हम एक बार फिर गाएंगे
बाज का गीत हम
एकबार फिर गाएंगे
लहूलुहान कर
खुद को
खुद के बीच से
फिर उग आएंगे
गिरेंगे हारेंगे
पर हार क्यों मानेंगे?
सौ वर्ष पहले
हम जीते थे
पर हार कब माने थे हम ?
बाज हैं हम
तोड़कर अपनी चोचे
नोचकर अपनी पंखे
फिर नया उगा लेंगे
उड़ेगे फिर आकाश में
लहरों को
फिर ललकारेंगे
बाज का गीत हम
एकबार फिर गाएंगे.
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Debajit Ghosh |
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एकबार फिर गाएंगे
लहूलुहान कर
खुद को
खुद के बीच से
फिर उग आएंगे
गिरेंगे हारेंगे
पर हार क्यों मानेंगे?
सौ वर्ष पहले
हम जीते थे
पर हार कब माने थे हम ?
बाज हैं हम
तोड़कर अपनी चोचे
नोचकर अपनी पंखे
फिर नया उगा लेंगे
उड़ेगे फिर आकाश में
लहरों को
फिर ललकारेंगे
बाज का गीत हम
एकबार फिर गाएंगे.
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