Wed, Sep 2, 2015 at 1:59 PM
श्रम विरोधी नीतियों के खिलाफ फिर बुलंद हुयी देश की आवाज़
लुधियाना: 2 सितम्बर 2015: (रेक्टर कथूरिया//पंजाब स्क्रीन):
स्थान था लुधियाना का भारतनगर चौंक में स्थित केनरा बैंक जहाँ गूँज रहा था आकाश जन विरोधी नीतियों के खिलाफ।
मकसद था : * कामगार विरोधी श्रम सुधारों का विरोधश्रम विरोधी नीतियों के खिलाफ फिर बुलंद हुयी देश की आवाज़
लुधियाना: 2 सितम्बर 2015: (रेक्टर कथूरिया//पंजाब स्क्रीन):
स्थान था लुधियाना का भारतनगर चौंक में स्थित केनरा बैंक जहाँ गूँज रहा था आकाश जन विरोधी नीतियों के खिलाफ।
* जनविरोधी बैंकिंग सुधारों का विरोध
प्रमुख मांगें हैं:
* कामगार विरोधी श्रम सुधार रोके जायें
* जनविरोधी बैंकिंग सुधार रोके जायें
* कार्पोरेट ऋण चूककरर्ताओं द्वारा जनता के धन की लूट रोकी जाए
* बैंक ऋणों को जानबूझकर अदा न करना फौजदारी अपराध घोषित किया जाए
* बैंक कार्यों की आउटसोर्सिंग रोकी जाए
आल इंण्डिया बैंक इम्पलाईज़ एसोसिएशन (एआईबीईए), एआईबीओए, बीईएफआई, आईएनबीओसी, एनओबीड्बल्यु, आईएनबीईएफ एवं एनओबीओ ने आज 2 सितंबर 2015 को केन्द्रीय सरकार की कामगार विरोधी नीतियों के विरुद्ध हड़्ताल की । देश भर के 100 मिलीयन से अधिक मजदूर/कामगार आज राष्ट्रव्यापी हड़्ताल पर हैं । यह वर्तमान एन.डी.ए. सरकार की कामगार विरोधी नीतियों के विरोध में सबसे ताकतवर लड़ाई है ।
पंजाब बैंक इम्पलाईज़ फैडेरेशन (लुधियाना इकाई) ने आज एक दिवसीय हड़ताल की और केनरा बैंक, भारत नगर चौंक, लुधियाना के सामने जबरद्स्त प्रदर्शन किया । कामरेड पी.आर.मेहता, प्रधान, कामरेड नरेश गौड़, सचिव, कामरेड हरविन्द्र सिंह, सीनियर उप-प्रधान, कामरेड पवन ठाकुर, प्रधान, पंजाब बैंक इम्पलाईज़ फैडेरेशन (लुधियाना इकाई), कामरेड गुरमीत सिंह, कामरेड चिरंजीव जोशी, आल इंण्डिया बैंक आफिसर्स एसोसिएशन से एवं कामरेड डी.पी.मौड़, महा सचिव, ज्वाईंट काऊंसिल आफ ट्रेड यूनियन्स ने बैंक कर्मचारियों को संबोधित किया।
बैंक कर्मचारियों को संबोधित करते हुए फैडेरेशन के नेताओं ने कहा कि हम सभी को ज्ञात है कि कामगारों पर हमले बढ़ रहे हैं और श्रम संगठन अधिकारों पर और सुविधाओं पर हमले बढ़ रहे हैं तथा हमारे देश में मालिकों को सुविधाएं प्रोत्साहन और छूट बढाई जा रही है । विभिन्न श्रम कानूनों को मालिकों के पक्ष में संशोधित करने तथा मज़दूरों के विरुद्द करने के खुले प्रयास चल रहे हैं । नव उदार आर्थिक नीतियों न केवल कामगारों वरन जन सामान्य की समस्याएं भी बढा रही हैं । सरकार के कुछ प्रस्तावों और नीतियों का प्रारुप इस प्रकार है - श्रम कानूनों को संशोधित कर मालिकों को ऐसी शक्तियां देना जिससे उन्हें "रखो और निकालो" का अधिकार मिल जाए, कामगारों और श्रम संगठनों को उनके अधिकारों से वंचित करना, रणनीतिक क्षेत्रों जैसे रेलवे, सुरक्षा और वित्तीय क्षेत्रों में निर्वात सीधा विदेशी निवेश, वर्तमान भूमि अधिग्रहण कानून में व्यापक परिवर्तन, कृषकों की भूमि व कृषि कामगारों के जीवन यापन के अधिकारों को व्यापक रुप से कुचलना और कटौती करने के प्रयास, ईपीएफ और ईएसआई योजनाएं एच्छिक बनाने का प्रस्ताव, मौलिक सामान्य सुरक्षा ढांचा, जो संगठित क्षेत्र को उपलब्ध हैं, को तहस नहस करने का प्रयास इत्यादी ।
बैंकिंग उद्दोग कोई अपवाद नहीं है । बैंकिंग उद्दोग में हमें पहले ही पता है कि सरकार अपने कथित सुधारों के निरंतर प्रयास आगे बढ़ा रही है, जिसकी कार्य सूची में प्राथमिकता के आधार पर बैंकों का निजीकरण सुदृढ़ीकरण और विलय आदि है । अधिक से अधिक निजी पूंजी और सीधे विदेशी निवेश को प्रोत्साहित किया जा रहा है । क्षेत्रिय ग्रामीण बैंकों के निजीकरण का प्रयस चल रहा है और इस संदर्भ में हमारी यूनियनों के विरोध के बावजूद संसद में इस संदर्भ में विधेयक पारित कर दिया गया है । प्राथमिक कृषि सहकारी समितियों में (पीएसी) समेटे जाने के खतरे में है । शहरी साहकारी बैंक लाईसेंस समाप्त किये जाने के खतरे में हैं । निजी क्षेत्र के कार्यकारियों को सार्वजनिक क्षेत्रों के बैंकों में थोपा जा रहा है । बिना किसी ढांचागत सुविधा और कर्मचारियों के बढाए सरकारी नीतियों को सार्वजनिक क्षेत्रों के बैंकों पर थोपा जा रहा है । बैंक अधिकारियों को काम के नियमित घंटों से वंचित किया जा रहा है । स्थाई और नियमित कार्यों को ठेका आधार पर आउट्सोर्स किया जा रहा है और ठेका कर्मचारियों का शोषण किया जा रहा है । सरकार अपनी कार्य सूची पर आगे बढ़ रही है और श्रम संगठनों से बिना समुचित विचार विमर्श किये बिना श्रम कानूनों को संशोधित करेगी । इस लिए यह आवशयक तथा अनिवार्य है कि सार्वभौम श्रम संगठन आंदोलन से जुड़ा जाए और सरकार की इन श्रम विरोधी नीतियों के विरुद्द अपना विरोध दर्ज किया जाए ।
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