Monday, May 20, 2013

जिंदगी लाईव के साथ जुड़े कई और लोग

जीत जायेंगे हम:जारी है थैलेसीमिया के साथ मासूमों की जंग 
कार्यक्रम था उन मासूम बच्चों का जिन्हें खून की एक एक बूँद के लिए दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है। किसी एक आध दिन के लिए नहीं बल्कि जीवन भर। इनमें करीब करीब सभी धर्मों, मजहबों और वर्गों के बच्चे हैं। जिस बात को पीर पैगंबर एक अरसे से कह रहे हैं उसी बात को ये मासूम बच्चे अपनी जान जोखिम में डाल कर साबित कर रहे हैं चीर के देखो खून का रंग है लाल फिर कैसे हो गया कोई हिन्दू कोई मुस्ल्मान। प्रकृति की इस एकता के साथ साथ यह बच्चे प्रकृति की भिन्नता को भी दिखा रहे हैं कि यूं तो सबके खून का रंग लाल ही होता है लेकिन उसका ग्रुप एक नहीं होता। खून और शरीर के इस विज्ञान की जिन गहरी गहरी बातों को लोग पूरी पूरी उम्र नहीं समझ पाते उन बातों को यह छोटे छोटे बच्चे अपने शरीर पर सहन करके भी देख लेते हैं। इन्हें डाक्टरी भाषा के कई कठिन शब्द आसानी से याद हो जाते हैं। हर बार अर्थात एक, दो या तीन हफ्तों के अंतराल के बाद जब इन्हें खून चढाया जाता है तो इंजेक्शन की सूई जिसे देख कर कई बार बड़ों बड़ों की चीख निकल जाती है उसे ये लोग कई कई घंटों तक लगवाये रहते हैं। कितना दर्द होता होगा आप अनुमान नहीं लगा सकते लेकिन ये लोग फिर भी कहते हैं-जिंदगी हर कदम इक नई जंग है----सिर्फ कहते ही नहीं--सचमुच इस जंग को लड़ते भी हैं। एक बहादुर योद्धा की तरह इस जंग की हर चुनौती का सामना भी करते हैं और गीत की अगली पंक्ति गुनगुनाते हैं--जीत जायेंगे हम तू अगर संग है----और जानते हैं इनका वो संग,वो साथी कौन है?- हर वही बच्चा जिसे थैलासीमीय है वह इनका संगी साथी है, इनका दोस्त है--इनका रिश्तेदार है, इनका भाई है--इनकी बहन है---रिश्तों के कई नाम हो सकते हैं पर ये वहां भी निभाते हैं जहाँ इनका कोई कुछ नहीं लगता। रविवार १ मई २ ३ की शाम इन सभी बच्चों को यहाँ साथ लेकर आई थी  जिंदगी लाईव संस्था। केवल १ महीनों में बहुत से थैलासीमिक बच्चों को ढूँढना, उन्हें सहायता प्रदान करना, एकजुट करना और इस मंच तक लाना यह सब किसी भी तरह आसान नहीं था पर जिंदगी लाईव ने फिर भी सब कर दिखाया--और वह भी बिना किसी सरकारी सहायता के। अगर सरकार  साथ होती तो सफलता की रफ़्तार और भी तेज़ हो गई होती। कुल मिला कर यह कार्यक्रम एक नई घोषणा थी--एक नए सफर की शुरुआत थी। औपचारिक आरम्भ हुआ गायत्री मन्त्र से और इसके बाद सबसे पहला गीत उन बच्चों की तरफ से था जिनका हर कदम खतरे में--हर सांस खतरे में---लेकिन फिर भी होठों पर गीत स्वागत करते हैं हम।

इस सुरीले गीत के बाद मंच पर बुलाया गया सी एम सी अस्पताल के डाक्टर जॉन को। उन्होंने एक सलाईड शो की सहायता  से थैलासीमीया की बारीकियों को समझाया। इसका इतिहास--आज और भविष्य पर हो रहे काम। मंच से बताया गया कि डाक्टर जॉन की देख रेख में बी एम टी  अर्थात बॉन मेरो ट्रांसप्लांट के १ केस हुए जिनमें से १ सफल रहे. अर्थात अब उन्हें बार बार खून चढ़वाने की कोई आवश्यकता नहीं रही। इसी तरह फिर कुछ आईटमें प्रस्तुत की इन मासूम बच्चों ने जिन्हें मजबूर या बेबस समझा जाता है।  इन बच्चों ने दिखाया कि हम किसी से कम नहीं। इनके हर कदम में जिंदगी की बात थी, सुर और संगीत से सधे हुए कदम रात के घन अँधेरे में भी रौशनी की बात कर रहे थे--जीत की बात कर रहे थे। दुःख और दर्द से सराबोर होकर भी खुशियों की बात कर रहे थे। जीत के गीत गा रहे थे।
इसी सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए इस क्षेत्र की जानी मानी शख्सियत डाक्टर प्रवीन सोबती ने भी इस आयोजन के लिए प्रबंधकों को बधाई दी और इसे एक उपलब्धी बताया। उन्होंने बी एम टी के मामले में आ रही कुछ ठोस उलझनों की बात भी की तांकि इस मुद्दे पर भी विचार हो सके।
इस अवसर पर अन्य बहुत से प्रमुख लोगों के अलाव सुख सोहित सिंह भी मौजूद थे. वही सुख सोहित जिन्हें थैलसॆमॆइय था लेकिन उन्होंने इसकी चुनौती को स्वीकार किय…अब वफ़ रक्षा विभाग पुणे में एक महत्वपूर्ण पद पर नियुक्त हैं। आम जवानों से ज्यादा जोश, दिआम्ग में तेज़ रफ्तारी से आते कुछ वशेष विचार---वह मंच से उतर कर एक एक बच्चे के पास गये। उन्हें उनके निशाने की याद दिलाने---उन्हें यह बताने कि अगर मैं ऐसा कर सकता हूँ तो आप क्यूं नहीं? 
दिलचस्प बात थी कि दो चार घड़ियों के लिए बस शक्ल दिखने वाले नेता लोगों ने भी इस कार्यक्रम के लिए बहुत वक्त निकाला बिलकुल इस तरह जैसे यह उनका अपना कार्यक्रम हो। जाने माने नेता मदनलाल बग्गा काफी सक्रिय दिखे। एम एल ए सिमरजीत सिंह बैंस ने इस नेक काम के लिए ५  हजार रूपये देने की घोषणा की। भारतीय जनता पार्टी पंजाब के प्रधान कमल शर्मा और जिला प्रधान  प्रवीन बांसल कार्यक्रम में आखिर तक बैठे रहे। हर मासूम बच्चे को अपनी आँखों ही आँखों से आशीर्वाद देते हुए, उनके कर्य्क्ल्र्मोन को पूरे ध्यान से देखते हुए, और उनकी इस हिम्मत पर उन्हें शाबाश देते हुए उन्होंने आश्वासन भी दिया कि वह इस मुद्दे की बात को सरकार के दरबार तक भी पहुँचायेंगे। उन्होंने जानेमाने शायर दुशिअंत कुमार की कुछ पंक्तियाँ भी कहीं-
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं;
मेरा मकसद तो है यह सूरत बदलनी चाहिए!
मेरे  सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही;
हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए!
अब देखना है कि थैलेसीमिया की विकराल सूरते-हाल को बदलने के लिए जिंदगी लाईव ने जो शुरूआत की है उसे और सफल बनाने के लिए सरकार और समाज के अन्य वर्ग कब आगे आते हैं ! --रेक्टर कथूरिया (सहयोग-अमन कुमार मल्होत्रा) --पंजाब स्क्रीन 

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