कामरेड मलगी की मुबई में गिरफ्तारी के बाद पुलिस हवालात में हुयी थी अचानक मृत्यु
मजदूर आक्रोशित हो गये और समय पूर्व ही शुरू हो गयी हड़ताल
8 मई 1974 को देश में श्री जार्ज फर्नाडीस के नेतृत्व में रेल हड़ताल आरम्भ हुई. श्री जार्ज फर्नांडीस जो उस समय सोशलिस्ट पार्टी के अध्यक्ष थे तथा रेल्वे मजदूरों के संगठन ऑल इंडिया रेल्वे फेडरेशन के अध्यक्ष भी थे. श्री जार्ज फर्नाडीस ने पहल कर देश के अन्य रेल कर्मचारियों के संगठनों को इकठठा कर राष्ट्रीय समन्वय समिति का गठन किया था और कई माह तक रेल कर्मचारियों के हड़ताल का मांग पत्र तेयार करने के बाद हड़ताल को संगठित करने का अभियान चलाया था.
यह रेल हड़ताल देश की एक ऐसी बेमिसाल हड़ताल थी जिसने समूचे देश के मजदूर आंदोलन और भारतीय राजनीति के ऊपर विशेष प्रभाव डाला था. इस हड़ताल के प्रमुख मुद्दों के अन्य मुद्दे के अलावा एक महत्वपूर्ण मुद्दा था - रेल कर्मचारियों को न्यूनतम बोनस. दरअसल इस हड़ताल से समूचे देश में और मजदूर जगत में एक बुनियादी बहस भी आरंभ हुई थी कि बोनस का सिद्धांत क्या हो ? कुछ लोग और विशेषतः सत्ता पक्ष बोनस को मुनाफे के अंश के रूप में देखता था परन्तु भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने बोनस को शेष वेतन या मजदूरी माना था.
यह रेल हड़ताल देश की एक ऐसी बेमिसाल हड़ताल थी जिसने समूचे देश के मजदूर आंदोलन और भारतीय राजनीति के ऊपर विशेष प्रभाव डाला था. इस हड़ताल के प्रमुख मुद्दों के अन्य मुद्दे के अलावा एक महत्वपूर्ण मुद्दा था - रेल कर्मचारियों को न्यूनतम बोनस. दरअसल इस हड़ताल से समूचे देश में और मजदूर जगत में एक बुनियादी बहस भी आरंभ हुई थी कि बोनस का सिद्धांत क्या हो ? कुछ लोग और विशेषतः सत्ता पक्ष बोनस को मुनाफे के अंश के रूप में देखता था परन्तु भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने बोनस को शेष वेतन या मजदूरी माना था.
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि ’’बोनस इस द डेफर्ड वेज’’ और इसी सिंद्धांत के आधार पर रेल कर्मचारियों के संगठन ने बोनस की मांग की थी. रेल संगठनों का कहना था कि उस समय के जो अस्थाई रेल कर्मचारी थे, उन्हे भी स्थाई किया जाये. श्री फर्नांडीस और रेल मजदूर संगठनों का यह आंकलन था कि रेल कर्मचारियों की सारी मांगे पूरी करने पर भारत सरकार पर मुश्किल से 200 करोड़ का बोझ आयेगा. जबकि रेल हड़ताल को तोड़ने के उपर भारत सरकार ने इससे दस गुनी राशि अनुमानतः दो हजार करोड़ रूप्ये खर्च किये थे.
समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता होने के नाते तथा राज्य परिवहन निगम, बीड़ी मजदूर संगठन आदि अनेकों मजदूर संगठनों के अध्यक्ष और पदाधिकारी होने के नाते मैं, स्वतः इस रेल हड़ताल की तैयारी में लगा था ओर इसका हिस्सेदार था. दरअसल रेल हड़ताल का आवाहन 8 मई 1974 से शुरू करने का था परन्तु 7 मई 1974 को मुबई में नेशनल मजदूर यूनियन के पदाधिकारी साथी स्व. मलगी की मुबई में गिरफ्तारी के बाद पुलिस हवालात में अचानक मृत्यु होने से मजदूर आक्रोशित हो गये और समय पूर्व ही हड़ताल शुरू हो गई.
मुझे 8 मई 1974 को सागर रेल्वे स्टेशन से सैकड़ों रेल कर्मचारियों के साथ गिरफ्तार किया गया था और हमारे साथ राज्य परिवहन निगम कर्मचारी संघ के श्री शंकर लाल, श्री भाई जान, बीड़ी मजदूरों के संगठन के साथियों को भी गिरफ्तार किया गया था. नेशनल रेल्वे मजदूरों के सागर के अध्यक्ष श्री कम्पानी, स्व. शंकरलाल सैनी आदि को भी हमारे साथ गिरफ्तार किया गया था. इन रेल कर्मचारियों को सरकार ने सागर जेल में रखा था परन्तु मुझे स्व. महावीर सिंह, श्री यादव, स्व. शंकरलाल साहू, स्व. भाईजान आदि को सागर से भोपाल जेल स्थानांतरित कर दिया गया था, जहॉं भोपाल के सैकड़ों रेल कर्मचारी जेल में थे.
दरअसल 1971 में श्रीमति इंदिरा गॉंधी को संसद के चुनाव में विशाल बहुमत मिला था और फिर बंग्लादेश के स्वतंत्र राष्ट के रूप में निर्माण के बाद श्रीमति इंदिरा गॉंधी अपनी लोकप्रियता के चरम पर थी. स्व. ललित नारायण मिश्र, भारत के रेल मंत्री थे और स्व. इंदिरा गॉंधी ने रेल हड़ताल को उन्हे हटाये जाने के षड़यंत्र के रूप में देखा था. उनके सूचना स्रोतों ने उन्हे यह समझाया था कि अगर उन्होने रेल कर्मचारियों की मांगे मान ली तो देश में कर्मचारियों की बगावत की एक नई श्रंखला शुरू हो जायेगी. वैंसे भी अपने अंहकारी स्वभाव और लोकप्रियता के मद में उन्हे यह गवारा नही था कि उन्हे कोई चुनौती दे.
इंदिरा गांधी लोकतंत्र को अपने अनुकूल चाहती थी. और इसीलिये भारत सरकार ने वार्तालाप के बजाय टकराव का रास्ता चुना था. श्री फर्नाडीस को गिरफ्तार कर तिहाड़ जेल में रखा गया. समूचे देश में रेल कर्मचारियों पर और उनके समर्थकों पर दमन चक्र शुरू कर दिया गया. कई लाख कर्मचारियों को नौकरी से मुक्त कर दिया और हजारों कर्मचारियों को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया. बड़े - बड़े जनसंगठनों के कर्मचारियों को भयभीत करने के लिये और घुटना टेक कराने के लिये उनके आवासों को घेरा और रेल्वे कालोनियों की बिजली काट दी गई. पानी की आपूर्ति बंद कर दी गई तथा पुलिस के माध्यम से उन्हे व उनके बच्चों को मकान खाली करने को बाध्य किया गया. सैकड़ों कर्मचारियों के घरों का सामान सड़कों पर फेंक दिया गया. रेल्वे के इलाकों को सेना के हवाले कर दिया गया और तानाशाही का दमन चक्र क्या हो सकता है इसका पूर्वाभ्यास इस हड़ताल के तोड़ने में नजर आने लगा.
मुझे याद है कि श्री जार्ज फर्नांडीस ने जेल से अपने साथियों को पत्र लिखकर आगाह किया था और कहा था ’’ दिस इस ड्रेस रिहर्सल ऑफ फासिस्म’’ . हम लोग भोपाल की जेल में रात को रेल के इंजनों की आवाज सुनते थे और रेल कर्मचारी मन में भयभीत होते थे कि रेल हड़ताल टूट गई है. दमन चक्र से भयभीत होकर कर्मचारी काम पर वापिस आ गये है इसलिये गाड़ियों की आवाज सुनाई पड़ रही है. परन्तु सच्चाई यह थी कि रेल कर्मचारियों के संकल्प को तोड़ने के लिये सरकार टेरीटोरियल आर्मी के चालकों से कुछ इंजनों को चलवाती थी ताकि कर्मचारी और उनके परिवार के लोग घबराकर हड़ताल तोड़ दें. लगभग 15 दिन यह हड़ताल चली और 1975 के आपातकाल की पृष्ठभूमि इस हड़ताल ने लिख दी. समूचे देश ने आंतरिक सुरक्षा कानून ’’मीसा’’ का पहला स्वाद इस हड़ताल में चखा था. हालांकि मैं, तो इस कानून में, इस हड़ताल के पहले भी गिरफ्तार होकर लम्बे समय तक जेल में रह चुका था. इस हड़ताल से देश लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति सचेत हुआ था लोकतंत्र बनाम तानाशाही की बहस आरंभ हुई थी.
1974 की यह रेल हड़ताल न केवल देश की बल्कि दुनिया की सबसे बड़ी हड़ताल थी, जिसने देश के सत्ता के खम्भों को हिला दिया था. आज इस हड़ताल को लगभग 40 वर्ष होने को आये हैं. इन 40 वर्षों में अनेकों प्रकार के राजनैतिक बदलाव आये हैं परन्तु इस रेल हड़ताल ने जिन बुनियादी बातों को लेकर लकीर खींची थी, वे अब भी यथावत हैं. 1979 में स्व. चरण सिंह के प्रधानमंत्रित्व वाली सरकार ने रेल मजदूरों के बोनस के सिद्धांत को स्वीकार किया और न्यूनतम 8.33 प्रतिशत बोनस देना आरंभ किया.
इस हड़ताल के परिणामस्वरूप ही अस्थाई रेल कर्मचारियों को स्थाई करने की प्रक्रिया शुरू हुई तथा रेल्वे ने यह निर्णय किया कि कोई गेंगमेन हटाया नही जायेगा. इस हड़ताल ने समूचे देश के मजदूरों और कर्मचारियों में एक आत्मविश्वास और संघर्ष का जज्बा पैदा किया था. कई लाख लोग जिनकी नौकरी बाधित की गई थी या जिन्हे नौकरी से हटा दिया गया था, वे लगभग 3 वर्ष तक बगैर वेतन के संघर्ष और पीड़ा के दिन गुजारते रहे और 1977 में कांग्रेस सरकार के हटने के बाद जब जनता सरकार बनी तभी उन सबको काम पर वापिस लिया गया.
कितने ही रेल कर्मचारी दवा के अभाव में मौत के शिकार हो गये. देश के अनेक रेल्वे स्टेशनों पर पुलिस ने गोलियॉं चलाई और मजदूर मारे गये. आज देश में मजदूर आंदोलन उतार पर है और मजदूर आंदोलन की आवाज लगभग शांत जैसी हो गई है. इस दौर में जब मजदूर आंदोलन निस्तेज और निष्प्राण हो रहा है, 1974 की रेल हड़ताल एक जीवित यादगारों की मशाल है जो मजदूर आंदोलनों के संघर्षों की प्रतीक और प्रेरणा के रूप में याद की जायेगी.(1974 रेलवे हड़ताल के एक मजदूर की कलम से)
वाटसअप पर सक्रिय में Workers Socialist Movement में गुरमीत सिंह (9416036203) ने पोस्ट किया। 22:03
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