कोरोना से बचाने को बनाई एल्प्रो सौक्शम नामक आयुर्वेदिक दवाई
डाक्टर बी एस औलख |
कोरोना के लिए खोजी गई इस दवा को आयुर्वेदिक विभाग, पंजाब सरकार की ओर से अब लक्षण आधारित ईलाज को मंजूरी मिल गई है। यह खुलासा आज यहां क्रिश्चीयन मैडीकल कॉलेज, लुधियाना के रह चुके लैक्चरार और फिलहाल ग्रैगर मैंडल ईस्टीच्यूट फार रिसर्च इन जैनिटिक्स, लुधियाना के डायरैक्टर, मशहूर अन्तर्राष्ट्रीय पेटैंट होल्डर वैज्ञानिक बी.एस. औलख ने किया। मीडीया से खचाखच भरे हुए प्रेस कान्फ्रंस रूम में यर सी जगह ही खली नहीं थी। खुद डाक्टर औलख विभिन्न मीडिया चैनलों को बाईट देते देते थक चुके थे।
गौरतलब है कि बी.एस औलख ऐक प्रोफैशनल दवा वैज्ञानिक हैं जिन्हें यू.एस.ऐ. आस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड, साऊथ अफ्रीका, कैनेडा, वगैरह की सरकारें पहले ही दवा खोज पेटैंटों से नवाज़ चुकी हैं। इसके लिए उन्हें कितना बड़ा संघर्ष करना पड़ा यह एक अलग और लम्बी कहानी है।
मौजूदा खोज डा. औलख की दूसरी खोज है जो कई प्रकार के वायरसों पर प्रभावी एक ब्राड सपैक्ट्रम ऐंटी वायरल ड्रग है लेकिन आयुर्वैदिक विभाग ने उसे चार मुख्य रोग लक्षणों के ईलाज के लिए मंज़ूर किया है जो आमतौर पर नार्मल व गम्भीर किस्म के कोरोना मरीज़ों में मिलते हैं। इस मंजूरी के लिए उन्हें और उनकी बने दवा को कई परीक्षणों में से गुजरना पड़ा।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक कोरोना के मुख्य लक्षण हैं, लगातार सूखी खाँसी, बुख़ार, साँस की टूटन और अँदरूनी अँगों की सोजि़श। मौजूदा दवा इन सभी चार कैटेगरी के लिए मंजूर की गई है। यह उसे कोरोना के ईलाज के लिए एक आदर्श दवा के तौर पर स्थापित करती है।
वैज्ञानिक डा. औलख का दावा है कि इस दवाई से कोरोना से होने वाली मौतों में बहुत जल्द और बहुत ही तेज़ी से कमी आयेगी। कोरोना मरीज़ों में मौत का कारण फेफड़े, दिल, किडनी बरेन बगैरह के कोमल उत्तकों की सोजि़श व फिर उनमें होने वाली सड़न है जो इस दवा से कँट्रोल की जा सकती है।
इसके अलावा दर्दनाक सूखी खाँसी, बुखार, साँस लेने में दिक्कत भी कोरोना मरीज़ों को बहुत तकलीफ़ देते हैं जिसकी वजह से पूरे बदन में दर्द, बेपनाह थकावट व कमज़ोरी महसूस होती है। इस दवा से इन सब से राहत मिलेगी।
एल्प्रो सौक्शम नामक यह दवा शुद्ध, कुदरती जड़ी बूटियों से तैयार की गई है जो 500 मिलीग्राम के कैप्सूलों के रूप में 8 कैप्सूलों के पैक में मिलती है। रोज़ाना दो कैप्सूलों के साथ चार दिन के पूरे कोर्स की कीमत 320 रूपये है।
करीब 20 साल पहले मुँह खुर के वायरस की इंफैक्शन रोकने के लिए इस दवाई की खोज हुई थी। कुछ महीने पहले जब इस बीमारी का अचानक विस्फोट हुआ तो यह दवा इस पर फिर से प्रभावी पाई गई। देश के प्रधानमंत्री व सूबे के मुख्यमंत्री को बाकायदा इस कामयाबी की खबर दे दी गई है। इसके अलावा इंसानी इनफ़लूऐंजा पर भी यह काफी प्रभाव पाई गई है।
इस दवा के कोराना मरीज़ों पर इस्तेमाल का ख्याल तब आया जब कोरोना महामारी अचानक फूटी व जैसा कि विश्व सेहत संस्था ने बाद में माना, भारत समेत पूरी दुनियां में ज़ीका वायरस की दवाई रैमडैसवीर व इनफ्लूऐंजा की दवाई फेवीपीरावीर को जरूरी दस्तावेजों के अभाव में भी आनन फानन में मंज़ूरी दे दी गई।
बी.एस. औलख जो पहले ही इस दवा के एंटीवायरल प्रभाव पर खेाज कर रहा था ने प्रधानमंत्री, सेहत व आयुश मंत्री व अन्य अधिकारियों को इस बारे विधिवत पत्र भेजे। उसने इण्डियन कौंसिल फॉर मैडीकल रीसर्च व डिपार्टमेंट ऑफ हैल्थ रीसर्च को भी रिसर्च प्रोजैक्ट सबमिट किए जिनके सहयोग का आज भी इन्तज़ार है।
वैज्ञानिक ने उपरोक्त रोग लक्ष्णों वाले मरीज़ों पर इस दवाई की इजाजत देने के लिए आयुर्वैदिक विभाग का धन्यवाद किया व कहा कि माननीय प्रधानमंत्री जी के ‘मेक इन इण्डिया’ व ‘आत्मनिर्भर’ पहल के लिए इससे बहुत मदद मिलेगी।
बी.एस. औलख इससे पहले विश्व की सर्वप्रथम सैक्स फिक्सर दवा की खोज कर चुका है जिससे डेयरी पशुओं में केवल मादा संतान पैदा करके डेयरी उत्पादकता व किसानों को होने वाले मुनाफ़े में बेहिसाब बढ़ोत्तरी की जा सकती है।
वैज्ञानिक ने बड़े दुखी हृदय से कहा कि विश्व सेहत संस्था के प्रभाव अधीन, दुनिया भर की सरकारें प्रो-कार्पोरेट व विज्ञान विरोधी कानून जैसे कि भारत सरकार द्वारा पास किया ‘‘न्यू ड्रगज़ एण्ड कलिनिकल ट्रायलज रूल्ज़, 2019’’, कानून शामिल है, बना रही हैं। इससे दवा खोज के असली नायकों यानि सालीटरी दवा वैज्ञानिकों से खोज करने का हक ही छीन लिया गया है और कार्पोरेट घरानों के लिए पूरा मैदान ही खुला छोड़ दिया गया है।
उन्होंने कहा कि सालीटरी दवा वैज्ञानिकों से खेाज का अधिकार छीनना शर्मनाक है क्योंकि पैनिसिलीन व इैन्सुलीन की महान खोजें करने वाले अलेक्जैंडर फलैमिंग व जौहन बाँटिंग भी सालीटरी इन्वैंटर ही थे। आज की तारीख में जबकि ऐडज़, कैंसर, अस्थमा, मिर्गी, वगैरह लाईलाज़ बीमारियों की लिस्ट पहले ही बड़ी लम्बी है और नित्य नए वायरस सामने आ रहे हैं, हमें हर इन्सान को सेहतमंद रखने को नये दवा इलाज़ों की ज़रूरत है।
तेजी से रूप बदल रहे वायरस के खिलाफ वैक्सीनें पहले ही प्रभावी साबित नहीं हो रही हैं। जब कुदरत माँ ने सब इन्सानों को दिमाग की दात बख्शी है और इसी दिमाग का इस्तेमाल करके ही वैज्ञानिक नयी दवाईयांे की खोज करते हैं; इस संबंध में उनको रोकने का हर यत्न न केवल उनसे इन्सान होने का हक छीनता है बल्कि यह कुदरत माँ का भी घोर अपमान है।
सरकार को इस संबंध में बहुत ही सोच समझ के फैसले लेने चाहिएं और अगर विश्व सेहत संस्था अपना विज्ञान विरोधी व मानवता विरोधी रवैया जारी रखती है तो इसमें से बाहर निकलने से भी गुरेज़ नहीं करना चाहिए। विज्ञान व वैज्ञानिकों को बढ़ावा देना केवल वक्त की ही जरूरत नहीं है बल्कि लाईलाज बीमारियों के हाथों तड़प तड़प कर मर रही इन्सानियत की यह पुकार भी है।
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