Dec 21, 2018, 2:07 PM
21 दिसंबर: जब श्री जीवन नगर में कायम हुई थी त्याग की मिसाल
21 दिसंबर 2012 को त्याग का अलौकिक दृश्य देखने को मिला, जब श्री जीवन नगर, सिरसा में हजारों की संख्या में नामधारी संगत एकत्रित हुई पर माहौल शोकपूर्ण था क्योंकि मौका था सतगुरु जगजीत सिंह जी को श्रद्धांजलि देने का, जिन्होंने 13 दिसंबर 2012 को देह रूपी चोले को त्यागा था।
श्रद्धा सुमन अर्पित करने का यह आयोजन ठाकुर दलीप सिंह जी और उनकी संगत की तरफ से किया गया था क्यूंकि श्री भैणी साहिब में रहने वाले ठाकुर उदय सिंह, जगतार सिंह आदि ने सतगुरु जगजीत सिंह जी के ब्रह्मलीन होने के पश्चात् भैणी साहिब पर कब्ज़ा करके पुलिस और प्राइवेट सेक्योरिटी लगवाकर पूरी तरह से प्रतिबंध लगवा दिया कि यहाँ संगत के आलावा चाहे कोई भी ऐरा-गैरा तो आ सकता है पर ठाकुर उदय सिंह के बड़े भ्राता ठाकुर दलीप और अपने सगे माता बेबे दलीप कौर को भैणी साहिब के अंदर आने की सख्त मनाही थी। यहाँ तक कि सतगुरु जी के अंतिम संस्कार के समय भी ठाकुर दलीप सिंह जी को अंदर आने की इजाजत नहीं मिली और अपनी मर्जी से अगले गुरु का चुनाव भी कर लिया गया। इन परिस्थितियों को देखते हुए श्री जीवन नगर की संगत और सतगुरु जगजीत सिंह जी के बड़े सपुत्र श्री ठाकुर दलीप सिंह जी की तरफ से श्री जीवन नगर इलाके में श्रद्धांजलि समागम करना पड़ा। इस समागम ने इस बात को साबित कर दिया कि जहाँ ठाकुर दलीप सिंह जी त्याग की मूरत हैं वहीं ठाकुर उदय सिंह प्रॉपर्टी और गद्दी के अभिलाषी हैं।
श्रद्धा सुमन अर्पित करने का यह आयोजन ठाकुर दलीप सिंह जी और उनकी संगत की तरफ से किया गया था क्यूंकि श्री भैणी साहिब में रहने वाले ठाकुर उदय सिंह, जगतार सिंह आदि ने सतगुरु जगजीत सिंह जी के ब्रह्मलीन होने के पश्चात् भैणी साहिब पर कब्ज़ा करके पुलिस और प्राइवेट सेक्योरिटी लगवाकर पूरी तरह से प्रतिबंध लगवा दिया कि यहाँ संगत के आलावा चाहे कोई भी ऐरा-गैरा तो आ सकता है पर ठाकुर उदय सिंह के बड़े भ्राता ठाकुर दलीप और अपने सगे माता बेबे दलीप कौर को भैणी साहिब के अंदर आने की सख्त मनाही थी। यहाँ तक कि सतगुरु जी के अंतिम संस्कार के समय भी ठाकुर दलीप सिंह जी को अंदर आने की इजाजत नहीं मिली और अपनी मर्जी से अगले गुरु का चुनाव भी कर लिया गया। इन परिस्थितियों को देखते हुए श्री जीवन नगर की संगत और सतगुरु जगजीत सिंह जी के बड़े सपुत्र श्री ठाकुर दलीप सिंह जी की तरफ से श्री जीवन नगर इलाके में श्रद्धांजलि समागम करना पड़ा। इस समागम ने इस बात को साबित कर दिया कि जहाँ ठाकुर दलीप सिंह जी त्याग की मूरत हैं वहीं ठाकुर उदय सिंह प्रॉपर्टी और गद्दी के अभिलाषी हैं।
इस समागम में एकत्रित संगत बहुत वैरागमयी अवस्था में थी क्योंकि संगत को सतगुरु जगजीत सिंह जी का बिछड़ना बर्दाश्त नहीं हो रहा था। इस श्रद्धांजलि समागम में बहुत बड़ा खुलासा हुआ। यह खुलासा किया डॉक्टर इक़बाल सिंह जी ने जो सतगुरु जगजीत सिंह जी के निजी डॉक्टर रहे। वह आयुर्वैदिक, फिजियोथेरेपी, एक्यूपंचर आदि तरीकों से सतगुरु जी की सेवा करते थे।
इस ऐतिहासिक आयोजन को सम्बोधन करते हुए डॉक्टर इक़बाल सिंह ने गुरुता गद्दी को लेकर एक बहुत बड़ा खुलासा किया। उन्होंने बताया कि 29 जनवरी 2012 को जब वह सतगुरु जगजीत सिंह जी के पास अकेले बैठे उनकी सेवा का सौभाग्य प्राप्त कर रहे थे तो सतगुरु जी ने उनसे कहा कि मैंने तुम्हे एक बात बतानी है पर तुम मुझे वायदा करो कि यह बात किसी को पता न चले। तुमने अभी किसी से कुछ नहीं बताना। फिर किसी कपड़े में लपेटा हुआ समान मुझे थमाते हुए कहा कि जब मैं यह शरीर त्याग दूंगा तो यह अमानत बड़े बेटे दलीप सिंह जी को देनी है और सारी संगत को यह बात बतानी है कि मेरे बाद दलीप सिंह जी को ही अपना गुरु मानें। डॉ साहिब ने वह अमानत संगत के सामने खोल के दिखाई। इसमें कुछ वस्त्र के अलावा एक दस्तार, एक नारियल, पांच पैसे तांबे के व एक आसन था। डॉक्टर साहिब ने ठाकुर दलीप सिंह जी के चरणों में यह अमानत लेने की विनती की। उनके साथ सतगुरु जगजीत सिंह जी के निजी सेवक दीदार सिंह और पंथ के सिरमौर सूबा साहिबान भी खड़े थे। उन सभी ने भी विनती कि सतगुरु जी के हुक्म अनुसार अब आप जी ही पंथ की बागडोर सम्भालो और उन्हें दुविधा से बाहर निकालें। यह सारा दृश्य देख-सुन कर निराश हुई संगत को थोड़ी राहत मिली और सारा पंडाल जैकारों से गूंज उठा और कितनी देर गूंजता रहा। फिर एक आशा भरी नज़र से संगत ने जैसे ही ठाकुर दलीप सिंह जी की तरफ देखा तो सभी दंग रह गए। जब ठाकुर दलीप सिंह जी ने बड़ी ही शालीनता और विनम्रता से सतगुरु जी की भेजी हुई अमानत ले कर अपने मस्तक से लगाई फिर बहुत ही सम्मान से माता चंद कौर जी की तस्वीर के आगे रख दी। आप ने संगत को सम्बोधित करते हुए कहा कि एक तरफ मेरे छोटे भाई गद्दी पर बैठे हैं दूसरी तरफ मैं गद्दी को अपना कर पंथ को विभाजित नहीं करना चाहता। मैंने पंथ को जोड़ना है। तोड़ना नहीं है। इसके आलावा इस समय माता जी पंथ की सर्वोच्च हस्ती हैं। मैंने उनके आगे यह अमानत रख दी है और मैं चाहता हूँ कि जब तक हमारी आपसी एकता नहीं हो जाती तब तक आप सभी लोग माता जी को गुरु रूप में स्वीकार करें क्योंकि माता जी सभी के लिए सम्मानीय हैं और सतगुरु जगजीत सिंह जी की धर्मपत्नी भी हैं। इस पर संगत को हौंसला नहीं हो रहा था। संगत तो इस तरह तड़प रही थी जैसे पानी के बिना मछली। पर ठाकुर दलीप सिंह जी अपने वचन पर अटल रहे और त्याग का वह महान सबूत दिया जो बेमिसाल था और वह त्याग था केवल पंथ की एकता के लिए।
इसके आलावा आपके द्धारा आज भी जो प्रयत्न किए जा रहे हैं उन्हें देखकर यही प्रतीत होता है कि वे इस महान पंथक-एकता के साथ-साथ आपसी एकता व् सौहार्द्य को बढ़ावा देने के लिए निरंतर यत्नशील हैं। रिपोर्ट:: प्रितपाल सिंह खालसा--7814545781 प्रेषक:राजपाल कौर
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