Wednesday, July 27, 2016

"काश ! नामधारी पंथ ने भी माता जी को गुरु मान लिया होता।"

निरंकारी समुदाय ने एक अच्छा उदाहरण प्रस्तुत किया
हमारे महान देश भारत  की गौरवमयी सभ्यता के अनुसार जहाँ महान अवतारों जैसे भगवान् श्री विष्णु जी , भगवान् श्री रामचन्द्र जी , श्री सतगुरु नानक देव जी , श्री सतगुरु गोबिन्द सिंह जी आदि की आराधना की जाती है वहीँ लक्ष्मी माता , दुर्गा माता ,सीता माता जैसी देवीयों तथा देवी स्वरूप माताओं को भी पूजनीय स्थान दिया जाता है। श्री सतगुरु गोबिन्द सिंह जी ने तो माता साहिब देवां जी को समूचे खालसा पंथ की माता होने का मान बक्शा तथा गुरबाणी में भी माताओं  को बार बार धन्य कहा है। जैसे :- 
धन्नु सु वंसु  धन्नु सु पिता धन्नु सु माता जिनि जन जणे।। (११३५ )  
धनु जननी जिनि जाइिआ धन्नु पिता परधानु।।  (३२ )
धनि धनि तू माता  देवकी। जिह गृह रमईआ कवलापती।। २।। (९८८  )  
इसी तरह नामधारी पंथ के मुखी श्री सतगुरु जगजीत सिंह जी की धर्मपत्नी शांतमूरत श्री माता चंद कौर जी का नाम भी इसी श्रेणी में आता है। जिन्होंने अपना सारा जीवन पंथ की सेवा में ही बिता दिया। उन्होंने श्री सतगुरु जगजीत सिंह जी के पावन चरणों में रह कर देश की आज़ादी के बाद लोगों को इलाकों को बसाने , आबाद करने तथा उन्हें उन्नति के शिखर तक पहुँचाने में माता जी ने सतगुरु जी के साथ मुख्य भूमिका निभाई। उन्होंने श्री सतगुरु राम सिंह जी द्धारा चलाये हुए सदाव्रत लंगर की सेवा के अलावा तीखी धूप में अपने सिरों पर टोकरियां उठा कर तथा अपने हाथों से बजरी आदि कूटकर गुरु घर की इमारतों की उसारी करवाई। अनेक गरीबों तथा दुखियो की सेवा की। श्री सतगुरु जी द्वारा चलाये गए सवा लाख पाठों को सम्पूर्ण करवाया आदि। 
ऐसी महान हस्ती सर्व गुण सम्पन्न थीं माता जी।  श्री ठाकुर दलीप सिंह जी ने उनकी महानता का वर्णन अपनी अलौकिक फोटोग्राफी से माता जी की मनमोहक तस्वीरें तैयार कर के उसमें दर्शाया था तथा उन्हें सेवा के प्रत्य्क्ष स्वरुप, शांत मूरत, जगत माता आदि उपनामों से सम्बोधित कर सभी नामधारी परिवारों में सप्रेम भेंट स्वरुप दी। इसके साथ ही ऐसे पूजनीक माता जी की निन्दा करने से भी वर्जित किया था। संभव है कि उस समय भी कुछ मनमुख लोग माता जी की निंदा करते होंगे। उसके बाद दिसंबर २०१२ में नामधारी पंथ के मुखी  श्री सतगुरु जगजीत सिंह जी के ब्रह्मलीन हो जाने के बाद पंथ में कुछ दरारें आती देख पंथ को एकजुट करने के लिए श्री ठाकुर दलीप सिंह जी ने यह निर्णय लिया कि इस समय माता जी ही पंथ की सर्वोच्च हस्ती हैं हम उनको सद्गुरु रूप में स्वीकार कर पंथ को टूटने से बचा सकते हैं और केवल कहा ही नहीं बल्कि श्री सतगुरु जगजीत सिंह जी के गुरुद्धारा श्री जीवन नगर में हो रहे श्रद्धांजली समारोह के दौरान श्री माता  चंद  कौर जी की तस्वीर को सतगुरु जगजीत सिंह जी की तस्वीर के साथ सुशोभित कर सारी संगत को नमस्कार  करने तथा अरदास में उनका नाम शामिल कर के अरदास करने का हुक्म किया। ऐसे समय में श्री ठाकुर दलीप सिंह जी  ने सद्गुरु जगजीत सिंह जी की ओर से उनके सेवक डॉ. इक़बाल सिंह जी द्धारा भेजे गए गद्दी के उत्तराधिकारी होने के हक़ को त्याग कर दूरदृष्टि से ये सोचा कि इस परिस्थिति में केवल माता जी के चरणों में सीस झुका कर ही सारा पंथ इक्कठा हो सकता है। संगत के लिए ये सब कोई मुश्किल काम नहीं था क्योंकि श्री माता चंद कौर जी तो पहले से ही महान हस्ती श्री सतगुरु जगजीत सिंह जी की धर्मपत्नी होने के नाते पूजनीय थी और श्री ठाकुर दलीप सिंह जी को माता जी से पूरी आशा थी कि वे पंथ को बिखरने से टूटने से बचा लेंगी क्योंकि वे ऐसे महान प्रयास पहले भी कर चुकी थी।
पर सारी संगत ने इनके हुकम का पूरी तरह पालन नहीं किया, वे असमंजस में पड़ गए वे ठाकुर दलीप सिंह जी से वाद विवाद करने लग गए।क्योंकि कई मतलबपरस्त तथा स्वार्थी लोगों को शायद यह खतरा पैदा हो गया कि यदि माता जी गुरुगद्दी पर बिराजमान हो गये तो वे गुरुघर की सम्पति पर कब्ज़ा कैसे करेंगे।भैणी साहिब में रहने वाले ठाकुर उदय सिंह,संत जगतार सिंघ तथा हंसपाल आदि ने तो इस बात पर बहुत टीका-टिप्पणी की।वे कहने लगे कि एक स्त्री गुरु कैसे हो सकती है ? ये तो नामुमकिन है। जबकि गुरबाणी में सतगुरु के अनेक लक्षण लिखे हैं पर ऐसा कहीं नहीं लिखा कि एक स्त्री गुरु नहीं बन सकती।पर हमेशा कुछ स्वार्थी और लालची लोग अपने स्वार्थ के लिए समाज की हानि करते आये हैं और यहाँ भी यही परिणाम हुआ कि पंथ का बहुत नुकसान हुआ पंथ गुटों में बंट गया और एकता के इच्छुक माता जी को पंथ की महान सेवा करते हुए अपना बलिदान देना पड़ा। काश ! नामधारी समुदाय ने माता जी को सतगुरु रूप में स्वीकारा होता। माता जी एक सद्गुरु रूप में बिराजमान होते तो हमें ऐसी संकट की घड़ी ना देखनी पड़ती। हम उनके पावन सानिध्य का आनंद ले रहे होते और समाज व देश के लिए महान मिसालें कायम करने वाला नामधारी पंथ आज इस कगार पर असमंजस में ना खड़ा होता।
पर इसके साथ ही हम ये बात भी बड़े गर्व से बताना चाहते हैं कि सन 2012 में श्री ठाकुर दलीप सिंह जी ने नामधारी पंथ की एकता को कायम रखने के लिए श्री माता चंद कौर जी को गुरु मानने के लिए जो हुक्म नामधारी संगत को दिया था उसका अनुसरण करते हुए निरंकारी समुदाय ने अपने समुदाय के मुखी बाबा हरदेव सिंह जी के ब्रह्मलीन होने के पश्चात उनकी धर्मपत्नी माता  सविंदर कौर जी को गुरु रूप में स्वीकार कर एक सराहनीय कार्य कर इतिहास में एक अच्छा उदाहरण प्रस्तुत किया है। उन्होंने ऐसा ऐलान कर आज उन लोगों को भी प्रेरणा दी है, जो कहते थे कि एक स्त्री कैसे गुरु बन सकती है ? , ऐसा हो ही नहीं सकता। इसलिए  आज भी उन लोगों को नारी शक्ति के आस्तित्व को पहचानने की जरुरत है जो कभी भी किसी भी रूप में आ कर समाज में एक नया परिवर्तन ला सकती है। 
"कोमल है कमजोर नहीं तू , शक्ति का नाम नारी है,
जग को जीवन देने वाली मौत भी तुझसे  हारी है।"     
    राजपाल कौर , 
   मुख्य सचिव , जालंधर विद्याक सोसाइटी ,जालंधर। 
   Contact at: 90231-50008  Email : rajpal16773@gmail.com 

No comments: