न्याय पाने की भाषायी आज़ादी --राजीव गुप्ता , 09811558925
हिन्दी को राजभाषा का दर्जा
लेखक राजीव गुप्ता |
यह चित्र जय हिंद से साभार |
हिन्दी और राष्ट्रपति के आदेश
राष्ट्रपति का पहला आदेश 27 मई 1952 को विधि-मंत्रालय की अधिसूचना के रूप में और भारत के राजपत्र में प्रकाशित हुआ. इस आदेश के अनुसार राज्यपालों, उच्चतम और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति अधिपत्रों को प्राधिकृत कर दिया गया. राष्ट्रपति का दूसरा आदेश 3 दिसम्बर 1955 को गृह मंत्रालय द्वारा अधिसूचित किया गया जिसे संविधान (राजकीय प्रयोजनो के लिये हिन्दी भाषा) आदेश 1955’ के रूप में जाना जाता है. इस आदेश के अनुसार जनता से पत्र-व्यवहार, संसद और प्रशासनिक रिपोर्टें, राजकीय पत्रिकाएँ, सरकारी संकल्प, राजभाषा को अपनाने वाले राज्यों से पत्र-व्यवहार, संधिय़ाँ व करार जैसे प्रमुख क्रियाकलापों में हिन्दी को अपनाने के लिये कहा गया. इसी आदेश के परिणामस्वरूप विभिन्न मंत्रालयों में हिन्दी-अनुवादकों की नियुक्तियाँ शुरू हुई. उसके बाद राष्ट्रपति द्वारा कई आदेश जारी किये गये और 1963 में राजभाषा अधिनियम बना.
योग में आशंकाएँ
यह चित्र शंखनाद से साभार |
यह चित्र जय हिंद से साभार |
कहने को तो हिन्दी देश की राजभाषा है, परंतु आज भी प्रशासनिक व न्यायालय के कामकाज़ में अंग्रेजी का ही वर्चस्व है. देश की शीर्ष अदालत के फैसले के निहितार्थ यही है कि ऐसे मामलों में न्याय के लिये उसी भाषा का इस्तेमाल होना चाहिए जिस भाषा को आरोपी समझता हो, ताकि कोई भी व्यक्ति तथ्यों को ठीक-ठाक समझकर अपना पक्ष रख सके. अब समय आ गया है कि अब राजभाषा अधिनियम की नये सिरे से समीक्षा की जाये क्योंकि किसी भी स्वतंत्र देश में मातृभाषा में अपना पक्ष रखना और जवाब मांगना किसी भी व्यक्ति का हक होता है.
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