उनको सद्गुरु रूप में स्वीकार कर पंथ को टूटने से बचा सकते हैं
नामधारी पंथ के पूजनीय श्री
सतगुरु जगजीत सिंह जी की धर्मपत्नी श्री माता चंद कौर जी का नाम उसी श्रेणी
में आता है,जिन माताओं की देवियों के रूप में पूजा की जाती है तथा गुरबाणी में भी उन्हें
धन्यता योग्य स्थान प्राप्त है जैसे
धन्नु सु वंसु धन्नु सु पिता धन्नु सु माता जिनि जन जणे।। (११३५ )
धनु जननी जिनि जाइिआ धन्नु पिता परधानु।। (३२ ) आदि।
श्री माता चंद कौर जी द्धारा पंथ व गरीबों और दुखियों की
सेवा व सहायता की। श्री सतगुरु जी के पावन चरणों में रहते हुए देश की आज़ादी के
बाद बेघर हुए लोगों के इलाकों में बसाने, आबाद करने तथा उन्हें उन्नति के शिखर तक
पहुँचाने में आप जी ने सतगुरु जी के साथ मुख्य भूमिका निभाई। आप दिन रात पंथ की
सेवा में लगे रहते। माता जी सर्वगुण सम्पन्न थीं।
आप जी की महानता का परिचय श्री ठाकुर दलीप सिंह जी के
बचनों तथा उन तस्वीरों से मिलता है जो स्वयं आप जी ने अपनी अलौकिक फोटोग्राफी से तैयार कर उन्हें सेवा के
प्रत्यक्ष स्वरुप, शांत मूरत तथा जगत माता आदि उपनामों से
सम्बोधित कर सभी नामधारी परिवारों में सप्रेम भेंट स्वरुप दी। इसके साथ ही ऐसे पूजनीक माता
जी की निन्दा करने से भी वर्जित किया था। संभव है कि उस समय भी कुछ मनमुख लोग माता जी की निंदा करते होंगे।
उसके बाद दिसंबर 2012 में नामधारी पंथ के मुखी श्री सतगुरु जगजीत सिंह जी के ब्रह्मलीन हो
जाने के बाद नामधारी पंथ में कुछ दरारें आती देख पंथ को एकजुट करने के लिए श्री
ठाकुर दलीप सिंह जी ने यह निर्णय लिया कि इस समय माता जी ही केवल पंथ की सर्वोच्च हस्ती हैं जहाँ बिना किसी विवाद के माथा टेका जा सकता है और पंथ इकट्ठा हो सकता है। हम उनको
सद्गुरु रूप में स्वीकार कर पंथ को टूटने से बचा सकते
हैं और केवल कहा ही नहीं बल्कि श्री सतगुरु जगजीत सिंह जी के गुरुद्धारा साहिब श्री जीवन नगर में हो
रहे श्रद्धांजली समारोह के दौरान श्री माता चंद कौर जी की तस्वीर को सतगुरु जगजीत सिंह जी की तस्वीर के साथ
सुशोभित कर पहले आप नमस्कार की फिर सारी संगत को नमस्कार करने तथा अरदास में उनका
नाम शामिल कर के अरदास करने का हुक्म किया। ऐसे समय में
श्री ठाकुर दलीप सिंह जी ने सद्गुरु जगजीत सिंह जी की
ओर से उनके सेवक डॉ. इक़बाल सिंह जी द्धारा भेजे गए गद्दी के उत्तराधिकारी होने के
हक़ को त्याग कर दूर दृष्टि से ये सोचा कि इस परिस्थिति
में केवल माता जी के चरणों में सीस झुका कर ही सारा पंथ इक्कठा हो सकता है। और ऐसा ऐलान आप जी ने कोई निजी स्वार्थ के लिए नहीं अपितु पंथ की भलाई के लिए किया।
संगत के लिए यह
कोई मुश्किल काम नहीं था क्योंकि माता जी तो पहले से ही महान हस्ती श्री सतगुरु
जगजीत सिंह जी की धर्मपत्नी होने के नाते सभी की पूजनीय थीं। पर पता नहीं संगत
क्यों दुविधा में पड़ गई और संगत ने उनके आदेश का पूरी तरह से पालन नहीं किया। और
कई लोग आप जी से वाद-विवाद करने लग गये क्योंकि कई मतलब परस्त तथा स्वार्थी लोगों को
शायद यह खतरा पैदा हो गया कि यदि माता जी गुरुगद्दी पर बिराजमान हो गये तो वे गुरुघर
की सम्पति पर कब्ज़ा कैसे करेंगे और भैणी साहिब में रहने वाले कुछ कब्जाधारी लोगों
ने तो बहुत टीका टिप्पणी की। वे कहने लगे कि ये कौनसा नया काम है? एक स्त्री कैसे गुरु बन सकती है?जबकि गुरबाणी में सतगुरु के
अनेक लक्षण लिखे हैं पर ऐसा कहीं नहीं लिखा कि एक स्त्री गुरु नहीं बन सकती। और इस तरह माता जी को गुरु रूप में स्वीकार नहीं किया। पर उनकी इस मनमत से
पंथ का कई तरह से नुकसान हुआ। पंथ का सबसे बड़ा नुकसान यह हुआ कि पंजाब की धरती पर
माता जी की हत्या का कलंक लग गया और हमने अपने पूज्य माता जी को खो दिया।
काश! समूह नामधारी संगत ने श्री ठाकुर दलीप सिंह जी का आदेश मान कर माता चंद
कौर जी को गुरु रूप में स्वीकार कर लिया होता। यदि माता जी सतगुरु रूप में
बिराजमान होते तो नामधारी पंथ को ऐसी संकट की घड़ी ना देखनी पड़ती। हम उनके पावन सानिध्य का
आनंद ले रहे होते और समाज व देश के लिए महान मिसालें कायम करने वाला
नामधारी पंथ आज इस कगार पर असमंजस में ना खड़ा होता।
पर इस समय दौरान ही सिक्ख पंथ के निरंकारी समुदाय में ऐसा ही उदाहरण देखने को मिला जिसने
पंथक हितैषी नामधारी समुदाय को यह सोचने के लिए मजबूर कर दिया कि नामधारियों ने माता जी को गुरु मानने का ऐलान
कर शुरुआत तो की पर इसका लाभ नही उठा सके। इसका लाभ उनके निरंकारी भाइयों ने
प्राप्त कर लिया। क्योंकि निरंकारी समुदाय
ने
नामधारी पंथ के
मुखी श्री ठाकुर दलीप सिंह जी द्वारा सर्वप्रथम शुरू
की जाने वाली परंपरा को अपना कर इतिहास में एक नई मिशाल कायम की है। उन्होंने मई 2016 में अपने पंथ के मुखी बाबा हरदेव सिंह जी के
ब्रह्मलीन हो जाने के पश्चात् ज्यादा दुविधा में न पड़ कर उनकी धर्मपत्नी माता
सविंदर कौर जी को गुरु रूप में स्वीकार कर सराहनीय कार्य किया है। माता सविंदर कौर जी ने पंथ को उसी तरह सहेज
लिया तथा सारा पंथ उनके समक्ष नतमस्तक है। इसके अलावा पंथ में किसी प्रकार का
विवाद नहीं उठा और पंथ उन्नति की राह पर आगे बढ़ रहा है। उन्होंने सभी के समक्ष एक ऐसा उदाहरण प्रस्तुत
कर दिया उन लोगों को भी प्रेरणा दी है जो कहते थे कि एक स्त्री कैसे गुरु बन सकती
है ? अतः आज भी उन लोगों को नारी शक्ति के अस्तित्व
को पहचानने की जरूरत है जिन्हें पूजनीय स्थान देने पर हमेशा लाभ ही होता है नुकसान
नहीं। महर्षि मनु जी ने संस्कृत के एक श्लोक में ठीक ही कहा है...... "यत्र
नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता।यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्र फ़ला:
क्रिया: ।।"
अर्थात जहाँ
स्त्रियों की पूजा की जाती है वहां देवता निवास करते हैं। जहाँ ये नहीं पूजी जाती
वहां सभी कार्य निष्फल हो जाते हैं।
No comments:
Post a Comment