Thursday, May 15, 2014

नियमित टीकाकरण से ही भारत पोलियो मुक्‍त हो पाया

15-मई-2014 17:34 IST
विशेष लेख                                            *सरिता बरारा
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कम्‍यूनिटी मोबिलाइजेशन कॉर्डिनेटर नूरजहां गांव की युवा माताओं को टीकाकरण
की जानकारी देते हुए
उत्तर प्रदेश में मुरादाबाद जिले के भैसियां गांव में अप्रैल के अंतिम सप्ताह के दौरान नियमित रूप से आयोजित होने वाले टीकाकरण अभियान से एक दिन पहले 20 वर्ष की मुस्लिम महिला नूरजहां गांव की आंगनवाड़ी में युवा माताओं के साथ बैठक कर रही हैं। समुदाय से जुड़े होने के नाते नूरजहां माताओं के साथ आसानी से संवाद कायम कर लेती हैं। आज उनका जोर नवजात शिशुओं और पांच वर्ष तक के बच्चों के लिए नियमित टीकाकरण की महत्ता पर है। नूरजहां अधिक साफ-सफाई पर भी जोर देती हैं। माताएँ अपनी गोद में बच्चे लिए ध्यान से नूरजहां की बातें सुनती हैं। बाद में पूछे जाने पर निरक्षर और अर्ध साक्षर माताएं विश्वासपूर्वक यह बताती हैं कि टीकाकरण क्यों जरूरी है, नवजातों तथा गर्भवती महिलाओं के लिए इसका क्या महत्व है। नूरजहां पहले पल्स पोलियो अभियान में स्वयंसेवी के रूप में काम करती थीं और बाद में उन्हें कम्यूनिटी मोबिलाइजेशन को-ऑर्डिनेटर (सीएमसी) बनाया गया है।
वर्ष 2001 में पोलियो अभियान के लिए यूनिसेफ के सहायता कार्यक्रम के तहत लगभग 5000 सीएमसी को राज्य सरकार के स्वास्थ्य कर्मियों तथा अन्य हितधारकों के साथ 7000 अधिक जोखिम वाले क्षेत्रों में तैनात किया गया। अब समर्पित कार्यकर्ताओं के इस नेटवर्क को नियमित टीकाकरण कार्यक्रम के लिए बरकरार रखा गया है। संयुक्त राष्ट्र की यह संस्था नियमित टीकाकरण के स्तर को बढ़ाकर तथा अग्रणी स्तर के स्वास्थ्य कर्मियों को व्यापक तरीके से प्रशिक्षित कर शिशुओं को होने वाली सामान्य बीमारियों की पहचान और निदान के लिए उत्तर प्रदेश सरकार को समर्थन दे रही है।
2006 में पोलियो के उभरने के समय मुरादाबाद इसका केन्द्र था। लेकिन टीकाकरण की आक्रामक रणनीति से वहां सिर्फ टाइप वन किस्‍म का एक पोलियो का मामला सामने आया। अब तो पूरा भारत पोलियो मुक्त घोषित हो चुका है।
महत्वपूर्ण यह है कि 2010-2011 के दौरान 12 से 23 महीने की आयु वर्ग में केवल 24.1 प्रतिशत बच्चों का ही पूर्ण टीकाकरण किया जा सका। मुरादाबाद के जिला टीकाकरण अधिकारी डॉ. आर.के.शर्मा बताते हैं कि इस समय कवरेज बढ़कर 63 प्रतिशत हो गई है। वास्तव में यह पूरे उत्तर प्रदेश के मुकाबले एक प्रतिशत अधिक है। यहां शिशु मृत्युदर भी गिरकर प्रति 1000 शिशुओं में 52 रह गई है।
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मुरादाबाद में माताएं अपने बच्चों को पोलियो का टीका लगवाने के लिए
प्रतीक्षा करती हुई।
मुरादाबाद के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. संजीव यादव कहते हैं कि भारत के पोलियो मुक्त होने के बाद सबसे बड़ी चुनौती टीकाकरण कार्यक्रम की गति को बनाए रखने की है क्योंकि विश्व को अभी भी उभरने वाली बीमारियों से मुक्त होना है। पोलियो वायरस इस समय पाकिस्तान, अफगानिस्तान और नाइजीरिया में महामारी का रूप धारण कर चुके हैं लेकिन पाकिस्तान में पोलियो की खुराक पिलाने वाले लोगों पर हुए हमले के बाद इसके सीमा पार कर भारत में भी फैलने का खतरा बढ़़ गया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार पाकिस्तान, सीरिया तथा कैमरून ने हाल ही में पोलियो वायरस को अफगानिस्तान, इराक और भूमध्यवर्ती गिनी में फैलाने में सहयोग दिया है।
 डॉ यादव का कहना है कि स्वास्थ्य कर्मचारी अन्य हितधारकों के साथ किसी तरह की सुस्ती नहीं बरत सकते। उनका कहना है कि खसरा, डिप्थीरिया, टिटनेस तथा टी.बी. जैसी बीमारियों को रोकने के लिए उसी उत्साह से टीकाकरण कार्यक्रम चलाना होगा जिस उत्साह से पल्स पोलियो अभियान में चलाया गया। उन्होंने बताया कि बाहर से आकर बसने वाले लोगों के क्षेत्रों तथा अधिक जोखिम वाले क्षेत्रों में विशेष टीकाकरण सत्र आयोजित किए जाते हैं।
आज मुरादाबाद जिले में 271 से अधिक सीएमसी (कम्‍यूनिटी मोबिलाइजेशन को- ऑर्डिनेटर)1521 आशा कर्मियों और अन्य हित धारकों के साथ मिलकर जिले में अधिक बच्चों के टीकाकरण अभियान में लगे हैं। आशा कर्मी को नियमित टीकाकरण अभियान में एक सत्र के लिए 150 रूपए दिए जाते हैं। नियमित टीकाकरण वैकल्पिक टीका डिलीवरी को मजबूती प्रदान करने में सेवा देने के लिए आशा कर्मी को प्रति सत्र 75 रू. भी दिए जाते हैं। एक वर्ग तक की आयु के बच्चे को पूर्ण टीकाकरण के लिए आशा कर्मी के 100 रूपए प्रति शिशु और 2 वर्ष की आयु के बच्चे को पूर्ण टीकाकरण के लिए 50 रूपये प्रति शिशु दिया जाता है। 
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बच्‍चों का टीकाकरण करती स्‍वास्‍थ्‍य कार्यकर्ता
जहां तक सीएमसी का प्रश्न है वह स्थानीय स्तर पर सक्रिय गतिविधियां चलाने के अलावा नूरजहां जैसी सीएमसी समुदाय को संगठित कर और घर-घर जाकर बच्चों का पता लगाती है। नूरजहां जैसे सीएमसी समुदाय के प्रभावशाली लोगों जैसे इमाम या शिक्षक सहित ग्राम स्तर के नेताओं से संपर्क साधते हैं। सीएमसी टीकाकरण स्वास्थ्य शिविर आयोजित करते हैं और उसके आयोजन में सहायता देते हैं। यूनिसेफ द्वारा नियुक्त और प्रशिक्षित सीएमसी का चुनाव समुदाय से ही किया जाता है। वे बच्चों, नवजात शिशुओं, गर्भवती माताओं की खोज करते हैं और उनके टीकाकरण की जरूरतों का मूल्यांकन करने के साथ-साथ जागरूकता फैलाकर आशा कर्मियों के प्रयास में मदद करते हैं। इसके बाद डाटा बैंक टीकों की उगाही के लिए सहायक नर्स मिड वाइफ (एएनएम) जैसे स्वास्थ्य कर्मियों के साथ आकड़ें साझा करते हैं इस काम में आशा तथा आंगनवाड़ी कर्मियों की मदद लेकर संस्थागत डिलीवरी तथा स्तनपान के बारे में जागरूकता फैलायी जाती है। टीकाकरण के दिन सीएमसी बच्चों को टीका केन्द्र तक लाने के लिए घर-घर जाते हैं।
 
अभियान की गति को बनाए रखने के लिए धार्मिक नेताओं तथा गांव के प्रभावशाली व्यक्तियों से आग्रह करते हैं कि वह अपने बच्चों का टीकाकरण सुनिश्चित करें। नियमित टीकाकरण से एक दिन पहले दिनगरपुर के इमाम मोहम्मद युसूफ ने गांव के लोगों से यह सुनिश्चित करने की अपील की थी कि वह अपने बच्चों को टीकाकरण शिविरों तक ले जाएं। इसका परिणाम यह हुआ कि महिलाएं अपने बच्चों को टीकाकरण केन्द्र लेकर पहुंचीं। अख्तरी अनेक महिलाओं की तरह अपनी पोती को गोद में लेकर टीकाकरण केन्द्र पहुंची। अख्तरी ने स्वीकार किया की कि इमाम जैसे सम्मानित लोग या शिक्षित लोग जब अभियान का हिस्सा बनते हैं तो अंतर आता है, उनकी आशंका और डर खत्म होता है।
लेकिन अभी भी कई परिवार है जिन्हें टीकाकरण को लेकर गलतफहमी है लेकिन ऐसे परिवारों की संख्या लगातार कम हो रही है। उदाहरण के लिए महमूदपुर माफी गांव में आशा कर्मी पायल और गांव के सीएमसी चमनदेश, रहिशी को यह समझाने के लिए उसके पास कई बार गए कि तीन महीने के उसके पोते असद को नियमित टीकाकरण के लिए ले जाना कितना आवश्यक है। लेकिन रहिशी अड़ी हुई थी। वह बोली असद के छोटे भाई (ढाई वर्ष) का वज़न टीकाकरण के बाद बढ़ नहीं पाया है और टीका लगने के बाद वह अपने बच्चे को अधिक समय तक रोने नहीं दे सकती। टीका लगने के बाद बच्‍चा पूरी रात चिल्लाएगा और घर में कोई व्यक्ति सो नहीं पाएगा
रहिशी ने टीकाकरण का भारी विरोध किया और अपने पोते को छूने नहीं दिया। जब गांव के प्रभावशाली व्यक्ति उसे समझाने आए तो वह और उसका पति सहमत हुआ। अंतत: वह झुकी और उसके बच्चे को गांव के टीकाकरण शिविर में ले जाया गया।
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गांव के प्रभावशाली व्‍यक्ति माताओं को टीकाकरण का महत्‍व समझाते हुए
चमनदेश कहते हैं कि ऐसे कुछ मामलों को छोड़कर टीकाकरण को लेकर कोई विरोध नहीं होता क्योंकि लोग यह जानते हैं कि बच्चों के लिए यह अच्छा है।
22.6 मिलियन से अधिक नवजात शिशु नियमित रूप से टीकाकरण के दायरे में नहीं आ पाये हैं और इनमें से आधे से अधिक बच्चे भारत- इंडोनेशिया तथा नाइजीरिया के हैं।
टीकों की अपर्याप्त आपूर्ति, स्वास्थ्य कर्मियों की कमी तथा अपर्याप्त राजनीतिक तथा वित्तीय समर्थन के कारण राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम पूरा नहीं होते। टीकों के बारे में जानकारी की कमी की वजह से वयस्‍क लोग न तो खुद के बच्‍चों को टीका लगवाते हैं और न ही दूसरों के बच्‍चों को लगाने देते हैं।
बच्चों की संख्या तथा भौगोलिक पहुंच के हिसाब से देखे तो भारत में विश्व का सबसे बड़ा टीकाकरण कार्यक्रम चलता है। इसके बावजूद पांच वर्ष से कम आयु के 1.4 मिलियन बच्चों की प्रतिवर्ष मृत्यु होती है। इन बच्चों की मृत्यु निमोनिया, डायरिया, कुपोषण तथा सेप्सीस जैसी नवजात शिशुओं की बीमारियों के कारण होती है। यह बीमारियां रोकी जा सकती हैं। इनकी रोकथाम का सबसे कारगर तरीका है नियमित टीकाकरण यह कहा जाता है कि सार्वजनिक क्षेत्र के यह स्वास्थ्य अभियान की सफलता से केवल भारत में प्रतिवर्ष चार लाख बच्चों को मरने से बचाया जा सकता है।
डॉक्टर संजीव यादव कहते हैं कि नियमित टीकाकरण को उसी उत्साह के साथ जारी रखने की जरूरत है जिस उत्साह के साथ पल्स पोलियो अभियान शुरू किया गया था। (PIB)
वी.के./एएम/सरिता बरारा/एसके/एसएस- 87
 

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