PMC की चुनावी प्रक्रिया बदलना समय की मांग
लुधियाना: 8 अगस्त 2018: (पंजाब स्क्रीन ब्यूरो)::
मामला डाक्टरी सेवा का है। डाक्टर--एक ऐसा महान इन्सान-जिसे कभी भगवान माना जाता था लेकिन अब लोग उसे उस भावना से नहीं देखते। हालांकि अब बह मानवीय संवेदना से ipoorन लोग खुद अपनी जेब से वित्तीय तैर पर कमज़ोर लोगों का इलाज करवाते हैं लेकिन व्यापक तौर पर पूंजीवादी सिस्टम ने इसे केवल मुनाफे का धंधा बना दिया है। बीमार होने पर लोग बिना दवाई के मरना पसंद करते हैं या फिर सेल्फ मेडिकेशन के खतरनाक प्रयोगों से खुद का नुकसान करवा बैठते हैं लेकिन डाक्टरके पास नहीं जाना चाहते। ऐसा नहीं है कि अच्छे लोग नहीं बचे। अब भी बहुत से डाक्टर भगवान की तरह अपनी ज़िम्मेदारी निभाते हैं लेकिन ज़्यादातर मामला गडबडा चुका है। किसी भी अस्पताल में जाते ही लम्बे चौड़े टेस्ट लिख कर पर्ची मरीज़ के परिवार को थमा दी जाती है। उनका खर्चा इतना ज्यादा बैठता है कि या तो व्यक्ति इलाज ही नहीं करवाता और या फिर खतरा उठा कर फंस जाता है मजबूरी के जाल में। और यह सब गली मौहल्लों के झोलाछाप डाक्टर नहीं करते बल्कि बड़े बड़े अस्पताल और बड़े बड़े क्लिनिक करते हैं। आमिर खान ने अपने लोकप्रिय सीरियल सत्यमेव जयते में इस मुद्दे को उठा कर बहुत कुछ बेनकाब किया था। इस आयोजन में अच्छे डाक्टरों की भी चर्चा हुई थी और पैसा बनाने वालों की भी। इसके बावजूद वह सुधर नहीं आ पाया जो अपेक्षित था।
सवाल उठता है जो लोग भगवान समझे जाते थे वे शैतान क्यूँ बन रहे हैं। आखिर उनपर निगरानी करने वाले क्यूँ कुछ ठोस नहीं करते जिससे यह सब रुक सके? क्या यह ख़ामोशी एक मुजरिमाना भूमिका नहीं इंसानियत के लिए? अब पंजाब मेडिकल काउन्सिल के चुनावों के मौके पर इस सब की चर्चा भी ज़ोरों पर है। कुछ लोग चाहते हैं नए लोग आयें तांकि निगरानी रखने वाला तंत्र अधिक प्रभावशाली हो सके। मीडिया में यह सब चर्चा का विषय बना हुआ है।
पंजाब मेडिकल कौंसिल (पीएमसी) के इलेक्शन में ऑनलाइन वोटिंग की मांग के बाद अब सीनियर मेडिकल अफसर (बूथगढ़) और चीफ एडवाइजर पीसीएमएस एसो. पंजाब डॉ. दलेर सिंह मुल्तानी ने रिटर्निंग अफसर डाॅ. गुरदीप कल्याण को लेटर भेज कर चुनाव कैंसिल करने की मांग की है। वहीं बठिंडा से डॉ. वितुल गुप्ता ने सीएम व हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को लेटर भेज इलेक्शन में वोट इकट्ठी करने को तुरंत रोकने के लिए कहा है। इसी तरह हेल्थ एंड ह्यूमन राइट्स एक्टिविस्ट बठिंडा के डॉ. वितुल गुप्ता ने कहा, एथिकल कमेटी मैंबर बनने के लिए अन एथिकल तरीके से वोट लेकर क्या न्याय कर पाएंगे। कोई बैलेट पाने के लिए पोस्टमैन का पीछा कर रहा है। मेडिकल कॉलेज में पढ़ रहे स्टूडेंट से उनके डॉक्टर्स माता पिता का बैलेट मंगवाने का काम चल रहा है।
डॉ. दलेर सिंह और डॉ. वितुल गुप्ता भी खुल कर सामने आये हैं। डाक्टर बलबीर सिंह शाह ने तो इस मुड़े पर बहुत कुछ कहा है।
डाक्टर दलेर सिंह कहते हैं कि बैलेट में चार बड़ी खामियां हैं। उन्होंने कहा कि बैलेट पेपर में 23 प्रत्याशियों के नाम हैं। जिसे वोट देना है, उसके आगे क्राॅस लगाना है। एक डॉक्टर को 10 को वोट देना होता है। अगर वह सिर्फ 2 को वोट देता है तो ऐसे में कोई भी बैलेट पेपर से छेड़छाड़ कर अपने प्रत्याशी को वोट दे सकता है। एतराज़ जायज़ है। पहले भी इसी तरह मुद्दे उठते रहे हैं लेकिन सुधर नहीं हो सका। अगर वोटर का क्रॉस चिन्ह कॉलम से इधर उधर हुआ तो वोट इनवैलिड होगी। यह गलत है क्योंकि सिर्फ प्रत्याशी के कॉलम के सामने क्राॅस का चिन्ह लगाना है, तो बाकी प्रत्याशियों के सामने क्या लिखना है। यह स्पष्ट नहीं है।
सेल्फ डिक्लेरेशन में आधार कॉर्ड और पीएमसी रजिस्ट्रेशन की कॉपी मांगी गई है। क्योंकि यह इलेक्शन सिक्रेट नहीं है, ऐसे में वोटर की पहचान हो जाएगी। आगे चलकर उसकी सामाजिक या प्रोफेशनल स्तर पर विरोधता हो सकती है। अगर ऐसा होता है तो वोटिंग सिस्टम के लिए इसे सुरक्षित नहीं माना जा सकता।
इस चुनाव के संबंध में बहुत कुछ कहा सुना जा रहा है लेकिन लगता है हर बार बात चर्चा तक ही रह जाती है।
गौरतलब है कि नोटिफिकेशन में कहीं नहीं लिखा कि जिनकी रजिस्ट्रेशन रिन्यू नहीं हुई है, उन्हें बैलेट पेपर नहीं भेजे जाएंगे। जबकि सूचना है कि रजिस्ट्रेशन रिन्यू नहीं करवाने वाले डॉक्टर्स को बैलेट पेपर नहीं भेजे जा रहे हैं।
डाक्टर अरुण मित्र ने भी कहा कि सरकार को भेजा था प्रोसेस बदलने का प्रस्ताव लेकिन परिणाम कुछ नहीं। उन्होंने कहा था-
वोटिंग का मतलब होता है कि जाकर वोट डालना लेकिन पीएमसी इलेक्शन में तो घपला हो रहा है। इसलिए वोटिंग ऑनलाइन होनी चाहिए। डाक्टर अरुण मित्र कहते हैं कि जिस समय मैं पीएमसी की एथिकल कमेटी में था, उस समय यह इश्यू उठा था। सभी की एक राय बन गई थी कि ऑनलाइन वोटिंग हो। सरकार को यह प्रस्ताव भेजा था। इसके बाद कुछ नहीं हुआ। संवैधानिक तरीके से इलेक्शन करवाने हैं, तो वोटिंग ऑनलाइन करनी होगी। उल्लेखनीय है कि डॉ. अरूण मित्रा, पीएमसी की एथिकल कमेटी के चेयरमैन भी रह चुके हैं।
दूसरी तरफ रिटर्निंग अधिकारी खुद को बेबस जैसा दिखाते हैं। अब वास्तव में ऐसा है या यहाँ भी कोई बहाना है यह तो भगवान् ही जाने। उनका कहना है कि प्रोसेस बदलना मेरे बस में नहीं। सवाल है की आखिर किसके बस में है वास्तविक बदलाव?
रिटर्निंग अफसर डॉ. गुरदीप कल्याण का कहना है-मेरे पास शिकायत आई है, लेकिन मेरा काम कानून के दायरे में रहकर चुनाव करवाना है। जैसा वोटिंग का सिस्टम है, वैसे चुनाव हो रहे हैं। बैलेट पेपर को एकत्र किया जा रहा है। कुछ और प्रोसेस जो प्रत्याशी कर रहे हैं उन पर कार्रवाई मेरे दायरे में नहीं है।
इसी बीच खुल कर सामने आए हैं डाक्टर बलबीर सिंह शाह। डॉ. शाह के अनुसार पीएमसी का गठन 1916 में हुआ था। उस समय सिर्फ 435 मेंबर्स थे। लेकिन इसका दायरा पेशावर से लेकर दिल्ली तक था। तब हालात भी और थे माहौल भी और था लेकिन अब तो इसके सदस्यों की संख्या भी बढ़ चुकी है। भूगौलिक दायरा बेशक कम हुआ हो लेकिन तकनीक विकास ने बहुत सी नयी संभावनाएं दिखाई हैं।
डाक्टर शाह ने विस्तार से बताया कि पीएमसी का गठन 1916 में हुआ था। उस समय सिर्फ 435 मेंबर्स थे। लेकिन इसका दायरा पेशावर से लेकर दिल्ली तक था। इतने बड़ा दायरा होने से वोटिंग को रजिस्टर्ड डाक के माध्यम से भेजा जाता था। उसके बाद तकनीकी विकास ने संचार सुविधायों में बहुत से चमत्कार दिखाए हैं। अब इमेल का जमाना है। अब ऑनलाइन का ज़माना है। मौजूदा सिस्टम में इसे अपनाया जाना चाहिए। डाक्टर शाह याद दिलाते हैं कि देश के विभाजन के बाद इस सन्गठन के सदस्यों का यह दायरा सीमित हो गया। लुधियाना के दंडी स्वामी चौक पर इसका पहला दफ्तर बना, यहां पर डॉक्टर हंसराज इसके रजिस्ट्रार बने थे। लेकिन सीमित दायरे के बावजूद सदस्यों की संख्या बढ़ गयी। अब पंजाब में पीएमसी के 50 हजार मेंबर्स हैं। हर बार इलेक्शन में जालंधर या फिर लुधियाना के डॉक्टर मेंबर्स सेलेक्ट होकर जाते हैं। इसके अलावा अन्य सिटी से महज कोई जीत कर पीएमसी मेंबर्स बनता है। ऐसे में सवाल है कि जालंधर या फिर लुधियाना से जीतने वाले मेंबर्स को बठिंडा, मानसा या फिर संगरूर में बैठे डॉक्टर्स के दर्द के बारे में क्या पता चलेगा। इसलिए हर जिले से एक डॉक्टर को चुना जाना चाहिए। सिविल सर्जन दफ्तर में उसका दफ्तर भी होना चाहिए। ताकि किसी भी शिकायत पर वह आसानी से काम कर सकें। मेरी तरफ से हेल्थ मिनिस्टर को यह सलाह भेज दी गई है, अब देखते हैं कि वह इसे मानते हैं या नहीं। अगर कोई डाक्टर किसी जिले में कुछ गलत करता है तो इसकी जितनी जानकारी उसी जिले के पीएमसी मेम्बर को होगी उतनी उस जिले से दो-चार सो किलोमीटर दूर बैठे मीम्सी मेम्बर को कैसे हो सकती है? डाक्टर शाह साफ़ कहते है अगर हर जिले में अनएथिकल प्रेक्टिस रोकनी है तो हर जिले में पीएमसी का मेम्बर होना चाहिए।
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