"कान्हा"
कैसे हो इसका अंत ,सोच-सोच कार्यकर्ता ही घबडा गये !
विधेयक की परिभाषा से अपरिचित,परिमार्जन को आ गये !!
लोकपाल जादू की पुडिया ,खाते ही सब ईमानदारी पा गये !
भ्रष्टाचार रगों मे ऐसे दौडा,अपने -अपनो को ही खा गये !!
फ़िर भी अन्दाज-ए-अन्ना कया खूब, जन-जन मे छा गये !
कोई कहता गाँधी है,कोई कहता "कान्हा"को फ़िर हम पा गये!!
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ज्वालामुखी
अब न कोई राह सूझती है,
न कोई रह्बर दिख रहा!
कहने की न हो हिम्मत,
फ़िर भी इबारत लिख रहा!!
कल तक भ्रष्टाचार मिटाने वाला,
शेर की खाल मे भेडिया दिख रहा !!अब न कोई.............
संसद और संविधान की आड मे,
हर कोई इधर -उधर छिप रहा !! अब न कोई.............
अब तो हमे अपनी राह बनानी है,
नौजवां कितना बेसब्र दिख रहा !! अब न कोई.............
ज्वालामुखी न कोई फ़ट पडे,
बोधिसत्व ये इबारत लिख रहा !!अब न कोई....
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लगा के टोपी "अन्ना",अब तो गुण्डे भी मैदाँ मे आ गये !
भ्र्ष्टाचार के विरोध मे, अब तो भ्र्ष्टाचारी भी छा गये !!कैसे हो इसका अंत ,सोच-सोच कार्यकर्ता ही घबडा गये !
विधेयक की परिभाषा से अपरिचित,परिमार्जन को आ गये !!
लोकपाल जादू की पुडिया ,खाते ही सब ईमानदारी पा गये !
भ्रष्टाचार रगों मे ऐसे दौडा,अपने -अपनो को ही खा गये !!
फ़िर भी अन्दाज-ए-अन्ना कया खूब, जन-जन मे छा गये !
कोई कहता गाँधी है,कोई कहता "कान्हा"को फ़िर हम पा गये!!
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ज्वालामुखी
अब न कोई राह सूझती है,
न कोई रह्बर दिख रहा!
कहने की न हो हिम्मत,
फ़िर भी इबारत लिख रहा!!
कल तक भ्रष्टाचार मिटाने वाला,
शेर की खाल मे भेडिया दिख रहा !!अब न कोई.............
संसद और संविधान की आड मे,
हर कोई इधर -उधर छिप रहा !! अब न कोई.............
अब तो हमे अपनी राह बनानी है,
नौजवां कितना बेसब्र दिख रहा !! अब न कोई.............
ज्वालामुखी न कोई फ़ट पडे,
बोधिसत्व ये इबारत लिख रहा !!अब न कोई....
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अनुबन्ध
प्रीत का यह अनोखा अनुबन्ध,
यह कब,किसे कहाँ हो जाये ?
जिससे न था कोई समब्न्ध!! प्रीत का यह अनोखा अनुबन्ध !
शून्य से भी जब फ़ूटता ज्वार,
फ़िर टूट्ता है हर प्रतिबन्ध !! प्रीत का यह अनोखा अनुबन्ध !
पहले दो अन्जानों का मिलन,
फ़िर बने युग-युग के सम्बन्ध !! प्रीत का यह अनोखा अनुबन्ध !
प्यार और विश्वास से निर्मित,
हो जाते हैं जन्मों के अनुबन्ध !! प्रीत का यह अनोखा अनुबन्ध !
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दर्द का अह्सास
दर्द का अह्सास ,
क्यूं कर कभी होता नही ?
प्यार की प्यास मे,
आज तक रोता नही !! दर्द का अह्सास..........
ज़ज़्बात मे बह जाये,
मैं ऐसा कोई सोता नही!!दर्द का अह्सास..........
है इल्म मुझको,बेमतलब
रिश्तों को ढोता नही !! दर्द का अह्सास..........
किसी को अपनाना कया,
मेरा कोई बेटा या पोता नही !! दर्द का अह्सास.....
हैं यही मेरी लाश की,
कपाल क्रिया पर दर्द होता नही !!दर्द का अह्सास...
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गीत फ़िर मेरी प्रीत के ही गाना
गर किसी मोड पर मिल जाओ,
तो कभी तुम ना मुसकुराना !
हो जायेगे ज़ख्म सब फ़िर हरे
जिन्को पडा था मुझे भुलाना !! ज़िन्दगी के किसी मोड पर
कुरेदो ना मेरे ज़िस्म के नासूर,
जी उठेगा दर्द वो ही पुराना !! ज़िन्दगी के किसी मोड पर
खुश रहो तुम अपनी ज़िन्दगी मे,
अब तो यही है मेरा तराना !! ज़िन्दगी के किसी मोड पर
मय्य्त पर मेरी सज़दा करो तो,
गीत फ़िर मेरी प्रीत के ही गाना!ज़िन्दगी के किसी मोड पर बोधिसत्व कस्तूरिया
२०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २८२००७
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