बैंकों के आगे लगी रही भीड़-स्टाफ भी परेशान रहा-बाजार रहे सुनसान
लुधियाना: 10 नवम्बर 2016: (रेक्टर कथूरिया//पंजाब स्क्रीन)
हफरातफरी के बाद लोग कुछ शांत थे। न उन्हें सिमी के पुलिस मुकाबला की कोई याद थी, न ही पाकिस्तान के हमलों में शहीद हो रहे सेना के जवानों की और न ही जल्द जेब में आने वाले 15-15 लाख रूपये के काले धन की और न ही बढ़ती हुई महंगाई की। बस सभी को एक ही चिंता थी--पैसे की चिंता। जमा करने में फायदा होगा या चेंज करवाने में? इस सवाल को बार बार एक दुसरे से पूछा जा रहा था।
लोग पैसे की चिंता में थे। जेब खाली थी। बाजार सुनसान से थे। सब को सब जगहों से उधारी नहीं मिल रही थी। छोटे छोटे खर्चे पहाड़ नज़र आ रहे थे। कहीं पर लोग खुद से उलझ रहे थे तो कहीं पर बैंक के स्टाफ और सुरक्षा गार्डों से। जब यह तस्वीर क्लिक की गईं उस समय अँधेरा छा रहा था। सन्ध्या के वक़्त भी लोग बैंक के गेट पर थे। न किसी को पूजा पाठ याद था न ही कोई और ख्याल। किसी ने स्कूल में बच्चों की फीस देनी थी। किसी ने बीमार मरीज़ के लिए फ्रूट या सूप लेना था। ये लोग मध्य वर्गीय थे। इन्होंने सिर्फ बड़े से बड़ा करेंसी नोट यही देखा था और उसे हर आफत का इलाज समझ कर बैंक में सम्भाल दिया था। बैन के एलान ने उनकी नींद उड़ा दी। जिनके पास काला धन था उनकी चिंता कुछ और तरीके से बाहर आई। किसी ने बोरिया भर कर नोट जला दिए और किसी ने सड़क किनारे कूड़े में फेंक दिए। धर्म कर्म की बातों में अग्रणी रहने वाले इस समाज में आफत आने पर भी नहीं सोचा गया कि चलो कुछ फ़ालतू के नोट फेंकने या जलाने की बजाये किसी ज़रूरतमन्द को दान दे दिए जाएँ। इस सारे घटनाक्रम ने साबित कर दिया कि हमारे समाज में बस यही सत्य है----बाप बड़ा न भईया--सबसे बड़ा रुपईया। ऊपर दी गयी तस्वीरों में से एक तस्वीर है सेंटर बैंक आफ इण्डिया के गेट पर मौजूद लोगों की, दूसरी है पंजाब एंड सिंध बैंक की और तीसरी है पंजाब नेशनल बैंक की। यह तीनों शाखाएं लुधियाना के सिविल लाईन एरिया की हैं। क्या अब भी यह समाज समझेगा कि असली धन यह करेंसी नहीं होती। असली धन उन सच्चे वायदों में छुपा होता है जो चुनावी जुमले नहीं होते। फिलहाल तो यही सच है कि एक बार फिर यही साबित हुआ--बाप बड़ा न भईया--सबसे बड़ा रुपईया।
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