18 अक्टूबर 2016को 18:45 बजे
आपकी मौजूदगी का अहसास हम सभी को होता रहेगा
दमोह: 18 अक्टूबर 2016: (नूतन पटेरिया):
दमोह कला जगत का ध्रुव तारा आकाशगामी हो गया। वर्षो वर्षो पहले बांग्लादेश से आये परिवार में जन्मे नृत्य गुरु शंकर चटर्जी किसी परिचय के मोहताज नही है। दमोह शहर ही नही सम्पूर्ण बुंदेल खण्ड में शायद ही ऐसा कोई कला मंच हो जो जिस में शंकर चटर्जी दीक्षित किये शिष्य और शिष्या न हो।
कला की हर विद्या को अपने स्पर्श से उन्होंने झंकृत और अलंकृत किया। बंगाली परिवार में जन्मे शंकर चटर्जी यह सिध्द कर दिया कि कला और मानव का धर्म और जाती नही होती कला तो मार्ग होती है मानवता की परम सत्ता की प्राप्ति का।
जब सारा माहौल फ़िल्म और पाश्चात्य संगीत और नृत्य में खो गया हो ऐसे में इस माँ सरस्वती के वरद पुत्र ने शास्त्रीय नृत्य और संगीत की मशाल को जलाये रखा और दमोह के लगभग हर परिवार में एक सदस्य के पास यह ज्ञान की ज्योति वह सौप कर गए। जैसे ही उनकी मौत का समाचार आया कला जगत ही नही एक आम व्यक्ति भी सुबक पड़ा। कई अनेको शोक सभाए हुईं। रोते बिलखते उनके कला को समर्पित शिष्य उनके जाने का कड़वा सच सहन करने की हिम्मत जुटाते रहे। कला को सीखते नोनिहाल भी इस अनहोनी के असत्य होने की नाकाम कामना करते रहे। यह हैरानकुन था और उनके जीवन की सच्ची कला साधना का परिचायक भी की संस्मरण सुन कर छोटे छोटे बच्चे श्रद्धांजलि सभा में ही रो पड़े। की सम्वेदना को अपनी हेयर मौजूदगी में पाना किसी सच्चे साधक के कारण ही सम्भव होता है। सरस्वती कला निकेतन के संस्थापक गुरू शंकर चटर्जी को संस्था की ओर से श्रद्धांजलि दी गई। बहुत से संगठनों ने उनको अपने श्रद्धा किये। शिष्य परंपरा को निभाते हुए युक्ति उज्जैनकर, सुचिता जैन, सान्वी शिवहरे, अनुुपमा, कल्याणी, रैनी मिश्रा ने अपने गुरू को श्रद्धा सुमन समर्पित किए। इस शोक सभा में शरद मिश्रा, नारायण सिंह ठाकुर, श्याम सुंदर शुक्ला, रवि वर्मन, डॉ केदार शिवहरे, डॉ. आलोक सोनवलकर, दिलीप नामदेव, संतोश अठ्या, संजू पेंटर, आदि ने शंकर गुरू को सहज विनीत एवं शिष्यों के लिए समर्पित व्यक्तित्व बताया। बहुत से अन्य संगठनों और संस्थानों ने भी अपनी श्रद्धा और सम्मान व्यक्त किया। शायद सही संख्या का नुमान भी न लग सके।
यह सब हुआ पर कभी कोई भी लहर नही आ सकती जो उनके ज्ञान रूपी सागर की भरपाई कर सके। हम नमन करते है उस सहज हंसी का जिसे हम बसन्त पंचमी में होने वाली सरस्वती पूजन में न पायेगे पर आप सदैव रहेंगे अपने शिष्य शिष्याओं में। आप हमेशां दमोह के कला जगत में बने रहेंगे। मंचो पर जब जब प्रस्तुति देगे आप से कला सीखे आपके अपने अंश कहे जाने वाले कला प्रेमी तब तब आपकी मौजूदगी का अहसास होता रहेगा। हम आपको नही भूलेंगे और न ही वो कला निकेतन भूलेगा जिस साधारण भवन को जिले के कला और संस्कृति का केंद्र बना दिया था आपने। किसी शायर ने कहा है न जिस्म की मौत कोई मौत नहीं होती है----!
आप अब भी हैं हमारे आसपास कला की महक का अहसास दिलाते हुए बस आप नज़र आना बन्द हो गए।
--दमोह से नूतन पटेरिया
2 comments:
अश्रुपूर्ण श्रृद्धांजलि ।बाकई मे बहुत बड़ी क्षति। लेकिन पृकृति के नियम के आगे किसकी चली।जो आया सो जायेगा राजा रंक फकीर ।
बहुत नपा तुला वर्णन। अप्रतिम लेख।
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