पंजाब की पत्रकारिता में लम्बे समय तक काम करने वाला जुझारू पत्रकार बखाशिंदर अब एक बार फिर सरगरम हो गया है.मुझे लगता था की अब शायद वह आराम करेगा क्योंकि उसने पंजाब के उस दौर में भी काम क्या जब कलम के साथ साथ अपना सर भी हथेली पर रख कर चलना पड़ता था. सुबह काम पर निकलो तो यह निश्चित नहीं होता था की रात को घर लौटना होगा या नहीं..एक तरफ पुलिस और दूसरी तरफ मिलिटेंट ...दबाव की उस हालत में खबर लिखना हर किसी के बस का रोग नहीं रह गया था...इस सब कुछ की यादें अब तक ताज़ा होने के कारण ही मुझे लगता था की अब बख्शिंदर आराम करेगा और कविता या ग़ज़ल लिखेगा..पर मुझे किसी मित्र ने कहा वह कुछ करने की योजना बना रहा है...हमारी मुलाकात हो नहीं पाई और बात आयी गयी हो गयी...पर फिर भी मेरे जहन में यही रहा कि वह शायद ब्लू स्टार या उसके बाद के हालातों पर लिखेगा....पर मामला तो कुछ और ही निकला..बखशिंदर तो और भी पीछे की गहरी घटनायों की यादों को ताज़ा करने वाले मुद्दे बटोर लाया...अब जबकि नक्सलवाद के खिलाफ बहुत कुछ कहा सुना जा रहा है तो मुझे याद आती है 1980 में बनी एक फिल्म The Naxalites जिसे बनाया था जाने माने पत्रकार और फिल्मकार ख्वाजा अहमद अब्बास ने. फिल्म के रिलीज़ होने से पहले ही इसकी कहानी का पेपर-बेक एडिशन मेरे हाथ लग गया था. कहानी के अंत में दिखाया जाता है एक पुलिस एंकाउन्टर..जिसमें सभी नक्सलवादी मारे जाते हैं और पुलिस अफसर जोर से चिल्ला कर पूछता है..कोई नक्सलवादी जिंदा बचा हो तो अपने हाथ उठा कर बाहर आ जाये...! इस पर एक मासूम बच्चा सामने आता है और कहता है मेरा नाम सूरज है...और यह था आरम्भ...!.... कभी कभी मुझे नंदिता दास की फिल्म लाल सलाम की भी याद आती और इसी मुद्दे पर बनी कुछ और फिल्मों की भी. आखिकार यह समस्या रातो रात तो पैदा नहीं हुयी थी. इसके पीछे बहुत से कारण हैं जिन्हें लम्बे अरसे तक नज़रंदाज़ किया गया या फिर गलत ढंग से हल करने के प्रयास हुए जो नाकाम होते रहे...यहाँ मुझे याद आ रहा है एक और
वीडियो संकलन जो इसी मुद्दे पर बना था पर मुझे मालूम नहीं था कि पंजाब में एक बार फिर यही आवाज़ बुलंद होने जा रही है और वह भी कहीं आस पास ही....कभी कभी मैंने बलबीर परवाना की कविताएँ और लेख ज़रूर पढ़े थे, या फिर भाई मन्ना सिंह अर्थात मंच के जानेमाने बाबा बोहड़ गुरशरण सिंह जी के नाटकों का मंचन भी ज़रूर देखा था....पर इस से ज्यादा कभी कुछ मेरी जानकारी में नहीं आ सका. अब इस आवाज़ को बुलंद करने का सिलसिला आगे बढ़ाया है पत्रकार बखशिंदर ने इस लहर के शहीद बाबा बूझा सिंह पर फिल्म का ऐलान करके. इसके साथ ही उसने पंजाब के काले दौर में शहीद हुए पाश पर भी फिल्म बनाने की बात की है. आप आसानी से अनुमान लगा सकते हैं कि यह बखशिंदर सिंह थका नहीं वह अब भी आराम करने वाला नहीं और जो मैंने सोचा था वह गलत निकला है पर मुझे अपने इस अनुमान के गलत होने पर ख़ुशी ही हुयी है. --रैक्टर कथूरिया एक नज़र पंजाब सक्रीन (पंजाबी) की तरफ भी
3 comments:
आभार इस सूचना और जानकारी के लिए.
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-त्रुटियों की तरफ ध्यान दिलाना जरुरी है किन्तु प्रोत्साहन उससे भी अधिक जरुरी है.
नोबल पुरुस्कार विजेता एन्टोने फ्रान्स का कहना था कि '९०% सीख प्रोत्साहान देता है.'
कृपया सह-चिट्ठाकारों को प्रोत्साहित करने में न हिचकिचायें.
-सादर,
समीर लाल ’समीर’
ਕਥੂਰੀਆ! ਭਰਾਵਾ, ਏਦਾ ਨਾ ਕਰ।ਏਥੇ ਤਾਂ ਲੋਕ ਸ਼ਰਬਤ ਪਿਲ਼ਾਉਣ ਬਹਾਨੇ ਰਗਾਂ ਘੁੱਟਣ ਤਕ ਜਾਂਦੇ ਹਨ। ਆਪਾਂ ੳਾਪਣਾ ਮਾੜਾ-ਮੋਟਾ ਕੰਮ ਕਰਦੇ ਰਹਿਣਾ ਹੈ, ਬਾਕੀ ਤਾਂ ਤੈਨੂੰ ਪਤਾ ਹੀ ਹੈ।
-ਬਖ਼ਸ਼ਿੰਦਰ
ਬਖਸ਼ਿੰਦਰ ਭਾਈ ਜਾਨ...!
....ਭਗਤੀ ਕਰੀਏ ਆਪਾਂ ਨੀਲ ਕੰਠ ਦੀ, ਗੱਲਾਂ ਕਰੀਏ ਆਪਾਂ ਸੁਕਰਾਤ ਦੀਆਂ ਤੇ ਡਰ ਆਪਾਂ ਨੂੰ ਲੱਗੇ ਸ਼ਰਬਤ ਕੋਲੋਂ....ਵੈਸੇ ਆਪਾਂ ਨੂੰ ਸ਼ਰਬਤ ਪਿਆਊ ਕੌਣ....???
ਮੈਨੂੰ ਸ਼ਾਇਰ ਦਾ ਨਾਂ ਭੁੱਲ ਗਿਆ ਹੈ ਪਰ ਓਹ ਮਿਸਰਾ ਜਿਹਾ ਯਾਦ ਹੈ...
..ਆਪਾਂ ਕਾਹਨੂੰ ਨੀਲਕੰਠ ਦੀ ਕਰੀਏ ਗੱਲ ਪੁਰਾਣੀ ਹੈ; ਤੇਰੇ ਮੇਰੇ ਗਲ ਵਿੱਚ ਵੀ ਨੇ ਕੁਝ ਬੂੰਦਾਂ ਉਸ ਜ਼ਹਿਰ ਦੀਆਂ...!
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