"औरत होने का दर्द "
औरत होने का दर्द कौन समझता है ?,
हर कोई बस परखता है !
कभी माँ, कभी बीवी बनकर बलि की देवी बनती है
नौ महीने गर्भ के बीज को पल- पल खून से सींचती है
नव कोपल के फूटने के लम्बे इन्तजार को झेलती है
कौन आगे बढकर प्यार से माथे का पसीना पौंछता है ?
नवजीव के खिलने के असहनीय दर्द को कौन समझता है ?,
हर कोई बस परखता है !
माँ बनकर अपने जिगर के टुकड़े को हर दिन बढ़ते देखती है
कभी प्यार से तो, कभी डांट से पुचकारती है
खुद भूखा रहकर भी हर एक का पेट भरती है
कभी रात का बचा भात तो ,कभी दिन की बची रोटी रात में खाती है
इस बलिदान को कौन समझता है ?,
हर कोई बस परखता है !
कभी पति, कभी बच्चों की दूरी को कम करते पिस जाती है
बच्चें लायक हो तो पिता का सीना गर्व से फूलता है
परीक्षा में कम निकले तो हर कोई माता को कोसता है
हम सफ़र के माथे की हर शिकन को तुरंत भांप लेती है
इस ममता को कौन समझता है ?,
हर कोई बस परखता है !
कभी बेटी, कभी बहन बनकर सब सह जाती है
कभी बाप , कभी भाई के गुस्से में भी मुस्कुराती है
मायके में बचपन के आँगन का हर कर्ज चुकाती है
अपने हर गम, हर दुःख में भी सबका गम भुलाती है
इस दुलार को कौन समझता है ?,
हर कोई बस परखता है !
कभी प्रेमिका बनकर, कभी दोस्ती के नाम पर छली जाती है
खुद गुस्सा होकर भी अपने प्रेमी को हर पल मनाती है
प्रेमी के मन की हर बात बिन कहे समझ जाती है
अपना हर आंसू उससे छुपा लेती है
कभी उसकी याद में तो, कभी बेरुखी में तड़पती है
इस जलन को कौन समझता है ? ,
हर कोई बस परखता है !
कभी बहू बनकर दहेज़ के नाम पर ताने सह जाती है
बेटी पैदा करने पर गुनाहगार ठहराई जाती है
कभी प्रसव तो , कभी गर्भ -पात की पीड़ा झेल जाती है
अपने ही अरमानों की अर्थी अपने कांधो पर उठाती है
इस संवेदना को कौन समझता है ? ,
हर कोई बस परखता है !
---अलका सैनी
2 comments:
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति | धन्यवाद|
बहुत हद तक ठीक हैं आपकी बातें अलका जी कि-
औरत होने का दर्द कौन समझता है
हर कोई बस परखता है
इसके अतिरिक्त भी कुछ बात है -
अक्सर बेटी जब घर आती
घर की औरत को ना भाती
औरत का औरत क्यों दुश्मन
सुमन का दिल धड़कता है
जो औरत का दर्द समझता है।
सादर
श्यामल सुमन
+919955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
Post a Comment