Tuesday, December 28, 2010

पूरी दुनिया में आवाजें उठ रही है डॉ. विनायक सेन के समर्थन में


डाक्टर विनायक सेन, नारायण सान्याल और पीयूष गुहा को लेकर विचार चर्चा लगातार गरमा रही है. श्री राम तिवारी ने अपने ब्लॉग इन्कलाब ज़िंदाबाद में लिखा  है की विगत सप्ताह छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर की एक अदालत ने जिन तीन लोगों को नक्सलवादियों का समर्थक होने के संदेह  मात्र के लिए आजीवन कारावास जैसी सजा सुनाई उसकी अनुगूंज बहुत दूर तक बहुत लम्बे समय तक सुनाई देती रहेगी .डॉ विनायक सेन ,नारायण सान्याल और पीयूष गुहा कितने बड़े खूंखार हैं ?.उनसे मानवता और देश को कितना खतरा है ? इस फैसले के बाद  देश की जनता ने जाना और माना की माननीय न्याय मंदिर के शिखर पर विराजित स्वर्ण कलश की चमक इस फैसले से कितनी फीकी हुई है या होने वाली है  इस एतिहासिक न्यायिक फैसले पर जारी  विमर्श के केंद्र में वस्तुत; व्यक्ति नहीं विचारधारा ही है. खास तौर से देश का मध्यम वर्ग और आम तौर पर सभी सुशिक्षित और राष्ट्र निष्ठ भारतीय इस कथन को सगर्व पेश करते हैं की 'हमारा प्रजातंत्र  चीन की साम्यवादी तानाशाही से बेहतर है ,रूसी अमेरिकी और ब्रिटेन के लोकतंत्र में भी अभिव्यक्ति की इतनी आजादी नहीं जितनी की हमारी  महान भारतीय लोकतान्त्रिक व्यवस्था में है '
श्री राम तिवारी
दुनिया के अधिकांश  देशों और विभिन्न व्यवस्थाओं में दंड नीति की अपनी अपनी खासियतें हैं .किन्तु भारत में उदात्त न्याय दर्शन और मीमांसाएँ हैं -अपराधी भले ही छूट जाये ,किन्तु निर्दोष को सजा नहीं मिलना चाहिए .
बेशक यह सही भी है किन्तु यहाँ बहुत पुरानी पोराणिक आख्यायिका है की "एक हांड़ी दो पेट बनाये ,सुगर नार श्रवण की 'मात्रु -पित्र परम भक्त श्रवण कुमार की पत्नी ने ऐसी हांड़ी वना रखी थी -जिसके दो भाग अंदर ही अंदर थे उसमें वो एक ही समय में एक हिस्से में खीर पकाती थी और दूसरे हिस्से में पतला दलिया,खीर वो अपने पति -श्रवणकुमार को खिलाती  और दलिया अपने सास -ससुर को ,अंधे सास-ससुर यही समझते की जो हम खा रहे हैं वही बेटा श्रवण खा रहा है .भारतीय लोकतंत्र रुपी हांड़ी में भी दो पेट हैं .एक सबल और प्रभुत्वशाली  वर्ग के लिए दूसरा निर्धन अकिंचन असहाय वर्ग के लिए .सारी दुनिया समझती है की हमारे लोकतंत्र की हांड़ी में जो कुछ भी पक  रहा है वो वही है जो वह देख सुन या महसूस कर रहा है .जबकि इण्डिया शाइनिंग का नारा देते वक्त 2008 में यह और भी स्पष्ट हो गया था की उन्नत वैज्ञानिक  तरक्की का लाभ देश की अधिसंख्य जनता तक नहीं पहुँच पाया है और अटलजी को -एन डी ये को अपने विश्वश्त अलायन्स पार्टनर चन्द्र बाबु नायडू जैसों के साथ पराजय का मुख देखना
पड़ा था .तब पता चला की इंडिया और भारत में खाई चोडी होती जा रही है .यह विराट दूरी  सिर्फ आर्थिक या जीवन की गुजर-बसर  तक ही नहीं अपितु सामजिक ,आर्थिक .सांस्कृतिक और न्यायिक क्षेत्रों तक पसरी हुई है .
  देश में आर्थिक सुधारों और लाइसेंस राज के आविर्भाव उपरान्त विगत 20 सालों में इतनी तरक्की हुई की पहले 5 पूंजीपति अर्थात मिलियेनार्स थे अब 54 मिलिय्र्नार्स हो गए हैं .तरक्की हुई की नहीं ?पहले 1990 में गरीबी की रेखा से नीचे 19 करोड़ निर्धन जन थे अब 33 करोड़ हो चुके हैं -तरक्की तो हुई की नहीं ?
यही बात शिक्षा ,स्वास्थ्य ,जीवन स्तर के सन्दर्भ में मूल्यांकित की जाये तो स्थिति और भी भयावह नजर आएगी .भारतीय प्रजातांत्रिक -
न्याय व्यस्था  पर प्रश्न चिन्ह सिर्फ विनायक सेन के सन्दर्भ में या रामजन्म भूमि बाबरी - मस्जिद के सन्दर्भ में
नहीं उठा बल्कि वह आजादी के फ़ौरन बाद से लगातार उठता रहा है .वह तब भी उठा जब तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी ने अलाहाबाद  उच्च न्यायलय में अपनी चुनावी हार को फौरन सर्वोच्च न्यायलय के मार्फ़त जीत में बदल दिया .सवाल तब भी उठा जब शाहबानो  प्रकरण में कानून बदला गया .सवाल तब भी उठा जब लाल देंगा जैसे देशद्रोही से न केवल बात की गई बल्कि उसे मुख्यमंत्री तक बनवा दिया .सवाल अब भी कायम है की हजारों डाकुओं को आत्म समर्पण के बहाने उनके अनगिनत पापों को इस देश के कानून ने और व्यवस्था ने माफ़ किया .एक बार नहीं अनेक बार ,अनेक प्रकरणों और संदर्भो में ऐसा पाया गया की शक्तिशाली  वर्ग -पप्पू यादवों .तस्लीम उद्दीनों ,बुखारियों ,ठाकरे और गुजरात के नरसंहार कर्ताओं की कानून मदद करता पाया गया .

वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण जी ने जिन एक दर्जन माननीयों  के भ्रष्टाचार में लिप्त होने के सबूत सर्वोच्च न्यायलय को दिए हैं उनके लिए अलग दंड विधान है याने कोई कुछ नहीं बोलेगा .यदि बोलेगा तो जुबान काट दी जायेगी .शूली पर लटका दिया जायेगा .इन शक्तिशाली प्रभुत्व   वर्ग के खिलाफ बोलना याने विनायक सेन होना है ,विनायक सेन एक आध तो है नहीं  की उसे जेल भेज दोगे तो ये अंधेर नगरी चोपट राज चलता रहेगा .विनायक सेन पीयूष गुहा और नारायण सान्याल तो भारतीय आत्मा का चीत्कार हैं ,आदरणीयों ,मान नीयो .इतना जुल्म न करो की आसमान रो पड़े और जनता गाने लगे की ये लड़ाई है दिए की और तूफ़ान की ...इस पूरी पोस्ट को आप यहां क्लिक करके भी पढ़ सकते हैं .
डॉ. विनायक सेन 
इसी मुद्दे पर जानी मानी वैब पत्रिका प्रवक्ता ने बाकायदा एक विचार चर्चा शुरू की है. पत्र ने परिचर्चा के शीर्षक में ही पूछा है क्या डॉ. विनायक सेन देशद्रोही हैं? इस परिचर्चा को शुरू करते हुए प्रवक्ता ने लिखा है,"डॉ. विनायक सेन पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बन गए हैं। गौरतलब है कि पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) नेता और मानवाधिकार कार्यकर्ता डॉ. सेन को रायपुर जिला एवं सेशन न्‍यायालय के न्‍यायाधीश बीपी वर्मा ने 24 दिसंबर को देशद्रोह और साजिश रचने का दोषी करार दिया। न्‍यायालय ने डा. सेन के साथ ही प्रतिबंधित संगठन भाकपा (माओवादी) पोलित ब्‍यूरो के सदस्‍य नारायण सान्याल व पीजूष गुहा को उम्रकैद की सजा सुनाई। तीनों पर यह आरोप सिद्ध हुआ कि उन्होंने राज्य के खिलाफ षड्यंत्र किया था। आईपीसी की धारा 124 ए के तहत राज्य के खिलाफ षड्यंत्र करने का आरोप लगा। छत्तीसगढ़ जन सुरक्षा अधिनियम की धारा 1, 2, 3 व 5 के तहत डा. सेन को दोषी करार दिया गया। राज्य के खिलाफ गतिविधियों के तहत धारा 39-2 के तहत भी उन्हें दोषी करार दिया गया।" 
प्रवक्ता ने डाक्टर विनायक सेन के विरोध का पक्ष भी उजागर किया. पत्र ने लिखा  है:
डॉ. विनायक सेन के विरोध में
• न्‍यायाधीश बीपी वर्मा ने डॉ. सेन को देश के खिलाफ युद्ध छे़डने, लोगों को भ़डकाने और प्रतिबंधित माओवादी संगठन के लिए काम करने को दोषी करार दिया। उन्‍होंने अपने फैसले में लिखा कि आरोपी नक्सलियों के शहरी नेटवर्क को बढ़ावा देकर शहरों में हिंसक वारदात करवाना चाहते थे।
• फैसले में इस बात का उल्लेख किया गया है कि नारायण सान्याल नक्सली माओवादियों की सबसे बड़ी संस्था पोलित ब्यूरो का सदस्य है, वह बिनायक सेन व पीजूष गुहा के माध्यम से जेल में रहकर ही शहरी क्षेत्रों में हिंसक वारदातों को अंजाम देने की कोशिश में था। पुलिस को जब यह पता चला तो सबसे पहले शहर में बाहर से आने वाले संदिग्ध व्यक्तियों के बारे में होटल, लाज, धर्मशाला व ढाबों पर दबिश दी गई। दबिश के कारण ही पीयूष गुहा पुलिस के हत्थे चढ़ा।
• यह भी पाया गया है कि विनायक सेन नारायण सान्याल के पत्र पीयूष गुहा को गोपनीय कोड के माध्यम से प्रेषित किया करता था। तीनों अभियुक्तों की मंशा नक्सलियों के खिलाफ चल रहे आंदोलन सलवा जुड़ूम को समाप्त करने की भी थी।
डा. बिनायक सेन के मकान की तलाशी में नारायण सान्याल का लिखा पत्र, सेंट्रल जेल बिलासपुर में बंद नक्सली कमांडर मदन बरकड़े का डा. सेन को कामरेड के नाम से संबोधित किया पत्र व 8 सीडी जिसमें सलवा जुडूम की क्लीपिंग व नारायणपुर के गांवों में डा. सेन के द्वारा गांव वासियों व महिलाओं के मध्य बातचीत के अंश मिले हैं।
डॉ. सेन ने 17 महीनों के दौरान माओवादी नेता सान्याल से 33 मुलाकातें कीं।
इसके बाद दूसरा पक्ष भी सब के सामने रखा. ज़रा एक नज़र आप भी देखिये:

डॉ. विनायक सेन के पक्ष में

• डॉक्टर विनायक सेन ने आदिवासी बहुल इलाके छत्तीसगढ़ के लोगों के बीच काम करने की शुरुआत स्वर्गीय शंकर गुहा नियोगी के साथ की थी। पेशे से बाल चिकित्सक सेन ने वहां मजदूरों के लिए बनाए शहीद अस्पताल में लोगों का इलाज करना शुरू कर दिया। साथ ही छत्तीसगढ़ के विभिन्न इलाकों में सस्ते इलाज के लिए योजनाएं बनाने की भी उन्होंने शुरुआत की।
• पीयूसीएल के उपाध्यक्ष के तौर पर उन्होंने छत्तीसगढ़ में भूख से मौतों और कुपोषण का सवाल उठाया। उनका सबसे बड़ा अपराध सरकार की निगाहों में यह माना गया कि उन्होंने सलवा जुडुम को आदिवासियों के खिलाफ बताया था। राज्य की भाजपा सरकार द्वारा चलाए गए इस आंदोलन पर सुप्रीम कोर्ट ने भी सवाल खड़े किए थे। भाजपा ने जब 2005 में छत्तीसगढ़ विशेष जन सुरक्षा अधिनियम लागू किया तो विनायक सेन ने इसका कड़ा विरोध किया था। और इसी कानून के तहत सेन को छत्तीसगढ़ सरकार ने 2007 में गिरफ्तार किया।
एक डाक्टर एवं एक मानवाधिकार कार्यकर्ता के रूप में समाज के दबे-कुचले लोगों के अधिकारों की रक्षा के लिए काम किया।
• सेन कभी हिंसा में शामिल नहीं रहे या किसी को हिंसा के लिए नहीं उकसाया।
• देशद्रोह का अपराध तभी साबित होता है, जब राज्य के खिलाफ बगावत फैलाने का असर सीधे तौर पर हिंसा और कानून-व्यवस्था के गंभीर उल्लंघन के रूप में सामने आए।
• इससे कम कुछ भी किया गया या कहा गया, देशद्रोह नहीं माना जा सकता। सेशन कोर्ट के फैसले में डॉ. सेन को लेकर यह तय नहीं हो पाया कि उन्होंने आखिर ऐसा क्या किया, जिससे राज्य में हिंसा और कानून-व्यवस्था का खतरा पैदा हो गया।
डॉ. विनायक सेन के समर्थन में पूरी दुनिया में आवाजें उठ रही है। मानव अधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल ने डॉ. सेन को अपना समर्थन दिया। अमेरिका में उन्‍हें भारी समर्थन मिल रहा है। वहां के भारतीय मूल के मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने प्रदर्शन किया। भारत में भी वाम झुकाव वाले बुद्धिजीवी उनके पक्ष में सड़कों पर उतर रहे हैं। हालांकि देश की दो प्रमुख राष्‍ट्रीय पार्टियां कांग्रेस और भाजपा इस मुद्दे पर चुप्‍पी साधी हुई है।


प्रवक्ता में आप इसी मुद्दे से सबंधित जिन अन्य लेखों को भी यहां क्लिक करके भी पढ़ सकेंगे.उनमें शामिल हैं:
आप इस मुद्दे पर क्या सोचते हैं.....? अवश्य लिखिए....! आपके विचारों का इंतज़ार रहेगा....रेक्टर कथूरिया.

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