Sun, Jan 8, 2017 at 10:37 AM
एसपीएस हॉस्पिटल के ईएनटी सर्जन डॉ. राजीव कपिला ने बताया कि आम तौर पर बच्चे के गूंगा होने पर लोग उसे किस्मत में लिखा होना मान लेते हैं। लेकिन साइंस ने इतनी तरक्की कर ली है कि अब बच्चों को जीवन भर गूंगा-बहरा रहने से बचाया जा सकता है। आम तौर पर प्री-मेच्योर पैदा होने वाले बच्चों, जन्म के समय ज्यादा पीलिया से ग्रस्त रहने वाले बच्चे, जन्म के बाद ज्यादा दिनों तक नर्सरी में वेंटिलेटर पर रहने वाले बच्चे और पारिवारिक हिस्ट्री वाले बच्चों में यह समस्या आती है। पंजाब में 1000 बच्चों में से एक बच्चा इस तरह की समस्या के साथ पैदा होता है। उन्होंने बताया कि मां-बाप को अपने बच्चों पर नजर रखनी चाहिए। अगर बच्चा कोई तेज आवाज होने पर उस तरफ घूमकर नहीं देखता, पटाखा जैसी तेज आवाज से नहीं डरता या आपके बुलाने पर रिस्पांस नहीं देता तो यह उसके गूंगा-बहरा होने के संकेत हैं। ऐसे बच्चों का पहले साल के भीतर की कोकलियर इंप्लांट करा लेना चाहिए। इस समय की अवधि में 100 प्रतिशत सफलता की गारंटी रहती है। अगर इलाज दो साल के बाद कराया जाता है तो बच्चा सुनने तो सही समय पर लग जाता है, लेकिन उसे बोलने में काफी समय लग सकता है। डॉ. कपिला ने बताया कि इसका इलाज महंगा होने के कारण केंद्र सरकार ने इसे एडीआईपी स्कीम में कवर कर रखा है। पंजाब में केवल दो ही सेंटरों पर कोकलियर इंप्लांट होता है, जिनमें एसपीएस हॉस्पिटल भी शामिल है।
जन्म से ही नहीं सुनता हो तो दो साल की उम्र तक करा लें इंप्लांट
जागरूकता ही बच्चे को जीवन भर गूंगा-बहरा रहने से बचा सकती है
लुधियाना: 8 जनवरी 2017: (पंजाब स्क्रीन ब्यूरो):
आपका बच्चा अगर जन्म से ही कोई आवाज सुनकर रिस्पांस नहीं देता हो तो यह उसके गूंगा-बहरा होने के संकेत हो सकते हैं। पहले छह महीने तक अगर बच्चा किसी तेज आवाज के होने पर उस तरफ देखता नहीं है तो समझ लेना चाहिए कि उसका समय रहते इलाज कराने की जरूरत है। ऐसे बच्चों के लिए कोकलियर इंप्लांट ट्रीटमेंट किसी चमत्कार से कम नहीं है। लेकिन यह दो साल की उम्र तक हो जाना चाहिए। इसके बाद बच्चा सुनने और बोलने लग जाता है। इस उम्र के बाद यह ट्रीटमेंट कराने पर बच्चा सुनने तो लग जाता है, लेकिन उसे बोलने में काफी समय लग सकता है। इसका इलाज काफी महंगा होने के कारण केंद्र सरकार ने एडीआईपी योजना के तहत इस ट्रीटमेंट को कवर कर रखा है। यानि अगर आपकी सालाना आमदनी 15 हजार रुपये तक है तो इलाज का सारा खर्च सरकार उठाती है और अगर आपकी आमदनी 20 हजार रुपये सालाना है तो इलाज का 50 प्रतिशत खर्च सरकार उठाएगी।एसपीएस हॉस्पिटल के ईएनटी सर्जन डॉ. राजीव कपिला ने बताया कि आम तौर पर बच्चे के गूंगा होने पर लोग उसे किस्मत में लिखा होना मान लेते हैं। लेकिन साइंस ने इतनी तरक्की कर ली है कि अब बच्चों को जीवन भर गूंगा-बहरा रहने से बचाया जा सकता है। आम तौर पर प्री-मेच्योर पैदा होने वाले बच्चों, जन्म के समय ज्यादा पीलिया से ग्रस्त रहने वाले बच्चे, जन्म के बाद ज्यादा दिनों तक नर्सरी में वेंटिलेटर पर रहने वाले बच्चे और पारिवारिक हिस्ट्री वाले बच्चों में यह समस्या आती है। पंजाब में 1000 बच्चों में से एक बच्चा इस तरह की समस्या के साथ पैदा होता है। उन्होंने बताया कि मां-बाप को अपने बच्चों पर नजर रखनी चाहिए। अगर बच्चा कोई तेज आवाज होने पर उस तरफ घूमकर नहीं देखता, पटाखा जैसी तेज आवाज से नहीं डरता या आपके बुलाने पर रिस्पांस नहीं देता तो यह उसके गूंगा-बहरा होने के संकेत हैं। ऐसे बच्चों का पहले साल के भीतर की कोकलियर इंप्लांट करा लेना चाहिए। इस समय की अवधि में 100 प्रतिशत सफलता की गारंटी रहती है। अगर इलाज दो साल के बाद कराया जाता है तो बच्चा सुनने तो सही समय पर लग जाता है, लेकिन उसे बोलने में काफी समय लग सकता है। डॉ. कपिला ने बताया कि इसका इलाज महंगा होने के कारण केंद्र सरकार ने इसे एडीआईपी स्कीम में कवर कर रखा है। पंजाब में केवल दो ही सेंटरों पर कोकलियर इंप्लांट होता है, जिनमें एसपीएस हॉस्पिटल भी शामिल है।
No comments:
Post a Comment