Saturday, April 30, 2011

वन्दे मातरम Vs जन गण मन // रवि वर्मा

कहानी वन्दे मातरम की जो 1905 में था देश का राष्ट्रगान
ये वन्दे मातरम नाम का जो गान है जिसे हम राष्ट्रगान के रूप में जानते हैं उसे बंकिम चन्द्र चटर्जी ने 7 नवम्बर 1875 को लिखा था | बंकिम चन्द्र चटर्जी बहुत ही क्रन्तिकारी विचारधारा के व्यक्ति थे | देश के साथ-साथ पुरे बंगाल में उस समय अंग्रेजों के खिलाफ जबरदस्त आन्दोलन चल रहा था और एक बार ऐसे ही विरोध आन्दोलन में भाग लेते समय इन्हें बहुत चोट लगी और बहुत से उनके दोस्तों की मृत्यु भी हो गयी | इस एक घटना ने उनके मन में ऐसा गहरा घाव किया कि उन्होंने आजीवन अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने का संकल्प ले लिया उन्होंने | बाद में उन्होंने एक उपन्यास लिखा जिसका नाम था "आनंदमठ", जिसमे उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ बहुत कुछ लिखा, उन्होंने बताया कि अंग्रेज देश को कैसे लुट रहे हैं, ईस्ट इंडिया कंपनी भारत से कितना पैसा ले के जा रही है, भारत के लोगों को वो कैसे मुर्ख बना रहे हैं, ये सब बातें उन्होंने उस किताब में लिखी | वो उपन्यास उन्होंने जब लिखा तब अंग्रेजी सरकार ने उसे प्रतिबंधित कर दिया | जिस प्रेस में छपने के लिए वो गया वहां अंग्रेजों ने ताला लगवा दिया | तो बंकिम दा ने उस उपन्यास को कई टुकड़ों में बांटा और अलग-अलग जगह उसे छपवाया औए फिर सब को जोड़ के प्रकाशित करवाया | अंग्रेजों ने उन सभी प्रतियों को जलवा दिया फिर छपा और फिर जला दिया गया, ऐसे करते करते सात वर्ष के बाद 1882 में वो ठीक से छ्प के बाजार में आया और उसमे उन्होंने जो कुछ भी लिखा उसने पुरे देश में एक लहर पैदा किया | शुरू में तो ये बंगला में लिखा गया था, उसके बाद ये हिंदी में अनुवादित हुआ और उसके बाद, मराठी, गुजराती और अन्य भारतीय भाषाओँ में ये छपी और वो भारत की ऐसी पुस्तक बन गया जिसे रखना हर क्रन्तिकारी के लिए गौरव की बात हो गयी थी | इसी पुस्तक में उन्होंने जगह जगह वन्दे मातरम का घोष किया है और ये उनकी भावना थी कि लोग भी ऐसा करेंगे | बंकिम बाबु की एक बेटी थी जो ये कहती थी कि आपने इसमें बहुत कठिन शब्द डाले है और ये लोगों को पसंद नहीं आयेगी तो बंकिम बाबु कहते थे कि अभी तुमको शायद समझ में नहीं आ रहा है लेकिन ये गान कुछ दिन में देश के हर जबान पर होगा, लोगों में जज्बा पैदा करेगा और ये एक दिन इस देश का राष्ट्रगान बनेगा | ये गान देश का राष्ट्रगान बना लेकिन ये देखने के लिए बंकिम बाबु जिन्दा नहीं थे लेकिन जो उनकी सोच थी वो बिलकुल सही साबित हुई| सन 1905 में ये वन्दे मातरम इस देश का राष्ट्रगान बन गया | सन 1905 में क्या हुआ था कि अंग्रेजों की सरकार ने बंगाल का बटवारा कर दिया था | अंग्रेजों का एक अधिकारी था कर्जन जिसने बंगाल को दो हिस्सों में बाट दिया था, एक पूर्वी बंगाल और एक पश्चिमी बंगाल | इस बटवारे का सबसे बड़ा दुर्भाग्य ये था कि ये धर्म के नाम पर हुआ था, पूर्वी बंगाल मुसलमानों के लिए था और पश्चिमी बंगाल हिन्दुओं के लिए, इसी को हमारे देश में बंग-भंग के नाम से जाना जाता है | ये देश में धर्म के नाम पर पहला बटवारा था उसके पहले कभी भी इस देश में ऐसा नहीं हुआ था, मुसलमान शासकों के समय भी ऐसा नहीं हुआ था | 

खैर ...............इस बंगाल बटवारे का पुरे देश में जम के विरोध हुआ था , उस समय देश के तीन बड़े क्रांतिकारियों लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय और बिपिन चन्द्र पल ने इसका जम के विरोध किया और इस विरोध के लिए उन्होंने वन्दे मातरम को आधार बनाया और 1905 से हर सभा में, हर कार्यक्रम में ये वन्देमातरम गाया जाने लगा | कार्यक्रम के शुरू में भी और अंत में भी | धीरे धीरे ये इतना प्रचलित हुआ कि अंग्रेज सरकार इस वन्दे मातरम से चिढने लगी | अंग्रेज जहाँ इस गीत को सुनते, बंद करा देते थे और और गाने वालों को जेल में डाल देते थे, इससे भारत के क्रांतिकारियों को और ज्यादा जोश आता था और वो इसे और जोश से गाते थे | एक क्रन्तिकारी थे इस देश में जिनका नाम था खुदीराम बोस, ये पहले क्रन्तिकारी थे जिन्हें सबसे कम उम्र में फाँसी की सजा दी गयी थी | मात्र 14 साल की उम्र में उसे फाँसी के फंदे पर लटकाया गया था और हुआ ये कि जब खुदीराम बोस को फाँसी के फंदे पर लटकाया जा रहा था तो उन्होंने फाँसी के फंदे को अपने गले में वन्दे मातरम कहते हुए पहना था | इस एक घटना ने इस गीत को और लोकप्रिय कर दिया था और इस घटना के बाद जितने भी क्रन्तिकारी हुए उन सब ने जहाँ मौका मिला वहीं ये घोष करना शुरू किया चाहे वो भगत सिंह हों, राजगुरु हों, अशफाकुल्लाह हों, चंद्रशेखर हों सब के जबान पर मंत्र हुआ करता था | ये वन्दे मातरम इतना आगे बढ़ा कि आज इसे देश का बच्चा बच्चा जानता है | कुछ वर्ष पहले इस देश के सुचना विभाग (Information bureau) ने एक सर्वे कराया जिसमे देश के लोगों से ये पूछा था कि देश का कौन सा गीत सबसे पसंद है आपको, तो सबसे ज्यादा लोगों ने वन्दे मातरम को पसंद किया था और फिर इसी विभाग ने पाकिस्तान और बंग्लादेश में यही सर्वे कराया तो वहां भी ये सबसे लोकप्रिय पाया गया था | इंग्लैंड की एक संस्था है बीबीसी उसने भी अपने सर्वे में पाया कि वन्दे मातरम विश्व का दूसरा सबसे लोकप्रिय गीत है |   


जन गण मन की कहानी 

सन 1911 तक भारत की राजधानी बंगाल हुआ करता था | सन 1905 में जब बंगाल विभाजन को लेकर अंग्रेजो के खिलाफ बंग-भंग आन्दोलन के विरोध में बंगाल के लोग उठ खड़े हुए तो अंग्रेजो ने अपने आपको बचाने के लिए के कलकत्ता से हटाकर राजधानी को दिल्ली ले गए और 1911 में दिल्ली को राजधानी घोषित कर दिया | पूरे भारत में उस समय लोग विद्रोह से भरे हुए थे तो अंग्रेजो ने अपने इंग्लॅण्ड के राजा को भारत आमंत्रित किया ताकि लोग शांत हो जाये | इंग्लैंड का राजा जोर्ज पंचम 1911 में भारत में आया | रविंद्रनाथ टैगोर पर दबाव बनाया गया कि तुम्हे एक गीत जोर्ज पंचम के स्वागत में लिखना ही होगा | उस समय टैगोर का परिवार अंग्रेजों के काफी नजदीक हुआ करता था, उनके परिवार के बहुत से लोग ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए काम किया करते थे, उनके बड़े भाई अवनींद्र नाथ टैगोर बहुत दिनों तक ईस्ट इंडिया कंपनी के कलकत्ता डिविजन के निदेशक (Director) रहे | उनके परिवार का बहुत पैसा ईस्ट इंडिया कंपनी में लगा हुआ था | और खुद रविन्द्र नाथ टैगोर की बहुत सहानुभूति थी अंग्रेजों के लिए | रविंद्रनाथ टैगोर ने मन से या बेमन से जो गीत लिखा उसके बोल है "जन गण मन अधिनायक जय हे भारत भाग्य विधाता" | इस गीत के सारे के सारे शब्दों में अंग्रेजी राजा जोर्ज पंचम का गुणगान है, जिसका अर्थ समझने पर पता लगेगा कि ये तो हकीक़त में ही अंग्रेजो की खुशामद में लिखा गया था | इस राष्ट्रगान का अर्थ कुछ इस तरह से होता है "भारत के नागरिक, भारत की जनता अपने मन से आपको भारत का भाग्य विधाता समझती है और मानती है | हे अधिनायक (Superhero) तुम्ही भारत के भाग्य विधाता हो |  तुम्हारी जय हो ! जय हो ! जय हो !  तुम्हारे भारत आने से सभी प्रान्त पंजाब, सिंध, गुजरात, मराठा मतलब महारास्त्र, द्रविड़ मतलब दक्षिण भारत, उत्कल मतलब उड़ीसा, बंगाल आदि और जितनी भी नदिया जैसे यमुना और गंगा ये सभी हर्षित है, खुश है, प्रसन्न है , तुम्हारा नाम लेकर ही हम जागते है और तुम्हारे नाम का आशीर्वाद चाहते है | तुम्हारी ही हम गाथा गाते है | हे भारत के भाग्य विधाता (सुपर हीरो ) तुम्हारी जय हो जय हो जय हो | "
जोर्ज पंचम भारत आया 1911 में और उसके स्वागत में ये गीत गाया गया | जब वो इंग्लैंड चला गया तो उसने उस जन गण मन का अंग्रेजी में अनुवाद करवाया | क्योंकि जब भारत में उसका इस गीत से स्वागत हुआ था तब उसके समझ में नहीं आया था कि ये गीत क्यों गाया गया और इसका अर्थ क्या है | जब अंग्रेजी अनुवाद उसने सुना तो वह बोला कि इतना सम्मान और इतनी खुशामद तो मेरी आज तक इंग्लॅण्ड में भी किसी ने नहीं की | वह बहुत खुश हुआ | उसने आदेश दिया कि जिसने भी ये गीत उसके (जोर्ज पंचम के) लिए लिखा है उसे इंग्लैंड बुलाया जाये | रविन्द्र नाथ टैगोर इंग्लैंड गए | जोर्ज पंचम उस समय नोबल पुरस्कार समिति का अध्यक्ष भी था |  उसने रविन्द्र नाथ टैगोर को नोबल पुरस्कार से सम्मानित करने का फैसला किया | तो रविन्द्र नाथ टैगोर ने इस नोबल पुरस्कार को लेने से मना कर दिया | क्यों कि गाँधी जी ने बहुत बुरी तरह से रविन्द्रनाथ टेगोर को उनके इस गीत के लिए खूब डांटा था | टैगोर ने कहा की आप मुझे नोबल पुरस्कार देना ही चाहते हैं तो मैंने एक गीतांजलि नामक रचना लिखी है उस पर मुझे दे दो लेकिन इस गीत के नाम पर मत दो और यही प्रचारित किया जाये क़ि मुझे जो नोबेल पुरस्कार दिया गया है वो गीतांजलि नामक रचना के ऊपर दिया गया है | जोर्ज पंचम मान गया और रविन्द्र नाथ टैगोर को सन 1913 में  गीतांजलि नामक रचना के ऊपर नोबल पुरस्कार दिया गया | 
रविन्द्र नाथ टैगोर की ये सहानुभूति ख़त्म हुई 1919 में जब जलिया वाला कांड हुआ और गाँधी जी ने लगभग गाली की भाषा में उनको पत्र लिखा और कहा क़ि अभी भी तुम्हारी आँखों से अंग्रेजियत का पर्दा नहीं उतरेगा तो कब उतरेगा, तुम अंग्रेजों के इतने चाटुकार कैसे हो गए, तुम इनके इतने समर्थक कैसे हो गए ?  फिर गाँधी जी स्वयं रविन्द्र नाथ टैगोर से मिलने गए और बहुत जोर से डाटा कि अभी तक तुम अंग्रेजो की अंध भक्ति में डूबे हुए हो ? तब जाकर रविंद्रनाथ टैगोर की नीद खुली | इस काण्ड का टैगोर ने विरोध किया और नोबल पुरस्कार अंग्रेजी हुकूमत को लौटा दिया | सन 1919 से पहले जितना कुछ भी रविन्द्र नाथ टैगोर ने लिखा वो अंग्रेजी सरकार के पक्ष में था और 1919 के बाद उनके लेख कुछ कुछ अंग्रेजो के खिलाफ होने लगे थे | रविन्द्र नाथ टेगोर के बहनोई, सुरेन्द्र नाथ बनर्जी लन्दन में रहते थे और ICS ऑफिसर थे | अपने बहनोई को उन्होंने एक पत्र लिखा था (ये  1919 के बाद की घटना है)  | इसमें उन्होंने लिखा है कि ये गीत 'जन गण मन' अंग्रेजो के द्वारा मुझ पर दबाव डलवाकर लिखवाया गया है | इसके शब्दों का अर्थ अच्छा नहीं है | इस गीत को नहीं गाया जाये तो अच्छा है | लेकिन अंत में उन्होंने लिख दिया कि इस चिठ्ठी को किसी को नहीं दिखाए क्योंकि मैं इसे सिर्फ आप तक सीमित रखना चाहता हूँ लेकिन जब कभी मेरी म्रत्यु हो जाये तो सबको बता दे |  7 अगस्त 1941 को रबिन्द्र नाथ टैगोर की मृत्यु के बाद इस पत्र को सुरेन्द्र नाथ बनर्जी ने ये पत्र सार्वजनिक किया, और सारे देश को ये कहा क़ि ये जन गन मन गीत न गाया जाये | 
1941 तक कांग्रेस पार्टी थोड़ी उभर चुकी थी | लेकिन वह दो खेमो में बट गई | जिसमे एक खेमे के समर्थक बाल गंगाधर तिलक थे और दुसरे खेमे में मोती लाल नेहरु थे | मतभेद था सरकार बनाने को लेकर | मोती लाल नेहरु चाहते थे कि स्वतंत्र भारत की सरकार अंग्रेजो के साथ कोई संयोजक सरकार (Coalition Government) बने |  जबकि गंगाधर तिलक कहते थे कि अंग्रेजो के साथ मिलकर सरकार बनाना तो भारत के लोगों को धोखा देना है | इस मतभेद के कारण लोकमान्य तिलक कांग्रेस से निकल गए और उन्होंने गरम दल बनाया |  कोंग्रेस के दो हिस्से हो गए | एक नरम दल और एक गरम दल | गरम दल के नेता थे लोकमान्य तिलक जैसे क्रन्तिकारी | वे हर जगह वन्दे मातरम गाया करते थे | और नरम दल के नेता थे मोती लाल नेहरु (यहाँ मैं स्पष्ट कर दूँ कि गांधीजी उस समय तक कांग्रेस की आजीवन सदस्यता से इस्तीफा दे चुके थे, वो किसी तरफ नहीं थे, लेकिन गाँधी जी दोनों पक्ष के लिए आदरणीय थे क्योंकि गाँधी जी देश के लोगों के आदरणीय थे) | 
लेकिन नरम दल वाले ज्यादातर अंग्रेजो के साथ रहते थे | उनके साथ रहना, उनको सुनना, उनकी बैठकों में शामिल होना |  हर समय अंग्रेजो से समझौते में रहते थे | वन्देमातरम से अंग्रेजो को बहुत चिढ होती थी |  नरम दल वाले गरम दल को चिढाने के लिए 1911 में लिखा गया गीत "जन गण मन" गाया करते थे और गरम दल वाले "वन्दे मातरम" |  नरम दल वाले अंग्रेजों के समर्थक थे और अंग्रेजों को ये गीत पसंद नहीं था तो अंग्रेजों के कहने पर नरम दल वालों ने उस समय एक हवा उड़ा दी कि मुसलमानों को वन्दे मातरम नहीं गाना चाहिए क्यों कि इसमें बुतपरस्ती  (मूर्ति पूजा) है | और आप जानते है कि मुसलमान मूर्ति पूजा के कट्टर विरोधी है | उस समय मुस्लिम लीग भी बन गई थी जिसके प्रमुख मोहम्मद अली जिन्ना थे | उन्होंने भी इसका विरोध करना शुरू कर दिया क्योंकि जिन्ना भी देखने भर को (उस समय तक) भारतीय थे मन,कर्म और वचन से अंग्रेज ही थे उन्होंने भी अंग्रेजों के इशारे पर ये कहना शुरू किया और मुसलमानों को वन्दे मातरम गाने से मना कर दिया | जब भारत सन 1947 में स्वतंत्र हो गया तो जवाहर लाल नेहरु ने इसमें राजनीति कर डाली |  संविधान सभा की बहस चली | संविधान सभा के 319 में से 318 सांसद ऐसे थे जिन्होंने बंकिम बाबु द्वारा लिखित वन्देमातरम को राष्ट्र गान स्वीकार करने पर सहमति जताई | बस एक सांसद ने इस प्रस्ताव को नहीं माना | और उस एक सांसद का नाम था पंडित जवाहर लाल नेहरु | उनका तर्क था कि वन्दे मातरम गीत से मुसलमानों के दिल को चोट पहुचती है इसलिए इसे नहीं गाना चाहिए (दरअसल इस गीत से मुसलमानों को नहीं अंग्रेजों के दिल को चोट पहुंचती थी) | अब इस झगडे का फैसला कौन करे, तो वे पहुचे गाँधी जी के पास | गाँधी जी ने कहा कि जन गन मन के पक्ष में तो मैं भी नहीं हूँ और तुम (नेहरु ) वन्देमातरम के पक्ष में नहीं हो तो कोई तीसरा गीत तैयार किया जाये |  तो महात्मा गाँधी ने तीसरा विकल्प झंडा गान के रूप में दिया  "विजयी विश्व तिरंगा प्यारा झंडा ऊँचा रहे हमारा" | लेकिन नेहरु जी उस पर भी तैयार नहीं हुए | नेहरु जी का तर्क था कि झंडा गान ओर्केस्ट्रा पर नहीं बज सकता और जन गन मन ओर्केस्ट्रा पर बज सकता है | उस समय बात नहीं बनी तो नेहरु जी ने इस मुद्दे को गाँधी जी की मृत्यु तक टाले रखा और उनकी मृत्यु के बाद नेहरु जी ने जन गण मन को राष्ट्र गान घोषित कर दिया और जबरदस्ती भारतीयों पर इसे थोप दिया गया जबकि इसके जो बोल है उनका अर्थ कुछ और ही कहानी प्रस्तुत करते है, और दूसरा पक्ष नाराज न हो इसलिए वन्दे मातरम को राष्ट्रगीत बना दिया गया लेकिन कभी बाया नहीं गया | नेहरु जी कोई ऐसा काम नहीं करना चाहते थे जिससे कि अंग्रेजों के दिल को चोट पहुंचे, मुसलमानों के वो इतने हिमायती कैसे हो सकते थे जिस आदमी ने पाकिस्तान बनवा दिया जब कि इस देश के मुसलमान पाकिस्तान नहीं चाहते थे, जन गण मन को इस लिए तरजीह दी गयी क्योंकि वो अंग्रेजों की भक्ति में गाया गया गीत था और वन्देमातरम इसलिए पीछे रह गया क्योंकि इस गीत से अंगेजों को दर्द होता था | बीबीसी ने एक सर्वे किया था | उसने पूरे संसार में जितने भी भारत के लोग रहते थे, उनसे पुछा कि आपको दोनों में से कौन सा गीत ज्यादा पसंद है तो 99 % लोगों ने कहा वन्देमातरम |  बीबीसी के इस सर्वे से एक बात और साफ़ हुई कि दुनिया के सबसे लोकप्रिय गीतों में दुसरे नंबर पर वन्देमातरम है | कई देश है जिनके लोगों को इसके बोल समझ में नहीं आते है लेकिन वो कहते है कि इसमें जो लय है उससे एक जज्बा पैदा होता है | 
तो ये इतिहास है वन्दे मातरम का और जन गण मन का | अब ये आप को तय करना है कि आपको क्या गाना है ? 

एक भारत स्वाभिमानी

रवि  

"धर्म तोड़ता नहीं जोड़ता है" का संदेश देता पीरखाना

पंजाब हो या हरियाणा धार्मिक गतिविधियों के मामले में यहां के लोग हर समय तत्पर रहते हैं. अलग अलग मज़हबों के बावजूद बहुत से लोग एक दुसरे को जोड़ने के लिए तत्पर रहते हैं और उन लोगों के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत करते हैं जो धर्म का नाम लेकर दंगा और खून खराबा करते हैं. पंजाब के लुधियाना में एक ऐसा ही स्थान है पीरखाना जहाँ पर गद्दी नशीन हैं बंटी बाबा. लुधियाना की काकोवाल रो पर स्थित इस जगह की बहुत मान्यता है. लोग दूर दूर से इस दरबार में सजदा करने आते हैं. पिछले दिनों यहां पर सखी सर्वर पीर निगाहें वालों का प्रकाश दिवस भी मनाया गया.इस मौके पर सर्वप्रथम रोज़े की चादर चढाई गयी. 
रोज़े की चादर इस दरबार के गद्दी नशीन बंटी बाबा ने खुद बहुत ही श्रद्धा से चढाई. चादर चढ़ने की इस रस्म अदा करते समय बनती बाबा के साथ बहुत से और भक्त भी मौजूद रहे. लोग हर मंगलवार और गुरूवार को यहां आते हैं. जब सखी सर्वर पीर निगाहें वालों का प्रकाश दिवस मनाया गया तो नयी पीढ़ी के युवा लोग भी इस में बढ़ चढ़ कर शामिल हुए. अवसर बढ़ चढ़ कर शामिल हुए. 
युवा वर्ग की भावनायों का ध्यान रखते हुए बंटी बाबा ने विशेष तौर पर 31 किलोग्राम का केक बनवाया.  जब बंटी बाबा ने इस केक को काटा तो इस रस्म में बहुत से लोगों ने बढ़ चढ़ कर भाग लिया. बंटी बाबा के पीछे विधायक हरीश बेदी भी नजर आ रहे हैं.
बाद दोपहर जब भजन बन्दगी के लिए गीत संगीत का सिलसिला शुरू हुआ तो क्वालियों का एक अलग ही रंग था. इस दौर ने लोगों को मस्त कर दिया.  जब पीरखाना में धर्म तोड़ता नहीं जोड़ता है का संदेश देता हुआ यह अध्यात्मिक संगीत चल रहा था और लोग कीसी आलोकिक आनन्द में खोये हुए बस सुन रहे थे और झूम रहे थे लगता था जैसे समय थम सा गया हो.  क्वालियों में छुपे सूफी संदेश को बंटी बाबा और उनके मेहमानों ने भी बहुत ही ध्यान से सुना.  और उन पलों में ही एक कैमरामैन ने इस तस्वीर को अपने कैमरे में कैद कर लिया.   रिपोर्ट विशाल गर्ग फोटो: संजय सूद 

नोट: अगर आप भी किसी ऐसे ही कार्यक्रम में शामिल हो कर आये हैं या होने जा रहे हैं तो उसके बारे में हमें भी बताएं.  

खोने को फ़कत जंजीरें हैं // डाक्टर लोक राज

 डाक्टर लोक राज
अपनी रचना में काव्य संगीत का भी पूरा ध्यान रखने वाले हिंदी और पंजाबी के जाने माने जनवादी शायरडाक्टर लोक राजआजकल इंग्लैण्ड में रहते हैं पर हमेशां जुड़े रहते आम इंसान के साथ. वह आम इंसान अगर दुखी है तो उसके साथ लोक राज जी भी पूरा पूरा दुःख बांटने का प्रयास करते हैं और अगर वह खुश है तो उसकी ख़ुशी को दुगना चुगना कर देते हैं. विचारों में बहुत ही स्पष्ट और स्थिर रहने वाले लोक राज का मानना है की कलम की शक्ति आम इंसान के दुःख दर्द की बात करे, और उसे संघर्ष करने की प्रेरणा भी दे. उनकीतरफ सेमई दिवस पर एक विशेष रचना हम आपसे भी बाँट रहे हैं. इसमें बेबसी की बात भी है और अपनी तकदीर खुद लिखने का एलान भी. आपको यह रचना कैसी लगी अवश्य बताएं. आपके विचारों की इंतजार बनी रहेगी. -रेक्टर कथूरिया . 
मई दिवस // लोक राज

कुछ बे-रंग सी तस्वीरें हैं
कुछ बेबस सी तदबीरें हैं

कुछ सपनें फीके फीके से
कुछ उलझी सी ताबीरें हैं

जात, मजहब और भाषा सी
बाँटें अनगिनत लकीरें हैं 


इक ऐसी छत के नीचे हैं
टूटी जिस की शहतीरें हैं  

फिर भी इक दिन इन हाथों ने
लिखनी खुद की तकदीरें हैं 


सारी दुनिया सर करने को
खोने को फ़कत जंजीरें हैं

Wednesday, April 27, 2011

औरत की व्यथा // अलका सैनी



परमात्मा ने इस सृष्टि में औरत को भौगौलिक और प्राकृतिक तौर पर आदमी से इस कदर भिन्न बनाया है कि वह समाज में पुरुषों के बीच आकर्षण का केंद्र बनी रहती है . उसकी काया की बनावट के चलते ही वह सुन्दरता की मूरत कहलाई जाती है . इसी भिन्नता के कारण औरत को कदम- कदम पर कठिनाइयों  का सामना करना पढ़ता है . क्यों औरत को एक इंसान की तरह नहीं लिया जाता ? क्यों वह बार- बार पुरुष की शारीरिक भूख का शिकार होती है ? आए दिन जगह- जगह बलात्कार की घटनाएं सुनने में आती है . क्या किसी ने कभी सुना कि एक औरत ने एक आदमी का बलात्कार कर दिया हो ? 
अलका सैनी 
यदि एक औरत अपने जीवन में समाज और देश के लिए कुछ करना चाहती है तो क्यों उसे समान दर्जा नहीं मिलता ? कहने के लिए तो आज के युग में बहुत कुछ बदल गया है परन्तु इस पुरुष प्रधान समाज में औरत अपनी प्राकृतिकऔर शारीरिक  भिन्नता के कारण बरसों से बलि चढ़ती आई है और चढ़ती रहेगी .
यदि एक औरत हिम्मत करके घर से बाहर निकल कर सामाजिक या राजनैतिक क्षेत्र में कुछ करना चाहती है तो क्यों उसे इज्जत  की नजर से नहीं देखा जाता ? ऐसे असंख्य सवाल मेरी दृष्टि में हर औरत के मन पटल में उठते होंगे . अगर वह औरत कुछ कार्य करने के लिए आगे आती है तो पुरुष वर्ग क्यों उससे उसके औरत होने की कीमत वसूलना चाहता है? क्यों उसकी डगर इतनी मुश्किल और काँटों भरी बना दी जाती है कि वह थक- हार कर, निराश होकर घर बैठ जाए और चूल्हे चौंके तक ही सीमित रहे . क्यों उसे अपनी सुन्दरता का मौल चुकाना पढ़ता है ?जैसे कि सुन्दर होना उसके लिए वरदान नहीं  बल्कि अभिशाप बन गया हो. हमारे देश में आजादी के इतने बरसों बाद भी कार्यालयों में जहाँ काफी औरतें घर से बाहर निकल कर पढ़- लिखकर समान रूप से कार्य करने लगी हैं , वहाँ अभी भी राजनैतिक क्षेत्र में कितने प्रतिशत  औरतें सामने आकर देश और समाज के लिए कुछ कर पा रही हैं . और किसे पता है कि जो औरतें आज किसी मुकाम पर पहुँच गई है उन्हें कितनी दिक्कतें झेलनी पढ़ी हो और अपने औरत होने का खामियाजा ना भुगतना पड़ा हो .
अलका सैनी 
क्यों पुरुष वर्ग इतना स्वार्थी है और औरत की देश के शासन में बराबर की भागीदारी नहीं चाहता ? मेरा मानना है कि यदि औरत के हाथों में शहर , कस्बे, प्रांत की भागडोर बराबर रूप से  थमा दी जाए तो शायद हमारे देश में जो असख्य बुराइयां जैसे कि भ्रष्टाचार , नशा खोरी , गरीबी आदि विकराल रूप धारण कर चुकी हैं वो ख़त्म नहीं तो काफी कम अवश्य हो जाएगी . 
औरत संवेदनशील होने के साथ- साथ किसी भी विषम परिस्थिति को समझने की बेहतर परख रखती है क्योंकि वह इस सृष्टि की जननी है . हमारे देश का आज जो पतन देखने को मिल रहा है और उसके बावजूद भी समाज में बदलाव नहीं आ रहा है . क्या यही सच्चाई है पुरुष प्रधान समाज की ? क्या पुरुष वास्तव में सच्चे मन से चाहते  ही नहीं कि औरत घर की चार दीवारी से बाहर निकल कर शासन में हिस्सेदार बने ? अव्वल तो ऐसी कठिन डगर पर चलना और कोई मुकाम हासिल करना बहुत मुश्किल है परन्तु  अगर कुछ प्रतिशत पढ़ी- लिखी महिलाएँ आगे आकर देश में ,समाज में पनप रही कुरीतियों को बर्दाश्त ना कर पाने के कारण कुछ करना चाहती है तो कदम- कदम पर पुरुषों के क़दमों तले क्यों रोंदी जाती हैं ?  
--अलका सैन, 
 ट्रिब्यून कलोनी, जीरकपुर (पंजाब) 

Tuesday, April 26, 2011

पूनम की कविता का एक और नया रंग

बात खूबसूरती की चले, यादगारी फोटोग्राफी की या फिर कविता की....पूनम मटिया का नाम एकदम जहन में आ जाता है. ख्याल की उडान इतनी ऊंची की बस कुछ मत पूछो. इस उड़ान के साथ उड़ कर धरती पर वापिस आते आते वक्त लग जाता है. रचना में बात इतनी गहरी की इंसान सोचता ही रह जाये. सातों समुन्द्रों कि गहराई कम लगने लगती है.  उस पर शब्दों का चयन और बात कहने का सलीका इतना खूबसूरत कि .....बस सब कुछ दिल=ओ=दिमाग पर खुद-ब-खुद उकर जाता है. हर कविता के साथ एक शानदार तस्वीर इतना चुन कर लगाई जाती है कि ऐसे लगता है जैसे यह तस्वीर और कविता दोनों एक दुसरे के लिए बने हैं. अगर आपने पूनम को पढ़ा है तो यह सब आपने भी महसूस किया होगा. आप को उनकी कविता कैसी लगी अवश्य बताएं.यहाँ उनकी कवितायों का नया रंग भी दिया जा रहा है. आपको यह रंग कैसा लगा अवश्य बताएं.हमेशां की तरह इस बार भी आपके विचारों की इंतजार बनी रहेगी.--रेक्टर कथूरिया  
1.
कहाँ जा रहे हैं
किन गलियों में आश्न्ना तलाश रहे हैं
किसे फ़िक्र है
हर तरफ धुंआ hii dhuaan है
हाथ को हाथ मालूम नहीं देता
तो शितिज की किसे खबर है
बढ़ रहे बस भीड़ संग
अपनी किसे फिकर है
क्या हो रहा है 'आज'
'कल' में क्या बदा है
क्यों सोचे ए-इंसा
मौज कर ,पंख फैला
बे खौफ उड़ना भी इक कला है

2.
दिल रोता है
पर लब मुस्कुराते हैं
ये आंसू भी अजीब शय हैं
जब रोकना चाहो
न जाने क्यों बेतरतीब बह जाते हैं
3.
ये मौसम की खामोशियाँ
आवाज़ सिर्फ तेरी-मेरी साँसों की
यादों के गहराते साये
पर मुस्कान मेरी ने सभी हैं छिपाए

4.
वक्त जो बीता जाएगा वापस न आएगा
उसके साथ हमारा भी कुछ पीछे छूट जाएगा
बेहतर है छूटे वही जो खुशगवार न था
था मेरा ही पर उनको गवारा न था
वक्त ले चले हमें उस ओर
जहां धुंध के साये न हो
दर्द के आंसू और आत्मग्लानी न हो
खुला और अंतहीन आकाश हो
स्वछन्द उड़ने की आस हो
हया के रंग सजीले हों
पर जोश-ए-जूनून की कमी न हो   
.                                         --पूनम मटिया

Sunday, April 24, 2011

अनुबन्ध // बोधिसत्व कस्तूरिया


बात बहुत पुरानी है. राजकपूर की फिल्म आई थी बोबी. बहुत से  लोगों ने यह फिल्म बहुत बार देखी. लोग एक दुसरे से पूछा करते थे भाई तुमने कितनी बनार देखी और तुमने कितनी बार. इस फिल्म में एक गीत था जिसके कुह्ह बोल थे.....प्यार में सौदा नहीं.  गीत उस ज़माने में भी हिट हुआ था और आज भी इसकी धुन मन को लुभाती है. आज के युग में सभी बातें अनुबन्ध पर होने का चलन चाहे तेज़ी से बढ़ रहा है फिर भी इस गेट के बोल मन की दुनिया में कहीं न कहीं गूंजते रहते हैं....प्यार में सौदा नहीं.....लेकिन प्यार की निशानी ताज महल की दुनिया में रहने वाले बोधिसत्व कस्तूरिया इसी मुद्दे पर कुछ नया कह रहे हैं. प्रीत के इस अनोखे अनुबन्ध की बात आपको कैसी लगी अवश्य लिखें. आपके विचारों की इंतज़ार बनी रहेगी.                - रेक्टर कथूरिया 

अनुबन्ध // बोधिसत्व कस्तूरिया
प्रीत का यह अनोखा अनुबन्ध,
यह कब,किसे कहाँ हो जाये ?
जिससे न था कोई समब्न्ध!! 
प्रीत का यह अनोखा अनुबन्ध !
शून्य से भी जब फ़ूटता ज्वार,
फ़िर टूट्ता है हर प्रतिबन्ध !! 
प्रीत का यह अनोखा अनुबन्ध !
पहले दो अन्जानों का मिलन,
फ़िर बने युग-युग के सम्बन्ध !! 
प्रीत का यह अनोखा अनुबन्ध !
प्यार और विश्वास से निर्मित,
हो जाते हैं जन्मों के अनुबन्ध !! 
प्रीत का यह अनोखा अनुबन्ध !

--बोधिसत्व कस्तूरिया,
२०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा
आगरा २८२००७

Saturday, April 23, 2011

आत्मा की तृप्ति केवल परमात्मा में संभव - कृष्णा स्वामी


परम पूज्य श्री कृष्णा स्वामी जी ने शनिगांव में उपस्थित भक्तों के समूह को संबोधित करते  हुए कहा कि हर आदमी जीवन में सुख पाना चाहता है, गौर से देखें तो हमारी सारी इच्छाएं, सारी दौड़ सुख पाने के लिए ही हैं, लेकिन फिर भी सुख किसी को मिलता हुआ लग नहीं रहा. हर आदमी यह सोचता है कि दूसरे सुखी हैं , गरीब को लगता है कि अमीर सुखी हैं , जरा अमीर से पूछ के देखिये उसके दुखों का भी वही अनुपात है जो गरीब का है. गरीब के पास अगर दो सुख हैं तो दो दुःख हैं उसी तरह अमीर के पास अगर दो सौ सुख हैं तो दो सौ दुःख हैं.
फिर हम सब की इच्छाएं पूरी हो भी नहीं सकती क्योंकि एक की इच्छा दूसरे को काट देती है. मान लीजिये एक परिवार में छ लोग हैं और भगवान  धरती पर आ कर एक एक से उसकी इच्छा पूछे तो पति जो मांगेगा पत्नी उसको फ़ौरन कैंसल  कर के कुछ और मांगेगी , बच्चे कुछ और, दादा दादी कुछ और, इस तरह खुद ईश्वर भी हम को  खुश नहीं कर सकता. 
सच तो यह है कि बाहरी जीवन की परिस्थितियों  में सुख है ही नहीं. जिन परिस्थितियों को बदलने का उपाय नहीं है उन्हें  जैसा है वैसा रहने दें. अपने सुख को बाहर नहीं भीतर खोजें. यह भी सच है कि अपने अन्दर ख़ुशी मिलना बहुत कठिन है लेकिन यह भी याद रखे  कि बाहर ख़ुशी मिलना तो असंभव ही है.
आत्मा की मांग पूरी करें. अन्दर चलें, बाहर की चीजों से ऊपर उठने की कोशिश करें वरना जन्मो जन्मो तक घूमते ही रहेंगे. जिस मर्जी मंदिर , डेरे या बाबे के पास चले जायें सुख नहीं मिलेगा और अगर मिलेगा भी तो वह क्षणिक होगा आत्मा को तृप्त नहीं करेगा. 
हवन यग्य के बाद भक्तों ने शनिदेव् की प्रेमपूर्वक आरती की, प्रसाद वितरण के साथ समारोह का समापन हुआ.

Sunday, April 17, 2011

हमें ही सड़कों पर उतरना होगा......!

आज के युग में जब लोग अपना अपना दुःख, अपना  अपना गम लिखने और कहने में व्यस्त हैं उस समय भी एक व्यक्ति ऐसा है जिसे देश का दुःख खाए जा रहा है. मेरा अभिप्राय है रवि वर्मा से जिनकी लेखनी से आप अवगत ही हैं. उनका नया लेख भी बहुत कुछ कह रहा है. पढ़िए, सोचिये और उठिए. पहले ही बहुत देर हो चुकी है.आपके विचारों की इंतजार में.... -रेक्टर कथूरिया 
सत्ता के हस्तांतरण की संधि ( Transfer of Power Agreement ) // रवि वर्मा 
आपने देखा होगा कि मैं बराबर सत्ता के हस्तांतरण के संधि के बारे में लिखता हूँ और आप बार बार सोचते होंगे कि आखिर ये क्या है ? आज पढ़िए सत्ता के हस्तांतरण की संधि ( Transfer of Power Agreement ) यानि भारत के आज़ादी की संधि | ये इतनी खतरनाक संधि है की अगर आप अंग्रेजों द्वारा सन 1615 से लेकर 1857 तक किये गए सभी 565 संधियों या कहें साजिस को जोड़ देंगे तो उस से भी ज्यादा खतरनाक संधि है ये | 14 अगस्त 1947 की रात को जो कुछ हुआ है वो आजादी नहीं आई बल्कि ट्रान्सफर ऑफ़ पॉवर का एग्रीमेंट हुआ था पंडित नेहरु और लोर्ड  माउन्ट बेटन के बीच में Transfer of Power और Independence ये दो अलग चीजे है स्वतंत्रता और सत्ता का हस्तांतरण ये दो अलग चीजे है और सत्ता का हस्तांतरण कैसे होता है आप देखते होंगे क़ि एक पार्टी की सरकार हैवो चुनाव में हार जाये, दूसरी पार्टी की सरकार आती है तो दूसरी पार्टी का प्रधानमन्त्री जब शपथ ग्रहण करता हैतो वो शपथ ग्रहण करने के तुरंत बाद एक रजिस्टर पर हस्ताक्षर करता हैआप लोगों में से बहुतों ने देखा होगा, तो जिस रजिस्टर पर आने वाला प्रधानमन्त्री हस्ताक्षर करता हैउसी रजिस्टर को ट्रान्सफर ऑफ़ पॉवर की बुक कहते है और उस पर हस्ताक्षर के बाद पुराना प्रधानमन्त्री नए प्रधानमन्त्री को सत्ता सौंप देता है और पुराना प्रधानमंत्री निकल कर बाहर चला जाता है  | यही नाटक हुआ था 14अगस्त 1947 की रात को 12 बजे लार्ड  माउन्ट बेटन ने अपनी सत्ता पंडित नेहरु के हाथ में सौंपी थीऔर हमने कह दिया कि स्वराज्य आ गया | कैसा स्वराज्य और काहे का स्वराज्य अंग्रेजो के लिए स्वराज्य का मतलब क्या था और हमारे लिए स्वराज्य का मतलब क्या था ? ये भी समझ लीजिये | अंग्रेज कहते थे क़ि हमने स्वराज्य दिया, माने अंग्रेजों ने अपना राज तुमको सौंपा है ताकि तुम लोग कुछ दिन इसे चला लो जब जरुरत पड़ेगी तो हम दुबारा आ जायेंगे  ये अंग्रेजो का interpretation (व्याख्या) था | और हिन्दुस्तानी लोगों की व्याख्या क्या थी कि हमने स्वराज्य ले लिया और इस संधि के अनुसार ही भारत के दो टुकड़े किये गए और भारत और पाकिस्तान नामक दो Dominion States बनाये गए हैं | ये Dominion State का अर्थ हिंदी में होता है एक बड़े राज्य के अधीन एक छोटा राज्य, ये शाब्दिक अर्थ है और भारत के सन्दर्भ में इसका असल अर्थ भी यही है | अंग्रेजी में इसका एक अर्थ है  "One of the self-governing nations in the British Commonwealth" और दूसरा "Dominance or power through legal authority "| Dominion State और Independent Nation में जमीन आसमान का अंतर होता है | मतलब सीधा है क़ि हम (भारत और पाकिस्तान) आज भी अंग्रेजों के अधीन/मातहत ही हैं | दुःख तो ये होता है की उस समय के सत्ता के लालची लोगों ने बिना सोचे समझे या आप कह सकते हैं क़ि पुरे होशो हवास  में इस संधि को मान लिया या कहें जानबूझ कर ये सब स्वीकार कर लिया | और ये जो तथाकथित आज़ादी आयी, इसका कानून अंग्रेजों के संसद में बनाया गया और इसका नाम रखा गया Indian Independence Act यानि भारत के स्वतंत्रता का कानून | 
फोटो साभार:m-a-jinnah
और ऐसे धोखाधड़ी से अगर इस देश की आजादी आई हो तो वो आजादी, आजादी है कहाँ ?  और इसीलिए गाँधी जी (महात्मा गाँधी) 14 अगस्त 1947 की रात को दिल्ली में नहीं आये थे वो नोआखाली में थे और कोंग्रेस के बड़े नेता गाँधी जी को बुलाने के लिए गए थे  कि बापू चलिए आप गाँधी जी ने मना कर दिया था क्यों गाँधी जी कहते थे कि मै मानता नहीं कि कोई आजादी आ रही है और गाँधी जी ने स्पस्ट कह दिया था कि ये आजादी नहीं आ रही है सत्ता के हस्तांतरण का समझौता हो रहा है और गाँधी जी ने नोआखाली से प्रेस विज्ञप्ति जारी की थी | उस प्रेस स्टेटमेंट के पहले ही वाक्य में गाँधी जी ने ये कहा  कि मै हिन्दुस्तान के उन करोडो लोगों को ये सन्देश देना चाहता हु कि ये जो तथाकथित आजादी (So Called Freedom) आ रही है ये मै नहीं लाया |ये सत्ता के लालची लोग सत्ता के हस्तांतरण के चक्कर में फंस करलाये है मै मानता नहीं कि इस देश में कोई आजादी आई हैऔर 14 अगस्त 1947 की रात को गाँधी जी दिल्ली में नहीं थे नोआखाली में थे | माने भारत की राजनीति का सबसे बड़ापुरोधा जिसने हिन्दुस्तान की आज़ादी की लड़ाई की नीव रखी हो वो आदमी 14 अगस्त 1947 की रात को दिल्ली में मौजूद नहीं था क्यों इसका अर्थ है कि गाँधी जी इससे सहमत नहीं थे (नोआखाली के दंगे तो एक बहाना था असल बात तो ये सत्ता का हस्तांतरण ही था) और 14 अगस्त 1947 की रात को जो कुछ हुआ है वो आजादी नहीं आई .... ट्रान्सफर ऑफ़ पॉवर का एग्रीमेंट लागू हुआ था पंडित नेहरु और अंग्रेजी सरकार के बीच में | अब शर्तों की बात करता हूँ , सब का जिक्र करना तो संभव नहीं है लेकिन कुछ महत्वपूर्ण शर्तों की जिक्र जरूर करूंगा जिसे एक आम भारतीय जानता है और उनसे परिचित है ...............
  • इस संधि की शर्तों के मुताबिक हम आज भी अंग्रेजों के अधीन/मातहत ही हैं | वो एक शब्द आप सब सुनते हैं न Commonwealth Nations | अभी कुछ दिन पहले दिल्ली में Commonwealth Game हुए थे आप सब को याद होगा ही और उसी में बहुत बड़ा घोटाला भी हुआ है | ये Commonwealth का मतलब होता है समान सम्पति | किसकी समान सम्पति ? ब्रिटेन की रानी की समान सम्पति | आप जानते हैं ब्रिटेन की महारानी हमारे भारत की भी महारानी है और वो आज भी भारत की नागरिक है और हमारे जैसे 71 देशों की महारानी है वो | Commonwealth में 71 देश है और इन सभी 71 देशों में जाने के लिए ब्रिटेन की महारानी को वीजा की जरूरत नहीं होती है क्योंकि वो अपने ही देश में जा रही है लेकिन भारत के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को ब्रिटेन में जाने के लिए वीजा की जरूरत होती है क्योंकि वो दुसरे देश में जा रहे हैं | मतलब इसका निकाले तो ये हुआ कि या तो ब्रिटेन की महारानी भारत की नागरिक है या फिर भारत आज भी ब्रिटेन का उपनिवेश है इसलिए ब्रिटेन की रानी को पासपोर्ट और वीजा की जरूरत नहीं होती है अगर दोनों बाते सही है तो 15 अगस्त 1947 को हमारी आज़ादी की बात कही जाती है वो झूठ है | औरCommonwealth Nations में हमारी एंट्री जो है वो एक Dominion State के रूप में है न क़ि Independent Nation के रूप में| इस देश में प्रोटोकोल है क़ि जब भी नए राष्ट्रपति बनेंगे तो 21 तोपों की सलामी दी जाएगी उसके अलावा किसी को भी नहीं | लेकिन ब्रिटेन की महारानी आती है तो उनको भी 21 तोपों की सलामी दी जाती है, इसका क्या मतलब है? और पिछली बार ब्रिटेन की महारानी यहाँ आयी थी तो एक निमंत्रण पत्र छपा था और उस निमंत्रण पत्र में ऊपर जो नाम था वो ब्रिटेन की महारानी का था और उसके नीचे भारत के राष्ट्रपति का नाम था मतलब हमारे देश का राष्ट्रपति देश का प्रथम नागरिक नहीं है | ये है राजनितिक गुलामी, हम कैसे माने क़ि हम एक स्वतंत्र देश में रह रहे हैं | एक शब्द आप सुनते होंगे High Commission ये अंग्रेजों का एक गुलाम देश दुसरे गुलाम देश के यहाँ खोलता है लेकिन इसे Embassy नहीं कहा जाता | एक मानसिक गुलामी का उदहारण भी देखिये ....... हमारे यहाँ के अख़बारों में आप देखते होंगे क़ि कैसे शब्द प्रयोग होते हैं - (ब्रिटेन की महारानी नहीं) महारानी एलिज़ाबेथ, (ब्रिटेन के प्रिन्स चार्ल्स नहीं) प्रिन्स चार्ल्स , (ब्रिटेन की प्रिंसेस नहीं) प्रिंसेस डैना (अब तो वो हैं नहीं), अब तो एक और प्रिन्स विलियम भी आ गए है |    
  • भारत का नाम INDIA रहेगा और सारी दुनिया में भारत का नाम इंडिया प्रचारित किया जायेगा और सारे सरकारी दस्तावेजों में इसे इंडिया के ही नाम से संबोधित किया जायेगा | हमारे और आपके लिए ये भारत है लेकिन दस्तावेजों में ये इंडिया है | संविधान के प्रस्तावना में ये लिखा गया है "India that is Bharat " जब क़ि होना ये चाहिए था "Bharat that was India " लेकिन दुर्भाग्य इस देश का क़ि ये भारत के जगह इंडिया हो गया | ये इसी संधि के शर्तों में से एक है | अब हम भारत के लोग जो इंडिया कहते हैं वो कहीं से भी भारत नहीं है | कुछ दिन पहले मैं एक लेख पढ़ रहा था अब किसका था याद नहीं आ रहा है उसमे उस व्यक्ति ने बताया था कि इंडिया का नाम बदल के भारत कर दिया जाये तो इस देश में आश्चर्यजनक बदलाव आ जायेगा और ये विश्व की बड़ी शक्ति बन जायेगा अब उस शख्स के बात में कितनी सच्चाई है मैं नहीं जानता, लेकिन भारत जब तक भारत था तब तक तो दुनिया में सबसे आगे था और ये जब से इंडिया हुआ है तब से पीछे, पीछे और पीछे ही होता जा रहा है | 
  • भारत के संसद में वन्दे मातरम नहीं गया जायेगा अगले 50 वर्षों तक यानि 1997 तक | 1997 में पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने इस मुद्दे को संसद में उठाया तब जाकर पहली बार इस तथाकथित आजाद देश की संसद में वन्देमातरम गाया  गया | 50 वर्षों तक नहीं गाया गया क्योंकि ये भी इसी संधि की शर्तों में से एक है | और वन्देमातरम को ले के मुसलमानों में जो भ्रम फैलाया गया वो अंग्रेजों के दिशानिर्देश पर ही हुआ था | इस गीत में कुछ भी ऐसा आपत्तिजनक नहीं है जो मुसलमानों के दिल को ठेस पहुचाये | आपत्तिजनक तो जन,गन,मन में है जिसमे एक शख्स को भारत भाग्यविधाता यानि भारत के हर व्यक्ति का भगवान बताया गया है या कहें भगवान से भी बढ़कर |
  • इस संधि की शर्तों के अनुसार सुभाष चन्द्र बोस को जिन्दा या मुर्दा अंग्रेजों के हवाले करना था | यही वजह रही क़ि सुभाष चन्द्र बोस अपने देश के लिए लापता रहे और कहाँ मर खप गए ये आज तक किसी को मालूम नहीं है | समय समय पर कई अफवाहें फैली लेकिन सुभाष चन्द्र बोस का पता नहीं लगा और न ही किसी ने उनको ढूँढने में रूचि दिखाई | मतलब भारत का एक महान स्वतंत्रता सेनानी अपने ही देश के लिए बेगाना हो गया | सुभाष चन्द्र बोस ने आजाद हिंद फौज बनाई थी ये तो आप सब लोगों को मालूम होगा ही लेकिन महत्वपूर्ण बात ये है क़ि ये 1942 में बनाया गया था और उसी समय द्वितीय विश्वयुद्ध चल रहा था और सुभाष चन्द्र बोस ने इस काम में जर्मन और जापानी लोगों से मदद ली थी जो कि अंग्रेजो के दुश्मन थे और इस आजाद हिंद फौज ने अंग्रेजों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुँचाया था | और जर्मनी के हिटलर और इंग्लैंड के एटली और चर्चिल के व्यक्तिगत विवादों की वजह से ये द्वितीय विश्वयुद्ध हुआ था और दोनों देश एक दुसरे के कट्टर दुश्मन थे | एक दुश्मन देश की मदद से सुभाष चन्द्र बोस ने अंग्रेजों के नाकों चने चबवा दिए थे | एक तो अंग्रेज उधर विश्वयुद्ध में लगे थे दूसरी तरफ उन्हें भारत में भी सुभाष चन्द्र बोस की वजह से परेशानियों का सामना करना पड़ रहा था |  इसलिए वे सुभाष चन्द्र बोस के दुश्मन थे | 
  • इस संधि की शर्तों के अनुसार भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, अशफाकुल्लाह, रामप्रसाद विस्मिल जैसे लोग आतंकवादी थे और यही हमारे syllabus में पढाया जाता था बहुत दिनों तक | और अभी एक महीने पहले तक ICSE बोर्ड के किताबों में भगत सिंह को आतंकवादी ही बताया जा रहा था, वो तो भला हो कुछ लोगों का जिन्होंने अदालत में एक केस किया और अदालत ने इसे हटाने का आदेश दिया है (ये समाचार मैंने इन्टरनेट पर ही अभी कुछ दिन पहले देखा था) | 
  • आप भारत के सभी बड़े रेलवे स्टेशन पर एक किताब की दुकान देखते होंगे "व्हीलर बुक स्टोर" वो इसी संधि की शर्तों के अनुसार है | ये व्हीलर कौन था ? ये व्हीलर सबसे बड़ा अत्याचारी था | इसने इस देश क़ि हजारों माँ, बहन और बेटियों के साथ बलात्कार किया था | इसने किसानों पर सबसे ज्यादा गोलियां चलवाई थी | 1857 की क्रांति के बाद कानपुर के नजदीक बिठुर में व्हीलर और नील नामक दो अंग्रजों ने यहाँ के सभी 24 हजार लोगों को जान से मरवा दिया था चाहे वो गोदी का बच्चा हो या मरणासन्न हालत में पड़ा कोई बुड्ढा | इस व्हीलर के नाम से इंग्लैंड में एक एजेंसी शुरू हुई थी और वही भारत में आ गयी | भारत आजाद हुआ तो ये ख़त्म होना चाहिए था, नहीं तो कम से कम नाम भी बदल देते | लेकिन वो नहीं बदला गया क्योंकि ये इस संधि में है |
  • इस  संधि की शर्तों के अनुसार अंग्रेज देश छोड़ के चले जायेगे लेकिन इस देश में कोई भी कानून चाहे वो किसी क्षेत्र में हो नहीं बदला जायेगा | इसलिए आज भी इस देश में 34735 कानून वैसे के वैसे चल रहे हैं जैसे अंग्रेजों के समय चलता था | Indian Police Act, Indian Civil Services Act (अब इसका नाम है Indian Civil Administrative Act), Indian Penal Code (Ireland में भी IPC चलता है और Ireland में जहाँ "I" का मतलब Irish है वही भारत के IPC में "I" का मतलब Indian है बाकि सब के सब कंटेंट एक ही है, कौमा और फुल स्टॉप का भी अंतर नहीं है) Indian Citizenship Act, Indian Advocates Act, Indian Education Act, Land Acquisition Act, Criminal Procedure Act, Indian Evidence Act, Indian Income Tax Act, Indian Forest Act, Indian Agricultural Price Commission Act  सब के सब आज भी वैसे ही चल रहे हैं बिना फुल स्टॉप और कौमा बदले हुए |
  • इस संधि के अनुसार अंग्रेजों द्वारा बनाये गए भवन जैसे के तैसे रखे जायेंगे | शहर का नाम, सड़क का नाम सब के सब वैसे ही रखे जायेंगे | आज देश का संसद भवन, सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट, राष्ट्रपति भवन कितने नाम गिनाऊँ सब के सब वैसे ही खड़े हैं और हमें मुंह चिढ़ा रहे हैं | लार्ड डलहौजी के नाम पर डलहौजी शहर है , वास्को डी गामा नामक शहर है (हाला क़ि वो पुर्तगाली था ) रिपन रोड, कर्जन रोड, मेयो रोड, बेंटिक रोड,  (पटना में) फ्रेजर रोड, बेली रोड, ऐसे हजारों भवन और रोड हैं,  सब के सब वैसे के वैसे ही हैं | आप भी अपने शहर में देखिएगा वहां भी कोई न कोई भवन, सड़क उन लोगों के नाम से होंगे | हमारे गुजरात में एक शहर है सूरत, इस सूरत शहर में एक बिल्डिंग है उसका नाम है कूपर विला | अंग्रेजों को जब जहाँगीर ने व्यापार का लाइसेंस दिया था तो सबसे पहले वो सूरत में आये थे और सूरत में उन्होंने इस बिल्डिंग का निर्माण किया था | ये गुलामी का पहला अध्याय आज तक सूरत शहर में खड़ा है |   
  • हमारे यहाँ शिक्षा व्यवस्था अंग्रेजों की है क्योंकि ये इस संधि में लिखा है और मजे क़ि बात ये है क़ि अंग्रेजों ने हमारे यहाँ एक शिक्षा व्यवस्था दी और अपने यहाँ अलग किस्म क़ि शिक्षा व्यवस्था रखी है | हमारे यहाँ शिक्षा में डिग्री का महत्व है और उनके यहाँ ठीक उल्टा है | मेरे पास ज्ञान है और मैं कोई अविष्कार करता हूँ तो भारत में पूछा जायेगा क़ि तुम्हारे पास कौन सी डिग्री है ? अगर नहीं है तो मेरे अविष्कार और ज्ञान का कोई मतलब नहीं है | जबकि उनके यहाँ ऐसा बिलकुल नहीं है आप अगर कोई अविष्कार करते हैं और आपके पास ज्ञान है लेकिन कोई डिग्री नहीं हैं तो कोई बात नहीं आपको प्रोत्साहित किया जायेगा | नोबेल पुरस्कार पाने के लिए आपको डिग्री की जरूरत नहीं होती है | हमारे शिक्षा तंत्र को अंग्रेजों ने डिग्री में बांध दिया था जो आज भी वैसे के वैसा ही चल रहा है | ये जो 30 नंबर का पास मार्क्स आप देखते हैं वो उसी शिक्षा व्यवस्था क़ि देन है, मतलब ये है क़ि आप भले ही 70 नंबर में फेल है लेकिन 30 नंबर लाये है तो पास हैं, ऐसा शिक्षा तंत्र से सिर्फ गदहे ही पैदा हो सकते हैं और यही अंग्रेज चाहते थे | आप देखते होंगे क़ि हमारे देश में एक विषय चलता है जिसका नाम है Anthropology | जानते है इसमें क्या पढाया जाता है ? इसमें गुलाम लोगों क़ि मानसिक अवस्था के बारे में पढाया जाता है | और ये अंग्रेजों ने ही इस देश में शुरू किया था और आज आज़ादी के 64 साल बाद भी ये इस देश के विश्वविद्यालयों में पढाया जाता है और यहाँ तक क़ि सिविल सर्विस की  परीक्षा में भी ये चलता है | 
  • इस संधि की शर्तों के हिसाब से हमारे देश में आयुर्वेद को कोई सहयोग नहीं दिया जायेगा मतलब हमारे देश की विद्या हमारे ही देश में ख़त्म हो जाये ये साजिस की गयी | आयुर्वेद को अंग्रेजों ने नष्ट करने का भरसक प्रयास किया था लेकिन ऐसा कर नहीं पाए | दुनिया में जितने भी पैथी हैं उनमे ये होता है क़ि पहले आप बीमार हों तो आपका इलाज होगा लेकिन आयुर्वेद एक ऐसी विद्या है जिसमे कहा जाता है क़ि आप बीमार ही मत पड़िए |  आपको मैं एक सच्ची घटना बताता हूँ -जोर्ज वाशिंगटन जो क़ि अमेरिका का पहला राष्ट्रपति था वो दिसम्बर 1799 में बीमार पड़ा और जब उसका बुखार ठीक नहीं हो रहा था तो उसके डाक्टरों ने कहा क़ि इनके शरीर का खून गन्दा हो गया है जब इसको निकाला जायेगा तो ये बुखार ठीक होगा और उसके दोनों हाथों क़ि नसें डाक्टरों ने काट दी और खून निकल जाने की वजह से जोर्ग वाशिंगटन मर गया | ये घटना 1799 की है और 1780 में एक अंग्रेज भारत आया था और यहाँ से प्लास्टिक सर्जरी सीख के गया था | मतलब कहने का ये है क़ि हमारे देश का चिकित्सा विज्ञान कितना विकसित था उस समय | और ये सब आयुर्वेद की वजह से था और उसी आयुर्वेद को आज हमारे सरकार ने हाशिये पर पंहुचा दिया है |   
  • इस संधि के हिसाब से हमारे देश में गुरुकुल संस्कृति को कोई प्रोत्साहन नहीं दिया जायेगा | हमारे देश के समृद्धि और यहाँ मौजूद उच्च तकनीक की वजह ये गुरुकुल ही थे | और अंग्रेजों ने सबसे पहले इस देश की गुरुकुल परंपरा को ही तोडा था, मैं यहाँ लार्ड मेकॉले की एक उक्ति को यहाँ बताना चाहूँगा जो उसने 2 फ़रवरी 1835 को ब्रिटिश संसद में दिया था, उसने कहा था "“I have traveled across the length and breadth of India and have not seen one person who is a beggar, who is a thief, such wealth I have seen in this country, such high moral values, people of such caliber, that I do not think we would ever conquer this country, unless we break the very backbone of this nation, which is her spiritual and cultural heritage, and, therefore, I propose that we replace her old and ancient education system, her culture, for if the Indians think that all that is foreign and English is good and greater than their own, they will lose their self esteem, their native culture and they will become what we want them, a truly dominated nation” | गुरुकुल का मतलब हम लोग केवल वेद, पुराण,उपनिषद ही समझते हैं जो की हमारी मुर्खता है अगर आज की भाषा में कहूं तो ये गुरुकुल जो होते थे वो सब के सब Higher Learning Institute हुआ करते थे | (इन गुरुकुलों के बारे में विस्तार से बाद में लिखूंगा)  
  • इस संधि में एक और खास बात है | इसमें कहा गया है क़ि अगर हमारे देश के (भारत के) अदालत में कोई ऐसा मुक़दमा आ जाये जिसके फैसले के लिए कोई कानून न हो इस देश में या उसके फैसले को लेकर संबिधान में भी कोई जानकारी न हो तो साफ़ साफ़ संधि में लिखा गया है क़ि वो सारे मुकदमों का फैसला अंग्रेजों के न्याय पद्धति के आदर्शों के आधार पर ही होगा, भारतीय न्याय पद्धति का आदर्श उसमे लागू नहीं होगा | कितनी शर्मनाक स्थिति है ये क़ि हमें अभी भी अंग्रेजों का ही अनुसरण करना होगा |
  • भारत में आज़ादी की लड़ाई हुई तो वो ईस्ट इंडिया कम्पनी के खिलाफ था और संधि के हिसाब से ईस्ट इंडिया कम्पनी को भारत छोड़ के जाना था और वो चली भी गयी लेकिन इस संधि में ये भी है क़ि ईस्ट इंडिया कम्पनी तो जाएगी भारत से लेकिन बाकि 126 विदेशी कंपनियां भारत में रहेंगी और भारत सरकार उनको पूरा संरक्षण देगी | और उसी का नतीजा है क़ि ब्रुक बोंड, लिप्टन, बाटा, हिंदुस्तान लीवर (अब हिंदुस्तान यूनिलीवर) जैसी 126 कंपनियां आज़ादी के बाद इस देश में बची रह गयी और लुटती रही और आज भी वो सिलसिला जारी है |
  • अंग्रेजी का स्थान अंग्रेजों के जाने के बाद वैसे ही रहेगा भारत में जैसा क़ि अभी (1946 में) है और ये भी इसी संधि का हिस्सा है | आप देखिये क़ि हमारे देश में, संसद में, न्यायपालिका में, कार्यालयों में हर कहीं अंग्रेजी, अंग्रेजी और अंग्रेजी है जब क़ि इस देश में 99% लोगों को अंग्रेजी नहीं आती है | और उन 1% लोगों क़ि हालत देखिये क़ि उन्हें मालूम ही नहीं रहता है क़ि उनको पढना क्या है और UNO में जा के भारत के जगह पुर्तगाल का भाषण पढ़ जाते हैं |
  • आप में से बहुत लोगों को याद होगा क़ि हमारे देश में आजादी के 50 साल बाद तक संसद में वार्षिक बजट शाम को 5:00 बजे पेश किया जाता था | जानते है क्यों ? क्योंकि जब हमारे देश में शाम के 5:00 बजते हैं तो लन्दन में सुबह के 11:30 बजते हैं और अंग्रेज अपनी सुविधा से उनको सुन सके और उस बजट की समीक्षा कर सके | इतनी गुलामी में रहा है ये देश | ये भी इसी संधि का हिस्सा है |
  • 1939 में द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हुआ तो अंग्रेजों ने भारत में राशन कार्ड का सिस्टम शुरू किया क्योंकि द्वितीय विश्वयुद्ध में अंग्रेजों को अनाज क़ि जरूरत थी और वे ये अनाज भारत से चाहते थे | इसीलिए उन्होंने यहाँ जनवितरण प्रणाली और राशन कार्ड क़ि शुरुआत क़ि | वो प्रणाली आज भी लागू है इस देश में क्योंकि वो इस संधि में है | और इस राशन कार्ड को पहचान पत्र के रूप में इस्तेमाल उसी समय शुरू किया गया और वो आज भी जारी है | जिनके पास राशन कार्ड होता था उन्हें ही वोट देने का अधिकार होता था | आज भी देखिये राशन कार्ड ही मुख्य पहचान पत्र है इस देश में |
  • अंग्रेजों के आने के पहले इस देश में गायों को काटने का कोई कत्लखाना नहीं था | मुगलों के समय तो ये कानून था क़ि कोई अगर गाय को काट दे तो उसका हाथ काट दिया जाता था | अंग्रेज यहाँ आये तो उन्होंने पहली बार कलकत्ता में गाय काटने का कत्लखाना शुरू किया, पहला शराबखाना शुरू किया, पहला वेश्यालय शुरू किया और इस देश में जहाँ जहाँ अंग्रेजों की छावनी हुआ करती थी वहां वहां वेश्याघर बनाये गए, वहां वहां शराबखाना खुला, वहां वहां गाय के काटने के लिए कत्लखाना खुला | ऐसे पुरे देश में 355 छावनियां थी उन अंग्रेजों के | अब ये सब क्यों बनाये गए थे ये आप सब आसानी से समझ सकते हैं | (कभी मौका मिला तो गाय के भारत में काटने के इतिहास के बारे में लिखूंगा) | अंग्रेजों के जाने के बाद ये सब ख़त्म हो जाना चाहिए था लेकिन नहीं हुआ क्योंक़ि ये भी इसी संधि में है |
  • हमारे देश में जो संसदीय लोकतंत्र है वो दरअसल अंग्रेजों का वेस्टमिन्स्टर सिस्टम है | ये अंग्रेजो के इंग्लैंड क़ि संसदीय प्रणाली है | ये कहीं से भी न संसदीय है और न ही लोकतान्त्रिक है| लेकिन इस देश में वही सिस्टम है क्योंकि वो इस संधि में कहा गया है | और इसी वेस्टमिन्स्टर सिस्टम को महात्मा गाँधी बाँझ और वेश्या कहते थे (मतलब आप समझ गए होंगे) |
ऐसी हजारों शर्तें हैं | मैंने अभी जितना जरूरी समझा उतना लिखा है | मतलब यही है क़ि इस देश में जो कुछ भी अभी चल रहा है वो सब अंग्रेजों का है हमारा कुछ नहीं है | अब आप के मन में ये सवाल हो रहा होगा क़ि पहले के राजाओं को तो अंग्रेजी नहीं आती थी तो वो खतरनाक संधियों (साजिस)  के जाल में फँस कर अपना राज्य गवां बैठे लेकिन आज़ादी के समय वाले नेताओं को तो अच्छी अंग्रेजी आती थी फिर वो कैसे इन संधियों के जाल में फँस गए | इसका कारण थोडा भिन्न है क्योंकि आज़ादी के समय वाले नेता अंग्रेजों को अपना आदर्श मानते थे इसलिए उन्होंने जानबूझ कर ये संधि क़ि थी | वो मानते थे क़ि अंग्रेजों से बढियां कोई नहीं है इस दुनिया में | भारत की आज़ादी के समय के नेताओं के भाषण आप पढेंगे तो आप पाएंगे क़ि वो केवल देखने में ही भारतीय थे लेकिन मन,कर्म और वचन से अंग्रेज ही थे | वे कहते थे क़ि सारा आदर्श है तो अंग्रेजों में, आदर्श शिक्षा व्यवस्था है तो अंग्रेजों की, आदर्श अर्थव्यवस्था है तो अंग्रेजों की, आदर्श चिकित्सा व्यवस्था है तो अंग्रेजों की, आदर्श कृषि व्यवस्था है तो अंग्रेजों की, आदर्श न्याय व्यवस्था है तो अंग्रेजों की, आदर्श कानून व्यवस्था है तो अंग्रेजों की | हमारे आज़ादी के समय के नेताओं को अंग्रेजों से बड़ा आदर्श कोई दिखता नहीं था और वे ताल ठोक ठोक कर कहते थे क़ि हमें भारत अंग्रेजों जैसा बनाना है | अंग्रेज हमें जिस रस्ते पर चलाएंगे उसी रास्ते पर हम चलेंगे | इसीलिए वे ऐसी मूर्खतापूर्ण संधियों में फंसे | अगर आप अभी तक उन्हें देशभक्त मान रहे थे तो ये भ्रम दिल से निकाल दीजिये | और आप अगर समझ रहे हैं क़ि वो ABC पार्टी के नेता ख़राब थे या हैं तो XYZ पार्टी के नेता भी दूध के धुले नहीं हैं | आप किसी को भी अच्छा मत समझिएगा क्योंक़ि आज़ादी के बाद के इन 64 सालों में सब ने चाहे वो राष्ट्रीय पार्टी हो या प्रादेशिक पार्टी,  प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से राष्ट्रीय स्तर पर सत्ता का स्वाद तो सबो ने चखा ही है | खैर ...............

तो भारत क़ि गुलामी जो अंग्रेजों के ज़माने में थी, अंग्रेजों के जाने के 64 साल बाद आज 2011 में जस क़ि तस है क्योंकि हमने संधि कर रखी है और देश को इन खतरनाक संधियों के मकडजाल में फंसा रखा है | बहुत दुःख होता है अपने देश के बारे जानकार और सोच कर | मैं ये सब कोई ख़ुशी से नहीं लिखता हूँ ये मेरे दिल का दर्द होता है जो मैं आप लोगों से शेयर करता हूँ |

ये सब बदलना जरूरी है लेकिन हमें सरकार नहीं व्यवस्था बदलनी होगी और आप अगर सोच रहे हैं क़ि कोई मसीहा आएगा और सब बदल देगा तो आप ग़लतफ़हमी में जी रहे हैं | कोई हनुमान जी, कोई राम जी, या कोई कृष्ण जी नहीं आने वाले | आपको और हमको ही ये सारे अवतार में आना होगा, हमें ही सड़कों पर उतरना होगा और और इस व्यवस्था को जड मूल से समाप्त करना होगा | भगवान भी उसी की मदद करते हैं जो अपनी मदद स्वयं करता है |

आपने धैर्यपूर्वक पढ़ा इसके लिए आपका धन्यवाद् | और अच्छा लगा हो तो इसे फॉरवर्ड कीजिये, आप अगर और भारतीय भाषाएँ जानते हों तो इसे उस भाषा में अनुवादित कीजिये (अंग्रेजी छोड़ कर), अपने अपने ब्लॉग पर डालिए,.... मतलब बस इतना ही है की ज्ञान का प्रवाह होते रहने दीजिये |


एक भारत स्वाभिमानी
रवि  वर्मा 

...और अब यमुनानगर में गूंडा राज ?

हत्यायों के बाद शवों को ले जाती पुलिस 
कभी थ सब यूपी बिहार में होने किओ बातें कही सुनी जाती थी लेकिन अब गूंडों की मनमानियां पूरे देश में फैलती जा रही हैं. जिस को चाहा लूट लिया, जिसे चाहा काट दिया, जिसे चाहा गोली मार दी...यह सब अब आम होता जा रहा है. अब हत्यारों ने यमुना नगर में खून खराबा करके साबित कर दिया है की उन्हें हरियाणा में भी किसी का कोई भय नहीं.  यमुनानगर से मिली ख़बरों के मुताबिक एक गर्भवती महिला समेत एक ही परिवार के पांच लोगों की गर्दन काटकर हत्या कर दी गयी. महिला के पेट में छह माह के जुड़वां बच्चों का गर्भ बताया जा रहा था. लुटेरों ने खुल कर उत्पात मचाया मानो उन्हें किसी का डर न हो.  खूनखराबे के इस कहर में वारदात में मात्र  डेढ़ बरस  की बच्ची ही बच पाई.आशंका जतायी जा रही है कि आरोपियों ने पहले साजिश के तहत उन्हें नशीला पदार्थ पिलाया और बाद में हत्या कर दी. पुलिस ने अज्ञात हत्या का मामला दर्जकर जांच शुरू कर दी है.
पंजाब केसरी में छपी खबर 
गांव कान्हड़ी कलां निवासी सतपाल सिंह (50) व उसका बड़ा भाई गोपाल पन्द्रह साल से अपने परिवारों के साथ यमुनानगर की जम्मू कालोनी में  मकान बनाकर रह रहे थे। मृतक सतपाल सब्जी मंडी में मुनीम गिरी का काम करता था. उसके दो बेटे मुकेश व रिंकू टैक्सी आदि चलाने का काम करते थे. मुकेश की उम्र थी 30 वर्ष और रिंकू  केवल 22 साल का था. शुक्रवार देर शाम सतपाल सिंह अपने पूरे परिवार के साथ घर में देखा गया था लेकिन शनिवार सुबह सतपाल के घर से किसी को कोई आवाज सुनाई नहीं दी. इस सामूहिक हत्याकांड का पता तब चला जब सुबह सात बजे के करीब सतपाल की डेढ़ वर्षीय पौती बबली ने पड़ौस में रह रहे अपने बड़े दादा गोपाल के घर जाकर रोना शुरू कर दिया. पहले फल तो किसी को इस का आभास तक न हुआ पर जब गोपाल व उसके परिवार ने सतपाल के घर जाकर देखा तो वहां पर सतपाल व उसकी 45 वर्षीय पत्नी बीना, तीस वर्ष की उम्र का बड़ा बेटा मुकेश व उसकी २६ वर्षीय पत्नी सुमन  तथा 22 साल की उम्र का छोटा बेटा रिंकू खून से लथपथ हालत में मृत पड़े थे. तेजधार हथियार से उनकी गर्दनें कटी पड़ी थीं. पुलिस ने घटना स्थल का मुआयना कियाऔर मौके पर सीन ऑफ क्राईम ब्रांच के सदस्यों ने पहुंचकर सबूतों को अपने कब्जे में लिया. इसके बाद पुलिस ने पांचों शवों को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम करवाया और अज्ञात हत्या का मामला दर्ज कर आरोपियों की तलाश शुरू कर दी.। घर के अंदर चारों तरफ खून बिखरा हुआ था और सबके शव कमरें में अलग पड़े थे. हत्यायें जिस बेदर्दी से की गईं,उससे ऐसा लगता है कि यह हत्याकांड किसी पुरानी दुश्मनी का परिणाम है. गोपाल ने बताया कि उनके परिवार की किसी के साथ कोई दुश्मनी नहीं थी.  पुलिस अधीक्षक मितेष जैन का कहना है कि मामले की जांच आरंभ कर दी गई है. जांच के बाद ही पता चल पाएगा कि इस हत्याकांड के लिए काउ जिम्मदार है ? इस खुनी वारदात के बाद  पूरे शहर में दहशत सी छाई हुयी है. अगर आपके क्षेत्र में भी कुछ ऐसा ही होता है तो उसकी जानकारी हमें भी भेजें. अगर आप चाहेंगे तो आपका नाम छिपा कर रखा जायेगा. आपके विचारों की इंतज़ार इस बार भी बनी रहेगी.       -रेक्टर कथूरिया