परम पूज्य श्री कृष्णा स्वामी जी ने शनिगांव में उपस्थित भक्तों के समूह को संबोधित करते हुए कहा कि हर आदमी जीवन में सुख पाना चाहता है, गौर से देखें तो हमारी सारी इच्छाएं, सारी दौड़ सुख पाने के लिए ही हैं, लेकिन फिर भी सुख किसी को मिलता हुआ लग नहीं रहा. हर आदमी यह सोचता है कि दूसरे सुखी हैं , गरीब को लगता है कि अमीर सुखी हैं , जरा अमीर से पूछ के देखिये उसके दुखों का भी वही अनुपात है जो गरीब का है. गरीब के पास अगर दो सुख हैं तो दो दुःख हैं उसी तरह अमीर के पास अगर दो सौ सुख हैं तो दो सौ दुःख हैं.
फिर हम सब की इच्छाएं पूरी हो भी नहीं सकती क्योंकि एक की इच्छा दूसरे को काट देती है. मान लीजिये एक परिवार में छ लोग हैं और भगवान धरती पर आ कर एक एक से उसकी इच्छा पूछे तो पति जो मांगेगा पत्नी उसको फ़ौरन कैंसल कर के कुछ और मांगेगी , बच्चे कुछ और, दादा दादी कुछ और, इस तरह खुद ईश्वर भी हम को खुश नहीं कर सकता.
सच तो यह है कि बाहरी जीवन की परिस्थितियों में सुख है ही नहीं. जिन परिस्थितियों को बदलने का उपाय नहीं है उन्हें जैसा है वैसा रहने दें. अपने सुख को बाहर नहीं भीतर खोजें. यह भी सच है कि अपने अन्दर ख़ुशी मिलना बहुत कठिन है लेकिन यह भी याद रखे कि बाहर ख़ुशी मिलना तो असंभव ही है.
आत्मा की मांग पूरी करें. अन्दर चलें, बाहर की चीजों से ऊपर उठने की कोशिश करें वरना जन्मो जन्मो तक घूमते ही रहेंगे. जिस मर्जी मंदिर , डेरे या बाबे के पास चले जायें सुख नहीं मिलेगा और अगर मिलेगा भी तो वह क्षणिक होगा आत्मा को तृप्त नहीं करेगा.
हवन यग्य के बाद भक्तों ने शनिदेव् की प्रेमपूर्वक आरती की, प्रसाद वितरण के साथ समारोह का समापन हुआ.
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