चार हफ्तों के दौरान भी जारी रहेगी सादा वर्दी में निगरानी
बहुत पहले जानेमाने पंजाबी सुरजीत पात्र ने लिखा था-
जो बदेशां ''च रुलदे ने रोटी लई
ओह जड़ों देस पर्तणगे अपने कदी!
जां तां सेकनगे मां दे सिवे दी अगन,
ते जां कबरां दे रुख हेठ जा बैहनगे।
आज इन पंक्तियों की याद आ रही है सहारा इंडिया प्रमुख सुब्रत रॉय की हालत देख कर। हो सकता है उन्होंने बहुत सा धन कमा लिया हो लेकिन अनमोल धन वह खो बैठे हैं। जब उनकी मां ने इस दुनिया से विदा ली वह उसके पास नहीं बैठे सके। आखिरी इच्छा भी नहीं पूछ सके। उन्हें अपनी मां के अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए चार सप्ताह की पैरोल मिली है। जेल से आरजी रिहाई। इन जेलों में ऐसे बहुत से दर्द दफन हैं।
जेल के संबंध में कभी साहिर लुधियानवी साहिब ने लिखा था--
जेलों के बिना जब दुनिया की जाएगी
वह सुबह कभी तो आएगी। वो सुबह कभी तो आएगी। भी लगातार बढ़ती रही।
लेकिन जेलों के आकार और जेलों की संख्या में वृद्धि होती चली गई। सुरक्षा बलों के साथ जुर्म की दर और मुजरिमों की बढ़ती चली गई। सहारा इंडिया प्रमुख सुब्रत रॉय को सुप्रीम कोर्ट ने 4 सप्ताह परोल दे दी है। इससे पहले सुब्रत ने अंतरिम जमानत के लिए अदालत में अपील कर दी थी। जिस पर दो बजे सुनवाई होनी थी। गौरतलब है कि सुब्रत ने पेरोल अ पनी मां छवि राय के अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए मांगा है जिनका निधन शुक्रवार की सुबह लखनऊ में हो गया था। उनके दिल पर क्या गुज़र रही होगी इसका लगाना लथिं नहीं है लेकिन एक मां की और उस पर एक बेटे की पैरोल पर यह रिहाई एक बार फिर पूंजीवाद की बुराइयों को सामने लाते हुए बताती है कि कैसे यह सिस्टम हमें अपनी संवेदनाअों से दूर ले जाता है। हमारे हाथ में केवल पैसा रह जाता है लेकिन हम अपनों को खो बैठते हैं। पूँजीवाद पूँजी वहीं लोगों के साथ साथ उनको भी अपना डालता है जो सारी सारी उम्र तरीका प्रयोग करके पूँजी एकत्र करने में लगा देते हैं।
गौरतलब है कि निवेशकों के पैसे न वापस करने की वजह से सुब्रत राय 4 मार्च 2014 से ही तिहाड़ जेल में बंद है। सुब्रत को यह पैरोल मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाली पीठ ने दी है, जिसकी मांग सुब्रत की ओर से वकील कपिल सिब्बल ने की थी। पैरोल के चार हफ्तों के दौरान सादी वर्दी में सिपाही उनकी निगरानी करेंगे। सुब्रत 2 साल बाद पहली बार जेल से बाहर आए हैं।
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