Sunday, April 26, 2020

नामधारी संगत के साथ शहीद सरबजीत की बहन ने भी बांटा राशन

26th April 2020 at 5:28 PM
दलबीर कौर ने "पंथ के ठेकेदारों" को भी रखा आलोचना के निशाने पर  
अमृतसर//कुराली//लुधियाना: 26 अप्रैल 2020: (पुष्पिंदर कौर//पंजाब स्क्रीन):: 
कोरोना से कराह रहे लोगों को राहत पहुंचाने के मिशन में नामधारी सम्प्रदाय ने शहीद सरबजीत सिंह भिखीविंड की बहन दलबीर कौर को भी अपने साथ लिया है। दलबीर कौर ने भी भलाई के इस कार्य पर ठाकुर दलीप सिंह की प्रशंसा करते हुए सक्रिय हो कर इस काम में नामधारी काफिले का साथ दिया। उन्होंने ठाकुर जी का धन्यवाद करते हुए कहा कि आर्थिक तौर पर कमज़ोर जिन लोगों को आप ने राशन भिजवाया है पंथ के ठेकेदार तो इन लोगों को सिख ही नहीं मानते। इस मौके पर शहीद सरबजीत सिंह की चर्चा भी चली। आपको याद है न सरबजीत सिंह और उसकी ह्रदय विदारक शहादत? 
सच क्या है यह तो सरकारें ही जानती होंगीं लेकिन एक बात अवश्य होती रही कि नौजवान उम्र में धड़कते हुए दिल अपने देश के लिए खुद को खतरों में डाल कर अक्सर बहुत कुछ ऐसा कर बैठते हैं जो एक नया इतिहास भी रच जाता है। इन कामों में दुसरे देशों में जा पहुंचना और जासूसी करना भी शामिल होता है। जासूसों की ज़िंदगी बेहद रहस्यपूर्ण होती है। वे जो कुछ करते हैं उसका सबूत भी अक्सर खुद ही मिटा देते हैं। इस लिए जब कोई उनसे उनके कामों का सबूत मांगें तो उनके लिए वह घड़ी बहुत ही मुश्किल की घड़ी होती है। मिटाये हुए सबूतों को भला कौन ला सकता है? पाकिस्तानी प्रचार के मुताबिक कहा जाता है कि भिखीविंड का सरबजीत सिंह भी पाकिस्तान में सीक्रेट ऐजन्ट था। उसने एक भारतीय जासूस के तौर पर  काफी काम किये। लेकिन गाँव के लोग कुछ और ही कहने बताते हैं। उनका कहना है कि उसने गलती से सीमा पार कर ली थी क्यूंकि उनदिनों कांटेदार बाड़ नहीं लगी होती थी।उसे नाम का भरम होने के कारण वहां पकड़ा गया। वहां उसे मंजीत सिंह बता कर अदालत में पेश किया गया। उसे यातनाएं भी दी गयीं और मौत की सज़ा भी सुनाई गई  जिसे कूटनयिक प्रयासों से रद्द करवा लिया गया। उसकी बहन दलबीर कौर ने उसे बचाने के लिए जो संघर्ष किया उसकी मिसाल शायद कहीं और नहीं मिलती। जब उसे रिहा किये जाने का वक़्त नज़दीक आया तो पाकिस्तान की कोटलखपत जेल में ही किसी अन्य कैदी ने उस पर हमला करके उसे बुरी तरह पीटा। मारपीट जानलेवा थी। शायद वहीँ पर उसकी मौत हो गई थी लेकिन फिर भी उसके इलाज का सिलसिला कई दिनों तक चला। उसके रिहा होने की बातें केवल कागज़ों में रह गई। रिहाई होने वाली थी लेकिन वहीँ अस्पताल में उसका देहांत हो गया। कभी किसी शायर ने कहा था:
पास मंज़िल के मौत आ गई 
जब सिर्फ दो कदम रह गए!
बस रिहा हो कर भिखीविंड गांव में अपने परिवार में पहुंचने की बातें केवल कागज़ों में रह गईं। उसके परिवार का सपना कभी पूरा न हुआ। उसकी बेटियां कभी अपने पिता को न देख सकीं। उसका शव ही यहाँ पहुंचा। दर्द असहनीय था लेकिन सरे परिवार ने इस दर्द को सहा। उसकी बहन दलबीर कौर ने उस नाज़ुक हालत में भी उस परिवार को संभाला। हालांकि दलबीर कौर को भी लोगों ने बहुत कुछ कहा लेकिन वह डटी रही। उसने सरबजीत सिंह की अंत्येष्टि राजकीय सम्मानों के साथ करवाई।  मौत पर पंजाब सरकार ने तीन दिनों तक का राजकीय शोक भी रखा। एक करोड़  आर्थिक राहत  भी दी। इस तरह सरबजीत को शहीद का सम्मान भी प्राप्त हुआ। इस सब के बावजूद लोग उसे भूलते चले गए। सियासी लोग भी और समाजिक लोग भी। उसके जाने का दर्द याद रहा केवल उसके परिवार को। साथ ही उस दर्द को नामधारी सम्प्रदाय ने भी याद रखा। 
अब जब कोरोना का कहर छाया तो यह संकट भीखीविंड में ही महसूस किया गया। वहां भी कारोबार ठप्प हो गए। गरीब और मध्यवर्गीय लोगों को खाने के लाले पड़ गए। काम लगातार ठप और खर्चे लगातार जारी। पेट की भूख तो लगातार सताती रही। गहरे संकट की इस नाज़ुक घड़ी में ठाकुर दलीप सिंह ने अपनी संगत सिंह से भिखीविंड जाने को भी कहा और शहीद सरबजीत सिंह की बहन से मिलने का भी आदेश दिया। नामधारी संगत ने ऐसा ही कहा। भिखीविंड में पहुंच कर नामधारी सम्प्रदाय के लोगों ने आर्थिक कमज़ोर लोगों का पता लगाया।एक एक करके उनके घर ढूंढे और बिना कोई शोर शराबा किये राशन और आर्थिक सहायता उन तक पहुंचाई। न मीडिया बुलाया और न ही फोटो खिंचवाने का आडंबर किया। जिस तस्वीर को आप देख रहे हैं इसे भी किसी ने चुपके से खींच लिया। दलबीर कौर  भूपिंदर कौर ने भी सक्रिय हो कर इसमें योगदान दिया। 
नामधारी संगत का काफिला और दलबीर कौर मिलकर अमृतसर के गांव गांव में पहुँच रहे हैं। वहां ज़रूरतमंद सिख परिवारों को दैनिक उपयोग में आने वाली सभी आवशयक चीज़ें मुहैया कराई जा रही हैं। नामधारी संगत के इस काफिले का नेतृत्व कर रहे हैं साहिब सिंह, लाल सिंह और गुरचरण सिंह। इन नामधारी प्रतिनिधियों ने कहा कि यह सब  ठाकुर दलीप सिंह जी के विशेष आदेशों पर ही किया जा रहा है। शहीद सरबजीत सिंह की बहन दलबीर कौर ने ही कहा कि मैं ठाकुर जी की विशेष आभारी हूँ जिन्होंने इस संकटकाल में इन लोगों का दामन थामा है। मुश्किल की इस घड़ी में यह ज़रूरतमंद लोग बहुत ही डगमगाए हुए थे। नामधारी संगत इनके लिए भगवान बैंक कर पहुंची है। उन्होंने इस बात पर गहरा दुःख व्यक्त किया कि पंथ के कुछ स्वयंभू ठेकेदार तो इनको सिख भी नहीं मानते। इनके साथ लम्बे समय से भेदभाव करते आ रहे हैं। दलबीर कौर ने साड़ी संगत से अपील की कि जो खुद को सिख समझता है वह किसी के साथ भी भेदभाव न करे। भेदभाव दूर करके ही पंथ की चढ़दीकला होगी। गुरु का तेज भी हमें तभी मिलेगा। 
इस मौके पर सरपंच दविंदर सिंह नागी, बलकार सिंह, धीर सिंह, सुच्चा सिंह, प्रितपाल सिंह, बीबा भूपिंदर कौर और अन्य लोग भी मौजूद रहे।
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पटियाला और आसपास के क्षेत्रों में मोर्चा संभाला कुलदीप कौर और अन्य नामधारी सहयोगियों ने 

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