सफलता की एक और नयी कहानी सुधा एस नंबूदरी*
नारियल का खोया हुआ गौरव लौटाया
विश्व पर्यटन मानचित्र पर केरल 'ईश्वर का प्रदेश' के साथ-साथ नारियल वृक्षों की भूमिके नाम से भी अंकित है। लेकिन कुछ समय से कई नारियल किसानों ने अन्य लाभकारी फसलों की खेती करना शुरू कर दिया है। इसके पीछे अन्य कारणों के साथ एक प्रमुख कारण यह है किनारियल के पेड़ों पर नारियल तोड़ने के लिए चढ़ने वालों की कमी है। कुछ समय पहले नारियल तोड़ने का काम समाज के एक स्तर तक सीमित था लेकिन आज के युवाओं के मध्य वर्गीय जीवन शैली के प्रतिआकर्षण तथा कम खतरे एवं ज्यादा सम्मान वाली नौकरियों के प्रतिझुकाव के कारण केरल में इस समय नारियल तोड़ने वाले विलुप्तप्राय प्रजातिकी श्रेणी में शामिल होने वाले हैं। अगर आप उन्हें खोजने निकलें, तो पहले तो वे मिलेंगे नहीं, अगर कोई एक मिलता भी है तो वह ऊंची रकम की मांग करेगा और अवैज्ञानिक तरीके से वे नारियल तोड़ने का काम करेगा। शुक्र है किनारियल विकास बोर्ड ने एक पहल की जिसके अंतर्गत बोर्ड ने युवाओं, प्रौढ व्यक्तियों और महिलाओं को नारियल पेड़ों पर चढ़कर नारियल तोड़ने की कला सिखाना शुरू किया है और बोर्ड ने अपनी वेबसाइट पर इन लोगों के संपर्क विवरण भी उपलब्ध कराए हैं।
हालांकिकृषिके किसी भी क्षेत्र में इस समय श्रम की कमी एक सामान्य घटना है। नारियल विकास बोर्ड के अध्यक्ष ने बताया किनारियल तोड़ने, पेड़ों की देखभाल, क्राउन क्लीनिंग और हारवेस्टिंग आदिके लिए कुशल श्रम की आवश्यकता होती है। इस क्षेत्र में इस आधारभूत समस्या को देखते हुए बोर्ड ने 'नारियल पेड़ों के मित्र' नाम से एक नई पहल की है। इस चुनौती को हासिल करने के लिए बोर्ड की मदद हेतु केरल कृषिविश्वविद्यालय, कृषिविज्ञान केन्द्र और कुछ गैर-सरकारी संगठन आगे आए। विस्तृत विचार-विमर्श एवं योजना के पश्चात 'नारियल पेड़ों के मित्र' प्रशिक्षण कार्यक्रम सही रास्ते पर है। बोर्ड का यह प्रशिक्षण कार्यक्रम 17 अगस्त, 2011 में शुरू हुआ और पहले चरण में केरल राज्य के 11 जिलों में यह कार्य करेगा। इस समय कुल 2651 प्रशिक्षित पोशाकधारी 'नारियल पेड़ों के मित्र' कार्य कर रहे हैं, जिनमें 118 महिलाएं भी शामिल हैं। 6 दिन के इस कार्यक्रम में योग, सुरक्षा, आर्थिक सुरक्षा, संप्रेषण की कला, नारियल की खेती, नारियल में लगने वाले रोगों की रोकथाम आदिके प्रशिक्षण के साथ-साथ बोर्ड प्रशिक्षार्थी को दैनिक भत्ता, पेड़ों पर चढ़ने की मशीन और दो पोशाकें मुफ्त में देता है। बोर्ड ने इन 'नारियल पेड़ मित्रों' के लिए शुल्क का मानकीकरण किया है जिसमें 10 रुपये सामान्य पेड़ों (40 फुट ऊंचा) के लिए और अन्य सभी ऊंचे पेड़ों के लिए 15 रुपये का शुल्क तय है। इस तरह एक मेहनतकश प्रशिक्षु एक साल में तीन लाख रुपये तक कमा सकता है। बोर्ड का लक्ष्य इस साल पांच हजार 'नारियल पेड़ मित्र' तैयार करना है। हालांकिबोर्ड उन पारंपरिक नारियल तोड़ने वालों की भी मदद करना चाहता है जो 'नारियल पेड़ मित्र' बनना चाहते हैं। लक्षद्वीप के भी 102 लोग प्रशिक्षण पा चुके हैं।
नारियल तोड़ने के कार्य में शर्म महसूस करने के कारणों पर नारियल विकास बोर्ड विस्तृत अध्ययन कर रहा है। इसके बड़े कारणों में व्यावसायिक जोखिम एक महत्वपूर्ण कारण पता चला है। इसको देखते हुए बोर्ड ने यूनाइटेड इंडिया इन्श्योरेंस कंपनी के साथ नारियल पेड़ों पर चढ़ने वालों के लिए जोखिम बीमा उपलब्ध कराने की एक योजना आरंभ की है। केरा सुरक्षा बीमा नाम से यह योजना केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और पुद्दूचेरी में लागू की जा चुकी है। बीमा किस्त का 75 प्रतिशत बोर्ड देगा जबकिपेड़ पर चढ़ने वालों को मात्र 25 प्रतिशत खर्च वहन करना होगा। नारियल पेड़ पर चढ़ने वाले बीमाकृत व्यक्तिको दुर्घटना में मौत, अधिकतम शारीरिक क्षति, स्थायी आंशिक क्षति, अस्पताल के खर्चे, साप्ताहिक मुआवजा और मृत्यु के मामलों में अंतिम संस्कार के खर्चे आदिपर कुल 1,16,750 रुपए अधिकतम लाभ मिल सकेंगे। प्रतिव्यक्ति146 रुपये (सभी कर सहित) की किस्त तय की गयी है। लेकिन अगर 'नारियल पेड़ मित्र' का बीमा बोर्ड द्वारा कराया जाता है तो सौ प्रतिशत बीमा का भार बोर्ड ही उठाएगा। उन्हें प्रशिक्षण के पहले दिन से ही बीमा लाभ मिलना शुरू हो जाएगा। 'नारियल पेड़ मित्र' परियोजना नारियल क्षेत्र के खो चुके वैभव को वापस लाने के लिए बोर्ड की पहल है। यह प्रशिक्षण कार्यक्रम बेरोजगार युवाओं को उनके अपने क्षेत्र में ही एक बेहतर आय और आजीविका उपलब्ध कराने का अवसर है। श्री जोस ने बताया कियदिकोई व्यक्तिइच्छुक एवं मेहनती है, तो वह निश्चित तौर पर सरकारी या प्राइवेट कर्मचारी की तरह कमाई कर सकता है। उन्होंने बताया कियदिनारियल क्षेत्र में यह पहल सफल होती है तो अन्य कृषिफसलों में भी ऐसी शुरूआत की जा सकती है।
पालक्काड़ के एक प्रशिक्षणार्थी 51 वर्षीय श्री थंकामनी का कहना है किउन्होंने एक माह पहले पल्लकड़ में प्रशिक्षण लिया, जिससे उन्हें उनके सीमित समय में ही 4000 रुपए महीने की अतिरिक्त आय हुई। वह एक निजी संस्था में कार्य करते हैं जहां से उन्हें प्रतिमाह 4200 रुपए की आमदनी होती है। वह प्रशिक्षण और उसमें मिली मशीन से काफी प्रभावित हैं और उन्होंने अपने कई मित्रों को भी इस प्रशिक्षण में शामिल होने का सुझाव दिया है। उन्होंने बताया किमशीन वाकई में काफी अच्छी है, जिससे पेड़ पर चढ़ने में थकान का पता ही नहीं चलता। प्रशिक्षण ले चुके एक अन्य व्यक्ति श्री थम्पी वी ए 15,000 रुपए पर एक पूर्णकालिक नौकरी पा चुके हैं। वह और अधिक काम के लिए पहुंच आसान बनाने हेतु दोपहिया वाहन खरीदने की योजना बना रहे हैं। उन्होंने बताया किउनकी काफी मांग है जिन्हें वह पूरा नहीं कर पा रहे हैं। यह महज एक खबर नहीं है। यह कहने की आवश्यकता नहीं है किइससे महज नारियल पेड़ मित्रों का विकास हो रहा है बल्किनारियल विकास बोर्ड के निदेशक भी यह विश्वास करते हैं किइससे नारियल क्षेत्र का खो चुका गौरव भी वापस आएगा। ***
* मीडिया एवं संचार अधिकारी, पत्र सूचना कार्यालय, कोचीन
नारियल का खोया हुआ गौरव लौटाया
विश्व पर्यटन मानचित्र पर केरल 'ईश्वर का प्रदेश' के साथ-साथ नारियल वृक्षों की भूमिके नाम से भी अंकित है। लेकिन कुछ समय से कई नारियल किसानों ने अन्य लाभकारी फसलों की खेती करना शुरू कर दिया है। इसके पीछे अन्य कारणों के साथ एक प्रमुख कारण यह है किनारियल के पेड़ों पर नारियल तोड़ने के लिए चढ़ने वालों की कमी है। कुछ समय पहले नारियल तोड़ने का काम समाज के एक स्तर तक सीमित था लेकिन आज के युवाओं के मध्य वर्गीय जीवन शैली के प्रतिआकर्षण तथा कम खतरे एवं ज्यादा सम्मान वाली नौकरियों के प्रतिझुकाव के कारण केरल में इस समय नारियल तोड़ने वाले विलुप्तप्राय प्रजातिकी श्रेणी में शामिल होने वाले हैं। अगर आप उन्हें खोजने निकलें, तो पहले तो वे मिलेंगे नहीं, अगर कोई एक मिलता भी है तो वह ऊंची रकम की मांग करेगा और अवैज्ञानिक तरीके से वे नारियल तोड़ने का काम करेगा। शुक्र है किनारियल विकास बोर्ड ने एक पहल की जिसके अंतर्गत बोर्ड ने युवाओं, प्रौढ व्यक्तियों और महिलाओं को नारियल पेड़ों पर चढ़कर नारियल तोड़ने की कला सिखाना शुरू किया है और बोर्ड ने अपनी वेबसाइट पर इन लोगों के संपर्क विवरण भी उपलब्ध कराए हैं।
हालांकिकृषिके किसी भी क्षेत्र में इस समय श्रम की कमी एक सामान्य घटना है। नारियल विकास बोर्ड के अध्यक्ष ने बताया किनारियल तोड़ने, पेड़ों की देखभाल, क्राउन क्लीनिंग और हारवेस्टिंग आदिके लिए कुशल श्रम की आवश्यकता होती है। इस क्षेत्र में इस आधारभूत समस्या को देखते हुए बोर्ड ने 'नारियल पेड़ों के मित्र' नाम से एक नई पहल की है। इस चुनौती को हासिल करने के लिए बोर्ड की मदद हेतु केरल कृषिविश्वविद्यालय, कृषिविज्ञान केन्द्र और कुछ गैर-सरकारी संगठन आगे आए। विस्तृत विचार-विमर्श एवं योजना के पश्चात 'नारियल पेड़ों के मित्र' प्रशिक्षण कार्यक्रम सही रास्ते पर है। बोर्ड का यह प्रशिक्षण कार्यक्रम 17 अगस्त, 2011 में शुरू हुआ और पहले चरण में केरल राज्य के 11 जिलों में यह कार्य करेगा। इस समय कुल 2651 प्रशिक्षित पोशाकधारी 'नारियल पेड़ों के मित्र' कार्य कर रहे हैं, जिनमें 118 महिलाएं भी शामिल हैं। 6 दिन के इस कार्यक्रम में योग, सुरक्षा, आर्थिक सुरक्षा, संप्रेषण की कला, नारियल की खेती, नारियल में लगने वाले रोगों की रोकथाम आदिके प्रशिक्षण के साथ-साथ बोर्ड प्रशिक्षार्थी को दैनिक भत्ता, पेड़ों पर चढ़ने की मशीन और दो पोशाकें मुफ्त में देता है। बोर्ड ने इन 'नारियल पेड़ मित्रों' के लिए शुल्क का मानकीकरण किया है जिसमें 10 रुपये सामान्य पेड़ों (40 फुट ऊंचा) के लिए और अन्य सभी ऊंचे पेड़ों के लिए 15 रुपये का शुल्क तय है। इस तरह एक मेहनतकश प्रशिक्षु एक साल में तीन लाख रुपये तक कमा सकता है। बोर्ड का लक्ष्य इस साल पांच हजार 'नारियल पेड़ मित्र' तैयार करना है। हालांकिबोर्ड उन पारंपरिक नारियल तोड़ने वालों की भी मदद करना चाहता है जो 'नारियल पेड़ मित्र' बनना चाहते हैं। लक्षद्वीप के भी 102 लोग प्रशिक्षण पा चुके हैं।
नारियल तोड़ने के कार्य में शर्म महसूस करने के कारणों पर नारियल विकास बोर्ड विस्तृत अध्ययन कर रहा है। इसके बड़े कारणों में व्यावसायिक जोखिम एक महत्वपूर्ण कारण पता चला है। इसको देखते हुए बोर्ड ने यूनाइटेड इंडिया इन्श्योरेंस कंपनी के साथ नारियल पेड़ों पर चढ़ने वालों के लिए जोखिम बीमा उपलब्ध कराने की एक योजना आरंभ की है। केरा सुरक्षा बीमा नाम से यह योजना केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और पुद्दूचेरी में लागू की जा चुकी है। बीमा किस्त का 75 प्रतिशत बोर्ड देगा जबकिपेड़ पर चढ़ने वालों को मात्र 25 प्रतिशत खर्च वहन करना होगा। नारियल पेड़ पर चढ़ने वाले बीमाकृत व्यक्तिको दुर्घटना में मौत, अधिकतम शारीरिक क्षति, स्थायी आंशिक क्षति, अस्पताल के खर्चे, साप्ताहिक मुआवजा और मृत्यु के मामलों में अंतिम संस्कार के खर्चे आदिपर कुल 1,16,750 रुपए अधिकतम लाभ मिल सकेंगे। प्रतिव्यक्ति146 रुपये (सभी कर सहित) की किस्त तय की गयी है। लेकिन अगर 'नारियल पेड़ मित्र' का बीमा बोर्ड द्वारा कराया जाता है तो सौ प्रतिशत बीमा का भार बोर्ड ही उठाएगा। उन्हें प्रशिक्षण के पहले दिन से ही बीमा लाभ मिलना शुरू हो जाएगा। 'नारियल पेड़ मित्र' परियोजना नारियल क्षेत्र के खो चुके वैभव को वापस लाने के लिए बोर्ड की पहल है। यह प्रशिक्षण कार्यक्रम बेरोजगार युवाओं को उनके अपने क्षेत्र में ही एक बेहतर आय और आजीविका उपलब्ध कराने का अवसर है। श्री जोस ने बताया कियदिकोई व्यक्तिइच्छुक एवं मेहनती है, तो वह निश्चित तौर पर सरकारी या प्राइवेट कर्मचारी की तरह कमाई कर सकता है। उन्होंने बताया कियदिनारियल क्षेत्र में यह पहल सफल होती है तो अन्य कृषिफसलों में भी ऐसी शुरूआत की जा सकती है।
पालक्काड़ के एक प्रशिक्षणार्थी 51 वर्षीय श्री थंकामनी का कहना है किउन्होंने एक माह पहले पल्लकड़ में प्रशिक्षण लिया, जिससे उन्हें उनके सीमित समय में ही 4000 रुपए महीने की अतिरिक्त आय हुई। वह एक निजी संस्था में कार्य करते हैं जहां से उन्हें प्रतिमाह 4200 रुपए की आमदनी होती है। वह प्रशिक्षण और उसमें मिली मशीन से काफी प्रभावित हैं और उन्होंने अपने कई मित्रों को भी इस प्रशिक्षण में शामिल होने का सुझाव दिया है। उन्होंने बताया किमशीन वाकई में काफी अच्छी है, जिससे पेड़ पर चढ़ने में थकान का पता ही नहीं चलता। प्रशिक्षण ले चुके एक अन्य व्यक्ति श्री थम्पी वी ए 15,000 रुपए पर एक पूर्णकालिक नौकरी पा चुके हैं। वह और अधिक काम के लिए पहुंच आसान बनाने हेतु दोपहिया वाहन खरीदने की योजना बना रहे हैं। उन्होंने बताया किउनकी काफी मांग है जिन्हें वह पूरा नहीं कर पा रहे हैं। यह महज एक खबर नहीं है। यह कहने की आवश्यकता नहीं है किइससे महज नारियल पेड़ मित्रों का विकास हो रहा है बल्किनारियल विकास बोर्ड के निदेशक भी यह विश्वास करते हैं किइससे नारियल क्षेत्र का खो चुका गौरव भी वापस आएगा। ***
* मीडिया एवं संचार अधिकारी, पत्र सूचना कार्यालय, कोचीन
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