Friday: 20th March 2020 at 6:45 AM
उन्नाव जैसे मामलों में भी इंसाफ की आशा जगी
नयी दिल्ली: 20 मार्च 2020: (पंजाब स्क्रीन ब्यूरो)::
दिल्ली में 16 दिसंबर 2012 रात को याद करते ही आज भी सिहरन सी दौड़ जाती है। दरिंदगी की इंतहा थी। एक लड़की के साथ उस दिन जो हुआ उसे देख कर शक होने लगा था कि क्या सचमुच यह देश धर्मकर्म का ही देश है? सामूहिक बलात्कार का शिकार हुई उस लड़की की वास्तविक शनाख्त को छुपाते हुए उसे निर्भया का नाम दिया गया था।
निर्भया फिजियोथैरेपी की छात्रा थी और उसकी उम्र केवल 23 वर्ष थी। निर्भया के साथ हुए सामूहिक बलात्कार एवं हत्या के मामले के चारों दोषियों को शुक्रवार की सुबह साढ़े पांच बजे फांसी दे दी गई। इसके साथ ही देश को झकझोर देने वाले, यौन उत्पीड़न के इस भयानक अध्याय का अंत हो गया। इस फांसी के साथ ही उम्मीद जगी है की सत्ता और सियासत के बल पर मनमानियां करने वालों का भी यही अंजाम होगा। उन्नाव मामले में भी जल्द इंसाफ हो इसकी आशा अब और बढ़ गयी है।
आज सुबह सुबह 5:30 बजे 32 वर्षीय मुकेश सिंह, 25 वर्षों की उम्र के पवन गुप्ता, 26 बरस के विनय शर्मा और 31 वर्षीय अक्षय कुमार सिंह को फांसी के फंदे पर लटकाया गया। फांसी से पहले वे बहुत राई, गिड़गिड़ाए लेकिन इंसाफ हो कर रहा। तिहाड़ जेल के महानिदेशक संदीप गोयल ने बताया कि डॉक्टरों ने शवों की जांच की और चारों को मृत घोषित कर दिया। खबर की पुष्टि होते ही तिहाड़ जेल के बाहर खड़े लोगों ने मिठाईयां बांटीं।
जेल अधिकारियों ने बताया कि चारों दोषियों के शव करीब आधे घंटे तक फंदे पर झूलते रहे जो जेल नियमावली के अनुसार फांसी के बाद की अनिवार्य प्रक्रिया है।
गौरतलब है कि दक्षिण एशिया के सबसे बड़े जेल परिसर तिहाड़ जेल में पहली बार चार दोषियों को एक साथ फांसी दी गई। इस जेल में 16,000 से अधिक कैदी हैं। चार दोषियों को एक साथ फांसी दिए जाने से इस जेल के साथ एक नया रेकार्ड जुड़ा है।
चारों दोषियों ने फांसी से बचने के लिए अपने सभी कानूनी विकल्पों का पूरा इस्तेमाल किया और बृहस्पतिवार की पूरी रात तक इस मामले की सुनवाई चली। इस बार उनकी कोई भी तिकड़म काम नहीं आई।
उल्लेखनीय है कि सामूहिक बलात्कार एवं हत्या के इस मामले के इन दोषियों को फांसी की सजा सुनाए जाने के बाद तीन बार सजा की तामील के लिए तारीखें तय हुईं लेकिन हर बार फांसी टलती गई। यहां तक कि बात मज़ाक बन गयी। न्याय में देरी को लेकर बहुत से जन संगठन भी बहुत कुछ बोलने लगे। अंतत: आज सुबह चारों दोषियों को फांसी दे दी गई। सात वर्ष से भी अधिक समय के बाद मिला निर्भया को इंसाफ।
आखिरी पैंतरा चलते हुए एक दोषी ने दिल्ली उच्च न्यायालय और फांसी से कुछ घंटे पहले उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। वहां भी उसे नाकामी ही मिली। इसी तरह फांसी से कुछ घंटों पहले पवन कुमार गुप्ता ने राष्ट्रपति द्वारा दूसरी दया याचिका खारिज किए जाने को चुनौती देते हुए उच्चतम न्यायालय का रुख किया। उसकी भी दाल नहीं गली। दोषियों को भी न्याय का पूरा मौका देते हुए अभूतपूर्व रूप से देर रात ढाई बजे सुनवाई शुरू हुई और एक घंटे तक चली। इस सुनवाई के बाद उच्चतम न्यायालय की एक पीठ ने उसकी याचिका खारिज करते हुए फांसी का रास्ता साफ कर दिया। हर तिकड़म नाकाम रही।
न्यायालय ने गुप्ता और अक्षय सिंह को फांसी से पहले अपने परिवार के सदस्यों से मुलाकात करने की अनुमति देने पर भी कोई आदेश देने से इनकार कर दिया।सात साल लंबी कानूनी लड़ाई के बाद अपनी बेटी को आखिरकार न्याय मिलने से राहत महसूस कर रहे निर्भया के माता-पिता ने कहा कि वे भारत की बेटियों के लिए अपनी लड़ाई जारी रखेंगे। उलेखनीय है की अब इस दिशा में बेटियों को न्याय दिलाना उनकी ज़िंदगी का मिशन बन चुका है। इस तरह के मामलों में सहायक बन पाना ही उनका मकसद होता है। इस फांसी से उनको और भी भावुक और नैतिक बल मिला है।
निर्भया की मां आशा देवी ने फांसी के बाद पत्रकारों से कहा कि हमें आखिरकार न्याय मिला। हम भारत की बेटियों के लिए अपनी लड़ाई जारी रखेंगे। न्याय में देरी हुई लेकिन न्याय मिला। अब अन्य बेटियों को समय पर न्याय मिले इसका प्रयास जारी रखा जायेगा। सर्कार ने भी इस संबंध में आवश्यक कदम उठाने की आश्वासन दिया है।
हालांकि आशा देवी ने कहा कि दोषियों की फांसी के बाद अब महिलाएं निश्चित तौर पर सुरक्षित महसूस करेंगी और पूरा देश इस खबर के लिए जाग भी रहा था और न्याय का इंतजार कर रहा था। आशा देवी की इस आशा और भावना के बावजूद वास्तविकता अभी भी पूरी नहीं बदली। हर महिला और हर लड़की को हर पल सुनिश्चित सुरक्षा का अहसास अभी भी दूर की बात ही लगती है। कठुआ और उन्नाव जैसे मामले अभी भी बाकी हैं। बहुत से मामलों में इंसाफ अभी बाकी है।
आज सुबह सुबह तिहाड़ जेल के बाहर का नज़ारा देखने वाला था। तिहाड़ जेल के बाहर शुक्रवार सुबह सुबह तड़के तड़के ही सैकड़ों लोग इकट्ठा हो गए। उनके हाथों में राष्ट्रध्वज था और वे ‘अमर रहो निर्भया ’ और ‘भारत माता की जय’ के नारे लगा रहे थे। जैसे ही फांसी हुई तो उनमें खुशी की लहर दौड़ पड़ी। उनमें से कुछ ने फांसी के बाद मिठाइयां बांटी। उनके चेहरों पर उम्मीदों की एक नै चमक थी। कानून और जुडिशरी को सलाम की मुद्रा में उठे से लगते थे यह लोग।
एक और खास बात यह कि जेल के बाहर एकत्रित लोगों में सामाजिक कार्यकर्ता योगिता भयाना भी थीं। उन्होंने एक पोस्टर ले रखा था जिस पर लिखा था निर्भया को न्याय मिला। अन्य बेटियों को अब भी इंतजार है। यह बहुत गहरी बात थी जो दूर के अर्थ भी बता रही थी। उन्होंने कहा कि आखिरकार न्याय मिला। यह कानून व्यवस्था की जीत है।
इसी तरह जानेमाने इलाके द्वारका में महिलाओं के कल्याण के लिए सतचित फाउंडेशन नामक एक एनजीओ चलाने वाली अर्चना कुमारी ने कहा कि मैंने निर्भया के अभिभावकों का दर्द देखा है। उम्मीद है कि दोषियों को फांसी से बलात्कार और यौन उत्पीड़न की घटनाओं पर लगाम लगेगी। इससे करने वाले लोगों के मन में भय की भावना पैदा होगी। इसी भावना को पैदा करना भी एक मकसद था फांसी की सज़ा का।
हर क्षेत्र के लोगों ने इस मामले में अपनी रुचि दिखाई। पश्चिमी दिल्ली की निवासी सना ने कहा कि हमारे समाज में इस फांसी के बाद कुछ नहीं बदलेगा लेकिन हम खुश हैं कि चारों दोषियों को फांसी दी गई और निर्भया को न्याय मिला। निश्चय ही ऐसी सोच वाले लोगों की तसल्ली के लिए अभी कानून को और त्वरित, निष्पक्ष और सख्त होना होगा।
ज़रा याद कीजिये उस रात को। चलती बस में निर्भया के साथ छह व्यक्तियों ने सामूहिक बलात्कार करने के बाद उसे बुरी तरह पीटा, घायल कर दिया और सर्दी की रात में चलती बस से नीचे सड़क पर फेंक दिया था। दरिंदगी और अमानवता की हद थी यह। भूलने के इस युग में भी बहुत से लोग नहीं भूलेंगे कि 16 दिसंबर 2012 को हुई इस घटना ने पूरे देश की आत्मा को झकझोर दिया था और निर्भया के लिए न्याय की मांग करते हुए लोग सड़कों पर उतर आए थे। जगह जगह मोमबत्तियां और रोष प्रदर्शन हुए थे।
इसी बीच करीब एक पखवाड़े तक जिंदगी के लिए जूझने के बाद अंतत: सिंगापुर के अस्पताल में निर्भया ने दम तोड़ दिया था। उसे नहीं बचाया जा सका। ज़िंदगी और मौत की जंग में उसकी सांसों की माला टूट गयी। उसकी मौत से यह गम और गुस्सा एक बार फिर भड़क उठा। तब से ही दोषियों को सज़ा ी मांग ज़ोर पकड़ गई थी। इस मामले में मुकेश सिंह, पवन गुप्ता, विनय शर्मा और अक्षय कुमार सिंह सहित छह व्यक्ति आरोपी बनाए गए। इनमें से एक नाबालिग था। इसी मामले के एक आरोपी राम सिंह ने सुनवाई शुरू होने के बाद तिहाड़ जेल में कथित तौर पर आत्महत्या कर ली थी। नाबालिग को सुनवाई के बाद दोषी ठहराया गया और उसे सुधार गृह भेज दिया गया। तीन साल तक सुधाार गृह में रहने के बाद उसे 2015 में रिहा कर दिया गया। वह अब सुधरी हुई ज़िंदगी जी रहा है। उसका ठिकाना दक्षिण भारत में कहीं है। उसकी पहचान को कई कारणों से गुप्त रखा गया है। उसे छोड़ना कानून की दया के पहलू को भी दर्शाता है।
बाकी बचे दोषियों को सज़ा देने के लिए इस मामले में लंबी कानूनी लड़ाई चली और यह निचली अदालतों से होकर उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय तथा राष्ट्रपति के पास पहुंचा। एक के बाद एक तिकड़म चली गई। कानून के पेचों का फायदा उठाया गया। अदालत ने इस आधार पर तीन बार मौत का वारंट रोका कि दोषियों ने अपने सभी कानूनी विकल्पों का इस्तेमाल नहीं किया था और एक के बाद एक ने राष्ट्रपति के पास दया याचिका भेजी। लेकिन एक दिन सभी तिकड़में खत्म हो गईं। हर चाल नाकाम हुई। इन्साफ जीत गया।
पांच मार्च को एक निचली अदालत ने मौत का नया वारंट जारी किया जिसमें फांसी की अंतिम तारीख 20 मार्च को सुबह साढ़े पांच बजे तय की गई। उसी के चलते आज सुबह सुबह इन चरों को फांसी पर लटका दिया गया।
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