एक पत्थर से तराशी थी जो तुमने दीवार,
इक खतरनाक शिगाफ़ उसमें नज़र आता है।
यह वह दर्द है जिसे जनाब कैफी आज़मी साहिब ने बहुत पहले ही महसूस कर लिया था। इस दर्द के कारण ही उनके दिल से निकला--
हादसा कितना कड़ा है कि सर-ए-मंज़िल-ए शौक,
काफिला चाँद गिरोहों में बंटा जाता है।
अधिकतर कम्युनिस्ट कहनी और करनी के एक रहे। मैंने बहुत से जानेमाने कम्युनिस्ट नेतायों को नज़दीक से देखा। जिनकी चर्चा किसी अलग पोस्ट में जल्द की जाएगी। वे चाहते तो अपनी सात पुश्तों के लिए अपार धन जमा कर सकते थे लेकिन उन्होंने खुद भी सादगी से जीवन व्यतीत किया और उनके परिवारों ने भी। हमेशां मेहनत पर यकीन रखा और जन संघर्षों के लिए हर पल तैयार रहे। इसके बावजूद लाल झंडे की कई पार्टियां बन गईं। ऐसी हालत में कैफी साहिब के लेनिन को सम्बोधित शब्द बहुत अधिक महत्वपूर्ण बन जाते हैं--
देखते हो तो कोई सुलह की तदबीर करो,
हो सके ज़ख्म रफू जिससे वो तकरीर करो।
बहुत अच्छा होगा अगर औपचारिक नारेबाजी ुार जन्मदिन मुबारक की जगह लेनिन के जन्म दिन पर सभी वे लोग एकजुट होकर लाल झंडे की लहर को मज़बूत करने का संकल्प करें जिनको किसी भी तरह इस झंडे और इसके मकसद से ज़रा सा भी लगाव है। -- रेक्टर कथूरिया
आसमां और भी ऊपर को उठा जाता है
तुमने सौ साल में इंसां को किया कितना बुलंद।
*पुश्त पर बाँध दिया था जिन्हें जल्लादों ने,
फेंकते हैं वही हाथ आज सितारों पे कमन्द।
देखते हो कि नहीं !
जगमगा उठी है मेहनत के पसीने से *जबीं,
अब कोई खत, खत-ए -तक़दीर नहीं हो सकता।
तुमको हर मुल्क की सरहद पे खड़े देखा है,
अब कोई मुल्क हो तसखीर नहीं हो सकता।
Punjab Screen
खैर हो बाज़ू-ए-कातिल की मगर खैर नहीं!
आज *मकतल में बहुत भीड़ नज़र आती है।
कर दिया था कभी हल्का सा इशारा जिस *सम्त,
सारी दुनिया उसी *जानिब को मुड़ी जाती है।
Punjab Screen
हादसा कितना कड़ा है कि सर-ए-मंज़िल-ए शौक,
काफिला चाँद गिरोहों में बंटा जाता है।
एक पत्थर से तराशी थी जो तुमने दीवार,
इक खतरनाक *शिगाफ़ उसमें नज़र आता है।
Punjab Screen
देखते हो तो कोई सुलह की तदबीर करो,
हो सके ज़ख्म रफू जिससे वो तकरीर करो।
*एहद-ए-पे पेचीदा *मसाईल हैं सवा पेचीदा,
उनको सुलझाओ, सहीफा कोई तहरीर करो।
Punjab Screen
रूहें आवारा हैं दे दो इन्हें *पैकर अपना,
भर दो हर पारा-ए-फौलाद में जौहर अपना।
रहनुमा फिरते हैं या फिरती हैं बेसर लाशें?
रख दो हर अकड़ी हुई लाश पे तुम सर अपना।
Punjab Screen
*पुश्त-पीठ, *जबीं-माथा, *मकतल-कत्लगाह, *सम्त-दिशा, *जानिब-तरफ, *एहद-ए-पे पेचीदा-उलझा हुआ समय, *मसाईल-समस्याएं, *शिगाफ़-सेंध/दरार, *पैकर-जिस्म
जनाब कैफी आज़मी साहिब की एक दुर्लभ रचना-लेनिन-
इक खतरनाक शिगाफ़ उसमें नज़र आता है।
यह वह दर्द है जिसे जनाब कैफी आज़मी साहिब ने बहुत पहले ही महसूस कर लिया था। इस दर्द के कारण ही उनके दिल से निकला--
हादसा कितना कड़ा है कि सर-ए-मंज़िल-ए शौक,
काफिला चाँद गिरोहों में बंटा जाता है।
अधिकतर कम्युनिस्ट कहनी और करनी के एक रहे। मैंने बहुत से जानेमाने कम्युनिस्ट नेतायों को नज़दीक से देखा। जिनकी चर्चा किसी अलग पोस्ट में जल्द की जाएगी। वे चाहते तो अपनी सात पुश्तों के लिए अपार धन जमा कर सकते थे लेकिन उन्होंने खुद भी सादगी से जीवन व्यतीत किया और उनके परिवारों ने भी। हमेशां मेहनत पर यकीन रखा और जन संघर्षों के लिए हर पल तैयार रहे। इसके बावजूद लाल झंडे की कई पार्टियां बन गईं। ऐसी हालत में कैफी साहिब के लेनिन को सम्बोधित शब्द बहुत अधिक महत्वपूर्ण बन जाते हैं--
देखते हो तो कोई सुलह की तदबीर करो,
हो सके ज़ख्म रफू जिससे वो तकरीर करो।
बहुत अच्छा होगा अगर औपचारिक नारेबाजी ुार जन्मदिन मुबारक की जगह लेनिन के जन्म दिन पर सभी वे लोग एकजुट होकर लाल झंडे की लहर को मज़बूत करने का संकल्प करें जिनको किसी भी तरह इस झंडे और इसके मकसद से ज़रा सा भी लगाव है। -- रेक्टर कथूरिया
आसमां और भी ऊपर को उठा जाता है
तुमने सौ साल में इंसां को किया कितना बुलंद।
*पुश्त पर बाँध दिया था जिन्हें जल्लादों ने,
फेंकते हैं वही हाथ आज सितारों पे कमन्द।
देखते हो कि नहीं !
Courtesy Photo |
अब कोई खत, खत-ए -तक़दीर नहीं हो सकता।
तुमको हर मुल्क की सरहद पे खड़े देखा है,
अब कोई मुल्क हो तसखीर नहीं हो सकता।
Punjab Screen
खैर हो बाज़ू-ए-कातिल की मगर खैर नहीं!
आज *मकतल में बहुत भीड़ नज़र आती है।
कर दिया था कभी हल्का सा इशारा जिस *सम्त,
सारी दुनिया उसी *जानिब को मुड़ी जाती है।
Punjab Screen
हादसा कितना कड़ा है कि सर-ए-मंज़िल-ए शौक,
काफिला चाँद गिरोहों में बंटा जाता है।
एक पत्थर से तराशी थी जो तुमने दीवार,
इक खतरनाक *शिगाफ़ उसमें नज़र आता है।
Punjab Screen
देखते हो तो कोई सुलह की तदबीर करो,
हो सके ज़ख्म रफू जिससे वो तकरीर करो।
*एहद-ए-पे पेचीदा *मसाईल हैं सवा पेचीदा,
उनको सुलझाओ, सहीफा कोई तहरीर करो।
Punjab Screen
रूहें आवारा हैं दे दो इन्हें *पैकर अपना,
भर दो हर पारा-ए-फौलाद में जौहर अपना।
रहनुमा फिरते हैं या फिरती हैं बेसर लाशें?
रख दो हर अकड़ी हुई लाश पे तुम सर अपना।
Punjab Screen
*पुश्त-पीठ, *जबीं-माथा, *मकतल-कत्लगाह, *सम्त-दिशा, *जानिब-तरफ, *एहद-ए-पे पेचीदा-उलझा हुआ समय, *मसाईल-समस्याएं, *शिगाफ़-सेंध/दरार, *पैकर-जिस्म
जनाब कैफी आज़मी साहिब की एक दुर्लभ रचना-लेनिन-
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