16-अप्रैल-2013 16:20 IST
रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन-डीआरडीओ की उपलब्धियां
रक्षा विशेष लेख --*नंगसुंगलेम्बा आओ
रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन-डीआरडीओ देश का एक महत्वपूर्ण संगठन हैं जो रक्षा प्रौद्योगिकी के विकास में लगा हुआ है। इसका मिशन आधुनिक किस्म की रक्षा प्रणालियां और प्रौद्योगिकियों का विकास करना और देश की रक्षा सेवाओं के लिए प्रौद्योगिकी समाधान प्रदान करना है। संगठन ने प्रौद्योगिकी विकास के क्षेत्र में नये और वृहद आयाम स्थापित किये हैं।
हाल के वर्षों में डीआरडीओ ने आत्मनिर्भरता पर जो ध्यान दिया है, उससे रक्षा सेवाओं के लिए आधुनिक प्रणालियां और महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकियां विकसित हुई हैं और आत्मनिर्भरता का सूचकांक 30 प्रतिशत से बढ़कर 55 प्रतिशत तक पहुंच गया है।
सामरिक प्रणालियों में दक्ष डीआरडीओ ने कई उपलब्धियां हासिल की हैं और लम्बी दूरी तक मार करने वाली सामरिक मिसाइल अग्नि-5 के शानदार प्रक्षेपण से संगठन ने नई ऊंचाईयों को छुआ है। अग्नि-1, अग्नि-2, पृथ्वी-2 और अग्नि-3 ने देश की सामरिक शक्ति को मजबूत बनाने में योगदान दिया, जबकि अग्नि-5 को सशस्त्र सेनाओं के अस्त्रों में शामिल करने की तैयारियां की जा रही हैं। 70 से अधिक प्रमुख मिसाइल प्रणालियों का प्रक्षेपण, इस महत्वपूर्ण क्षेत्र में डीआरडीओ की शक्ति और दक्षता को दर्शाता है।
कई प्रकार के सफल परीक्षणों और नई प्रौद्योगिकियों के इस्तेमाल के बाद जलगत प्रणाली बीओ-5 के निर्माण की मंजूरी मिलना संगठन की एक और बड़ी उपलब्धि है।
भारत की पहली स्वदेशी परमाणु शक्ति युक्त पनडुब्बी-आईएनएस अरिहन्त समुद्री परीक्षणों के लिए तैयार है। लम्बी दूरी की क्रूज मिसाइल निर्भय अपनी प्रारंभिक उड़ान भर चुकी है। सफल इंटरसेप्शन परीक्षणों के बाद विकसित की गई दो-स्तरीय बैलिस्टिक मिसाइल रक्षा प्रणाली की विश्वसनीयता प्रदर्शित हो गई है।
कई लक्ष्यों को साधने वाली मध्यम दूरी की वायु रक्षा प्रणाली से विकसित आकाश एक और शानदार उपलब्धि है।
सर्वश्रेष्ठ सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल ब्राह्मोस, जिसका प्रक्षेपण थल, वायु, समुद्र और समुद्र के अंदर के प्लेटफार्मों से तेज गति के साथ हमले के लिए किया जा सकता है, आधुनिक समय का एक और महत्वपूर्ण हथियार है। इसका ब्लॉक-2 डिजाईन लक्ष्य की पहचान कर सकता है और ब्लॉक-3 डिजाईन सुपरसोनिक गति के साथ गहराई तक गोता लगाने की क्षमता रखता है, जिसके कारण यह एक अत्यंत मारक क्षमता वाला हथियार बन गया है।
जमीन से जमीन तक मार करने वाली नई प्रहार मिसाइल 150 किलोमीटर से भी अधिक दूरी तक गोले फेंक सकती है और एक तरह से पिनाका रॉकेट और पृथ्वी मिसाइल के अंतर को पूरा करती है।
देश में निर्मित एक्टिव ऐरे रेडार एंटिना से युक्त एईडब्ल्यूएंडसीएस प्लेटफॉर्म डीआरडीओ की एक अन्य महत्वपूर्ण उपलब्धि है। इसके व्यापक उड़ान परीक्षण किये जा रहे हैं।
मिग-27, जगुआर और सुखोई-30 विमानों की उडान क्षमता में सुधार से इनकी लडाकू क्षमताओं में वृद्धि हुई है।
देश में पहली बार डिजाईन और निर्मित किये गये विमान इंजन कावेरी की सफल उडानों के बाद सफल परीक्षण चल रहे हैं। यूएवी के लिए वेंकल रोटरी इंजन को सफल रूप से विकसित करने के बाद यूएवी निशांत में इसका प्रयोग एक और बड़ी उपलब्धि है।
मुख्य युद्धक टैंक-अर्जुन से लैस दो रेजीमेंट भारतीय सेना की शान हैं। अर्जुन मार्क-2 में लगभग 70 नये फीचर हैं और इसे रिकॉर्ड समय में विकसित किया गया है।
पिनाका रॉकेट लांचर को और विकसित करके लंबी दूरी के पिनाका-2 का निर्माण किया गया है, जिसके परीक्षण चल रहे हैं।
एक नयी पुल निर्माण प्रणाली का विकास किया गया है, जिससे 46 मीटर लम्बा पुल तैयार किया जा सकता है और जो 70 टन के भार को झेल सकता है। अब इसके परीक्षण चल रहे हैं।
भारतीय नौ-सेना की आवश्यकता के लिए बहुत उच्च गुणवत्ता वाले सेंसर USHUS, NAGAN और HUMSA NG को नौ-सेना के जहाजों में इस्तेमाल के लिए विकसित किया गया है। भारी वजन वाले टॉरपिडो वरूणास्त्र के समुद्र में व्यापक परीक्षण हो चुके हैं और इसे अस्त्र प्रणालियों में शामिल किया जाना है।
रेडार और इलैक्ट्रॉनिक युद्ध प्रणालियों के लिए डब्ल्यूएलआर, 3डी टीसीआर, भारानी और अश्लेषा जैसे अत्यंत आधुनिक किस्म की रेडार प्रणालियां विकसित की गई हैं।
डीआरडीओ ने रक्षा सेनाओं की आवश्यकताओं के लिए विशेष सामग्री के विकास में अग्रणी भूमिका निभाई है। हाल की उपलब्धियों में एमआई 17 हैलीकॉप्टर के लिए हल्के हथियारों का निर्माण और भारतीय नौ-सेना के लिए 30 हजार टन के डीएमआर स्टील का उत्पादन शामिल हैं।
आज के युद्ध परिदृश्य की आवश्यकताओं को देखते हुए डीआरडीओ ने मानव रहित युद्धक मशीनें विकसित करनी शुरू की हैं, जो बहुत महत्वपूर्ण हैं। इनमें दूर से संचालित यान दक्ष बम गिराने की दिशा में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। यूएवी रूस्तम-1 की कई सफल उड़ानें हो चुकी हैं। कई लघु और सूक्ष्म यूएवी विकसित किये गये हैं।
नौ-सेना के सब-मरीन एसकेप सूट के लिए, पैराशूटधारियों के लिए उतरने की विशेष प्रणाली के लिए और भारतीय वायु सेना के हल्के हैलीकॉप्टर की ऑक्सीजन प्रणाली के लिए डीआरडीओ को बडे पैमाने पर ऑर्डर मिले हैं। डीआरडीओ ने ऑन बोर्ड ऑक्सजीन जेनरेशन सिस्टम का भी विकास किया है।
सैनिकों की सहायता के लिए सौर ऊर्जा के प्रयोग वाले मॉड्यूलर ग्रीन शेल्टर का विकास भी एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है।
डीआरडीओ ने सामाजिक क्षेत्र के लिए भी पर्यावरण हितैषी बॉयो डाइजेस्टर तैयार किये हैं जो अत्यंत ठंडे क्षेत्रों में मनुष्यों के शौच का निपटान करते हैं। इन्हें रेल डिब्बों के लिए और लक्षद्वीप समूह के लिए भी विकसित किया गया है। दो लाख से अधिक ग्राम पंचायतों के लिए जैव-शौचालय विकसित करने के लिए भी इस प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल किया जा रहा है।
मलबे के अंदर दबे हुए या बोर-वेल में गिरे पीडि़तों की पहचान के लिए सोनार टैक्नोलॉजी से लाइफ डिटेक्टर संजीवनी का विकास किया गया है। जल क्षेत्रों के नीचे की सतह कितनी सख्त है, इसकी पहचान के लिए तरंगिणी उपकरण का विकास किया गया है।
इन सब प्रयासों का एक ही उद्देश्य है कि रक्षा प्रणालियों और प्रौद्योगिकियों के डिजाईन विकास और उत्पादन में भारत को एक विश्व स्तरीय केंद्र के रूप में विकसित किया जाये, ताकि इसे अन्य देशों पर निर्भर न रहना पडे।
भारत की रक्षा शक्ति आज ऐसी बुलंदियों पर पहुंच गई है कि यह उन ऐसे चार देशों में से एक है जिनके पास बहुस्तरीय सामरिक त्रास क्षमता है, उन पांच देशों में से एक देश है जिसके पास अपना बीएमडी कार्यक्रम है, उन 6 देशों में से एक देश है जिसके पास अपना मुख्य युद्धक टैंक है और उन 7 देशों में से एक देश है जिसके पास अपने चौथी श्रैणी के युद्धक विमान हैं।
* लेखक रक्षा मंत्रालय में निदेशक हैं।
मीणा/राजगोपाल/चन्द्रकला-73
पूरी सूची-15.04.13
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