भारतीय जनमानस को एकता के सूत्र में लाने का एक और प्रयास
लुधियाना: 17 दिसम्बर 2016: (पंजाब स्क्रीन ब्यूरो):
नामधारियों और सिक्खों के साथ साथ समुचित भारतीय जनमानस को एकजुट करके एकता के सूत्र में पिरौने में लगे नामधारी प्रमुख ठाकुर दलीप ने अब नव वर्ष के अवसर पर कहा है कि भारतीय लोगों को वर्ष वैसाखी के दिन मनाना चाहिए। यह बात उन्होंने एक अनौपचारिक वार्ता में कही।
नव वर्ष केवल कैलेंडर पर होने वाली समय की बदली नहीं होती। इसका सम्बन्ध मौसमों के साथ साथ पर्यावरण और मानवीय शरीर की आंतरिक सरंचना होता है। नारियल पानी पीने को दिल करता है और कब मूंगफली की इच्छा है-यह एक गहन विज्ञानं है। किसी समय इसकी समझ पूरे समाज को हुआ थी। धीरे धीरे जब पैसे दुरपयोग बढ़ा तो बहुत से दिन--बहुत सी रातें शराब के जश्न में डूबने लगीं। नव वर्ष का अवसर अर्थात 31 दिसम्बर और जनवरी के दरम्यान की रात शराब और शबाब के ऐसे बेहूदा अंदाज़ का पर्याय बन गई कि इस अवसर पर पीना पिलाना आवश्यक कृत्य गिना जाने लगा। यह अभिशाप पूरे समाज को स्वीकृत होता चला गया। आज भी नव वर्ष एक उत्सव की तरह पूरे विश्व में अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग तिथियों तथा विधियों से मनाया जाता है। विभिन्न सम्प्रदायों के नव वर्ष समारोह भिन्न-भिन्न होते हैं और इसके महत्त्व की भी विभिन्न संस्कृतियों में परस्पर भिन्नता है। धर्मकर्म और संस्कृति से जुड़े कुछ लोग आज भी अपने अपने समाज के मुताबिक समय की इस चाल को अपनाते हैं। लेकिन पूर्व की बहुसंख्य पाश्चात्य प्रभाव के रंग ढंग में डूबती चली गई। अब हालत इतनी बदतर है कि तकरीबन हर जगह पर 31 दिसम्बर की रात को पुलिस सुरक्षा का प्रबन्ध पड़ता है।
नशे की मदहोशी और गुंडागर्दी का आभास देते हो हल्ले के आतंक में होती है नए साल की शुरुआत। इसका इतिहास देखें तो नव वर्ष उत्सव 4000 वर्ष पहले से बेबीलोन में मनाया जाता था। लेकिन उस समय नए वर्ष का ये त्यौहार 21 मार्च को मनाया जाता था जो कि वसंत के आगमन की तिथि भी मानी जाती थी। प्राचीन रोम में भी नव वर्षोत्सव के लिए चुनी गई थी। रोम के तानाशाह जूलियस सीजर ने ईसा पूर्व 45वें वर्ष में जब जूलियन कैलेंडर की स्थापना की, उस समय विश्व में पहली बार 1 जनवरी को नए वर्ष का उत्सव मनाया गया। ऐसा करने के लिए जूलियस सीजर को पिछला वर्ष, यानि, ईसापूर्व 46 इस्वी को 445 दिनों का करना पड़ा था।
हिब्रू मान्यताओं के अनुसार भगवान द्वारा विश्व को बनाने में सात दिन लगे थे। इस सात दिन के संधान के बाद नया वर्ष मनाया जाता है। यह दिन ग्रेगरी के कैलेंडर के मुताबिक 5 सितम्बर से 5 अक्टूबर के बीच आता है।
हिन्दुओं का नया साल चैत्र नव रात्रि के प्रथम दिन यनि गुदी पर हर साल चीनी कैलेंडर के अनुसार प्रथम मास का प्रथम चन्द्र दिवस नव वर्ष के रूप में मनाया जाता है। यह प्रायः 21 जनवरी से 21 फ़रवरी के बीच पड़ता है।
भारत के विभिन्न हिस्सों में नव वर्ष अलग-अलग तिथियों को मनाया जाता है। प्रायः ये तिथि मार्च और अप्रैल के महीने में पड़ती है। पंजाब में नया साल बैशाखी नाम से 13 अप्रैल को मनाई जाती है। सिख नानकशाही कैलंडर के अनुसार 14 मार्च होला मोहल्ला नया साल होता है। इसी तिथि के आसपास बंगाली तथा तमिळ नव वर्ष भी आता है। तेलगु नया साल मार्च-अप्रैल के बीच आता है। आंध्रप्रदेश में इसे उगादी (युगादि=युग+आदि का अपभ्रंश) के रूप में मनाते हैं। यह चैत्र महीने का पहला दिन होता है। तमिल नया साल विशु 13 या 14 अप्रैल को तमिलनाडु और केरल में मनाया जाता है। तमिलनाडु में पोंगल 15 जनवरी को नए साल के रूप में आधिकारिक तौर पर भी मनाया जाता है। कश्मीरी कैलेंडर नवरेह 19 मार्च को होता है। महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा के रूप में मार्च-अप्रैल के महीने में मनाया जाता है, कन्नड नया वर्ष उगाडी कर्नाटक के लोग चैत्र माह के पहले दिन को मनाते हैं, सिंधी उत्सव चेटी चंड, उगाड़ी और गुड़ी पड़वा एक ही दिन मनाया जाता है। मदुरै में चित्रैय महीने में चित्रैय तिरूविजा नए साल के रूप में मनाया जाता है। मारवाड़ी नया साल दीपावली के दिन होता है। गुजराती नया साल दीपावली के दूसरे दिन होता है जो अक्टूबर या नवंबर में आती है। बंगाली नया साल पोहेला बैसाखी 14 या 15 अप्रैल को आता है। पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश में इसी दिन नया साल होता है।
जीवन नगर से संचालित बहुसंख्यक नामधारी संगठन के सतिगुरु ठाकुर दलीप सिंह ने इस अंदाज़ को बदलने का आहवान किया है। उन्होंने कहा है कि भारतीय लोगों को भारतीय संस्कृति भारतीय धर्म कर्म, भारतीय परिवेश और भारतीय अंदाज़ में नया साल मनाना वो तारीख आती है वैसाखी के पर्व पर। इस लिए नए साल को उसी अवसर पर मनाया जाना चाहिए।
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