पर मिलिए श्री जगदीश बजाब से जिन्होंने दूसरों के लिए यह मौत भी स्वीकारी
माननीय श्री विजय चोपड़ा जी के साथ एक कार्यक्रम में जनाब जगदीश बजाज व अन्य |
एक बार यह बुज़ुर्ग एक विशेष आग्रह पर महाराष्ट्र में रोटरी क्लब के एक कार्यक्रम में गए. बहुत जोर देने पर जब बोलने लगे तो वहां भी कहने लगे देखिये मुझे सब अनपढ़ समझते हैं लेकिन मैंने पीएचडी की हुयी है. वास्तव में यह एक ऐसा कार्यक्रम थ जिसमें सवाल जवाब भी साथ साथ हो रहे थे. सो इस वृद्ध व्यक्ति से भी सम्मान सहित सवाल किया गया कि आपने किस विषय में पीएचडी की है. वहां भी जनाब बिना किसी झिझक के जवाब देते हुए बोले जी मांगने में. मैं मांगने में एक्सपर्ट हूँ. इसके बाद जैसे ही उन्होंने मांगने का कारण और लम्बे समय से चल रहा अपना मिशन बताया तो वहां नोटों की बरसात होने लागिओ और देखते ही देखते इस वृद्ध की झोली भर गयी.
मेरी मुराद है लुधियाना के जानेमाने धार्मिक व्यक्ति जनाब जगदीश बजाज से जो गरीब बच्चों को पढाने के साथ साथ गरीब विधवा महिलायों को हर महीने राशन भी वितरित करते हैं. गरीब लड़कियों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए कम्प्यूटर, सिलाई, कढाई और ब्यूटी पार्लर चलाने जैसे कई और प्रोजेक्ट भी चलाते हैं. यह सब होता है लुधियाना के सुभानी बिल्डिंग चोंक में स्थित ज्ञान स्थल मन्दिर में. इस चौंक की कई इमारतों में फैले इस मन्दिर को इस तरह की मजबूती देने में जगदीश बजाज ने अपनी उम्र का एक बहुत सा हिस्सा इस तरफ लगा दिया.
मैंने एक बार पूछा बजाज साहिब लोग इस उम्र में आराम करते हैं और आप सारा सारा दिन काम. सुबह 9 नजे से लेकर मन्दिर के कार्यालय में बैठना दुखी लोगों के दुःख सुननाऔर फिर उनके कष्ट हरने के लिए मांगने के लिए निकल पड़ना. इस मिशन को लेकर फेसबुक जैसे मंच का इस्तेमाल भी बाखूबी करना...आखिर यह लगन आपको कहाँ से लगी. बजाज साहिब का चेहरा कुछ गंम्भीर हो गया.उनकी आँखें कहीं दूर अतीत में झाँकने लगीं. बस कुछ ही पलों का अंतराल और फिर बोले बात बहुत पुरानी है. हमने एक जागरण रखा था. मैं पंजाब केसरी पत्र समूह के मुख्य सम्पादक विजय चोपड़ा जी के पास गया और उन्हें निवेदन किया कि आप इस जागरण में मुख्य मेहमान बन कर आने की कृपा करें. उनके पास वक्त नहीं था और मैं उन्हें बार बार वक्त निकलने के लिए विनती कर रहा था. इतने में ही दो महिलाएं वहां आयीं और विजय जी ने अपने किसी कर्मचारी को इशारा किया की इन्हें आटे की दो थैलियाँ दे दो. इसके साथ ही विजय जी मुझे मुखातिब हो कर बोले अगर आप इस तरह का कोई काम करें तो मैं सुरक्षा का खतरा उठा कर भी वक्त ज़रूर निकालूँगा. मैंने उन औरतों का दर्द सुना तो मुझे अहसास हुआ कि यह काम कितना आवश्यक है. मैंने तुरंत हाँ कर दी. इस तरह सितम्बर 1991 से केवल 51 विधवा महिलायों को राशन की राहत देने से शुरू हुआ यह सिलसिला आज भी जारी है. आज यहाँ से राहत पाने वाली महिलायों की संख्या 51 से बढ़ कर 900 के आंकड़े को भी पार कर चुकी है.बहुत से नाम अभी प्रतीक्षा सूची में हैं.सन 2000 में यहाँ लडकियों को कम्प्यूटर सिखाने, सिलाई-कढाई सिखाने और ब्यूटी पार्लर चलाने जैसे काम भी सिखाये जा रहे हैं तांकि वे आत्म निर्भर हो सकें.
अपने इस मिशन के लिए कई बार उन्हें इम्तिहान की घड़ियाँ भी देखनी पड़ी. सन 2006 की 26 अप्रैल को उनकी धर्म पत्नी शांति देवी का हार्ट अटैक के कारण देहांत हो गया. रस्म क्रिया की तारीख भी आठ मई की निकली और विधवा महिलायों को राशन वितरित करने की तारीख भी पहले से ही आठ मई घोषित थी.दुःख और संकट की इस घड़ी में भी जगदीश बजाज ने कर्तव्य को नहीं भुलाया. क्रिया आठ की जगह छह मई को ही करली गई पर राहत के इस कार्यक्रम में कोई तबदीली नहीं की गयी. फिर सन 2010 में३० दिसम्बर के दिन उनकी एक बहू का देहांत हो गया. उस समय भी रस्म क्रिया ८ जनवरी को आती थी लेकिन इस रस्म को भी दो दिन पूर्व अर्थात ६ जनवरी को ही पोर कर लिया गया ता कि आठ जनवरी को होने वाले र्स्शन वितरण कार्यक्रम में कोई भी तबदीली न हो. मैंने कहा आप कैसे इंसान हैं...अपने परिवारिक सदस्य को अंतिम विदा कहने के लिए एक आध कार्यक्रम भी इध उधर नहीं कर सकते....मेरी बात सुन कर उन्होंने एक लम्बा सांस लिया और बोले मैं नहीं चाहता था कि जो इंसान इस दुनिय से चला गया उसका दिन मनाते समय कोई बद दुया दे या फिर यह कहे कि इस मौत ने तो हमारा काम चौपट कर दिया.
दुनियादारी का इतना लिहाज़ और दुखी लोगों से इतनी गहरी सम्वेदना रखने वाले जगदीश बजाज का जन्म हुआ था १० अक्टूबर १९३५ को कामरेड राम किशन के पडोस में पड़ते एक मकान में. यह मकान कोट ईसे शाह में था. झंग का यह इलाका अब पाकिस्तान में है. सं 1947 में जब हालात बिगड़े तो इस परिवार को भी पाकिस्तान छोड़ना पड़ा. कभी अमृतसर, कभी जालंधर और कभी कहीं. गर्दिश के दिन थे. आखिर 1950 में लुधियाना में आ गये. तब से लेकर यहीं पर कर्म योग की साधना में लगे हुए हैं. सरकारी नौकरी से अपना काम और फिर अपने काम से जन सेवा का यज्ञ. आज इस यज्ञ में योगदान देने वालों की संख्या भी बहुत बड़ी है और इससे राहत लेने वालों की संख्या भी. ज्ञान स्थल मन्दिर अब मानव सेवा संस्थान के तौर पर स्थापित हो चूका है. यहाँ सभी धर्मों के लोग बिना किसी भेद भाव के आते हैं. अगर आप भी यहाँ आना चाहें तो आपका स्वागत है. आप कभी यहाँ आ सकते हैं. --रेक्टर कथूरिया
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दूसरों के लिए बार बार मरने वाला महान इन्सान: जगदीश बजाज
मांगन गया सो मर गया....और वह बार बार मरता है दूसरों को बचाने के लिए
जगदीश बजाज: जिसे मांगने पर गर्व है
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