विपक्ष में जाग उठी नई उम्मीदों की रौशनी//अब रद्द होगा ईवीएम?
वृद्ध लेखक बलकौर गिल भी साथ में आए भीष्म पितामह की तरह
लुधियाना: 5 अगस्त 2023: (एम एस भाटिया के साथ इनपुट-पंजाब स्क्रीन डेस्क)::
मणिपुर और हरियाणा की हिंसा के चलते देश का चुनावी युद्ध भी सामने है। बिसात बिछ चुकी है। मोहरे भी अपनी अपनी जगह बैठाए जा चुके हैं। रणभेरी सुनी भी जा सकती है। पांचजन्य शंख गूँज रहा है। कौन जीतेगा कौन हारेगा यह तो समय की बात है लेकिन इस बार विपक्ष कई हल्ले करेगा जिनमें एक हल्ला ईवीएम के प्रयोग को ले कर भी है। इस मामले में पंजाब के प्रमुख लोगों ने साथ लिया है दवा खोज के क्षेत्र में जाने माने वैज्ञानिक डाक्टर बी एस औलख को। वही डाक्टर औलख जो मेडिसिन खोज और इंडस्ट्री को नज़दीक से देख चुके हैं और समाजिक चेतना से भी सबंधित हैं. वही डाक्टर औलख हैं जो देश और दुनिया के प्रमुख आंदोलनों के नज़दीक रहे हैं। पंजाब के नक्सलवादी आंदोलन और खालिस्तानी आंदोलन के संबंध में उन्होंने बहुत पहले भविष्वाणी की तरह कह दिया था कि ये लोग नाकामी की तरफ जा रहे हैं। हाल ही में वह कौमी इंसाफ मोर्चा के सर्वोच्च संचालकों से भी मिल कर आए थे। जीरा मोर्चे की फतह भी उन्हीं के कारण सम्भव हुई। अब वह फिर मैदान में हैं। इस बार निशाने पर हैं भारतीय सियासत में घुसे हुए नापाक लोग।
उल्लेखनीय है कि साल 2019 के आम चुनावों में भी ई वी एम मशीनों के निष्पक्ष और पारदर्शी संचालन पर कई अहम सवाल खड़े हुए थे। इन्हीं विवादों के चलते एक अमरीकी हैकर का दावा भी सामने आया था कि साल 2014 के चुनाव में मशीनों को हैक किया गया था। गौरतलब है कि इस चुनाव में बीजेपी के नेतृत्व वाले गठबंधन ने भारी बहुमत के साथ जीत दर्ज की थी। हालांकि, भारतीय चुनाव आयोग ने इन दावों का पूरी तरह से खंडन भी किया है. लेकिन इन मशीनों में तकनीक के इस्तेमाल को लेकर आशंकाएं लगातार उठती चली आ रही हैं। चुनाव आयोग के दावों से लोग संतुष्ट नहीं हुए थे।
सोशल मीडिया पर विज्ञान को समझने वाले कुछ युवा लोगों की वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल होती रही हैं जिनसे सवाल खड़े होते रहे कि क्या सचमुच हैकिंग संभव है? उस वीडियो में किसी भी चुनाव चिन्ह का बटन दबाने पर पर्ची केवल एक विशेष दल की ही निकलती थी। इस तरह की सभी वीडियो के बावजूद चुनाव आयोग इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों के पूरी तरह सुरक्षित होने का दावा करता आया है।
इस पारदर्शिता को साबित करने और प्रचारित करने के मकसद से तकरीबन हर ज़िले में सभी प्रमुख राजनैतिक दलों के प्रतिनिधियों को बुला कर उनके सामने मशीनों के संचालन को दिखाया जाता रहा है। किसी न किसी सरकारी भवन में यह सब घोषित प्रोग्राम के दौरान होता रहा लेकिन मीडिया को इसके फिल्मांकन की इज़ाज़त पर पूरी सतर्कता बरती जाती रही। राजनैतिक दलों के प्रतिनिधि मशीनों का संचालन शो देख कर चाय काफी पी कर बाहर आ जाते रहे। उनके पास सब ठीक है कहने और हां में हां मिलाने के इलावा कोई चारा भी नहीं बचता था। इसकी वजह यही रहती थी कि इनके पास इस तकनीक को समझने वाला कोई विशेषज्ञ होता ही नहीं था। अब इस मुद्दे पर सभी सवालों को चुनौती देने के लिए सियासत की दुनिया में सामने आया है नए युग का चाणक्य। स्वयं को देवता विरोधी और असुर समर्थक मानने वाले उन्हें अपना शुक्राचार्य भी मानते हैं। एक पूरी टीम है डाक्टर औलख और बलकौर सिंह गिल के साथ जो आम तौर पर अपना प्रचार करने से परहेज़ करती है। इस टीम का यकीन पर्दे के पीछे रह कर काम करने में ही है।
शायद आप सभी को नहीं तो कुछ लोगों को याद होगा कि आठ साल पहले, अमरीका की मिशिगन यूनिवर्सिटी से जुड़े वैज्ञानिकों ने एक डिवाइस को मशीन से जोड़कर दिखाया था कि मोबाइल से संदेश भेजकर ईवीएम मशीन के नतीजों को बदला जा सकता है।
हालांकि, भारत की आधिकारिक संस्थाओं ने इस दावे को ख़ारिज करते हुए कहा था कि मशीन से छेड़छाड़ करना तो दूर, ऐसा करने के लिए मशीन हासिल करना ही मुश्किल है फिर भी लोगों के मन की आशंकाएं कायम रहीं।
इसी बीच कई अन्य विशेषज्ञों के विचार भी सामने आते रहे। मीडिया में इस संबंध में काफी कुछ आता रहा। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक मैसाच्युसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी से जुड़े विशेषज्ञ धीरज सिन्हा भी मानते थे कि लाखों वोटिंग मशीनों को हैक करने के लिए काफ़ी ज़्यादा धन की ज़रूरत होगी और ऐसा करने के लिए इस काम में मशीन निर्माता और चुनाव कराने वाली संस्था का शामिल होना ज़रूरी है, इसके लिए एक बहुत ही छोटे रिसिवर सर्किट और एक एंटीना को मशीन के साथ जोड़ने की ज़रूरत होगी जोकि 'इंसानी आंख से दिखाई नहीं देगा।' सवाल यहां भी उठता है कि सत्ता पाने के लिए धन खर्च करने वालों की कमी कहां है इस देश और दुनिया के दुसरे हिस्सों में?
इसका विवरण समझाते हुए वह कहते हैं कि वायरलैस हैकिंग करने के लिए मशीन में एक रेडियो रिसीवर होना चाहिए जिसमें एक इलेक्ट्रॉनिक सर्किट और एंटीना होता है। चुनाव आयोग का दावा है कि भारतीय वोटिंग मशीनों में ऐसा कोई सर्किट ऐलीमेंट नहीं हैं। कम शब्दों में कहे तो इतने व्यापक स्तर पर हैकिंग करना लगभग नामुमिकन होगा। लेकिन यहां भी सवाल तो उठता ही है की व्यापक स्तर पर न सही लेकिन क्या कुछ सीमित इलाकों में इससे फेरबदल संभव है? वहां वहां हो सकता है। इससे हारजीत के फैसले तो प्रभावित हो ही सकते हैं।
अब साथ ही दुनिया की वोटिंग मशीनों का हाल भी देख लेते हैं। दुनिया में लगभग 33 देश किसी न किसी तरह इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग की प्रक्रिया को अपनाते हैं और उन मशीनों की प्रामाणिकता पर सवाल भी उठे हैं। क्या इसे अनदेखा किया जा सकता है? क्या आंकड़ों और तथ्यों की यह मैनेजमेंट और मैनिपुलेशन सत्य को ज़्यादा देर तक छुपने देगी?
गौरतलब है कि वेनेज़ुएला में साल 2017 के चुनावों में डाले गए मतों की कुल संख्या कथित रूप से असली संख्या से दस लाख ज़्यादा निकली। मामला बेहद हैरानीजक निकला हालांकि, सरकार इसका खंडन करती है लेकिन लोग इस खंडन से संतुष्ट नहीं हो जाते। लोगों को जो बात नहीं जचती या उनके दिल में नहीं उतरती उसे लोग एक कान से सुन कर दुसरे कान से निकाल भी दिया करते हैं। उनके मनों में उनके सवाल तब तक सवाल बने रहते हैं जब तक उनके जवाब उन्हें पारदर्शिता से न मिल जाएं। ऐसा होना नैतिक तौर पर भी ज़रूरी है।
विवादों की बात चली है तो याद दिला ज़रूरी लगता है कि अर्जेंटीना के राजनेताओं ने इसी साल मतों की गोपनीयता और नतीजों में छेड़छाड़ की आशंकाएं जताते हुए ई-वोटिंग कराने की योजना से किनारा कर लिया है।
इसी तरह इराक़ में साल 2018 में हुए चुनाव के बाद इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों में गड़बड़ी की ख़बरों के बाद मतों की आंशिक गिनती दोबारा करवाई गई थी।
अमरीका के चुनाव की भी बात करें तो बीते साल दिसंबर महीने में डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ़ कांगो में ई-वोटिंग से पहले मशीनों की टेस्टिंग न किए जाने की ख़बरें सामने आने के बाद ई-वोटिंग मशीनें विवाद का विषय बनी थीं.अमरीका में वोटिंग मशीनों को लगभग 15 सालों पहले इस्तेमाल में लाया गया था। वहां भी इसे लेकर लोगों के मन की आशंकाएं कभी खत्म नहीं हुई हैं।
चिंता की बात यह है कि अगर ईवीएम की गलती पकड़ में आ भी जाए तो रास्ता क्या है उसे सुधरने का? इस समय अमरीका में लगभग 35000 मशीनें इस्तेमाल होती हैं। इस तरह मतदान में काग़ज़ी सबूत न होने से मशीन के स्तर पर ग़लत मतदान रिकॉर्ड होने पर उसके सुधार की गुंजाइश कम होने से जुड़ी चिंताएं जताई गई थीं। हमारे यहां तो पूरे के पूरे बूथ कब्ज़े में ले लिए जाते हैं। दबंगों के गिरोह स्वयं सब हाथ में लेकर वोट पर्चियों पर मोहरें लगते देखे जाते रहे हैं। इस पर फ़िल्में भी बनती रही हैं। उन दबंगों गए के लिए ईवीएम को कब्ज़े में करना कौन सी बड़ी बात हो सकती है?
इन चुनावों में मतों की गिनती करने वाली मशीनों में एक प्रोग्राम पाया गया जोकि दूर बैठे सिस्टम एडमिनिस्ट्रेटर को मशीन में फ़ेरबदल करने की सुविधा देता था।
साउथ कैरोलिना यूनिवर्सिटी में कंप्यूटर साइंस विभाग के प्रोफ़ेसर डंकन बुएल इसी विषय पर बहुत ही गहनता से शोध कर रहे हैं। नतीजे जल्द ही आम जनता के सामने आ सकते हैं।
ब्रिटेन में अब भी मतपत्र का इस्तेमाल होता है। भारत की तरह ईवीएम वहां इस्तेमाल नहीं की जाती। प्रोफ़ेसर सिन्हा के मुताबिक़ पिछले तीन सालों से यहां ईवीएम के इस्तेमाल पर चर्चा चल रही है। लेकिन ख़ुफ़िया एजेंसियों और चुनाव आयोग का मानना है कि ईवीएम फ़ुलप्रूफ़ नहीं है। उसकी हैकिंग की जा सकती है। इसी तरह का विचार दुनिया के कई लोगों का भी है। साथ ही यहां हर सीट पर मतदाताओँ की संख्या बहुत कम होती है, भारत की तरह यहां बहुत ज़्यादा मतदाता तो होते नहीं. इस वजह से यहां मतपत्रों की गिनती भी उतनी मुश्किल होती नहीं। इन वजहों से यहां अब भी ईवीएम का इस्तेमाल नहीं होता।
हमारे यहां थानों, कचहरियों, विधानसभाओं और सड़कों पर जिस तरह की दबंगाई नज़र आती है उस पर कई फ़िल्में बन चुकी हैं। उन फिल्मों के नाम ही काल्पनिक होते हैं लेकिन घटनाएं सत्य का उद्घोष ही करती हैं। इस लिए यहां की हालत कुछ ज़्यादा ही नाज़ुक है।
सनसनीखेज़ खुलासे डाक्टर औलख की ज़ुबानी भी सुनिए
डाक्टर औलख स्पष्ट कहते हैं कि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनें हैं राष्ट्रीय सुरक्षा को सबसे बड़ा खतरा है।
ई वी एम अर्थात इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनें न केवल एक सच्चे, मजबूत व पारदर्शी लोकतंत्र के लिए घातक हैं बल्कि यह राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी बहुत बड़ा खतरा हैं। यह विचार आज जहां एक वैज्ञानिक सेमिनार को संबोधन करते हुए मशहूर वैज्ञानिक श्री बी एस औलख ने पेश किए। गौरतलब है की डाक्टर औलख की बातें बहुत गहरे अध्यन के बाद उनकी जुबां पर आती हैं।
आज आए दिन अखबारों में हम इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम का सहारा लेकर के होने वाले फ़राडों के बारे में पढ़ते हैं। लोगों के बैंक खातों से पैसे उड़ा लिए जाते हैं। लोगों का निजी व सरकारों का अति गोपनीय डाटा चुरा लिया जाता है। पैगासस व परीडेटर जैसे सॉफ्टवेयर बन चुके हैं। किसी के भी मोबाइल या लैपटॉप वगैरा को बिना टच किए हैक कर लिया जाता है। यह सारा कुछ एक खास किस्म के रिगिंग यानी ठगी मारने वाले सॉफ्टवेयर के जरिए किया जाता है।
इससे भी ज्यादा आजकल एक और ही बड़े शक्तिशाली और खतरनाक किस्म के सॉफ्टवेयर बन चुके हैं जिन्हें टैसट रिगिंग सॉफ्टवेयर कहा जाता है जहां रिगिंग सॉफ्टवेयर के पकड़े जाने का का डर होता है वहीं टैसट रिगिंग सॉफ्टवेयर के पकड़े जाने की कोई संभावना नहीं होती। यह किसी भी टैस्ट में नहीं आते।
टैस्ट रिगिंग सॉफ्टवेयर बहुत ही संवेदनशील सैंसर टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करते हैं जो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को बहुत ही ऊंचे पायदान पर पर ले जाते हैं। इनके इस्तेमाल के बाद यह मशीनें बिल्कुल इंसानों की तरह महसूस करने लगती हैं। यह देखने, सुनने व सोचने लगती हैं। फिर यह इंसानों की तरह ही धोखा देने लगती हैं। फ़राड करती हैं। जब उनको चेक किया जाता है, तब यह ईमानदारी का ढोंग करती है और जैसे ही टैस्ट प्रक्रिया खत्म हो जाती है, यह फिर से बेईमान बन जाती हैं।
दुनिया का सबसे पहला टैस्ट रिगिंग सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी क्षेत्र की दिग्गज कंपनी बौश ने 2004 में बनाया था। बाद में बहुत बढ़ी कार कम्पनी वोकसवैगन ने इसी साफ्टवेयर का सहारा लेकर के 34 बिलियन अमेरिकी डॉलर (करीब 3 लाख करोड़ रुपए) से ज्यादा का घोटाला कर डाला।
यह इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनें जिनके नाम में ही इलेक्ट्रॉनिक शब्द मौजूद है किसी भी तरह भरोसे के लायक नहीं हैं। यह ना केवल आज हमारे लोकतंत्र के लिए खतरा हैं बल्कि यह आज हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी बहुत घातक हैं। कल को अगर किसी दिन कोई विदेशी संस्था या कोई बड़ा कारपोरेट घराना इन मशीनों का इस्तेमाल करके अगर किसी बड़े चुनावी घोटाले को अंजाम देता है तो चारों तरफ अफरा तफरी का आलम हो जाएगा और किसी को कुछ समझ भी नहीं आएगा।
इसीलिए हम अपने आदरणीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी को विनती करते हैं कि वह एक सच्चे राष्ट्रवादी होने के नाते इन ईवीएम मशीनों पर यथाशीघ्र बैन लगाएं और आने वाले सारे चुनाव बैलट पेपर से करवाएं।
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