Monday, February 01, 2021

साज़िशों के बावजूद चढ़दीकला में है किसान आंदोलन

गोदी मीडिया को भी निरंतर मुँहतोड़ उत्तर दे रहे हैं समता जैसे लोग 


सिंघू बॉर्डर से
:1 फरवरी 2021
(विशेष इनपुट जसप्रीत समता की पंजाब स्क्रीन के लिए  ख़ास तस्वीरें)::

जसप्रीत कौर समता 
इस समय देश और दुनिया की नज़रें सिंघू बॉर्डर पर हैं। सियासत की चालाकियों और सत्ता के दमन के भरे कदम्पों का सामना करने वाले किसानों  अब यह उनकी कर्मभूमि बन चुका है। संघर्षों का नया इतिहास लोयखा जा रहा है सिंघू बॉर्डर पर। इस स्थान को  लगातार ऐतिहासिक बनता जा। अन्य जन संघर्षों की तरह इस बार किसान आंदोलन ने भी  इस संघर्ष लोगों को जहाँ  योद्धा   बनाया है वहीं  उन्हें  मीडिया जैसी ज़िम्मेदारियाँ भी सीखा दी हैं।  को संभालने वालों में युवा वर्ग भी शामिल है और वृद्ध लोग भी। आंधी हो या तूफ़ान।  बारिश हो या ओलों का ज़ोर लेकिन लुधियाना के कामरेड सुरिंदर सिंह हर हाल में आंदोलन की निश्चित जगह पर अपनी ज़िम्मेदारी निभाते हैं। कामरेड सुरिंदर की ज़िंदगी हर प्रमुख जनसंघर्ष की गवाह रही है। उनका परिवार भी इसी तरह जन आंदोलनों के लिए समर्पित रहता है। मुश्किलों के  दौर में भी पूरी तरह प्रतिबद्ध रहता है। जब तक इस धरती पर अन्याय का खात्मा नहीं होता तब तक इसी तरह जुटे रहने की कसम खाई है शायद इस परिवार ने कि हम लगातार संघर्ष  करते रहेंगे। इसी  परिवार की युवा सदस्य है जसप्रीत कौर समता। ज़िंदगी को हर कदम पर एक जंग मानने वाली समता कभी टिकरी बॉर्डर पर होती है, कभी संघु बॉर्डर पर और कभी ज़ीरकपुर या चंडीगढ़ में।  हाथ में कैमरा या मोबाईल और नज़र आंदोलन पर। जन आंदोलनों  की रिपोर्टिंग का यह जनअंदाज़ भी एक नया इतिहास  रच रहा है। इससे जनपत्रकारिता और मज़बूत होगी। 

एक एक उतराव चढ़ाव को  गंभीरता से नोट करती समता बताती है कि सत्ता की खतरनाक साज़िशों के बावजूद आंदोलन कर रहे किसान पूरी तरह चढ़दीकला में हैं। सड़कों पर लगाए गए बड़े बड़े कील और साथ ही बनाई गई सीमेंट की दीवारें उनके हौंसलों को पस्त नहीं कर सकीं। किसानों के इस आंदोलन की बिजली काटने और इंटरनेट बंद करने जैसी हरकतें हमारे विरोध में खड़े कॉर्पोरेट के दलालों के चेहरों को ही बेनकाब कर रही है। 

समता की रिपोर्ट के मुताबिक किसानों के आंदोलन में वृद्ध किसानों की आवाजाई के लिए किसानों ने बाकायदा ऑटो रिक्शा भी रखे हैं। लंगर भी अटूट चल रहा है। शायद सत्ता और बीजेपी के लोग इस लंगर के राशन की सप्लाई काटना चाह रहे हैं। अगर उनके मंसूबे इस तरह के घटिया स्तर तक पहुँच चुके हैं तो भी उनको नाकामी   मिलेगी।  जीत हमारे ही होनी है। जीतेंगे किसान ही। कॉर्पोरेट के दलालों का हर ज़ोर ज़ुल्म किसान आंदोलन को मज़बूत करेगा। 

 
इसी बीच गाजीपुर बॉर्डर पर हर नए दिन के साथ लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अलावा हरियाणा से भी बड़ी संख्या में किसान यहां पहुंच रहे हैं।  इससे ट्रैफिक की समस्या और गंभीर होती जा रही है।सुरक्षा व्यवस्था को बनाए रखने के  पर पुलिस ने गाजीपुर बॉर्डर को भी पूरी तरह से सील कर दिया है। सोमवार को दिल्ली मेरठ हाइवे से किसी को भी बॉर्डर की ओर नहीं आने दिया गया। इससे यातायात ठप हो गया है और लोगों को घंटो जाम से जूझना पड़ा। यह समस्या दिन प्रतिदिन बढ़ती  जा रही है। 

गौरतलब है कि गणतंत्र दिवस के दिन किसान रैली के दौरान हुई हिंसा के बाद से ही गाजीपुर बॉर्डर पर सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी गई है। बैरिकेडिंग को तो बाकायदा वैल्डिंग कर जोड़ दिया गया है। किसानों के धरनास्थल की तरफ आने-जाने का रास्ते पूरी तरह से ब्लॉक है। इन्हें और रोकने के तरीके सरकार के इरादों का संकेत दे रहे। हैं। पुलिस और आपात सेवाओं से जुड़े लोगों के अलावा किसी को भी दिल्ली के रास्ते बॉर्डर तक नहीं जाने दिया जा रहा है। पुलिस ने गाजीपुर बॉर्डर पर पक्की बैरिकेडिंग कर दी है, उसके बाद से इस रूट खुलने की संभावना भी पूरी तरह खत्म हो गई है। ऐसे में आने वाले दिनों में भी लोगों को जाम से जूझना पड़ सकता है। सरकार के इन "प्रबंधों" को देख  कर लगता है कि सरकार किसान आंदोलन का का हल जल्द निकालने के मूड में नहीं। दूसरी तरफ किसान संगठन भी लम्बी लड़ाई के लिए तैयार हैं। इस लिए किसानों ने भी अपनी तैयारियां  लम्बे संघर्षों को सामने रख कर  की हैं।  इस बार किसानों का आंदोलन निरंतर चले आ रहे हर अन्याय और शोषण का समापन करने के लिए भी दृढ़  संकल्प क्यूंकि कृषि के तीनों नए कानूनों से  किसानों का यह  शोषण और लूट अपनी  चरमसीमा पर पहुंच जाते। शोषण और अन्याय के अतीत की चर्चा भी जल्द होगी। 


 


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