैर मेरे ,
इससे पहले की सोनी की योनि से निकले पत्थर लोहा बन जाए,
और ठोक दे लोकतंत्र के पिछवाड़े में कोई ओर कील बड़ी,
आप इस चक्रव्यूह को तोड़ दो जज साहब !
रोक लो आप इसे !
इस बिखरते आदिवासी मोती को पिरो लो अपनी सभ्यता के धागे में !
वेसे मेरे साल तेंतीस होने को आये लेकिन,
मैंने कभी कारतूस नहीं देखी !
कभी नहीं छुआ है बन्दुक को ,
नहीं चलाई है तलवार कभी !
और ना ही खुद में पाया है
कोई जुनून सरफरोशी का कभी !
– मेहुल मकवाना, अहमदाबाद, गुजरात
94276 32132 and 84012 93496