बढ़ती आयु एवं स्वास्थ्य विशेष लेख ए.एन. खान *
मानवीय विकास एवं ह्रास के कुछ प्राकृतिक बदलावों को व्यक्त करने के लिए शरीर विज्ञानी ''आयु'' शब्द का इस्तेमाल करते हैं। मानवीय विकास और ह्रास को हम शैशवकाल, बाल्यकाल, युवावस्था, प्रौढ़ावस्था और वृद्धावस्था के रूप में जानते हैं। शैशवकाल सात वर्षों का, बाल्यकाल 14 वर्षों का, युवावस्था 21, प्रौढ़ावस्था 50 वर्ष तक होती है। इसके बाद वृद्धावस्था का आगमन होता है। जीवन को दो महत्वपूर्ण घटक प्रभावित करते हैं, जिनमें आनुवांशिकता और पर्यावरण शामिल हैं। पर्यावरण की परिस्थितियां जीवन को रोगों आदि के रूप में प्रभावित करती हैं।
इस वर्ष 7 अप्रैल को विश्व स्वास्थ्य दिवस मनाया गया, जो बढ़़ती आयु एवं स्वास्थ्य पर आधारित था। इसकी विषयवस्तु गुड हैल्थ ऐड्स लाइफ टू इयर्स थी। अधिकतर देशों में जीवन बढ़ रहा है। इसका मतलब यह है कि वहां लोग अब ज्यादा दिनों तक जिंदा रहते हैं और वह एक ऐसी उम्र में पहुंच रहे हैं, जहां उन्हें स्वास्थ्य सुविधाओं की सर्वाधिक आवश्यकता होती है।
स्वास्थ्य सुविधाओं में रोगों, बीमारी, चोटों और अन्य शारीरिक एवं मानसिक कमजोरी संबंधित बीमारियों का निदान, उपचार एवं रोकथाम शामिल है। स्वास्थ्य सुविधाएं, दवाइयों, परिचर्या, फार्मेसी, संबंधित स्वास्थ्य सेवा, दांतों का उपचार एवं अन्य तरह की सेवाओं द्वारा प्रदान की जाती हैं। विभिन्न देशों, समूहों और समाजों में स्वास्थ्य सेवाओं की सुविधाएं भिन्न-भिन्न प्रकार की हैं, जो संबंधित देश की सामाजिक, आर्थिक एवं नीतिगत परिस्थितियों पर निर्भर करती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार एक बेहतर स्वास्थ्य प्रणाली के लिए यह आवश्यक है कि वह ठोस निर्णयों एवं नीतियों पर आधारित हो, उसकी वित्तीय व्यवस्था मजबूत हो और बेहतरीन चिकित्सकीय व्यवस्था बनाई गई हो।
देश की अर्थव्यवस्था में स्वास्थ्य सुविधा का महत्वपूर्ण स्थान है। 2008 में तमाम विकसित देशों में सकल घरेलू उत्पाद का औसतन नौ प्रतिशत स्वास्थ्य सुविधा उद्योग पर खर्च किया गया था। अमरीका में इस मद में सकल घरेलू उत्पाद का 16 प्रतिशत, फ्रांस में 11.2 प्रतिशत और स्विट्जरलैंड में 10.7 प्रतिशत खर्च किए जाते हैं।
एक स्वस्थ और सामान्य वृद्धावस्था प्राकृतिक रूप से अंगों के ह्रास के द्वारा आती है। थकान बहुत जल्दी होती है, स्मृति कमजोर होती जाती है और आत्मशक्ति धीरे-धीरे कम होती जाती है। वृद्धावस्था में मानसिक स्थिति इस बात पर निर्भर होती है कि व्यक्ति विशेष अतीत में कितना प्रसन्न, कितना दयालु रहा।
सामान्य वृद्धावस्था को तय करना बहुत कठिन काम है, क्योंकि एक तरफ जहां शारीरिक बदलाव होते रहते हैं, तो दूसरी तरफ बुढ़ापे की वजह से पुराने रोग सिर उठाने लगते हैं। रोगों से मुक्त वृद्धावस्था की कल्पना करना बहुत कठिन है और इसीलिए यह कहा जाता है कि ''वृद्धावस्था स्वयं एक रोग है''।
कुछ बीमारियां ऐसी हैं, जो वृद्धावस्था में ज्यादा पैदा होती हैं, जैसे मधुमेह, कैंसर, हृदय रोग और किडनी संबंधी रोग। यह बीमारियां शरीर के विभिन्न भागों जैसे किडनी, मस्तिष्क और हृदय को प्रभावित करती हैं।
विकासशील देशों में वृद्धों की संख्या तेजी के साथ बढ़ती जा रही है। वर्ष 1990 में विकासशील देशों में 60 वर्ष के आयु वाले लोगों की संख्या विकसित देशों की तुलना में बहुत बढ़ गई थी। वर्तमान संकेतकों के अनुसार एशिया में वृद्धों की संख्या विश्व की आधी से अधिक हो जाएगी और इसमें भारत और चीन का बड़ा हिस्सा होगा।
2001 की जनगणना के अनुसार भारत में वृद्धों की संख्या सात करोड़ सत्तर लाख है जबकि 1961 में उनकी संख्या केवल दो करोड़ चालीस लाख थी। 1981 में यह बढ़कर चार करोड़ तीस लाख हो गई और सन् 91 में ये पाँच करोड़ सत्तर लाख तक पहुंच गई। भारत की आबादी में वृद्ध लोगों का अनुपात 1961 में 5.63 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2001 तक 7.5 प्रतिशत हो गया और 2025 तक यह 12 प्रतिशत तक हो जाने की संभावना है। सत्तर साल से अधिक आयु के वृद्ध जनों की संख्या जहां 1961 में अस्सी लाख थी वहीं वर्ष 2001 में यह बढ़कर दो करोड़ नब्बे लाख हो गई। भारतीय जनसंख्या के आंकड़े के अनुसार 1961 में शताब्दी पूरा करने वालों की संख्या 99 हज़ार दर्ज की गई, वहां 1991 में ये बढ़कर एक लाख अड़तीस हज़ार हो गई।
भारत में 21 शताब्दी के पहले मध्य में आयु संबंधी परिदृश्य के आकलन के लिए अगले पचास वर्षों में वृद्धों की संख्या अनुमानित की गयी है। भारत के साठ और उससे अधिक आयु के वृद्धों की संख्या 2001 में 7 करोड़ 70 लाख से बढ़कर वर्ष 2031 में एक अरब 7 करोड़ 90 लाख पहुंच जाने की संभावना है और वर्ष 2051 तक 3 अरब 10 लाख तक पहुंचने का अनुमान लगाया गया है। 70 साल से अधिक आयु के लोगों की संख्या में वर्ष 2001 से 2051 के बीच पाँच गुणा वृद्धि का अनुमान लगाया गया है।
समाज में स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं चिंता की वजह है क्योंकि वृद्ध लोगों को युवाओं की अपेक्षा खराब स्वास्थ्य का सामना करना पड़ता है। शारीरिक बीमारी के अलावा अधिक आयु के लोगों को मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से पीड़ित होने की भी संभावना रहती है। अध्ययन से पता चला है कि अधिक आयु के लोग ज्यादातर खांसी से पीड़ित रहते हैं। (बीमारियों के अंतर्राष्ट्रीय वर्गीकरण के अनुसार ये टीबी, फेफड़े की सूजन, दमा, काली खांसी इत्यादि से जुड़ी खांसी होती है)। कमजोर दृष्टि, शरीर में रक्त की अल्पता और दाँत संबंधी समस्याओं से भी वे जूझते हैं। अधिक आयु होने से वृद्ध लोगों में बीमारी बढ़़ने और बिस्तर पकड़ लेने का अनुपात बढ़ता पाया गया है। शारीरिक अक्षमताओं में दृष्टि दोष और श्रवण शक्ति खत्म होना प्रमुख है।
पहले राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण में 45 प्रतिशत वृद्ध किसी पुरानी बीमारी जैसे जोड़ों का दर्द और खांसी से पीड़ित पाये गये हैं। अन्य बीमारियों में रक्तचाप बढ़ना, हृद्य संबंधी बीमारी , मूत्र संबंधी रोग और मधुमेह है। वृद्धजनों की मृत्यु का ग्रामीण क्षेत्रों में एक प्रमुख कारण श्वास संबंधी गड़बड़ियां हैं जबकि शहरी क्षेत्रों में परिसंचार संबंधी गड़बड़ी का होना है। ग्रामीण सर्वेक्षण में बताया गया है कि लगभग पाँच प्रतिशत वृद्ध लोग बिस्तर से बिल्कुल हिल नहीं सकते जबकि अन्य 18.5 प्रतिशत लोग की सीमित गतिशीलता है। खराब स्वास्थ्य और अक्षमता की व्यापकता को देखते हुए वृद्ध लोगों में चिकित्सा सहायता संबंधी प्रावधानों के प्रति असंतोष पाया गया है। बीमार वृद्धजन पारिवारिक देखभाल से वंचित रहते हैं जबकि सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा भी उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अपर्याप्त है।
राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण द्वारा प्रचारित आठ दीर्धकालीन बीमारियों में एक तिहाई वृद्ध जोड़ों के दर्द से पीड़ित हैं जबकि 20 प्रतिशत लोग खांसी और दस प्रतिशत लोग रक्तचाप से परेशान हैं। पाँच प्रतिशत से कम वृद्ध बवासीर, मधुमेह और कैंसर से पीड़ित बताये गये हैं।
भारत में दो में से एक वृद्ध किसी न किसी एक पुरानी बीमारी से ग्रस्त हैं जिसके लिए दीर्धकालीन चिकित्सा की आवश्यकता है।
(इस फीचर में व्यक्त उपरोक्त विचार लेखक के अपने हैं और आवश्यक नहीं किया है पत्र सूचना कार्यालय के विचार को परिलक्षित करे।)
लेखक- नागपुर के एनईईआरआई संस्थान के वैज्ञानिक और पूर्व सहायक निदेशक हैं। (पीआईबी) 09-अप्रैल-2012 18:57 IST
मानवीय विकास एवं ह्रास के कुछ प्राकृतिक बदलावों को व्यक्त करने के लिए शरीर विज्ञानी ''आयु'' शब्द का इस्तेमाल करते हैं। मानवीय विकास और ह्रास को हम शैशवकाल, बाल्यकाल, युवावस्था, प्रौढ़ावस्था और वृद्धावस्था के रूप में जानते हैं। शैशवकाल सात वर्षों का, बाल्यकाल 14 वर्षों का, युवावस्था 21, प्रौढ़ावस्था 50 वर्ष तक होती है। इसके बाद वृद्धावस्था का आगमन होता है। जीवन को दो महत्वपूर्ण घटक प्रभावित करते हैं, जिनमें आनुवांशिकता और पर्यावरण शामिल हैं। पर्यावरण की परिस्थितियां जीवन को रोगों आदि के रूप में प्रभावित करती हैं।
इस वर्ष 7 अप्रैल को विश्व स्वास्थ्य दिवस मनाया गया, जो बढ़़ती आयु एवं स्वास्थ्य पर आधारित था। इसकी विषयवस्तु गुड हैल्थ ऐड्स लाइफ टू इयर्स थी। अधिकतर देशों में जीवन बढ़ रहा है। इसका मतलब यह है कि वहां लोग अब ज्यादा दिनों तक जिंदा रहते हैं और वह एक ऐसी उम्र में पहुंच रहे हैं, जहां उन्हें स्वास्थ्य सुविधाओं की सर्वाधिक आवश्यकता होती है।
स्वास्थ्य सुविधाओं में रोगों, बीमारी, चोटों और अन्य शारीरिक एवं मानसिक कमजोरी संबंधित बीमारियों का निदान, उपचार एवं रोकथाम शामिल है। स्वास्थ्य सुविधाएं, दवाइयों, परिचर्या, फार्मेसी, संबंधित स्वास्थ्य सेवा, दांतों का उपचार एवं अन्य तरह की सेवाओं द्वारा प्रदान की जाती हैं। विभिन्न देशों, समूहों और समाजों में स्वास्थ्य सेवाओं की सुविधाएं भिन्न-भिन्न प्रकार की हैं, जो संबंधित देश की सामाजिक, आर्थिक एवं नीतिगत परिस्थितियों पर निर्भर करती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार एक बेहतर स्वास्थ्य प्रणाली के लिए यह आवश्यक है कि वह ठोस निर्णयों एवं नीतियों पर आधारित हो, उसकी वित्तीय व्यवस्था मजबूत हो और बेहतरीन चिकित्सकीय व्यवस्था बनाई गई हो।
देश की अर्थव्यवस्था में स्वास्थ्य सुविधा का महत्वपूर्ण स्थान है। 2008 में तमाम विकसित देशों में सकल घरेलू उत्पाद का औसतन नौ प्रतिशत स्वास्थ्य सुविधा उद्योग पर खर्च किया गया था। अमरीका में इस मद में सकल घरेलू उत्पाद का 16 प्रतिशत, फ्रांस में 11.2 प्रतिशत और स्विट्जरलैंड में 10.7 प्रतिशत खर्च किए जाते हैं।
एक स्वस्थ और सामान्य वृद्धावस्था प्राकृतिक रूप से अंगों के ह्रास के द्वारा आती है। थकान बहुत जल्दी होती है, स्मृति कमजोर होती जाती है और आत्मशक्ति धीरे-धीरे कम होती जाती है। वृद्धावस्था में मानसिक स्थिति इस बात पर निर्भर होती है कि व्यक्ति विशेष अतीत में कितना प्रसन्न, कितना दयालु रहा।
सामान्य वृद्धावस्था को तय करना बहुत कठिन काम है, क्योंकि एक तरफ जहां शारीरिक बदलाव होते रहते हैं, तो दूसरी तरफ बुढ़ापे की वजह से पुराने रोग सिर उठाने लगते हैं। रोगों से मुक्त वृद्धावस्था की कल्पना करना बहुत कठिन है और इसीलिए यह कहा जाता है कि ''वृद्धावस्था स्वयं एक रोग है''।
कुछ बीमारियां ऐसी हैं, जो वृद्धावस्था में ज्यादा पैदा होती हैं, जैसे मधुमेह, कैंसर, हृदय रोग और किडनी संबंधी रोग। यह बीमारियां शरीर के विभिन्न भागों जैसे किडनी, मस्तिष्क और हृदय को प्रभावित करती हैं।
विकासशील देशों में वृद्धों की संख्या तेजी के साथ बढ़ती जा रही है। वर्ष 1990 में विकासशील देशों में 60 वर्ष के आयु वाले लोगों की संख्या विकसित देशों की तुलना में बहुत बढ़ गई थी। वर्तमान संकेतकों के अनुसार एशिया में वृद्धों की संख्या विश्व की आधी से अधिक हो जाएगी और इसमें भारत और चीन का बड़ा हिस्सा होगा।
2001 की जनगणना के अनुसार भारत में वृद्धों की संख्या सात करोड़ सत्तर लाख है जबकि 1961 में उनकी संख्या केवल दो करोड़ चालीस लाख थी। 1981 में यह बढ़कर चार करोड़ तीस लाख हो गई और सन् 91 में ये पाँच करोड़ सत्तर लाख तक पहुंच गई। भारत की आबादी में वृद्ध लोगों का अनुपात 1961 में 5.63 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2001 तक 7.5 प्रतिशत हो गया और 2025 तक यह 12 प्रतिशत तक हो जाने की संभावना है। सत्तर साल से अधिक आयु के वृद्ध जनों की संख्या जहां 1961 में अस्सी लाख थी वहीं वर्ष 2001 में यह बढ़कर दो करोड़ नब्बे लाख हो गई। भारतीय जनसंख्या के आंकड़े के अनुसार 1961 में शताब्दी पूरा करने वालों की संख्या 99 हज़ार दर्ज की गई, वहां 1991 में ये बढ़कर एक लाख अड़तीस हज़ार हो गई।
भारत में 21 शताब्दी के पहले मध्य में आयु संबंधी परिदृश्य के आकलन के लिए अगले पचास वर्षों में वृद्धों की संख्या अनुमानित की गयी है। भारत के साठ और उससे अधिक आयु के वृद्धों की संख्या 2001 में 7 करोड़ 70 लाख से बढ़कर वर्ष 2031 में एक अरब 7 करोड़ 90 लाख पहुंच जाने की संभावना है और वर्ष 2051 तक 3 अरब 10 लाख तक पहुंचने का अनुमान लगाया गया है। 70 साल से अधिक आयु के लोगों की संख्या में वर्ष 2001 से 2051 के बीच पाँच गुणा वृद्धि का अनुमान लगाया गया है।
समाज में स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं चिंता की वजह है क्योंकि वृद्ध लोगों को युवाओं की अपेक्षा खराब स्वास्थ्य का सामना करना पड़ता है। शारीरिक बीमारी के अलावा अधिक आयु के लोगों को मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से पीड़ित होने की भी संभावना रहती है। अध्ययन से पता चला है कि अधिक आयु के लोग ज्यादातर खांसी से पीड़ित रहते हैं। (बीमारियों के अंतर्राष्ट्रीय वर्गीकरण के अनुसार ये टीबी, फेफड़े की सूजन, दमा, काली खांसी इत्यादि से जुड़ी खांसी होती है)। कमजोर दृष्टि, शरीर में रक्त की अल्पता और दाँत संबंधी समस्याओं से भी वे जूझते हैं। अधिक आयु होने से वृद्ध लोगों में बीमारी बढ़़ने और बिस्तर पकड़ लेने का अनुपात बढ़ता पाया गया है। शारीरिक अक्षमताओं में दृष्टि दोष और श्रवण शक्ति खत्म होना प्रमुख है।
पहले राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण में 45 प्रतिशत वृद्ध किसी पुरानी बीमारी जैसे जोड़ों का दर्द और खांसी से पीड़ित पाये गये हैं। अन्य बीमारियों में रक्तचाप बढ़ना, हृद्य संबंधी बीमारी , मूत्र संबंधी रोग और मधुमेह है। वृद्धजनों की मृत्यु का ग्रामीण क्षेत्रों में एक प्रमुख कारण श्वास संबंधी गड़बड़ियां हैं जबकि शहरी क्षेत्रों में परिसंचार संबंधी गड़बड़ी का होना है। ग्रामीण सर्वेक्षण में बताया गया है कि लगभग पाँच प्रतिशत वृद्ध लोग बिस्तर से बिल्कुल हिल नहीं सकते जबकि अन्य 18.5 प्रतिशत लोग की सीमित गतिशीलता है। खराब स्वास्थ्य और अक्षमता की व्यापकता को देखते हुए वृद्ध लोगों में चिकित्सा सहायता संबंधी प्रावधानों के प्रति असंतोष पाया गया है। बीमार वृद्धजन पारिवारिक देखभाल से वंचित रहते हैं जबकि सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा भी उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अपर्याप्त है।
राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण द्वारा प्रचारित आठ दीर्धकालीन बीमारियों में एक तिहाई वृद्ध जोड़ों के दर्द से पीड़ित हैं जबकि 20 प्रतिशत लोग खांसी और दस प्रतिशत लोग रक्तचाप से परेशान हैं। पाँच प्रतिशत से कम वृद्ध बवासीर, मधुमेह और कैंसर से पीड़ित बताये गये हैं।
भारत में दो में से एक वृद्ध किसी न किसी एक पुरानी बीमारी से ग्रस्त हैं जिसके लिए दीर्धकालीन चिकित्सा की आवश्यकता है।
(इस फीचर में व्यक्त उपरोक्त विचार लेखक के अपने हैं और आवश्यक नहीं किया है पत्र सूचना कार्यालय के विचार को परिलक्षित करे।)
लेखक- नागपुर के एनईईआरआई संस्थान के वैज्ञानिक और पूर्व सहायक निदेशक हैं। (पीआईबी) 09-अप्रैल-2012 18:57 IST
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