जिंदगी में बहुत बार ऐसे पल भी आते हैं जब लगता है कि दोराहा या फिर कभी कभी चौराहा ही आ गया. समझ में नहीं आता कि किस राह पर आगे बढ़ा जाये या किस तरीके से पीछे हटा जाये. शायद वो इन्सान भी कुछ इसी तरह की हालत से गुज़र रहा होगा. एक तरफ दुनिया और दुनियादारी कि चमक दमक और दूसरी तरफ सन्यास मार्ग के आनंद का आकर्षण. अमृता प्रीतम उसका नक्शा अपने चिर-परिचित अंदाज़ में खीचती हुयी कहती है....रजनीश जी के पास कोई आया, कुछ घबरा कर बैठा रहा, कुछ कहने की हिम्मत नहीं हो रही थी. फिर उनकी नज़र से हिम्मत बंधी, कहने लगा--"मैं सन्यास लेना चाहता हूँ, लेकिन एक मुश्किल है---मैं रिश्वत लेता हूँ-----आदत हो चुकी है, छूटती नहीं---फिर सन्यास कैसे होगा ?"
रजनीश जी कहने लगे---"कोई मुश्किल नहीं तुम रिश्वत भी लेते रहो और सन्यास भी ले लो. सन्यास ले लोगे तो, तो भीतर चेतना अंकुरित हो जाएगी. और जब चेतना फलित होगी, तो रिश्वत छूट जाएगी. तुम्हे छोडनी नहीं पड़ेगी----वो खुद ही छूट जाएगी....."
इस घटना के रहस्यपूर्ण अर्थों को कुछ और भी आसान करते हुए अमृता प्रीतम ने आगे कहा....उसी रौशनी में कहना चाहती हूँ कि आपका जो भी मज़हब है, उसकी आत्मा को पा लो. फिर जो भी गलत है, किसी दूसरे से जितनी भी नफरत है, वो अपने आप छूट जाएगी छोडनी नहीं पड़ेगी, छूट जाएगी, और फिर राम भी अपना हो जायेगा, मोहम्मद और नानक भी अपने हो जायेंगे....
3 comments:
नव वर्ष की मंगल कामनाएँ!
आभार सदविचारों का.
वर्ष २०१० मे हर माह एक नया हिंदी चिट्ठा किसी नए व्यक्ति से भी शुरू करवाने का संकल्प लें और हिंदी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें।
- यही हिंदी चिट्ठाजगत और हिन्दी की सच्ची सेवा है।-
नववर्ष की बहुत बधाई एवं अनेक शुभकामनाएँ!
समीर लाल
उड़न तश्तरी
bahut sunder vicharon se avgat karaane ke liye shukriya
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