Tuesday, October 04, 2016

आज देश में युद्ध का माहौल बनाया जा रहा है- हम युद्ध के खिलाफ हैं

हम सर्जिकल ऑपरेशन में नहीं निदान में भरोसा करते हैं
इंदौर: 2 अक्टूबर 2016: (प्रदीप शर्मा//पंजाब स्क्रीन):
मानव से मानव के रिश्ते को और मज़बूत बनाता हुआ इप्टा का 14वां राष्ट्रीय सम्मेलन आज रात समाप्त हो जायेगा। हिन्दोस्तान के अलग अलग स्थानों के दर्द को यहाँ इप्टा मंच पर एक दुसरे के साथ बाँटने और फिर उस दर्द को संघर्ष की एक ऊर्जा में बदलते हुए हम फिर अपने अपने घरों की तरफ रवाना हो जाएंगे। हम  हमारा  हमारी विचारधारा हमें जोड़े रखेगी।  हम क्रांति की शमा को रौशन रखेंगे।
सम्मेलन प्रथम अक्टूबर को स्थानीय आनन्द मोहन माथुर सभागृह में बेहद उत्साह से शुरू हुआ।शुरूआत पारम्परिक रूप से झंडे साथ हुई। झंडोत्तोलन इंदौर के सुपरिचित संस्कृति कर्मी औए पूर्व सांसद होमी दाजी की पत्नी ने किया। इसके बाद भिलाई इप्टा ने मणिमय मुखर्जी के संगीत निर्देशन में एक जनगीत 'हमने ली कसम' की प्रस्तुति दी। यह केवल एक गीत नहीं था--सचमुच में भी हमारी कसम थी। 

उत्साहित सदस्यों को सुवाग्त्म कहते हुए मप्र इप्टा के अध्यक्ष हरिओम राजोरिया ने  यादगारी पर स्वागतीय भाषण दिया। इप्टा के महासचिव राकेश ने कहा की चार्ली चैपलिन कहा करते थे कि कला जनता के नाम एक प्रेम पत्र है। हमने इसमें यह जोड़ने की हिमाकत की कि यह शाषकों के  विरुद्ध,  साम्राज्यवाद के विरुद्ध, शोषण और असमानता के विरुद्ध अभियोग पत्र भी है। उन्होंने कहा कि आज देश में युद्ध का माहौल बनाया जा रहा है। हम युद्ध के खिलाफ हैं क्योंकि युद्ध समस्याओं की समाप्ति नहीं शुरुआत है। हम भगत सिंह की विरासत को लेकर चलते हैं। एक समय उन्हें भी आतंकवादी कहा गया था। हम अपने सांस्कृतिक औजारों से उनकी लड़ाई को आगे बढ़ाएंगे। हम युद्ध और आतंकवाद से एक साथ लड़ेंगे।


इसके इसके पश्चात् इप्टा के पूर्व अध्यक्ष ए. के.हंगल, पूर्व महासचिव जितेंद्र रघुवंशी, पंडित रविशंकर, ओ. एन करूप, कामरेड ए. बी. बर्धन, रवि नागर, जुगल किशोर, जोहरा सहगल महाश्वेता देवी, राजेन्द्र यादव, रविन्द्र कालिया, नेल्सन मण्डेला, पीट सीगर, आर के लक्ष्मण, मन्नाडे, भूपेन हजारिका, जसपाल भट्टी, सतपाल डांग आदि दिवंगत साथियो-कलाकारों और अन्य जन नेताओं को श्रद्धांजलि दी गई।


 यादगारी फिल्म "गर्म हवा" के लिए चर्चित फिल्मकार और इप्टा के उपाध्यक्ष साथी एम. एस. सथ्यू ने उद्घाटन भाषण देते हुए कहा कि वे 1960 में इप्टा में आए जब वे मुम्बई इप्टा की रिहर्सल देखा करते थे।


मौजूदा हालात का ज़िक्र करते हुए उन्होंने  कहा कि लड़ना आसान है पर शांति से बर्ताव करना मुश्किल है। टेकनोलॉजी के उपयोग से अब लड़ाई और भी आसान हो गयी है है, पर हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यह गांधी का देश है। आज की सरकार शान्ति के आवरण को फाड़कर फेंक रही है। इस नाज़ुक हालत में हमारी जिम्मेदारी बड़ी है। समाजवाद सबको बराबरी का मौका देता है, इसलिए हमें साम्प्रदायिकता के साथ-साथ जातिवाद से भी लड़ना है।  थिएटर दुनिया को बदल नहीं सकता पर यह इसके लिए प्रेरित कर सकता है।


उन्होंने गिला भी किया कि मुझे उद्घाटन भाषण देने के लिए बुलाया गया। अच्छा होता कि मुझे भाषण देने के बदले नाटक करने के लिए बुलाया गया होता तो मैं अपनी बात बेहतर ढंग से रख पता


विचारधारा को आगे बढ़ते हुए राजेन्द्र राजन, महासचिव, प्रलेस  ने कहा कि जब इप्टा का गठन नहीं हुआ था तब भी सांस्कृतिक जागरण का काम हम करते थे। प्रेमचन्द रंगशाला को मुक्त करने के लिए एक लम्बी लड़ाई हमने बिहार में लड़ी। लाठियाँ भी खाईं। लड़ाई की इस विरासत से जुड़े होने के कारण मैं स्वयं को गौरवान्वित महसूस करता हूँ। हम सर्जिकल ऑपरेशन में नहीं निदान में भरोसा करते हैं। प्रलेस दिशा देने का काम करता है। इस धारा को कुंद करने के प्रयास पिछले दिनों खूब हुआ। हम उनके लिए एक बेहतर दुनिया चाहते हैं जो भूखे सोते हैं। निश्चय ही उसमें अम्बानी अडानी शामिल नहीं हैं। हम एनजीओ कल्चर के विरुद्ध हैं। अनुदान कला के धार को भोंथरा कर रहा है। इप्टा और प्रलेस को मिलकर इन चुनौतियों का सामना करना है। लेखक और कलाकार को संगठित होकर लड़ाई लड़नी है। जब कबीर कहते थे कि 'दुखिया दास कबीर है, जागे अरु रोवै' तो वह दरअसल उनका रोना नहीं होता था। वह विद्रोह का आह्वान करते थे। उम्मीद की जानी चाहिए कि लडाई के गीत अब भी रचे जाएंगे और यह काम इप्टा के साथी ही कर सकते हैं। निश्चय ही यह काम अब और ज़ोर से होगा। इसके बाद अशोक नगर इप्टा द्वारा वामिक जौनपुरी का एक जनगीत "जब भी नाव चलती है" प्रस्तुत किया गया ।


इसके बाद बारी आई उन महान लोगों को याद  जिन्होंने  इप्टा को मज़बूत किया तांकि  मज़बूत। साथी शमीम फैजी ने कामरेड बर्धन को याद करते हुए कहा कि वे ही मुझे इस आंदोलन में  लेकर आए। मुझ जैसे कई युवा उनके ही कारण आंदोलन से जुड़े। वे सही मायनो में बहु-आयामी थे। अनेक आंदोलनों से जुड़े। साढ़े ग्यारह साल जेल में रहे। कोई 3 साल भूमिगत रहे। वे विचारों को बेहद सरल भाषा में रखते थे। वे आर्ट और कल्चर के साथ भी उतनी ही शिद्दत से जुड़े थे, जितने अन्य संघर्षो से। इसीलिए इप्टा से उनका जुड़ाव समझ में आता है। इसके सम्मेलनों में शिरकत की बागडोर मुझे सौंपते हुए हुए उन्होंने एक बार विनोद में कहा की मैं संस्कृति की बागडोर एक गैर सांस्कृतिक आदमी को सौंप रहा हूँ। साथी शमीम के वक्तव्य के बाद ए. बी. बर्धन के भाषण का एक अंश परदे पर दिखाया गया और उत्पल बेनर्जी ने फैज की एक नज्म 'हम देखेंगे' का गायन किया।


इस अवसर पर इप्टा के पूर्व महासचिव जितेन्द्र रघुवंशी को याद करते हुए राकेश ने कहा कि उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि एक दोस्त, एक साथी की चर्चा इस तरह से करनी होगी। बकौल दुष्यंत,"उखड़ गया है एक बाजू जबसे, और ज़्यादा वज़्न उठाता हूँ। अब ये दायित्व हम पर है कि उनकी अनुपस्थिति में ज्यादा जिम्मेदारी से काम करें। सन 57 में दिल्ली में पूर्व गठित इप्टा का आखिरी सम्मेलन हुआ था और 60 में इप्टा बिखर गई। 85 में हम आगरा में मिले और कैफ़ी के नेतृत्व में ये कारवां जितेंद्र ने आगे बढ़ाया। बकौल राजेन्द्र यादव वे बड़े कथाकार हो सकते थे, वे बड़े अनुवादक हो सकते थे पर उन्होंने इप्टा के संघठन का जिम्मा चुना। इप्टा दरअसल उन्हें घुट्टी में मिली थी। राकेश के वक्तव्य के बाद जितेंद्र जी पर फ़िल्म दिखाई गयी, जिसका निर्माण दिलीप रघुवंशी ने किया है।

विनीत तिवारी के संक्षिप्त परिचय के बादव्अंधविस्वास निर्मूलन समिति, सांगली, महाराष्ट्र ने एक नाटक का मंचन किया। सोचने की आजादी और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता राजसत्ता के लिए खतरा होती है, इस बात को रेखांकित करते हुए नाटककारों ने कहा, तुम गोली चलाओगे, हम एक कविता लिखेंगे। तुम गोले दागोगे, हम एक नाटक खेलेंगे! इसी बीच हुए संघ के हमले की सभी ने निंदा की। पंजाब में भी जब यह खबर पहुंची  तो पंजाब में भी इसका तीखा विरोध हुआ। बहुत से संगठनों ने इस हमले की सख्त निंदा की।  

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