Friday, December 31, 2010

तोड़ न पाओगे इस बार मेरे हौंसलो की उड़ान

डाक्टर विनायक सेन को सुनाई गयी सज़ा को लेकर रोष का सिलसिला जारी है. 30 दिसम्बर 2010 को भोपाल में भी डॉ. बिनायक सेन के समर्थन में एक बैठक की गयी |उस बैठक में बाद यह तय किया गया कि 1 जनवरी 2011 को यादगारे शाहजहानी पार्क में दोपहर 12 बजे से एक सभा का आयोजन किया जायेगा सभा के बाद एक रैली के रूप में सभी सहयोगी नीलम पार्क तक जायेंगे | इस मुद्दे को और आगे चर्चा करने के लिए रैली के बाद नीलम पार्क में एक बैठक भी आयोजित की जाएगी जिसमे इस मुद्दों के विषय में आगे के कार्यक्रम एवं रणनीति तय की जाएगी |
 शिक्षा अधिकार मंच, भोपाल सचिव अनिल सद्गोपाल ने इस सम्बन्ध में जारी एक अपील में कहा है कि उक्त रैली व धरने में बड़ी संख्या में हिस्सा लेकर सरकार को बता दें कि हम भारत के लोकतंत्र को कितना प्यार करते हैं।
  • इस बैठक में एक परचा बनाने का तय हुआ है जिसकी जिम्मेदारी राकेश दीवान/रोली /रिनचीन ने ली है | 
  • जब्बार भाई, रोली और रिनचिन ने  तख्तिया बनाने की जिम्मेदारी ली है 
  • बैनर और शाहजहानी पार्क की व्यवस्था की जिम्मेदारी जब्बार भाई ने ली है 
  • आदेश के सम्बन्ध में जो समीक्षा जो सुधा भरद्वाज, इलिना और कविता ने तैयार की है उसके हिंदी में अनुवाद की जिम्मेदारी एकलव्य के साथियों ने ली है |
आप अनुमान लगा सकते हैं कि शीत लहर के इस मौसम में लोग कितना बढ़ चढ़ कर आगे आ रहे हैं.इन तैयारिओं के सिलसिले में हुई इस विशेष बैठक में कलम के सिपाही भी पीछे नहीं हैं. प्रगतिशील लेखक संघ के शैलेन्‍द्र शैली, गैस  पीड़ितों के संगठन  भोपाल गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन के अब्‍दुल जब्‍बार,  नागरिक अधिकारों कि जानीमानी संस्था पीयूसीएल के दीपक भट्ट, मूल अधिकारों में आते भोजन का अधिकार अभियान की रोली शिवहरे, इसी तरह आइविड की नीलम एवं नताशा , महिला शक्ति के उत्थान में लगी संस्था संगिनी की प्रार्थना मिश्रा, एक अन्य महिला संगठन मप्र महिला मंच की रिनचिन , छात्र शक्ति के प्रतीक अखिल भारतीय क्रांतिकारी विद्यार्थी संगठन, क्‍म्‍युनिस्‍ट पार्टी, इसके साथ ही पत्रकार लज्‍जा शंकर हरदेनिया, राकेश दीवान, एक और संगठन एकलव्य के अंजलि एवं कार्तिक हाईकोर्ट के वकील राघवेन्‍द्र आदि। भी इस अभ्याँ में पूरी तरह सरगर्म हैं.

अंत में रोली की एक कविता  
 
 तुम कितनी ही कोशिश कर लो, 
तोड़ न पाओगे इस बार,
मेरे हौंसलो की उड़ान,
खोने न दूंगी खुद को
अपने काम को नया काम
 नया आयाम दूंगी
 और दूंगी एक नई पहचान
 अपनी आत्मा को
 जो मुझसे शुरू होकर
 ख़त्म होगी मुझी में 
आपको यह कविता कैसी लगी अवश्य बताएं.आपके विचारों की इंतज़ार में.--रेक्टर कथूरिया 

1 comment:

rafat said...

खूबसूरत कविता .आखिर सच की जीत होगी