भारत का रहने वाला हूँ भारत की बात बताता हूँ…
एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा था कि फ़िल्मी हेरोइनों के पीछे भागने और लिपटने चिपटने वाले रोल उन्होंने इसलिए नही किये कि वह फिल्मों से एक संदेश देने की हमेशा इच्छा रखते थे इसलिए फिल्म बड़ा सोच समझ कर साइन करते थे। उन्हें अपनी इमेज की बड़ी चिंता रहती थी। कहते हैं: “मैंने ज़िंदगी में दूसरे समकाली हीरोज़ की तरह 250-300 फिल्मे नहीं कीं, बड़ी मुश्किल से 50 की होंगी, लेकिन मुझे इस बात से संतुष्टि है कि मैंने अपनी कला को बिकने नहीं दिया !"
शहीद, उपकार, पूरब और पश्चिम, रोटी कपडा और मकान व् क्रांति जैसी देश भक्ति भरी फिल्मों के सिर्जनहार मनोज कुमार के अंदर देश प्रेम और देशभक्ति का जज्बा कूट कूट कर भरा हुआ है। आज भी शहीद भगत सिंह की बातें करते उनकी आँखों में से पानी उछल जाता है।
24 जुलाई 1937 को एबोटाबाद में पैदा हुए हरी कृष्ण गोस्वामी 10 वर्ष के थे कि देश के बटवारे समय परिवार समेत दिल्ली आकर रिफ्यूजी कैम्पों में रहना पड़ा। दिल्ली से ग्रेजुएशन करने के बाद एक्टर बनने की इच्छा लेकर वो मुम्बई आ गए।
1957 में फिल्म ‘फैशन’ में छोटा सा रोल करने के बाद 1960 में सईदा खान के साथ ‘कांच की चूड़ियां’ में पहली बार हीरो बने। 1962 में विजय भट्ट की फिल्म ‘हरयाली और रास्ता’ की सफलता ने उन्हें स्टार बना दिया।
उन्होंने भले ही 50 के करीब फिल्मो में काम किया लेकिन उनकी सफलता का रिकॉर्ड बहुत ही बढ़िया रहा। कुछ कामयाब फ़िल्में हैं : हिमालय की गोद में, वह कौन थी, हरयाली और रास्ता, शहीद, उपकार, पूरब और पश्चिम, शोर, रोटी कपडा और मकान, दो बदन, सावन की घटा गुमराह, पत्थर के सनम, नील कमल, साजन, आदमी, यादगार, पहचान, मेरा नाम जोकर, बलिदान, बेईमान, सन्यासी, दस नम्बरी, अमानत, क्रांति, और भी बहुत।
जन्मदिन पर उनकी फिल्मों में उन पर फिल्माए कुछ यादगारी गीत हैं:
- मेरे देश की धरती सोना उगले… (उपकार)
- भारत का रहने वाला हूँ भारत की बात बताता हूँ… (पूरब और पश्चिम)
- कोई जब तुम्हारा ह्रदय तोड़ दे… (पूरब और पश्चिम)
- मेरा रंग दे बसंती चोला… (शहीद)
- ऐ वतन ऐ वतन हमको तेरी कसम… (शहीद)
- मैं न भूलूंगा, इन रस्मों को… (रोटी कपडा और मकान)
- तेरी याद दिल से भुलाने चला हूँ… (हरयाली और रास्ता)
- चाँद सी मेहबूब हो मेरी कब ऐसा मैंने सोचा था… (हिमालय की गोद में)
- रहा गर्दिशों में हरदम मेरे इश्क़ का सितारा… (दो बदन)
- मेरी जान तुझपे सदके, अहसान इतना कर दो… (सावन की घटा)
- इक प्यार का नग़मा है…(शोर)
- ज़िंदगी की न टूटे लड़ी… (क्रांति)
1966 में उनकी फिल्म ‘शहीद’ ने बेस्ट फिल्म का नेशनल अवार्ड जीता और 1967 में ‘उपकार’ को सेकंड बेस्ट फिल्म का नेशनल अवार्ड मिला।
1968 में ‘उपकार’ ने बेस्ट फिल्म, बेस्ट डायरेक्टर, बेस्ट स्टोरी और बेस्ट डायलाग का फ़िल्मफ़ेयर अवार्ड जीता। बेस्ट डायरेक्टर (रोटी कपडा और मकान -1975) बेस्ट एक्टर (पहचान और बेईमान) फिल्म फेयर अवार्ड भी उनके नाम हौं।
हाल ही में उन्हें वर्ष 2016 के लिए देश के सबसे बड़े फ़िल्मी सम्मान ‘दादा साहेब फाल्के अवार्ड’ से सम्मानित किया गया है।
मेरी खुशकिस्मती है पिछले 20 वर्ष से उनके साथ एक अज़ीज़ दोस्त की तरह मेरी एसोसिएशन है।
जन्मदिन के अवसर पर बहुत बहुत बधाई सर ! Iqbal Singh Channa
1 comment:
Wow. Thanks Kathuria ji !
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