यहां महसूस होता है जल, जंगल और ज़मीन का महत्व
बल्लोवाल सौंखड़ी से लौट कर रेक्टर कथूरिया 09 सितम्बर 2016:
बल्लोवाल सौंखड़ी यूं तो नवांशहर में है लेकिन यहाँ पहुँचने के लिए काफी आगे जाना पड़ता है। प्राकृतिक सौंदर्य से परिचय कराता यह गाँव बलाचौर से भी काफी आगे जा कर है। यहाँ पहुँच कर महसूस होता है कि माल्स की बड़ी बड़ी इमारतों के मुँह में जा रहे जल, जंगल और ज़मीन की अहमियत क्या होती है। लुप्त हो रहे इस सौंदर्य को बचने के लिए क्या क्या करना आवश्यक है यह प्रश्न निश्चय ही मन में उठने लगता है। प्रकृति से दूर होते जा रहे इंसान को कृषि के ज़रिये फिर प्रकृति के नज़दीक लाना कितना आवश्यक है। प्रसन्नता की बात है कि पंजाब कृषि यूनिवर्सिटी इस काम को बहुत ही कुशलता से कर रही है। इसकी झलक देखने को मिली यहाँ आयोजित किसान मेले में।
बल्लोवाल सौंखड़ी, नवांशहर पंजाब कृषि यूनिवर्सिटी में आयोजित होने वाले किसान मेलों में पहला क्षेत्रीय किसान मेला शुक्रवार को क्षेत्रीय खोज केंद्र, बल्लोवाल सौखड़ी, जिला शहीद भगत सिंह नगर में लगाया गया। मेले का उद्घाटन पंजाब कृषि यूनिवर्सिटी के प्रशासनिक बोर्ड के मैंबर डा. सतबीर सिंह गोसल ने किया। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता डा. बलदेव सिंह ढिल्लों, उप कुलपति, पंजाब एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी ने की। इस मौके पर शहीद भगत सिंह नगर के एडीशनल डिप्टी कमिश्नर परमजीत सिंह विशेष मेहमान के तौर पर शामिल हुए। कार्यक्रम में जिले के मुख्य कृषि अफसर डा. जसवंत सिंह भी उपस्थित थे।
इस मौके पर डा. गोसल ने कहा कि यह मेले ज्ञान विज्ञान के मेले होते हैं। हमें इनसे अधिक से अधिक लाभ लेना चाहिए। इस के साथ हम अपनी खेती को तकनीकी दिशा प्रदान कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र में बागवानी, दवा और जड़ी -बूटी के पौधों की खेती को और उत्साहित किया जा सकता है। किसानों को सब्जियां भी उगानी चाहिए, जिससे वे घर की रसोई के लिए पौष्टिक खुराक प्राप्त कर सकते हैं। किसानों को अनावश्यक खर्च न करने की अपील करते हुए खेती को और लाभपरक बनाने की अपील भी उन्होंने की। उन्हीने इस जगह प्राकृतिक महत्व को भी विस्तार से बताया और लोगों से कहा कि यहाँ के पावन जल, शुद्ध हवा और महत्वपूर्ण तत्वों से भरी इस भूमि का फायदा उठाएं। उन्हने वो सब चीज़ें गिनवाईं जिन्हें ऊगा कर किसान अपनी आर्थिकता सुधार सकते हैं।
अध्यक्षीय भाषण में डा. बलदेव सिंह ढिल्लों, वाइस चांसलर, पंजाब कृषि यूनिवर्सिटी ने कहा कि खादों का प्रयोग मिटटी और पत्ता परख आधार पर करने के से खादों की बचत होती है और झाड़ में भी वृद्धि होती है। डा. ढिल्लों ने कहा कि यूनिवर्सिटी अपनी खेती खोजों और नई तकनीकें को किसानों तक पहुंचाने के लिए कई तरीके इस्तेमाल करती है, उन में से किसान मेले किसानों तक पहुँच बनाने का सब से सफल ढंग है। यूनिवर्सिटी की तरफ से लगाए जाते यह किसान मेले सिर्फ किसानों को नयी तकनीकें तो बताते ही हैं, साथ ही वैज्ञानिकों को किसानों की मुश्किलों बारे भी जानकारी होती है और वे खेती खोज को नई दिशा प्रदान करने में भी अहम हिस्सा डालते हैं। उन्होंने नरमा कपास पट्टी में सफेद मक्खी के हमले को काबू करने के लिए सभी से मिले सहयोग के लिए बधाई दी। डा. ढिल्लों ने किसानों का इस लिए भी धन्यवाद किया कि उन के साथ मिल कर ही हम पानी के गिरते स्तर को काबू करने में, रासायनिक खादों का प्रयोग कम करने में सफल हुए हूँ। उन्होंने गुरु सेवा संस्था के बच्चों की तरफ से पेश किए नाटक की भरपूर प्रशंसा की और ऐसे साधनों को खेती प्रसार शिक्षा का हिस्सा भी बनाने के लिए प्रेरित किया।
कार्यक्रम में एडीसी (विकास) परमजीत सिंह ने यूनिवर्सिटी की तरफ से इस पिछड़े क्षेत्र में किए जा रहे अनुसंधानों की प्रंशसा की। इसके साथ ही उन्हने सवाल भी किया कि पड़ोसी राज्य राजस्थान की हालत भी कोई ज़्यादा अच्छी नहीं लेकिन वहां से कभी आत्महत्या की खबर नहीं आई। उन्होंने संकेतों ही संकेतों में बहुत कुछ कहा जिसे समझना बेहद ज़रूरी है क्योंकि इसे समझ कर ही हालत सुधर सकती है। उन्होंने इस बात पर दुःख व्यक्त किया कि तेज़ी से बढ़ रहा मोबाईल का चाव घरों के धन को बर्बाद कर रहा है। परिवार के हर सदस्य ने पांच पांच मोबाईल रखे हुए हैं जिनकी ज़रूरत नहीं होती। हर मोबाईल पर कम से कम पांच सौ रूपये महीना खर्च भी आता है। सब्ज़ी मौल लेनी पद्धति है, दूध भी खरीदना पड़ता है, पढ़ाई पहले ही महंगी है इस हालात में गरीबी नहीं बढ़ेगी तो क्या होगा? उन्होंने इस बात पर कटाक्ष भी किया कि हमारे गाँवों की पंचायतें हमारे फ़ंडज़ का आयद उठाने के लिए गलियां नालियां पक्की करने की मांग से ऊपर ही नहीं उठती। उन्होंने विकास के कामों में बढ़ रही सियासत की सोच पर चिंता ज़ाहिर की। उन्होंने बहुत ही कम शब्दों में नशे से खोखले हो रहे जिस्मों को बचने और खुशहाली के पथ पर आगे बढ़ने का आह्वान भी किया। गौरतलब है कि एडीसी (विकास) परमजीत सिंह का पीएयू के साथ बहुत ही पुराना और भावुक रिश्ता भी है। उन्होंने यहीं से शिक्षा भी ली। जब वह अपनी बातें कह कर अपनी सीट पर लौटने लगे तो मंच पर मौजूद सभी वीआईपीज ने उनका अभिवादन किया।
कार्यक्रम में एडीसी (विकास) परमजीत सिंह ने यूनिवर्सिटी की तरफ से इस पिछड़े क्षेत्र में किए जा रहे अनुसंधानों की प्रंशसा की। इसके साथ ही उन्हने सवाल भी किया कि पड़ोसी राज्य राजस्थान की हालत भी कोई ज़्यादा अच्छी नहीं लेकिन वहां से कभी आत्महत्या की खबर नहीं आई। उन्होंने संकेतों ही संकेतों में बहुत कुछ कहा जिसे समझना बेहद ज़रूरी है क्योंकि इसे समझ कर ही हालत सुधर सकती है। उन्होंने इस बात पर दुःख व्यक्त किया कि तेज़ी से बढ़ रहा मोबाईल का चाव घरों के धन को बर्बाद कर रहा है। परिवार के हर सदस्य ने पांच पांच मोबाईल रखे हुए हैं जिनकी ज़रूरत नहीं होती। हर मोबाईल पर कम से कम पांच सौ रूपये महीना खर्च भी आता है। सब्ज़ी मौल लेनी पद्धति है, दूध भी खरीदना पड़ता है, पढ़ाई पहले ही महंगी है इस हालात में गरीबी नहीं बढ़ेगी तो क्या होगा? उन्होंने इस बात पर कटाक्ष भी किया कि हमारे गाँवों की पंचायतें हमारे फ़ंडज़ का आयद उठाने के लिए गलियां नालियां पक्की करने की मांग से ऊपर ही नहीं उठती। उन्होंने विकास के कामों में बढ़ रही सियासत की सोच पर चिंता ज़ाहिर की। उन्होंने बहुत ही कम शब्दों में नशे से खोखले हो रहे जिस्मों को बचने और खुशहाली के पथ पर आगे बढ़ने का आह्वान भी किया। गौरतलब है कि एडीसी (विकास) परमजीत सिंह का पीएयू के साथ बहुत ही पुराना और भावुक रिश्ता भी है। उन्होंने यहीं से शिक्षा भी ली। जब वह अपनी बातें कह कर अपनी सीट पर लौटने लगे तो मंच पर मौजूद सभी वीआईपीज ने उनका अभिवादन किया।
पंजाब कृषि यूनिवर्सिटी के निदेशक खोज, डा. आरके गुम्बर ने यूनिवर्सिटी की खोज गतिविधियों के साथ जान-पहचान करवाते हुए कहा कि इस बार गेंहू की नई किस्मों पीबीडब्ल्यू 725 और 677 किसान वीरों के लिए सिफारिश की हैं, जो झाड़ देने साथ-साथ कई बीमारियों का मुकाबला भी करती हैं।
इससे पहले किसानों व अतिथियों का स्वागत करते पंजाब कृषि यूनिवर्सिटी के निदेशक प्रसार शिक्षा डा. राजिन्दर सिंह सिद्धु ने कहा खेती के साथ जुड़ी समस्याएं लगातार गंभीर हो रहीं है, जिनके प्रति जागरूक होना लाभदायक मी है इस लिए इन मसलों को सही दिशा में यूनिवर्सिटी की सिफारिशों की ओर ध्यान देने की जरूरत है, किसानों को इस मेले में से नए विकसित ज्ञान के लिए खेती साहित्य, शहद और अन्य उपयोगी चीज़ों को भी ले कर जाना चाहिए।
इस अवसर पर संगीतमय सांस्कृतिक कार्यक्रम के ज़रिये जहाँ पंजाब की संस्कृति और टप्पे-बोलियों को याद किया गया वह समाज में व्याप्त कुरीतियों को भी एक लघु नाटिका के मंचन से कॉमेडी के रंग में बेनकाब किया गया।
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