Wednesday 15th May 2024 at 03:08 PM
आज फिर दिन भर बना रहा नौघरा में देशभक्ति का माहौल
आज लुधियाना के चौड़ा बाज़ार से सटे हुए नौघरा में जो रौनक थी वह आम दिनों से बहुत ही अलग थी। आज की रौनक आज की भीड़ ज़द दिला रही थी कि देश पर कुर्बान होने वालों में यहां का नौजवान सुखदेव थापर भी था। इस युवक को भी 23 मार्च की शाम को भगत सिंह और राजगुरु के साथ फांसी चढ़ा दिया गया था। इसी इलाके में था वह मकान जहां इस नौजवान ने अपने जन्म के बाद होश संभाला। इस मकान में अब तक उन जगहों और निशानियों को संभाल कर रखा गया है जिनसे याद आता है कि वे क्रन्तिकारी किस तरह से यहाँ अपना अज्ञातवास भी काट ले ते थे, गुप्त बैठकें भी कर लेते थे और खतरा होने पर गोरिल्ला युद्धनीति के अंतर्गत इधर उधर निकल कर छुप भी लेते थे। शहीद सुखदेव थापर का परिवार बरसों से इस जगह की सेवा और संभाल कर रहा है। यहाँ बाकायदा पूजा पाठ भी होता है और ज्योति प्रज्वलन भी किया जाता है। निरंतर प्रयासों के बाद यहाँ सत्ता से जुड़े लोग भी आते रहे लेकिन अभी भी इस स्थान को वह सम्मान नहीं मिला जिसका यह हकदार है।
गौरतलब है कि शहीद सुखदेव, जिन्हें 23 मार्च 1931 को द्वितीय लाहौर षडयंत्र केस में राजगुरु, भगत सिंह के साथ सेंट्रल जेल लाहौर में फाँसी दी गई थी, के 117वें जन्मदिन के अवसर पर विशेष आयोजन हुआ। आज लुधियाना शहर के मोहल्ला नौघरा में विशेष रौनकें रहीं। वही स्थान जहां इस क्रांति नायक ने जन्म लिया और इसी फ़िज़ा में सासें भी लीं। इस जगह की दीवारों ने क्रांतिकारी वीरों को बेहद नीदीक से देखा था। इसी पावन भूमि पर उन वीरों ने अपने पाँव रखे थे। इस जगह पर नंगे पाँव चल कर अब भी उन पावन पांवों की छोह को मेहसुस किया जा सकता है।
उनके जन्मस्थान पर आज शहीद सुखदेव थापर के वंशज अशोक थापर के नेतृत्व में अमर शहीद सुखदेव का जन्म दिवस मनाया गया। इस मौके पर स्कूल-कॉलेजों के विद्यार्थियों ने देशभक्ति गीतों, नाटकों और भाषणों के जरिये उन्हें अकीदा के फूल पेश किये।
इस अवसर पर पंजाबी लेखक और पंजाबी लोक विरासत अकादमी के अध्यक्ष प्रो. गुरभजन सिंह गिल भी विशेष तौर पर पहुंचे हुए थे। उन्होंने कहा कि सैकड़ों युवाओं की कुर्बानी देने के बाद हमें उस आजादी पर सवाल उठाना होगा जो सत्ता परिवर्तन नहीं बल्कि संपूर्ण मानव जाति के लिए संतुलित विकास और लूट मुक्त आजादी के लिए मांगी गई थी।
उन्होंने विस्तार से समझाया कि सत्ता परिवर्तन के साथ सिर्फ शासक बदलते हैं, व्यवस्था नहीं। हमें राज कश्मीरी के ये शब्द कभी नहीं भूलने चाहिए जो उन्होंने पचास साल पहले कहे थे.
उठ बदली नहीं इंसान दी तकदीर हाले वी।नज़र सखनी ए, गल्मा लीरो लीर हाले वी।
ते वाजा मारदी ए देश दी भटकी जवानी नूं, मानवता दे पैरीं छनकदी जंजीर हाले वी।
इस अवसर पर बोलते हुए नौगरा निवासी एवं उनके परिवार से जुड़े अशोक थापर ने कहा कि शहीद सुखदेव थापर का जन्म 15 मई 1907 को पंजाब के लुधियाना शहर में श्री राम लाल थापर एवं श्रीमती रल्ली देवी के घर हुआ था। रात के पौने ग्यारह बजे हुआ।
उनके जन्म से तीन महीने पहले उनके पिता राम लाल थापर जी की मृत्यु हो जाने के कारण उनके चाचा श्री अचिन्त राम थापर जी ने उन्हें लायलपुर बुला लिया और उनके पालन-पोषण में पूरा सहयोग दिया। सुखदेव के मामा ने भी उनका पालन-पोषण अपने बेटे की तरह किया। भगत सिंह के दादा अर्जन सिंह के साथ थापर परिवार की निकटता के कारण, शहीद सुखदेव और शहीद भगत सिंह ने बचपन से लेकर जवानी और फांसी तक अपना पूरा जीवन एक साथ बिताया। इन सभी ने कामरेड रामचन्द्र और भगवती चरण वोहरा के साथ मिलकर लाहौर में युवा भारत सभा का गठन किया।
जब लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने की योजना बनाई गई तो उन्होंने सॉन्डर्स की हत्या में भगत सिंह और राजगुरु का पूरा साथ दिया। इतना ही नहीं, वर्ष 1929 में जेल में कैदियों के साथ अमानवीय व्यवहार के खिलाफ राजनीतिक कैदियों की भूख हड़ताल में भी उन्होंने सक्रिय रूप से भाग लिया। यह भूख हड़ताल एक ऐतिहासिक कदम थी।
अंग्रेज़ों की सत्ता इन नौजवानों से बेहद घबराई हुई थी। जेल मैनुअल के नियमों की अवहेलना करते हुए राजगुरु और भगत सिंह को 23 मार्च 1931 को शाम 7 बजे लाहौर सेंट्रल जेल में उनके लिए तय तारीख और समय से पहले ही फाँसी दे दी गई। इस पर भारत के कोने-कोने से विरोध हुआ।
श्री त्रिभुवन थापर ने बताया कि इस जन्मदिन पर नगर निगम कमिश्नर श्री संदीप ऋषि आईएएस, श्री विकास हीरा पीसीएसडीएम और शहर के सैकड़ों सामाजिक संगठनों के नेता पहुंचे। अन्य लोगों के अलावा विधायक अशोक पाराशर (पप्पी) ने भी शहीद की याद में श्रद्धा सुमन अर्पित किये.
इस अवसर पर रक्तदान का भी आयोजन किया गया, जिसमें जुझार टाइम्स के मुख्य संपादक बलविंदर सिंह बोपाराय सहित कई रक्तदाताओं ने स्वेच्छा से रक्तदान किया। इस जगह के महत्व को पूरी मान्यता दिलाने के लिए सभी को एकजुट हो कर आगे आना चाहिए। यहां क्रांति के इतिहास की लायब्रेरी, म्यूज़ियम. क्रांति से जुड़ा हुआ गीत-संगीत केंद्र और शहीदों की विचारधारा से जुड़े लोगों का स्वतंत्र संगठन भी होना चाहिए।
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