दो तिहाई से अधिक सदस्यों ने किया धर्मनिरपेक्ष स्वरूप का समर्थन
काठमांडू: 14 सितंबर 2015 (पंजाब स्क्रीन ब्यूरो):
नेपाल से राजशाही के खिलाफ और धर्मनिरपेक्षता के समर्थन में खुल कर आवाज़ बुलंद हुई है। नेपाल की संविधान सभा ने देश को फिर से हिन्दू राष्ट्र बनाने का प्रस्ताव सोमवार को खारिज कर दिया। गौरतलब है कि संविधान सभा के दो तिहाई से अधिक सदस्यों ने देश को फिर से हिन्दू राष्ट्र बनाने के खिलाफ मतदान किया। नेपाल में सरगर्म हिन्दु संगठनों ने इसका तीखा विरोध भी किया जिसे दबाने पुलिस को लाठीचार्ज और पानी की तेज़ बौछारें भी इस्तेमाल कीं। संविधान के मसौदे पर रविवार से मतदान शुरू हुआ था जो कल भी जारी रहेगा। नेपाल के सांसदों ने संविधान सभा (सीए) में साफ किया कि नेपाल एक धर्मनिरपेक्ष देश बना रहेगा। सात साल पहले नेपाल को धर्मनिरपेक्ष देश घोषित किया गया था। हिमालयन टाइम्स के मुताबिक, 601 सदस्यीय सीए ने देश के नए संविधान के एक-एक अनुच्छेद पर एक-एक कर मत दिया है और देश के धर्मनिरपेक्ष चरित्र को बनाए रखने पर सहमति जताई है। इसे विश्व की धर्मनिरपेलश शक्तियां एक स्वागतयोग्य घटनक्रम के रूप में देख रही हैं।
उल्लेखनीय है कि दुनिया के एकमात्र हिंदू राष्ट्र नेपाल को मई 2008 में एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र घोषित कर दिया गया था। राजशाही समर्थक राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी-नेपाल के कमल थापा और राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी के अमृत बोहोरा ने मांग की थी कि संविधान से धर्मनिरपेक्षता को हटाकर नेपाल को फिर से हिंदू राष्ट्र घोषित किया जाए। सीए के अध्यक्ष सुबास चंद्र नेमबांग ने दोनों पार्टियों के प्रस्ताव को नामंजूर कर दिया। इसके बाद कमल थापा ने अपने प्रस्ताव पर मतदान की मांग की। थापा के प्रस्ताव पर वोटिंग हो या नहीं, पहले यह जानने के लिए मत लिए गए। इस विस्तृत था जिसमें सभी पहलू कवर हुए। हिन्दू संगठन विरोध जताते हुए (साभार चित्र) |
जब मतदान के बाद संविधान सभा के अध्यक्ष सुभाष चंद्र ने प्रस्ताव के ठुकराए जाने का ऐलान किया तो राष्ट्रीय प्रजातांत्रिक पार्टी के कमल थापा ने मत विभाजन की मांग की। थापा के प्रस्ताव के पक्ष में 601 सदस्यीय संविधान सभा में सिर्फ 21 मत मिले, जबकि मत विभाजन के लिए 61 सदस्यों के समर्थन की जरुरत होती है। उल्लेखनीय है कि हिंदू राष्ट्र रहे नेपाल को साल 2006 के जन आंदोलन की सफलता के बाद साल 2007 में धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र घोषित किया गया था।
No comments:
Post a Comment