Sunday, January 08, 2017

शाही इमाम पंजाब ने दी अल्पसंख्यकों के दर्द,गम और गुस्से को आवाज़

Sun, Jan 8, 2017 at 5:33 PM
सियासी पार्टियां चुनाव मेनिफेस्टो में अल्पसंख्यकों को दें विशेष स्थान
सिर्फ कब्रिस्तान ही नहीं शिक्षित संस्थान व रोजगार भी चाहिए
लुधियाना: 8 जनवरी 2017: (पंजाब स्क्रीन ब्यूरो): 
मतदान जैसे अनमोल अवसर को स्वार्थ, लालच और केवल सत्ता प्राप्ति का साधन बना देने वाले लोगों ने पिछले कुछ दशकों के दौरान जिस तरह से इस सुनहरी प्रक्रिया को अपने पांवों तले रोल कर रख दिया है उन लोगों को सीना तान कर चुनौती दी है पंजाब के शाही इमाम ने। पंजाब में 4 फरवरी को होने जा रहे चुनाव को लेकर आज यहाँ मजलिस अहरार इस्लाम हिन्द पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष व शाही इमाम पंजाब मौलाना हबीब उर रहमान सानी लुधियानवी ने कहा है कि पंजाब में अल्पसंख्यक समुदाय की समस्यायों को कभी भी किसी सरकार ने गंभीरता से नहीं लिया और सिर्फ खोखले वायदे ही किए। उन्होंने राष्ट्रीय दलों के साथ साथ रीजनल पार्टियों को भी आड़े हाथों लिया। शाही इमाम ने कहा कि राज्य में चुनाव लड़ रही राष्ट्रीय व क्षेत्रीय पार्टियो ने कभी भी अल्पसंख्यको के लिए चुनाव मेनिफेस्टो में कब्रिस्तानों की जगह से आगे कोई बात नहीं की। उन्होंने कहा कि अल्पसंख्यकों को सिर्फ कब्रिस्तान ही नहीं चाहिए बल्कि शिक्षित संस्थान और रोजगार के अवसर मिलने चाहिए। शाही इमाम ने अपील की है कि शिरोमणी अकाली दल बादल, कांग्रेस पार्टी और आम आदमी सहित अन्य राजनीतिक दलों से जुड़े हुए अल्पसंख्यक नेताओं को चाहिए कि वह अपनी-अपनी पार्टी के चुनाव मेनिफेस्टों में अल्पसंख्यकों के लिए पंजाब के सभी शहरों में हाई स्कूल, डिग्री कॉलेज बनवाने के साथ-साथ युवाओं के लिए नौकरियां दिए जाने का वादा करवाएं। शाही इमाम ने कहा कि यह बहुत दु:ख की बात है कि सिर्फ कब्रिस्तानों के लिए जगह दिए जाने की बात कर के प्रदेश के लगभग 35 लाख अल्पसंख्यकों की मूल समस्याओं को नजर अंदाज किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अल्पसंख्यक समुदाय की कुर्बानियां किसी से कम नहीं है लेकिन बीते दिनों बनाई गई स्वतंत्रता संग्राम की यादगार में पंजाब सरकार ने अल्पसंख्यक समुदाय के योगदान को नजर अंदाज कर दिया जोकि बहुत ही दु:खदायी है। शाही इमाम ने कहा कि मरने के बाद दो गज जमीन हासिल करना आसान हो गया लेकिन जीने के लिए कोई सहारा देने को तैयार नहीं। चुनावों के इस महत्वपूर्ण मौके पर शाही इमाम पंजाब का बयान वास्तव में अल्पसंख्यकों के दर्द, गम और गुस्से की आवाज़ के रूप में सामने आया है। 

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