औपचारिक दुआ सलाम के तुरंत बाद उन्होंने एक लिंक भेजा. लिंक पर क्लिक किया तो बहुत ही सुरीली आवाज़ थी. अध्यात्म का रंग और संगीत की सुरें मिलीं तो एक तो बस मस्ती ही मस्ती थी.
दमा दम मस्त कलंदर सुन कर लगा कहीं कोई चिंता नहीं, कहीं कोई निराशा नहीं. पर यह मस्ती होश पूर्ण थी. एक स्कून से भरी हुई. एक नयी ऊर्जा की बरसात करती हुई. यह सुरीली आवाज़ थी डाक्टर ममता जोशी की.
वही ममता जोशी जो सोने दा कंगना गा कर सब को सम्मोहित कर लेती है. वही ममता जोशी जो आज भी हीर गाती है तो मस्त कर देती है. वही ममता जिसने सूरजकुंड के क्राफ्ट मेले पर भी अपनी आवाज़ का जादू बिखेरा था. लगता है कि ममता जोशी के पास संगीत का वरदान उसकी जन्मों जन्मों की साधना के कारण ही सम्भव हो सका. शायद यही वजह है कि उसे केवल चार बरस की बाल उम्र में ही विशेष सम्मान मिल गया था और वह भी मुख्य मन्त्री बेअंत सिंह के हाथों.
सम्मानों का यह सिलसिला चला तो ऐसा चला कि अब तक जारी है. देश विदेश के अनेक सम्मान उसके नाम हो चुके हैं. सूफीवाद एक ऐसी धारा है जो बहुत तेज़ी से मकबूल हुई. मजहबों की जंजीरों और दीवारों को तोड़ कर यह लोगों के दिलों में उतर गयी. सूफी गायन की परम्परा आज भी मकबूल है. इसके आयोजन आज भी बहुत बड़े पैमाने पर किये और पसंद किये जाते हैं. सूफी गायन में पुरुषों का वर्चस्व तोड़ने वाली ममता जोशी पंजाब और हरियाणा के साथ साथ देश और विदेश में भी अपनी अलग पहचान बना चुकी है. जब वह गाती है अल्लाह हू अल्लाह हू तो सारे माहौल में यही गूँज सुनाई देने लगती है. उसकी उम्र बहुत छोटी है लेकिन वह 1947 के बटवारे का दर्द ऐसे ब्यान करती है जैसे वह आज भी उसी दर्द से गुज़र रही हो. दिल्ली तड़फदी ते विलक्दा लाहौर वेखिया.... लंदन और कनेडा में भी अपने सूफियाना अंदाज़ की धांक जमा चुकी ममता जोशी यूं तो चंडीगढ़ के राजकीय कालेज में संगीत की लेक्चरार हैं...पर वास्तव में वह संगीत साधना में रमी एक ऐसी साधका है जो अपने मानव जीवन को संगीत, संगीत और बस संगीत के लिए ही जी रही है. चेतन मोहन जोशी के साथ मिल कर उनके संगीत सुरों में और भी जादू आ गया है. --रेक्टर कथूरिया
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